19 जनवरी 2022

अध्यात्म क्या है...??? What is Spirituality...???




अध्यात्म का अर्थ है अपने भीतर के चेतन तत्व को जानना, और दर्शन करना अर्थात अपने आप के बारे में जानना या आत्मप्रज्ञ होना।

गीता के आठवें अध्याय में अपने स्वरुप अर्थात जीवात्मा को अध्यात्म कहा गया है।
"परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते " आत्मा परमात्मा का अंश है यह तो सर्वविदित है।
जब इस सम्बन्ध में शंका या संशय, अविश्वास की स्थिति अधिक क्रियमान होती है तभी हमारी दूरी बढती जाती है, और हम विभिन्न रूपों से अपने को सफल बनाने का निरर्थक प्रयास करते रहते हैं जिसका परिणाम नकारात्मक ही होता है, ये तो असंभव सा जान पड़ता है।
यदी मिट्टी के बर्तन मिट्टी से अलग पहचान बनाने की कोशिश करें तो कोई क्या कहे..??
यह विषय विचारणीय है।
अध्यात्म की अनुभूति सभी प्राणियों में समान रूप से निरंतर होती रहती है।
स्वयं की खोज तो सभी कर रहे हैं, परोक्ष व अपरोक्ष रूप से, परमात्मा के असीम प्रेम की एक बूँद मानव में पायी जाती है जिसके कारण हम उनसे संयुक्त होते हैं किन्तु कुछ समय बाद इसका लोप हो जाता है और हम निराश हो जाते हैं।
सांसारिक बन्धनों में आनंद ढूंढते ही रह जाते हैं परन्तु क्षणिक ही ख़ुशी पाते हैं, जब हम क्षणिक संबंधों, क्षणिक वस्तुओं को अपना जान कर उससे आनंद मनाते हैं,जब की हर पल साथ रहने वाला शरीर भी हमें अपना ही गुलाम बना देता है, हमारी इन्द्रियां अपने आप से अलग कर देती है यह इतनी सूक्ष्मता से करती है कि हमें महसूस भी नहीं होता की हमने यह काम किया है?
जब हमें सत्य की समझ आती है तो जीवन का अंतिम पड़ाव आ जाता है व पश्चात्ताप के सिवाय कुछ हाथ नहीं लग पाता, ऐसी स्थिति का हमें पहले ही ज्ञान हो जाये तो शायद हम अपने जीवन में पूर्ण आनंद की अनुभूति के अधिकारी बन सकते हैं, हमारा इहलोक तथा परलोक भी सुधर सकता है।
तो सज्जनों! अब प्रश्न उठता है की यह ज्ञान क्या हम अभी प्राप्त कर सकते हैं? हाँ, हम अभी जान सकते हैं की अंत समय में किसकी स्मृति होगी, हमारा भाव क्या होगा? हम फिर अपने भाव में अपेक्षित सुधार कर सकेंगे।
यंयंवापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्।
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भाव भावितः।।
सज्जनों! सभी अपनी अपनी आखें बंद कर यह स्मरण करें की सुबह अपनी आखें खोलने से पहले हमारी जो चेतना सर्वप्रथम जगती है उस क्षण हमें किसका स्मरण होता है? बस उसी का स्मरण अंत समय में भी होगा, अगर किसी को भगवान् के अतिरिक्त किसी अन्य चीज़ का स्मरण होता है तो अभी से वे अपने को सुधार लें।
और निश्चित कर लें की हमारी आँखें खुलने से पहले हम अपने चेतन मन में भगवान् का ही स्मरण करेंगे, बस हमारा काम बन जायेगा नहीं तो हम जीती बाज़ी भी हार जायेंगे, कदाचित अगर किसी की बीमारी के कारण या अन्य कारण से बेहोशी की अवस्था में मृत्यु हो जाती है।
तो दीनबंधु भगवान् उसके नित्य प्रति किये गए इस छोटे से प्रयास को ध्यान में रखकर उन्हें स्मरण करेंगे और उनका उद्धार हो जायेगा, क्योंकि परमात्मा परम दयालु हैं जो हमारे छोटे से छोटे प्रयास से द्रवीभूत हो जाते हैं, ये विचार मानव-मात्र के कल्याण के लिए समर्पित है।
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English Translate :-

Spirituality means knowing the conscious element within oneself, and darshan means knowing about oneself or being self-realized. In the eighth chapter of the Gita, its form, the soul, is called Spirituality. It is well known that "Param svabhano-dhyatmamuchyate" soul is a part of the Supreme Soul. When doubts or doubts in this regard, the state of distrust becomes more active, then our distance increases, and we keep making futile efforts to make ourselves successful in different ways, the result of which is negative, it seems impossible. Is. If earthen pots try to make a different identity from clay, then what will someone say..?? This topic is worth considering. Spirituality is felt equally in all beings. Everyone is searching for himself, indirectly and indirectly, a drop of infinite love of God is found in human beings, due to which we are united with him, but after some time it disappears and we become disappointed. We keep on looking for pleasure in worldly bondage, but find happiness only momentarily, when we rejoice in momentary relationships, by knowing momentary things as our own, when the body which is with us every moment makes us its own slave, our The senses disconnect from themselves, it does so so subtly that we do not even realize that we have done this work? When we understand the truth, then the final stage of life comes and nothing can be done except repentance, if we already know about such a situation, then perhaps we can become entitled to the experience of complete happiness in our life, Our here and here can also improve. So gentlemen! Now the question arises that can we get this knowledge now? Yes, we can now know whose memory will be in the end times, what will be our feeling? We will then be able to make the required improvement in our sentiment. Yayamvapi smaranbhavam tyajayante kalevaram. Tan tamevaiti kaunteya always tadbhava bhavitah. Gentlemen! Everyone should close their eyes and remember that before opening our eyes in the morning, the consciousness that awakens first of all, what do we remember at that moment? Only the same will be remembered in the end times also, if anyone remembers anything other than God, then from now on they should correct themselves. And make sure that before we open our eyes, we will remember God in our conscious mind, just our work will be done otherwise we will also lose the winning bet, probably if due to someone's illness or due to any other reason in the state of unconsciousness. Death ensues. So Deenbandhu Bhagavan will remember him by keeping this small effort towards him daily and he will be saved, because God is the most merciful who gets liquefied by our small efforts, these thoughts are for the welfare of mankind. dedicated to.





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