धारावाहिक लेख- मलमास, खरमास, अधिक मास तथा क्षयमास, भाग-2, अंतिम
(18 जुलाई से 16 अगस्त 2023)
वर्ष 2023 में चान्द्र श्रावण मास 'अधिक मास' अर्थात (मल, पुरुषोत्तम) मास होगा। इस अधि-मास की समयावधि 18 जुलाई, मंगलवार से 16 अगस्त 2023, बुधवार तक रहेगी।
*अधिक मास:-* जिस महीने में सूर्य संक्रान्ति न हो, वह महीना प्राप्त अधिमास होता है और जिसमें दो संक्रान्ति हों, वह क्षय-मास होता है।
सौर वर्ष और चान्द्र-वर्ष में सांमजस्य स्थापित करने के लिए हर तीसरे फल वर्ष पंचांगों में एक चान्द्र मास की वृद्धि कर दी जाती है।
सरल शब्दो में इसी को 'अधिक मास' के अतिरिक्त 'अधि-मास', 'मलमास' तथा आध्यात्मिक विषयों में अत्यन्त पुण्यदायी होने के कारण 'पुरुषोत्तम मास' आदि नामों से भी पुकारा जाता है।
(ज्योतिष गणना के अनुसार एक सौरवर्ष का मान 365 दिन, 6 घण्टे एवं 11 सैकिण्ड के लगभग है, जबकि चान्द्र वर्ष 354 दिन, एवं लगभग 9 घण्टे का होता है। दोनों वर्षमानों में प्रतिवर्ष 10 दिन, 21 घण्टे 9 मिन्ट का अन्तर अर्थात् लगभग 11 दिन का अन्तर पड़ जाता है। इस अन्तर में सामञ्जस्य स्थापित करने के लिए 32 महीने, 16 दिन, 4 घड़ी, बीत जाने पर अधिकमास का निर्णय किया जाता।)
संक्षेप मे एक अधिक मास से दूसरा अधिक (मल) मास 28 महीने से लेकर 36 मास के अंदर ही पुनः आ सकता है। सरल शब्दो मे हर तीसरे वर्ष में अधिक मास अर्थात् पुरुषोत्तम मास पुनः हो सकता है।
*पुरुषोत्तम मास का माहात्म्य*
पौराणिक कथाओं अनुसार इस महीने कोई भी संक्रांति न होने के कारण यह मास अनाथ निंदनीय, संक्रांतिहीन एवं त्याज्य हुआ, जिसके कारण कोई भी इस मास का स्वामी होना नही चाहता था, तब इस मास ने भगवान विष्णु से अपने उद्धार के संबंध में प्रार्थना कि जिस पर भगवान विष्णु जी ने इस मास का स्वामित्व स्वयं ही ले लिया तथा इसे अपना श्रेष्ठ नाम "पुरूषोत्तम" प्रदान किया, साथ ही यह आशीर्वाद भी दिया कि जो मनुष्य इस माह में भागवत कथा श्रवण, मनन, भगवान शंकर का पूजन, धार्मिक अनुष्ठान, दानादि करेगा वह अक्षय फल को प्राप्त करने वाला होंगा। इस माह में किया गया दान-पुण्य भी अक्षय फल देने वाला रहेगा। यह मास इतना पावन है कि इसके माहात्म्य की कथा स्वयं भगवान विष्णु ने देवर्षि नारद को अपने श्रीमुख से सुनाई थी।
अधिक मास के आने पर जो व्यक्ति श्रद्धा एवं भक्तिपूर्वक व्रत, उपवास, श्रीविष्णु पूजन, पुरुषोत्तम माहात्म्य का पाठ, दान आदि शुभ कर्म करता है, वह मनोवांछित फल प्राप्त कर लेता है और मरणोपरान्त गोलोक पहुँचकर भगवान् श्रीकृष्ण का सान्निध्य प्राप्त करता है। इस मास गीतापाठ, श्रीराम-कृष्ण के मन्त्रों, पंचाक्षर शिवमन्त्र, अष्टाक्षर नारायणमन्त्र, द्वादशाक्षर वासुदेव मन्त्र आदि के जप का लाखगुना, करोड़गुना या अनन्त फल होता है।
मलमास के 33 ही देवता होते हैं जो कि निम्न प्रकार माने जाते हैं, (11 रुद्र, 12 आदित्य, 8 वास, 1 प्रजापति, 1 वास्तुकार) = 33
*श्रावण (अधिक) मास 2023 का फल:-*
वि. संवत् 2080 में प्रथम श्रावण शुक्ल प्रतिपदा तद्नुसार 18 जुलाई, मंगलवार से श्रावण अधिक मास प्रारम्भ होकर 16 अगस्त, बुधवार तक व्याप्त रहेगा। शास्त्रों में श्रावण अधिक मास का फल इस प्रकार से वर्णित है-
*'दुर्भिक्षं श्रावणे युग्मे पृथ्वी नाशः प्रजाक्षयः।*
अर्थात् जिस वर्ष में दो श्रावण हों अर्थात् श्रावण अधिक मास हो, तो उस वर्ष पृथ्वी पर कहीं दुर्भिक्ष, उपयोगी वर्षा की कमी एवं अग्निकाण्ड, युद्ध, यानादि दुर्घटनाओं एवं की प्राकृतिक प्रकोपों से धन एवं जन हानि की आशंका होती है। अधिक मास काल में गोचरवश 'मंगल-शनि' मध्य समसप्तक योग भी होने से पृथ्वी के उत्तर गोलार्द्ध के, दक्षिण दिशा में पड़ने वाले देशों जैसे-रूस, चीन, ताईवान, यूक्रेन, पाकिस्तान तथा अन्य सभी यूरोपीय देशों में आन्तरिक व बाह्य राजनैतिक परिस्थितियां विशेष रूप से प्रभावित रहेंगी। इन देशों में कहीं आन्तरिक विद्वेष, उपद्रव, अग्निकाण्ड, बाढ़, युद्ध, भूकम्प आदि से भी जन व धन सम्पदा की हानि की सम्भावनाएं होंगी।
*पुरुषोत्तम मास में नित्यकर्म एवं उद्यापन अर्थात् पालन करने योग्य नियम:-*
पुराण के अनुसार पुरुषोत्तम मास में ईश्वर के निमित्त जो व्रत, उपवास, स्नान, दान या पूजनादि किए जाते उन सबका अक्षय फल होता है और व्रती के सब अनिष्ट नष्ट हो जाते हैं। पुराणों में अधिकमास में पूजन, व्रत, दान सम्बन्धी विभिन्न प्रकार के विधि-विधान बतलाए गए हैं, जिसमे से क्रमंशः कुछ विधियो का उल्लेख यहां प्रस्तुत किया जा रहा है।
*प्रथम विधि:-*
1. इस मास के प्रारम्भ होते ही प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर शौच, स्नान, संध्या आदि नित्यकर्म करके भगवान् का स्मरण करना चाहिए और पुरुषोत्तम मास के नियम ग्रहण करने चाहिये।
पुरुषोत्तम मास में श्रीमद्भागवत् की पुराण का पाठ करना महान् पुण्यप्रदायक है और एक लाख तुलसीपत्र से शालिग्राम भगवान् का पूजन करने से अनन्त पुण्य होता है। विधिपूर्वक षोडशोपचार से नित्य भगवान् का पूजन करना चाहिए। इस पुरुषोत्तम मास में निम्नलिखित मन्त्र का एक महीने तक भक्तिपूर्वक बार-बार जप करने से पुरुषोत्तम भगवान् की प्राप्ति होती है।
*गोवर्द्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरूपिणम् ।* *गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिकाप्रियम् ।।*
प्राचीनकाल में श्रीकौण्डिन्य ऋषि ने यह मन्त्र बताया था। मन्त्र जपते समय श्रीराधिका जी के सहित श्रीपुरुषोत्तम भगवान् का ध्यान करना चाहिए।
*द्वितीय विधि:-*
1. हेमाद्रि अनुसार पुरुषोत्तम मास आरम्भ होने पर प्रातः स्नानादि नित्यकर्म से निवृत्त होकर एकभुक्त या नक्तव्रत रखा जाता है।
2. प्रतिदिन पूजा मे भगवान् विष्णुस्वरुप सहस्रांशु (भास्कर) का मंत्रों द्वारा लालपुष्प सहित पूजन किया जाता है।
3. तत्पश्चात कृष्णस्तोत्र पाठ करके कांस्य पात्र में भरे हुए अन्न, फल, वस्त्रादि का दान किया जाता है।
4. पूजनोपरान्त अथवा अधिकमास के अन्तिम दिन विविध प्रकार के मिष्ठान्न, घी, गुड़ और अन्न का दान ब्राह्मण को करें तथा घी, गेहूँ और गुड़ के बनाए हुए तैंतीस (33) अपूप (पूओं) को पात्र में रखकर निम्न मन्त्र पढ़कर फलों, मिष्ठान्न, वस्त्र दक्षिणा सहित ब्राह्मण को दान करें-
*"ॐ विष्णुरूपी सहस्रांशुः सर्वपापप्रणाशनः ।* *अपूपान्न प्रदानेन मम पापं व्यपोहतु ।"*
इसके बाद आगे लिखे मन्त्र से भगवान् विष्णु को प्रार्थना करें-
*यस्य हस्ते गदाचक्रे गरुडोयस्य वाहनम् ।*
*शङ्खः करतले यस्य स मे विष्णुः प्रसीदतु ।*
3. इसके अतिरिक्त श्रावण अधिक मास में प्रतिदिन श्रीपुरुषोत्तम माहात्म्य का पाठ एक निश्चित समय पर श्रद्धापूर्वक करना चाहिए। श्रीविष्णु स्तोत्र, श्रीविष्णु सहस्रनाम, श्रीसूक्त, पुरुषसूक्त आदि पाठ करना शुभ होगा।
*अधिकमास का उद्यापन:-*
अधिकमास की समाप्ति पर स्नान, जप, पुरुषोत्तम मास पाठ एवं (निम्न मन्त्रों सहित गुड़, गेहूँ, घृत, वस्त्र, मिष्ठान्न, दाख, केले, कूष्माण्ड (कुम्हड़ा), ककड़ी, मूली आदि वस्तुओं का दान, दक्षिणा सहित करके भगवान् को 3 बार अर्ध्य देना चाहिए।
*भगवान के तैतीस (त्रयस्त्रिंशत् /३३) नाम मन्त्रों का जप करना चाहिए-*
१. विष्णुं, २. जिष्णुं, ३. महाविष्णुं, ४. हरिं, ५. कृष्ण, ६. अधोक्षजम्, ७. केशवं, ८. माधवं, ९. राम, १०. अच्युत्यं, ११. पुरुषोत्तमम्, १२. गोविन्दं, १३. वामनं, १४. श्रीशं, १५. श्रीकृष्णं, २६. विश्वसाक्षिणं १७. नारायणं, १८. मधुरिपुं १९. अनिरुद्धं, २०. त्रिविक्रमम्, २१. वासुदेवं, २२. जगद्योनिं २३. अनन्तं, २४. शेयशाविनम्, २५. सकर्षणं २६. प्रद्युम्नं २७. दैत्यरि, २८. विश्वतोमुखम् २९. जनार्दनं, ३०. धरावास, ३१. दामोदरं, ३२. मघार्दनं, ३३. श्रीपतिं च ।।
*अधिक मास में कृत्य कर्म:-*
शास्त्रो मे कहा गया है कि सम्पूर्ण वर्ष मे किए गये सभी शुभ कर्म और केवल एक मलमास में किए शुभ कर्म पुण्य फल मे बराबर माने गए हैं।
1. स्नान:- पूरे मलमास में ‘‘ब्रह्म मुहूर्त’’ में नदी, सरोवर, कूप, नल आदि उसके जल से स्नान करना चाहिए । शास्त्रों में प्रातः 3 से 6 तक ब्रह्ममुहूर्त माना गया है । ऐसा माना जाता है कि मलमास मे इस समय देवता भी पवित्र नदियों में स्नान करने आते हैं।
2.लक्ष्मी नारायण पूजा:- मलमास मे स्नानादि से निवृत्त होकर ब्रह्म महूर्त मे भगवान विष्णु और महा लक्ष्मी का पूजन अति हितकारी फल प्रदान करता है।
3.पुरषोत्तम मास मे भगवान पुरुषोत्तम अर्थात विष्णु जी का श्रद्धापूर्वक पूजन करना चाहिए तथा मंत्र जाप करना चाहिए । श्रीपुरुषोत्तम माहात्म्य की कथा का पठन अथवा श्रवण करना चाहिए, रामायण का पाठ या श्रीविष्णु स्तोत्र का पाठ करना शुभ होता है। भगवान शिव के लिये रुद्राभिषेक का करना भी इस माह मे विशेष फलदायी है ।
4.दान:- मलमास में दान की विशेष महिमा है। यह माना जाता है कि इस मास में दिए गए दान के भोक्ता और फलदाता भगवान विष्णु स्वयं हैं।
इस मास में रामायण, गीता तथा अन्य धार्मिक व पौराणिक ग्रंथों के दान आदि का भी महत्व माना गया है. वस्त्रदान, अन्नदान, गुड़ और घी से बनी वस्तुओं का दान करना अत्यधिक शुभ माना गया है ।
5. अधिक मास मे पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर अपने आराध्य का ध्यान करना चाहिए। इस पूरे माह में व्रत, तीर्थ स्नान, भागवत पुराण, ग्रंथों का अध्ययन, विष्णु यज्ञ आदि किए जा सकते हैं। जो कार्य पहले शुरु किये जा चुके हैं उन्हें जारी रखा जा सकता है।
6.व्रत:- मलमास के पांच व्रत किए जाने का विधान है, क्रमशः पूर्णिमा, अमावस्या, शुक्ल पक्ष व कृष्ण पक्ष दोनों की एकादशी तथा जिस दिन चंद्रमा का गोचर मकर राशि मे श्रवण नक्षत्र में हो, उस दिन का व्रत । इन पांच दिन व्रत करने का विधान है। – व्रत में उन्हीं नियमों का पालन किया जाता है जो नियम सामान्य चंद्र मास के व्रतों में अपनाए जाते हैं। अलग से कोई और नियम नहीं होता है।
7. अधिक मास मे संतान जन्म के कृत्य जैसे गर्भाधान, पुंसवन, सीमंत आदि संस्कार किये जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त नित्यकर्म, ग्रहण शान्त्यादि निमित्तक- नैमित्तिक स्नानादि कर्म, द्वितीय बार का तीर्थ स्नान, गजच्छायायोग निमित्तक श्राद्ध-प्रेतस्नान, गर्भाधान, ऋणादि में बार्धुवषिकृत्य, दशगात्रपिण्डदान एवं श्राद्ध करना चाहिए।
8. अधिक (मल) मास में जिस काम्य कर्म के प्रयोग का आरम्भ अधिक मास से पहले ही हो चुका हो, उसकी सम्पूर्ति अधिक मास में विहित है।
*अधिक मास में त्याज्य कर्म:-*
1. अधिमास में फल प्राप्ति की कामना से किए जाने वाले प्रायः सभी काम वर्जित हैं और फल की आशा से रहित होकर करने के आवश्यक सब काम किए जा सकते हैं।
2. अधिक (पुरुषोत्तम) मास में कुछ नित्य, नैमित्तिक एवं काम्य कर्मों को करने का निषेध माना गया है। जैसे-विवाह, यज्ञ, देव-प्रतिष्ठा, महादान, चूड़ाकर्म (मुण्डन), पहले कभी न देखे हुए देवतीर्थों में गमन, नवगृह प्रवेश, वृषोत्सर्ग, भूमि आदि सम्पत्ति की खरीद (क्रय), नई गाड़ी का क्रय आदि शुभ कार्यों का आरम्भ अधिक मास-काल में नहीं करना चाहिए-
3. इसके अतिरिक्त नववधू प्रवेश, नव-यज्ञोपवीत धारण, व्रतोद्यापन, नव- अलंकार, नवीन वस्त्रादि धारण करना, कुआँ, तालाब, बावली, बाग आदि का खनन करना, भूमि, वाहनादि का क्रय करना, काम्य व्रत का आरम्भ, भूमि, सुवर्ण, तुला, गायादि का दान, अष्टका श्राद्ध, उपनयन, द्वितीय वार्षिक श्राद्ध, उपाकर्मादि कर्मों के सम्पादन का निषेध माना गया है।
4. अधिक मास मे तामसिक वस्तुओं, तामसिक क्रिया कलापों व तामसिक विचारों को पूरी तरह त्याग करना चाहिए जैसे कि मांस, मदिरा व संभोग आदि का त्याग करना चाहिए।
4. राजसिक सुखो तथा भोगो को त्याग कर अधिक मास में सात्विक जीवन व सात्विक विचारों को अपनाना चाहिए ।
5. मलमास मे शादी (विवाह), नया व्यवसाय या नया मकान आरंभ करना, नया मकान, वाहन आदि खरीदने के विचारों को कम से कम एक माह तक स्थगित कर देना चाहिए।
*(समाप्त)*
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*आगामी लेख:-*
*1. 5 जुलाई के पंचांग मे "सावन मास"पर धारावाहिक लेख, तत्पश्चात 15 जुलाई के पंचांग से लेख के चौथे भाग, तथा अगले भागो का प्रसारण।*
*2. 8 जुलाई के पंचांग मे "अधिक मास" पर धारावाहिक लेख।*
*3. 10 जुलाई के पंचांग मे "कामिका एकादशी" पर लेख।*
*4. 11 जुलाई के पंचांग मे "कर्क सक्रांति" पर लेख।*
*5. 12 जुलाई के पंचांग मे "सोमवती अमावस्या" पर लेख।*
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*जय श्री राम*
*कल का पंचांग 🌹🌹🌹*
*रविवार,9.07.2023*
*श्री संवत 2080*
*शक संवत् 1945*
*सूर्य अयन- दक्षिणायन, उत्तर गोल*
*ऋतुः- वर्षा ऋतुः।*
*मास- प्रथम शुद्ध श्रावण मास।*
*पक्ष- कृष्ण पक्ष ।*
*तिथि- सप्तमी तिथि 7:59 pm तक*
*चंद्रराशि- चंद्र मीन राशि मे।*
*नक्षत्र- उ० भाद्रपद ऩक्षत्र 7:29 pm तक*
*योग- शोभन योग 2:44 pm तक (शुभ है)*
*करण- विष्टि करण 8:50 am तक*
*सूर्योदय- 5:30 am, सूर्यास्त 7:22 pm*
*अभिजित् नक्षत्र- 11:58 am से 12:54 pm*
*राहुकाल- 5:38 pm से 7:22 pm (शुभ कार्य वर्जित )*
*दिशाशूल- पश्चिम दिशा।*
*जुलाई शुभ दिन:-* 9 (सवेरे 9 उपरांत), 19, 11, 14 (सायं. 7 तक), 19, 21 (दोपहर 12 उपरांत), 22 (सवेरे 9 उपरांत), 23, 24, 25 (दोपहर 3 तक), 26, 28
*जुलाई अशुभ दिन:-* 12, 13, 15, 16, 17, 18, 20, 27, 29, 30, 31.
*भद्रा:-* 8 जुलाई 9:52 pm से 9 जुलाई 8:56 am तक (भद्रा मे मुण्डन, गृहारंभ, गृहप्रवेश, विवाह, रक्षाबंधन आदि शुभ काम नही करने चाहिये , लेकिन भद्रा मे स्त्री प्रसंग, यज्ञ, तीर्थस्नान, आपरेशन, मुकद्दमा, आग लगाना, काटना, जानवर संबंधी काम किए जा सकतें है)
*पंचक प्रारंभ:- 6 जुलाई 1:39 pm से 10 जुलाई 6:59 pm तक* पंचक नक्षत्रों मे निम्नलिखित काम नही करने चाहिए, 1.छत बनाना या स्तंभ बनाना (lantern or Pillar) 2.लकडी या तिनके तोड़ना , 3.चूल्हा लेना या बनाना, 4. दाह संस्कार करना (cremation) 5.पंलग चारपाई, खाट , चटाई बुनना या बनाना 6.बैठक का सोफा या गद्दियाँ बनाना । 7 लकड़ी ,तांबा ,पीतल को जमा करना ।(इन कामो के सिवा अन्य सभी शुभ काम पंचको मे किए जा सकते है।
*गण्ड मूल आरम्भ:- 9 जुलाई रेवती नक्षत्र, 7:30 pm से 11 जुलाई को अश्विनी नक्षत्र 7:05 pm तक गंडमूल रहेगें।* गंडमूल नक्षत्रों मे जन्म लेने वाले बच्चो का मूलशांति पूजन आवश्यक है।
*सर्वार्थ सिद्ध योग:- 9 जुलाई 5:30 am से 9 जुलाई 7:30 pm तक* (यह एक शुभयोग है, इसमे कोई व्यापारिक या कि राजकीय अनुबन्ध (कान्ट्रेक्ट) करना, परीक्षा, नौकरी अथवा चुनाव आदि के लिए आवेदन करना, क्रय-विक्रय करना, यात्रा या मुकद्दमा करना, भूमि , सवारी, वस्त्र आभूषणादि का क्रय करने के लिए शीघ्रतावश गुरु-शुक्रास्त, अधिमास एवं वेधादि का विचार सम्भव न हो, तो ये सर्वार्थसिद्धि योग ग्रहण किए जा सकते हैं।
*रवि योग:- 8 जुलाई 8:36 pm से 9 जुलाई 7:30 pm तक* यह एक शुभ योग है, इसमे किए गये दान-पुण्य, नौकरी या सरकारी नौकरी को join करने जैसे कायों मे शुभ परिणाम मिलते है । यह योग, इस समय चल रहे, अन्य बुरे योगो को भी प्रभावहीन करता है।
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*आगामी व्रत तथा त्यौहार:-*
10 जुलाई- श्रावण सोमवार व्रत प्रारम्भ। 13 जुला०- कामिका एकादशी। 14 जुला०- प्रदोष व्रत। 15 जुला०- मासिक शिवरात्रि। 16 जुला०- कर्क संक्रांति (पुण्यकाल 11:30 am तक)। 17 जुला०- श्रावण/सोमवती अमावस्या। 18 जुलाई- श्रवण (अधिक) मलमास आरंभ। 29 जुला०- पद्मिनी एकादशी। 30 जुला०- प्रदोष व्रत।
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*विशेष:- जो व्यक्ति वाराणसी से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु paytm या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है*
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*आपका दिन मंगलमय हो*. 💐💐💐
*आचार्य मोरध्वज शर्मा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश*
9648023364
9129998000
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