☀️
धारावाहिक लेख- मलमास, खरमास, अधिक मास तथा क्षयमास, भाग-1
मलमास, खरमास, अधिक मास तथा क्षयमास के भेद को समझने के लिए सर्वप्रथम निम्नलिखित सूत्रो तथा गणनाओ को समझना होगा ।
सूर्य संक्रांति, तिथि-पक्ष एवं नक्षत्र के आधार पर चार प्रकार के वर्ष माने गये हैं तथा चार प्रकार के ही मास व्यवहार में प्रयुक्त किए जाते हैं।
*सौर वर्ष एवं मास:-* सूर्य सिद्धांत के अनुसार सूर्य का क्रमशः बारह राशियों मे गोचर एक सौर वर्ष कहलाता है। सौर वर्ष का मान 365 दिन 15 घटी 31 पल 30 विपल है । इस प्रकार सूर्य के निरयण राशि प्रवेश (एक सूर्य संक्रांति से दूसरी सूर्य संक्रांति) तक की अवधि को सौर मास कहा जाता है।
*चान्द्र वर्ष एवं मास:-* चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से चैत्र कृष्ण अमावस्या तक का काल एक चांद्र वर्ष कहलाता है, चान्द्र वर्ष का मान 354 सावन दिन है।
इसी प्रकार एक पूर्णिमा से दूसरी पूर्णिमा या एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या तक की अवधि को शुक्ल अथवा कृष्ण चान्द्र मास कहा जाता है। इसमें तिथि क्षय या वृद्धि हो सकती है। (इस आधार पर चान्द्र मास का मान 29 दिन 22 घंटे तक का हो सकता है।)
*सावन वर्ष एवं मास:-* एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक 360 दिनों को मिलाकर एक सावन वर्ष बनता है। सावन वर्षमान 360 दिन है। इसी प्रकार एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक की 30 तिथियों को मिलाकर एक सावन मास बनता है। इस मास में किसी भी प्रकार की तिथि क्षय या वृद्धि नहीं होती है।
*नक्षत्र वर्ष एवं मास:-* चंद्र को 27 नक्षत्रों में बारह बार गोचर करने की अवधि को नक्षत्र वर्ष कहते हैं। इसका मान लगभग 324 दिन है। इसी प्रकार चन्द्र का 27 नक्षत्रों में एक बार गोचर करना ही नाक्षत्र मास कहलाता है। इसमें इसको 27 दिन 7 घंटे, 43 मिनट, 8 सेकंड का समय लगता हैं।
*मलमास-अधिक मास-पुरषोत्तम मास:-*
*पंचांगों में मासों की गणना चान्द्र मास से व वर्ष की गणना सौर मास से की जाती है।*
एक सौरवर्ष का मान 365 दिन 15 घटी 31 पल 30 विपल होता है । इसी प्रकार एक चान्द्र वर्ष का मान 354 दिन 22 घटी 1 पल 23 विपल होता है ।
इन दोनों वर्षमानों में परस्पर 10 दिन 53 घटी 30 पल 7 विपल का अंतर प्रति वर्ष रहता है।
सरल भाषा में इस कारण सौर वर्ष तथा चान्द्र वर्ष मे लगभग 10 दिन का अंतर होता है। तीन वर्षो में यह अंतर एक चान्द्र मास के बराबर हो जाता है । अतः दोनो के बीच के इसी अंतर को पाटने के लिए हर तीसरे वर्ष 1 अधिक मास की व्यवस्था की गई है । इसलिए हर तीसरे वर्ष उस सौर वर्ष में 13 चांद्र मास होते हैं।
इस प्रकार सूक्ष्म गणना के आधार पर प्रत्येक मलमास का आगमन 32.913 मास यानि लगभग 33 माह के उपरांत होता है। *वह तेरहवां मास ही अधिक मास, अधिमास, मलिम्लुच, मल या पुरूषोत्तम मास कहलाता है।*
फाल्गुन, चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद और आश्विन मास मे ही अधिक मास होते हैं।
कार्तिक मास क्षय व अधिक मास दोनों होता है।
माघ मास मे क्षय या अधिक नहीं होता है। (परंतु कहीं-कहीं माघ मास को क्षय मास में भी माना गया है।)
अधिक मास का फल:- ज्येष्ठ, भाद्रपद और आश्विन मे अधिक मास आये तो यह अशुभ फल दाता होते हैं। शेष मासों के अधिक मास शुभ फल प्रदायक हैं।
*क्षय मास या मल मास:-*
उपरोक्त लिखित गणित के आधार पर प्रत्येक 19 और 141 वर्षों बाद क्षय चान्द्र मास की व्यवस्था की गई है।
(जिस चान्द्र मास में स्पष्ट सूर्य की दो संक्रांति होती हो तो वह क्षय मास या मल मास कहलाता है।)
‘‘सिद्धांत शिरोमणि’’ के अनुसार क्षय मास केवल कार्तिकादि तीन मासों क्रमशः कार्तिक, मार्गशीर्ष (अग्रहायण) एवं पौष मास (भास्कराचार्य) में ही होता है, तथा उसी वर्ष दो अधिक मास भी होते है, जो कि फाल्गुन से कार्तिक के मध्य होता है। ये अधिमास से तीन मास पहले व बाद में हो सकते हैं।
*खर मास:-*
प्रत्येक वर्ष मे सूर्य जब गुरु की धनु या मीन राशि में गोचर करते हैं, तब खरमास होता है । धनु तथा मीन दोनो राशियां उनकी मलिन राशियां मानी जाती है। वर्ष में दो बार सूर्य गुरु की राशियों के संपर्क में आते हैं। प्रथम 16 दिसंबर से 14 जनवरी तथा दूसरी बार 14 मार्च से 13 अप्रैल तक। शास्त्रों के अनुसार सूर्य का गुरु की राशि में परिभ्रमण श्रेष्ठ नहीं माना जाता है, क्योंकि गुरु की राशि में सूर्य का गोचर होना, सूर्य को कमजोर स्थिति में होना माना जाता है।
प्रत्येक वर्ष मे दो बार खर मास होता है । 16 दिसंबर से 14 जनवरी तक सूर्य के धनु राशि में परिभ्रमण से तथा 14 मार्च से 13 अप्रैल तक सूर्य के मीन राशि मे गोचर करने से खर मास होता है, इसी खरमास को कई बार मलमास भी कह दिया जाता है।
*मलमास:-*
*इस प्रकार "अधिक मास" हो या "क्षय मास" उन्हे ही मलमास कहा जाता है, परन्तु कई बार तथा कुछ जगहों पर "खर मास" को भी मलमास कह दिया जाता है ।*
*सरल शब्दों मे खरमास तथा मलमास में अंतर:-*
अंत मे संक्षेप में फिर से कहा जाता है कि सूर्यदेव द्वारा वृहस्पति की दो राशियो मे एक माह के गोचर काल को खरमास कहते हैं।
जबकि "अधिक मास" तथा "क्षय मास" को मलमास कहा जाता है।
*(क्रमंशः)*
*लेख के द्वितीय तथा अंतिम भाग मे कल सावन
अधिक मास 2023 पर लेख।*
__________________________
*आगामी लेख:-*
*1. 5 जुलाई के पंचांग मे "सावन मास"पर धारावाहिक लेख, तत्पश्चात 13 जुलाई के पंचांग से लेख के चौथे भाग, तथा अगले भागो का प्रसारण।*
*2. 8 जुलाई के पंचांग मे "अधिक मास" पर धारावाहिक लेख।*
*3. 10 जुलाई के पंचांग मे "कामिका एकादशी" पर लेख।*
*4. 11 जुलाई के पंचांग मे "कर्क सक्रांति" पर लेख।*
*5. 12 जुलाई के पंचांग मे "सोमवती अमावस्या" पर लेख।*
__________________________
☀️
*जय श्री राम*
*कल का पंचांग 🌹🌹🌹*
*शनिवार,8.07.2023*
*श्री संवत 2080*
*शक संवत् 1945*
*सूर्य अयन- दक्षिणायन, उत्तर गोल*
*ऋतुः- वर्षा ऋतुः।*
*मास- प्रथम शुद्ध श्रावण मास।*
*पक्ष- कृष्ण पक्ष ।*
*तिथि- षष्ठी तिथि 9:51 pm तक*
*चंद्रराशि- चंद्र कुंभ राशि मे 2:58 pm तक तदोपरान्त मीन राशि।*
*नक्षत्र- पू० भाद्रपद ऩक्षत्र 8:36 pm तक*
*योग- सौभाग्य योग 5:23 pm तक (शुभ है)*
*करण- गर करण 11 am तक*
*सूर्योदय- 5:29 am, सूर्यास्त 7:23 pm*
*अभिजित् नक्षत्र- 11:58 am से 12:54 pm*
*राहुकाल- 8:58 am से 10:42 am (शुभ कार्य वर्जित )*
*दिशाशूल- पूर्व दिशा।*
*जुलाई शुभ दिन:-* 8, 9 (सवेरे 9 उपरांत), 19, 11, 14 (सायं. 7 तक), 19, 21 (दोपहर 12 उपरांत), 22 (सवेरे 9 उपरांत), 23, 24, 25 (दोपहर 3 तक), 26, 28
*जुलाई अशुभ दिन:-* 12, 13, 15, 16, 17, 18, 20, 27, 29, 30, 31.
*पंचक प्रारंभ:- 6 जुलाई 1:39 pm से 10 जुलाई 6:59 pm तक* पंचक नक्षत्रों मे निम्नलिखित काम नही करने चाहिए, 1.छत बनाना या स्तंभ बनाना (lantern or Pillar) 2.लकडी या तिनके तोड़ना , 3.चूल्हा लेना या बनाना, 4. दाह संस्कार करना (cremation) 5.पंलग चारपाई, खाट , चटाई बुनना या बनाना 6.बैठक का सोफा या गद्दियाँ बनाना । 7 लकड़ी ,तांबा ,पीतल को जमा करना ।(इन कामो के सिवा अन्य सभी शुभ काम पंचको मे किए जा सकते है।
_________________________
*आगामी व्रत तथा त्यौहार:-*
10 जुलाई- श्रावण सोमवार व्रत प्रारम्भ। 13 जुला०- कामिका एकादशी। 14 जुला०- प्रदोष व्रत। 15 जुला०- मासिक शिवरात्रि। 16 जुला०- कर्क संक्रांति (पुण्यकाल 11:30 am तक)। 17 जुला०- श्रावण/सोमवती अमावस्या। 18 जुलाई- श्रवण (अधिक) मलमास आरंभ। 29 जुला०- पद्मिनी एकादशी। 30 जुला०- प्रदोष व्रत।
______________________
*विशेष:- जो व्यक्ति वाराणसी से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु paytm या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है*
________________________
*आपका दिन मंगलमय हो*. 💐💐💐
*आचार्य मोरध्वज शर्मा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश*
9648023364
9129998000
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें