26 अप्रैल 2022

वरुथिनी एकादशी विशेष Varuthini Ekadashi Special

वरुथिनी एकादशी विशेष
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यह व्रत वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है। हिन्दू धर्म में इस पुण्य व्रत को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। इस वर्ष 26 अप्रैल मंगलवार के दिन वरूथिनी एकादशी व्रत किया जाएगा। 

वरुथिनी एकादशी व्रत मुहूर्त एवं विधि 
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एकादशी तिथि प्रारम्भ - अप्रैल 25 को रात्रि 01:35 बजे से।
एकादशी तिथि समाप्त - अप्रैल 26 को रात्रि 12:47 पर।

एकादशी व्रत पारण 
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27 अप्रैल को सुबह 06 बजकर 40 मिनट से सुबह 08 बजकर 15 मिनट तक रहेगा। 

वरुथिनी एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति को व्रत से एक दिन पहले यानि दशमी के दिन कांस, उड़द, मसूर, चना, कोदो, शाक, मधु, किसी दूसरे का अन्न, दो बार भोजन तथा काम क्रिया, इन दस बातों का त्याग करना चाहिए।

एकादशी के दिन भगवान का पूजन कर भजन कीर्तन करना चाहिए। द्वादशी के दिन पूजन कर ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए। अतः दक्षिणा देकर विदा करने बाद स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिए। एकादशी के व्रत में सोना, पान खाना, दांतुन, दूसरे की बुराई, चुगली, चोरी, हिंसा, काम क्रिया, क्रोध तथा झूठ का त्याग करना चाहिए। 

वरुथिनी एकादशी महात्म्य
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पद्मपुराण में वरूथिनी एकादशी के विषय में तथ्य प्राप्त होते हैं जिसके अनुसार भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर के पूछने पर की वैशाख माह के कृष्णपक्ष की एकादशी का फल एवं महात्मय क्या है तो उनके इस कथन पर भगवान उन्हें कहते हैं कि हे धर्मराज लोक और परलोक में सौभाग्य प्रदान करने वाली है वरूथिनी एकादशी के व्रत करने से साधक को लाभ की प्राप्ति होती है तथा उसके पापों का नाश संभव हो जाता है. यह एकादशी भक्त को समस्त प्रकार के भोग एवं मोक्ष प्रदान करने वाली होती है.

वरूथिनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को कठिन तपस्या करने के समान फल की प्राप्ति होती है. इस व्रत के नियम अनुसार व्रत रखने वाले को दशमी तिथि के दिन से ही नियम धारण कर लेना चाहिए. संयम व शुद्ध आचरण का पालन करते हुए एकादशी के दिन प्रात:काल समस्त क्रियाओं से निवृत्त होकर भगवान विष्णु जी का पूजन करना चाहिए. विधि पूर्वक वरूथिनी एकादशी का व्रत करते हुए एकादशी की रात्रि में जागरण करना चाहिए तथा भजन किर्तन करते हुए श्री हरि की का मनन करते रहना चाहिए.

वरूथिनी एकादशी कथा
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इस एकादशी के विषय में एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार मांधाता, इक्ष्वाकुवंशीय नरेश थे इनकी प्रशिद्धि दूर दूर तक थी। इनके विषय में कहा जाता है कि इन्हें सौ राजसूय तथा अश्वमेध यज्ञों का कर्ता और दानवीर, धर्मात्मा चक्रवर्ती सम्राट् जो वैदिक अयोध्या नरेश मंधातृ जैसा अभिन्न माना जाता था। यादव नरेश शशबिंदु की कन्या बिंदुमती इनकी पत्नी थीं जिनसे मुचकुंद, अंबरीष और पुरुकुत्स नामक तीन पुत्र और पचास कन्याएँ उत्पन्न हुई थीं जो एक ही साथ सौभरि ऋषि से ब्याही गई थीं।

पुत्र प्राप्ति हेतु यज्ञ के हवियुक्त मंत्रपूत जल को प्यास में भूल से पी लेने के कारण युवनाश्व को गर्भ रह गया जिसे ऋषियों ने उसका पेट फाड़कर निकाला। वह गर्भ एक पूर्ण बालक के रूप में उत्पन्न हुआ था जो इंद्र की तर्जनी उँगली को चूसकर रहस्यात्मक ढंग से पला और बढ़ा हुआ था। इंद्र द्वारा दुध पिलाने तथा पालन करने के कारण इनका नाम मांधाता पड़ा। यह बालक आगे चलकर पर पराक्रमी राजा बना।

इन्होंने विष्णु जी से राजधर्म और वसुहोम से दंडनीति की शिक्षा ली थी इसी वरूथिनी एकादश के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग को गए थे क्योंकि गर्व से चूर होकर और स्वयं को उच्च मानते हुए इनके द्वारा कई गलत कार्य भी हुए जिनके प्रभाव स्वरूप इन्हें स्वर्ग की प्राप्ति नहीं हुई अत: अपने पापों से मुक्ति पाने हेतु क्षमायाचना स्वरूप इन्होंने इस एकादशी व्रत का पालन किया जिसके प्रभाव से इन्हें स्वर्ग की प्राप्ति संभव हो सकती

इसी प्रकार राजा धुन्धुमार को भगवान शिव ने एक बार क्रोद्धवश श्राप दे दिया था जिसके कारण उन्हें बहुत सारे कष्टों की प्राप्ति हुई उनसे मुक्ति के मार्ग के लिए धुन्धुमार ने तब इस एकादशी का व्रत रखा जिससे उन्हें श्राप से मुक्ति प्राप्त हुए और वह उत्तम लोक को प्राप्त हुए।

भगवान जगदीश्वर जी की आरती
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"ओम जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे !!

जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का, सुख-सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का !!

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी, तुम बिन और न दूजा, आस करूँ मैं जिसकी !!

तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी, पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी !!

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता, मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता !!

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति, किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति !!

दीनबंधु दुःखहर्ता, तुम रक्षक मेरे, करुणा हस्त बढ़ाओ, द्वार पडा तेरे !!

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा, श्रद्धा विवेक बढाओ, संतन की सेवा !!

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे


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English Translation :-

Varuthini Ekadashi Special


 This fast is observed on the Ekadashi of Vaishakh Krishna Paksha.  In Hinduism, this virtuous fast is considered a symbol of good luck.  This year Varuthini Ekadashi will be observed on Tuesday, April 26.


 Varuthini Ekadashi Vrat Muhurta and Method


 Ekadashi date starts from 01:35 pm on April 25.

 Ekadashi date ends - April 26 at 12:47 pm.


 Ekadashi fasting


 On April 27, it will be from 06:40 in the morning to 08:15 in the morning.


 A person observing Varuthini Ekadashi fast, a day before the fast, i.e. on the day of Dashami, should give up these ten things, namely Kansas, Urad, Lentil, gram, Kodo, herbs, honey, someone else's food, twice food and sex activity.


 On the day of Ekadashi one should worship the Lord and do bhajan kirtan.  On the day of Dwadashi, a Brahmin should be offered food after worshiping.  Therefore, after giving dakshina, one should take food himself.  During the fasting of Ekadashi, one should give up sleeping, eating betel leaves, teething, other's evil, slander, theft, violence, sexual activity, anger and lies.


 Varuthini Ekadashi Mahatmya


 In Padma Purana, facts are received about Varuthini Ekadashi, according to which Lord Krishna, on asking Yudhishthira what is the fruit and greatness of Ekadashi of Krishna Paksha of Vaishakh month, on his statement, God tells him that O Dharmaraja, bestow good fortune in the world and the afterlife.  By observing the fast of Varuthini Ekadashi, the seeker gets benefits and the destruction of his sins becomes possible.  This Ekadashi is supposed to bestow all kinds of enjoyment and salvation to the devotee.


 By observing the fast of Varuthini Ekadashi, a person gets the same result as doing hard penance.  According to the rules of this fast, the person observing the fast should follow the rules from the day of Dashami.  Following abstinence and pure conduct, Lord Vishnu should be worshiped early in the morning on Ekadashi after retiring from all activities.  While fasting on Varuthini Ekadashi ritually, one should do Jagran on the night of Ekadashi and keep chanting of Shri Hari while doing bhajan.


 Varuthini Ekadashi Story


 There is a legend about this Ekadashi, according to which Mandhata was the king of Ikshvakuvanshi, his fame was far and wide.  It is said about him that he was the doer of hundred Rajasuya and Ashwamedha yagyas and the donor, Dharmatma Chakravarti emperor who was considered as integral as the Vedic Ayodhya king Mandhatri.  Bindumati, the daughter of the Yadav king Shashbindu, was his wife, from whom three sons and fifty daughters named Muchkund, Ambarisha and Purukutsa were born, who were simultaneously married to the sage Saubhari.


 In order to get a son, Yuvanashva got pregnant due to drinking the sacred water of the Yagya in thirst, which the sages took out by tearing her stomach.  That womb was born as a perfect child, who grew up and grew mysteriously by sucking the index finger of Indra.  Due to feeding and rearing of milk by Indra, she was named Mandhata.  This boy later became a mighty king.


 He had learned Rajdharma from Vishnu ji and Dandaniti from Vasuhom, due to the effect of this Varuthini eleven, King Mandhata went to heaven because, feeling proud and considering himself high, he also did many wrong deeds, due to which he attained heaven.  Therefore, in order to get rid of his sins, he observed this Ekadashi fast as an apology, due to which it would be possible for him to attain heaven.


 Similarly, King Dhundhumar was once cursed by Lord Shiva out of anger, due to which he got a lot of sufferings.  received.


 Aarti of Lord Jagdishwar ji


 "Om Jai Jagdish Hare, Swami Jai Jagdish Hare, remove the troubles of the devotees in a moment !!


 The one who gets the fruits of meditation, the mind without sorrow, the happiness and wealth come home, the pain of the body is removed.


 Mother, father, you are my refuge, whose refuge I am, without you, I can't wait for whom.


 You are the Supreme God, you are the Antaryami, Parabrahma Parmeshwar, the lord of all of you!!


 You are the ocean of compassion, you are the maintainers, I am the servants, you are the masters, please the servant!!


 You are an inconspicuous, life-master of all, what method should I find compassionate, I love you !!


 Deenbandhu sorrowful, you protector of me, extend your hand of compassion, the door will fall for you !!


 Eliminate subjective disorders, Destroy sins, Increase faith in the conscience, Service to the children !!


 Jai Jagdish Hare, Swami Jai Jagdish Hare


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