16 जनवरी 2022

सनातन हिंदू धर्म के वेद-शास्त्र परिचय Introduction to the Vedas of Sanatan Hinduism

                                                                          


सनातन हिंदू धर्म सृष्टि के आदि से आया हुआ भूमंडल मे विख्यात धर्म है। इसके आधारभूत शास्त्रों का जानना आवश्यक है। यहाँ संक्षेप मे इस पर कुछ निरूपण किया गया है।

हिंदू धर्म का मूल स्रोत वेद -

हिंदू धर्म का मूल स्रोत वेद है। उसके बाद उपवेद , फिर वेद के अंग तथा उपांग। इनमे वेद के दो भाग है – एक मन्त्रभाग दूसरा ब्राह्मणभाग। मंत्रभाग मे संहिताए होती है और ब्राह्मणभाग मे ब्राह्मणग्रन्थ, आरण्यक तथा उपनिषदे।

मंत्र भागात्मक वेद के चार भेद है – 

(१) ऋक 

(२) यजु 

(३) साम 

(४) अथर्व

इन चारो की ११३१ संहिताए होती है। इनमे ऋग्वेद की २१ संहिताए होती है , जिनमे आजकल “बाष्कल” और “शाकल” ये दो संहिताए मिलती है।

“बाष्कल” मे अष्टक, आध्यायिक क्रम है और शाकल मे मण्डल, अनुवाक आदि। शेष संहिताए लुप्त है।

यजुर्वेद की १८१ संहिताए है। यजुर्वेद के दो भेद माने जाते है – (१) शुक्ल और (२) कृष्ण।

इनमे शुक्ल यजुर्वेद की १५ संहिताए है, उनमे केवल दो संहिताए मिलती है  - (१) वाजसनेयी  और

(२) काण्व, शेष लुप्त है।

कृष्ण यजुर्वेद कि ८६ संहिताए होती है। इनमे से चार मिली है – (१) तैत्तिरीय  संहिता (२) मैत्रायणी (३) काठक (४) कठकपिष्ठल, शेष लुप्त है।

सामवेद की १००० संहिताए है, उनमे आजकल २ मिली है – (१) कौथुम और (२) जैमिनी कुछ भाग  राणायनीय संहिता का भी मिलता है।

अथर्ववेद की ९  संहिताए है,  इनमे आजतक दो मिली है – (१) शौनक और (२) पैप्पलाद  यह सब मंत्रभाग है।

मंत्रभाग की जितनी संहिताए होती है , ब्राह्मण भाग भी उतना ही होता है , क्योकि शब्द और अर्थ का सम्बन्ध हुआ करता है। अतः आरण्यक और उपनिषदे भी उतनी ही होती है। श्रौतसूत्र भी उतने ही तथा गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र और प्रातिशाख्य भी उतने ही होते है।

ब्राह्मण भाग मे ऋग्वेद के “ऐतरेय“ और कौशीतक  यह दो ब्राह्मण मिलते है। “ऐतरेयोपनिषद” आदि १० उपनिषदे मिलती है। इनमे गवेशणीय है की किस संहिता का कौन सा ब्राम्हण है। ऐतरेय और कौशीतक दो आख्यक मिलते है।

आश्वलायन और शान्ख्यान दो यह श्रौतसूत्र तथा इसी नाम के दो गृह्यसूत्र है। इसका ऋक्प्रातिशाख्य  भी होता है। यजुर्वेद मे शुक्ल यजुर्वेद के माध्यन्दिन “शतपथ ब्राह्मण”  और “कण्व शतपथ” यह दो ब्राह्मण मिलते है।

कण्वसंहिता का बृहदारण्यक यह आरण्यक मिलता है। कात्यायन नामक श्रौतसूत्र और पारस्कर गृह्यसूत्र मिलता है। शुक्लयजुः प्रातिशाख्य तथ ईश, बृहदारण्यक, जाबल, मुक्तिका आदि उपनिशदे मिलती है।

कृष्ण्यजुर्वेद का तैत्तिरीय ब्राह्मण तथा आरण्यक मिलता है। सत्याषाढ, हिरण्यकेशी, बौधायन आदि सात श्रौतसूत्र तथा आपस्तम्भ, मानव आदि सात गृह्यसूत्र और बोधायन, आपस्तम्ब ये दो धर्मसूत्र मिलते है। मनुस्मृति धर्मशास्त्र मिलता है। और तैत्तिरीय प्रातिशाख्य भी, कठ, तैत्तिरीय, श्वेताशवर आदि ३२ उपनिषदे मिलती है।

सामवेद के ताण्दय, षड्विन्श, मन्त्र-ब्राह्मण आदि ९ ब्राह्मण है। आरण्यक पृथक नही मिलता। केनोपनिषद, छान्दोग्य आदि १६ उपनिशदे है। द्राह्ययण, लट्यायन, मशकसूत्र आदि ३ श्रौतसूत्र तथा गोभिल, खादिर और जैमिनीय यह ३ गृह्यसूत्र है। धर्मसूत्र नही मिलते है। सामप्रातिशाख्य मिलता है।

अथर्ववेद का गोपथ ब्राह्मण मिलता है। यह पैप्पलाद संहिता का है। अन्य लुप्त है । आरण्यक नही मिलता। प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य आदि ३१ उपनिशदे है। वैखानस, एवं वाराह गृह्यसूत्र मिलते है। धर्मसूत्र नही मिलता। अथर्व प्रातिशाख्य मिलता है।

उपवेद और अंग

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जैसे वेद ४ प्रकार का होता है, वैसे उपवेद भी - (१) आयुर्वेद (२)धनुर्वेद (३) गान्धर्ववेद (४)अर्थवेद

आयुर्वेद क सम्बन्ध अथर्ववेद से , गान्धर्ववेद का सामवेद से , धनुर्वेद का यजुर्वेद से और अर्थवेद का  ऋग्वेद से होता है । आयुर्वेदादि की भी बहुत सी संहिताये है , जैसेः सुश्रुत, चरक, भेल, काश्यप आदि।

वेद के अंग छः होते है - (१) शिक्षा (२) कल्प (३) व्याकरण (४)निरुक्त (५) छन्द (६०) ज्योतिष।

इनमे ऋग्वेद की पाणिनिशिक्षा, कृष्ण यजुर्वेद कि व्यासशिक्षा, शुक्लयजुर्वेद कि याज्ञवल्क्य आदि २५ शिक्षाये है। सामवेद की (१) गौतमी (२) लोमशी और(३) नारदी शिक्षाये है। 

अथर्ववेद की माण्डुकी शिक्षा है । गृह्यसूत्र, श्रौतसूत्र आदि कल्प होते है ।उनका निरूपण पहले हो चुका है। पृथक कल्प भी मिलते है। 

(१) नक्षत्र कल्प (२) संहिताकल्प (३) आंगिरसकल्प (४) शान्तिकल्प (५) वैतानकल्प आदि।

कल्प मे वेदमंत्रो का विनियोग मिलता है। व्याकरण तथा प्रातिशाख्य भिन्न भिन्न वेदों के भिन्न भिन्न हुआ करते थे, पाणिनि का व्याकरण यजुर्वेद से संबद्ध प्रतीत होता है। इस प्रकार शाकल्य आदि  से भी बहुत से व्याकरण मिलते थे। इसी प्रकार निरुक्त भी भिन्न भिन्न संहिताओ के भिन्न भिन्न थे।

यास्क का निरुक्त ऋगवेद की वर्तमान  से प्रचलित शाकल संहिता  का नहीं बल्कि अन्य संहिता का है , निरुक्त मे व्याख्यात ऋकमंत्रो का वर्तमान ऋग्वेदसंहिता से पूरा मेल नहीं दिखता, शाकपूणी आदि भी निरुक्त थे जिनका नाम इस निरुक्त मे आता है।

छंद शास्त्र भी भिन्न भिन्न हो सकते है।  पिंगलादिमुनिप्रणीत छंदोग्रंथ कुछ मिलते भी है। उपनिदानसूत्र नामक सामवेद का छंदोग्रंथ उपलब्ध है। ज्योतिष के भी भृगुसंहिता, बृहत्संहिता, सूर्यसिद्धान्त, सिद्धान्तशिरोमणि आदि मिलते है, पर उनमे किसका किस वेदसंहिता से सम्बन्ध है ये पता नहीं लगता यह वेद के अंग है।

वेद के उपांग चार है – (१) पुराण (२) न्याय (३) मीमांसा  (४) धर्मशास्त्र 

पुराण से पुराण , उपपुराण, औपपुरण, तंत्रशास्त्र , रामायण और महाभारत यह इतिहास गृहीत होते है। न्याय शब्द से न्याय, वैशेषिक , सांख्य, योग ये दर्शन गृहीत होते है।

मीमांसा से पूर्वमीमांसा (मीमांसादर्शन ), उनमे भी कर्ममीमांसा तथा दैवतमीमांसा  और उत्तरमीमांसा (वेदांतदर्शन ) यह न्याय आदि छः दर्शन गृहीत होते है। धर्मशास्त्र से धर्मसूत्र तथा स्मृतियाँ गृहीत होती है।

इनमे प्रथम उपांग पुराण १८ होते है। (१) ब्रह्म (२) पद्म (३) विष्णु (४) शिव या वायु (५) लिंग (६) गरुड़ (७) नारद (८) भागवत (९) अग्नि (१०) स्कन्द (११) भविष्य (१२) ब्रह्मवैवर्त (१३) मार्कण्डेय (१४) वामन (१५) वाराह (१६) मत्स्य (१७) कूर्म (१८) ब्रह्माण्ड 

वेद के उपांग पुराणों मे वेद के कठिन  विषय (१) रामधिभाषा (२) परकीया व (३) लौकिकी  भाषा एवं  गाथा अदि से बहुत सरल कर दिए गए है।

पुराण ज्ञान अनादि है , श्री वेदव्यास उनके संपादक एवं परिष्कारक है। रचना उनकी पौरुषेय है। पुराणों मे वेद “गागर मे सागर”  की तरह समाये हुए है, उनमे वेद का सम्पूर्ण तत्व आ गया है।

उपपुराण भी १८ होते है – (१) आदि-पुराण (२) नरसिंह  पुराण (३)स्कन्द पुराण (४) शिवधर्म पुराण (५)दुर्वासा पुराण (६) नारदीय पुराण (७) कपिल पुराण (८) वामन पुराण (९) महेश्वर पुराण (१०) औशनस पुराण (११) ब्रह्माण्ड पुराण (१२) वरुण पुराण (१३) कालिका पुराण (१४) साम्ब पुराण (१५) सौर पुराण (१६) पाराशर पुराण (१७) मारीच पुराण (१८) भास्कर पुराण।

औपपुराण भी १८ होते है – (१) सनत्कुमार पुराण (२) बृहन्नारदीय पुराण (३) आदित्य पुराण (४) मानव पुराण (५) नन्दिकेश्वर पुराण (६) कौर्म पुराण (७) भागवत (८) वसिष्ठ (९) भार्गव (१०) मुद्गल (११) कल्कि पुराण (१२) देवी पुराण (१३) महाभागवत (१४) बृहद्धर्म (१५) परानंद (१६) पशुपति (१७) वाही (१८) हरिवंश।

पुराणों मे तन्त्रग्रंथो का भी समावेश हो जाता है। तंत्रशास्त्र मे भी  वेदों के विषय विभिन्न अधिकारियो के लिए बतलाये गए है। इनमे आचार, उपासना, ज्ञान , मन्त्र, हठ, ले आदि योग, आयुर्वेद के वाजीकरण  आदि के गुप्त योग, भूतविद्या, रसायन आदि सभी विद्याये और ज्योतिष के रहस्य स्पष्ट किये गए है।

तन्त्रो के परोक्षरूप से कहे गए कई तत्व अतिशयित गूढ़ है। परिभाषाये, मेरुमंत्र, महानिर्वाणतंत्र , आगमसार , हठयोग – प्रदीपिका  आदि से जाने बिना वे अश्लील प्रतीत होते है। किन्तु उनकी परिभाषा  जानने के बाद अत्यंत आनंद आता है। दत्तात्रे, कुलार्णव , कालीतंत्र आदि बहुत से तन्त्रग्रंथ होते है।

वेद के उपांगो मे दूसरा भाग इतिहास है। इनमे मुख्यतः रामायण, महाभारत लिए जाते है। इनमे रामायण आदिकवि वाल्मीकि की आदिम मधुर रचना है। इसमे श्री राम अवतार का वर्णन है। इसकी पद्य संख्या २६ हज़ार है। दूसरा है महाभारत ये १ लाख पद्यो का है। इसमे १८ पर्व है। इसमे हिंदू धर्म के सभी विषय इतिहास द्वारा व्याख्यात कर दिए गए है।

वेद का तीसरा उपांग न्याय - मीमांसा होता है। इसमे ६ दर्शन आते है, यह हम पहले बता चुके है  इनमे (१) सांख्य दर्शन श्री कपिल मुनि  से प्रणीत है। इसमे प्रकृति – पुरुष का वर्णन है।

(२) योग दर्शन – इसके कर्ता श्री पतंजलि मुनि है। इसपर व्यास भाष्य है। इसमे योग की ग्रंथिया  सुलझाई गई है।

(३) वैशेषिक दर्शन – इसके प्रणेता श्री कणाद मुनि है ; प्रशस्तपाद का भाष्य है। इसमे संसार को ६ भागो मे विभक्त करके उसका विवरण किया गया है।

(४) न्याय दर्शन – उसमे १६ पदार्थो का तत्वज्ञान विषय है। गौतम मुनि प्रणेता है। श्री वात्स्यायन मुनि का इस पर भाष्य है।

(५) मीमांसा दर्शन के श्री जैमिनी जी कर्ता है। वैदिक कर्मकांड  की मीमांसा इसका विषय है। इस पर श्री शंकराचार्य का भाष्य है।

(६) वेदांत दर्शन – इसके कर्ता श्री वेदव्यास है, इसमे जीव – ब्रह्म की अद्वैतता पर विचार किया गया है। इस पर श्री शंकराचार्य , स्वामी रामानुजाचार्य, श्री माध्वाचार्य, श्री वल्लभाचार्य  आदि के भाष्य मिलते है।

अंतिम वेद का उपांग है धर्मशास्त्र इसमे धर्मसूत्र तथा स्मृतिया अंतर्भूत होती है। इनमे (१) गौतम (२) वसिष्ठ (३) आपस्तम्ब (४) बोधायन आदि धर्मसूत्र मिलते है। स्मृतियाँ भी बहुत होती है, जिनकी वेद्संहिताये है, उतने ही श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र तथा स्मृतियाँ होती है। धर्म के सूत्रण (संक्षेप) का नाम धर्मसूत्र है, वेदार्थ के स्मरण का नाम स्मृति होता है।

इनमे (१) मनुस्मृति (२) वृद्धमनु (३) आंगिर: स्मृति (४) अत्रि  (५) आपस्तम्ब (६) औशनस  (७) कात्यायन (८) गोभिल (प्रजापति) (९) यम (१०) बृहद्थम  (११) लघुविष्णु (१२) वृहद्विष्णु (१३) नारद (१४) शातातप (१५) हारीत (१६) वृद्धहारीत (१७) लघुआश्वलायन (१८) शंख  (१९) लिखित (२०) शंख – लिखित (२१) याज्ञवल्क्य (२२) व्यास (२३) संवर्त (२४) अत्रिसंहिता (२५) दक्षस्मृति (२६) देवल (२७) बृहस्पति (२८) पाराशर (२९) बृहत्पराशर (३०) कश्यपस्मृति (३१) गौतम स्मृति (३२) वृद्धगौतम (३३) वसिष्ठस्मृति (३४) पुलत्स्य (३५) योगिरुज्ञवल्क्य (३६) व्याघ्रपाद (३७) बोधायन (३८) कपिल (३९) विश्वामित्र (४०) शाण्डिल्य (४१) कण्व  (४२) दाल्भ्य  (४३) भारद्वाज (४४) मार्कण्डेय (४५) लौगाक्शी आदि ६० स्मृतियाँ है।

स्मृतो मे आचार, संस्कार , वर्णधर्म, वर्णसंकर धर्म , स्त्रीत्वधर्म, पुरुषधर्म, राजधर्म, प्रयश्चिन्तादि बहुत विषय आये है। न्यायदर्शन के भाष्यकार  श्री वात्स्यायन मुनि ने लिखा है – “की यदि  धर्मशास्त्र  न हो, तो लोकव्यवहार का उच्छेद हो जाय” यह ठीक है। विधिनिशेधा  सब स्मृतियों से ज्ञात होते है।

वेद, स्मृति एवं पुराण के विरोध मे वेद अधिक माननीय है।

पुराण प्रधानता से लोकवृत्त का प्रतिपादन करते है, लोकव्यवहार की व्यवस्थापना उनका प्रधान विषय नहीं लोकव्यवहार की व्यवस्थापना धर्मशास्त्र का मुख्य विषय है।

इस प्रकार यह सारा साहित्य मिलकर हिंदू धर्म का आधार बनता है।

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English Translate :-

Sanatan Hinduism is a famous religion in the world that came from the beginning of creation. It is necessary to know its basic scriptures. Here is a brief representation on it.

The original source of Hinduism - Vedas

The original source of Hinduism is the Vedas. After that the Upaveda, then the parts and appendages of the Veda. There are two parts of the Vedas - one is the mantra part and the other is the brahmin part. In the Mantra part there are Samhitas and in the Brahmana part there are Brahmanas, Aranyakas and Upanishads.

There are four distinctions of Mantra Bhagatika Veda –

(1) Rik

(2) Yaju

(3) Sama

(4) Atharva

These four have 1131 samhitas. In these there are 21 samhitas of Rigveda, in which these two samhitas are found nowadays "Bashkal" and "Shakal".

In "Bashkal" there is Ashtak, Adhyayak order and in Shakal there is Mandal, Anuvak etc. The rest of the codes are missing.

Yajurveda has 181 samhitas. Yajurveda is considered to be of two types – (1) Shukla and (2) Krishna.

Among them there are 15 samhitas of Shukla Yajurveda, only two samhitas are found in them - (1) Vajasnei and

(2) Kanva, the rest is missing.

Krishna Yajurveda has 86 samhitas. Four of these have been found – (1) Taittiriya Samhita (2) Maitrayani (3) Kathak (4) Kathakapisthal, the rest is missing.

Samaveda has 1000 samhitas, out of which 2 have been found nowadays – (1) Kauthum and (2) Jaimini. Some part of Ranayani Samhita is also found.

There are 9 Samhitas of Atharvaveda, out of which two have been found till date – (1) Saunaka and (2) Paiplad, all these are mantras.

The number of samhitas of the mantra part, the brahmin part is also the same, because there is a relation between the word and the meaning. Therefore, the Aranyakas and Upanishads are the same. The Srautsutras are also the same and the Grihyasutras, Dharmasutras and Pratisakhya are also the same.

In the Brahmin part, these two Brahmins are found "Aitareya" of Rigveda and Kaushitak. There are 10 Upanishads like “Aitareyopanishad”. It is worth mentioning that which code belongs to which Brahmin. Aitareya and Kaushitak meet two characters.

Ashvalayana and Shankhyan are the two Srautasutras and two Grihyasutras of the same name. It also has a ritual. In the Yajurveda, these two brahmins are found in the middle of Shukla Yajurveda, “Satapath Brahmin” and “Kanva Shatapath”.

The greatness of Kanvasamhita is found in this Aranyaka. The Srautasutra called Katyayan and the Paraskar Grihyasutra are found. Shuklayju: Pratishakhya and Ish, Brihadaranyaka, Jabal, Muktika etc. Upanishads are found.

The Taittiriya Brahmana and the Aranyaka are found in the Krishnajurveda. Satyashadha, Hiranyakeshi, Baudhayana etc. Seven Srautasutras and Apastambha, Manav etc. Seven Grihyasutras and Bodhayana, Apastamba these two Dharmasutras are found. Manusmriti Dharmashastra is available. And also the Taittiriya Pratishakhya, Katha, Taittiriya, Shvetashvara etc. 32 Upanishads are found.

There are 9 brahmins of Samveda like Tandaya, Shadvinsha, Mantra-Brahmin etc. Aranyak is not found separately. There are 16 Upanishads like Kenopanishad, Chandogya etc. Drahayana, Latyana, Mashkasutra etc. are 3 Srautasutras and Gobhil, Khadir and Jaiminiya are the 3 Grihyasutras. Dharmasutras are not found. Sampratishakha is obtained.

Gopath Brahmin of Atharvaveda is found. It is of Paiplad Samhita. The other is missing. Aranyak is not available. There are 31 Upanishads like Prasana, Mundaka, Mandukya etc. Vaikhanas, and Varaha Grihyasutras are found. Dharmasutra is not found. Atharva gets Pratishakhya.

Upveda and Anga

As there are four types of Vedas, in the same way Upveda is also - (1) Ayurveda (2) Dhanurveda (3) Gandharvaveda (4) Arthaveda

Ayurveda is related to Atharvaveda, Gandharvaveda with Samaveda, Dhanurveda with Yajurveda and Arthaveda with Rigveda. There are many codes of Ayurveda, such as: Sushruta, Charaka, Bhel, Kashyap etc.

There are six parts of Veda - (1) Education (2) Kalpa (3) Grammar (4) Nirukta (5) Chhand (60) Astrology.

In these, there are 25 teachings of Rigveda's Paninishiksha, Krishna Yajurveda's Vyasa Shiksha, Shuklayjurveda's Yagyavalkya etc. (1) Gautami, (2) Lomshi and (3) Nardi are the teachings of Samaveda.

Atharvaveda has Manduki education. There are kalpas like Grihyasutra, Srautasutra etc. Their representation has already been done. Separate kalpas are also found.

(1) Nakshatra kalpa (2) Samhita kalpa (3) Angira kalpa (4) Shanti kalpa (5) Vaitan kalpa etc.

The application of Veda mantras is found in the kalpa. Grammar and Pratisakhya used to be different from different Vedas, Panini's grammar seems to be related to Yajurveda. In this way, many grammars were also received from Shakalya etc. Similarly, the Nirukta were also different from different Samhitas.

The Nirukta of Yasak is not of the present-day Shakal Samhita of Rigveda but of other Samhitas, the Rik Mantras explained in the Nirukta do not seem to match the present Rigveda Samhita, Shakapuni etc. were also Nirukta whose name appears in this Nirukta.

Verse scripture can also be different. Some of the Pingaladimuniprenet verses are also found. The verse text of Samaveda named Upanidansutra is available. Bhrigusamhita, Brihatsamhita, Suryasiddhanta, Siddhantshiromani etc. are also found in astrology, but who among them is related to which Vedasamhita, it is not known that it is a part of Vedas.

The Vedas have four appendages – (1) Purana (2) Nyaya (3) Mimamsa (4) Theology

This history is derived from the Puranas, the Puranas, the Upa Puranas, the Auppuran, the Tantrashastra, the Ramayana and the Mahabharata. Nyaya, Vaisheshik, Sankhya, Yoga are derived from the word Nyaya.

Prior to Mimamsa, there are six philosophies in them like Karamimamsa and Daivatamimamsa and Uttaramimamsa (Vedanta Darshana), this justice etc. Dharmasutras and Smritis are derived from Dharmashastra.

The first of these Upang Puranas are 18. (1) Brahma (2) Padma (3) Vishnu (4) Shiva or Vayu (5) Linga (6) Garuda (7) Narada (8) Bhagavata (9) Agni (10) Skanda (11) Bhavishya (12) Brahmavaivarta (13) Markandeya (14) Vamana (15) Varaha (16) Matsya (17) Kurma (18) Brahmanda

Appendages of Vedas In the Puranas, the difficult subjects of Vedas have been made very simple by (1) Ramdhibhasha, (2) Parakiya and (3) the worldly language and saga etc.

Puranic knowledge is eternal, Shri Ved Vyas is his editor and sophist. His creation is masculine. In the Puranas, the Vedas are absorbed like "the ocean in the ocean", in them all the elements of the Vedas have come.

There are also 18 Upapuranas – (1) Adi-Purana (2) Narasimha Purana (3) Skanda Purana (4) Shivadharma Purana (5) Durvasa Purana (6) Nardiya Purana (7) Kapil Purana (8) Vamana Purana (9) Maheshwara Purana (10) Aushanas Purana (11) Brahmanda Purana (12) Varun Purana (13) Kalika Purana (14) Samb Purana (15) Saur Purana (16) Parashara Purana (17) Maricha Purana (18) Bhaskar Purana.

There are also 18 Upapuranas – (1) Sanatkumar Purana (2) Brihannardiya Purana (3) Aditya Purana (4) Manav Purana (5) Nandikeshwar Purana (6) Kaurma Purana (7) Bhagavata (8) Vasistha (9) Bhargava (10) ) Mudgal (11) Kalki Purana (12) Devi Purana (13) Mahabhagavat (14) Brihadharma (15) Parananda (16) Pashupati (17) Vahi (18) Harivamsa.

Tantra texts are also included in the Puranas. In Tantra Shastra also, the subjects of Vedas have been told to various officials. In these, the secrets of ethics, worship, knowledge, mantra, hatha, lay etc. Yoga, Vajikaran of Ayurveda, etc., all the sciences and secrets of astrology have been clarified.

Many of the elements said indirectly of tantras are very esoteric. Without knowing the definitions, Merumantra, Mahanirvanatantra, Agamsara, Hathayoga-Pradipika, etc., they seem obscene. But knowing their definition brings great joy. There are many tantra texts like Dattatre, Kularnav, Kalitantra etc.

The second part of the Vedas is the history. In these, mainly Ramayana, Mahabharata are taken. Among these, Ramayana is the primitive melodious composition of the poet Valmiki. It describes the incarnation of Shri Ram. Its verse number is 26,000. The second one is Mahabharata, it is of 1 lakh verses. It has 18 festivals. In this, all the topics of Hinduism have been explained by history.

The third appendage of Veda is Nyaya-Mimamsa. There are 6 darshans in this, we have already told that in these (1) Sankhya Darshan is inspired by Shri Kapil Muni. In this the description of Prakriti – Purusha is given.

(2) Yoga Darshan – Its doer is Shri Patanjali Muni. There is a commentary on this. In this the glands of yoga have been solved.

(3) Vaisheshik Darshan - Its founder is Shri Kanad Muni; The commentary of Prashapada. In this, the world has been described by dividing it into 6 parts.

(4) Nyaya Darshan – The philosophy of 16 substances is the subject in it. Gautam Muni is the founder. Shri Vatsyayana Muni has commentary on this.

(5) Shri Jaimini ji is the doer of Mimamsa philosophy. Its subject is the mimamsa of Vedic rituals. There is a commentary on this by Shri Shankaracharya.

(6) Vedanta Darshana – Its doer is Sri Vedavyasa, in this the non-duality of Jiva-Brahm has been considered. Comments of Shri Shankaracharya, Swami Ramanujacharya, Shri Madhvacharya, Shri Vallabhacharya etc. are found on this.

The last Veda's appendage is Dharmashastra, in which the Dharmasutras and Smritis are included. In these (1) Gautam (2) Vasistha (3) Apastamba (4) Bodhayana etc. Dharmasutras are found. Smritis are also many, those whose Vedas are written, there are as many Srautsutras, Grihyasutras, Dharmasutras and Smritis. The name of the thread of Dharma is Dharmasutra, the name of remembrance of Vedartha is Smriti.

These include (1) Manusmriti (2) Vriddhamanu (3) Angir: Smriti (4) Atri (5) Apastamba (6) Aushanas (7) Katyayana (8) Gobhila (Prajapati) (9) Yama (10) Brihadtham (11) Laghu Vishnu (12) Vrihadvishnu (13) Narada (14) Shatatap (15) Harita (16) Vriddhaharita (17) Laghuashvalayana (18) Shankha (19) Likhit (20) Shankha – Likhita (21) Yajnavalkya (22) Vyasa (23) Samvarta (24) Atrisamhita (25) Dakshasmriti (26) Deval (27) Brihaspati (28) Parashara (29) Brihatparashara (30) Kashyapasmriti (31) Gautam Smriti (32) Vriddhagautam (33) Vasishthasmriti (34) Pulatsya (35) Yogirugyavalkya 36) Vyagrapada (37) Bodhayana (38) Kapila (39) Vishwamitra (40) Shandilya (41) Kanva (42) Dalbhya (43) Bharadwaja (44) Markandeya (45) Laugaxi etc. 60 Smritis are there.

Ethics, rites, varna dharma, varna sankar dharma, femininity dharma, purusha dharma, rajdharma, prayashchinta etc. have come in many subjects in the memory. Vatsyayana Muni, the commentator of Nyayadarshan, has written – “If there is no Dharmashastra, then public behavior should be abolished”. The prohibitions of law are known from all memories.

Vedas are more honorable as opposed to Vedas, Smritis and Puranas.

The Puranas predominately represent the folklore, the management of public behavior is not their main subject, but the management of public behavior is the main subject of theology.

In this way all this literature together forms the basis of Hinduism.

                                                                    


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