हिन्दू नववर्ष (गुड़ी पड़वा) विशेष
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गुड़ी पड़वा 'हिन्दू नववर्ष' के रूप में पूरे भारत में मनाई जाती है। चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को "गुड़ी पड़वा" या "वर्ष प्रतिपदा" या "उगादि" (युगादि) कहा जाता है। इस दिन सूर्य, नीम की पत्तियाँ, अर्ध्य, पूरनपोली, श्रीखंड और ध्वजा पूजन का विशेष महत्त्व होता है। माना जाता है कि चैत्र माह से हिन्दूओं का नववर्ष आरंभ होता है। सूर्योपासना के साथ आरोग्य, समृद्धि और पवित्र आचरण की कामना की जाती है। गुड़ी पड़वा के दिन घर-घर में विजय के प्रतीक स्वरूप गुड़ी सजाई जाती है। उसे नवीन वस्त्राभूषण पहना कर शक्कर से बनी आकृतियों की माला पहनाई जाती है। पूरनपोली और श्रीखंड का नैवेद्य चढ़ा कर नवदुर्गा, श्रीरामचन्द्र एवं उनके भक्त हनुमान की विशेष आराधना की जाती है।
हिन्दू नववर्ष का प्रारम्भिक दिन'गुड़ी पड़वा' के अवसर पर लोग अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं, द्वार पर रंगोली बनाते हैं और दरवाज़ों को आम की पत्तियों व गेंदे के फूलों से सजाते हैं। इस दिन घरों के आगे एक-एक 'गुड़ी' या झंडा रखा जाता है और उसके साथ स्वास्तिक चिह्न वाला एक बर्तन व रेशम का कपड़ा भी रखा जाता है। लोग पारम्परिक वस्त्र पहनते हैं। महिलाएँ नौ गज लम्बी साड़ी पहनती हैं। वैसे तो पौराणिक रूप से गुड़ी पड़वा का अलग महत्त्व है, लेकिन प्राकृतिक रूप से इसे समझा जाए तो सूर्य ही सृष्टि के पालनहार हैं। अत: उनके प्रचंड तेज को सहने की क्षमता पृथ्वीवासियों में उत्पन्न हो, ऐसी कामना के साथ सूर्य की अर्चना की जाती है। इस दिन 'सुंदरकांड', 'रामरक्षास्तोत्र' और देवी भगवती के मंत्र जाप का विशेष महत्त्व है। हमारी भारतीय संस्कृति और ऋषियों-मुनियों ने 'गुड़ी पड़वा' अर्थात् चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से 'नववर्ष' का आरंभ माना है। 'गुड़ी पड़वा' पर्व धीरे-धीरे औपचारिक होती चली जा रही है, लेकिन इसका व्यापक प्रचार-प्रसार नहीं हो पाया है।
अर्थ तथा महत्त्व
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'गुड़ी' का अर्थ होता है- 'विजय पताका'। कहा जाता है कि इसी दिन ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसी दिन से नया संवत्सर भी प्रारम्भ होता है। अत: इस तिथि को 'नवसंवत्सर' भी कहते हैं। कहा जाता है कि ब्रह्मा ने सूर्योदय होने पर सबसे पहले चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को सृष्टि की संरचना शुरू की। उन्होंने इस प्रतिपदा तिथि को 'प्रवरा' अथवा 'सर्वोत्तम तिथि' कहा था। इसलिए इसको सृष्टि का प्रथम दिवस भी कहते हैं। इस दिन से संवत्सर का पूजन, नवरात्र का घटस्थापन, ध्वजारोपण, वर्षेश का फल पाठ आदि विधि-विधान किए जाते हैं। चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा वसंत ऋतु में आती है। इस ऋतु में सम्पूर्ण सृष्टि में सुन्दर छटा बिखर जाती है।
गुड़ी पड़वा का मुहूर्त
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1.👉 चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में जिस दिन सूर्योदय के समय प्रतिपदा हो, उस दिन से नव संवत्सर आरंभ होता है।
2.👉 यदि प्रतिपदा दो दिन सूर्योदय के समय पड़ रही हो तो पहले दिन ही गुड़ी पड़वा मनाते हैं।
3.👉 यदि सूर्योदय के समय किसी भी दिन प्रतिपदा न हो, तो तो नव-वर्ष उस दिन मनाते हैं जिस दिन प्रतिपदा का आरंभ व अन्त हो। अधिक मास होने की स्थिति में
निम्नलिखित नियम के अनुसार गुड़ी पड़वा मनाते हैं।
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प्रत्येक 32 माह, 16 दिन और 8 घटी के बाद वर्ष में अधिक मास जोड़ा जाता है। अधिक मास होने के बावजूद प्रतिपदा के दिन ही नव संवत्सर आरंभ होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि अधिक मास भी मुख्य महीने का ही अंग माना जाता है। इसलिए मुख्य चैत्र के अतिरिक्त अधिक मास को भी नव सम्वत्सर का हिस्सा मानते हैं।
गुडी पडवा की पूजा-विधि
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निम्न विधि को सिर्फ़ मुख्य चैत्र में ही किए जाने का विधान है–
• नव वर्ष फल श्रवण (नए साल का भविष्यफल जानना)
• तैल अभ्यंग (तैल से स्नान)
• निम्ब-पत्र प्राशन (नीम के पत्ते खाना)
• ध्वजारोपण
• चैत्र नवरात्रि का आरंभ
• घटस्थापना
संकल्प के समय नव वर्ष नामग्रहण (नए साल का नाम रखने की प्रथा) को चैत्र अधिक मास में ही शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जा सकता है। इस संवत्सर का नाम परिधावी है तथा वर्ष 2078 है। साथ ही यह श्री शालीवाहन शकसंवत 1943 भी है और इस शक संवत का नाम राक्षस है।
नव संवत्सर का राजा (वर्षेश)
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नए वर्ष के प्रथम दिन के स्वामी को उस वर्ष का स्वामी भी मानते हैं। 2022 में हिन्दू नव वर्ष शनिवार से आरंभ हो रहा है, अतः नए सम्वत् का स्वामी शनि है।
गुड़ी पड़वा के पूजन-मंत्र
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गुडी पडवा पर पूजा के लिए आगे दिए हुए मंत्र पढ़े जा सकते हैं। कुछ लोग इस दिन व्रत-उपवास भी करते हैं।
प्रातः व्रत संकल्प
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ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्रह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे नल नामसंवत्सरे चैत्रशुक्ल प्रतिपदि अमुकवासरे अमुकगोत्रः अमुकनामाऽहं प्रारभमाणस्य नववर्षस्यास्य प्रथमदिवसे विश्वसृजः श्रीब्रह्मणः प्रसादाय व्रतं करिष्ये।
शोडषोपचार पूजा संकल्प
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ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्रह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे अमुकनामसंवत्सरे चैत्रशुक्ल प्रतिपदि अमुकवासरे अमुकगोत्रः अमुकनामाऽहं प्रारभमाणस्य नववर्षस्यास्य प्रथमदिवसे विश्वसृजो भगवतः श्रीब्रह्मणः षोडशोपचारैः पूजनं करिष्ये।
पूजा के बाद व्रत रखने वाले व्यक्ति को इस मंत्र का जाप करना चाहिए–
ॐ चतुर्भिर्वदनैः वेदान् चतुरो भावयन् शुभान्।
ब्रह्मा मे जगतां स्रष्टा हृदये शाश्वतं वसेत्।।
गुड़ी पड़वा मनाने की विधि
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1. प्रातःकाल स्नान आदि के बाद गुड़ी को सजाया जाता है। लोग घरों की सफ़ाई करते हैं। गाँवों में गोबर से घरों को लीपा जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन अरुणोदय काल के समय अभ्यंग स्नान अवश्य करना चाहिए। सूर्योदय के तुरन्त बाद गुड़ी की पूजा का विधान है। इसमें अधिक देरी नहीं करनी चाहिए।
2. चटख रंगों से सुन्दर रंगोली बनाई जाती है और ताज़े फूलों से घर को सजाते हैं।
3. नए व सुन्दर कपड़े पहनकर लोग तैयार हो जाते हैं। आम तौर पर मराठी महिलाएँ इस दिन नौवारी (9 गज लंबी साड़ी) पहनती हैं और पुरुष केसरिया या लाल पगड़ी के साथ कुर्ता-पजामा या धोती-कुर्ता पहनते हैं।
4. परिजन इस पर्व को इकट्ठे होकर मनाते हैं व एक-दूसरे को नव संवत्सर की बधाई देते हैं।
5. इस दिन नए वर्ष का भविष्यफल सुनने-सुनाने की भी परम्परा है।
6. पारम्परिक तौर पर मीठे नीम की पत्तियाँ प्रसाद के तौर पर खाकर इस त्यौहार को मनाने की शुरुआत की जाती है। आम तौर पर इस दिन मीठे नीम की पत्तियों, गुड़ और इमली की चटनी बनायी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इससे रक्त साफ़ होता है और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इसका स्वाद यह भी दिखाता है कि चटनी की ही तरह जीवन भी खट्टा-मीठा होता है।
7. गुड़ी पड़वा पर श्रीखण्ड, पूरन पोळी, खीर आदि पकवान बनाए जाते हैं।
8. शाम के समय लोग लेज़िम नामक पारम्परिक नृत्य भी करते हैं।
गुड़ी कैसे लगाएँ
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1. जिस स्थान पर गुड़ी लगानी हो, उसे भली-भांति साफ़ कर लेना चाहिए।
2. उस जगह को पवित्र करने के लिए पहले स्वस्तिक चिह्न बनाएँ।
3. स्वस्तिक के केन्द्र में हल्दी और कुमकुम अर्पण करें।
विभिन्न स्थलों में गुड़ी पड़वा आयोजन
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देश में अलग-अलग जगहों पर इस पर्व को भिन्न-भिन्न नामों से मनाया जाता है।
1. गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय इसे संवत्सर पड़वो नाम से मनाता है।
2. कर्नाटक में यह पर्व युगाड़ी नाम से जाना जाता है।
3. आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना में गुड़ी पड़वा को उगाड़ी नाम से मनाते हैं।
4. कश्मीरी हिन्दू इस दिन को नवरेह के तौर पर मनाते हैं।
5. मणिपुर में यह दिन सजिबु नोंगमा पानबा या मेइतेई चेइराओबा कहलाता है।
6. इस दिन चैत्र नवरात्रि भी आरम्भ होती है।
इस दिन महाराष्ट्र में लोग गुड़ी लगाते हैं, इसीलिए यह पर्व गुडी पडवा कहलाता है। एक बाँस लेकर उसके ऊपर चांदी, तांबे या पीतल का उलटा कलश रखा जाता है और सुन्दर कपड़े से इसे सजाया जाता है। आम तौर पर यह कपड़ा केसरिया रंग का और रेशम का होता है। फिर गुड़ी को गाठी, नीम की पत्तियों, आम की डंठल और लाल फूलों से सजाया जाता है।
गुड़ी को किसी ऊँचे स्थान जैसे कि घर की छत पर लगाया जाता है, ताकि उसे दूर से भी देखा जा सके। कई लोग इसे घर के मुख्य दरवाज़े या खिड़कियों पर भी लगाते हैं।
गुड़ी का महत्व
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👉 कहा जाता है कि चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में अवतार लिया था। सूर्य में अग्नि और तेज हैं, चन्द्रमा में शीतलता। शान्ति और समृद्धि का प्रतीक सूर्य और चन्द्रमा के आधार पर ही सायन गणना की उत्पत्ति हुई है। इससे ऐसा सामंजस्य बैठ जाता है कि तिथि वृद्धि, तिथि क्षय, अधिक मास, क्षय मास आदि व्यवधान उत्पन्न नहीं कर पाते। तिथि घटे या बढ़े, लेकिन 'सूर्य ग्रहण' सदैव अमावस्या को होगा और 'चन्द्र ग्रहण' सदैव पूर्णिमा को ही होगा।
👉 यह भी मान्यता है कि ब्रह्मा ने वर्ष प्रतिपदा के दिन ही सृष्टि की रचना की थी। विष्णु भगवान ने वर्ष प्रतिपदा के दिन ही प्रथम जीव अवतार (मत्स्यावतार) लिया था।माना जाता है कि शालिवाहन ने शकों पर विजय आज के ही दिन प्राप्त की थी। इसलिए 'शक संवत्सर' प्रारंभ हुआ।
👉 मराठी भाषियों की एक मान्यता यह भी है कि मराठा साम्राज्य के अधिपति छत्रपति शिवाजी महाराज ने वर्ष प्रतिपदा के दिन ही 'हिन्दू पद पादशाही' का भगवा विजय ध्वज लगाकर हिन्दू साम्राज्य की नींव रखी थी।
👉 चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएँ फलते-फूलते हैं। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है। जीवन का मुख्य आधार वनस्पतियों को सोमरस चंद्रमा ही प्रदान करता है। इसे औषधियों और वनस्पतियों का राजा कहा गया है। इसीलिए इस दिन को वर्षारंभ माना जाता है।
👉 कई लोगों की मान्यता है कि इसी दिन भगवान राम ने बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई थी। बाली के त्रास से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर ध्वज (गुडियाँ) फहराए। आज भी घर के आँगन में गुड़ी खड़ी करने की प्रथा महाराष्ट्र में प्रचलित है। इसीलिए इस दिन को 'गुड़ी पडवा' नाम दिया गया। महाराष्ट्र में इस दिन पूरनपोली या मीठी रोटी बनाई जाती है। इसमें जो चीजें मिलाई जाती हैं, वे हैं- गुड़, नमक, नीम के फूल, इमली और कच्चा आम। गुड़ मिठास के लिए, नीम के फूल कड़वाहट मिटाने के लिए और इमली व आम जीवन के खट्टे-मीठे स्वाद चखने का प्रतीक होती है।
👉 'नवसंवत्सर' प्रारम्भ होने पर भगवान की पूजा करके प्रार्थना करनी चाहिए- "हे भगवान! आपकी कृपा से मेरा वर्ष कल्याणमय हो, सभी विघ्न बाधाएँ नष्ट हों। दुर्गा की पूजा के साथ नूतन संवत् की पूजा करें। घर को वन्दनवार से सजाकर पूजा का मंगल कार्य संपन्न करें। कलश स्थापना और नए मिट्टी के बरतन में जौ बोएँ और अपने घर में पूजा स्थल में रखें। स्वास्थ्य को अच्छा रखने के लिए नीम के पेड़ की कोंपलों के साथ मिस्री खाने का भी विधान है। इससे रक्त से संबंधित बीमारी से मुक्ति मिलती है।
👉 गुड़ी को धर्म-ध्वज भी कहते हैं; अतः इसके हर हिस्से का अपना विशिष्ट अर्थ है–उलटा पात्र सिर को दर्शाता है जबकि दण्ड मेरु-दण्ड का प्रतिनिधित्व करता है।
👉 किसान रबी की फ़सल की कटाई के बाद पुनः बुवाई करने की ख़ुशी में इस त्यौहार को मनाते हैं। अच्छी फसल की कामना के लिए इस दिन वे खेतों को जोतते भी हैं।
आप सभी सनातन धर्म प्रेमियों को भारतीय नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
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English Translation :-
Hindu New Year (Gudi Padwa) Special 2022
Gudi Padwa is celebrated all over India as 'Hindu New Year'. The Pratipada of Shukla Paksha in Chaitra month is called "Gudi Padwa" or "Varsha Pratipada" or "Ugadi" (Yugadi). On this day Sun, neem leaves, Ardhya, Puranpoli, Shrikhand and Dhwaja worship have special significance. It is believed that the Hindu New Year begins from the month of Chaitra. Health, prosperity and pious conduct are prayed for with Suryapasana. On the day of Gudi Padwa, Gudi is decorated in every household as a symbol of victory. She is dressed in new clothes and is garlanded with figures made of sugar. Special worship is done to Navdurga, Shri Ramchandra and their devotee Hanuman by offering Naivedya of Puranpoli and Shrikhand.
On the occasion of 'Gudi Padwa', the opening day of the Hindu New Year, people clean their houses, make rangolis on the gates and decorate the doors with mango leaves and marigold flowers. On this day a 'gudi' or flag is placed in front of the houses and a vessel with swastika symbol and silk cloth is also kept with it. People wear traditional clothes. Women wear sarees nine yards long. Although Gudi Padwa has a different significance in mythological form, but if it is understood naturally, then the Sun is the sustainer of the universe. Therefore, with such a wish that the ability to bear his fierce effulgence should arise in the earthlings, the Sun is worshipped. On this day 'Sundarkand', 'Ramrakshastotra' and chanting of mantras of Goddess Bhagwati have special significance. Our Indian culture and sages and sages have considered the beginning of 'New Year' from 'Gudi Padwa' i.e. Chaitra Shukla Paksha Pratipada. The 'Gudi Padwa' festival is gradually becoming formal, but it has not been widely publicized.
meaning and importance
The meaning of 'Gudi' is 'Victory Ensign'. It is said that on this day Brahma created the universe. New Samvatsara also starts from this day. Therefore, this date is also called 'Nav Samvatsara'. It is said that Brahma first started the creation of the universe on the Pratipada of Shukla Paksha of Chaitra month after sunrise. He called this Pratipada Tithi as 'Pravara' or 'Survottama Tithi'. That is why it is also called the first day of creation. From this day onwards worship of Samvatsara, Ghatasthapana of Navratri, flag hoisting, recitation of fruit of Varesh etc. rituals are done. The Pratipada of Chaitra Shukla Paksha comes in the spring. In this season, a beautiful shade is scattered in the entire creation.
gudi padwa time
1.👉 Nav Samvatsar starts from the day on which Pratipada happens at sunrise in the Shukla Paksha of Chaitra month.
2.👉 If Pratipada is falling during sunrise for two days, then Gudi Padwa is celebrated on the first day itself.
3.👉 If there is no Pratipada on any day at the time of sunrise, then New Year is celebrated on the day on which Pratipada begins and ends. in case of excessive mass
Gudi Padwa is celebrated according to the following rules.
Adhik Maas is added to the year after every 32 months, 16 days and 8 Ghatis. Despite having more months, the new Samvatsar begins on the day of Pratipada. This is because Adhik month is also considered as a part of the main month. Therefore, in addition to the main Chaitra, the month of Adhika is also considered as a part of Nav Samvatsar.
Worship of Gudi Padwa
There is a law to do the following method only in the main Chaitra-
• New Year Phal Shravan (Knowing New Year's predictions)
• Taila Abhyanga (bath with oil)
• Nimb-patra Prashan (eating neem leaves)
• Flagship
• Beginning of Chaitra Navratri
• installation
At the time of resolution, the New Year Namagrahan (the practice of naming the new year) can be celebrated on the Pratipada of Shukla Paksha only in the month of Chaitra. The name of this Samvatsara is Paridhavi and the year is 2078. Also this is Shree Shalivahan Shakasamvat 1943 and the name of this Shak Samvat is Rakshasa.
King of New Years (Varesh)
The lord of the first day of the new year is also considered as the lord of that year. In 2022, the Hindu New Year is starting from Saturday, so Shani is the lord of the new Samvat.
Worship Mantras of Gudi Padwa
The following mantras can be read for worship on Gudi Padwa. Some people also observe fasting on this day.
early morning resolution
Om Vishnuh Vishnu: Vishnuh, Adya Brahmano Vyasah Paradhe Srishvetavarahkalpe Jambudweepe Bharatvarshe Nal Naamsamvatsare Chaitrashukla Pratipadi Amukavasare Amukagotrah Amukanamaham Prabhamanasya Navvarasyasya Prathamdivasse Vishwasrujay Vratam Karishsayeh.
Shodashopachara Puja Resolution
Om Vishnu: Vishnu: Vishnuh, Adya Brahmano Vyasah Paradhe Srishvetavarahkalpe Jambudweepe Bharatvarse Amukanam Samvatsare Chaitrashukla Pratipadi Amukavasare Amukagotrah Amukanamaham Prabhamanasya Navvarasyasya Prathamdivase Pujanah Shrishhobrahnapaisha karayavah.
The person observing the fast after the worship should chant this mantra-
Om Chaturbhirvadnai: Vedan Chaturo Bhavayan Shubhaan.
Jagtam in Brahma, the creator Hridaye Shastam Vaset.
method of celebrating gudi padwa
1. Gudi is decorated in the morning after bath etc. People clean the houses. In villages, houses are smeared with cow dung. According to the scriptures, Abhyanga bath must be taken on this day during Arunodaya period. There is a law to worship Gudi immediately after sunrise. It shouldn't be too late.
2. Beautiful Rangolis are made with bright colors and decorated with fresh flowers.They decorate the house.
3. People get ready by wearing new and beautiful clothes. Generally Marathi women wear Nauvari (9 yard long sari) on this day and men wear kurta-pyjama or dhoti-kurta with saffron or red turban.
4. The families celebrate this festival together and congratulate each other on the new year.
5. On this day there is also a tradition of listening and reciting the predictions of the new year.
6. Traditionally, the celebration of this festival is started by eating sweet neem leaves as prasad. Usually chutney of sweet neem leaves, jaggery and tamarind is made on this day. It is believed that it purifies the blood and increases the body's immunity. Its taste also shows that like chutney, life is also sour and sweet.
7. Shrikhand, puran poli, kheer etc. dishes are prepared on Gudi Padwa.
8. In the evening, people also perform a traditional dance called Lazim.
how to make a doll
1. The place where the Gudi is to be placed should be cleaned thoroughly.
2. To sanctify that place, first make a swastika symbol.
3. Offer turmeric and kumkum in the center of the swastika.
Gudi Padwa celebrations in various places
This festival is celebrated with different names in different places in the country.
1. The Konkani community in Goa and Kerala celebrates it as Samvatsara Padvo.
2. In Karnataka this festival is known as Ugadi.
3. In Andhra Pradesh and Telangana, Gudi Padwa is celebrated as Ugadi.
4. Kashmiri Hindus celebrate this day as Navreh.
5. In Manipur this day is called Sajibu Nongma Panba or Meitei Cheiraoba.
6. Chaitra Navratri also begins on this day.
People apply Gudi in Maharashtra on this day, that is why this festival is called Gudi Padwa. Taking a bamboo, an inverted urn of silver, copper or brass is placed on it and decorated with beautiful cloth. Generally this cloth is of saffron color and silk. The Gudi is then decorated with sticks, neem leaves, mango stalks and red flowers.
The Gudi is placed on a high place such as the roof of the house, so that it can be seen even from a distance. Many people also put it on the main door or windows of the house.
Importance of Gudi
It is said that on the day of Pratipada of Shukla Paksha in Chaitra month, Lord Vishnu incarnated in the form of Matsya. There is fire in the sun, and coolness in the moon. The symbol of peace and prosperity is based on the basis of Sun and Moon. Due to this such harmony is established that Tithi Vridhi, Tithi Kshaya, Adhik Maas, Kshya Maas etc. are not able to create disturbances. The date may increase or decrease, but 'Surya Grahan' will always happen on new moon and 'Lunar Grahan' will always happen on full moon only.
It is also believed that Brahma created the world on the day of Pratipada. Lord Vishnu had taken the first Jiva Avatar (Matsyavatar) on the day of Pratipada. Hence the 'Shaka Samvatsar' began.
There is also a belief of Marathi speakers that Chhatrapati Shivaji Maharaj, the overlord of the Maratha Empire, had laid the foundation of the Hindu empire by putting the saffron victory flag of 'Hindu Pad Padshahi' on the day of Pratipada.
Chaitra is the only month in which trees and vines flourish. The day of Shukla Pratipada is considered to be the first day of the phase of the Moon. The main basis of life is provided by the somersault moon to the plants. It has been called the king of medicines and plants. That is why this day is considered to be the beginning of the rain.
Many people believe that on this day Lord Rama liberated the people of the south from the tyrannical rule of Bali. The people, who were freed from the troubles of Bali, hoisted the flag (dolls) after celebrating from house to house. Even today the practice of erecting Gudi in the courtyard of the house is prevalent in Maharashtra. That is why this day was named 'Gudi Padwa'. Puranpoli or sweet bread is made on this day in Maharashtra. The ingredients that are added to it are jaggery, salt, neem flowers, tamarind and raw mango. Jaggery for sweetness, neem flowers to remove bitterness and tamarind and mango symbolizes tasting the sour-sweet taste of life.
On the beginning of 'Nav Samvatsara' one should worship God and pray - "Oh Lord! May my year be prosperous by your grace, all obstacles and obstacles are destroyed. Worship the new year with the worship of Durga. Worship by decorating the house with vandanwar. Complete the auspicious work of Kalash establishment and sow barley in new earthenware and keep it in the place of worship in your house. To keep good health, there is also a law to eat Egyptian along with neem tree saplings. This can lead to blood-related diseases. get rid of.
Gudi is also called Dharma-flag; Therefore, each part of it has its own specific meaning – the inverted vessel represents the head while the danda represents the spinal cord.
Farmers celebrate this festival in the joy of reaping the Rabi crop after sowing it. They also plow the fields on this day to wish for a good harvest.
Happy Indian New Year to all of you Sanatan Dharma lovers.
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