22 जनवरी 2022

धारावाहिक लेख:- देव-पूजा में पत्र-पुष्प, भाग-1 Serial article:- Letter-flowers in Dev-worship, Part-1

                                                                                  


पञ्चदेव-पूजा में गणपति, गौरी, विष्णु, सूर्य और शिव की पूजा की जाती है। प्रस्तुत लेख मे इन देवी-देवताओं के लिये विहित और निषिद्ध पत्र पुष्प आदि के संबंध मे कहा जा रहा है।

1. गणपति के लिये विहित पत्र-पुष्प

गणेशजी को तुलसी छोड़कर सभी पत्र-पुष्प प्रिय हैं। अतः सभी तरह के पत्र-पुष्प इन पर चढ़ाये जाते हैं। 

गणेश जी को दूर्वा अधिक पसंद है, अतः इन्हें सफेद या हरी दूर्वा अवश्य चढानी चाहिए। अर्पित की जाने वाली दूर्वा की फुनगी में तीन या पाँच पत्ती की होनी चाहिये । गणपति पर तुलसी कभी न चढ़ाये। पद्मपुराण, आचाररत्न में लिखा है कि 'न तुलस्या गणाधिपम्' अर्थात् तुलसी से गणेशजी की पूजा कभी न की जाये । कार्तिक माहात्म्य में भी कहा है कि 'गणेशं तुलसीपत्रैर्दुर्गा नैव तु दूर्वया' अर्थात् गणेशजी की तुलसी पत्र से और दुर्गा की दूर्वा से पूजा न करे ।

गणपति को नैवेद्य में लड्डू अधिक प्रिय है । 

2. देवी के लिये विहित पत्र पुष्प

भगवान् शंकर की पूजा में जो पत्र-पुष्प प्रयोग किए जाते हैं, वे सभी भगवती गौरी को भी प्रिय हैं। अपामार्ग उन्हें विशेष प्रिय है। शंकर पर चढ़ाने लिये जिन फूलों का निषेध है तथा जिन फूलों का तुलसीं वर्जयित्वा सर्वाण्यपि नाम नहीं लिया गया है,

वे भी भगवती पर चढ़ाये जाते हैं । जितने लाल फूल हैं वे सभी भगवती को अभीष्ट हैं तथा सुगन्धित समस्त श्वेत फूल भी भगवती को विशेष प्रिय हैं।

बेला, चमेली, केसर, श्वेत और लाल फूल, श्वेत कमल, पलाश, तगर, अशोक, चंपा, मौलसिरी, मदार, कुंद, लोध, कनेर, आक, शीशम और अपराजित (शंखपुष्पी) आदि के फूलों से देवी की भी पूजा की जाती है।

इन फूलों में आक और मदार, इन दो फूलों का निषेध भी मिलता है, ये दोनों विहित भी हैं और प्रतिषिद्ध (निषेध) भी हैं। जब अन्य विहित फूल न मिलें तभी इन दोनों का उपयोग करें । दुर्गा से भिन्न देवियों पर इन दोनों को न चढ़ाये। किंतु इन्हें दुर्गाजी पर चढ़ाया जा सकता है, क्योंकि दुर्गा की पूजा मे इन दोनों का विधान है।

गूमा, शमी, अशोक, कर्णिकार (कनियार या अमलतास), दोपहरिया, अगस्त्य, मदन, सिन्दुवार, शल्लकी, माधवी आदि लताएँ, कुश की मंजरियाँ, बिल्वपत्र, केवड़ा, कदम्ब, भटकटेया फूल भगवती को प्रिय हैं। कमल देवी के लिये विहित-प्रतिषिद्ध पत्र-पुष्प -ये

आक और मदारकी तरह दूर्वा, तिलक, मालती, तुलसी, भंगरैया और तमाल विहित-निषेध हैं अर्थात् ये शास्त्रों से विहित भी हैं और निषिद्ध भी हैं। विहित-निषेध के सम्बन्ध में तत्त्वसागरसंहिता का कथन है कि

जब शास्त्रों से विहित फूल न मिल पायें तो विहित-प्रतिषिद्ध फूलों से शिव-पूजन के लिये विहित पत्र-पुष्प से पूजा कर लेनी चाहिये। 

3. भगवान शंकर के लिए पत्र-पुष्प

भगवान् शंकर पर फूल चढ़ाने का बहुत अधिक महत्त्व है । बतलाया जाता है कि तप:शील सर्वगुण सम्पन्न वेद में पारंगत किसी ब्राह्मण को सौ सुवर्ण दान' करने पर जो फल प्राप्त होता है, वह भगवान् शंकर पर सौ फूल चढ़ा देने से प्राप्त हो जाता है। कौन-कौन पत्र-पुष्प शिवके लिये विहित हैं और कौन-कौन निषिद्ध हैं, इनकी जानकारी अपेक्षित है। अतः उनका उल्लेख यहाँ किया जाता है -

पहली बात यह है कि भगवान् विष्णु के लिये जो-जो पत्र और पुष्प विहित हैं, वे सब भगवान् शंकर पर भी चढ़ाये जाते हैं। केवल केतकी–केवड़े का निषेध है ।

शास्त्रों ने कुछ फूलों के चढ़ाने से मिलने वाले फल का तारतम्य बतलाया है, जैसे दस सुवर्ण-माप के बराबर सुवर्ण-दान का फल एक आक के फूल को चढ़ाने से मिल जाता है। हजार आक के फूलों की अपेक्षा  एक कनेर का फूल, हजार कनेर के फूलों के चढ़ाने की अपेक्षा एक बिल्व पत्र से फल मिल जाता है और हजार बिल्वपत्रों की अपेक्षा एक गूमाफल (द्रोण-पुष्प) होता है। इस तरह हजार गूमा से बढ़कर एक चिचिड़ा, हजार चिचिड़ों (अपामार्गों) से बढ़कर एक कुश का फूल, कुश-पुष्पों से बढ़कर एक शमी का पत्ता, हजार शमी के पत्तों से बढ़कर एक नीलकमल, हजार नीलकमलों से बढ़कर एक धतूरा, हजार धतूरों से बढ़कर एक शमी का फूल होता है। अन्त में बतलाया है कि समस्त फूलों की जातियों में सबसे बढ़कर नीलकमल होता है ।

भगवान् व्यास ने कनेर की कोटि में चमेली, मौलसिरी, पाटला, मदार, श्वेतकमल, शमीके फूल और बड़ी भटकटैयाको रखा है। इसी तरह धतूरेकी कोटि में नागचम्पा और पुंनाग को माना हैं।  

शास्त्रों ने भगवान् शंकर की पूजा में मौलसिरी (बक-बकुल) फूल को ही अधिक महत्त्व दिया है भविष्यपुराण ने भगवान् शंकर पर चढ़ाने योग्य और भी फूलों के गिनाये हैं नाम

करवीर (कनेर), मौलसिरी, धतूरा, पाढर', 

सर्वासां पुष्पजातीनां नीलमुत्पलम् ॥ 

बड़ी कटेरी, कुरैया, कास, मन्दार, अपराजिता, शमी का फूल, कुब्जक, शंखपुष्पी, चिचिड़ा, कमल, चमेली, नागचम्पा', चम्पा, खस, तगर, नागकेसर, किंकिरात (करंटक अर्थात् पीले फूलवाली कटसरैया), गूलर, जयन्ती, बेला, पलाश, बेलपत्ता, कुसुम्भ-पुष्प, कुङ्कुम' अर्थात् गूमा, शीशम, केसर, नीलकमल और लाल कमल । जल एवं स्थल में उत्पन्न जितने सुगन्धित फूल हैं, सभी भगवान् शंकर को प्रिय हैं

शिवार्चा में निषिद्ध पत्र पुष्प-

कदम्ब, सारहीन फूल या कठूमर, केवड़ा, शिरीष, तिन्तिणी, बकुल (मौलसिरी), कोष्ठ, कैथ, गाजर, बहेड़ा, कपास, गंभारी, पत्रकंटक, सेमल, अनार, धव, केतकी, वसंत ऋतु में खिलने वाला कंद - विशेष, कुंद, जूही, मदन्ती, शिरीष सर्ज और दोपहरिया के फूल भगवान् शंकर पर नहीं चढ़ाने चाहिये। वीरमित्रोदय में इनका संकलन किया गया है।

कदम्ब, बकुल और कुन्द पर विशेष विचार इन पुष्पों का कहीं विधान और कहीं निषेध मिलता है। अतः विशेष विचार द्वारा निष्कर्ष प्रस्तुत किया जाता है—

कदम्ब– शास्त्रका एक वचन है– 

'कदम्बकुसुमैः शम्भुमुन्मत्तैः सर्वसिद्धिभाक्।' 

अर्थात् कदम्ब और धतूरे के फूलों से पूजा करने • सारी सिद्धियाँ मिलती हैं। शास्त्र का दूसरा वचन मिलता है -

अत्यन्तप्रतिषिद्धानि कुसुमानि शिवार्चने ।

कदम्बं फल्गुपुष्पं च केतकं च शिरीषकम् ॥ 

अर्थात् कदम्ब तथा फल्गु (गन्धहीन आदि) - के फूल शिव के पूजन में अत्यन्त निषिद्ध हैं। इस तरह एक वचन से कदम्ब का शिव-पूजन में विधान और दूसरे वचन से निषेध मिलता है, जो परस्पर विरुद्ध प्रतीत होता है। 

इसका परिहार वीरमित्रोदयकार ने कालविशेष के द्वारा इस प्रकार किया है। इनके कथन का तात्पर्य यह है कि कदम्ब का जो विधान किया गया है, वह केवल भाद्रपद मास - मास विशेष मे। इस पुष्प का महत्व बतलाते हुए देवी पुराण में लिखा है कि -

'कदम्बैश्चम्पकैरेवं नभस्ये

अर्थात् 'भाद्रपद मास में कदम्ब और चम्पा से शिव की पूजा करने से सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं।'

इस प्रकार भाद्रपद मास में 'विधि' चरितार्थ हो जाती है और भाद्रपद मास से भिन्न मासों में निषेध चरितार्थ हो जाता है। दोनों वचनों में कोई विरोध नहीं रह जाता। 

'सामान्यतः कदम्बकुसुमार्चनं यत्तद् वर्षर्तुविषयम् । अन्यदा तु निषेधः। तेन न पूर्वोत्तरवाक्यविरोध: ।'

बकुल ( मौलसिरी ) – यही बात बकुल सम्बन्धी विधि-निषेध पर लागू होती है। आचारेन्दु में 'बक' का अर्थ 'बकुल' किया गया भी है और ‘बकुल' का अर्थ है—‘मौलसिरी’। शास्त्र का एक वचन है— 'बकपुष्पेण चैकेन शैवमर्चनमुत्तमम् ।' दूसरा वचन है

'बकुलैर्नार्चयेद् देवम् ।'

पहले वचन में मौलसिरी का शिव-पूजन में विधान है और दूसरे वचन में निषेध। इस प्रकार आपाततः पूर्वापर - विरोध प्रतीत होता है। इसका भी परिहार कालविशेष द्वारा हो जाता है, क्योंकि मौलसिरी चढ़ानेका विधान सायंकाल किया गया है—

'सायाहे बकुलं शुभम् ।' 

इस तरह सायंकाल में विधि चरितार्थ हो जाती है और भिन्न समय में निषेध चरितार्थ हो जाता है।

कुन्द – कुन्द फूल के लिये भी उपर्युक्त पद्धति व्यवहरणीय है। माघ महीने में भगवान् शंकर पर कुन्द चढ़ाया जा सकता है, शेष महीनों में नहीं। वीरमित्रोदयने लिखा है

कुन्दपुष्पस्य निषेधेऽपि माघे निषेधाभावः । विष्णु-पूजनमें विहित पत्र-पुष्प

(क्रमशः)

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आगामी लेख:-

1. 22  जन० से "देव-पूजा में पत्र-पुष्प" विषय पर धारावाहिक लेख 

2. 24  जन० से ज्योतिषीय विषय "विभिन्न संवत्सर मे जन्म लेने का फल" पर धारावाहिक लेख

3. 26  जन० से ज्योतिषीय विषय "विभिन्न युग मे जन्म लेने का फल" विषय पर धारावाहिक लेख 

4. 27  जन० से "षटतिला एकादशी" पर लेख

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जय श्री राम

आज का पंचांग,दिल्ली 🌹🌹🌹

शनिवार,22.1.2022

श्री संवत 2078

शक संवत् 1943

सूर्य अयन- उतरायण, गोल-दक्षिण गोल

ऋतुः- शिशिर ऋतुः ।

मास- माघ मास।

पक्ष- कृष्ण पक्ष ।

तिथि- चतुर्थी तिथि 9:17 am

चंद्रराशि- चंद्र सिंह राशि मे 4:48 pm तक तदोपरान्त कन्या राशि।

नक्षत्र- पू० फाल्गुनी नक्षत्र 10:38 am तक

योग- शोभन योग 2:05 pm तक (शुभ है)

करण- बालव करण 9:17 am तक 

सूर्योदय 7:13 am, सूर्यास्त 5:51 pm

अभिजित् नक्षत्र- 12:11 pm से 12:53 pm

राहुकाल - 9:53 am से 11:13 am (शुभ कार्य वर्जित,दिल्ली )

दिशाशूल- पूर्व दिशा ।

जनवरी 2022-शुभ दिन:-  22, 23, 24 (सवेरे 9 तक), 26, 29

जनवरी 2022-अशुभ दिन:- 25, 27, 28, 30, 31

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आगामी व्रत तथा त्यौहार:- 

28 जन०-षटतिला एकादशी। 30 जन०- प्रदोष व्रत/मासिक शिवरात्रि।

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विशेष:- जो व्यक्ति वाराणसी  से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु Paytm या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है

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आपका दिन मंगलमय हो . 💐💐💐

आचार्य मोरध्वज शर्मा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश 

9648023364

9129998000

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English Translation :-

Ganapati, Gauri, Vishnu, Surya and Shiva are worshiped in Panchdev-puja. In the present article, the prescribed and prohibited letters for these deities are being said in relation to flowers etc.

1. Prescribed letter-flower for Ganapati

All flowers are dear to Ganesha except Tulsi. Therefore, all kinds of leaves and flowers are offered on them.

Ganesh ji likes Durva more, so he must offer white or green Durva. The funeral pyre to be offered should have three or five leaves. Never offer Tulsi on Ganpati. It is written in Padma Purana, Acharratna that 'Na Tulsya Ganadhipam' means that Ganesha should never be worshiped with Tulsi. It is also said in Kartik Mahatmya that 'Ganesham Tulsipattairdurga Naiva Tu Durvaya' means one should not worship Ganesha with Tulsi leaves and Durga with Durva.

Laddu is more dear to Ganapati than Naivedya.

2. Prescribed letter flower for the goddess

The leaf-flowers used in the worship of Lord Shankar are also dear to Bhagwati Gauri. Apamarga is especially dear to him. The flowers which are prohibited to be offered to Shankar and the flowers whose names have not been taken as Tulsim Varjayitva Sarvanyapi,

They are also offered to the goddess. All the red flowers are desired by Bhagwati and all the fragrant white flowers are also dear to Bhagwati.

The goddess is also worshiped with flowers like Bela, Jasmine, Saffron, White and Red flowers, White lotus, Palash, Tagar, Ashok, Champa, Moulsiri, Madar, Kunda, Lodha, Kaner, Aak, Sheesham and Aparajit (Shankhpushpi) etc. Is.

Aak and Madar, the prohibition of these two flowers is also found in these flowers, both of which are also prescribed and are also prohibited (prohibition). Use both of these when other prescribed flowers are not available. Do not offer these two on goddesses other than Durga. But they can be offered to Durgaji, because there is a law for both of them in the worship of Durga.

Guma, Shami, Ashoka, Karnikar (Kaniyar or Amaltas), Dhupiya, Agastya, Madan, Sinduvar, Shallaki, Madhavi etc. Creepers, Kush's Manjaris, Bilva leaves, Kevada, Kadamba, Bhatteya flowers are dear to Bhagwati. Prescribed-prohibited letter-flower-ye for lotus goddess

Like Aak and Madara, Durva, Tilak, Malti, Tulsi, Bhangraiya and Tamal are prohibited, that is, they are also prescribed by the scriptures and are also prohibited. In relation to the prohibition, the statement of the Tatvsagar Samhita is that

When the prescribed flowers are not available from the scriptures, then for worshiping Shiva with the prescribed-prohibited flowers, worship should be done with the prescribed leaves and flowers.

3. Flowers for Lord Shankar

There is a lot of importance of offering flowers to Lord Shankar. It is said that the result obtained by donating a hundred gold to a brahmin who is proficient in the Vedas, full of tenacity, is attained by offering hundred flowers to Lord Shankar. Which leaves and flowers are prescribed for Shiva and which are prohibited, its information is expected. Hence they are mentioned here -

The first thing is that whatever leaves and flowers are prescribed for Lord Vishnu, they are also offered to Lord Shankar. Only Ketki-Kevde is prohibited.

The scriptures have told about the result of the offering of some flowers, as the result of donating gold equal to ten gold-measuring is obtained by offering one Aak flower. Instead of offering a thousand flowers, one kaner flower, instead of offering a thousand kaner flowers, one bilva leaves yields fruit and a thousand bilva leaves yields one gumaphal (Drona-flower). In this way a chichida is more than a thousand gumas, a kush flower is more than a thousand chichis (apamargas), a shami leaf exceeds kush-flowers, a nilkamal is more than a thousand shami leaves, a datura is more than a thousand nilkamals, a thousand datura. A Shami flower grows. In the end it is told that Neelkamal is the largest among all the flower species.

Lord Vyasa has placed Jasmine, Moulsiri, Patala, Madar, Shvetkamal, Shamike flowers and big Bhattaiya in the category of Kaner. Similarly, Nagchampa and Punnag are considered in Dhatureki category.

The scriptures have given more importance to the Maulsiri (Bak-Bakul) flower in the worship of Lord Shankar.

Karveer (Kaner), Moulsiri, Dhatura, Padhar',

Sarvasan Pushpajaatinam Neelamutpalam

Big Kateri, Kuraiya, Kaas, Mandar, Aparajita, Shami flower, Kubjak, Shankhpushpi, Chichida, Lotus, Jasmine, Nagchampa', Champa, Khas, Tagar, Nagkesar, Kinkirat (Karantaka means yellow flowered Katsaraiya), Gular, Jayanti, Bela , Palash, Bel leaves, Kusumbh-flowers, Kumkum' i.e. Guma, Sheesham, Saffron, Neelkamal and Red lotus. All the fragrant flowers born in water and land are dear to Lord Shankar.

Forbidden letter flower in Shivarcha-

Kadamba, immaterial flower or Kathumar, Kevada, Shirish, Tintini, Bakul (Maulsiri), Koshtha, Kaith, Carrot, Bahera, Cotton, Gambhari, Patrakantak, Semal, Pomegranate, Dhava, Ketki, Tuber blooming in spring - special, blunt The flowers of Juhi, Madanti, Shirish, Sarj and Dopesh should not be offered to Lord Shiva. These have been compiled in Veeramitrodaya.

Special considerations on Kadamba, Bakul and Kund The laws of these flowers are found somewhere and prohibition elsewhere. Therefore, the conclusion is presented by special consideration-

Kadamba – There is a word of scripture –

'Kadambakusumaih shambhumunmattaih sarvasiddhibhak'.

That is, worshiping with the flowers of Kadamba and Datura • One gets all the siddhis. The second verse of the scripture is found -

Very Pratishdhani Kusumani Shivarchanne.

Kadambam Phalgupushpanch Ketakam ch Shirishakam

That is, the flowers of Kadamba and Phalgu (odorless etc.) - are highly prohibited in the worship of Shiva. In this way, Kadamba is obliged to worship Shiva by one word and prohibition from another word, which seems to be contradictory.

This has been avoided by Veeramitrodayakar through Kaal Vishesh in this way. The meaning of his statement is that the law of Kadamba, which has been done, is only in the month of Bhadrapada - a particular month. Describing the importance of this flower, it is written in Devi Purana that -

'kadambaishchampkairevan nabhasaye

That is, by worshiping Shiva with Kadamba and Champa in the month of Bhadrapada, all desires are fulfilled.

In this way, in the month of Bhadrapada, the 'Vidhi' becomes fulfilled and in the months other than the month of Bhadrapada, the prohibition becomes fulfilled. There is no conflict between the two words.

'Generally kadambakusumarchanam yatad varsarttuviyam. Otherwise you are prohibited. Ten na Northeast Sentences: .'

Bakul (Maulsiri) - The same thing applies to the prohibition of Bakul. In Acharendu, the meaning of 'Bak' is also 'Bakul' and 'Bakul' means - 'Maulsiri'. There is a word of the scripture - 'Bakpushpena Chaiken Shaivamarchanmuttamam.' the second word

'Bakulairnarchayed Devam.'

In the first verse, there is a law of Maulsiri in worshiping Shiva and in the second verse there is a prohibition. Thus, there appears to be a sudden contradiction. This too can be avoided by a special time, because the law of offering Maulsiri has been done in the evening-

'Sayahe Bakulam Shubham.'

In this way, in the evening the law becomes fulfilled and at different times the prohibition becomes realised.

The above method is workable even for blunt flowers. Kunda can be offered to Lord Shankar in the month of Magha, not in the rest of the months. Veermitroday has written

Kundapushpasya nihine-pi Maghe prohibition: Letter-flowers prescribed in Vishnu-worship

(respectively)

Next article:-

1. Serial article on the topic "Patra-Pushpa in Dev-worship" from Jan 22

2. Serial article on the astrological topic "Fruits of taking birth in different Samvatsar" from Jan 24

3. Serial article on the topic of astrological topic "Fruits of taking birth in different eras" from 26th Jan.

4. Article on "Shatila Ekadashi" from Jan 27

Long live Rama

Today's Panchang, Delhi

Saturday,22.1.2022

Shree Samvat 2078

Shaka Samvat 1943

Surya Ayan- Uttarayan, Round-South Round

Rituah - winter season.

Month - Magha month.

Paksha - Krishna Paksha.

Date- Chaturthi date 9:17 am

Moon sign- Moon sign in Leo till 4:48 pm and then Virgo.

Nakshatra - East Falguni Nakshatra till 10:38 am

Yoga- Shobhan Yoga till 2:05 pm (Good luck)

Karan- Balav Karan till 9:17 am

Sunrise 7:13 am, Sunset 5:51 pm

Abhijit Nakshatra - 12:11 pm to 12:53 pm

Rahukaal - 9:53 am to 11:13 am (Good work prohibited, Delhi)

Direction – East direction.

Jan 2022 - Auspicious days:- 22, 23, 24 (till 9 in the morning), 26, 29

January 2022 - Inauspicious days:- 25, 27, 28, 30, 31

Upcoming fasts and festivals:-

Jan 28 - Shatila Ekadashi. Jan 30- Pradosh fast / Monthly Shivratri.

Special:- The person who lives outside Varanasi or outside the country, he can get astrological consultation by phone, by paying the consultation fee through Paytm or Bank transfer for astrological consultation.

Have a good day .

Acharya Mordhwaj Sharma Shri Kashi Vishwanath Temple Varanasi Uttar Pradesh

9648023364

9129998000

                                                                                  


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