'पुराण' का शाब्दिक अर्थ है - 'प्राचीन आख्यान' या 'पुरानी कथा'। ‘पुरा’ शब्द का अर्थ है - अनागत एवं अतीत। ‘अण’ शब्द का अर्थ होता है - कहना या बतलाना I रघुवंश में पुराण शब्द का अर्थ है "पुराण पत्रापग मागन्नतरम्" एवं वैदिक वाङ्मय में "प्राचीन: वृत्तान्त:" दिया गया है। कहा जाता है, ‘‘पूर्णात् पुराण ’’ जिसका अर्थ है, जो वेदों का पूरक हो, अर्थात् पुराण (जो वेदों की टीका हैं)।
सांस्कृतिक अर्थ से हिन्दू संस्कृति के वे विशिष्ट धर्मग्रंथ जिनमें सृष्टि से लेकर प्रलय तक का इतिहास-वर्णन शब्दों से किया गया हो, पुराण कहे जाते है। पुराण शब्द का उल्लेख वैदिक युग के वेद सहित आदितम साहित्य में भी पाया जाता है अत: ये सबसे पुरातन (पुराण) माने जा सकते हैं। अथर्ववेद के अनुसार "ऋच: सामानि छन्दांसि पुराणं यजुषा सह ११.७.२") अर्थात् पुराणों का आविर्भाव ऋक्, साम, यजुस् औद छन्द के साथ ही हुआ था। शतपथ ब्राह्मण (१४.३.३.१३) में तो पुराणवाग्ङमय को वेद ही कहा गया है। छान्दोग्य उपनिषद् (इतिहास पुराणं पंचम वेदानांवेदम् ७.१.२) ने भी पुराण को वेद कहा है। बृहदारण्यकोपनिषद् तथा महाभारत में कहा गया है कि "इतिहास पुराणाभ्यां वेदार्थमुपबृंहयेत्" अर्थात् वेद का अर्थविस्तार पुराण के द्वारा करना चाहिये। इनसे यह स्पष्ट है कि वैदिक काल में पुराण तथा इतिहास को समान स्तर पर रखा गया है I
अमरकोष आदि प्राचीन कोशों में पुराण के पांच लक्षण माने गये हैं : सर्ग (सृष्टि), प्रतिसर्ग (प्रलय, पुनर्जन्म), वंश (देवता व ऋषि सूचियां), मन्वन्तर (चौदह मनु के काल), और वंशानुचरित (सूर्य चंद्रादि वंशीय चरित)।
सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च।
वंशानुचरितं चैव पुराणं पञ्चलक्षणम् ॥
(१) सर्ग – पंचमहाभूत, इंद्रियगण, बुद्धि आदि तत्त्वों की उत्पत्ति का वर्णन,
(२) प्रतिसर्ग – ब्रह्मादिस्थावरांत संपूर्ण चराचर जगत् के निर्माण का वर्णन,
(३) वंश – सूर्यचंद्रादि वंशों का वर्णन,
(४) मन्वन्तर – मनु, मनुपुत्र, देव, सप्तर्षि, इंद्र और भगवान् के अवतारों का वर्णन,
(५) वंशानुचरित – प्रति वंश के प्रसिद्ध पुरुषों का वर्णन।
// अष्टादश पुराण संख्या //
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पुराणों की संख्या प्राचीन काल से अठारह मानी गयी है। पुराणों में एक विचित्रता यह है कि प्रायः प्रत्येक पुराण में अठारहों पुराणों के नाम और उनकी श्लोक-संख्या का उल्लेख है। देवीभागवत में नाम के आरंभिक अक्षर के निर्देशानुसार १८ पुराणों की गणना इस प्रकार की गयी हैं I
अष्टादशपुराणानामस्मरणं कर्तुम् एकं सामान्यमश्लोकमस्ति‚
येन एतेषां पुराणानां नामानि सरलतया स्मर्तुं शक्यते ।
पुराणानां संख्याविषये मतभेदो नास्ति,
सर्ववादिसिध्दं तेषामष्टादशत्वम् ।
// अष्टादश पुराणानि //
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म–द्वयं भ–द्वयं चैव ब्र–त्रयं व–चतुष्टयम् ।
अ–ना–प–लिं–ग–कू–स्कानि पुराणानि प्रचक्षते ।।
अर्थात् : -
म–द्वयं –१ मत्स्यपुराणम्, २ मार्कण्डेयपुराणम्
भ–द्वयं–३ भागवतपुराणम्, ४ भविष्यपुराणम्
ब्र–त्रयं –५ ब्रह्माण्डपुराणम्, ६ ब्रह्मपुराणम्, ७ ब्रह्मवैवर्तपुराणम्
व–चतुष्टयम् –८ विष्णुपुराणम् ९ वायुपुराणम्, १० वामनपुराणम्, ११ वराहपुराणम्
अ– १२ अग्निपुराणम्
ना– १३ नारदपुराणम्
प– १४ पद्मपुराणम्
लिं– १५ लिंगपुराणम्
ग– १६ गरुणपुराणम्
कू– १७ कूर्मपुराणम्
स्क– १८ स्कन्दपुराणम्
इति एतानि अष्टादशपुराणानि सन्ति ।।
महापुराणानि अष्टादश ।
एतानि वेदव्यासमहर्षिणा रचितानि इति प्रतीतिः ।
ब्राह्मं पाद्मं वैष्णवं च शैवं लैङ्गं च गारुडम् ।
नारदीयं भागवतमाग्नेयं स्कन्दमेव च ॥
भविष्यं ब्रह्मवैवर्तं मार्कण्डेयं च वामनम् ।
मात्स्यं कौर्मं च वाराहं तथा ब्रह्माण्डसंज्ञितम् ।
अष्टादशपुराणानि व्यासोक्तानि विदुर्बुधाः ॥
अष्टादशपुराणानि कृत्वा सत्यवतीसुतः ।
भारताख्यानमखिलं चक्रे तदुपबृंहणम् ॥ मत्स्यपुराणम् (५३-७०)
भागवत महापुराण के अनुसार पुराणों का क्रम इस प्रकार है-
ब्राह्मं पाद्मं वैष्णवं च शैवं लैङ्गं सगारुडम् ।
नारदीयं भागवतमाग्नेयं स्कान्दसंज्ञितम्।।
भविष्यं ब्रहमवैवर्तं मार्कण्डेयं सवामनम् ।
वाराहं मात्स्यं कौर्मं च ब्रह्माण्डाख्यमिति त्रिषट्।। - भा०१२;८;२३,२४॥
अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् |
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ||
अर्थात् : महर्षि वेदव्यास जी ने अठारह पुराणों में दो विशिष्ट बातें कही हैं | पहली – - परोपकार से बढ़ कर कोई 'पुण्य' नहीं है और दूसरी दूसरों को दुख देने से बड़ा कोई 'पाप' नहीं है ।
// पुराणविभागः सात्त्विक-राजस-तामसपुराणानि //
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वैष्णवं नारदीयं च तथा भागवतं शुभम् ।
गारुडञ्च तथा पाद्मं वाराहं शुभदर्शने ।|
सात्त्विकानि पुराणानि विज्ञेयानि शुभानि वै ।|
विष्णु-नारद-भागवत-गरुड-पद्म-वराहपुराणानि सात्त्विकानि ।I
ब्रह्माण्डं ब्रह्मवैवर्तं मार्कण्डेयं तथैव च ।
भविष्यं वामनं ब्राह्मं राजसानि निबोधत ।|
ब्रह्माण्ड-ब्रह्मवैवर्त-मार्कण्डेय-भविष्य-वामन-ब्राह्मपुराणानि राजसानि ।I
मात्स्यं कौर्मं तथा लैङ्गं शैवं स्कान्दं तथैव च ।
आग्नेय्ञ्च षडेतानि तामसानि निबोधत ।|
मत्स्य-कूर्म-लिङ्ग-शैव-स्कान्दपुराणानि तामसानि ।I
सात्त्विकेषु पुराणेषु माहात्म्यमधिकं हरेः
राजसेषु च माहात्म्यम् अधिकं ब्रह्मणो विदुः ।
तद्वद् अग्नेश्च माहात्म्यं तामसेषु शिवस्य च
संकीर्णेषु सरस्वत्याः पितॄणां च निगद्यते ॥
सात्त्विकपुराणेषु हरेः माहात्म्यं,
राजसपुराणेषु ब्रह्मणः माहात्म्यं,
तामसपुराणेषु शिवस्य माहात्म्यं च वर्णितं दृश्यते II
सरस्वत्याः पितॄणां च स्तुतिः यत्र कृतः अस्ति तानि
संकीर्णपुराणानि इति मत्स्यपुराणे उल्लेखः दृश्यते ।I
// १८-अष्टादश पुराण के नाम और उनका महत्त्व //
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(१) ब्रह्मपुराण : इसे “आदिपुराण” भी का जाता है। प्राचीन माने गए सभी पुराणों में इसका उल्लेख है। इसमें श्लोकों की संख्या अलग- २ प्रमाणों से भिन्न-भिन्न है। १०,०००…१२.००० और १३,७८७ ये विभिन्न संख्याएँ मिलती है। इसका प्रवचन नैमिषारण्य में लोमहर्षण ऋषि ने किया था। इसमें सृष्टि, मनु की उत्पत्ति, उनके वंश का वर्णन, देवों और प्राणियों की उत्पत्ति का वर्णन है। इस पुराण में विभिन्न तीर्थों का विस्तार से वर्णन है। इस पुराण में 246 अध्याय तथा 14000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्मा की महानता के अतिरिक्त सृष्टि की उत्पत्ति, गंगा आवतरण तथा रामायण और कृष्णावतार की कथायें भी संकलित हैं। इस ग्रंथ से सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर सिन्धु घाटी सभ्यता तक की कुछ ना कुछ जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
(२) पद्मपुराण : इसमें कुल ६४१ अध्याय और ४८,००० श्लोक हैं। मत्स्यपुराण के अनुसार इसमें ५५,००० और ब्रह्मपुराण के अनुसार इसमें ५९,००० श्लोक थे। इसमें कुल खण़्ड हैं—(क) सृष्टिखण्ड : ५ पर्व, (ख) भूमिखण्ड, (ग) स्वर्गखण्ड, (घ) पातालखण्ड और (ङ) उत्तरखण्ड। इसका प्रवचन नैमिषारण्य में सूत उग्रश्रवा ने किया था। ये लोमहर्षण के पुत्र थे। इस पुराण में अनेक विषयों के साथ विष्णुभक्ति के अनेक पक्षों पर प्रकाश डाला गया है। इसका विकास ५ वीं शताब्दी माना जाता है।
(३) विष्णुपुराण : पुराण के पाँचों लक्षण इसमें घटते हैं। इसमें विष्णु को परम देवता के रूप में निरूपित किया गया है। इसमें कुल छः खण्ड हैं, १२६ अध्याय, श्लोक २३,००० हैं। इस पुराण के प्रवक्ता पराशर ऋषि और श्रोता मैत्रेय हैं। इस ग्रंथ में भगवान विष्णु, बालक ध्रुव, तथा कृष्णावतार की कथायें संकलित हैं। इस के अतिरिक्त सम्राट पृथु की कथा भी शामिल है जिस के कारण हमारी धरती का नाम पृथ्वी पडा था। इस पुराण में सू्र्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास है। भारत की राष्ट्रीय पहचान सदियों पुरानी है जिस का प्रमाण विष्णु पुराण के निम्नलिखित शलोक में मिलता हैःउत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्। वर्षं तद भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।(साधारण शब्दों में इस का अर्थ है कि वह भूगौलिक क्षेत्र जो उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में सागर से घिरा हुआ है भारत देश है तथा उस में निवास करने वाले सभी जन भारत देश की ही संतान हैं।) भारत देश और भारत वासियों की इस से स्पष्ट पहचान और क्या हो सकती है? विष्णु पुराण वास्तव में ऐक ऐतिहासिक ग्रंथ है।
(४) वायुपुराण : इसमें विशेषकर शिव का वर्णन किया गया है, अतः इस कारण इसे “शिवपुराण” भी कहा जाता है। एक शिवपुराण पृथक् भी है। इसमें ११२ अध्याय, ११,००० श्लोक हैं। इस पुराण का प्रचलन मगध-क्षेत्र में बहुत था। इसमें गया-माहात्म्य है। इसमें कुल चार भाग है : (क) प्रक्रियापाद – (अध्याय—१-६), (ख) उपोद्घात : (अध्याय-७ –६४ ), (ग) अनुषङ्गपादः–(अध्याय—६५–९९), (घ) उपसंहारपादः–(अध्याय—१००-११२)। इसमें सृष्टिक्रम, भूगो, खगोल, युगों, ऋषियों तथा तीर्थों का वर्णन एवं राजवंशों, ऋषिवंशों,, वेद की शाखाओं, संगीतशास्त्र और शिवभक्ति का विस्तृत निरूपण है। इसमें भी पुराण के पञ्चलक्षण मिलते हैं।
(५) भागवतपुराण : यह सर्वाधिक प्रचलित पुराण है। इस पुराण का सप्ताह-वाचन-पारायण भी होता है। इसे सभी दर्शनों का सार “निगमकल्पतरोर्गलितम्” और विद्वानों का परीक्षास्थल “विद्यावतां भागवते परीक्षा” माना जाता है। इसमें श्रीकृष्ण की भक्ति के बारे में बताया गया है। इसमें कुल १२ स्कन्ध, ३३५ अध्याय और १८,००० श्लोक हैं। कुछ विद्वान् इसे “देवीभागवतपुराण” भी कहते हैं, क्योंकि इसमें देवी (शक्ति) का विस्तृत वर्णन हैं। इसका रचनाकाल ६ वी शताब्दी माना जाता है।
(६) नारद (बृहन्नारदीय) पुराण : इसे महापुराण भी कहा जाता है। इसमें पुराण के ५ लक्षण घटित नहीं होते हैं। इसमें वैष्णवों के उत्सवों और व्रतों का वर्णन है। इसमें २ खण्ड है : (क) पूर्व खण्ड में १२५ अध्याय और (ख) उत्तर-खण्ड में ८२ अध्याय हैं। इसमें १८,००० श्लोक हैं। इसके विषय मोक्ष, धर्म, नक्षत्र, एवं कल्प का निरूपण, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष, गृहविचार, मन्त्रसिद्धि,, वर्णाश्रम-धर्म, श्राद्ध, प्रायश्चित्त आदि का वर्णन है।
(७) मार्कण्डयपुराण : इसे प्राचीनतम पुराण माना जाता है। इसमें इन्द्र, अग्नि, सूर्य आदि वैदिक देवताओं का वर्णन किया गया है। इसके प्रवक्ता मार्कण्डय ऋषि और श्रोता क्रौष्टुकि शिष्य हैं। इसमें १३८ अध्याय और ७,००० श्लोक हैं। इसमें गृहस्थ-धर्म, श्राद्ध, दिनचर्या, नित्यकर्म, व्रत, उत्सव, अनुसूया की पतिव्रता-कथा, योग, दुर्गा-माहात्म्य आदि विषयों का वर्णन है।
(८) अग्निपुराण : इसके प्रवक्ता अग्नि और श्रोता वसिष्ठ हैं। इसी कारण इसे अग्निपुराण कहा जाता है। इसे भारतीय संस्कृति और विद्याओं का महाकोश माना जाता है। इसमें इस समय ३८३ अध्याय, ११,५०० श्लोक हैं। इसमें विष्णु के अवतारों का वर्णन है। इसके अतिरिक्त शिवलिंग, दुर्गा, गणेश, सूर्य, प्राणप्रतिष्ठा आदि के अतिरिक्त भूगोल, गणित, फलित-ज्योतिष, विवाह, मृत्यु, शकुनविद्या, वास्तुविद्या, दिनचर्या, नीतिशास्त्र, युद्धविद्या, धर्मशास्त्र, आयुर्वेद, छन्द, काव्य, व्याकरण, कोशनिर्माण आदि नाना विषयों का वर्णन है।
(९) भविष्यपुराण : इसमें भविष्य की घटनाओं का वर्णन है। इसमें दो खण्ड हैः–(क) पूर्वार्धः–(अध्याय—४१) तथा (ख) उत्तरार्धः–(अध्याय़—१७१) । इसमें कुल १५,००० श्लोक हैं । इसमें कुल ५ पर्व हैः–(क) ब्राह्मपर्व, (ख) विष्णुपर्व, (ग) शिवपर्व, (घ) सूर्यपर्व तथा (ङ) प्रतिसर्गपर्व। इसमें मुख्यतः ब्राह्मण-धर्म, आचार, वर्णाश्रम-धर्म आदि विषयों का वर्णन है। इसका रचनाकाल ५०० ई. से १२०० ई. माना जाता है।
(१०) ब्रह्मवैवर्तपुराण : यह वैष्णव पुराण है। इसमें श्रीकृष्ण के चरित्र का वर्णन किया गया है। इसमें कुल १८,००० श्लोक है और चार खण्ड हैं : (क) ब्रह्म, (ख) प्रकृति, (ग) गणेश तथा (घ) श्रीकृष्ण-जन्म।
(११) लिङ्गपुराण : इसमें शिव की उपासना का वर्णन है। इसमें शिव के २८ अवतारों की कथाएँ दी गईं हैं। इसमें ११,००० श्लोक और १६३ अध्याय हैं। इसे पूर्व और उत्तर नाम से दो भागों में विभाजित किया गया है। इसका रचनाकाल आठवीं-नवीं शताब्दी माना जाता है। यह पुराण भी पुराण के लक्षणों पर खरा नहीं उतरता है।
(१२) वराहपुराण : इसमें विष्णु के वराह-अवतार का वर्णन है। पाताललोक से पृथिवी का उद्धार करके वराह ने इस पुराण का प्रवचन किया था। इसमें २४,००० श्लोक सम्प्रति केवल ११,००० और २१७ अध्याय हैं।
(१३) स्कन्दपुराण : यह पुराण शिव के पुत्र स्कन्द (कार्तिकेय, सुब्रह्मण्य) के नाम पर है। यह सबसे बडा पुराण है। इसमें कुल ८१,००० श्लोक हैं। इसमें दो खण्ड हैं। इसमें छः संहिताएँ हैं—सनत्कुमार, सूत, शंकर, वैष्णव, ब्राह्म तथा सौर। सूतसंहिता पर माधवाचार्य ने “तात्पर्य-दीपिका” नामक विस्तृत टीका लिखी है। इस संहिता के अन्त में दो गीताएँ भी हैं—-ब्रह्मगीता (अध्याय—१२) और सूतगीताः–(अध्याय ८)। इस पुराण में सात खण्ड हैं—(क) माहेश्वर, (ख) वैष्णव, (ग) ब्रह्म, (घ) काशी, (ङ) अवन्ती, (रेवा), (च) नागर (ताप्ती) तथा (छ) प्रभास-खण्ड। काशीखण्ड में “गंगासहस्रनाम” स्तोत्र भी है। इसका रचनाकाल ७ वीं शताब्दी है। इसमें भी पुराण के ५ लक्षण का निर्देश नहीं मिलता है।
(१४) वामनपुराण : इसमें विष्णु के वामन-अवतार का वर्णन है। इसमें ९५ अध्याय और १०,००० श्लोक हैं। इसमें चार संहिताएँ हैं—(क) माहेश्वरी, (ख) भागवती, (ग) सौरी तथा (घ) गाणेश्वरी । इसका रचनाकाल ९ वीं से १० वीं शताब्दी माना जाता है।
(१५) कूर्मपुराण : इसमें विष्णु के कूर्म-अवतार का वर्णन किया गया है। इसमें चार संहिताएँ हैं—(क) ब्राह्मी, (ख) भागवती, (ग) सौरा तथा (घ) वैष्णवी । सम्प्रति केवल ब्राह्मी-संहिता ही मिलती है। इसमें ६,००० श्लोक हैं। इसके दो भाग हैं, जिसमें ५१ और ४४ अध्याय हैं। इसमें पुराण के पाँचों लक्षण मिलते हैं। इस पुराण में ईश्वरगीता और व्यासगीता भी है। इसका रचनाकाल छठी शताब्दी माना गया है।
(१६) मत्स्यपुराण : इसमें पुराण के पाँचों लक्षण घटित होते हैं। इसमें २९१ अध्याय और १४,००० श्लोक हैं। प्राचीन संस्करणों में १९,००० श्लोक मिलते हैं। इसमें जलप्रलय का वर्णन हैं। इसमें कलियुग के राजाओं की सूची दी गई है। इसका रचनाकाल तीसरी शताब्दी माना जाता है।
(१७) गरुडपुराण : यह वैष्णवपुराण है। इसके प्रवक्ता विष्णु और श्रोता गरुड हैं, गरुड ने कश्यप को सुनाया था। इसमें विष्णुपूजा का वर्णन है। इसके दो खण्ड हैं, जिसमें पूर्वखण्ड में २२९ और उत्तरखण्ड में ३५ अध्याय और १८,००० श्लोक हैं। इसका पूर्वखण्ड विश्वकोशात्मक माना जाता है।
(१८) ब्रह्माण्डपुराण : इसमें १०९ अध्याय तथा १२,००० श्लोक है। इसमें चार पाद हैं—(क) प्रक्रिया, (ख) अनुषङ्ग, (ग) उपोद्घात तथा (घ) उपसंहार । इसकी रचना ४०० ई.- ६०० ई. मानी जाती है।
// 18 पुराणों में सबसे बड़ा है स्कन्द पुराण //
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पुराण हमारे प्राचीन ग्रंथ है तथा इनकी संख्या जहां 18 है तो वहीं स्कंद पुराण इन सभी पुराणों में सबसे बड़ा माना जाता है। इस पुराण में 6 खंड बंटे हुए है- इनमंे प्रमुख है- महेश्वर खंड, वैष्णव खंड, ब्रह्म खंड, काशी खंड, अवंतिका खंड और रेवा खंड।
इस महापुराण का मुख्य विषय भारत के प्रमुख शैव और वैष्णव तीर्थों का वर्णन करना है तथा तीर्थों का महात्म्य वर्णन करते हुए अनेक प्रसिद्ध पौराणिक कथाएं भी प्रसंग वश दी गई है। बीच-बीच में कुछ अध्याय सृष्टि प्रकरण के भी इस स्कंद पुराण में मिलते है। मूल रूप में स्कंद पुराण को शैव पुराण माना गया है वहीं इसमें भगवान विष्णु की महिमा और प्रशंसा भी मूल रूप से मिलती है।
स्कंद पुराण में अवंतिका खंड सर्वाधिक रूप से बड़ा अध्याय है तथा इस खंड में अवंतिका नगरी अर्थात उज्जैन की महिमा को उल्लेखित किया गया है। इनमें उज्जैन के प्राचीन नाम, देव स्थान, शिप्रा, तीर्थ यात्राओं आदि का विशेष रूप से उल्लेख प्राप्त होता है।
// उपपुराण //
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उपपुराण समान्यतः पुराण नाम से प्रचलित अष्टादश महापुराणों के बाद रचित एवं प्रचलित उन ग्रन्थों को कहते हैं जो पंचलक्षणात्मक प्रसिद्ध महापुराणों से विषयों के विन्यास तथा देवीदेवताओं के वर्णन में निर्मित हैं, परन्तु उनसे कई प्रकार से समानता भी रखते हैं। इनकी यथार्थ संख्या तथा नाम के विषय में बहुत मतभेद है।
अष्टादश पुराणों की तरह अष्टादश उपपुराण भी परम्परा से प्रचलित हैं एवं अनेकत्र उनका उल्लेख मिलता है। इन उप पुराणों की संख्या यद्यपि अठारह प्रचलित है, परन्तु इससे बहुत अधिक मात्रा में उपपुराण नामधारी ग्रन्थों का उल्लेख तथा अस्तित्व मिलता है। संग्रह भाव से एकत्र की गयी उपपुराणों की सूचियाँ ही करीब दो दर्जन हैं।
// अष्टादश उपपुराणों की सूची //
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1. आदि पुराण (सनत्कुमार)
2. नरसिंह पुराण (नृसिंह)
3. नन्दिपुराण (कुमार)
4. शिवधर्मपूर्व पुराण (तथा शिवधर्नमोत्तर)
5. आश्चर्य पुराण (दुर्वासा)
6. नारदीय पुराण (नारद)
7. कापिल पुराण (कपिल)
8. मानव पुराण (मनु)
9. औशनस पुराण (उशना)
10. ब्रह्माण्ड पुराण
11. वारुण पुराण (वरुण)
12. कालिका पुराण (सती)
13. माहेश्वर पुराण (वासिष्ठलैङ्ग)
14. साम्ब पुराण (आदित्य)
15. सौर पुराण (सूर्य)
16. पाराशर पुराण (पराशरोक्त)
17. मारीच पुराण (भागवत)
18. भार्गव पुराण (वासिष्ठ)
19. विष्णुधर्म पुराण
20. बृहद्धर्म पुराण
21. गणेश पुराण
22. मुद्गल पुराण
23. एकाम्र पुराण
24. दत्त पुराण
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English Translation :-
The literal meaning of 'Purana' is 'ancient legend' or 'old tale'. The word 'Pura' means the past and the past. The word 'ana' means - to tell or to tell. In Raghuvansh, the word Purana means "Purana Patrapaga Magnatram" and in Vedic texts "Ancient: Vritantah" is given. It is said, "Purnat Purana" which means one who complements the Vedas, that is, the Puranas (which are the commentary of the Vedas).
From the cultural meaning, those specific scriptures of Hindu culture in which the history from creation to the Holocaust have been described in words, are called Puranas. The mention of the word Purana is also found in the primitive literature including the Vedas of the Vedic age, so they can be considered as the oldest (Purana). According to the Atharvaveda "Rich: Samani Chhandansi Puranam Yajusha Saha 11.7.2"), meaning the Puranas appeared along with Rik, Sama, Yajus and Chhand. In the Shatapatha Brahmana (14.3.3.13), the Puranavagmaya is called the Vedas. The Chandogya Upanishad (Itihasa Puranam Pancham Vedananvedam 7.1.2) has also called Puranas as Vedas. It is said in the Brihadaranyakopanishad and Mahabharata that "Itihas Puranabhayam Vedarthamupabrihayet" means that the meaning of the Vedas should be elaborated through the Puranas. It is clear from these that Puranas and History have been placed on equal footing in the Vedic period.
In the ancient koshas like Amarakosha, five characteristics of Puranas have been considered: Sarga (creation), Pratisarga (catastrophe, rebirth), Vansh (deity and sage lists), Manvantara (period of fourteen Manu), and Vanamnucharita (Surya Chandradi dynasty character).
Sargasch Pratisargashch Vansho Manvantrani Ch.
Vanamnucharitam chaiva puranam panchalakshanam.
(1) Sarga – description of the origin of the five elements, sense organs, intellect, etc.
(2) Pratisarga - description of the creation of the entire pastoral world after Brahmadisthavarant,
(3) Vansh - description of Suryachandradi clans,
(4) Manvantara – description of the incarnations of Manu, Manuputra, Deva, Saptarishi, Indra and the Lord,
(5) Hereditary - Description of famous men per lineage.
// Ashtadasha Purana Number //
The number of Puranas is considered to be eighteen since ancient times. A peculiarity in the Puranas is that almost every Purana mentions the names of the eighteen Puranas and their number of verses. According to the instructions of the initial letter of the name in Devi Bhagwat, 18 Puranas have been counted as follows.
Ashtadashpurananamsmranam Kartum Ekam generalmaslomasti‚
Yen atesham purananaam naamani simply smartum sakyaate.
Differences in mythology regarding numbers, dissatisfaction
Sarvadisiddhaam Teshamashtadashatvam.
// Ashtadash Puranani //
Ma-dvayam bha-dvayam chaiva bra-trayam va-chatushtyam.
A-na-pa-lin-ga-ku-skani purani prakakshate.
ie :-
Ma-dvayam-1 Matsyapuranam, 2 Markandeyapuranam
Bha-dvayam-3 Bhagavatapuranam, 4 Bhavishyapuranam
Bra-trayam-5 brahmandpuranam, 6 brahmapuranam, 7 brahmavaivartapuranam
Va-Chatushtayam-8 Vishnupuranam, 9 Vayupuranam, 10 Vamanapuranam, 11 Varahapuranam
A– 12 Agnipuranam
Na- 13 Naradapuranam
P– 14 Padmapuranam
Linga – 15 Lingapuranam
c– 16 garunapuranam
Ku – 17 Kurmapuranam
Sc – 18 Skandapuranam
Iti Etani Ashtadashpuranani Santi.
Mahapurani Ashtadash.
Etani Vedavyasamharshina rachitani iti pratatih.
Brahma padam vaishnav cha shaivam langa cha garudam.
Naradiya Bhagwatmagneyam Skandameva Ch.
Bhavishya Brahmavaivartam Markandeyam Cha Vamanam.
Matsyam kaurman cha varaham and brahmandsangyitam.
Ashtadashpuranani Vyasoktani Vidurbudha:
Ashtadashpuranani Kritva Satyavatisuh.
Bharatakhyanamkhilam chakre tadupbrihanam Matsyapuranam (53-70)
According to Bhagwat Mahapuran, the sequence of Puranas is as follows-
brahma padam vaishnav cha shaivam langam sagarudam.
Naradiya Bhagavatamagneyam Skandasangnitam.
Bhavishya Brahmavaivartam Markandeyam Savamanam.
Varaham Matsyam Kaurman Cha Brahmandakhyamiti Trishat. - B012;8;23,24॥
Ashtadash Puraneshu Vyasasya Vachandvayam |
Philanthropy: Punyaya Papaya Parpidanam ||
Namely: Maharishi Ved Vyas ji has said two specific things in the eighteen Puranas. First - there is no 'virtue' greater than benevolence and secondly there is no greater 'sin' than hurting others.
// Purana Vibhaga: Sattvik-Rajas-Tamaspuranani //
Vaishnav Nardiyam Cha and Bhagavatam Shubham.
Garudancha and padam varaham auspiciousness.|
Sattvikaani Puranani Vigyayani Shubhaani Vai.|
Vishnu-Narad-Bhagavata-Garuda-Padma-Varahapuranani Sattvikani.I
Brahmandam Brahmavaivartam Markandeyam Tathaiva Ch.
Bhavishya Vamanam Brahman Rajasani Nibodhat.|
Brahmanda-Brahmavaivarta-Markandeya-Bhavishya-Vamana-Brahmapuranani Rajasani.I
Matsyam Kauram and Lainga Shaivam Skandam and Ch.
Agneyencha Shadetani Tamasani Nibodhat.|
Matsya-Kurma-Linga-Shaiva-Skandapuranani Tamasani.I
Sattvikeshu Puraneshu Mahatmyamadhikam Hareah
Rajaseshu cha mahatmyam adhikam brahmano viduh.
Tadvad Agnescha Mahatmyam Tamaseshu Shivasya Cha
Narroweshu saraswatyah pitanaam cha nigadyate
sattvikapuraneshu hareah mahatmyam,
rajaspuraneshu brahmanah mahatmyam,
tamaspuraneshu shivasya mahatmyam cha chikitham vrishatee II
saraswatyah pitanaam cha stutiah yatra kritah asti tani
Narkampuranani iti Matsyapurane mention: visible.I
// 18-Names of Ashtadasha Purana and their importance //
(1) Brahmapuran: It is also known as "Adipuran". It is mentioned in all the Puranas considered ancient. The number of verses in this is different from 2 different proofs. 10,000…12.00 and 13,787 are different numbers. It was preached by sage Lomaharshan at Naimisharanya. It describes the creation, the origin of Manu, the description of his lineage, the origin of the gods and beings. Various pilgrimages are described in detail in this Purana. There are 246 chapters and 14000 verses in this Purana. In this book, apart from the greatness of Brahma, the origin of the universe, the descent of the Ganges and the stories of Ramayana and Krishnavatar are also compiled. From this book, some information can be obtained from the origin of the universe to the Indus Valley Civilization.
(2) Padma Purana: It consists of a total of 641 chapters and 48,000 verses. According to the Matsya Purana it had 55,000 verses and according to the Brahma Purana it had 59,000 verses. There are total divisions in it- (a) Srishtikhand: 5 Parva, (b) Bhumikhand, (c) Swargakhand, (d) Patalkhand and (e) Uttarakhand. It was preached by Suta Ugrashrava in Naimisharanya. He was the son of Lomaharshana. In this Purana, many aspects of Vishnu Bhakti have been highlighted along with many subjects. Its development is considered to be the 5th century.
(3) Vishnu Purana: The five characteristics of Purana occur in it. It depicts Vishnu as the supreme deity. It has a total of six sections, 126 chapters, 23,000 verses. The spokesperson of this Purana is Parashara Rishi and the listener Maitreya. The stories of Lord Vishnu, the child Dhruva, and Krishnavatar are compiled in this book. Apart from this, the story of Emperor Prithu is also included, due to which our land was named Prithvi. In this Purana there is the history of Suryavanshi and Chandravanshi kings. The national identity of India is centuries old, the evidence of which is found in the following verse of Vishnu Purana: Uttaram Yatsamudrasya Himadreshchaiva Dakshinam. Varsam tad Bharatam naam Bharati yatra santatih. (In simple words it means that the geographical area which is surrounded by Himalayas in the north and ocean in the south is the country of India and all the people residing in it are the children of the country of India. ) What can be a clear identification of the country of India and the people of India from this? Vishnu Purana is actually a historical text.
(4) Vayu Purana: In this, Shiva has been specially described, hence it is also called "Shiva Purana". There is also a separate Shiva Purana. It has 112 chapters, 11,000 verses. The prevalence of this Purana was very much in the Magadha region. There is gaya-mahatmya in it. It has a total of four parts: (a) Prakayapada – (Chapter-1-6), (b) Upoddhat: (Chapter-7-64), (c) Anushangpadah – (Chapter-65-99), (d) Upasamharapadah – (Chapters-100-112). In this there is a description of creation, geology, astronomy, eras, rishis and pilgrimages and a detailed representation of dynasties, sages, branches of Vedas, music and devotion to Shiva. The Panchalakshanas of the Puranas are also found in this.
(5) Bhagavata Purana: This is the most popular Purana. There is also a week-reading-parayan of this Purana. It is considered to be the essence of all philosophies “Nigamkalpatorgalitam” and the examination place of scholars “Vidyavatam Bhagwat Pariksha”. It tells about the devotion of Shri Krishna. It has a total of 12 skandhas, 335 chapters and 18,000 verses. Some scholars also call it "Devi Bhagavata Purana", because it contains detailed description of the Goddess (Shakti). Its composition is considered to be the 6th century.
(6) Narada (Brihannardiya) Purana: It is also called Mahapurana. In this the 5 symptoms of Puranas do not occur. It describes the festivals and fasts of Vaishnavas. It has 2 sections: (a) the former section has 125 chapters and (b) the north-section has 82 chapters. It has 18,000 verses. Its subjects are description of salvation, religion, constellation, and the representation of the cycle, grammar, nirukta, astrology, home thinking, mantrasiddhi, Varnashrama-dharma, shraddha, atonement etc.
(7) Markandaya Purana: It is considered to be the oldest Purana. In this Vedic deities are described like Indra, Agni, Surya etc. Its spokesperson is Markandaya Rishi and the listener is Krushtuki's disciple. It has 138 chapters and 7,000 verses. In this, the topics of household religion, Shraddha, routine, daily activities, fasting, festivals, rituals of rituals, yoga, Durga-mahatmya etc. are described.
(8) Agnipuran: Its spokesperson is Agni and listener is Vasistha. That is why it is called Agnipuran. It is considered a great dictionary of Indian culture and learning. It currently has 383 chapters, 11,500 verses. It describes the incarnations of Vishnu. Apart from this Shivling, Durga, Ganesh, Surya, Pranpratishtha etc. Geography, mathematics, astrology, marriage, death, astrology, architecture, routine, ethics, warfare, theology, Ayurveda, poetry, poetry, grammar, lexicography etc. is described.
(9) Bhavishya Purana: It describes the future events. It has two sections:- (a) Purvardha- (Chapter - 41) and (B) Uttaradha: - (Chapter - 171). It has a total of 15,000 verses. There are a total of 5 festivals:- (a) Brahmaparva, (b) Vishnuparva, (c) Shivaparva, (d) Suryaparva and (e) Pratisargaparva. It mainly deals with the subjects like Brahman-Dharma, Ethics, Varnashrama-Dharma etc. Its composition period is believed to be from 500 AD to 1200 AD.
(10) Brahmavaivarta Purana: This is Vaishnava Purana. It describes the character of Shri Krishna. It has a total of 18,000 verses and has four sections: (a) Brahma, (b) Prakriti, (c) Ganesha and (d) Sri Krishna-birth.
(11) Ling Purana: It describes the worship of Shiva. In this, the stories of 28 incarnations of Shiva are given. It has 11,000 verses and 163 chapters. It is divided into two parts named East and Uttar. Its composition is considered to be the eighth-ninth century. This Purana also does not live up to the characteristics of the Purana.
(12) Varaha Purana: It describes the Varaha-avatar of Vishnu. Varaha had discoursed this Purana by rescuing the earth from the underworld. There are only 11,000 and 217 chapters in this 24,000 verses.
(13) Skanda Purana: This Purana is named after Skanda (Karthikeya, Subrahmanya), the son of Shiva. This is the biggest Purana. It has a total of 81,000 verses. It has two sections. There are six samhitas in it – Sanatkumara, Suta, Shankara, Vaishnava, Brahman and Saura. Madhvacharya has written a detailed commentary on the Sutsamhita called "Tatparya-Deepika". There are also two Gita at the end of this Samhita--Brahmagita (Chapter-12) and Suta Gita--(Chapter 8). There are seven sections in this Purana - (a) Maheshwar, (b) Vaishnava, (c) Brahma, (d) Kashi, (e) Avanti, (Reva), (f) Nagar (Tapti) and (g) Prabhas-khand. . There is also a hymn "Gangasahasranama" in Kashikhand. Its creation date is the 7th century. In this also the instructions of the 5 signs of the Puranas are not found.
(14) Vamana Purana: It describes the Vamana incarnation of Vishnu. It has 95 chapters and 10,000 verses. There are four samhitas in it - (a) Maheshwari, (b) Bhagwati, (c) Sauri and (d) Ganeshwari. Its composition is believed to be from the 9th to the 10th century.
(15) Kurma Purana: It describes the Kurma-avatar of Vishnu. There are four samhitas in it - (a) Brahmi, (b) Bhagwati, (c) Saura and (d) Vaishnavi. At present only Brahmi-Samhita is found. It has 6,000 verses. It has two parts, consisting of 51 and 44 chapters. In this the five characteristics of the Puranas are found. There is also Ishwar Gita and Vyas Gita in this Purana. Its composition is considered to be the 6th century.
(16) Matsya Purana: It contains the five characteristics of Purana. It has 291 chapters and 14,000 verses. The ancient versions contain 19,000 verses. It describes the flood. In this a list of the kings of Kali Yuga is given. Its composition is believed to be the third century.
(17) Garuda Purana: This is Vaishnava Purana. Its spokesperson is Vishnu and the listener is Garuda, narrated by Garuda to Kashyapa. It describes Vishnupuja. It has two volumes, consisting of 229 chapters in the Purvakhand and 35 chapters and 18,000 verses in the Uttarkhand. Its antecedent is considered to be encyclopedic.
(18) Brahmanda Purana: It contains 109 chapters and 12,000 verses. There are four legs in it - (a) process, (b) anushang, (c) upadhat and (d) epilogue. Its composition is considered to be 400 AD - 600 AD.
// The largest of the 18 Puranas is the Skanda Purana //
Puranas are our ancient texts and where their number is 18, then Skanda Purana is considered to be the largest of all these Puranas. This Purana is divided into 6 sections - the main ones are Maheshwar Khand, Vaishnav Khand, Brahma Khand, Kashi Khand, Avantika Khand and Reva Khand.
The main theme of this Mahapuran is to describe the major Shaiva and Vaishnava pilgrimages of India and many famous mythological stories have also been given in context while describing the greatness of the pilgrimages. In between, some chapters of the creation episode are also found in this Skanda Purana. In its original form, Skanda Purana is considered as Shaivite Purana, while in it the glory and praise of Lord Vishnu is also found in its original form.
The Avantika section is the largest chapter in Skanda Purana and in this section the glory of the city of Avantika i.e. Ujjain has been mentioned. In these, the ancient names of Ujjain, places of worship, shipra, pilgrimages, etc. have a special mention.
// Upapurana //
Upapuranas are generally called those texts composed and prevalent after the Ashtadash Mahapuranas popularly known as Puranas, which are composed in the arrangement of subjects and description of deities from the famous Mahapuranas, but they are also similar in many ways. There is a lot of difference of opinion regarding their exact number and name.
Like the Ashtadash Puranas, the Ashtadash Upapuranas are also prevalent from tradition and they are mentioned in many places. Although the number of these Upa Puranas is eighteen, but the mention and existence of texts named Upa Puranas are found in large quantities. The lists of Upapuranas collected from collections are only about two dozen.
// List of Ashtadash Upapuranas //
1. Adi Purana (Sanathkumar)
2. Narasimha Purana (Narsimha)
3. Nandipurana (Kumar)
4. Shivadharmapoorva Purana (and Shivdharnamottara)
5. Surprise Purana (Durvasa)
6. Naradiya Purana (Narad)
7. Kapila Purana (Kapil)
8. Manav Purana (Manu)
9. Aushanas Purana (Ushna)
10. Brahmanda Purana
11. Varuna Purana (Varuna)
12. Kalika Purana (Sati)
13. Maheshwara Purana (Vasishthalanga)
14. Samba Purana (Aditya)
15. Saur Purana (Surya)
16. Parashara Purana (Parashrokta)
17. Marich Purana (Bhagvat)
18. Bhargava Purana (Vasishtha)
19. Vishnudharma Purana
20. Brihadharma Purana
21. Ganesh Purana
22. Mudgal Purana
23. Ekamra Purana
24. Datta Purana
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