12 जुलाई 2023

श्रावण/कर्क सक्रांन्ति, 16.07.2023



लेख:- श्रावण/कर्क सक्रांन्ति, 16.07.2023
मीन संक्रान्ति क्षण-16/17 जुलाई मध्यरात्रि 5:07 am
संक्रान्ति पुण्यकाल- 17 जुलाई, सूर्योदय से 11:30 am तक
अन्य मत के अनुसार पुण्यकाल:-
कर्क संक्रान्ति पुण्य काल:- 16 जुलाई 12:27 pm से 07:21 pm
अवधि:- 6 घण्टे 54 मिनट्स
कर्क संक्रान्ति महापुण्यकाल:- 16 जुलाई 5:03 pm से 07:21 pm
अवधि:- 2 घण्टे 18 मिनट*
*श्रावण संक्रान्ति:-* 16 जुलाई रविवार की रात्रि के बाद 17 जुलाई के सूर्योदय से पहिले प्रात: 5 बजकर 07 मिंट पर (29:07) मिथुन लग्न में प्रवेश करेगी। इस संक्रान्ति का पुण्यकाल अगले दिन 17 जुलाई सोमवार की दोपहर 11:30 बजे तक रहेगा।
*श्रावण संक्रान्ति का फल:-*
वारानुसार घोरा तथा नक्षत्रानुसार महोदरी नामक यह संक्राति चोरों, ठगों, बेईमान तथा नीच प्रवृत्ति वाले लोगों के लिए लाभप्रद रहेगी।
*संक्राति राशिफल:-* यह संक्राति मिथुन, सिंह, कन्या, धनु, कुम्भ तथा मीन राशि वालों के लिए शुभ, शेष राशि वालों के लिए कुछ कष्टकारी रहेगी। संक्राति कुण्डली में मंगल-शुक्र का शनि के साथ समसप्तक दृष्टि सम्बन्ध तथा मेष राशिस्थ 'गुरु- राहु' पर शनि की दृष्टि रहने से कहीं प्राकृतिक आपदाओं एवं कहीं दुर्भिक्ष आदि के कारण महंगाई में वृद्धि तथा राजनेताओं में परस्पर वाद-विवाद रहे। किसी नेता के अपदस्थ या मृत्यु का समाचार भी मिले। केन्द्रीय सरकार के मन्त्रीमण्डल में परिवर्तन एवं उलटफेर के संकेत हैं। रविवारी संक्राति होने से भी राजनैतिक क्षेत्रों में अस्थिरता एवं अशान्ति होने के संकेत है।
सक्रांन्ति भारत के वैदिककालीन पर्वो मे से एक पर्व है, जोकि हर माह प्रायः 12 तारीख़ से 17 तारीख़ के मघ्य मे ही आती है। 16 जुलाई को 5:07 am पर सूर्यदेव के मिथुन राशि से निकल कर, कर्क राशि मे प्रवेश करने से श्रावण संक्रांति होगी। "सौरमास पद्धति" के अनुसार इसी समय" श्रावण मास का आरंभ होगा।
कर्क संक्रांति जिसे दक्षिणायन संक्रांति तथा श्रावण सक्रांति भी कहा जाता है। सूर्य के कर्क राशि में प्रवेश करने के कारण ही इसे कर्क संक्रांति कहा जाता है। ये संक्रांति सूर्य देव की दक्षिण यात्रा के प्रारंभ को दर्शाती है जिसे "दक्षिणायन" भी कहते है।
कर्क संक्रांति–प्रायः 16 जुलाई के आस-पास सूर्य के कर्क राशि में प्रवेश करने पर कर्क संक्रांति मनाई जाती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार इसे छह महीने के उत्तरायण काल का अंत माना जाता है। साथ ही इस दिन से दक्षिणायन की शुरुआत होती है, जो मकर संक्रांति में समाप्त होता है। सूर्य के 'उत्तरायण ' होने को 'मकर संक्रांति ' तथा 'दक्षिणायन' होने को 'कर्क संक्रांति' कहते हैं।
'श्रावण मास' से 'पौष' मास तक सूर्य का उत्तरी छोर से दक्षिणी छोर तक जाना ' दक्षिणायन' होता है
कर्क संक्रांति में दिन छोटे और रातें लंबी हो जाती हैं।
शास्त्रों एवं धर्म के अनुसार 'उत्तरायण' का समय देवतायओं का दिन तथा 'दक्षिणायन 'देवताओं की रात्रि होती है। इस प्रकार, वैदिक काल से 'उत्तरायण' को 'देवयान' तथा 'दक्षिणायन' के 'पितृयान' भी कहा जाता रहा है।
जिस प्रकार सूर्य के मकर संक्रांति के दिन से उत्तरायन होने से अग्नि तत्व बढ़ता है, चारों तरफ सकारात्मक और शुभ ऊर्जा का प्रसार होने लगता है, शुभता में वृद्धि होती है।
उसी प्रकार सूर्य के कर्क संक्रांति के दिन (16 जुलाई) से "उतरायण" होने की वजह से जल तत्व की अधिकता हो जाती है। इससे वातावरण में नकारात्मकता आने लगती है, और देवताओं की शक्ति कमजोर होने लगती है।
सावन संक्रांति अर्थात कर्क संक्रांति से वर्षा ऋतु का आगमन हो जाता है। देवताओं की रात्रि प्रारम्भ हो जाती है, और चातुर्मास या चौमासा का भी आरंभ इसी समय से हो जाता है। यह समय व्यवहार की दृष्टि से अत्यधिक संयम का होता है क्योंकि इसी समय तामसिक प्रवृतियां अधिक सक्रिय होती हैं। व्यक्ति का हृदय भी गलत मार्ग की ओर अधिक अग्रसर होता है, अत: संयम का पालन करके विचारों में शुद्धता का समावेश करके ही व्यक्ति अपने जीवन को शुद्ध मार्ग पर ले जा सकने में सक्षम हो पाता है।
इस समय उचित आहार विहार पर विशेष बल दिया जाता है। इस समय में शहद का प्रयोग विशेष तौर पर करना लाभकारी माना जाता है।
सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु के चार माह की अवधि में निद्रा मे जाने की वजह से सृष्टि का भार भोलेनाथ संभालेंगे, इसीलिए श्रावण मास में शिव पूजन का महत्व बढ़ जाता है। इस समयावधि में श्रावण मास भी आता है, तथा इस तरह से त्यौहारों की शुरुआत हो जाती है। मनुष्यों को अपने पितरों की शांति के लिए पूजन अथवा पिंडदान आदि भी करना चाहिए।
*सक्रांति व्रत अथवा पूजन विधि 😘
1. संक्रान्ति के शुभ दिन प्रातःकाल से लेकर सूर्यास्त तक देश के किसी भी पवित्र तीर्थ स्थान, संगमस्थल, नदी, कुंओ, बावडी, सरोवर इत्यादि मे स्नान करे।
2. गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा व कावेरी इन तीन नदियो मे, तथा गंगासागर जैसे तीर्थों मे स्नान करने से अधिक पुण्य मिलता है । जो लोग व्यस्तताओ के कारण इन स्थानो पर न जा पाये वह प्रातःकाल स्नान के जल मे गंगाजल मिलाकर स्नान करे ।
3. कर्क अर्थात श्रावण संक्रांति के दिन प्रातः स्नानादि से निवृत्त लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर अष्ठदल का कमल बनाकर उसमें सूर्यदेव का चित्र स्थापित करके भगवान सूर्यदेव का पूजन करना चाहिए। व्रत-पूजन-कथा करने से इस दिन पुण्यो की प्राप्ति होती है ।
4. व्रत का संकल्प लेने के बाद व्रत प्रारम्भ करना चाहिए, और फल-फूल, अक्षत, चन्दन, जल आदि से षोडशोपचार प्रभु की उपासना करनी चाहिए ।
5. तत्पश्चात व्रती को सूर्य स्मरण, आदित्य स्तोत्र एवं सूर्य मंत्र इत्यादि का पाठ व पूजन करना चाहिए जिसे अभिष्ट फलों की प्राप्ति होती है। संक्रांति में की गयी सूर्य उपासना से दोषों का शमन होता है।
6. चातुर्मास्य में आनें वाली इस कर्क संक्रांति में भगवान विष्णु का चिंतन-मनन शुभ फल प्रदान करता है, अतः इस दिन विष्णु पूजन भी अनिवार्य होता है। श्रीविष्णु पूजन, सूर्यजप, पुरुषसूक्त तथा स्तोत्र पाठ करे ।
7. श्रावण मास की इस सक्रांति पर अवश्य ही भगवान शिव का विधिपूर्वक दुध, गंगा-जल, बिल्बपत्र, फल इत्यादि सहित षोडशोपचार पूजन करना भी आवश्यक होता है। इसके साथ ही "ऊँ नम: शिवाय:" मंत्र का जाप करते हुए शिव पूजन करना लाभकारी रहता है।
8. इस प्रकार पूजा करने के उपरांत एक तांबे के लोटे मे जल भरकर उसमे थोडा गुड, लाल चंदन, रोली, चावल, तथा लाल फूल डालकर मंत्र बोलते हुए सूर्यदेव को अर्ध्य दे ।
9. पितरो के उद्धार हेतू श्राद्ध अवश्य करें अन्यथा काले तिलो से पितृृश्राद्ध अर्थात तिलांजलि अवश्य दे।
10. अंत मे ब्राह्माणों को भोजन कराना चाहिए और दान इत्यादि देकर विदा करना चाहिए । ब्राह्मण को अन्नदान, घृत यानि धी दान, वस्त्रदान, फल, तथा तिल और गुड से बने लड्डू-रेवडी इत्यादि दान करने से अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है ।
11. सक्रांति के दिन उडद की दाल, चावल, देसी धी, तथा नमक का दान धर्म स्थान पर करे ।
12. इस दिन उडद की दाल की खिचड़ी बनाकर भगवान को भोग लगाकर अधिक से अधिक मात्रा मे बांटने से अत्यधिक पुण्य प्राप्ति होती है
13. कर्क संक्रान्ति के दिन घडा, गेहूं, चावल, सत्तू अनाज व दूध -चीनी, फल, वस्त्र, छाता, पंखा,शर्बत आदि अन्य गर्मियों में प्रयोग होने वाली वस्तुओ का दक्षिणा सहित दान करने का विशेष महत्व होता है।
14. इस दिन किसी भी शुभ और नए कार्य का प्रारंभ नहीं करना चाहिए। क्योंकि पंचांग में इस दिन को किसी भी नए या शुभ कार्य को करने के लिए शुभ नहीं माना जाता।
विशेष :- जो व्यक्ति अपने ऊपर से अनिष्ट ग्रहो का, अथवा मारकेष का बुरा प्रभाव हटाना चाहे वह इस दिन ब्राह्मण को दिया जाने वाला "तुलादान" या"छाया पात्र" का दान अवश्य करे।
*(समाप्त)*
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*आगामी लेख:-*
*1. 5 जुलाई के पंचांग मे "सावन मास"पर धारावाहिक लेख, तत्पश्चात 15 जुलाई के पंचांग से लेख के चौथे भाग, तथा अगले भागो का प्रसारण।*
*2. 11 जुलाई के पंचांग मे "कर्क सक्रांति" पर लेख।*
*3. 12 जुलाई के पंचांग मे "सोमवती अमावस्या" पर लेख।*
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☀️
*जय श्री राम*
*कल का पंचांग 🌹🌹🌹*
*मंगलवार,11.07.2023*
*श्री संवत 2080*
*शक संवत् 1945*
*सूर्य अयन- दक्षिणायन, उत्तर गोल*
*ऋतुः- वर्षा ऋतुः।*
*मास- प्रथम शुद्ध श्रावण मास।*
*पक्ष- कृष्ण पक्ष ।*
*तिथि- नवमी तिथि 6:04 pm तक*
*चंद्रराशि- चंद्र मेष राशि मे।*
*नक्षत्र- अश्विनी ऩक्षत्र 7:04 pm तक*
*योग- सुकर्मा योग 10:43 am तक (शुभ है)*
*करण- तैतिल करण 6:19 am तक*
*सूर्योदय- 5:31 am, सूर्यास्त 7:22 pm*
*अभिजित् नक्षत्र- 11:59 am से 12:54 pm*
*राहुकाल- 3:54 pm से 5:38 pm (शुभ कार्य वर्जित )*
*दिशाशूल- उत्तर दिशा।*
*जुलाई शुभ दिन:-* 11, 14 (सायं. 7 तक), 19, 21 (दोपहर 12 उपरांत), 22 (सवेरे 9 उपरांत), 23, 24, 25 (दोपहर 3 तक), 26, 28
*जुलाई अशुभ दिन:-* 12, 13, 15, 16, 17, 18, 20, 27, 29, 30, 31.
*गण्ड मूल आरम्भ:- 9 जुलाई रेवती नक्षत्र, 7:30 pm से 11 जुलाई को अश्विनी नक्षत्र 7:05 pm तक गंडमूल रहेगें।* गंडमूल नक्षत्रों मे जन्म लेने वाले बच्चो का मूलशांति पूजन आवश्यक है।
*सर्वार्थ सिद्ध योग:-11 जुलाई 5:31 am से 11 त्यौहा7:05 pm तक* (यह एक शुभयोग है, इसमे कोई व्यापारिक या कि राजकीय अनुबन्ध (कान्ट्रेक्ट) करना, परीक्षा, नौकरी अथवा चुनाव आदि के लिए आवेदन करना, क्रय-विक्रय करना, यात्रा या मुकद्दमा करना, भूमि , सवारी, वस्त्र आभूषणादि का क्रय करने के लिए शीघ्रतावश गुरु-शुक्रास्त, अधिमास एवं वेधादि का विचार सम्भव न हो, तो ये सर्वार्थसिद्धि योग ग्रहण किए जा सकते हैं।
*अमृत सिद्धि योग :- 11 जुलाई 5:31 am से 11 जुलाई 7:05 pm तक* इस योग मे सर्वाथ सिद्ध योगवाले कामो के अलावा प्रेमविवाह, विदेश यात्रा तथा सकाम अनुष्ठान करना शुभ होता है।
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*आगामी व्रत तथा त्यौहार:-*
13 जुला०- कामिका एकादशी। 14 जुला०- प्रदोष व्रत। 15 जुला०- मासिक शिवरात्रि। 16 जुला०- कर्क संक्रांति (पुण्यकाल 11:30 am तक)। 17 जुला०- श्रावण/सोमवती अमावस्या। 18 जुलाई- श्रवण (अधिक) मलमास आरंभ। 29 जुला०- पद्मिनी एकादशी। 30 जुला०- प्रदोष व्रत।
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*विशेष:- जो व्यक्ति वाराणसी से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु paytm या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है*
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*आपका दिन मंगलमय हो*. 💐💐💐
*आचार्य मोरध्वज शर्मा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश*
9648023364
9129998000

 

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