18 जनवरी 2022

Serial Article:- Magh Month धारावाहिक लेख:- माघ मास

                                                                                 


माघ मास प्रारम्भ- 18.01.22 से 16.2.22 तक

हिन्दु धर्मशास्त्रों के अनुसार माघ का महीना परम पवित्र तथा पुण्य अर्जित करने के लिए बहुत ही दिव्य महीना माना गया है । शास्त्रों मे कहा गया है कि इस महीने का हर दिन एक पर्व तथा व्रत के रूप मे जाना जाता है । उन मनुष्यों का जीवन धन्य हो जाता है, जो माघ मास के तीर्थाटन, स्नान, नियम व व्रत का पालन करते है।

भारतीय संवत्सर का ग्यारहवां चान्द्र मास और दसवां सौरमास "माघ" कहलाता है । इस महीने पूर्णिमा वाले दिन हमेशा मघा नक्षत्र होने से इसका नाम "माघ" महीना पडा। (वर्ष 2022 मे चान्द्र मास अर्थात पूर्णिमांत के अनुसार 18 जनवरी से माघ मास की शुरूआत होगी तथा माघ मास का समापन 16 फरवरी, 2022 को होगा)  धार्मिक दृष्टि से माघ मास का बहुत अधिक महत्व है। इस महीने तीर्थो मे, नदियों मे, सरोवरो तथा शीतल जल मे स्नान करने वाले मनुष्य पाप मुक्त होकर स्वर्ग मे वास करते है । 

माघ मास का महत्व:-

हिन्दू धर्मशास्त्रों मे प्रत्येक माह का अपना एक अलग महत्व बताया है, लेकिन माघ मास के विषय मे एक पौराणिक कथा भी जुड़ी है। 

पौराणिक कथा के अनुसार माघ मास में गौतमऋषि ने स्वर्ग के राजा इन्द्रदेव को श्राप दिया। इंद्र द्वारा  क्षमा याचना करने के बाद उन्हें गौतम ऋषि ने माघ मास में गंगा स्नान कर प्रायश्चित करने को कहा। तब इन्द्रदेव माघ मास में गंगा स्नान किया था, जिसके फलस्वरूप इन्द्रदेव श्राप से मुक्ति मिली। इसलिए भी माघ महीनें में माघी पूर्णिमा व माघी अमावस्या के दिन का स्नान पवित्र माना जाता है।

माघमास की ऐसी भी विशेषता है कि इसमे जहां कही भी जल हो, वह जल गंगाजल के समान पवित्र होता है, फिर भी प्रयाग, काशी, कुरूक्षेत्र, हरिद्वार, उज्जैन, सरयू, द्धारका, नर्मदा, कावेरी आदि नदियो तथा गंगासागर आदि तीर्थो मे स्नान का बडा महत्व है ( परंतु ध्यान रहे कि मन की निर्मलता तथा श्रद्धा भी आवश्यक है।)

माघ मास मे प्रयाग (इलाहाबाद- संगम) मे स्नान, दान, भगवान विष्णु के पूजन और हरि कीर्तन का वर्णन गोस्वामी तुलसीदास जी ने "श्री रामचरित मानस" मे सुंदर वर्णन किया है कि "माघ महीने मे जब सूर्य मकर राशि मे आते है तो देवता, दानव, राक्षस, किन्नर सभी, तीर्थों मे श्रेष्ठ त्रिवेणी तीर्थ आकर माधव की गुणगाण करते हुए संगम मे स्नान करके अक्षय पुण्य को प्राप्त करते है।

पद्म पुराण के उत्तरखंड मे माघ मास के माहात्म्य का वर्णन करते हुए क्हा गया है कि व्रत, दान, और तपस्या से भी भगवान श्रीहरि को इतनी प्रसन्नता नही होती, जितनी कि माघ महीने के स्नान मात्र से होती है । इसलिए स्वर्ग पाने के अभिलाषी मनुष्य, सभी पापो से मुक्ति पाने के लिए, और भगवान वासुदेव की प्रीति को पाने के लिए प्रत्येक मनुष्य को "माघ मास" मे स्नान, दान, पूजा-पाठ, जप-तप जरूर करना चाहिये।

माघ मास की पूर्णिमा को जो भी व्यक्ति अठारह पुराणो का दान या उनमे मे से एक पुराण विशेषतः  "ब्रह्रावैवर्तपुराण" का दान करता है, वह जीवन-मरण के सांसारिक चक्र से मुक्त होकर ब्रह्रालोक मे निवास करता है।

"मत्स्य पुराण" तथा "महाभारत" के अनुशासन पर्व मे क्हा गया है कि माघ मास की अमावस्या मे प्रयाग ( इलाहाबाद ) मे तीन करोड़ दस लाख तीर्थों का समागम होता है, जो नियमपूर्वक उत्तम आचरण व व्रत का पालन करता हुआ प्रयाग मे स्नान करता है, वह सब पापो से मुक्त होकर स्वर्ग मे जाता है । जो माघ मास मे धर्मस्थान मे अन्न तथा गर्म कपड़े- बिस्तर का दान करता है, वह समस्त जन्तुओ से भरे हुए नरक के दर्शन नही करता और स्वर्ग मे वास करता है ।

महाभारत (अनुछेद 106/21) के अनुसार जो मनुष्य माघ मास मे नियमपूर्वक एक समय ही भोजन करता है वह धनवान कुल मे उत्पन्न होकर परिवार का कुलदीपक होता है।

महाभारत (अनुछेद 109/4) के अनुसार माघमास की द्धादशी तिथि को उपवास करके भगवान माधव की पूजा करने से उपासक को राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है, और वह अपने कुल का उद्धार कर देता है ।


माघ मास मे शुभ कर्म

1. ब्रह्म मुहूर्त में बिस्तर त्याग कर पुण्य स्नान।

2. माधव पूजन, जप तथा हवन

3. कल्पवास

4. दान


1. ब्रह्म मुहूर्त में पुण्य स्नान।

माघ मास में ब्रह्ममुहूर्त में स्नान करना सब कुछ देता है। आयु वृद्धि करता है, अकाल मृत्यु से रक्षा करता है, आरोग्य, रूप, बल, सौभाग्य व सदाचरण देता है। इस स्नान से संतानवृद्धि, सत्संग, सत्य और उदारभाव आदि का प्राकट्य होता है। 

माघ मास में पुण्यस्नान, दान, तप, होम और उपवास भयंकर पापों का नाश कर देते हैं और जीव को उत्तम गति प्रदान करते हैं।

2. माधव पूजन, जप तथा हवन

माघ मास में माधव (भगवान कृष्ण) सत्संग, पूजा-पाठ तथा हवन करने से नरक का डर सदा के लिए खत्म हो जाता है। मरने के बाद वह नरक मे गमन नही होता। उत्तम स्वर्ग में वास होता है । मनुष्य का चरित्र तथा वृत्तियाँ निर्मल होती हैं, विचार ऊँचे होते हैं। समस्त पापों से मुक्ति होती है। ईश्वरप्राप्ति को अग्रसर होते है।

3. कल्पवास

माघ के पवित्र माह के दौरान जो कोई भी पवित्र  व्यक्ति गंगा नदी अथवा अन्य पवित्र नदियों के तट पर जाकर कल्पवास करते हैं उन्हें भी शुभ फल की प्राप्ति होती है।

शास्त्रों मे स्पष्ट उल्लेख है कि माघ के महीने में कल्पवास करना सबसे बड़ा पुण्य है। कल्पवास का अर्थ है कुछ समय के लिए या संपूर्ण माघ माह तक के लिए नदी के तट पर ही कुटिया बनाकर रहना और साधु-संतो के सानिध्य मे व्रत, तप, उपवास, सत्संग आदि करना।

कल्पवास पौष माह के 11वें दिन से माघ माह के 12वें दिन तक रहता है। कल्पवास में सत्संग और आध्यात्मिकता का विशेष महत्व होता है।

4. शास्त्रानुसार माघ मास मे प्रतिदिन अथवा विशिष्ट तिथियो तथा अवसरो मे किये जाने वाले दान:-

1. माघ मास मे विशेषता ब्राह्मणों तथा साधु सन्यासियों को भिन्न भिन्न प्रकार के पकवान बनाकर भोजन करवाना चाहिये। ( विशेषतः- वृहस्पतिवार, रविवार )

2.माघ मास मे ईंधन-गैस तथा लकड़ी का अधिक से अधिक दान करे। ( विशेषतः- शनिवार )

3.माघ मास मे रूई से बना बिस्तर दान करे ।(विशेषतः-शुक्रवार)

4. जनेऊ तथा लाल वस्त्र का दान मंगलवार को करे 

5. जायफल, लौंग, पान तथा चितकबरे कंबल का दान बुधवार या रविवार को करे ।

6. जूते-चप्पल का दान शनिवार को करे ।

7. उबटन का दान शुक्रवार को करे ।

8. ब्राह्मण को सफेद कपड़ा/ गर्म शाल तथा दूध का दान सोमवार को करे ।

9. देसी धी, पूजन सामग्री, धार्मिक पुस्तकें तथा वेद- पुराण दान करने का इस माह मे सबसे अधिक महत्व तथा सर्वाधिक पुण्य प्राप्ति का कर्म है । ( इस दान को अधिकाधिक दान अवश्य करे ) 

10.  माघ मास में तिल का उबटन, तिल मिश्रित जल से स्नान, तर्पण, तिल का हवन, तिल का दान और भोजन में तिल का प्रयोग कष्ट निवारक, पाप निवारक माने गये हैं। 

माघ माह की कथा:-

प्राचीन काल में नर्मदा तट पर शुभव्रत नामक ब्राह्मण निवास करते थे। वे सभी वेद शास्त्रों के अच्छे ज्ञाता थे। किंतु उनका स्वभाव धन संग्रह करने का अधिक था. उन्होंने धन तो बहुत एकत्रित किया। वृद्घावस्था के दौरान उन्हें अनेक रोगों ने घेर लिया। तब उन्हें ज्ञान हुआ कि मैंने पूरा जीवन धन कमाने में लगा दिया अब परलोक सुधारना चाहिए। वह परलोक सुधारने के लिए चिंतातुर हो गए।

अचानक उन्हें एक श्लोक याद आया जिसमें माघ मास के स्नान की विशेषता बताई गई थी। उन्होंने माघ स्नान का संकल्प लिया और-

 माघे निमग्ना: सलिले सुशीते विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्ति..

इसी श्लोक के आधार पर नर्मदा में स्नान करने लगे. नौ दिनों तक प्रात: नर्मदा में जल स्नान किया और दसवें दिन स्नान के बाद उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया।

शुभव्रत ने जीवन भर कोई अच्छा कार्य नहीं किया था, लेकिन माघ मास में स्नान करके पश्चाताप करने से उनका मन निर्मल हो गया। माघ मास के स्नान करने से उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हुई। इस तरह जीवन के अंतिम क्षणों में उनका कल्याण हो गया।

(समाप्त)


माघ माहात्म्य – पहला अध्याय

एक समय श्री सूतजी ने अपने गुरु श्री व्यासजी से कहा कि गुरुदेव कृपा करके आप मुझे से माघ मास का माहात्म्य कहिए क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ. व्यासजी कहने लगे कि रघुवंश के राजा दिलीप एक समय यज्ञ के स्नान के पश्चात पैरों में जूते और सुंदर वस्त्र पहनकर शिकार की सामग्री से युक्त, कवच और शोभायमान आभूषण पहने हुए अपने सिपाहियों से घिरे हुए जंगल में शिकार खेलने के लिए अपनी नगरी से बाहर निकले. उनके सिपाही जंगल में शिकार के लिए मृग, व्याघ्र, सिंह आदि जंतुओं की तलाश में इधर-उधर फिरने लगे.

उस वन(Jungle) में वनस्थली अत्यंत शोभा को प्राप्त हो रही थी, कहीं-2 मृगों के झुंड फिरते थे. कहीं गीदड़ अपना भयंकर शब्द कर रहे थे. कहीं गैंडों का समूह हाथियों के समान फिर रहा था. कहीं वृक्षों के कोटरों में बैठे हुए उल्लू अपना भयानक शब्द कर रहे थे. कहीं सिंहों के पदचिन्हों के साथ घायल मृगों के रक्त से भूमि लाल हो रही थी. कहीं दूध से भरी थनों वाली सुंदर भैंसे फिर रही थी, कहीं पर सुगंधित पुष्प, हरी-भरी लताएँ वन की शोभा को बढ़ा रही थी. कहीं बड़े-बड़े पेड़ खड़े थे तो कहीं पर उन पेड़ों पर बड़े-बड़े अजगर और उनकी केंचुलियाँ भी पड़ी हुई थी.

उसी समय राजा के सिपाहियों के बाजे की आवाज सुनकर एक मृग(Deer) वन में से निकलकर भागने लगा और बड़ी-बड़ी चौकड़ियाँ भरता हुआ आगे बढ़ा. राजा ने उसके पीछे अपना घोड़ा दौड़ाया परन्तु मृग पूरी शक्ति से भागने लगा. मृग कांटेदार वृक्षों के एक जंगल में घुसा और राजा ने भी उसके पीछे वन में प्रवेश किया परंतु दूर जाकर मृग, राजा की दृष्टि से ओझल होकर निकल गया. राजा निर्जन वन में अपने सैनिकों सहित प्यास के मारे अति दुखी हो गया. दोपहर के समय अधिक मार्ग चलने से सैनिक थक गये और घोड़े रुक गए. कुछ देर बाद राजा ने एक बड़ा भारी सुंदर सरोवर(Pond) देखा जिसके किनारों पर घने वृक्ष थे. इसका जल सज्जनों के हृदय के समान स्वच्छ और पवित्र था.

सरोवर का जल लहरों से बड़ा सुंदर लगता था. जल में अनेक प्रकार के जल-जंतु मछलियाँ आदि स्वच्छंदता से इधर-उधर फिर रही थी. दुष्टों के समान निर्दयी चित्त वाले मगरमच्छ भी थे. किसी-किसी जगह लोभी के समान सिमाल भी पड़ी हुई थी. जैसे विपत्ति में पड़े हुए लोगों को दुखों को हरने वाले दानी पुरुष के समान यह सरोवर अपने जल से सबको सुखी करता था, जैसे मेघ चातक के दुख को हरता है, इस सरोवर को देखकर राजा की थकावट दूर हो गई. रात्रि को राजा ने वहीं विश्राम किया और सैनिक पहरा देने लगे और चारों तरफ फैल गए.

रात के अंतिम समय में शूकरों के एक झुंड ने आकर सरोवर में पानी पीया और कमल के झुंड के पास आया तब शिकारियों ने सावधान होकर शूकरों पर आक्रमण किया और उनको मारकर पृथ्वी पर गिरा दिया. उस समय सब शिकारी कोलाहल करते हुए बड़ी प्रसन्नता के साथ राजा के पास गए और राजा प्रभात हुआ देखकर उनके साथ ही अपनी नगरी की तरफ चल पड़ा.

जिसका शरीर तपस्या और नियमों के कारण बिलकुल सूख गया था, जो मृगछाला और वल्कल पहने हुए था और नख रोम तथा केश धारण किए हुए था, राजा ने ऎसे घोर तपस्वी को देखकर बड़े आश्चर्य से उसको प्रणाम किया और हाथ जोड़कर खड़ा हो गया. तपस्वी ने राजा से कहा कि हे राजन! इस पुण्य शुभ माघ में इस सरोवर को छोड़कर तुम यहाँ से क्यों जाने की इच्छा करते हो तब राजा कहने लगा कि महात्मन्! मैं तो माघ मास में स्नान के फल को कुछ भी नहीं जानता. कृपा करके आप विस्तारपूर्वक मुझको बताइए.

शेष आगे दूसरे अध्याय में

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आगामी लेख:-

1. 19  जन० से "देवताओं को भोग (नैवेद्य)" विषय पर धारावाहिक लेख 

2. 22  जन० से "देव-पूजा में पत्र-पुष्प" विषय पर धारावाहिक लेख 

3. 24  जन० से ज्योतिषीय विषय "विभिन्न संवत्सर मे जन्म लेने का फल" पर धारावाहिक लेख 

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जय श्री राम

आज का पंचांग,दिल्ली 🌹🌹🌹

मंगलवार,18.1.2022

श्री संवत 2078

शक संवत् 1943

सूर्य अयन- उतरायण, गोल-दक्षिण गोल

ऋतुः- शिशिर ऋतुः ।

मास- माघ मास।

पक्ष- कृष्ण पक्ष ।

तिथि- प्रतिपदा तिथि अगले दिन 6:56 am

चंद्रराशि- चंद्र कर्क राशि मे।

नक्षत्र- पुष्य नक्षत्र अगले दिन 6:42 am तक

योग- विष्कुंभ योग 4:06 pm तक (अशुभ है)

करण- बालव करण 6:11 pm तक 

सूर्योदय 7:14 am, सूर्यास्त 5:48 pm

अभिजित् नक्षत्र- 12:10 pm से 12:52 pm

राहुकाल - 3:10 pm से 4:29 pm (शुभ कार्य वर्जित,दिल्ली )

दिशाशूल- उत्तर दिशा ।

जनवरी 2022-शुभ दिन:-  19, 20, 21 (सवेरे 9 उपरांत), 22, 23, 24 (सवेरे 9 तक), 26, 29

जनवरी 2022-अशुभ दिन:- 18, 25, 27, 28, 30, 31

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आगामी व्रत तथा त्यौहार:- 

 21 जन०-संकष्टी चतुर्थी। 28 जन०-षटतिला एकादशी। 30 जन०- प्रदोष व्रत/मासिक शिवरात्रि।

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विशेष:- जो व्यक्ति वाराणसी से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु Paytm या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है

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आपका दिन मंगलमय हो . 💐💐💐

आचार्य मोरध्वज शर्मा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश

9648023364

9129998000

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English Translate :-

Magh month starts - from 18.01.22 to 16.2.22

According to Hindu scriptures, the month of Magha is considered to be very holy and very divine month to earn merit. It is said in the scriptures that every day of this month is known as a festival and fast. The life of those human beings becomes blessed, who observe the pilgrimage, bath, rules and fast of Magh month.

The eleventh lunar month and the tenth solar month of the Indian Samvatsar are called "Magha". This month it is named "Magha" month because of the Magha Nakshatra being always on the full moon day. (According to the lunar month i.e. Purnimant in the year 2022, Magh month will start from January 18 and Magh month will end on February 16, 2022) Religiously, Magh month has a lot of importance. In this month, people who take bath in pilgrimages, rivers, lakes and in cold water stay free from sin and live in heaven.

Significance of Magh Month:-

In Hindu scriptures, each month has its own significance, but there is also a mythological story associated with the month of Magh.

According to the legend, in the month of Magh, Gautam Rishi cursed Indradev, the king of heaven. After apologizing to Indra, Gautam Rishi asked him to do atonement by bathing in the Ganges in the month of Magh. Then Indradev took bath in the Ganges in the month of Magh, as a result of which Indradev got freedom from the curse. That is why bathing on Maghi Purnima and Maghi Amavasya in the month of Magha is considered holy.

There is also such a specialty of Maghmas that wherever there is water in it, that water is as pure as Gangajal, yet bathing in pilgrimages like Prayag, Kashi, Kurukshetra, Haridwar, Ujjain, Saryu, Dwarka, Narmada, Kaveri etc. rivers and Gangasagar etc. (But keep in mind that purity of mind and faith are also necessary.)

Goswami Tulsidas ji has beautifully described in "Shri Ramcharit Manas" that "In the month of Magh, when the Sun enters Capricorn, it is mentioned in Prayag (Allahabad-Sangam)). Gods, demons, demons, eunuchs, all come to the Triveni shrine, the best among the pilgrimages, while praising Madhav and bathing in the confluence and attain renewable virtue.

Describing the greatness of Magha month in the Uttarkhand of Padma Purana, it has been said that even by fasting, charity, and penance, Lord Shri Hari does not get as much pleasure as the mere bath of Magha month. Therefore, every human being desirous of getting heaven, to get rid of all sins, and to get the love of Lord Vasudeva, every human should do bath, charity, worship-recitation, chanting-taap during the "Magha month".

On the full moon of Magha month, whoever donates eighteen Puranas or one of them, especially the "Brahvaivarta Purana", lives in Brahmaloka, freed from the worldly cycle of life and death.

In the "Matsya Purana" and "Mahabharata" discipline festival, it is said that in the new moon of Magh month, there is a gathering of three crore ten lakh pilgrimages in Prayag (Allahabad), who take bath in Prayag following the rules of good conduct and fasting. He is freed from all sins and goes to heaven. One who donates food and warm clothes and bedding to the Dharmasthan in the month of Magh, does not see the hell filled with all the animals and resides in heaven.

According to the Mahabharata (Article 106/21), a person who regularly eats only one meal in the month of Magha, being born in a wealthy family, becomes the Kuldeepak of the family.

According to the Mahabharata (Article 109/4), worshiping Lord Madhav by fasting on the twelfth day of Magha month, the worshiper receives the fruit of the Rajasuya Yagya, and he saves his family.

Good karma in magh month

1. Leaving the bed in Brahma Muhurta, take a holy bath.

2. Madhav Puja, Japa and Havan

3. Kalpavas

4. Charity

1. Virtuous bath in Brahma Muhurta.

Taking a bath in the Brahmamuhurta in the month of Magha gives everything. Increases life, protects from premature death, gives health, form, strength, good fortune and good conduct. This bath gives birth to children, satsang, truth and generosity etc.

Punyasnana, charity, penance, homa and fasting in the month of Magha destroy the terrible sins and give good speed to the soul.

2. Madhav Puja, Japa and Havan

In the month of Magha, the fear of hell ends forever by performing Madhav (Lord Krishna) satsang, worship-recitation and Havan. He does not go to hell after death. The best resides in heaven. Man's character and instincts are pure, thoughts are high. There is freedom from all sins. Proceeding to attain God.

3. Kalpavas

During the holy month of Magha, any holy person who performs Kalpavas on the banks of river Ganges or other holy rivers also gets auspicious results.

It is clearly mentioned in the scriptures that doing Kalpavas in the month of Magha is the biggest virtue. Kalpavas means living in a hut on the banks of the river for some time or for the entire month of Magh and doing fasting, austerity, fasting, satsang etc. in the company of saints and saints.

Kalpavas lasts from 11th day of Paush month to 12th day of Magha month. Satsang and spirituality have special importance in Kalpavas.

4. According to the scriptures, donations to be made daily in the month of Magh or on specific dates and occasions:-

1. Specialty brahmins and sages and sages should prepare different types of dishes and get food done in the month of Magh. (Especially Thursday, Sunday)

2. Donate maximum fuel-gas and wood in the month of Magh. (especially Saturday)

3. Donate a bed made of cotton in the month of Magh. (Especially - Friday)

4. Donate Janeu and red clothes on Tuesday

5. Donate nutmeg, clove, betel and pied blanket on Wednesday or Sunday.

6. Donate shoes and slippers on Saturday.

7. Donate Ubtan on Friday.

8. Donate white cloth/warm shawl and milk to Brahmin on Monday.

9. Donating Desi Dhee, Worship Material, Religious Books and Vedas and Puranas is the most important and most virtuous act in this month. (Please donate as much as possible to this charity)

10. Rubbing of sesame seeds, bathing with water mixed with sesame seeds, tarpan, offering of sesame seeds, donating sesame seeds and using sesame seeds in food are considered to be a pain reliever, a sin preventive.

Story of Magh Month:-

In ancient times, Brahmins named Shubhavrata used to reside on the banks of Narmada. He was well versed in all the Vedas. But his nature was more to accumulate wealth. He collected a lot of money. During his old age, many diseases surrounded him. Then he came to know that I had spent my whole life in earning money, now the hereafter should be improved. He became anxious to improve the hereafter.

Suddenly he remembered a verse in which the specialties of bathing in the month of Magha were described. He took a vow to bathe in Magh and-

 Maghe nimgna: Salile sushite vimuktpapastridivan pryanti..

On the basis of this verse, he started bathing in Narmada. He took a water bath in the Narmada in the morning for nine days and left his body on the tenth day after bathing.

Shubhvrata had not done any good work throughout his life, but after repenting after bathing in the month of Magha, his mind became pure. By bathing in the month of Magha, he attained heaven. In this way he got well-being in the last moments of his life.

(End)


Magha Mahatmya – Chapter One

At one time Shri Sutji told his Guru Shri Vyasji that Gurudev, please tell me the greatness of Magh month because I am your disciple. Vyasji began to say that King Dilip of Raghuvansh, once after bathing in the Yagya, wearing shoes and beautiful clothes on his feet, wearing armor and adorning ornaments with hunting material, came out of his city to play hunting in the forest surrounded by his soldiers. . His soldiers started roaming here and there in search of animals like antelope, tiger, lion etc. for hunting in the forest.

In that forest, the forest place was getting great splendor, somewhere two herds of antelope used to roam. Somewhere the jackals were uttering their terrible words. Somewhere a group of rhinos was moving like elephants. Somewhere, sitting in the hollows of trees, owls were uttering their terrible words. Somewhere along with the footprints of lions, the land was turning red with the blood of injured deer. Somewhere beautiful buffaloes with milk-filled udders were roaming, somewhere fragrant flowers, green vines were enhancing the beauty of the forest. Somewhere big trees were standing, and somewhere there were big pythons and their worms lying on those trees.

At the same time, hearing the sound of the king's soldiers, a deer started running out of the forest and moved forward filling big quartets. The king ran his horse behind him but the deer started running away with full force. The deer entered a forest of thorny trees and the king also entered the forest after him, but after going away, the deer disappeared from the sight of the king. The king along with his soldiers became very sad due to thirst in the deserted forest. In the afternoon, the soldiers got tired of walking more routes and the horses stopped. After some time the king saw a big huge beautiful pond, on its banks were dense trees. Its water was as clean and pure as the heart of gentlemen.

The water of the lake looked more beautiful than the waves. Many types of water animals, fish etc. were freely moving here and there in the water. Like the wicked, there were crocodiles with a ruthless mind. At some places, like a covetous hand was lying. Just like a benevolent person who removes the miseries of the people in trouble, this lake used to make everyone happy with its water, like a cloud removes the sorrows of Chatak, seeing this lake the tiredness of the king was removed. At night the king rested there and the soldiers started guarding and spread all around.

At the end of the night, a herd of pigs came and drank water in the lake and came near the lotus herd, then the hunters cautiously attacked the pigs and killed them and dropped them on the earth. At that time, all the hunters went to the king with great clamor with great joy and seeing the dawn, the king started walking towards his city with him.

Whose body had dried up due to austerity and rules, who was wearing a deer and vulkal and was wearing nails and hair, the king, seeing such a severe ascetic, bowed down to him with great surprise and stood up with folded hands. The ascetic said to the king that O king! Why do you wish to leave this lake in this auspicious auspicious Magh, then the king started saying, 'Mahatman! I do not know anything about the fruits of bathing in the month of Magh. Please tell me in detail.

the rest in the next chapter


Next article:-

1. Serial article on the topic "Bhog to the Gods (Naivedya)" from Jan 19

2. Serial article on the topic "Patra-Pushpa in Dev-worship" from Jan 22

3. Serial article on the astrological topic "Fruits of taking birth in different Samvatsar" from Jan 24

Long live Rama

Today's Panchang, Delhi

Tuesday,18.1.2022

Shree Samvat 2078

Shaka Samvat 1943

Surya Ayan- Uttarayan, Round-South Round

Rituah - winter season.

Month - Magha month.

Paksha - Krishna Paksha.

Tithi- Pratipada date the next day at 6:56 am

Moon Sign - Moon in Cancer.

Nakshatra - Pushya Nakshatra till 6:42 am the next day

Yoga- Vishkumbh Yoga till 4:06 pm (inauspicious)

Karan- Balav Karan till 6:11 pm

Sunrise 7:14 am, Sunset 5:48 pm

Abhijit Nakshatra - 12:10 pm to 12:52 pm

Rahukaal - 3:10 pm to 4:29 pm (Good work prohibited, Delhi)

Direction – North direction.

Jan 2022 - Auspicious days:- 19, 20, 21 (after 9 am), 22, 23, 24 (till 9 am), 26, 29

January 2022 - Inauspicious days:- 18, 25, 27, 28, 30, 31

Upcoming fasts and festivals:-

 21 Jan - Sankashti Chaturthi. Jan 28 - Shatila Ekadashi. Jan 30- Pradosh fast / Monthly Shivratri.

Special:- The person who lives outside Varanasi or outside the country, he can get astrological consultation by phone, by paying the consultation fee through Paytm or Bank transfer for astrological consultation.

Have a good day .

Acharya Mordhwaj Sharma Shri Kashi Vishwanath Temple Varanasi Uttar Pradesh

9648023364

9129998000

                                                           

        

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