28 अप्रैल 2022

गुरु प्रदोष व्रत परिचय एवं प्रदोष व्रत विस्तृत विधि ।। Guru Pradosh Vrat Introduction and Pradosh Vrat Detailed Method


गुरु प्रदोष व्रत परिचय एवं प्रदोष व्रत विस्तृत विधि 
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प्रत्येक चन्द्र मास की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखने का विधान है. यह व्रत कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों को किया जाता है. सूर्यास्त के बाद के 2 घण्टे 24 मिनट का समय प्रदोष काल के नाम से जाना जाता है. प्रदेशों के अनुसार यह बदलता रहता है. सामान्यत: सूर्यास्त से लेकर रात्रि आरम्भ तक के मध्य की अवधि को प्रदोष काल में लिया जा सकता है।

ऐसा माना जाता है कि प्रदोष काल में भगवान भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर प्रसन्न मुद्रा में नृ्त्य करते है. जिन जनों को भगवान श्री भोलेनाथ पर अटूट श्रद्धा विश्वास हो, उन जनों को त्रयोदशी तिथि में पडने वाले प्रदोष व्रत का नियम पूर्वक पालन कर उपवास करना चाहिए।

यह व्रत उपवासक को धर्म, मोक्ष से जोडने वाला और अर्थ, काम के बंधनों से मुक्त करने वाला होता है. इस व्रत में भगवान शिव की पूजन किया जाता है. भगवान शिव कि जो आराधना करने वाले व्यक्तियों की गरीबी, मृ्त्यु, दु:ख और ऋणों से मुक्ति मिलती है।

प्रदोष व्रत की महत्ता
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शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत को रखने से दौ गायों को दान देने के समान पुन्य फल प्राप्त होता है. प्रदोष व्रत को लेकर एक पौराणिक तथ्य सामने आता है कि " एक दिन जब चारों और अधर्म की स्थिति होगी, अन्याय और अनाचार का एकाधिकार होगा, मनुष्य में स्वार्थ भाव अधिक होगी. तथा व्यक्ति सत्कर्म करने के स्थान पर नीच कार्यो को अधिक करेगा।

उस समय में जो व्यक्ति त्रयोदशी का व्रत रख, शिव आराधना करेगा, उस पर शिव कृ्पा होगी. इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति जन्म- जन्मान्तर के फेरों से निकल कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढता है. उसे उतम लोक की प्राप्ति होती है।

व्रत से मिलने वाले फल
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अलग- अलग वारों के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ प्राप्त होते है।

जैसे👉  सोमवार के दिन त्रयोदशी पडने पर किया जाने वाला वर्त आरोग्य प्रदान करता है। सोमवार के दिन जब त्रयोदशी आने पर जब प्रदोष व्रत किया जाने पर, उपवास से संबन्धित मनोइच्छा की पूर्ति होती है। जिस मास में मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत हो, उस दिन के व्रत को करने से रोगों से मुक्ति व स्वास्थय लाभ प्राप्त होता है एवं बुधवार के दिन प्रदोष व्रत हो तो, उपवासक की सभी कामना की पूर्ति होने की संभावना बनती है।

गुरु प्रदोष व्रत शत्रुओं के विनाश के लिये किया जाता है। शुक्रवार के दिन होने वाल प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शान्ति के लिये किया जाता है। अंत में जिन जनों को संतान प्राप्ति की कामना हो, उन्हें शनिवार के दिन पडने वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए। अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए जब प्रदोष व्रत किये जाते है, तो व्रत से मिलने वाले फलों में वृ्द्धि होती है।

व्रत विधि
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सुबह स्नान के बाद भगवान शिव, पार्वती और नंदी को पंचामृत और जल से स्नान कराएं। फिर गंगाजल से स्नान कराकर बेल पत्र, गंध, अक्षत (चावल), फूल, धूप, दीप, नैवेद्य (भोग), फल, पान, सुपारी, लौंग और इलायची चढ़ाएं। फिर शाम के समय भी स्नान करके इसी प्रकार से भगवान शिव की पूजा करें। फिर सभी चीजों को एक बार शिव को चढ़ाएं।और इसके बाद भगवान शिव की सोलह सामग्री से पूजन करें। बाद में भगवान शिव को घी और शक्कर मिले जौ के सत्तू का भोग लगाएं। इसके बाद आठ दीपक आठ दिशाओं में जलाएं। जितनी बार आप जिस भी दिशा में दीपक रखेंगे, दीपक रखते समय प्रणाम जरूर करें। अंत में शिव की आरती करें और साथ ही शिव स्त्रोत, मंत्र जाप करें। रात में जागरण करें।

प्रदोष व्रत समापन पर उद्धापन 
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इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का समापन करना चाहिए. इसे उद्धापन के नाम से भी जाना जाता है।

उद्धापन करने की विधि 
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इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का समापन करना चाहिए. इसे उद्धापन के नाम से भी जाना जाता है।

इस व्रत का उद्धापन करने के लिये त्रयोदशी तिथि का चयन किया जाता है. उद्धापन से एक दिन पूर्व श्री गणेश का पूजन किया जाता है. पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है. प्रात: जल्द उठकर मंडप बनाकर, मंडप को वस्त्रों या पद्म पुष्पों से सजाकर तैयार किया जाता है. "ऊँ उमा सहित शिवाय नम:" मंत्र का एक माला अर्थात 108 बार जाप करते हुए, हवन किया जाता है. हवन में आहूति के लिये खीर का प्रयोग किया जाता है।

हवन समाप्त होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती की जाती है। और शान्ति पाठ किया जाता है. अंत: में दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है. तथा अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशिर्वाद प्राप्त किया जाता है।

गुरु प्रदोष व्रत
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सूत जी फिर बोले- शत्रु विनाशक-भक्ति प्रिय, व्रत है यह अति श्रेष्ठ । वार मास तिथि सर्व से, व्रत है यह अति ज्येष्ठ ॥

व्रत कथा
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एक बार इन्द्र और वृत्रासुर की सेना में घनघोर युद्ध हुआ । देवताओं ने दैत्य-सेना को पराजित कर नष्ट-भ्रष्ट कर डाला । यह देख वृत्रासुर अत्यन्त क्रोधित हो स्वयं युद्ध को उद्यत हुआ । आसुरी माया से उसने विकराल रूप धारण कर लिया । सभी देवता भयभीत हो गुरुदेव बृहस्पति की शरण में पहूंचे । बृहसप्ति महाराज बोले- पहले मैं तुम्हे वृत्रासुर का वास्तविक परिचय दे दूं । वृत्रासुर बड़ा तपस्वी और कर्मनिष्ठ है । उसने गन्धमादन पर्वत पर घोर तपस्या कर शिव जी को प्रसन्न किया । पूर्व समय में वह चित्ररथ नाम का राजा था । एक बार वह अपने विमान से कैलाश पर्वत चला गया । वहां शिव जी के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान्देख वह उपहासपूर्वक बोला- ‘हे प्रभो! मोह-माया में फंसे होने के कारण हम स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं । किन्तु देवलोक में ऐसा दृष्टिगोचर नहीं हुआ कि स्त्री आलिंगनबद्ध हो सभा में बैठे।’ चित्ररथ के यह वचन सुन सर्वव्यापी शिवशंकर हंसकर बोले- ‘हे राजन! मेरा व्यावहारिक दृष्टिकोण पृथक है । मैंने मृत्युदाता-कालकूट महाविष का पान किया है, फिर भी तुम साधारणजन की भांति मेरा उपहास उड़ाते हो!’ माता पार्वती क्रोधित हो चित्ररथ से संबोधित हुई- ‘अरे दुष्ट! तूने सर्वव्यापी महेश्‍वर के साथ ही मेरा भी उपहास उड़ाया है । अतएव मैं तुझे वह शिक्षा दूंगी कि फिर तू ऐसे संतों के उपहास का दुस्साहस नहीं करेगा- अब तू दैत्य स्वरूप धारण कर विमान से नीचे गिर, मैं तुझे शाप देती हूं ।’ जगदम्बा भवानी के अभिशाप से चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त ओ त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न हो वृत्रासुर बना । गुरुदेव बृहस्पति आगे बोले- ‘वृत्तासुर बाल्यकाल से ही शिवभक्त रहा है । अतः हे इन्द्र तुम बृहस्पति प्रदोष व्रत कर शंकर भगवान को प्रसन्न करो।’ देवराज ने गुरुदेव की आज्ञा का पालन कर बृहस्पति प्रदोष व्रत किया । गुरु प्रदोष व्रत के प्रताप से इन्द्र ने शीघ्र ही वृत्रासुर पर विजय प्राप्त कर ली और देवलोक में शान्ति छा गई । बोलो उमापति शंकर भगवान की जय ।

प्रदोषस्तोत्रम् 
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।। श्री गणेशाय नमः।। 

जय देव जगन्नाथ जय शङ्कर शाश्वत । जय सर्वसुराध्यक्ष जय सर्वसुरार्चित ॥ १॥ 

जय सर्वगुणातीत जय सर्ववरप्रद । 
जय नित्य निराधार जय विश्वम्भराव्यय ॥ २॥ 

जय विश्वैकवन्द्येश जय नागेन्द्रभूषण । 
जय गौरीपते शम्भो जय चन्द्रार्धशेखर ॥ ३॥ 

जय कोट्यर्कसङ्काश जयानन्तगुणाश्रय । जय भद्र विरूपाक्ष जयाचिन्त्य निरञ्जन ॥ ४॥ 

जय नाथ कृपासिन्धो जय भक्तार्तिभञ्जन । जय दुस्तरसंसारसागरोत्तारण प्रभो ॥ ५॥ 

प्रसीद मे महादेव संसारार्तस्य खिद्यतः । सर्वपापक्षयं कृत्वा रक्ष मां परमेश्वर ॥ ६॥ 

महादारिद्र्यमग्नस्य महापापहतस्य च । महाशोकनिविष्टस्य महारोगातुरस्य च ॥ ७॥ 

ऋणभारपरीतस्य दह्यमानस्य कर्मभिः । ग्रहैः प्रपीड्यमानस्य प्रसीद मम शङ्कर ॥ ८॥ 

दरिद्रः प्रार्थयेद्देवं प्रदोषे गिरिजापतिम् । अर्थाढ्यो वाऽथ राजा वा प्रार्थयेद्देवमीश्वरम् ॥ ९॥ 

दीर्घमायुः सदारोग्यं कोशवृद्धिर्बलोन्नतिः । 
ममास्तु नित्यमानन्दः प्रसादात्तव शङ्कर ॥ १०॥ 

शत्रवः संक्षयं यान्तु प्रसीदन्तु मम प्रजाः । नश्यन्तु दस्यवो राष्ट्रे जनाः सन्तु निरापदः ॥ ११॥ 

दुर्भिक्षमरिसन्तापाः शमं यान्तु महीतले । सर्वसस्यसमृद्धिश्च भूयात्सुखमया दिशः ॥ १२॥ 

एवमाराधयेद्देवं पूजान्ते गिरिजापतिम् । ब्राह्मणान्भोजयेत् पश्चाद्दक्षिणाभिश्च पूजयेत् ॥ १३॥ 

सर्वपापक्षयकरी सर्वरोगनिवारणी । शिवपूजा मयाऽऽख्याता सर्वाभीष्टफलप्रदा ॥ १४॥ 

॥ इति प्रदोषस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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कथा एवं स्तोत्र पाठ के बाद महादेव जी की आरती करें

ताम्बूल, दक्षिणा, जल -आरती 
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 तांबुल का मतलब पान है। यह महत्वपूर्ण पूजन सामग्री है। फल के बाद तांबुल समर्पित किया जाता है। ताम्बूल के साथ में पुंगी फल (सुपारी), लौंग और इलायची भी डाली जाती है । दक्षिणा अर्थात् द्रव्य समर्पित किया जाता है। भगवान भाव के भूखे हैं। अत: उन्हें द्रव्य से कोई लेना-देना नहीं है। द्रव्य के रूप में रुपए, स्वर्ण, चांदी कुछ भी अर्पित किया जा सकता है।

आरती पूजा के अंत में धूप, दीप, कपूर से की जाती है। इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। आरती में एक, तीन, पांच, सात यानि विषम बत्तियों वाला दीपक प्रयोग किया जाता है।

भगवान शिव जी की आरती
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ॐ जय शिव ओंकारा,भोले हर शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ हर हर हर महादेव...॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
तीनों रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भोले शशिधारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता।
जगकर्ता जगभर्ता जगपालन करता ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठि दर्शन पावत रुचि रुचि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

लक्ष्मी व सावित्री, पार्वती संगा ।
पार्वती अर्धांगनी, शिवलहरी गंगा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।

पर्वत सौहे पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।

जटा में गंगा बहत है, गल मुंडल माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।

त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

ॐ जय शिव ओंकारा भोले हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा ।। ॐ हर हर हर महादेव।।

कर्पूर आरती
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कर्पूरगौरं करुणावतारं, संसारसारम् भुजगेन्द्रहारम्।
सदावसन्तं हृदयारविन्दे, भवं भवानीसहितं नमामि॥

मंगलम भगवान शंभू
मंगलम रिषीबध्वजा ।
मंगलम पार्वती नाथो
मंगलाय तनो हर ।।

मंत्र पुष्पांजलि 
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मंत्र पुष्पांजली मंत्रों द्वारा हाथों में फूल लेकर भगवान को पुष्प समर्पित किए जाते हैं तथा प्रार्थना की जाती है। भाव यह है कि इन पुष्पों की सुगंध की तरह हमारा यश सब दूर फैले तथा हम प्रसन्नता पूर्वक जीवन बीताएं।

ॐ यज्ञेन यज्ञमयजंत देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।

ते हं नाकं महिमान: सचंत यत्र पूर्वे साध्या: संति देवा:

ॐ राजाधिराजाय प्रसह्ये साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे स मे कामान्कामकामाय मह्यम् कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु।
कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नम:

ॐ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं
पारमेष्ठ्यं राज्यं माहाराज्यमाधिपत्यमयं समंतपर्यायी सार्वायुष आंतादापरार्धात्पृथिव्यै समुद्रपर्यंता या एकराळिति तदप्येष श्लोकोऽभिगीतो मरुत: परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन्गृहे आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवा: सभासद इति।

ॐ विश्व दकचक्षुरुत विश्वतो मुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पात संबाहू ध्यानधव धिसम्भत त्रैत्याव भूमी जनयंदेव एकः।
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥

नाना सुगंध पुष्पांनी यथापादो भवानीच
पुष्पांजलीर्मयादत्तो रुहाण परमेश्वर
ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री सांबसदाशिवाय नमः। मंत्र पुष्पांजली समर्पयामि।।

प्रदक्षिणा
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नमस्कार, स्तुति -प्रदक्षिणा का अर्थ है परिक्रमा। आरती के उपरांत भगवन की परिक्रमा की जाती है, परिक्रमा हमेशा क्लॉक वाइज (clock-wise) करनी चाहिए। स्तुति में क्षमा प्रार्थना करते हैं, क्षमा मांगने का आशय है कि हमसे कुछ भूल, गलती हो गई हो तो आप हमारे अपराध को क्षमा करें।
 
यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च। तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे।।

अर्थ: जाने अनजाने में किए गए और पूर्वजन्मों के भी सारे पाप प्रदक्षिणा के साथ-साथ नष्ट हो जाए। 
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English Translation :-
Guru Pradosh Vrat Introduction and Pradosh Vrat Detailed Method

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 There is a law to observe Pradosh fast on Trayodashi Tithi of every lunar month.  This fast is done on both Krishna Paksha and Shukla Paksha.  The time of 2 hours 24 minutes after sunset is known as Pradosh Kaal.  It varies according to the states.  Generally, the period from sunset to the beginning of the night can be taken as Pradosh Kaal.


 It is believed that Lord Bholenath dances in a happy posture on Mount Kailash during Pradosh period.  Those people who have unwavering faith in Lord Shri Bholenath, those people should fast by following the rules of Pradosh fast falling on Trayodashi Tithi.


 This fast is supposed to connect the fasting person to Dharma, Moksha and to free him from the shackles of Artha, Kama.  Lord Shiva is worshiped in this fast.  Those who worship Lord Shiva get freedom from poverty, death, sorrow and debts.


 Importance of Pradosh Vrat

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 According to the scriptures, keeping Pradosh fast gives the same reward as donating two cows.  A mythological fact comes to the fore regarding Pradosh Vrat that "One day when there will be a state of unrighteousness, injustice and incest will prevail, selfishness will be high in man. And instead of doing good deeds, the person will do more lowly deeds.


 During that time, the person who observes Trayodashi fast and worships Shiva, will have the blessings of Shiva.  The person who observes this fast, after getting out of the cycle of birth after birth, proceeds on the path of salvation.  He attains the highest level.


 fruits of fasting

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 The benefits of Pradosh fasting are obtained according to different times.


 For example, the Varta performed when Trayodashi falls on Monday provides health.  When Pradosh Vrat is observed on Monday, when Trayodashi arrives, the desires related to fasting are fulfilled.  In the month in which Pradosh Vrat is observed for Trayodashi on Tuesday, the fasting of that day gives relief from diseases and health benefits and if Pradosh Vrat is observed on Wednesday, then all the wishes of the faster are likely to be fulfilled.


 Guru Pradosh fast is observed for the destruction of enemies.  Pradosh fast on Friday is observed for good luck and happiness and peace in married life.  In the end, those who wish to have a child, they should observe Pradosh fast which falls on Saturday.  When Pradosh Vrat is observed keeping in view its objectives, then the fruits obtained from the fast increase.


 fasting method

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 In the morning after bath, bathe Lord Shiva, Parvati and Nandi with Panchamrit and water.  After bathing with Ganges water, offer Bel leaves, Gandha, Akshat (rice), flowers, incense, lamp, Naivedya (Bhog), fruits, betel leaves, betel nuts, cloves and cardamom.  Then take a bath in the evening and worship Lord Shiva in the same way.  Then offer all the things to Shiva once. And after that worship Lord Shiva with sixteen ingredients.  Afterwards, offer barley sattu mixed with ghee and sugar to Lord Shiva.  After this, light eight lamps in eight directions.  As many times in whichever direction you place the lamp, do salute while keeping the lamp.  In the end, do the aarti of Shiva and also chant the Shiva stotra, mantra.  Wake up at night.


 Uddhapan at the end of Pradosh fast

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 After keeping this fast for eleven or 26 Trayodashis, the fast should be ended.  It is also known as Uddhapan.


 method of production

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 After keeping this fast for eleven or 26 Trayodashis, the fast should be ended.  It is also known as Uddhapan.


 Trayodashi date is selected for the commencement of this fast.  One day before Uddhapan, Shri Ganesh is worshipped.  Jagran is done by chanting Kirtan in the previous night.  Waking up early in the morning, making a mandap, the mandap is prepared by decorating it with clothes or Padma flowers.  A rosary of the mantra "Om Uma including Shivaay Namah" i.e. 108 times, the Havan is performed.  Kheer is used for offering in Havan.


 After the completion of the havan, the aarti of Lord Bholenath is performed.  And peace is recited.  In the end, two brahmins are fed food.  And blessings are obtained by giving charity according to one's ability.


 Guru Pradosh Vrat

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 Soot ji then said - Destroyer of enemies - dear to devotion, fasting is the most excellent.  From the date of every month, it is a fast, it is very senior.


 fasting story

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 Once there was a fierce battle between the army of Indra and Vritrasura.  The gods defeated and destroyed the demon army.  Seeing this, Vritrasura became very angry and himself got ready for war.  He took a formidable form from the demonic Maya.  All the gods were frightened and reached Gurudev in the shelter of Jupiter.  Brihasapti Maharaj said- First let me give you the real introduction of Vritrasura.  Vritrasura is very ascetic and hardworking.  He pleased Shiva by doing severe penance on the Gandhamadan mountain.  In earlier times there was a king named Chitraratha.  Once he went to Mount Kailash in his plane.  There, seeing Mother Parvati seated on the left side of Shiva, he said sarcastically - 'O Lord!  Due to being trapped in attachment and illusion, we remain under the control of women.  But it was not visible in Devlok that the woman should sit in the assembly with an embrace. Hearing this words of Chitrarath, the omnipresent Shivshankar laughed and said - 'O king!  My practical approach is different.  I have drank the Death Giver-Kalkoot Mahavenom, yet you ridicule me like an ordinary person!  You have ridiculed me as well as the omnipresent Maheshwar.  Therefore I will teach you that then you will not dare to ridicule such saints - now you fall down from the plane taking the form of a demon, I curse you.  Became born from the best of penance and became Vritrasura.  Gurudev Brihaspati further said- 'Vritasur has been a devotee of Shiva since childhood.  Therefore, O Indra, please Lord Shankar by observing the fasting of Brihaspati Pradosh.  Due to the glory of Guru Pradosh Vrat, Indra soon conquered Vritrasura and there was peace in Devlok.  Say Umapati Shankar's Glory to God.


 Pradoshstottram

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 ,  Om Shree Ganeshaya Namaha..


 Jai Dev Jagannath Jai Shankar Eternal.  Jay Sarvsuradhyaksha Jay Sarvsurarchit  1॥


 Jai sarvagunateet jai sarvavarprad.

 Jai nitya baseless jai Vishwambharavaya  2


 Jay Vishwavaikvandyesh Jay Nagendra Bhushan.

 Jai Gauripete Shambho Jai Chandradhashekhar  3


 Jai kotyarkasakash jayanantgunashraya.  Jai Bhadra Virupaksha Jayachintya Niranjan.  4


 Jai Nath Kripasindho Jai Bhaktartibhanjan.  Jai dustarsansarsagarotaran prabho  5


 Mahadev sansaratsya khidyah in Prasidh.  Sarvapaapakshayam Kritva Rakshak Mother Parmeshwar  6


 Mahadaridryamagnasya mahapapahatsya c.  Mahashoknavishtasya Maharogatursya f  7


 Debabharparitasya dahyamanasya karmabhih.  Grahaiah Prapidyamanasya Prasid Mama Shankar.  8


 Poor: Prathayeddevam Pradoshe Girijapatim.  Arthadhyo Vaath Raja or Prathyeddevmishwaram.  9॥


 Long life: good health.

 Mamastu Nityamandah Prasadattva Shankar.  10


 Shatravah sankshayam yantu prasidanthu mama prajah.  Nasyantu Dasyavo Rashtra Janaah Santu Nirapadah.  11


 Durbhikshamarisantapa: Shama yantu Mahitale.  Sarvasyasamridhischa Bhuyatsukhamaya Dishah  12


 Evamaradhayeddevam pujaante girijapatim.  brahmananbhojayet pachhaddakshinabhischa pujayet.  13


 Sarvapaakshaykari omnipresence.  Shiv Puja Mayakhyata Sarvabhishtafalprada.  14॥


 ,  Iti Pradoshastotra Sampoornam

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 After reciting Katha and Stotra, do Aarti of Mahadev ji.


 Tambul, Dakshina, Jal-arati

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 Tambul means paan.  It is an important worship material.  Tambul is offered after the fruit.  Pungi fruit (betel nut), cloves and cardamom are also added along with the tambul.  Dakshina means money is offered.  God is hungry for emotion.  So they have nothing to do with matter.  Money, gold, silver, anything can be offered in the form of money.


 Aarti is performed at the end of the puja with incense, lamp, camphor.  Without this worship is considered incomplete.  One, three, five, seven i.e. a lamp with odd lights is used in the aarti.


 Lord Shiva's Aarti

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 Jai Shiv Omkara, Bhole Har Shiv Omkara.

 Brahma Vishnu always Shiva Ardhangi stream.  Har Har Har Mahadev...


 Ekanan Chaturanan Panchanan Raje.

 Harsanan Garudasana Vrishavahana  Har Har Har Mahadev..


 Two sides, four quadrilaterals, ten sides, sleep too much.

 Tribhuvan Jan Mohe  Har Har Har Mahadev..


 Akshamala Banmala Mundmala stripe.

 Sandalwood Mrigmad Sohai Bhole Shashidhari  Har Har Har Mahadev..


 Shwetambar Pitamber Baghambar Ange.

 Sanakadik Garunadik Bhutadik Sange  Har Har Har Mahadev..


 Kamandalu Chakra Trishul dharta in the middle of the tax.

 Jagkarta Jagbharta does the world  Har Har Har Mahadev..


 Brahma Vishnu Sadashiv knows he is indecisive.

 These three are united in the middle of Pranavakshar.  Har Har Har Mahadev..


 Vishwanath Virajat Nandi Brahmachari in Kashi.

 Nit rise darshan pawat interest interest enjoyment indulgent glory very heavy.  Har Har Har Mahadev..


 Lakshmi and Savitri, with Parvati.

 Parvati Ardhangani, Shivlahari Ganga..  Har Har Har Mahadev....


 Parvat Sauhe Parvati, Shankar Kailasa.

 The food of hemp dhatoor, the ash in the ashes.  Har Har Har Mahadev....


 The Ganges is flowing in the Jata, the garland of Gal Mundal.

 The remaining snake wrapped, covered with deer.  Har Har Har Mahadev....


 Whoever sings the aarti of Trigun Shivaji.

 Kahat Shivanand Swami should get the desired fruit.  Har Har Har Mahadev..


 Jai Shiv Omkara Bhole Har Shiv Omkara

 Brahma Vishnu Sadashiv Ardhangi stream.  Har Har Har Mahadev.


 camphor aarti

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 Karpoorgaurm Karunavataram, Sansarasaram Bhujgendraharam.

 Sadavasantam Hrudayarvinde, Bhavam Bhavani Sahitam Namami.


 Mangalam Lord Shambhu

 Mangalam Rishibadhwaja.

 Mangalam Parvati Natho

 Good luck everyone.


 Mantra Wreath

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 Mantra Pushpanjali Flowers are offered to the Lord with flowers in his hands by mantras and prayers are offered.  The feeling is that like the fragrance of these flowers, our fame will spread far and we may live happily.


 Om Yajna Yagyamayanta Devastani Dharmani Pratmanyasan.


 Te hum nakam mahimayan: sachant yatra purve sadhya: santi deva:


 Rajadhirajaya prasahye sahane namo vaisravanay kurmah s me kamankamakamaye mahyam kameshwaro vaishravno dadatu.

 Kuberaya Vaishravanay Maharaja Namah:


 Swasti Empire Bhaujyam Swarajya Vairagya

 Parmeshtyam Rajya Maharajyamadhipatyam Samantparyayi Sarvayush Antadaparadhatprithvyai Samudraparyanta or Ekarati Tapyesh Shlokoऽbhigeeto Marutah Pariveshtaro Marutsyavasangrihe Avikshitasya Kamprevvedeva: Sabhasad etc.


 Om Vishva Dakkshurut Vishwato Mukho Vishwatobahurut Vishwataspat Sambahu Dhyanadhav Dhimbhat Tratyav Bhumi Janayamdev Ekah.

 Tatpurushaya Vidmahe Mahadevaya Dhimahi

 Tanno Rudra: Prachodayat


 Nana Sugandha Pushpani Yathapado Bhavanich

 Pushpanjalirmayadattto Ruhan Parmeshwar

 Om Bhurbhuva: Self: Bhagwate Shri Sambasadashivay Namah.  Mantra Pushpanjali Samarpayami.


 circumambulation

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 Salutations, Pradakshina means circumambulation.  After the aarti, the circumambulation of God is done, the circumambulation should always be done clock-wise.  We pray for forgiveness in praise, the meaning of asking for forgiveness is that if we have made some mistake, mistake, then you forgive our crime.



 That is, Kani Cha Papani Janamantar Kritani Ch.  Tani savarni nashyantu pradakshine pade-pade.


 Meaning: All the sins committed knowingly and unknowingly and also in the previous births should be destroyed along with the circumambulation.

26 अप्रैल 2022

वरुथिनी एकादशी विशेष Varuthini Ekadashi Special

वरुथिनी एकादशी विशेष
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यह व्रत वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है। हिन्दू धर्म में इस पुण्य व्रत को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। इस वर्ष 26 अप्रैल मंगलवार के दिन वरूथिनी एकादशी व्रत किया जाएगा। 

वरुथिनी एकादशी व्रत मुहूर्त एवं विधि 
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एकादशी तिथि प्रारम्भ - अप्रैल 25 को रात्रि 01:35 बजे से।
एकादशी तिथि समाप्त - अप्रैल 26 को रात्रि 12:47 पर।

एकादशी व्रत पारण 
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27 अप्रैल को सुबह 06 बजकर 40 मिनट से सुबह 08 बजकर 15 मिनट तक रहेगा। 

वरुथिनी एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति को व्रत से एक दिन पहले यानि दशमी के दिन कांस, उड़द, मसूर, चना, कोदो, शाक, मधु, किसी दूसरे का अन्न, दो बार भोजन तथा काम क्रिया, इन दस बातों का त्याग करना चाहिए।

एकादशी के दिन भगवान का पूजन कर भजन कीर्तन करना चाहिए। द्वादशी के दिन पूजन कर ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए। अतः दक्षिणा देकर विदा करने बाद स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिए। एकादशी के व्रत में सोना, पान खाना, दांतुन, दूसरे की बुराई, चुगली, चोरी, हिंसा, काम क्रिया, क्रोध तथा झूठ का त्याग करना चाहिए। 

वरुथिनी एकादशी महात्म्य
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पद्मपुराण में वरूथिनी एकादशी के विषय में तथ्य प्राप्त होते हैं जिसके अनुसार भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर के पूछने पर की वैशाख माह के कृष्णपक्ष की एकादशी का फल एवं महात्मय क्या है तो उनके इस कथन पर भगवान उन्हें कहते हैं कि हे धर्मराज लोक और परलोक में सौभाग्य प्रदान करने वाली है वरूथिनी एकादशी के व्रत करने से साधक को लाभ की प्राप्ति होती है तथा उसके पापों का नाश संभव हो जाता है. यह एकादशी भक्त को समस्त प्रकार के भोग एवं मोक्ष प्रदान करने वाली होती है.

वरूथिनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को कठिन तपस्या करने के समान फल की प्राप्ति होती है. इस व्रत के नियम अनुसार व्रत रखने वाले को दशमी तिथि के दिन से ही नियम धारण कर लेना चाहिए. संयम व शुद्ध आचरण का पालन करते हुए एकादशी के दिन प्रात:काल समस्त क्रियाओं से निवृत्त होकर भगवान विष्णु जी का पूजन करना चाहिए. विधि पूर्वक वरूथिनी एकादशी का व्रत करते हुए एकादशी की रात्रि में जागरण करना चाहिए तथा भजन किर्तन करते हुए श्री हरि की का मनन करते रहना चाहिए.

वरूथिनी एकादशी कथा
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इस एकादशी के विषय में एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार मांधाता, इक्ष्वाकुवंशीय नरेश थे इनकी प्रशिद्धि दूर दूर तक थी। इनके विषय में कहा जाता है कि इन्हें सौ राजसूय तथा अश्वमेध यज्ञों का कर्ता और दानवीर, धर्मात्मा चक्रवर्ती सम्राट् जो वैदिक अयोध्या नरेश मंधातृ जैसा अभिन्न माना जाता था। यादव नरेश शशबिंदु की कन्या बिंदुमती इनकी पत्नी थीं जिनसे मुचकुंद, अंबरीष और पुरुकुत्स नामक तीन पुत्र और पचास कन्याएँ उत्पन्न हुई थीं जो एक ही साथ सौभरि ऋषि से ब्याही गई थीं।

पुत्र प्राप्ति हेतु यज्ञ के हवियुक्त मंत्रपूत जल को प्यास में भूल से पी लेने के कारण युवनाश्व को गर्भ रह गया जिसे ऋषियों ने उसका पेट फाड़कर निकाला। वह गर्भ एक पूर्ण बालक के रूप में उत्पन्न हुआ था जो इंद्र की तर्जनी उँगली को चूसकर रहस्यात्मक ढंग से पला और बढ़ा हुआ था। इंद्र द्वारा दुध पिलाने तथा पालन करने के कारण इनका नाम मांधाता पड़ा। यह बालक आगे चलकर पर पराक्रमी राजा बना।

इन्होंने विष्णु जी से राजधर्म और वसुहोम से दंडनीति की शिक्षा ली थी इसी वरूथिनी एकादश के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग को गए थे क्योंकि गर्व से चूर होकर और स्वयं को उच्च मानते हुए इनके द्वारा कई गलत कार्य भी हुए जिनके प्रभाव स्वरूप इन्हें स्वर्ग की प्राप्ति नहीं हुई अत: अपने पापों से मुक्ति पाने हेतु क्षमायाचना स्वरूप इन्होंने इस एकादशी व्रत का पालन किया जिसके प्रभाव से इन्हें स्वर्ग की प्राप्ति संभव हो सकती

इसी प्रकार राजा धुन्धुमार को भगवान शिव ने एक बार क्रोद्धवश श्राप दे दिया था जिसके कारण उन्हें बहुत सारे कष्टों की प्राप्ति हुई उनसे मुक्ति के मार्ग के लिए धुन्धुमार ने तब इस एकादशी का व्रत रखा जिससे उन्हें श्राप से मुक्ति प्राप्त हुए और वह उत्तम लोक को प्राप्त हुए।

भगवान जगदीश्वर जी की आरती
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"ओम जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे !!

जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का, सुख-सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का !!

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी, तुम बिन और न दूजा, आस करूँ मैं जिसकी !!

तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी, पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी !!

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता, मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता !!

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति, किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति !!

दीनबंधु दुःखहर्ता, तुम रक्षक मेरे, करुणा हस्त बढ़ाओ, द्वार पडा तेरे !!

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा, श्रद्धा विवेक बढाओ, संतन की सेवा !!

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे


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English Translation :-

Varuthini Ekadashi Special


 This fast is observed on the Ekadashi of Vaishakh Krishna Paksha.  In Hinduism, this virtuous fast is considered a symbol of good luck.  This year Varuthini Ekadashi will be observed on Tuesday, April 26.


 Varuthini Ekadashi Vrat Muhurta and Method


 Ekadashi date starts from 01:35 pm on April 25.

 Ekadashi date ends - April 26 at 12:47 pm.


 Ekadashi fasting


 On April 27, it will be from 06:40 in the morning to 08:15 in the morning.


 A person observing Varuthini Ekadashi fast, a day before the fast, i.e. on the day of Dashami, should give up these ten things, namely Kansas, Urad, Lentil, gram, Kodo, herbs, honey, someone else's food, twice food and sex activity.


 On the day of Ekadashi one should worship the Lord and do bhajan kirtan.  On the day of Dwadashi, a Brahmin should be offered food after worshiping.  Therefore, after giving dakshina, one should take food himself.  During the fasting of Ekadashi, one should give up sleeping, eating betel leaves, teething, other's evil, slander, theft, violence, sexual activity, anger and lies.


 Varuthini Ekadashi Mahatmya


 In Padma Purana, facts are received about Varuthini Ekadashi, according to which Lord Krishna, on asking Yudhishthira what is the fruit and greatness of Ekadashi of Krishna Paksha of Vaishakh month, on his statement, God tells him that O Dharmaraja, bestow good fortune in the world and the afterlife.  By observing the fast of Varuthini Ekadashi, the seeker gets benefits and the destruction of his sins becomes possible.  This Ekadashi is supposed to bestow all kinds of enjoyment and salvation to the devotee.


 By observing the fast of Varuthini Ekadashi, a person gets the same result as doing hard penance.  According to the rules of this fast, the person observing the fast should follow the rules from the day of Dashami.  Following abstinence and pure conduct, Lord Vishnu should be worshiped early in the morning on Ekadashi after retiring from all activities.  While fasting on Varuthini Ekadashi ritually, one should do Jagran on the night of Ekadashi and keep chanting of Shri Hari while doing bhajan.


 Varuthini Ekadashi Story


 There is a legend about this Ekadashi, according to which Mandhata was the king of Ikshvakuvanshi, his fame was far and wide.  It is said about him that he was the doer of hundred Rajasuya and Ashwamedha yagyas and the donor, Dharmatma Chakravarti emperor who was considered as integral as the Vedic Ayodhya king Mandhatri.  Bindumati, the daughter of the Yadav king Shashbindu, was his wife, from whom three sons and fifty daughters named Muchkund, Ambarisha and Purukutsa were born, who were simultaneously married to the sage Saubhari.


 In order to get a son, Yuvanashva got pregnant due to drinking the sacred water of the Yagya in thirst, which the sages took out by tearing her stomach.  That womb was born as a perfect child, who grew up and grew mysteriously by sucking the index finger of Indra.  Due to feeding and rearing of milk by Indra, she was named Mandhata.  This boy later became a mighty king.


 He had learned Rajdharma from Vishnu ji and Dandaniti from Vasuhom, due to the effect of this Varuthini eleven, King Mandhata went to heaven because, feeling proud and considering himself high, he also did many wrong deeds, due to which he attained heaven.  Therefore, in order to get rid of his sins, he observed this Ekadashi fast as an apology, due to which it would be possible for him to attain heaven.


 Similarly, King Dhundhumar was once cursed by Lord Shiva out of anger, due to which he got a lot of sufferings.  received.


 Aarti of Lord Jagdishwar ji


 "Om Jai Jagdish Hare, Swami Jai Jagdish Hare, remove the troubles of the devotees in a moment !!


 The one who gets the fruits of meditation, the mind without sorrow, the happiness and wealth come home, the pain of the body is removed.


 Mother, father, you are my refuge, whose refuge I am, without you, I can't wait for whom.


 You are the Supreme God, you are the Antaryami, Parabrahma Parmeshwar, the lord of all of you!!


 You are the ocean of compassion, you are the maintainers, I am the servants, you are the masters, please the servant!!


 You are an inconspicuous, life-master of all, what method should I find compassionate, I love you !!


 Deenbandhu sorrowful, you protector of me, extend your hand of compassion, the door will fall for you !!


 Eliminate subjective disorders, Destroy sins, Increase faith in the conscience, Service to the children !!


 Jai Jagdish Hare, Swami Jai Jagdish Hare


13 अप्रैल 2022

वैशाखी/मेष संक्रांति (14.04.2022) ।। Vaisakhi/Aries Sankranti (14.04.2022)



वैशाखी/मेष संक्रांति (14.04.2022)

वैदिक ज्योतिष मे सौर मास पद्धति के अनुसार बैसाखी का त्यौहार वैशाख मास, सूर्य के मेष राशि मे प्रवेश अर्थात 'मेष संक्रांति' के दिन आता है । 

अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, बैसाखी की तारीख हर साल 13 अप्रैल को आता है, परंतु हर 36 साल में एक बार मेष सक्रांति 14 अप्रैल को आती है। यह बदलाव भारतीय सौर कैलेंडर के अनुसार मनाए जाने वाले त्यौहार के कारण है। साल 2022 में बैसाखी 14 अप्रैल को मनाई जायेगी। 

वैशाख मास की संक्रांति के दिन होने की वजह से इस त्यौहार को 'बैसाखी' या 'वैशाखी' भी कहा जाता है। बैसाखी पर्व को पंजाब राज्य मे पंजाबी नववर्ष के रूप मे भी मनाये जाने की परंपरा है। 

वैशाख का आगमन प्रकृत्ति के परिवर्तन को दर्शाता है । बैसाखी पर्व विशेष रुप से किसानो का पर्व है । भारत के उत्तरी प्रदेशो विशेष कर पंजाब में इस दिन किसानो की गेहूँ की फसल पक कर तैयार हो जाती है । बैसाखी का त्यौहार, फसल त्यौहार, नए वसंत की शुरुआत होने की खुशी मे बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है । यह त्यौहार भारत में फसल के मौसम के अंत का प्रतीक है, जो किसानों के लिए समृद्धि का समय है। 

इस के अतिरिक्त वैशाखी का त्यौहार सर्दियों की समाप्ति और गर्मीयों के आरंभ का भी आगमन दर्शाता है । अत: इन्ही कारणो के आधार पर लोक परंपरा धर्म और प्रकृति के परिवर्तन से जुडा़ यह समय बैसाखी पर्व की महत्ता को दर्शता है ।

यह त्यौहार पश्चिम बंगाल में पोहेला बोइशाख, तमिलनाडु में पुथंडु, असम में बोहाग बिहु, पूरामुद्दीन केरल, उत्तराखंड में बिहू, ओडिशा में महा विष्णु संक्रांति और आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में उगादी के रूप में मनाया जाता है।

बैसाखी का इतिहास:-
1. बैसाखी उन तीन त्योहारों में से एक थी, जिन्हें सिखों के तीसरे गुरु, गुरु अमर दास ने मनाया था।

2. 1699 में, नौवें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर सिंह जी मुगलों द्वारा सार्वजनिक रूप से सिर कलम किए गए थे।

3. वैशाखी के दिन ही सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने धार्मिक उत्पीड़न के मद्देनजर एक सभा में खालसा पंथ या शुद्ध आदेशों की स्थापना की थी। उन्होंने सिख धर्म के पाँच मुख्य प्रतीकों को अपनाया गया था और गुरु प्रणाली को हटा दिया गया था, जिसमें सिखों से ग्रन्थ साहिब को शाश्वत मार्गदर्शक के रूप में स्वीकार करने का आग्रह किया गया था। 
इस प्रकार, बैसाखी का त्यौहार अंतिम सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह के राज्याभिषेक के साथ-साथ सिख धर्म के खालसा पंथ की नींव के रूप में मनाया जाता है,

वैशाखी पर्व का उत्सव:-

बैसाखी पर्व एक लोक परंपरागत त्यौहार है । इस दिन किसान गेहूँ  की कुछ बालियां अग्नि देव के समक्ष अर्पण करते हैं तथा कुछ भाग प्रसाद के रुप सभी लोगों को दिया जाता है । 

इस पर्व पर पंजाब के लोग परंपरा के अनुसार भांगडा तथा गिद्धा नृत्य  करते हैं । 

बैसाखी का त्यौहार पर्व नये संवत की शुरुआत का दिन होता है । अप्रैल माह के 13 या 14 तारीख को जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तब वह समय पंजाब के नव वर्ष का दिन होता है । इस दिन से नये संवत की शुरुआत होती है । कई जगह व्यापारी लोग आज के दिन नये वस्त्र धारण करके अपने बहीखातों का आरम्भ करते हैं ।

 इस दिन लोग सुगंधित पकवान बनाकर एक दूसरे को बधाई देते हैं ।

इस दिन दुर्गा माता जी तथा शंकर भगवान की पूजा होती है ।

यह पर्व सभी शिक्षा संस्थानों में बडी़ धूमधाम से मनाया जाता है । इस दिन विद्यार्थीयों द्वारा कई रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाते है और प्रतिभावान विद्यार्थीयों को पुरस्कार बांटे जाते हैं ।

सिख धर्म की मान्यता अनुसार वैसाखी मनाने का तरीका:-

1. वैसाखी के दिन प्रातः स्नानादि के उपरांत गुरूद्वारे में जाकर माथा टेककर प्रार्थना करते हैं।
2.  गुरुद्वारे में गुरुग्रंथ साहिब जी के स्थान को जल और दूध से शुद्ध किया जाता है।
3.  उसके बाद पवित्र पुस्तक को सम्मानपूर्वक उसके स्थान पर रखा जाता है।
4.  फिर गुरू ग्रंथ साहिब का पाठ किया जाता है और अनुयायी ध्यानपूर्वक गुरू की वाणी सुनते हैं।
5.  इस दिन श्रद्धालुयों के लिए विशेष प्रकार का अमृत तैयार किया जाता है जो बाद में प्रसाद रूप मे ग्रहण किया जाता है।
6.  परंपरा के अनुसार, अनुयायी एक पंक्ति में लगकर अमृत को पाँच बार ग्रहण करते हैं।
7.  अपराह्न में अरदास के बाद प्रसाद को गुरू को चढ़ाकर अनुयायियों में वितरित की जाती है।
8.  अंत में लोग लंगर चखते हैं।

(समाप्त)
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आगामी लेख:-
1. 14 अप्रैल से दो भागों मे "हनुमान जयंती" पर लेख।
2. 16 अप्रैल को "वैशाख मास" पर लेख।
3. 17 अप्रैल से धारावाहिक लेख "वास्तुशास्त्र" के आगामी भागो का प्रकाशन।
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जय श्री राम
आज का पंचांग,दिल्ली 🌹🌹🌹
बुधवार,13.4.2022
श्री संवत 2079
शक संवत् 1944
सूर्य अयन- उत्तरायण, गोल-उत्तर गोल
ऋतुः- वसन्त ऋतुः ।
मास- चैत्र मास।
पक्ष- शुक्ल पक्ष ।
तिथि-द्वादशी तिथि अगले दिन 4:52 am तक
चंद्रराशि- चंद्र सिंह राशि मे।
नक्षत्र- मघा नक्षत्र 9:37 am तक
योग- गण्ड योग 11:14 am तक (अशुभ है)
करण- बव करण 5:03 pm तक
सूर्योदय- 5:58 am, सूर्यास्त 6:45 pm
अभिजित् नक्षत्र- कोई नहीं
राहुकाल - 12:22 pm से 1:57 pm* (शुभ कार्य वर्जित,दिल्ली )
दिशाशूल- उत्तर दिशा।

अप्रैल शुभ दिन:- 13, 14, 15, 16 (दोपहर 1 उपरांत), 17, 19 (सायं. 5 उपरांत), 21, 22 (सवेरे 9 तक), 24, 25 (दोपहर 2 तक), 26, 27 (सायं. 6 तक)
अप्रैल अशुभ दिन:- 18, 20, 23, 28, 29, 30.

गण्ड मूल आरम्भ:-
अश्लेषा नक्षत्र, 11 अप्रैल 6:51 am से 13 अप्रैल -मघा नक्षत्र 9:37 am तक गंडमूल रहेगें। गंडमूल नक्षत्रों मे जन्म लेने वाले बच्चो का मूलशांति पूजन आवश्यक है।
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आगामी व्रत तथा त्यौहार:-
14 अप्रैल- प्रदोष व्रत/मेष संक्रांति। 16 अप्रैल- हनुमान जयंती/चैत्र पूर्णिमा व्रत। 19 अप्रैल- संकष्टी चतुर्थी। 26 अप्रैल-वरुथिनी एकादशी। 28 अप्रैल- प्रदोष व्रत। 29 अप्रैल- मासिक शिवरात्रि। 30 अप्रैल- वैशाख अमावस्या।
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विशेष:- जो व्यक्ति वाराणसी से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु Paytm या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है
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आपका दिन मंगलमय हो . 💐💐💐

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English Translation :-

Vaisakhi/Aries Sankranti (14.04.2022)


 According to the Solar Month system in Vedic astrology, the festival of Baisakhi comes on the day of Vaishakh month, the entry of the Sun into Aries sign i.e. 'Aries Sankranti'.


 According to the English calendar, the date of Baisakhi falls on April 13 every year, but once every 36 years, Aries Sankranti falls on April 14.  This change is due to the festival being celebrated according to the Indian solar calendar.  In the year 2022, Baisakhi will be celebrated on 14 April.


 This festival is also called 'Baisakhi' or 'Vaisakhi' due to it being on the solstice of Vaishakh month.  There is a tradition of celebrating Baisakhi festival as Punjabi New Year in the state of Punjab.


 The arrival of Vaishakh signifies the change of nature.  Baisakhi festival is especially the festival of farmers.  On this day in the northern regions of India, especially in Punjab, the wheat crop of the farmers is ready.  The festival of Baisakhi, the harvest festival, is celebrated with great enthusiasm to mark the beginning of a new spring.  The festival marks the end of the harvest season in India, a time of prosperity for farmers.


 Apart from this, the festival of Vaisakhi also marks the end of winter and the beginning of summer.  Therefore, on the basis of these reasons, this time associated with the change of folk tradition, religion and nature shows the importance of Baisakhi festival.


 This festival is celebrated as Pohela Boishakh in West Bengal, Puthandu in Tamil Nadu, Bohag Bihu in Assam, Pooramuddin Kerala, Bihu in Uttarakhand, Maha Vishnu Sankranti in Odisha and Ugadi in Andhra Pradesh and Karnataka.


 History of Baisakhi:-

 1. Baisakhi was one of the three festivals celebrated by the third Guru of the Sikhs, Guru Amar Das.


 2. In 1699, the ninth Sikh Guru, Guru Tegh Bahadur Singh Ji was publicly beheaded by the Mughals.


 3. It was on the day of Vaisakhi that the tenth Guru of the Sikhs, Guru Gobind Singh Ji founded the Khalsa Panth or the Pure Orders in a gathering in the wake of religious persecution.  He adopted the five main symbols of Sikhism and removed the guru system, urging Sikhs to accept the Granth Sahib as the eternal guide.

 Thus, the festival of Baisakhi marks the coronation of the last Sikh Guru, Guru Gobind Singh, as well as the foundation of the Khalsa Panth of Sikhism,


 Celebration of Vaisakhi festival:-


 Baisakhi festival is a folk traditional festival.  On this day farmers offer some earrings of wheat to the god of fire and some part is given to all the people as prasad.


 On this festival the people of Punjab perform Bhangra and Giddha dances as per the tradition.


 The festival of Baisakhi is the day of the beginning of the new era.  On the 13th or 14th of April, when the Sun enters Aries, then that time is the day of Punjab's New Year.  New Samvat begins from this day.  In many places, merchants start their books by wearing new clothes on this day.


 On this day people greet each other by making fragrant dishes.


 Goddess Durga and Lord Shankar are worshiped on this day.


 This festival is celebrated with great pomp in all educational institutions.  On this day many colorful programs are presented by the students and prizes are distributed to the meritorious students.


 The way of celebrating Vaisakhi according to the belief of Sikhism:-


 1. On the day of Vaisakhi, after taking bath in the morning, go to the Gurudwara and pray by bowing your head.

 2. The place of Guru Granth Sahib in the Gurudwara is purified with water and milk.

 3.  The holy book is then respectfully placed in its place.

 4. The Guru Granth Sahib is then recited and the followers listen attentively to the Guru's voice.

 5.  A special type of nectar is prepared for the devotees on this day, which is later taken as prasad.

 6. According to tradition, the followers take the nectar five times in a row.

 7. In the afternoon, after Ardas, Prasad is offered to the Guru and distributed among the followers.

 8. In the end people taste the langar.


 (End)


 Next article:-

 1. Article on "Hanuman Jayanti" in two parts from 14th April.

 2. Article on "Vaisakh month" on 16 April.

 3. Publication of upcoming parts of serial article "Vastu Shastra" from 17th April.



 Long live Rama

 Today's Panchang, Delhi

 Wednesday, 13.4.2022

 Shree Samvat 2079

 Shaka Samvat 1944

 Surya Ayan- Uttarayan, Round-North Round

 Rituah - the spring season.

 Month - Chaitra month.

 Paksha - Shukla Paksha.

 Tithi-Dwadashi date till 4:52 am the next day

 Moon sign - Moon in Leo.

 Nakshatra- Magha Nakshatra till 9:37 am

 Yoga- Ganda Yoga till 11:14 am (inauspicious)

 Karan- Bav Karan till 5:03 pm

 Sunrise- 5:58 am, Sunset 6:45 pm

 Abhijit Nakshatra - none

 Rahukaal - 12:22 pm to 1:57 pm* (Good work prohibited, Delhi)

 Direction – North direction.


 April Lucky Days:- 13, 14, 15, 16 (after 1 pm), 17, 19 (after 5 pm), 21, 22 (till 9 am), 24, 25 (till 2 pm), 26, 27 (  till 6 p.m.)

 April inauspicious days:- 18, 20, 23, 28, 29, 30.


 Gand Mool Aarambh:-

 Ashlesha Nakshatra, April 11 from 6:51 am to April 13 - Magha Nakshatra will remain Gandmool from 9:37 am.  Children born in Gandmool constellations need to worship Moolshanti.


 Upcoming fasts and festivals:-

 April 14 - Pradosh fast / Aries Sankranti.  April 16 - Hanuman Jayanti / Chaitra Purnima Vrat.  April 19 - Sankashti Chaturthi.  April 26 - Varuthini Ekadashi.  April 28 - Pradosh fast.  April 29 - Monthly Shivratri.  April 30 - Vaishakh Amavasya.


 Special:- The person who lives outside Varanasi or outside the country, he can get astrological consultation by phone, by paying the consultation fee through Paytm or Bank transfer for astrological consultation.


 Have a good day . 



12 अप्रैल 2022

कामदा एकादशी मंगलवार/बुधवार 12/13 अप्रैल विशेष।। Kamada Ekadashi Tuesday/Wednesday 12/13 April Special


कामदा एकादशी मंगलवार/बुधवार 12/13 अप्रैल विशेष
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एकादशी तिथि प्रारम्भ 👉 अप्रैल 12, 2022 को 04:30 बजे
एकादशी तिथि समाप्त 👉 अप्रैल 13, 2022 को 05:02 बजे

कामदा एकादशी पारण 13 अप्रैल समय प्रातः 13:35 से 16:09 तक।

वैष्णव एकादशी के लिए पारण (व्रत तोड़ने का) समय 14 अप्रैल प्रातः 05:51 से 08:26 तक।

चैत्र माह में रामनवमी के पश्चात शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को कामदा एकादशी नाम से जाना जाता है। कामदा एकादशी जिसे फलदा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इसे श्रीहरि विष्णु का उत्तम व्रत कहा गया है। इस व्रत के पुण्य से जीवात्मा को पाप से मुक्ति मिलती है। यह एकादशी कष्टों का निवारण करने वाली और मनोनुकूल फल देने वाली होने के कारण फलदा और कामन पूर्ण करने वाली होने से कामदा कही जाती है। इस एकादशी की कथा श्री कृष्ण ने पाण्डु पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई थी। इससे पूर्व राजा दिलीप को वशिष्ठ मुनि ने सुनायी थी। आइये हम भी इस एकादशी की पुण्य कथा का श्रवण करें। इस वर्ष कामदा एकादशी व्रत 12 अप्रैल के दिन सन्यासी एवं गृहस्थी द्वारा रखा जाएगा तथा वैष्णव एवं निम्बार्क सम्प्रदाय की एकादशी 13 अप्रैल के दिन मानी जाएगी।

कामदा एकादशी व्रत विधि
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एकादशी के दिन स्नानादि से पवित्र होने के पश्चात संकल्प करके श्री विष्णु के विग्रह की पूजन करें। विष्णु को फूल, फल, तिल, दूध, पंचामृत आदि नाना पदार्थ निवेदित करें। आठों प्रहर निर्जल रहकर विष्णु जी के नाम का स्मरण एवं कीर्तन करें। एकादशी व्रत में ब्राह्मण भोजन एवं दक्षिणा का बड़ा ही महत्व है अत: ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात ही भोजना ग्रहण करें। इस प्रकार जो चैत्र शुक्ल पक्ष में एकादशी का व्रत रखता है उसकी कामना पूर्ण होती है।

   कामदा एकादशी व्रत कथा
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पुण्डरीक नामक नाग का राज्य अत्यंत वैभवशाली एवं सम्पन्न था। उस राज्य में गंधर्व, अप्सराएं एवं किन्नर भी रहा करते थे। इस राज्य में ललिता नामक अति सुन्दर अप्सरा और ललित नामक श्रेष्ठ गंधर्व का वास था। ये दोनों पति पत्नी थे। इनके बीच अगाध प्रेम की धारा बहती थी। दोंनों में इस कदर प्रेम था कि वे सदा एक दूसरे का ही स्मरण किया करते थे, संयोगवश एक दूसरे की नज़रों के सामने नहीं होते तो विह्वल हो उठते। इसी प्रकार की घटना उस वक्त घटी जब ललित महाराज पुण्डरीक के दरबार में उपस्थित श्रेष्ठ जनों को अपने गायन और नृत्य से आनन्दित कर रहा था।
गायन और नृत्य करते हुए ललित को अपनी पत्नी ललिता का स्मरण हो आया जिससे गायन और नृत्य में वह ग़लती कर बैठा। सभा में कर्कोटक नामक नाग भी उपस्थित था जिसने महाराज पुण्डरीक को ललित की मनोदशा एवं उसकी गलती बदा दी। पुण्डरीक इससे अत्यंत क्रोधित हुआ और ललित को राक्षस बन जाने का श्राप दे दिया।
ललित के राक्षस बन जाने पर ललिता अत्यंत दु:खी हुई और अपने पति को श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए यत्न करने लगी। एक दिन एक मुनि ने ललिता की दु:खद कथा सुनकर उसे कामदा एकादशी का व्रत करने का परामर्श दिया। ललिता ने उसी मुनी के आश्रम में एकादशी व्रत का पालन किय और द्वादशी के दिन व्रत का पुण्य अपने पति को दे दिया। व्रत के पुण्य से ललित पहले से भी सुन्दर गंधर्व रूप में लट आया।

   कामदा एकादशी के लाभ
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कामदा एकादशी का उपवास करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है। हिन्दु धर्म में किसी ब्राह्मण की हत्या करना सबसे भयंकर पाप है। यह माना जाता है कि ब्राह्मण की हत्या का पाप भी कामदा एकादशी उपवास करने से मिट जाता है।

  ठाकुर जी की आरती
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ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
 
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।
स्वामी दुःख विनसे मन का।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥
ॐ जय जगदीश हरे।
 
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी।
स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥
ॐ जय जगदीश हरे।
 
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।
स्वामी तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥
ॐ जय जगदीश हरे।
 
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।
स्वामी तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥
ॐ जय जगदीश हरे।
 
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति॥
ॐ जय जगदीश हरे।
 
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
स्वामी तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठा‌ओ, द्वार पड़ा तेरे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
 
विषय-विकार मिटा‌ओ, पाप हरो देवा।
स्वमी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ा‌ओ, सन्तन की सेवा॥
ॐ जय जगदीश हरे।
 
श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे।
स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥
ॐ जय जगदीश हरे।

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English Translation :-
Kamada Ekadashi Tuesday/Wednesday 12/13 April Special

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 Ekadashi date starts on April 12, 2022 at 04:30

 Ekadashi date ends April 13, 2022 at 05:02


 Kamada Ekadashi Parana on 13th April from 13:35 am to 16:09 am.


 Parana (fast breaking) time for Vaishnava Ekadashi is from 05:51 am to 08:26 am on April 14.


 The Ekadashi date of Shukla Paksha after Ram Navami in Chaitra month is known as Kamada Ekadashi.  Kamada Ekadashi is also known as Falda Ekadashi.  It is said to be the best fast of Shri Hari Vishnu.  By the virtue of this fast, the soul gets freedom from sin.  This Ekadashi is said to be Kamada, being fruitful and fulfilling wishes, being the remover of sufferings and giving favorable results.  The story of this Ekadashi was narrated by Shri Krishna to the son of Pandu, Dharmaraja Yudhishthira.  Earlier, King Dileep was narrated by Vashistha Muni.  Let us also listen to the holy story of this Ekadashi.  This year Kamada Ekadashi fast will be observed on 12th April by sannyasi and householder and Vaishnava and Nimbarka sects will observe Ekadashi on 13th April.


 Kamada Ekadashi fasting method

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 On the day of Ekadashi, after being purified by bathing, make a resolution and worship the deity of Shri Vishnu.  Offer flowers, fruits, sesame seeds, milk, panchamrit etc. to Vishnu.  Remain waterless for the eight hours, remember and chant the name of Lord Vishnu.  Brahmin food and dakshina are of great importance in Ekadashi fasting, so after giving food to Brahmins and leaving them with dakshina, take food only.  In this way, one who observes Ekadashi fast in Chaitra Shukla Paksha, his wish gets fulfilled.


 kamada ekadashi fasting story

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 The kingdom of a serpent named Pundarik was very rich and prosperous.  Gandharvas, Apsaras and eunuchs also lived in that state.  In this kingdom, a very beautiful Apsara named Lalita and a great Gandharva named Lalit lived.  Both of them were husband and wife.  A stream of love flowed between them.  There was so much love between the two that they used to always remember each other, if they were not in front of each other's eyes by chance, they would have been disturbed.  A similar incident happened when Lalit Maharaj was delighting the nobles present in the court of Pundarik with his singing and dancing.

 While singing and dancing, Lalit remembered his wife Lalita, due to which he made a mistake in singing and dancing.  A serpent named Karkotak was also present in the meeting, which made Maharaj Pundarik change Lalit's mood and his mistake.  Pundarik became very angry with this and cursed Lalit to become a demon.

 Lalita became very sad when Lalit became a demon and started trying to get rid of her husband from the curse.  One day a sage after hearing the sad story of Lalita advised her to observe Kamada Ekadashi fast.  Lalita observed Ekadashi fast in the same sage's ashram and gave the virtue of fasting to her husband on the day of Dwadashi.  Due to the virtue of fasting, Lalit came in the form of a beautiful Gandharva even earlier.


 Benefits of Kamada Ekadashi

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 By observing Kamada Ekadashi fast one gets freedom from all kinds of sins.  Killing a Brahmin is the worst sin in Hinduism.  It is believed that even the sin of killing a Brahmin is eradicated by fasting on Kamada Ekadashi.


 Thakur ji's aarti

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 Jai Jagdish Hare, Swami!  Om Jai Jagadish Hare.

 Remove the troubles of the devotees in a moment.

 Jai Jagdish Hare.



 One who gets the fruits of meditation, from sorrow, of the mind.

 Lord of sorrow and mind.

 Let happiness and wealth come home, the pain of the body is erased.

 Jai Jagdish Hare.



 You are my mother and father, whose refuge am I?

 Whom am I home to Swami Sharan?

 You don't give up without me, I hope for whom.

 Jai Jagdish Hare.



 You are the Supreme God, you are the inner souls.

 Lord you are inner.

 Parabrahma Parmeshwar, lord of all of you.

 Jai Jagdish Hare.



 You are the ocean of compassion, you are the maintainer.

 Lord, you are the maintainer.

 I am an idiot, please recruit.

 Jai Jagdish Hare.



 You are an imperceptible, the soul of all.

 Swami is the soul of all.

 Which method should I get merciful, I love you.

 Jai Jagdish Hare.



 Deenbandhu sadharta, you are my Thakur.

 Swami you are my Thakur.

 Raise your hand, the door lies with you.

 Jai Jagdish Hare.



 Eliminate object-disorders, God removes sins.

 Lord sin Haro Deva.

 Increase devotion and service to the children.

 Jai Jagdish Hare.



 Aarti of Shri Jagdishji, whoever sings a male.

 Lord whoever sings a male.

 Kahat Shivanand Swami, get happiness and wealth.

 Jai Jagdish Hare.

लेख :- प्रदोष व्रत (गुरू प्रदोष व्रत)14.04.2022 ।। Article :- Pradosh Vrat (Guru Pradosh Vrat)14.04.2022


लेख :- प्रदोष व्रत (गुरू प्रदोष व्रत)14.04.2022

त्रयोदशी तिथि आरंभ- 14 अप्रैल 4:52 am
त्रयोदशी तिथि समाप्त-15 अप्रैल,3:50 am तक
प्रदोष काल (पूजा समय)- 14 अप्रैल 6:46 pm से 9 pm तक


हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व होता है। जिस प्रकार से एक माह में दो एकादशी होती है, उसी प्रकार प्रदोष व्रत एक माह मे दो बार क्रमशः शुक्लपक्ष तथा कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि को आता है। इस तरह एक वर्ष में 24 प्रदोष व्रत आते हैं।

यह व्रत भगवान शिव के लिए समर्पित होता है। यह व्रत भगवान शिव की उपासना के द्वारा, भगवान शंकर की प्रसन्नता प्राप्ति हेतु, दीर्घायु प्राप्त करने हेतु , संतान, सुख-समृद्धि तथा जन्म और मृत्यु के बंधनों से मुक्त होने, यानि मोक्ष तथा प्रभुत्व प्राप्ति के लिए किया जाता है । 

यह व्रत, व्रती यानि उपासक को "धर्म" और "मोक्ष" से जोडता है, तथा "अर्थ" और "काम" से दूर करता है।

स्कंद पुराण के अनुसार शिव की पूजा करने वाले मनुष्यों को दुख, गरीबी, आभाव, ऋण तथा मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है तथा धन-धान्य, स्त्री-पुत्र, सुख-सौभाग्य की प्राप्ति मे निरंतर वृद्धि होती रहती  है। ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त इस व्रत को रखता है, तथा विधि-विधान से पूजा अर्चना करता है, उस पर भोलेनाथ और देवी पार्वती की कृपा सदैव बनी रहती है। प्रदोष व्रत के मुख्य देवता शिव माने गए हैं। उनके साथ पार्वती जी की भी पूजा की जाती है। इस व्रत को किसी भी उम्र के लोग रख सकते हैं।

प्रत्येक मास की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत होता है। दिन अर्थात "वार" के आधार पर इनका नाम बदलता रहता है। दूसरे शब्दों मे प्रदोष व्रत सप्ताह के अलग-२ वारो को आता है, ऐसा माना जाता है कि सप्ताह के अलग-२ वारो पर आने पर उन वारो के अनुसार व्रती को अलग -२ प्रकार के शुभफल प्राप्त होते है ।

14 अप्रैल 2022 को प्रदोष व्रत गुरुवार को आ रहा है, इसे गुरुवारा प्रदोष कहते हैं। इससे वृहस्पति ग्रह शुभ प्रभाव तो देते ही है, साथ ही इसे करने से पितरों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। अक्सर यह प्रदोष पुत्र संतान प्राप्त करने तथा शत्रु एवं खतरों के विनाश के लिए किया जाता है। श्री सूतजी के अनुसार- यह अति श्रेष्ठ शत्रु विनाशक भक्ति प्रिय व्रत है। 
यह व्रत चहुँ ओर से सफलता प्राप्ति  के हेतु भी रखा जाता है। हिन्दु धर्म शास्त्रों मे कहा गया है कि गुरु प्रदोष त्रयोदशी व्रत करने वाले को सौ गायें दान करने के बराबर का पुण्य  फल प्राप्त होता है तथा यह व्रत सभी प्रकार के कष्ट और पापों को नष्ट करता है। इस व्रत की कथा श्रवण करने से मात्र से ही ऐश्वर्य और विजय का शुभ वरदान मिलता है।


प्रदोष व्रत का अन्य महत्व:-
प्रदोष व्रत और शिव पूजा करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। प्रदोष व्रत करने से परिवार में सुख एवं समृद्धि आती है. शिव कृपा से कष्ट दूर होते हैं और निरोगी जीवन प्राप्त होता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव सबसे आसानी से प्रसन्न होने वाले हैं। वे आदि हैं, वे ही अंत हैं। उनसे ही जीवन है, उनसे ही मृत्यु है। वही महाकाल हैं। त्रयोदशी के दिन जो लोग प्रदोष व्रत रखते हैं उनको रोगों से मुक्ति मिलती है, जीवन में सुख, समृद्धि प्राप्त होती है। दुखों और पाप का नाश होता है। जिन लोगों को कोई संतान नहीं होती है, उन लोगों को वंश वृद्धि के लिए संतान सुख प्राप्त होता है।

प्रदोष व्रत करने की विधि :-
विशेष:- प्रदोष व्रत की पूजा,  सूर्यास्त से लेकर 6 घटी अर्थात 2 घण्टे 24 मिनट की अवधि मे की जाती है, इसी अवधि को प्रदोष काल कहते है, ( कुछ विद्वान् सूर्यास्त के बाद की 3 घडी अर्थात 1 घण्टे 12 मिनट की अवधि को प्रदोष काल मानते है)

प्रदोष काल में ही प्रदोष व्रत की पूजा होती है। ऐसी मान्यता है कि प्रदोष के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की एक साथ पूजा करने से कई जन्मों के पाप धुल जाते हैं और मन पवित्र हो जाता है।

1. प्रदोष व्रत करने के लिए साधक यानि व्रती को त्रयोदशी के दिन सूर्योदय से पहले उठना चाहिये,  स्नानादि के उपरांत भगवान शिव की उपासना करनी चाहिये ।

2. पूरे दिन इस व्रत मे आहार नही लिया जाता, अर्थात निराहार रहना होता है ।

3. पूरे दिन उपवास रखने के उपरांत सूर्योस्त से पहले पुनः स्नान करके सफेद वस्त्र धारण करे ।

4. अब ईशान कोण ( North-East ) मे शांत स्थान पर पूजा का मण्डप तैयार करे, 
पूजास्थल को शुद्ध जल से धोने के बाद गंगा जल से छीटां लगाकर, यदि संभव हो तो गाय के गोबर से लेप होना चाहिए । 

 इस मण्डप मे पांच रंगो का इस्तेमाल करते हुए कमल के पुष्प की आकृति बनाये । 
भगवान शिव की मूर्ति या चित्र को स्थापित करे 
अब प्रदोष व्रत का संकल्प हिंदी या फिर संस्कृत मे इस प्रकार से करे :-

"मम शिव प्रसाद प्राप्ति कामनया प्रदोष व्रतांगी भूतं शिवपूजनं  करिष्ये"

(भावार्थ- भगवान शिव की कृपा प्राप्ति की कामना से मैं प्रदोष व्रत के अंगभूत शिव पूजन करता हूँ)

इस प्रकार संकल्प करके माथे पर भस्म एवं चंदन का तिलक लगाकर गले मे रूदाक्ष की माला धारण करे (ललाट पर भस्म का तिलक और रूदाक्ष मे अत्यधिक मात्रा मे शिवतत्व मौजूद होने से ये भगवान शिव को प्रसन्न तथा आकृष्ट करते है )

अब निम्नलिखित मंत्र बोलकर भगवान शिव का आवाहन करे:-

।।  पिनाकपाणये नमः।।

।। ॐ शिवाय नमः ।। मंत्र से स्नान करवाये ।

।। पशुपतये नमः ।।

।। ॐ उमा महेश्वराभ्यां नमः ।।

मंत्र से गन्ध, पुष्प,धूप-दीप, तथा नैवेद्य अर्पित करे, और निवेदन करना चाहिए:-
"हे भगवन् ! आप माता पार्वती के साथ पधार कर मेरी पूजा स्वीकार कीजिये"

तत्पश्चात मंत्रजाप करने या कथा करने के उपरांत निम्नलिखित मंत्र द्वारा प्रार्थना कर सकते है :-

जयनाथ कृपासिंधो जय भक्तार्तिभंजन ।
जय दुस्तरसंसार-सागरोतारण प्रभो ॥
प्रसीद मे महाभाग संसारार्तस्य खिधतः ।
सर्वपापक्षयं कृत्वा रक्ष मां परमेश्वर ॥

इसके बाद सामर्थ्यनुसार निम्नलिखित मंत्र का जाप करे:-
ॐ नमः शिवाय  
उपरोक्त मंत्र का अत्यंत पुण्यदायी है, अतः इस मंत्र का जाप करना चाहिए ।

अंत मे ।। महादेवाय नमः।। मंत्र बोलते हुए पूजा का विसर्जन करे ।

इस दिन शिव परिवार की आराधना करना कल्याणकारी होता है। प्रदोष व्रत के दिन शिव चालीसा, ​शिव पुराण तथा शिव मंत्रों का जाप करना उत्तम माना जाता है। 

5. पूजा के विसर्जन के फौरन बाद "यानि सूर्यास्त होने के बाद प्रदोषकाल मे ही पूजन करके भोजन कर लेने का विधान है" । भोजन के उपरांत भी शिव स्मरण करे ।
(स्मरण रहें प्रदोष व्रत की मुख्य पूजा प्रदोष काल अर्थात सूर्यास्त के पश्चात छः घटी के भीतर ही की जाती है)


प्रदोष व्रत मे निषेध कर्म:-
1. प्रदोष व्रत मे शारीरिक तथा मानसिक रूप से पूर्ण रूप से शुद्धि बनाकर रखनी चाहिए।

2. प्रदोष व्रत के दिन साफ-सफाई का विशेष ख्याल रखना चाहिए, तथा नित्यकर्म तथा स्नानादि नियमो का पालन करना चाहिए। 

3. प्रदोष व्रत के दिन नये अथवा धुले हुए वस्त्र धारण करना चाहिए। इस दिन काले वस्त्र न पहनना निषेध है।  

4. इस दिन भक्तों को अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखकर क्रोध को त्यागना तथा पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक होता है। 

5. मांस-मदिरा तथा अन्य राजसिक और तामसिक पदार्थो का त्याग करके सात्विक नियमो का पालन करके केवल शाकाहार भोजन ग्रहण करें। 

गुरुवार प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा:-

इस व्रत कथा के अनुसार एक बार इंद्र और वृत्तासुर की सेना में घनघोर युद्ध हुआ। देवताओं ने दैत्य-सेना को पराजित कर नष्ट-भ्रष्ट कर डाला। यह देख वृत्तासुर अत्यंत क्रोधित हो स्वयं युद्ध को उद्यत हुआ। आसुरी माया से उसने विकराल रूप धारण कर लिया। सभी देवता भयभीत हो गुरुदेव बृहस्पति की शरण में पहूंचे। बृहस्पति महाराज बोले- पहले मैं तुम्हें वृत्तासुर का वास्तविक परिचय दे

वृत्तासुर बड़ा तपस्वी और कर्मनिष्ठ है। उसने गंधमादन पर्वत पर घोर तपस्या कर शिवजी को प्रसन्न किया। पूर्व समय में वह चित्ररथ नाम का राजा था। एक बार वह अपने विमान से कैलाश पर्वत चला गया।वहां शिवजी के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान देख वह उपहासपूर्वक बोला- 'हे प्रभो! मोह-माया में फंसे होने के कारण हम स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं किंतु देवलोक में ऐसा दृष्टिगोचर नहीं हुआ कि स्त्री आलिंगनबद्ध हो सभा में बैठे।'चित्ररथ के यह वचन सुन सर्वव्यापी शिवशंकर हंसकर बोले- 'हे राजन! मेरा व्यावहारिक दृष्टिकोण पृथक है। मैंने मृत्युदाता-कालकूट महाविष का पान किया है, फिर भी तुम साधारणजन की भांति मेरा उपहास उड़ाते हो!'

माता पार्वती क्रोधित हो चित्ररथ से संबोधित हुईं- 'अरे दुष्ट! तूने सर्वव्यापी महेश्‍वर के साथ ही मेरा भी उपहास उड़ाया है अतएव मैं तुझे वह शिक्षा दूंगी कि फिर तू ऐसे संतों के उपहास का दुस्साहस नहीं करेगा- अब तू दैत्य स्वरूप धारण कर विमान से नीचे गिर, मैं तुझे शाप देती हूं।'

जगदम्बा भवानी के अभिशाप से चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त हुआ और त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न हो वृत्तासुर बना।

गुरुदेव बृहस्पति आगे बोले- 'वृत्तासुर बाल्यकाल से ही शिवभक्त रहा है अत हे इंद्र! तुम बृहस्पति प्रदोष व्रत कर शंकर भगवान को प्रसन्न करो।'

देवराज ने गुरुदेव की आज्ञा का पालन कर बृहस्पति प्रदोष व्रत किया। गुरु प्रदोष व्रत के प्रताप से इंद्र ने शीघ्र ही वृत्तासुर पर विजय प्राप्त कर ली और देवलोक में शांति छा गई। अत: प्रदोष व्रत हर शिव भक्त को अवश्य करना चाहिए।

(समाप्त)
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आगामी लेख:-
1. 13 अप्रैल को "मेष संक्रांति-वैशाखी" पर लेख।
2. 14 अप्रैल से दो भागों मे "हनुमान जयंती" पर लेख।
3. 16 अप्रैल को "वैशाख मास" पर लेख।
4. 17 अप्रैल से धारावाहिक लेख "वास्तुशास्त्र" के आगामी भागो का प्रकाशन।
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जय श्री राम
आज का पंचांग,दिल्ली 🌹🌹🌹
मंगलवार,12.4.2022
श्री संवत 2079
शक संवत् 1944
सूर्य अयन- उत्तरायण, गोल-उत्तर गोल
ऋतुः- वसन्त ऋतुः ।
मास- चैत्र मास।
पक्ष- शुक्ल पक्ष ।
तिथि-एकादशी तिथि अगले दिन 5:04 am तक
चंद्रराशि- चंद्र कर्क राशि 8:35 am तक तदोपरान्त  सिंह राशि।
नक्षत्र- अश्लेषा नक्षत्र 8:35 am तक
योग- शूल योग 12:02 pm तक (अशुभ है)
करण- वणिज करण 4:53 pm तक
सूर्योदय- 5:59 am, सूर्यास्त 6:44 pm
अभिजित् नक्षत्र- 11:56 am से 12:47 pm तक
राहुकाल - 3:33 pm से 5:09 pm (शुभ कार्य वर्जित,दिल्ली )
दिशाशूल- पूर्व दिशा।

अप्रैल शुभ दिन:- 12 (सायं. 5 तक), 13, 14, 15, 16 (दोपहर 1 उपरांत), 17, 19 (सायं. 5 उपरांत), 21, 22 (सवेरे 9 तक), 24, 25 (दोपहर 2 तक), 26, 27 (सायं. 6 तक)
अप्रैल अशुभ दिन:- 18, 20, 23, 28, 29, 30.

भद्रा:- 12 अप्रैल 4:27 pm से 13 अप्रैल 5:03 am तक ( भद्रा मे मुण्डन, गृहारंभ, गृहप्रवेश, विवाह, रक्षाबंधन आदि शुभ काम नही करने चाहिये , लेकिन भद्रा मे स्त्री प्रसंग, यज्ञ, तीर्थस्नान, आपरेशन, मुकद्दमा, आग लगाना, काटना, जानवर संबंधी काम किए जा सकतें है।

गण्ड मूल आरम्भ:-
अश्लेषा नक्षत्र, 11 अप्रैल 6:51 am से 13 अप्रैल -मघा नक्षत्र 9:37 am तक गंडमूल रहेगें। गंडमूल नक्षत्रों मे जन्म लेने वाले बच्चो का मूलशांति पूजन आवश्यक है।

रवि योग :- 10 अप्रैल 4:31 am से 12 अप्रैल 8:35 am तक यह एक शुभ योग है, इसमे किए गये दान-पुण्य, नौकरी  या सरकारी नौकरी को join करने जैसे कायों मे शुभ परिणाम मिलते है । यह योग, इस समय चल रहे, अन्य बुरे योगो को भी प्रभावहीन करता है।
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आगामी व्रत तथा त्यौहार:-
 12 अप्रैल- कामदा एकादशी। 14 अप्रैल- प्रदोष व्रत/मेष संक्रांति। 16 अप्रैल- हनुमान जयंती/चैत्र पूर्णिमा व्रत। 19 अप्रैल- संकष्टी चतुर्थी। 26 अप्रैल-वरुथिनी एकादशी। 28 अप्रैल- प्रदोष व्रत। 29 अप्रैल- मासिक शिवरात्रि। 30 अप्रैल- वैशाख अमावस्या।
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विशेष:- जो व्यक्ति वाराणसी से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु Paytm या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है
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आपका दिन मंगलमय हो . 💐💐💐
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English Translation :-

Article :- Pradosh Vrat (Guru Pradosh Vrat)14.04.2022


 Trayodashi Tithi Begins - April 14 at 4:52 am

 Trayodashi date ends 15th April, till 3:50 am

 Pradosh Kaal (worship time) - April 14 from 6:46 pm to 9 pm



 Pradosh fast has special significance in Hinduism.  Just as there are two Ekadashi in a month, similarly Pradosh Vrat comes twice in a month on the Trayodashi Tithi of Shukla Paksha and Krishna Paksha respectively.  In this way there are 24 Pradosh fasts in a year.


 This fast is dedicated to Lord Shiva.  This fast is done by worshiping Lord Shiva, to attain the happiness of Lord Shankar, to attain longevity, to have children, happiness and prosperity and to be free from the bonds of birth and death, that is, to attain salvation and dominion.


 This fast connects the worshiper with "Dharma" and "Moksha", and removes it from "Artha" and "Kama".


 According to Skanda Purana, people who worship Shiva get freedom from sorrow, poverty, scarcity, debt and fear of death and there is a continuous increase in the attainment of wealth-grains, woman-son, happiness-good fortune.  It is believed that whoever observes this fast, and offers prayers according to the law, the blessings of Bholenath and Goddess Parvati always remain on him.  Shiva is considered the main deity of Pradosh fast.  Parvati ji is also worshiped with him.  People of any age can keep this fast.


 Pradosh Vrat is observed on Trayodashi Tithi of every month.  Their name keeps changing on the basis of the day i.e. "Var".  In other words, Pradosh Vrat comes on different days of the week, it is believed that on coming on different days of the week, according to those days, the fast gets different types of auspicious results.


 On 14th April 2022, Pradosh Vrat is coming on Thursday, it is called Thursday Pradosh.  Due to this, the planet Jupiter not only gives auspicious effects, but by doing this one also gets the blessings of the ancestors.  Often this Pradosh is done to get a son and for the destruction of enemies and dangers.  According to Shri Sutji- This is the most excellent enemy destroyer devotional fast.

 This fast is also kept for getting success from all sides.  It has been said in Hindu religious scriptures that one who observes the Guru Pradosh Trayodashi fast, gets the virtuous result equal to donating a hundred cows and this fast destroys all kinds of sufferings and sins.  Just by listening to the story of this fast, one gets the auspicious boon of opulence and victory.



 Other Significance of Pradosh Vrat:-

 All the wishes of a person are fulfilled by performing Pradosh Vrat and Shiva Puja.  Pradosh fasting brings happiness and prosperity in the family.  By the grace of Shiva, sufferings are removed and a healthy life is attained.

 According to mythological beliefs, Lord Shiva is the one to be easily pleased.  He is the beginning, he is the end.  From him there is life, from him there is death.  That is Mahakal.  Those who observe Pradosh fast on Trayodashi get freedom from diseases, happiness and prosperity in life.  Suffering and sin are destroyed.  Those people who do not have any children, those people get the happiness of children for the growth of their offspring.


 Method of fasting Pradosh :-

 Special: - Pradosh fast is worshiped from sunset to 6 Ghati i.e. 2 hours 24 minutes duration, this period is called Pradosh Kaal, (Some scholars consider the period of 3 hours after sunset i.e. 1 hour 12 minutes.  considers the time period)


 Pradosh fast is worshiped only during the Pradosh period.  It is believed that by worshiping Lord Shiva and Mother Parvati together on the day of Pradosh, the sins of many births are washed away and the mind becomes pure.


 1. To observe Pradosh Vrat, the seeker should get up before sunrise on Trayodashi, worship Lord Shiva after taking bath.


 2. Food is not taken during this fast for the whole day, that is, one has to remain fast.


 3. After fasting for the whole day, bathe again before sunset and wear white clothes.


 4. Now prepare a pavilion for worship at a quiet place in the North-East.

 After washing the place of worship with pure water, sprinkle it with Ganges water, if possible it should be coated with cow dung.


 In this mandap, using five colors, draw the shape of a lotus flower.

 Install the idol or picture of Lord Shiva

 Now make the resolution of Pradosh fast in Hindi or Sanskrit in this way :-


 "Mum Shiv Prasad Prapti Kamnaya Pradosh Vratangi Bhootam Shivpujanam Karishye"


 (Interpretation- With the desire to get the blessings of Lord Shiva, I worship Lord Shiva as part of Pradosh fast)


 In this way, after making a resolution, put a tilak of ashes and sandalwood on the forehead and wear a rosary of rudaksha around the neck.


 Now invoke Lord Shiva by reciting the following mantra:-


 ,  Pinakapanaye Namah.


 ,  Om Shivaay Namah.  Take a bath with the mantra.


 ,  Pashupataye Namah.


 ,  Om Uma Maheshwarabhayam Namah.


 Offer scent, flowers, incense-lamp, and naivedya with the mantra, and request should be made:-

 "O Lord! Come with Mother Parvati and accept my worship"


 After that after chanting the mantra or doing the story, one can pray through the following mantra:-


 Jaynath Kripsindho Jai Bhaktartibhanjan.

 Jai Dustarsansar-Sagarotaran Prabho

 Mahabhaga Sansaratsya Khidhet in Prasidh.

 Sarvapaapakshayam Kritva Rakshak Mother Parmeshwar


 After this chant the following mantra according to your ability:-

 Om Namah Shivaya

 The above mantra is very rewarding, so this mantra should be chanted.


 In the end..  Mahadevaya Namah.  While chanting the mantra immerse the worship.


 Worshiping Shiva family on this day is beneficial.  It is considered best to chant Shiva Chalisa, Shiva Purana and Shiva Mantras on the day of Pradosh fast.


 5. Immediately after the immersion of the worship, "that is, after sunset, there is a law to take food after worshiping in Pradosh Kaal".  Remember Shiva even after the meal.

 (Remember that the main worship of Pradosh Vrat is done within six hours of Pradosh period i.e. after sunset)



 Prohibited Karma in Pradosh Vrat:-

 1. During Pradosh fast one should maintain complete purification physically and mentally.


 2. Special care should be taken of cleanliness on the day of Pradosh fast, and the rules of routine work and bathing should be followed.


 3. New or washed clothes should be worn on the day of Pradosh fast.  It is prohibited not to wear black clothes on this day.


 4. On this day, it is necessary for the devotees to control their senses and give up anger and follow celibacy completely.


 5. Relinquishing meat-liquor and other rajasic and tamasic substances and follow the sattvik rules and take only vegetarian food.


 Mythology of Thursday Pradosh Vrat:-


 According to this fast story, once there was a fierce battle between the army of Indra and Vrittasura.  The gods defeated and destroyed the demon army.  Seeing this, Vrittasura became very angry and himself got ready for war.  He took a formidable form from the demonic Maya.  All the gods were frightened and reached Gurudev in the shelter of Jupiter.  Brihaspati Maharaj said - first let me give you the real introduction of Vrittasur


 Vrittasura is very ascetic and hardworking.  He pleased Shiva by doing severe penance on the Gandhamadan mountain.  In earlier times he was a king named Chitraratha.  Once he went to Mount Kailash in his plane. Seeing Mata Parvati seated there in the left limb of Shiva, he said mockingly- 'O Lord!  Because of being trapped in illusion and illusion, we remain under the control of women, but it has not been seen in Devlok that the woman should be embraced and sit in the assembly. Hearing this words of Chitrarath, the omnipresent Shivshankar laughed and said - 'O king!  My practical point of view is different.  I have drank the Death Giver-Kalkoot Mahavenom, yet you ridicule me like an ordinary person!'


 Mother Parvati got angry and addressed Chitrarath - 'Oh wicked!  You have ridiculed me as well as the omnipresent Maheshwara, so I will teach you that then you will not dare to ridicule such saints - now you fall down from the plane taking the form of a demon, I curse you.'


 Due to the curse of Jagadamba Bhavani, Chitraratha got the demon Yoni and became Vrittasura born from the excellent penance of a sage named Tvashta.


 Gurudev Brihaspati further said - 'Vritasur has been a devotee of Shiva since childhood, so O Indra!  You please Lord Shankar by fasting Brihaspati Pradosh.


 Devraj observed the Brihaspati Pradosh fast following the orders of Gurudev.  Due to the glory of Guru Pradosh Vrat, Indra soon conquered Vratasura and there was peace in Devlok.  Therefore, every Shiva devotee must observe Pradosh Vrat.


 (End)


 Next article:-

 1. Article on "Aries Sankranti-Vaisakhi" on 13th April.

 2. Article on "Hanuman Jayanti" in two parts from 14th April.

 3. Article on "Vaisakh month" on 16th April.

 4. Publication of upcoming parts of serial article "Vastu Shastra" from 17th April.


 Long live Rama

 Today's Panchang, Delhi

 Tuesday, 12.4.2022

 Shree Samvat 2079

 Shaka Samvat 1944

 Surya Ayan- Uttarayan, Round-North Round

 Rituah - the spring season.

 Month - Chaitra month.

 Paksha - Shukla Paksha.

 Tithi-Ekadashi date till 5:04 am the next day

 Moon sign - Moon sign Cancer till 8:35 am and then Leo sign.

 Nakshatra- Ashlesha Nakshatra till 8:35 am

 Yoga- Shool Yoga till 12:02 pm (inauspicious)

 Karan- Vanij Karan till 4:53 pm

 Sunrise- 5:59 am, Sunset 6:44 pm

 Abhijit Nakshatra - 11:56 am to 12:47 pm

 Rahukaal - 3:33 pm to 5:09 pm (Good work prohibited, Delhi)

 Direction – East direction.


 April Lucky Days:- 12 (till 5 pm), 13, 14, 15, 16 (after 1 pm), 17, 19 (after 5 pm), 21, 22 (till 9 am), 24, 25 (afternoon)  Till 2), 26, 27 (till 6 pm)

 April inauspicious days:- 18, 20, 23, 28, 29, 30.


 Bhadra:- 12 April 4:27 pm to 13 April 5:03 am (Shunning, housewarming, home entry, marriage, Rakshabandhan etc. should not be done in Bhadra, but in Bhadra, women affairs, yagya, pilgrimage, operation, case,  Fire, cutting, animal related work can be done.


 Gand Mool Aarambh:-

 Ashlesha Nakshatra, April 11 from 6:51 am to April 13 - Magha Nakshatra will remain Gandmool from 9:37 am.  Children born in Gandmool constellations need to worship Moolshanti.


 Ravi Yoga: - From 10 April 4:31 am to 12 April 8:35 am, this is an auspicious yoga, good results are found in the works like charity, job or joining a government job.  This yoga also neutralizes the other bad yogas that are going on at this time.


 Upcoming fasts and festivals:-

 April 12 - Kamada Ekadashi.  April 14 - Pradosh fast / Aries Sankranti.  April 16 - Hanuman Jayanti / Chaitra Purnima Vrat.  April 19 - Sankashti Chaturthi.  April 26 - Varuthini Ekadashi.  April 28 - Pradosh fast.  April 29 - Monthly Shivratri.  April 30 - Vaishakh Amavasya.


 Special:- The person who lives outside Varanasi or outside the country, he can get astrological consultation by phone, by paying the consultation fee through Paytm or Bank transfer for astrological consultation.

 Have a good day . 

कामदा एकादशी व्रत 19-04-2024

☀️ *लेख:- कामदा एकादशी, भाग-1 (19.04.2024)* *एकादशी तिथि आरंभ:- 18 अप्रैल 5:31 pm* *एकादशी तिथि समाप्त:- 19 अप्रैल 8:04 pm* *काम...