04 अप्रैल 2022

गणगौर त्यौहार महत्त्व पूजा विधि कथा व गीत।। Festival Significance Worship Method Story and Song


 त्यौहार महत्त्व पूजा विधि कथा व गीत
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भारत रंगों भरा देश है . उसमे रंग भरते है उसके , भिन्न-भिन्न गणगौरराज्य और उनकी संस्कृति . हर राज्य की संस्कृति झलकती है उसकी, वेश-भूषा से वहा के रित-रिवाजों से और वहा के त्यौहारों से . हर राज्य की अपनी, एक खासियत होती है जिनमे, त्यौहार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

भारत का एक राज्य राजस्थान, जहाँ मारवाड़ीयों की नगरी भी है और, गणगौर मारवाड़ीयों का बहुत बड़ा त्यौहार है जो, बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है ना केवल, राजस्थान बल्कि हर वो प्रदेश जहा मारवाड़ी रहते है, इस त्यौहार को पूरे रीतिरिवाजों से मनाते है . गणगौर दो तरह से मनाया जाता है . जिस तरह मारवाड़ी लोग इसे मनाते है ठीक, उसी तरह मध्यप्रदेश मे, निमाड़ी लोग भी इसे उतने ही उत्साह से मनाते है . त्यौहार एक है परन्तु, दोनों के पूजा के तरीके अलग-अलग है . जहा मारवाड़ी लोग सोलह दिन की पूजा करते है वही, निमाड़ी लोग मुख्य रूप से तीन दिन की गणगौर मनाते है।

इस वर्ष 2022 में गणगौर का त्यौहर 04 अप्रैल को मनाया जाएगा।

गणगौर पूजन का महत्व
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गणगौर एक ऐसा पर्व है जिसे, हर स्त्री के द्वारा मनाया जाता है . इसमें कुवारी कन्या से लेकर, विवाहित स्त्री दोनों ही, पूरी विधी-विधान से गणगौर जिसमे, भगवान शिव व माता पार्वती का पूजन करती है। इस पूजन का महत्व कुवारी कन्या के लिये , अच्छे वर की कामना को लेकर रहता है जबकि,विवाहित स्त्री अपने पति की दीर्घायु के लिये होता है . जिसमे कुवारी कन्या पूरी तरह से तैयार होकर और, विवाहित स्त्री सोलह श्रंगार करके पुरे, सोलह दिन विधी-विधान से पूजन करती है।

पूजन सामग्री
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जिस तरह, इस पूजन का बहुत महत्व है उसी तरह,  पूजा सामग्री का भी पूर्ण होना आवश्यक है।

पूजा सामग्री
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लकड़ी की चौकी/बाजोट/पाटा
ताम्बे का कलश
काली मिट्टी/होली की राख़
दो मिट्टी के कुंडे/गमले
मिट्टी का दीपक
कुमकुम, चावल, हल्दी, मेहन्दी, गुलाल, अबीर, काजल 
घी
फूल,दुब,आम के पत्ते
पानी से भरा कलश
पान के पत्ते
नारियल
सुपारी
गणगौर के कपडे
गेहू
बॉस की टोकनी
चुनरी का कपड़ा

उद्यापन की सामग्री
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उपरोक्त सभी सामग्री, उद्यापन मे भी लगती है परन्तु, उसके अलावा भी कुछ सामग्री है जोकि, आखरी दिन उद्यापन मे आवश्यक होती है .

सीरा (हलवा)
पूड़ी
गेहू
आटे के गुने (फल)
साड़ी
सुहाग या सोलह श्रंगार का समान आदि।

गणगौर पूजन की विधी
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मारवाड़ी स्त्रियाँ सोलह दिन की गणगौर पूजती है . जिसमे मुख्य रूप से, विवाहित कन्या शादी के बाद की पहली होली पर, अपने माता-पिता के घर या सुसराल मे, सोलह दिन की गणगौर बिठाती है . यह गणगौर अकेली नही, जोड़े के साथ पूजी जाती है . अपने साथ अन्य सोलह कुवारी कन्याओ को भी, पूजन के लिये पूजा की सुपारी देकर निमंत्रण देती है . सोलह दिन गणगौर धूम-धाम से मनाती है अंत मे, उद्यापन कर गणगौर को विसर्जित कर देती है. फाल्गुन माह की पूर्णिमा, जिस दिन होलिका का दहन होता है उसके दूसरे दिन, पड़वा अर्थात् जिस दिन होली खेली जाती है उस दिन से, गणगौर की पूजा प्रारंभ होती है . ऐसी स्त्री जिसके विवाह के बाद कि, प्रथम होली है उनके घर गणगौर का पाटा/चौकी लगा कर, पूरे सोलह दिन उन्ही के घर गणगौर का पूजन किया जाता है।

  गणगौर
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सर्वप्रथम चौकी लगा कर, उस पर साथिया बना कर, पूजन किया जाता है . जिसके उपरान्त पानी से भरा कलश, उस पर पान के पाच पत्ते, उस पर नारियल रखते है . ऐसा कलश चौकी के, दाहिनी ओर रखते है।

अब चौकी पर सवा रूपया और, सुपारी (गणेशजी स्वरूप) रख कर पूजन करते है .
फिर चौकी पर, होली की राख या काली मिट्टी से, सोलह छोटी-छोटी पिंडी बना कर उसे, पाटे/चौकी पर रखा जाता . उसके बाद पानी से, छीटे देकर कुमकुम-चावल से, पूजा की जाती है।
दीवार पर एक पेपर लगा कर, कुवारी कन्या आठ-आठ और विवाहिता सोलह-सोलह टिक्की क्रमशः कुमकुम, हल्दी, मेहन्दी, काजल की लगाती है . उसके बाद गणगौर के गीत गाये जाते है, और पानी का कलश साथ रख, हाथ मे दुब लेकर, जोड़े से सोलह बार, गणगौर के गीत के साथ पूजन करती है . तदुपरान्त गणगौर, कहानी गणेश जी की, कहानी कहती है . उसके बाद पाटे के गीत गाकर, उसे प्रणाम कर भगवान सूर्यनारायण को, जल चड़ा कर अर्क देती है।
ऐसी पूजन वैसे तो, पूरे सोलह दिन करते है परन्तु, शुरू के सात दिन ऐसे, पूजन के बाद सातवे दिन सीतला सप्तमी के दिन सायंकाल मे, गाजे-बाजे के साथ गणगौर भगवान व दो मिट्टी के, कुंडे कुमार के यहा से लाते है. अष्टमी से गणगौर की तीज तक, हर सुबह बिजोरा जो की फूलो का बनता है . उसकी और जो दो कुंडे है उसमे, गेहू डालकर ज्वारे बोये जाते है . गणगौर की जिसमे ईसर जी (भगवान शिव) – गणगौर माता (पार्वती माता) के , मालन, माली ऐसे दो जोड़े और एक विमलदास जी ऐसी कुल पांच प्रतिमाए होती है . इन सभी का पूजन होता है , प्रतिदिन, और गणगौर की तीज को उद्यापन होता है और सभी चीज़ विसर्जित होती है।

गणगौर माता की कहानी
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राजा का बोया जो-चना, माली ने बोई दुब . राजा का जो-चना बढ़ता जाये पर, माली की दुब घटती जाये . एक दिन, माली हरी-हरी घास मे, कंबल ओढ़ के छुप गया . छोरिया आई दुब लेने, दुब तोड़ कर ले जाने लगी तो, उनका हार खोसे उनका डोर खोसे . छोरिया बोली, क्यों म्हारा हार खोसे, क्यों म्हारा डोर खोसे , सोलह दिन गणगौर के पूरे हो जायेंगे तो, हम पुजापा दे जायेंगे . सोलह दिन पूरे हुए तो, छोरिया आई पुजापा देने माँ से बोली, तेरा बेटा कहा गया . माँ बोली वो तो गाय चराने गयों है, छोरियों ने कहा ये, पुजापा कहा रखे तो माँ ने कहा, ओबरी गली मे रख दो . बेटो आयो गाय चरा कर, और माँ से बोल्यो माँ छोरिया आई थी , माँ बोली आई थी, पुजापा लाई थी हा बेटा लाई थी, कहा रखा ओबरी मे . ओबरी ने एक लात मारी, दो लात मारी ओबरी नही खुली , बेटे ने माँ को आवाज लगाई और बोल्यो कि, माँ-माँ ओबरी तो नही खुले तो, पराई जाई कैसे ढाबेगा . माँ पराई जाई तो ढाब लूँगा, पर ओबरी नी खुले . माँ आई आख मे से काजल, निकाला मांग मे से सिंदुर निकाला , चिटी आंगली मे से मेहन्दी निकाली , और छीटो दियो ,ओबरी खुल गई . उसमे, ईश्वर गणगौर बैठे है ,सारी चीजों से भण्डार भरिया पड़िया है . है गणगौर माता , जैसे माली के बेटे को टूटी वैसे, सबको टूटना . कहता ने , सुनता ने , सारे परिवार ने।

गणगौर पूजते समय का गीत
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यह गीत शुरू मे एक बार बोला जाता है और गणगौर पूजना प्रारम्भ किया जाता है 

प्रारंभ का गीत
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गोर रे गणगौर माता खोल ये  किवाड़ी

बाहर उबी थारी पूजन वाली,

पूजो ये पुजारन माता कायर मांगू

अन्न मांगू धन मांगू  लाज मांगू लक्ष्मी मांगू

राई सी भोजाई मंगू ।

कान कुवर सो बीरो मांगू इतनो परिवार मांगू।

उसके बाद सोलह बार गणगौर के गीत से गणगौर पूजी जाती है।

सोलह बार पूजन का गीत
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गौर-गौर गणपति ईसर पूजे, 

पार्वती का आला टीला, 

गोर का सोना का टीला .

टीला दे टमका दे, राजा रानी बरत करे .

करता करता, आस आयो मास

आयो, खेरे खांडे लाडू लायो,

लाडू ले बीरा ने दियो, 

बीरों ले गटकायों .

साडी मे सिंगोड़ा, बाड़ी मे बिजोरा,

सान मान सोला, ईसर गोरजा .

दोनों को जोड़ा ,रानी पूजे राज मे,

दोनों का सुहाग मे .

रानी को राज घटतो जाय, म्हारों सुहाग बढ़तों जाय

किडी किडी किडो दे,

किडी थारी जात दे,

जात पड़ी गुजरात दे,

गुजरात थारो पानी आयो,

दे दे खंबा पानी आयो,

आखा फूल कमल की डाली,

मालीजी दुब दो, दुब की डाल दो

डाल की किरण, दो किरण मन्जे

एक,दो,तीन,चार,पांच,छ:,सात,आठ,नौ,दस,ग्यारह,बारह,

तेरह, चौदह,पंद्रह,सोलह।

सोलह बार पूरी गणगौर पूजने के बाद पाटे के गीत गाते है

पाटा धोने का गीत
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पाटो धोय पाटो धोय, 

बीरा की बहन पाटो धो,

पाटो ऊपर पीलो पान, 

म्हे जास्या बीरा की जान .

जान जास्या, पान जास्या, 

बीरा ने परवान जास्या

अली गली मे, साप जाये, 

भाभी तेरो बाप जाये .

अली गली गाय जाये, भाभी तेरी माय जाये .

दूध मे डोरों , म्हारों भाई गोरो

खाट पे खाजा , म्हारों भाई राजा

थाली मे जीरा म्हारों भाई हीरा

थाली मे है, पताशा बीरा करे तमाशा

ओखली मे धानी छोरिया की सासु कानी ..

ओडो खोडो का गीत –

ओडो छे खोडो छे घुघराए , रानियारे माथे मोर .

ईसरदास जी, गोरा छे घुघराए रानियारे माथे मोर ..

(इसी तरह अपने घर वालो के नाम लेना है )

गणपति जी की कहानी
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एक मेढ़क था, और एक मेंढकी थी . दोनों जनसरोवर की पाल पर रहते थे . मेंढक दिन भर टर्र टर्र करता रहता था . इसलिए मेंढकी को, गुस्सा आता और मेंढक से बोलती, दिन भर टू टर्र टर्र क्यों करता है . जे विनायक, जे विनायक करा कर . एक दिन राजा की दासी आई, और दोनों जना को बर्तन मे, डालकर ले गई और, चूल्हे पर चढ़ा दिया . अब दोनों खदबद खदबद सीजने लगे, तब मेंढक बोला मेढ़की, अब हम मार जायेंगे . मेंढकी गुस्से मे, बोली की मरया मे तो पहले ही थाने बोली कि ,दिन भर टर्र टर्र करना छोड़ दे . मेढको बोल्यो अपना उपर संकट आयो, अब तेरे विनायक जी को, सुमर नही किया तो, अपन दोनों मर जायेंगे . मेढकी ने जैसे ही सटक विनायक ,सटक विनायक का सुमिरन किया इतना मे, डंडो टूटयों हांड़ी फुट गई . मेढक व मेढकी को, संकट टूटयों दोनों जन ख़ुशी ख़ुशी सरोवर की, पाल पर चले गये . हे विनायकजी महाराज, जैसे मेढ़क मेढ़की का संकट मिटा वैसे सबका संकट मिटे . अधूरी हो तो, पूरी कर जो,पूरी हो तो मान राखजो।

गणगौर अरग के गीत
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पूजन के बाद, सूर्यनारायण भगवान को जल चढा कर गीत गाया जाता है।

अरग का गीत
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अलखल-अलखल नदिया बहे छे

यो पानी कहा जायेगो

आधा ईसर न्हायेगो

सात की सुई पचास का धागा

सीदे रे दरजी का बेटा

ईसरजी का बागा

सिमता सिमता दस दिन लग्या

ईसरजी थे घरा पधारों गोरा जायो,

बेटो अरदा तानु परदा

हरिया गोबर की गोली देसु

मोतिया चौक पुरासू

एक,दो,तीन,चार,पांच,छ:,सात,आठ,नौ,दस,ग्यारह,बारह,

तेरह, चौदह,पंद्रह,सोलह .

गणगौर को पानी पिलाने का गीत
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सप्तमी से, गणगौर आने के बाद प्रतिदिन तीज तक (अमावस्या छोड़ कर) शाम मे, गणगौर घुमाने ले जाते है . पानी पिलाते और गीत गाते हुए, मुहावरे व दोहे सुनाते है।

पानी पिलाने का गीत
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म्हारी गोर तिसाई ओ राज घाटारी मुकुट करो

बिरमादासजी राइसरदास ओ राज घाटारी मुकुट करो

म्हारी गोर तिसाई ओर राज

बिरमादासजी रा कानीरामजी ओ राज घाटारी

मुकुट करो म्हारी गोर तिसाई ओ राज

म्हारी गोर ने ठंडो सो पानी तो प्यावो ओ राज घाटारी मुकुट करो ..

(इसमें परिवार के पुरुषो के नाम क्रमशः लेते जायेंगे)

गणगौर उद्यापन की विधी
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सोलह दिन की गणगौर के बाद, अंतिम दिन जो विवाहिता की गणगौर पूजी जाती है उसका उद्यापन किया जाता है .

विधी
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आखरी दिन गुने(फल) सीरा , पूड़ी, गेहू गणगौर को चढ़ाये जाते है .
आठ गुने चढा कर चार वापस लिये जाते है।
गणगौर वाले दिन कवारी लड़किया और ब्यावली लड़किया दो बार गणगौर का पूजन करती है एक तो प्रतिदिन वाली और दूसरी बार मे अपने-अपने घर की परम्परा के अनुसार चढ़ावा चढ़ा कर पुनः पूजन किया जाता है उस दिन ऐसे दो बार पूजन होता है।
दूसरी बार के पूजन से पहले ब्यावाली स्त्रिया चोलिया रखती है ,जिसमे पपड़ी या गुने(फल) रखे जाते है . उसमे सोलह फल खुद के,सोलह फल भाई के,सोलह जवाई की और सोलह फल सास के रहते है .
चोले के उपर साड़ी व सुहाग का समान रखे . पूजा करने के बाद चोले पर हाथ फिराते है।
शाम मे सूरज ढलने से पूर्व गाजे-बाजे से गणगौर को विसर्जित करने जाते है और जितना चढ़ावा आता है उसे कथानुसार माली को दे दिया जाता है।
गणगौर विसर्जित करने के बाद घर आकर पांच बधावे के गीत गाते है।
नोट – गणगौर के बहुत से, गीत और दोहे होते है . हर जगह अपनी परम्परानुसार, पूजन और गीत जाये जाते है। जो प्रचलित है उसे, हम अपने अनुसार डाल रहे है। निमाड़ी गणगौर सिर्फ तीन दिन ही पूजी जाती है . जबकि राजस्थान मे, मारवाड़ी गणगौर प्रचलित है जो, झाकियों के साथ निकलती है ।


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English Translation :-

Festival Significance Worship Method Story and Song

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 India is a country full of colours.  Colors fill it, different Gangaur states and their culture.  The culture of every state is reflected in its dress, its customs and its festivals.  Each state has its own specialty, in which the festival plays an important role.


 Rajasthan, a state of India, where is also the city of Marwaris and Gangaur is a big festival of Marwaris, which is celebrated with great pomp, not only Rajasthan but every state where Marwaris live, celebrates this festival with full customs.  Is .  Gangaur is celebrated in two ways.  Just as Marwari people celebrate it, similarly in Madhya Pradesh, Nimadi people also celebrate it with equal enthusiasm.  The festival is the same but the methods of worship of both are different.  Where Marwari people worship for sixteen days, Nimadi people mainly celebrate Gangaur for three days.


 This year in 2022, the festival of Gangaur will be celebrated on 04 April.


 Importance of Gangaur Pooja

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 Gangaur is one such festival which is celebrated by every woman.  In this, from the virgin girl to the married woman, Gangaur worships Lord Shiva and Mother Parvati with full rituals.  The importance of this worship is related to the wish of a good groom for a virgin girl, whereas, a married woman is for the longevity of her husband.  In which the virgin girl is fully prepared and the married woman performs sixteen adornments and worships it for sixteen days.


 worship material

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 Just as this worship has a lot of importance, in the same way, it is also necessary to complete the worship material.


 Worship material

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 wooden post/bajot/pata

 copper urn

 Black soil / Holi ash

 two earthen pots

 kerosene lamp

 Kumkum, Rice, Turmeric, Mehndi, Gulal, Abir, Kajal

 Ghee

 Mango leaves

 vase full of water

 betel leaves

 Coconut

 Betel

 gangaur clothes

 wheat

 boss token

 chunri cloth


 material for cultivation

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 All the above materials are also used in Udyapan, but apart from that, there are some materials which are required in the last day of Udyapan.


 Sera (pudding)

 Poori

 wheat

 Flour Guna (fruit)

 Sari

 Suhag or sixteen adornments etc.


 Method of worshiping Gangaur

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 Marwari women worship Gangaur for sixteen days.  In which mainly, the married girl spends sixteen days' Gangaur on the first Holi after marriage, in her parents' house or in-laws' house.  This Gangaur is not worshiped alone, it is worshiped with a couple.  Along with her, she also invites other sixteen virgin girls for worship by giving them a betel nut for worship.  Gangaur celebrates sixteen days with great pomp, in the end, after doing Udyapan, immerses Gangaur.  On the second day of the full moon of the month of Falgun, the day Holika is burnt, Padwa, that is, from the day Holi is played, the worship of Gangaur begins.  Gangaur is worshiped for the whole sixteen days by putting a pata/post of Gangaur in the house of such a woman, after the marriage that is the first Holi.


 Gangaur

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 First of all, worship is done by putting a post, making companions on it.  After which an urn filled with water, five betel leaves and coconut are placed on it.  Such a Kalash is kept on the right side of the post.


 Now worshiping by keeping a quarter of a rupee and betel nut (Ganeshji's form) at the outpost.

 Then on the post, with Holi ashes or black soil, sixteen small pins were made and kept on the post.  After that with water, sprinkled with kumkum-rice, worship is done.

 By putting a paper on the wall, the unmarried girl applies eight-eight and married sixteen-sixteen tikkis of kumkum, turmeric, mehndi, kajal respectively.  After that the songs of Gangaur are sung, and with the urn of water, carrying a urn in hand, in pairs, sixteen times, worships with the song of Gangaur.  Thereafter Gangaur, the story of Ganesha, tells the story.  After that, after singing the song of Pate, bowing to him, gives ark to Lord Suryanarayan by offering water.

 Although such worship is done for the whole sixteen days, but, for the first seven days, after the worship, on the seventh day, on the day of Sitala Saptami, in the evening, Gangaur God and two clays, with musical instruments, are brought from the place of Kunde Kumar.  From Ashtami to Gangaur Teej, every morning Bijora which is made of flowers.  Jowar is sown by pouring wheat into it and the two cisterns.  There are total five such idols of Gangaur in which Isar ji (Lord Shiva) – Gangaur Mata (Parvati Mata), Malan, Mali, two such pairs and one Vimaldas ji.  All these are worshiped daily, and Gangaur Teej is celebrated and everything is immersed.


 Story of Gangaur Mata

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 The king's sown gram, the gardener sowed dub.  The king's gram increases, but the gardener's sorrow decreases.  One day, the gardener hid in the green grass, covered with a blanket.  If the girl came to take her coat, break her coat and take it away, then lose her necklace, find her door.  Choria said, why do you lose your necklace, why you lose your door, if sixteen days of Gangaur are completed, then we will give worship.  When the sixteen days were over, Choriya came and said to her mother that she was called your son.  Mother said, she has gone to graze the cow, the girls said this, where to keep the pujapa, then the mother said, keep it in the Obri street.  Beto came after grazing the cow, and speaking to the mother, mother had come, mother had come, she had brought worship, had brought her son, where was she kept in Obari.  Obari kicked one, kicked two, Obari did not open, the son called his mother and said that, if the mother-mother does not open the obari, how will the parai jai dhabega.  If the mother is alien, I will take a dhaba, but the obari ni open.  Mother came, took out kajal from the eyes, took out vermilion from the demand, took out the mehndi from the chitti, and chito diya, the obri opened.  In it, Lord Gangaur is sitting, the store is full of all things.  It is Gangaur Mata, just like the gardener's son is broken, everyone is broken.  Says, listens, whole family.


 Gangaur Worship Song

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 This song is sung once in the beginning and Gangaur Puja is started.


 opening song

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 Gore re gangaur mata khol ye kiwadi


 Outside Ubi Thari Poojan,


 Worship this priest, mother will ask for a coward


 Ask for food, ask for money, ask for shame, ask for Lakshmi


 Rice Bhojai Mangu.


 Kan kuwar so bero mangu so many family mangu.


 After that Gangaur is worshiped sixteen times with the song of Gangaur.


 sixteen times worship song

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 Ganpati Isar worship carefully,


 Parvati's High Mound,


 Gore's gold mound.


 Tila de tamka de, let the king and queen take care of you.


 does, aas come month


 Come, bring khre khande ladoo,


 Ladu Le Bira gave,


 Take sweets.


 Singoda in saree, Bijora in bari,


 San Mann Sola, Isar Gorja.


 Added both, in queen worship Raj,


 In love of both.


 May the queen's kingdom decrease, the marriages may increase.


 kiddie kiddo kiddo de,


 kiddie thari jaat de,


 Let Gujarat fall,


 Gujarat Tharo water come,


 Give me the pillar water,


 Akha flower lotus branch,


 Maliji give me a boon, put a blanket on her


 two beams


 One, two, three, four, five, six, seven, eight, nine, ten, eleven, twelve,


 Thirteen, fourteen, fifteen, sixteen.


 After worshiping the whole Gangaur sixteen times, they sing the song of Pate.


 paata wash song

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 pato wash pato wash,


 Beera's sister Pato Dho,


 Pato Up Yellow Paan,


 Mhe Jasya Beera's life.


 Jan jasya, paan jasya,


 Beera ne parwan jasya


 Ali in the street, go to the snake,


 Sister-in-law, your father goes.


 Ali Gali Gay Jaye, Sister-in-law Teri Mai Jaye.


 Strings in milk, Mharon Bhai Goro


 Khaja on cot, Mharon Bhai Raja


 Jeera in the plate, brother diamond


 It is in the plate, the addressee is doing a spectacle


 Dhani Chhoria's mother-in-law Kani in Okhli..


 Song of Odo Khodo –


 Odo chhe khodo che ghughraye, Raniare forehead peacock.


 Isardas ji, gora chhe ghugraye Raniare forehead peacock..


 (Similarly you have to take the names of your family members)


 story of ganpati ji

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 There was a frog, and there was a frog.  Both lived on the sails of Janasarovar.  The frog used to turret all day long.  That's why the frog would get angry and talk to the frog, why does it turr for the whole day.  By making J Vinayak, J Vinayak.  One day the king's maid came, and put both the people in the pot, took them and put them on the stove.  Now both the smelly seasons started, then the frog said to the frog, now we will kill.  The frog got angry, said that in the death of the police station, it was said that, stop torment all day long.  Tell the frog that trouble should come upon you, now your Vinayak ji, if you do not summarise, both of you will die.  As soon as the frog recited Satak Vinayak, Satak Vinayak, the stick broke, the hand broke.  To the frog and the frog, the trouble broke out, both the people happily went on the sail of the lake.  O Vinayakji Maharaj, just as the trouble of the frog and the frog is eradicated, so does the trouble of all.  If it is incomplete, then complete it, if it is complete, then honor it.


 Songs of Gangaur Arg

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 After the worship, a song is sung by offering water to Lord Suryanarayan.


 song of arg

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 Alkhal-Alkhal river flows


 where is yo water


 half aisar nhyego


 seven needle fifty thread


 Side Re Tailor's son


 Isarji's Garden


 Simta simta ten days lagya


 Isarji the house should go white,


 Beto Arda Tanu Parda


 Hariya Gobar Ki Goli Desu


 Motia Chowk Purasu


 One, two, three, four, five, six, seven, eight, nine, ten, eleven, twelve,


 Thirteen, fourteen, fifteen, sixteen.


 Gangaur water song

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 From Saptami, after coming to Gangaur, every day till Teej (except new moon) in the evening, Gangaur is taken for a walk.  Drinking water and singing songs, reciting idioms and couplets.


 water song

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 Do Mhari Gore Tisai O Raj Ghatari Mukut


 Do birmadasji raisardas o raj Ghatari crown


 mhari gore tisai and raj


 Birmadasji Ra Kaniramji O Raj Ghatari


 Do the crown, my gore tisai o raj


 My gore has cooled down so water, then do pyavo o Raj Ghatari crown.


 (In this the names of the men of the family will be taken respectively)


 Method of Gangaur Udyapan

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 After sixteen days of Gangaur, on the last day Gangaur is worshipped for the married woman.


 method

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 On the last day Guna (fruits) sera, puri, wheat are offered to Gangaur.

 Four are taken back after being raised eight times.

 On the day of Gangaur, Kawari girls and Byawali girls worship Gangaur twice, one every day and the second time, according to the tradition of their respective homes, they are worshiped again by making offerings on that day.

 Before worshiping for the second time, the married woman keeps cholia, in which papdi or gune (fruits) are kept.  In it, sixteen fruits are of his own, sixteen fruits of his brother, sixteen fruits of youth and sixteen fruits of mother-in-law.

 Keep a sari and honey on top of the chola.  After worshiping, they move their hands on the chola.

 In the evening, before the setting of the sun, they go to immerse Gangaur with gaiety and the offerings that come are given to the gardener as per the legend.

 After immersing Gangaur, they come home and sing five songs of congratulations.

 Note – There are many songs and couplets of Gangaur.  Everywhere according to its tradition, worship and songs are performed.  Whatever is prevalent, we are putting it according to us.  Nimadi Gangaur is worshiped only for three days.  Whereas in Rajasthan, Marwari Gangaur is prevalent, which comes out with Jhakis.

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