18 जुलाई 2023

भगवान शिव, सावन मास पूजन तथा व्रत विधि (भाग -6)


धारावाहिक लेख:- भगवान शिव, सावन मास पूजन तथा व्रत विधि (भाग -6)

*पूर्व मे प्रकाशित भाग के अंश........

सावन का पहला दिन- 4 जुलाई 2023, मंगलवार*
सावन का अंतिम दिन - 31 अगस्त (पूर्णिमा)

*सावन सोमवार:-*
सावन का पहला सोमवार: 10 जुलाई
सावन का दूसरा सोमवार: 17 जुलाई
सावन का तीसरा सोमवार: 24 जुलाई (अधिकमास)
सावन का चौथा सोमवार: 31 जुलाई (अधिकमास)
सावन का पांचवा सोमवार: 7 अगस्त (अधिकमास)
सावन का छठवां सोमवार: 14 अगस्त (अधिकमास)
सावन का सातवां सोमवार: 21 अगस्त
सावन का आठवां सोमवार: 28 अगस्त

चान्द्र मास गणना अनुसार वर्ष 2023 मे अधिक मास होने के कारण श्रावण अर्थात सावन मास लगभग दो महीने (59 दिन) का रहेगा। सावन मास का आंरभ दिनांक 4 जुलाई 2023 को होगा, 4 जुलाई से लेकर 31 अगस्त (श्रावण पूर्णिमा) तक की लगभग दो महीने की अवधि तक सावन मास रहेगा।

जिसमे 4 जुलाई से 17 जुलाई तक के सावन कृष्णपक्ष की अवधि को शुद्ध सावन माना जायेगा। 
तदोपरान्त 18 जुलाई से 16 अगस्त तक  अधिक मास रहेगा। 
इसके उपरांत 17 अगस्त से 31 अगस्त तक फिर से सावन शुक्ल पक्ष की अवधि को शुद्ध सावन माना जायेगा। 
इस तरह 2023 मे सावन 59 दिनों का होगा। ये दुर्लभ संयोग करीब 19 साल बाद मे निर्मित हो रहा है।

*गतांक से आगे.............*

*भगवान भोलेनाथ की प्रसन्नता तथा कृपा प्राप्ति हेतु कुछ लघु महामंत्र:-*

निम्नलिखित मंत्रों मे से किसी भी मंत्र का  प्रतिदिन कम से कम तीन माला का जाप रूद्राक्ष की माला से करने पर मनोकामना पूर्ण होती है ।

1.*ऊर्ध्व भू फट् ।*

2. *नमः शिवाय ।*

3. *ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय ।*

4.* ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्त्तये मह्यं मेधा प्रयच्छ स्वाहा ।*

5. *इं क्षं मं औं अं ।*

6. *प्रौं ह्रीं ठः ।*

7. *नमो नीलकण्ठाय ।*

8. *ॐ पार्वतीपतये नमः ।*

9. *ॐ पशुपतये नम:*

*पौराणिक मंत्र:-*
*ॐ मृत्युंजयमहादेवं त्राहि मां शरणागतम् ।*
*जन्ममृत्युजराव्याधिपीडितं कर्मबन्धनै:॥*

*समय मंत्र:-*
*ॐ हौं जू स: मृत्युंजयाय नम:॥*

॥ *बाणलिङ्गकवचम्*॥ 

अस्य बाणलिङ्ग कवचस्य संहारभैरवऋषिर्गायत्रीच्छन्दः, हौं बीजं, हूं शक्तिः, नमः कीलकं, श्रीबाणलिङ्ग सदाशिवो देवता, ममाभीष्ट सिद्ध्यर्थं जपे विनियोगः ॥ 

*ॐ कारो मे शिरः पातु नमः पातु ललाटकम् ।*
*शिवस्य कण्ठदेशं मे वक्षोदेशं षडक्षरम् ॥ १॥*

*बाणेश्वरः कटीं पातु द्वावूरू चन्द्रशेखरः ।*
*पादौ विश्वेश्वरः साक्षात् सर्वाङ्गं लिङ्गरूपधृक्॥२॥*

*इतिदं कवचं पूर्व्वं बाणलिङ्गस्य कान्ते पठति यदि मनुष्यः प्राञ्जलिः शुद्धचित्तः । व्रजति शिवसमीपं रोगोशोकप्रमुक्तो बहुधनसुखभोगी बाणलिङ्ग प्रसादतः॥३॥*

*।।इति बाणलिङ्ग कवचं समाप्तम् ॥*

आशुतोष भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बिल्व पत्र अर्पित करते हुए या उनके ऊपर जलधारा (अभिषेक) करते हुए बाणलिङ्ग कवचं का पाठ करे ।

*(क्रमंशः)*
*लेख के सातवे भाग मे कल "भगवान शिव के निमित्त व्रत*
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*आगामी लेख:-*
*1. 5 जुलाई के पंचांग मे "सावन मास"पर धारावाहिक लेख, तत्पश्चात 16 जुलाई के पंचांग से लेख के चौथे भाग, तथा अगले भागो का प्रसारण।*
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☀️

*जय श्री राम*
*कल का पंचांग 🌹🌹🌹*
*बुधवार,19.07.2023*
*श्री संवत 2080*
*शक संवत् 1945*
*सूर्य अयन- दक्षिणायन, उत्तर गोल*
*ऋतुः- वर्षा ऋतुः।*
*मास- प्रथम अधिक श्रावण मास।*
*पक्ष- शुक्ल पक्ष ।*
*तिथि- द्वितीया तिथि 20 जुलाई 4:30 am तक*
*चंद्रराशि- चंद्र कर्क राशि मे।*
*नक्षत्र- पुष्य ऩक्षत्र 7:58 am तक*
*योग- वज्र योग 10:26 am तक (अशुभ है)*
*करण- बालव करण 3:18 pm तक* 
*सूर्योदय- 5:35 am, सूर्यास्त 7:20 pm*
*अभिजित् नक्षत्र- कोई नही*
*राहुकाल- 12:27 pm से 2:10 pm (शुभ कार्य वर्जित )*
*दिशाशूल- उत्तर दिशा।*

*जुलाई शुभ दिन:-* 19, 21 (दोपहर 12 उपरांत), 22 (सवेरे 9 उपरांत), 23, 24, 25 (दोपहर 3 तक), 26, 28

*जुलाई अशुभ दिन:-* 20, 27, 29, 30, 31. 

*गण्ड मूल आरम्भ:- 19 जुलाई अश्लेषा नक्षत्र, 7:58 am से 21 जुलाई को मघा नक्षत्र 1:58 pm तक गंडमूल रहेगें।*  गंडमूल नक्षत्रों मे जन्म लेने वाले बच्चो का मूलशांति पूजन आवश्यक है।
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*आगामी व्रत तथा त्यौहार:-*                   
 29 जुला०- पद्मिनी एकादशी। 30 जुला०- प्रदोष व्रत। 1 अग०- सत्यनारायण/ पूर्णिमा व्रत। 4 अग०- संकष्टी चतुर्थी। 12 अग०- परम एकादशी। 13 अग०- प्रदोष व्रत। 14 अग०- मासिक शिवरात्रि। 16 अग०- अमावस्या। 17 अग०- सिंह संक्रांति -पुण्यकाल- 7:08 am के बाद सारा दिन)। 19 अग०- हरियाली तीज। 21 अग०- नाग पंचमी।22 अग०- कल्कि जयंती। 25 अग०- वरलक्ष्मी व्रत। 27 अग०- श्रावण पुत्रदा एकादशी। 28 अग०- प्रदोष व्रत। 29 मंगलवार ओणम। 30 अग०- रक्षा बंधन। 31 अग०- श्रावण पूर्णिमा व्रत/गायत्री जयंती।
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*विशेष:- जो व्यक्ति वाराणसी  से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु paytm या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है*
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आपका दिन मंगलमय हो 💐💐💐
आचार्य मोरध्वज शर्मा 
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश 
9648023364
9129998000

17 जुलाई 2023

भगवान शिव, सावन मास पूजन तथा व्रत विधि (भाग -5)


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*धारावाहिक लेख:- भगवान शिव, सावन मास पूजन तथा व्रत विधि (भाग -5)*

*पूर्व मे प्रकाशित भाग के अंश........*

*सावन का पहला दिन- 4 जुलाई 2023, मंगलवार*
*सावन का अंतिम दिन - 31 अगस्त (पूर्णिमा)*

*सावन सोमवार:-*
सावन का पहला सोमवार: 10 जुलाई
सावन का दूसरा सोमवार: 17 जुलाई
सावन का तीसरा सोमवार: 24 जुलाई (अधिकमास)
सावन का चौथा सोमवार: 31 जुलाई (अधिकमास)
सावन का पांचवा सोमवार: 7 अगस्त (अधिकमास)
सावन का छठवां सोमवार: 14 अगस्त (अधिकमास)
सावन का सातवां सोमवार: 21 अगस्त
सावन का आठवां सोमवार: 28 अगस्त

चान्द्र मास गणना अनुसार वर्ष 2023 मे अधिक मास होने के कारण श्रावण अर्थात सावन मास लगभग दो महीने (59 दिन) का रहेगा। सावन मास का आंरभ दिनांक 4 जुलाई 2023 को होगा, 4 जुलाई से लेकर 31 अगस्त (श्रावण पूर्णिमा) तक की लगभग दो महीने की अवधि तक सावन मास रहेगा।

जिसमे 4 जुलाई से 17 जुलाई तक के सावन कृष्णपक्ष की अवधि को शुद्ध सावन माना जायेगा। 
तदोपरान्त 18 जुलाई से 16 अगस्त तक  अधिक मास रहेगा। 
इसके उपरांत 17 अगस्त से 31 अगस्त तक फिर से सावन शुक्ल पक्ष की अवधि को शुद्ध सावन माना जायेगा। 
इस तरह 2023 मे सावन 59 दिनों का होगा। ये दुर्लभ संयोग करीब 19 साल बाद मे निर्मित हो रहा है।

*गतांक से आगे.............*

*सावन मास मे शिव पूजन द्वारा कष्ट निवारण हेतु उपाय:-*

1. जिन व्यक्तियों कि कुंडली मे साढेसाती, दूषित चंद्र की दशा-महादशा, अमावस्या-पूर्णिमा या ग्रहण का जन्म हो तो वह जातक व्रत के साथ शिव अष्टोतरी मंत्र का जाप करे।

*शिव अष्टोतरी मंत्र :-* 

  *॥ ह्रीं ॐ नमः शिवाय ह्रीं ॥*

2. मानसिक रोग ( डिप्रेशन, संवेदनशील स्वभाव, वहम ), क्षय रोग, दमा-श्वास रोग, साइनस, मिर्गी तथा किडनी रोगो से पीडित व्यकित या महावारी या स्त्री रोग से पीडित नारियाँ सावन के व्रत या पूजन के साथ रूद्र गायत्री मंत्र का जाप करे तो निश्चित रूप से लाभ प्राप्त होगा ।

*रूद्र गायत्री मंत्र :-*
 *ॐ पुरुषस्य विद्महे, सहस्राक्षस्य धीमहि ।*
      *तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ॥*

3. जो लोग मारकेष या लम्बी बीमारी से ग्रस्त हो वह सावन मास मे पूजन के साथ प्रतिदिन 11माला लधुमृत्युंजय मंत्र के साथ ॥ नमः शिवाय ॥ मंत्र का जाप करे तो केवल एक महीने के जाप के प्रभाव से मृत्युशैया से भी उठ खडे होगे ।

*लघुमृत्युंजय मंत्र :-*  
*॥ ॐ ह्रौं जू  सः ॥*

4. वास्तु शुद्धि अथवा गृह शुद्धि के लिए सावन मास मे अपनी क्षमतानुसार एक बार, पांच बार, सावन के चारो सोमवार या सावन माह मे लगातार रूद्राभिषेक करवाये ।

5. *भगवान शंकर का पंचाक्षर मंत्र:-*
*। ॐ नमः शिवाय ।* 

यह अमोघ एवं मोक्षदायी है, पंचाक्षर स्तोत्र अत्यंत पुण्यदायी व मनोरथो को पूर्ण करने वाला, समस्त भय को दूर करने वाला तथा मोक्ष प्रदान करने वाला स्तोत्र है ।

6. *शिव पंचाक्षर स्त्रोत:-*
*नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांगरागाय महेश्वराय ।*
*नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे "न" काराय नमः शिवायः॥*

अर्थ :- हे महेश्वर! आप नागराज को हार स्वरूप धारण करने वाले हैं। हे (तीननेत्रों वाले) त्रिलोचन आप भस्म से अलंकृत, नित्य (अनादि एवं अनंत) एवं शुद्ध हैं। अम्बर को वस्त्र सामान धारण करने वाले दिग्मबर शिव, आपके न् अक्षर द्वारा जाने वाले स्वरूप को नमस्कार ।

*मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय ।*
*मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे "म" काराय नमः शिवायः॥*

अर्थ :- चन्दन से अलंकृत, एवं गंगा की धारा द्वारा शोभायमान नन्दीश्वर एवं प्रमथनाथ के स्वामी महेश्वर आप सदामन्दार पर्वत एवं बहुदा अन्य स्रोतों से प्राप्त्य पुष्पों द्वारा पुजित हैं। हे म् स्वरूप धारी शिव, आपको नमन है।

*शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।*
*श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै"शि" काराय नमः शिवायः॥*

अर्थ :- हे धर्म ध्वज धारी, नीलकण्ठ, शि अक्षर द्वारा जाने जाने वाले महाप्रभु, आपने ही दक्ष के दम्भ यज्ञ का विनाश किया था। माँ गौरी केकमल मुख को सूर्य सामान तेज प्रदान करने वाले शिव, आपको नमस्कार है।

*वषिष्ठ कुभोदव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय ।*
*चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै"व" काराय नमः शिवायः॥*

अर्थ :- देवगणो एवं वशिष्ठ्ठ , अगस्त्य, गौतम आदि मुनियों द्वार पुजित देवाधिदेव! सूर्य, चन्द्रमा एवं अग्नि आपके तीन नेत्र सामन हैं। हे शिव आपके व् अक्षर द्वारा विदित स्वरूप कोअ नमस्कार है।

*यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय ।*
*दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै "य" काराय नमः शिवायः॥*

अर्थ :- हे यज्ञस्वरूप, जटाधारी शिव आप आदि, मध्य एवं अंत रहित सनातन हैं। हे दिव्य अम्बर धारी शिव आपके शि अक्षर द्वारा जाने जाने वाले स्वरूप को नमस्कारा है।

*पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत शिव सन्निधौ ।*
*शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते॥*

अर्थ :- जो कोई शिव के इस पंचाक्षर मंत्र का नित्य ध्यान करता है वह शिव के पुुण्य लोक को प्राप्त करता है तथा शिव के साथ सुख पुर्वक निवास करता है।

7. विषम काल में यदि कोई गंभीर या लाइलाज शारीरिक कष्ट, मारकेष या गहरा संकट आ जाये निम्नलिखित मंत्र का सवा लाख जप बड़ी से बड़ी समस्या, विघ्न या शारीरिक कष्ट को टाल देता है।

*महामंत्र:-*
*ॐ नमः शिवाय शुभं शुभं कुरू कुरू शिवाय नमः ॐ*

*(क्रमंशः)*
*लेख के छठे भाग मे कल "भगवान भोलेनाथ की प्रसन्नता तथा कृपा प्राप्ति हेतु कुछ लघु महामंत्र*
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*आगामी लेख:-*
*1. 5 जुलाई के पंचांग मे "सावन मास"पर धारावाहिक लेख, तत्पश्चात 16 जुलाई के पंचांग से लेख के चौथे भाग, तथा अगले भागो का प्रसारण।*
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☀️

*जय श्री राम*
*कल का पंचांग 🌹🌹🌹*
*सोमवार,17.07.2023*
*श्री संवत 2080*
*शक संवत् 1945*
*सूर्य अयन- दक्षिणायन, उत्तर गोल*
*ऋतुः- वर्षा ऋतुः।*
*मास- प्रथम शुद्ध श्रावण मास।*
*पक्ष- कृष्ण पक्ष ।*
*तिथि- अमावस्या तिथि 18 जुलाई 00:01 am तक*
*चंद्रराशि- चंद्र मिथुन राशि मे 10:32 am तक तदोपरान्त कर्क राशि।*
*नक्षत्र- पुनर्वसु ऩक्षत्र 18 जुलाई 5:11 am तक*
*योग- व्याघात योग 8:58 am तक (अशुभ है)*
*करण- चतुष्पद करण 11:02 am तक* 
*सूर्योदय- 5:34 am, सूर्यास्त 7:20 pm*
*अभिजित् नक्षत्र- 12 pm से 12:55 pm*
*राहुकाल- 7:17 am से 9:01 pm (शुभ कार्य वर्जित )*
*दिशाशूल- पूर्व दिशा।*

*जुलाई शुभ दिन:-* 19, 21 (दोपहर 12 उपरांत), 22 (सवेरे 9 उपरांत), 23, 24, 25 (दोपहर 3 तक), 26, 28

*जुलाई अशुभ दिन:-* 17, 18, 20, 27, 29, 30, 31. 
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*आगामी व्रत तथा त्यौहार:-*                   
17 जुला०- श्रावण/सोमवती अमावस्या। 18 जुलाई- श्रवण (अधिक) मलमास आरंभ। 29 जुला०- पद्मिनी एकादशी। 30 जुला०- प्रदोष व्रत।
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*विशेष:- जो व्यक्ति वाराणसी  से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु paytm या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है*
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*आपका दिन मंगलमय हो*. 💐💐💐
आचार्य मोरध्वज शर्मा 
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश।।
9648023364
9129998000

15 जुलाई 2023

भगवान शिव, सावन मास पूजन तथा व्रत विधि (भाग -4)


धारावाहिक लेख:- भगवान शिव, सावन मास पूजन तथा व्रत विधि (भाग -4)


पूर्व मे प्रकाशित भाग के अंश........

सावन का पहला दिन- 4 जुलाई 2023, मंगलवार
सावन का अंतिम दिन - 31 अगस्त (पूर्णिमा)

सावन शिवरात्रि जलाभिषेक- 15/16 जुलाई।
सावन शिवरात्रि:- 15 जुलाई

सावन सोमवार:-
सावन का पहला सोमवार: 10 जुलाई
सावन का दूसरा सोमवार: 17 जुलाई
सावन का तीसरा सोमवार: 24 जुलाई (अधिकमास)
सावन का चौथा सोमवार: 31 जुलाई (अधिकमास)
सावन का पांचवा सोमवार: 7 अगस्त (अधिकमास)
सावन का छठवां सोमवार: 14 अगस्त (अधिकमास)
सावन का सातवां सोमवार: 21 अगस्त
सावन का आठवां सोमवार: 28 अगस्त

चान्द्र मास गणना अनुसार वर्ष 2023 मे अधिक मास होने के कारण श्रावण अर्थात सावन मास लगभग दो महीने (59 दिन) का रहेगा। सावन मास का आंरभ दिनांक 4 जुलाई 2023 को होगा, 4 जुलाई से लेकर 31 अगस्त (श्रावण पूर्णिमा) तक की लगभग दो महीने की अवधि तक सावन मास रहेगा।

जिसमे 4 जुलाई से 17 जुलाई तक के सावन कृष्णपक्ष की अवधि को शुद्ध सावन माना जायेगा। 
तदोपरान्त 18 जुलाई से 16 अगस्त तक  अधिक मास रहेगा। 
इसके उपरांत 17 अगस्त से 31 अगस्त तक फिर से सावन शुक्ल पक्ष की अवधि को शुद्ध सावन माना जायेगा। 
इस तरह 2023 मे सावन 59 दिनों का होगा। ये दुर्लभ संयोग करीब 19 साल बाद मे निर्मित हो रहा है।

*गतांक से आगे.............*

*सावन माह मे भगवान शिव की अराधना के द्वारा मनोकामना पूर्ण करने के उपाय:-*

1. धन अथवा लक्ष्मी तथा जीवन मे शांति पाने के लिए बेलपत्र या दूब से शिवपूजन करे।

2. आयु तथा अच्छे स्वास्थ्य के लिए चम्पा के फूलो से, विद्या पाने के लिए सावन मास मे मल्लिका या चमेली के फूलो से "श्री हरि" की पूजा करे।
  
3. संतान या पुत्र की इच्छा करने वाले मनुष्य सावन मास मे कटेरी के पत्तों से शिव तथा विष्णु पूजन करे।

4. बुरे अर्थात अशुभ स्वप्नों से परेशान हो तो मुक्ति हेतु  धान्य यानि अनाज से शिव पूजन करे।

5. बिल्वपत्रों पर चंदन से "ऊँ नमः शिवाय" लिखकर उन पत्तों की माला बनाकर भोलेनाथ को अर्पित करें। बिल्वपत्र कहीं से भी फटे हुए यानि खण्डित नही होंने चाहिए।
 
(शास्त्रों मे इन फूलो या पत्तों को अर्पण करने की संख्या एक लाख कही गई है, जोकि अब संभव नही है अतः इन्हें दस की संख्या मे अर्पित करे।)

6. रोगों से परेशान हैं अौर दवाईयां लेने के बाद भी स्वास्थ्य लाभ नहीं हो रहा हो तो, जल में दूध अौर काले तिल मिलाकर शिवलिंग का अभिषेक करने पर सभी रोगों से मुक्ति मिल जाती है, तथा रोग मुक्ति हेतु कुशा मिश्रित जल से रुद्राभिषेक करने से किसी भी प्रकार की व्याधि अर्थात रोग से मुक्ति मिलती है।
 
7. जल में केसर मिलाकर शिवलिंग पर अर्पित करने से विवाह तथा वैवाहिक जीवन से संबंधित समस्याएं दूर होती है। इसके साथ ही गृहस्थ जीवन में आ रही परेशानियां भी दूर हो जाती है। 
 
8. कुंडली में शनि दोषपूर्ण है अौर पीड़ा दे रहा है तो जल में काले तिल मिलाकर शिवलिंग पर अर्पित करने से शीघ्र राहत मिलेगी।
 
9. शिवलिंग पर दूर्वा अर्पित करें। इससे दीर्घायु होती है। ऐसा करने से भोलेनाथ के साथ-साथ श्रीगणेश की भी कृपा प्राप्त होती है। 
 
10. नियमित रूप से आंकड़े (आक) के फूल  की माला बनाकर शिवलिंग पर अर्पित करें। इससे व्यक्ति की हर मनोकामना पूर्ण होती है। 
 
11. शिवलिंग पर चावल अर्पित करने से घर में लक्ष्मी का वास स्थाई हो जाता है। इस बात का ध्यान रखें कि शिवलिंग पर अर्पित चावल खंड़ित न हो। ऐसा करने से भगवान शिव के साथ-साथ देवी लक्ष्मी की भी कृपा प्राप्त होती है। 
 
12. प्रतिदिन शिवलिंग पर धतूरा अर्पित करने से घर अौर संतान से संबंधित समस्याएं दूर होती है। इससे संतान के कार्यों में भी सफलता मिलती है।

13. *विशेष:-* विवाहित महिलाएं जिनके दाम्पत्य जीवन मे किसी प्रकार की कमी, कष्ट या दुख आ गया हो वह, तथा विवाह योग्य वह कन्यायें जिनका विवाह होने मे बाधा आ रही हो उन्हे सावन माह के 30 व्रत या सावन के चारो सोमवार के व्रत करने चाहिए तथा साथ मे 40 दिन तक गौरी पूजन करना चाहिये, इससे बाधा- दुख इत्यादि समाप्त होकर सुखी विवाहित जीवन प्राप्त होगा ।

14. पुरूषों को यह व्रत करने से, तथा साथ मे शिवगायत्री मंत्र करने से कारोबारी जीवन मे तरक्की, तथा आर्थिक रूप से मज़बूती मिलती है।
शिव गायत्री मंत्र :-
*ॐ सदाशिवाय विद्महे सहस्राक्ष्याय धीमहि।*
*तन्नः साम्बः प्रचोदयात्॥*

15. जिनकी कुंडली मे कालसर्पदोष या पितृदोष हो, तथा जो व्यक्ति नशे, जुआ, तथा चरित्रहीनता जैसी बुरी लतो के न छोड़ पा रहे हो, वह लोग विधिवत् व्रत रखकर आराधना करते हुए प्रतिदिन "श्री शिवापराध क्षमा स्तोत्र" का पाठ करे, तथा भगवान शिव से अपने पाप कर्मो से मुक्ति हेतु प्रार्थना करे।

 चरित्रहीनता तथा अन्य कर्मो से कुलषित हुआ उनका कुल तथा पूर्वज जोकि परलोक से उनके कर्मो को देखते हुए पीड़ा मे तडपते होगें, उन पितरो को को राहत मिलेगी, तथा स्वंय वह मनुष्य अगले जन्मो मे पापो की पुनरावृत्ति से बचते हुए पशु योनि मे जाने से बचेगे । इससे निश्चित रूप से उनके पितरो का उद्धार होगा।

*(क्रमंशः)*
*लेख के पांचवे भाग मे कल "सावन मास मे शिव पूजन द्वारा कष्ट निवारण हेतु उपाय"।*
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*आगामी लेख:-*
*1. 5 जुलाई के पंचांग मे "सावन मास"पर धारावाहिक लेख, तत्पश्चात 16 जुलाई के पंचांग से लेख के चौथे भाग, तथा अगले भागो का प्रसारण।*
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☀️

*जय श्री राम*
*कल का पंचांग 🌹🌹🌹*
*रविवार,16.07.2023*
*श्री संवत 2080*
*शक संवत् 1945*
*सूर्य अयन- दक्षिणायन, उत्तर गोल*
*ऋतुः- वर्षा ऋतुः।*
*मास- प्रथम शुद्ध श्रावण मास।*
*पक्ष- कृष्ण पक्ष ।*
*तिथि- चतुर्दशी तिथि 10:08 pm तक*
*चंद्रराशि- चंद्र मिथुन राशि मे।*
*नक्षत्र- आद्ररा ऩक्षत्र 17 जुलाई 2:39 am तक*
*योग- ध्रुव योग 8:33 am तक (शुभ है)*
*करण- विष्टि करण 9:17 am तक* 
*सूर्योदय- 5:33 am, सूर्यास्त 7:21 pm*
*अभिजित् नक्षत्र- 11:59 am से 12:55 pm*
*राहुकाल- 5:57 pm से 7:21 pm (शुभ कार्य वर्जित )*
*दिशाशूल- पश्चिम दिशा।*

*जुलाई शुभ दिन:-* 19, 21 (दोपहर 12 उपरांत), 22 (सवेरे 9 उपरांत), 23, 24, 25 (दोपहर 3 तक), 26, 28

*जुलाई अशुभ दिन:-* 16, 17, 18, 20, 27, 29, 30, 31. 

*भद्रा:-*  15 जुलाई 8:33 pm से 16 जुलाई 9:21 am तक (भद्रा मे मुण्डन, गृहारंभ, गृहप्रवेश, विवाह, रक्षाबंधन आदि शुभ काम नही करने चाहिये , लेकिन भद्रा मे स्त्री प्रसंग, यज्ञ, तीर्थस्नान, आपरेशन, मुकद्दमा, आग लगाना, काटना, जानवर संबंधी काम किए जा सकतें है)
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*आगामी व्रत तथा त्यौहार:-*                   
 15 जुला०- मासिक शिवरात्रि। 16 जुला०- कर्क संक्रांति (पुण्यकाल 11:30 am तक)। 17 जुला०- श्रावण/सोमवती अमावस्या। 18 जुलाई- श्रवण (अधिक) मलमास आरंभ। 29 जुला०- पद्मिनी एकादशी। 30 जुला०- प्रदोष व्रत।
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*विशेष:- जो व्यक्ति वाराणसी से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु paytm या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है*
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*आपका दिन मंगलमय हो*. 💐💐💐
*आचार्य मोरध्वज शर्मा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश*
9648023364
9129998000

कौन था पहला कावड़िया


कौन था पहला कावड़िया 
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किसने किया था सबसे पहले शिव लिंग का जल अभिषेक?

श्रावण का महीना आते ही हर कोई शिव की भक्ति में झूमने लगता है. इस पावन त्यौहार में पुरे उत्तर भारत और अन्य राज्यो से कावड़िये शिव के पवित्र धामो में जाते है तथा वहां से गंगाजल लाकर शिव का जलाभिषेक करते है.

कावड़ियो को नंगे पैर बहुत दूर चलकर गंगा जल लाना होता है तथा शर्त यह होती है की कावड़ी, शिव कावड़ को जमीन में नही रखता. इस प्रकार शिव भक्त अनेक कठिनाइयों का समाना करके गंगा जल लाते है तथा उससे शिव का जलाभिषेक करते है.

परन्तु क्या आपने कभी यह सोचा है की आखिर वह कौन पहला व्यक्ति होगा जो सबसे पहला कावड़ी था तथा जिसने सबसे पहले भगवान शिव का जलाभिषेक कर उनकी कृपा प्राप्त करी व इस परम्परा का आरम्भ हुआ.ऋषि जमदग्नि ने उनका बहुत अच्छी तरह से आदर सत्कार किया उनकी सेवा में किसी भी तरह की कमी नहीं आने दी . सहस्त्रबाहु ऋषि के आदर सत्कार से बहुत ही प्रसन्न हुआ परन्तु उसे यह बात समझ में नहीं आ रही थी की आखिर एक साधारण एवम गरीब ऋषि उसके और उसकी सेना के लिए इतना सारा खाना कैसे जुटा पाया .

तब उसे अपने सेनिको से यह पता लगा की रसिहि जमदग्नि के पास एक कामधेनु नाम की दिव्य गाय है. जिससे कुछ भी मांगो वह सब कुछ प्रदान करती है.

जब राजा को यह ज्ञात हुआ की इसी कामधेनु गाय के कारण ऋषि जमदग्नि संसाधन जुटाने में कामयाब हो पाया तो उस गाय को प्राप्त करने के लिए सहस्त्रबाहु के मन में लालच उतपन्न हुआ.

उसने ऋषि से कामधेनु गाय मांगी परन्तु ऋषि जमदग्नि ने कामधेनु गाय को देने से मना कर दिया. इस पर सह्त्रबाहु अत्यंत कोर्धित हो गया तथा उसने कामधेनु गाय को प्राप्त करने के लिए ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी.

जब यह खबर परशुराम को पता लगी की सहस्त्रबाहु ने उनके पिता की हत्या कर दी है तथा वह कामधेनु गाय को अपने साथ ले गया है तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए. उन्होंने सहस्त्रबाहु के सभी भुजाओ को काट कर उसकी हत्या कर डाली.बाद में परशुराम ने अपने तपस्या प्रभाव से अपने पिता जमदग्नि को पुनः जीवनदान दिया. जब ऋषि को यह बात पता चला की परशुराम ने सहस्त्रबाहु की हत्या कर दी तो उन्होंने इसके पश्चाताप के लिए परशुराम जी से भगवान शिव का जलाभिषेक करने को कहा.

तब परशुराम अपने पिता के आज्ञा से अनेको मिल दूर चलकर गंगा जल लेकर आये तथा आश्रम के पास ही शिवलिंग की स्थापना कर शिव का महाभिषेक किया व उनकी स्तुति करी .

जिस क्षेत्र में परशुराम ने शिवलिंग स्थापित किया था उस क्षेत्र का प्रमाण आज भी मौजूद है. वह क्षेत्र उत्तरप्रदेश में आता है तथा पूरा महादेव के नाम से 
प्रसिद्ध है।
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सावन मे कांवड यात्रा तथा जलाभिषेक, भाग-1


लेख:-सावन मे कांवड यात्रा तथा जलाभिषेक, भाग-1

वर्ष 2023 मे कांवड़ यात्रा की शुरुआत 4 जुलाई 2023 से होगी और 15 जुलाई 2023 तक चलेगी।

सावन माह शिवरात्रि जलाभिषेक:-
हिंदू शास्त्रों के मुताबिक मासिक शिवरात्रि हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को पड़ती है। लेकिन सावन की शिवरात्रि का अलग महत्व है। इस दिन भगवान आशुतोष की विशेष पूजा अर्चना के साथ शिवालयों में जलाभिषेक तथा कावंडियो द्वारा लाये गये गंगाजल से अभिषेक करके अपनी कांवड यात्रा को पूर्ण करने की परंपरा है।

पंचांग के अनुसार साल 2023 में सावन महीने में शिवरात्रि 15 जुलाई, शनिवार को पड़ेगी।
सावन मास की चतुर्दशी तिथि का प्रारंभ 15 जुलाई को शाम 8:33 बजे से प्रारम्भ होकर इसका समापन 16 जुलाई को रात्रि 10:09 बजे पर होगा। मंदिरों में त्रयोदशी व चतुर्दशी के दिन शिवभक्त भगवान आशुतोष का जलाभिषेक करेंगे। 

*चतुर्दशी तिथि प्रारंभ:- 15 जुलाई- 8:33 pm* 
*चतुर्दशी तिथि समाप्त:- 16 जुलाई-10:09 pm* 

15 जुलाई को प्रदोष काल एवं 16 जुलाई को शिवलिङ्ग पर जलाभिषेक हेतु प्रातःकाल सूर्योदय के पश्चात् 2 घण्टे 24 मिनट का समय श्रेष्ठ रहेगा। 

*श्रावण शिवरात्रि जलाभिषेक मुहूर्त:-*
*1. 15 जुलाई प्रदोषकाल मुहूर्त- 7:30 pm से 9:32 pm तक*
*2. 16 जुलाई प्रातः 5:38 am से 8:22 am तक, तत्पश्चात सायः 7:29 pm से 9:31 pm तक*

*विशेष:-* भक्तगण इन मुहूत्तों में से कांवड़ जलाभिषेक हेतु जल को लाने एवं जलांजली अभिषेक हेतु कोई भी मुहूर्त्त ग्रहण कर सकते हैं*

*विशेष:-* कुछ विद्वान मुख्य मुहूर्त्त यानि श्रावण शिवरात्रि, वाले दिन सारा दिन ही अभिषेक करते हैं, तथा कुछ प्रदोषकाल व निशीथ में जलाभिषेक करते हैं। आर्द्रा नक्षत्र तथा मिथुन लग्न विशेष रूप से शिव पूजन एवं जलाभिषेक के लिए शुभ माना गया है।

हिन्दू धर्म मे श्रावण माह में शिव की भक्ति के महत्व का वर्णन वेद तथा पुराणो में किया गया है। चारों ओर का वातावरण शिव भक्ति से ओत-प्रोत रहता है। शिव मंदिरों में शिवभक्तों का तांता लगा रहता है।

सावन का यह माह शिवभक्ति और आस्था का प्रतीक माना जाता है। कांवड़ियों द्वारा जल लाने की यात्रा के आरंभ की कुछ तिथियाँ होती हैं। इन्ही तिथियों पर कांवड़ियों को यात्रा करना शुभ रहता है। 

श्रावण के पावन मास में शिव भक्तों के द्वारा काँवर यात्रा का आयोजन किया जाता है। इस दौरान लाखों शिव भक्त दूरस्थ तथा दुर्गम स्थानों जैसे गोमुख, श्री अमरनाथ, श्री हरिद्वार, नीलकण्ठ एवं गंगा आदि तीर्थो से पवित्र गंगाजल के कलश से भरी काँवड़ को अपने कंधों रखकर पैदल लाते हैं और उस गंगा जल से भगवान् शिव के प्रतिष्ठित मन्दिरों, ज्योतिर्लिङ्गों, विग्रहों, स्वरूपों तथा क्षेत्रीय मन्दिरों में शिवभक्त कांवड़ियों द्वारा श्रद्धारूपी श्रीगङ्गाजल का अभिषेक किया जाता है।   

स्कन्दपुराणानुसार श्रावण मास में नियमपूर्वक नक्त व्रत करना चाहिए, और महीने भर प्रतिदिन रुद्राभिषेक करना अत्यंत पुण्यदायी होता है।

प्रतिवर्ष होने वाली इस यात्रा में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं को काँवरिया अथवा काँवड़िया कहा जाता है। भगवान् शिव की प्रसन्नता हेतु आषाढ़ पूर्णिमा से लेकर सम्पूर्ण श्रावण मास, शिवभक्त कांवड़िये तीर्थ स्थलों तथा अन्य तीर्थ स्थलो से गंगा जल लाकर इसी प्रकार से भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं।

*कांवड लाने तथा जलाभिषेक करने का पौराणिक महत्व:-*
हिन्दू धर्म शास्त्रों मे प्रतिवर्ष सावन मास में कांवड लाने तथा भगवान शिव का जलाभिषेक करने के कई कारणों का उल्लेख किया गया है, जिसमें से दो मुख्य कारण इस प्रकार से है-

*1. प्रथम कारण:-*
सतयुग मे देवासुर संग्राम के समय समुद्र मंथन से जो 14 रत्न प्राप्त हुए थे, उनमे "अमृतकलश" से पहले "कालकूट" नामक हलाहल यानि विष भी प्राप्त हुआ था। सृष्टि की रक्षा तथा सर्वकल्याण हेतु उस भयंकर विष को स्थान देने के लिए भगवान शिव ने उस विष का पान कर लिया, उस विष को कण्ठ मे धारण करने से विष के घातक प्रभाव से भगवान शिव का बदन भयानक गरमी से झुलसने लगा, तब इस भीषण जलन से मुक्ति प्रदान करने के लिए देवी-देवताओ, ऋषियों-मुनियों तथा शिवगणों ने गंगाजल, तथा अन्य पवित्र नदियों के जल से भगवान शिव का अभिषेक करके, विष की तीव्र ज्वाला को शान्त किया। 

तभी से श्रावण मास मे शिवकृपा पाने हेतु सावनमास की पूजा, अभिषेक तथा कांवड़ यात्रा की परंपरा शुरू हुई, और तभी से ही विष के कण्ठ मे धारण विष के प्रभाव से भगवान शिव को नीलकंठ भी क्हा जाने लगा ।

शिवपुराण' में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इसलिए जल से उनकी अभिषेक के रूप में आराधना का उत्तमोत्तम फल है, जिसमें कोई संशय नहीं है।

*2. द्वितीय कारण:-*
भगवान शिव को सावन का महीना अत्यंत प्रिय है, क्योंकि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे, और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है। अतः शिवभक्तो ने भगवान शिव की प्रसन्नता पाने हेतु सावन मास में भगवान का जलाभिषेक करना प्रारम्भ कर दिया।


*सावन मे शिव जलाभिषेक का फल:-*
श्रावण मास भगवान शिव का जलाभिषेक करने से व्यक्ति को समस्त सुखों की प्राप्ति होती है। इस विषय में प्रसिद्ध एक पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रावण मास में जो भी मनुष्य कांवड लाता अथवा शिव का जलाभिषेक करता है, उसकी समस्त इच्छाएं पूर्ण होती है। 

इन दिनों किया गया जलाभिषेक, दान-पुण्य एवं पूजन समस्त ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के समान फल देने वाला होता है। इस जलाभिषेक के फलस्वरूप  अनेक कामनाएं तथा उद्देश्यों की पूर्ति हो सकती है, इससे सुखी वैवाहिक जीवन, संतान सुख, सुख-समृद्धि प्राप्ति, मनोवांछित जीवनसाथी की प्राप्ति, तथा संतान सुख अर्थात कुल वृद्धि कारक होता है। इससे लक्ष्मी प्राप्ति और यश-कीर्ति भी प्राप्त होती है।

कुछ लोगों का भ्रम है कि श्रावण भाद्रपद मास में नदियां रजस्वलारूप हो जाने से उनका जल पवित्र नहीं होता। परन्तु स्कन्दपुराण में स्पष्ट लिखा है कि सिन्धु, सूती, चन्द्रभागा, गंगा, सरयू, नर्मदा, यमुना, प्लक्षजाला, सरस्वती- ये सभी नंदसंज्ञा वाली नदियां रजोदोष से युक्त नहीं होती है। ये सभी अवस्थाओं में निर्मल रहती है।

*(समाप्त)*
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*आगामी लेख:-*
*1. 5 जुलाई के पंचांग मे "सावन मास"पर धारावाहिक लेख, तत्पश्चात 16 जुलाई के पंचांग से लेख के चौथे भाग, तथा अगले भागो का प्रसारण।*
*2. 15 जुलाई के पंचांग मे "सावन शिवरात्रि पर भक्तो तथा कांवडियो द्वारा जलाभिषेक" विषय पर लेख।*
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*जय श्री राम*
*कल का पंचांग 🌹🌹🌹*
*शनिवार,15.07.2023*
*श्री संवत 2080*
*शक संवत् 1945*
*सूर्य अयन- दक्षिणायन, उत्तर गोल*
*ऋतुः- वर्षा ऋतुः।*
*मास- प्रथम शुद्ध श्रावण मास।*
*पक्ष- कृष्ण पक्ष ।*
*तिथि- त्रयोदशी तिथि 8:32 pm तक*
*चंद्रराशि- चंद्र वृष राशि मे 11:22 am तक तदोपरान्त मिथुन राशि।*
*नक्षत्र- मृगशिरा ऩक्षत्र 16 जुलाई 00:23 am तक*
*योग- वृद्घि योग 8:22 am तक (शुभ है)*
*करण- गर करण 7:52 am तक* 
*सूर्योदय- 5:33 am, सूर्यास्त 7:21 pm*
*अभिजित् नक्षत्र- 11:59 am से 12:55 pm*
*राहुकाल- 9 am से 10:43 am (शुभ कार्य वर्जित )*
*दिशाशूल- पूर्व दिशा।*

*जुलाई शुभ दिन:-* 19, 21 (दोपहर 12 उपरांत), 22 (सवेरे 9 उपरांत), 23, 24, 25 (दोपहर 3 तक), 26, 28

*जुलाई अशुभ दिन:-* 15, 16, 17, 18, 20, 27, 29, 30, 31. 
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*आगामी व्रत तथा त्यौहार:-*                   
 15 जुला०- मासिक शिवरात्रि। 16 जुला०- कर्क संक्रांति (पुण्यकाल 11:30 am तक)। 17 जुला०- श्रावण/सोमवती अमावस्या। 18 जुलाई- श्रवण (अधिक) मलमास आरंभ। 29 जुला०- पद्मिनी एकादशी। 30 जुला०- प्रदोष व्रत।
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*विशेष:- जो व्यक्ति वाराणसी से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु paytm या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है*
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*आपका दिन मंगलमय हो*. 💐💐💐
*आचार्य मोरध्वज शर्मा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश*
9648023364
9129998000

14 जुलाई 2023

हरियाली अमावस्या/दर्श अमावस्या, शुद्ध श्रावण अमावस्या, 17.07.2023, भाग-3


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*लेख:- हरियाली अमावस्या/दर्श अमावस्या, शुद्ध श्रावण अमावस्या, 17.07.2023, भाग-3*
अंतिम*

*अमावस्या तिथि आरंभ- 16 जुलाई 10:08 pm*
*अमावस्या तिथि समाप्त- 17/18 जुलाई मध्यरात्रि 00:01 am*

*हरियाली अमावस्या के पर्व द्वारा बारह राशियों के अनुसार  पर्यावरण की रक्षा हेतु वृक्षारोपण।*


 हरियाली अमावस्या का पर्व मनुष्यों को, प्राणी जगत तथा पर्यावरण के सरंक्षण हेतु पेड-पौधों का क्या महत्व है, इस संबंध में भी जागरूक करता है। 

हिन्दू धर्म के त्रिकालदर्शी ऋषियों तथा सिद्ध साधु-महात्माओ ने प्राचीन काल में पर्यावरण के  सरंक्षण के लिए पेड़-पौधे तथा वृक्षो की महत्ता को समझते हुए, मनुष्यों को वृक्षारोपण के लिए प्रेरित करने के लिए ही 'हरियाली अमावस्या' के पर्व को वृक्षारोपण के साथ जोडा।

अतः प्राचीन काल से ही हिन्दु धर्म के अनुयायी  हरियाली अमावस्या के अवसर पर ऐसे पेड-पौधे तथा वृक्षों का रोपण करते आ रहे हैं, जोकि हिन्दू धर्म मे शुभ, सम्पूर्ण प्राणी जगत के लिए लाभदायक तथा पर्यावरण के सरंक्षण के लिए अत्यंत फायदेमंद होते हैं।

भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बारह राशियाँ होती है, प्रत्येक मनुष्य को अपने जन्म समय एक राशि प्राप्त होती है, जिसके अनुसार मनुष्य जीवन भर शुभाशुभ फल को प्राप्त करता है। प्रत्येक जन्म राशि किसी न किसी पेड़-पौधे तथा वनस्पतियों का प्रतिनिधित्व करती है। अपनी इसी जन्म राशि के अनुसार शुभ फल प्राप्त करने के लिए मनुष्यों को हरियाली अमावस्या के दिन वृक्षारोपण अवश्य करना चाहिए।



*1. मेष राशि:-*
मेष राशि के जातकों को 'खैर अथवा अनार' के पौधे का रोपण करके बड़े होने तक उसकी देखभाल करनी चाहिए।

*2. वृष राशि:-*
वृष राशि के जातकों को "गूलर, अशोक के वृक्ष अथवा सीताफल" के पौधे का रोपण करके बड़े होने तक उसकी देखभाल करनी चाहिए।

*3. मिथुन राशि:-*
मिथुन राशि के जातकों को 'अपामार्ग या आंवले वृक्ष के पौधे का रोपण करके बड़े होने तक उसकी देखभाल करनी चाहिए।

*4. कर्क राशि:-*
कर्क राशि के जातकों को 'ढ़ाक अथवा नारियल' वृक्ष के पौधे का रोपण करके बड़े होने तक उसकी देखभाल करनी चाहिए।

*5. सिंह राशि:-*
सिंह राशि के जातकों को  "आक (अर्क) यानि सफेद आंकड़े अथवा बेल के वृक्ष" के पौधे का रोपण करना चाहिए।

*6. कन्या राशि:-*
कन्या राशि के जातकों को 'अपामार्ग, नीम अथवा अशोक' वृक्ष के पौधे का रोपण करके बड़े होने तक उसकी देखभाल करनी चाहिए।

*7. तुला राशि:-*
तुला राशि के जातकों को 'गूलर' वृक्ष के पौधे का रोपण करके बड़े होने तक उसकी देखभाल करनी चाहिए।

*8. वृश्चिक राशि:-*
वृश्चिक राशि के जातकों को 'खैर या अनार' वृक्ष के पौधे का रोपण करके बड़े होने तक उसकी देखभाल करनी चाहिए।

*9. धनु राशि:-* 
धनु राशि के जातकों को 'आम, पीपल अथवा बरगद' वृक्ष के पौधे का रोपण करके बड़े होने तक उसकी देखभाल करनी चाहिए।

*10. मकर राशि:-*
मकर राशि के जातकों को 'शमी' वृक्ष के पौधे का रोपण करके बड़े होने तक उसकी देखभाल करनी चाहिए।

*11. कुंभ राशि:-*
कुंभ राशि के जातकों को 'शमी अथवा शीशम' वृक्ष के पौधे का रोपण करके बड़े होने तक उसकी देखभाल करनी चाहिए।

*12. मीन राशि:-*
मीन राशि के जातकों को 'केला अथवा आम' वृक्ष के पौधे का रोपण करके बड़े होने तक उसकी देखभाल करनी चाहिए।

*(समाप्त)*
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*आगामी लेख:-*
*1. 5 जुलाई के पंचांग मे "सावन मास"पर धारावाहिक लेख, तत्पश्चात 15 जुलाई के पंचांग से लेख के चौथे भाग, तथा अगले भागो का प्रसारण।*
*2. 15 जुलाई के पंचांग मे "सावन शिवरात्रि पर भक्तो तथा कांवडियो द्वारा जलाभिषेक" विषय पर लेख।*
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*जय श्री राम*
*कल का पंचांग 🌹🌹🌹*
*शुक्रवार,14.07.2023*
*श्री संवत 2080*
*शक संवत् 1945*
*सूर्य अयन- दक्षिणायन, उत्तर गोल*
*ऋतुः- वर्षा ऋतुः।*
*मास- प्रथम शुद्ध श्रावण मास।*
*पक्ष- कृष्ण पक्ष ।*
*तिथि- द्वादशी तिथि 7:17 pm तक*
*चंद्रराशि- चंद्र वृष राशि मे।*
*नक्षत्र- रोहिणी ऩक्षत्र 10:27 pm तक*
*योग- गण्ड योग 8:28 am तक (अशुभ है)*
*करण- कौलव करण 6:47 am तक* 
*सूर्योदय- 5:32 am, सूर्यास्त 7:21 pm*
*अभिजित् नक्षत्र- 11:59 am से 12:54 pm*
*राहुकाल- 10:43 am से 12:27 pm (शुभ कार्य वर्जित )*
*दिशाशूल- पश्चिम दिशा।*

*जुलाई शुभ दिन:-* 14 (सायं. 7 तक), 19, 21 (दोपहर 12 उपरांत), 22 (सवेरे 9 उपरांत), 23, 24, 25 (दोपहर 3 तक), 26, 28

*जुलाई अशुभ दिन:-* 15, 16, 17, 18, 20, 27, 29, 30, 31. 

*यमघण्टक योग:- 14 जुलाई 5:32 am से 14 जुलाई 10:27 pm तक, फिर 16 जून 3:07 pm से 17 जून 5:23 am तक* यह एक अशुभ योग हैं, यह कष्टदायक योग है, इसमे विशेष रूप से शुभ कार्य के लिए की जाने वाली यात्रा तथा बच्चो के शुभ कार्य न करे । परंतु इस कुयोग के साथ ही यदि कोई सर्वार्थ सिद्ध योग जैसा शुभ योग भी हो तो इस योग का दुष्प्रभाव जाता रहता है।
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*आगामी व्रत तथा त्यौहार:-*                   
 14 जुला०- प्रदोष व्रत। 15 जुला०- मासिक शिवरात्रि। 16 जुला०- कर्क संक्रांति (पुण्यकाल 11:30 am तक)। 17 जुला०- श्रावण/सोमवती अमावस्या। 18 जुलाई- श्रवण (अधिक) मलमास आरंभ। 29 जुला०- पद्मिनी एकादशी। 30 जुला०- प्रदोष व्रत।
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*विशेष:- जो व्यक्ति वाराणसी से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु paytm या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है*
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*आपका दिन मंगलमय हो*. 💐💐💐
*आचार्य मोरध्वज शर्मा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश*
9648023364
9129998000

12 जुलाई 2023

सोमवती अमावस्या, शुद्ध श्रावण अमावस्या, 17.07.2023,भाग-1


धारावाहिक लेख:- सोमवती अमावस्या, शुद्ध श्रावण अमावस्या, 17.07.2023,भाग-1

अमावस्या तिथि आरंभ- 16 जुलाई 10:08 pm
अमावस्या तिथि समाप्त- 17/18 जुलाई मध्यरात्रि 00:01 am


सनातन धर्म में सोमवती अमावस्‍या का विशेष महत्‍व है। यह एक वर्ष में दो से तीन बार पड़ती है। हिन्दु वर्ष (विक्रमी संवत 2080) की यह अंत‍िम सोमवती अमावस्‍या, उदया तिथि के अनुसार इस बार शुद्ध श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को 17 जुलाई 2023 सोमवार को पड़ रही है।

सोमवार से युक्त अमावस्या का शास्त्रों में विशेष माहात्म्य कहा गया है। स्कन्द पुराण के अनुसार सोमवार और अमावस्या का योग कभी-कभी होता है। इस दिन भगवान शिव के दर्शन करके पूजन आदि करने का विशेष महत्त्व होता है। विशेषकर सोमेश्वर महादेव की पूजार्चना करने से कोटि (करोड़ों) यज्ञों का फल प्राप्त होता है।

सोमवती अमावस्या को तीर्थ स्थान, जप, पाठ एवं ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र, दक्षिणादि उल्लेखनीय सहित दान करना विशेष पुण्यप्रद माना गया है। पुरुषार्थ चिन्तामणि के अनुसार, यदि अमावस्या सोमवार या मंगलवार अथवा गुरुवार को हो तो उस योग के पर्व को पुष्कर योग कहते हैं। इन योगों का फल सूर्यग्रहणों में किए हुए दान-पुण्य से सौ गुणा अधिक होता है।

 स्नानदान आदि पुण्य कर्मों में मंगलवारी अमावस्या भी सोमवती अमावस्या के समान ही मनानी चाहिए। यदि मंगलवारी अमावस्या हो तो गंगा के स्नानमात्र से सहस्र गौओं के दान का फल प्राप्त होता है 

सोमवार से युक्त अमावस्या हो तो वह अनन्त फल देने वाली और पितृगणों को दिया हुआ श्राद्ध अक्षय होता है।

  अमावस्या के दिन ब्रह्माण्ड मे विशिष्ट प्रकार की तरंगों का निष्कासन होता है, जिससे विशिष्ट प्रकार के कार्यों का निष्पादन सफलतापूर्वक किया जा सकता है, जैसे पितरो की सदगति, पितृदोष निवारण, पिंड़दान, तर्पण, कालसर्प योग निवारण अनुष्ठान, पापो का क्षय करके पुण्य प्राप्त करना, स्नान-दान, जप-अनुष्ठान, सिद्धि प्राप्ति, विवाह में विलम्ब, सन्तान कष्ट आदि बाधाएं एवं कलिष्ट रोगों की शान्ति,मारण, मोह, अभिचारक कर्म तथा धार्मिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में आत्मशुद्धि, स्नानदान, जप पाठ आदि की दृष्टि से अमावस्या का विशेष महत्व होता है ।

चंद्रमा मन का स्वामी है। यह मनोबल बढ़ाने और पितरों का अनुग्रह प्राप्त कराने में सबसे ज्यादा सहायक होता है।  सूर्य की सहस्र किरणों में प्रमुख "अमा नाम की किरण", इस दिन चन्द्रमा में निवास करती है, अतः अमावस्या को इसलिए भी अक्षय फल देने वाली माना जाता है। 

महीने मे एक बार जब सूर्य तथा चंद्रमा एक ही राशि में इकट्ठे होते हैं, तब अमावस्या होती है, और वह तिथि सोमवार को हो, तो सोमवती अमावस्या का भी लाभ होता है। सोमवती अमावस्या को किए गए पूजा पाठ, अनुष्ठान विशेष रूप से पितरों के लिए प्रशस्त माने जाते हैं।

हिन्दू धर्म मे श्रावण अमावस्या तथा सोमवती अमावस्या के दिन किए गए पवित्र नदी मे स्नान अर्थात तीर्थ मे स्नान, भगवान भोलेनाथ की पूजा, दान-पुण्य व पितरों की आत्मा की शांति के लिये किये जाने वाले धार्मिक कर्मों जैसे तर्पण व श्राद्ध आदि पुण्य कर्म करने से सुख-समृद्धि, संपत्ति और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए विशेष फलदायी होती है। 

धार्मिक मान्यता के अनुसार श्रावण अमावस्या पर पवित्र नदियों में देवी-देवताओं का निवास होता है। इसलिए इस दिन गंगा, यमुना, नर्मदा आदि पवित्र नदियों तथा सरोवरो में स्नान का विशेष महत्व माना गया है।

अमावस्या के दिन ब्रह्माण्ड मे विशिष्ट प्रकार की तरंगों का निष्कासन होता है, क्योंकि इस दिन सूर्य तथा चंद्र एक साथ में स्थित रहते हैं, इसलिए यह पर्व विशेष पुण्य देने वाला होता है। जिससे विशिष्ट प्रकार के कार्यों का निष्पादन सफलता पूर्वक किया जा सकता है, जैसे पितरो की सदगति, पितृदोष निवारण, पिंड़दान, तर्पण, कालसर्प योग निवारण अनुष्ठान, पापो का क्षय करके पुण्य प्राप्त, स्नान-दान, जप-अनुष्ठान, सिद्धि प्राप्ति करने हेतू, मारण, मोह, अभिचारक कर्म आदि तंत्र सिद्धि करने का सर्वोत्तम दिन तथा समय होता है।


*श्रावण अमावस्या पर किए जाने वाले कार्य :-*
1. पुराणों के अनुसार अमावस्या के दिन स्नान-दान-पूजन-तर्पण करने की परंपरा है। वैसे तो इस दिन गंगा-स्नान का विशिष्ट महत्व माना गया है, परंतु जो लोग गंगा स्नान करने नहीं जा पाते, वे किसी भी नदी या सरोवर तट आदि में स्नान कर सकते हैं, अथवा स्नान के जल में गंगा जल डालकर स्नान करे।

2. पवित्र नदी,सरोवर अथवा केवल पवित्र जल से स्नान के उपरांत फाल्गुन मास के देवता शिव-पार्वती का पूजन आवश्यक है। इस दिन शिव गौरी की उपासना करने से अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है। 

सोमवती अमावस्या के दिन विवाहित स्त्रियां द्वारा पति की लंबी आयु के लिए व्रत भी रखा जाता हैं। इसमे विवाहित स्त्रियां व्रत रखकर पीपल के वृक्ष की दूध, जल, पुष्प, अक्षत, चदंन इत्यादि से पूजा करके, वृक्ष के चारों ओर 108 बार कच्चा सूत का धागा लपेट कर परिक्रमा करती हैं। 

3. तत्पश्चात सूर्य देव को अर्ध्य प्रदान करे।

4. तत्पश्चात पीपल वृक्ष तथा तुलसा जी को श्रद्धापूर्वक जल से सींच कर ज्योत जलाकर पूजा करनी चाहिये। (पीपल के वृक्ष में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास माना जाता है।) 

5. अमावस्या को पितृरो का दिन भी कहते हैं, क्योंकि इस दिन अपने पूर्वजों को याद किया जाता है और उनके लिए पिंडदान, तर्पण तथा प्रार्थनाएं की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पूर्वज धरती पर आकर अपने परिवार को आर्शीवाद देते हैं।

अतः श्रावण अमावस्या के दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान, तर्पण आदि कर्म करनें के उपरांत जाने-अनजाने में जो गलती हो, उसके लिए पितरों से क्षमा मांगनी चाहिए।

6. इस प्रकार यह सब कार्य होने के उपरांत गाय, कुत्ता, कौआ तथा चींटियों को भोजन दे। इस दिन गरीबों को भोजन और कपड़े दान करने से विशेष लाभ मिलता है। 

7. संभव हो तो पूजा के बाद प्रत्येक वर्ष श्रावण अमावस्या पर कम से कम एक अथवा सामर्थ्यनुसार अधिक संख्या मे वृक्षारोपण अवश्य करना चाहिए।

8. इस प्रकार स्नान-पूजन, पितृ तर्पण के उपरांत ब्राह्मण भोजन तथा दक्षिणा करवाकर, तत्पश्चात गरीबों, लाचारो, अपाहिजो को भोजन को भोजन करवाना चाहिए।

9. तदोपरान्त ब्राह्मणों और ज़रूरतमंदों को  श्रद्धा-भक्ति के साथ दान करना चाहिए, दान में गाय, स्वर्ण, छाता, वस्त्र, बिस्तर तथा अन्य उपयोगी वस्तुएं अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान करनी चाहिये।

10. श्रावण अमावस्या के दिन प्रदोषकाल (सूर्यास्त के उपरांत) में मंदिर, चौराहे, उपवन, नदी-जलस्तोत्र के तट इत्यादि मे दीपदान अवश्य करना चाहिए।
 
11. श्रावण अमावस्या के दिन सूरज ढलने के बाद खीर बनाएं और उसका भोग चंद्रदेव को लगाकर स्वयं ग्रहण करे।

12. श्रावण अमावस्या होने के कारण इस दिन पितरो को मोक्ष प्राप्ति के लिए पितृदोष निवारण अनुष्ठान तथा कालसर्पयोग दोष से मुक्ति पाने के लिये कालसर्प योग अनुष्ठान करने का अत्यंत महत्वपूर्ण दिवस है।


*अमावस्या को निषेध कार्य:-*
1.अमावस्या को कोई भी शुभ मागंलिक कार्य नहीं करना चाहिए ।          

2. अमावस्या पर संयम बरतना चाहिए, अमावस्या को सहवास करने से धन की देवी कुपित होती है, जिससे मनुष्य ऋणी होते है। गरुण पुराण के अनुसार, अमावस्या पर यौन संबंध बनाने से पैदा होने वाली संतान को आजीवन सुख नहीं मिलता है ।

3. अमावस्या के दिन किसी दूसरे का अन्न खाने से एक महीने के साधन-भजन का पुण्य खिलाने वाले व्यक्ति को मिल जाता है l अतः अमावस्या के दिन अपने घर के सिवाय किसी का भी अन्न ग्रहण नही करना चाहिए ।

4. अमावस्या के दिन बाल कटवाना, क्षौर कर्म इत्यादि वर्जित हैं ।

5. अमावस्या पर घर में पितरों की कृपा पाने के लिए घर में कलह-क्लेश बिल्कुल नहीं होना चाहिए । लड़ाई-झगड़े और वाद-विवाद से बचना चाहिए । इस दिन अपशब्द, अनर्गल प्रलाप तथा कड़वे वचन तो बिल्कुल नहीं बोलने चाहिए।

*(क्रमशः)*
*लेख के दूसरे भाग मे कल "हरियाली अमावस्या के विषय मे लेख"।*
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*आगामी लेख:-*
*1. 5 जुलाई के पंचांग मे "सावन मास"पर धारावाहिक लेख, तत्पश्चात 15 जुलाई के पंचांग से लेख के चौथे भाग, तथा अगले भागो का प्रसारण।*
*2. 12 जुलाई के पंचांग मे "सोमवती अमावस्या" पर लेख।*
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*जय श्री राम*
*कल का पंचांग 🌹🌹🌹*
*बुधवार,12.07.2023*
*श्री संवत 2080*
*शक संवत् 1945*
*सूर्य अयन- दक्षिणायन, उत्तर गोल*
*ऋतुः- वर्षा ऋतुः।*
*मास- प्रथम शुद्ध श्रावण मास।*
*पक्ष- कृष्ण पक्ष ।*
*तिथि- दशमी तिथि 5:59 pm तक*
*चंद्रराशि- चंद्र मेष राशि मे 13 जुलाई 1:58 am तक तदोपरान्त वृष राशि।*
*नक्षत्र- भरणी ऩक्षत्र 7:43 pm तक*
*योग- धृति योग 9:40 am तक (अशुभ है)*
*करण- वणिज करण 5:57 am तक* 
*सूर्योदय- 5:31 am, सूर्यास्त 7:22 pm*
*अभिजित् नक्षत्र- कोई नही*
*राहुकाल- 12:27 pm से 2:10 pm (शुभ कार्य वर्जित )*
*दिशाशूल- उत्तर दिशा।*

*जुलाई शुभ दिन:-* 14 (सायं. 7 तक), 19, 21 (दोपहर 12 उपरांत), 22 (सवेरे 9 उपरांत), 23, 24, 25 (दोपहर 3 तक), 26, 28

*जुलाई अशुभ दिन:-* 12, 13, 15, 16, 17, 18, 20, 27, 29, 30, 31. 

*भद्रा:-*  12 जुलाई 6:03 am से 12 जुलाई 6 pm तक (भद्रा मे मुण्डन, गृहारंभ, गृहप्रवेश, विवाह, रक्षाबंधन आदि शुभ काम नही करने चाहिये , लेकिन भद्रा मे स्त्री प्रसंग, यज्ञ, तीर्थस्नान, आपरेशन, मुकद्दमा, आग लगाना, काटना, जानवर संबंधी काम किए जा सकतें है)
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*आगामी व्रत तथा त्यौहार:-*                   
13 जुला०- कामिका एकादशी। 14 जुला०- प्रदोष व्रत। 15 जुला०- मासिक शिवरात्रि। 16 जुला०- कर्क संक्रांति (पुण्यकाल 11:30 am तक)। 17 जुला०- श्रावण/सोमवती अमावस्या। 18 जुलाई- श्रवण (अधिक) मलमास आरंभ। 29 जुला०- पद्मिनी एकादशी। 30 जुला०- प्रदोष व्रत।
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*विशेष:- जो व्यक्ति वाराणसी  से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु paytm या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है*
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*आपका दिन मंगलमय हो*. 💐💐💐
*आचार्य  मोरध्वज शर्मा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश*
9648023364
9129998000

हरियाली अमावस्या/दर्श अमावस्या,शुद्ध श्रावण अमावस्या, 17.07.2023, भाग-2


लेख:- हरियाली अमावस्या/दर्श अमावस्या,शुद्ध श्रावण अमावस्या, 17.07.2023, भाग-2

अमावस्या तिथि आरंभ- 16 जुलाई 10:08 pm
अमावस्या तिथि समाप्त- 17/18 जुलाई मध्यरात्रि 00:01 am


*स्नान-दान के लिए उदया ति​थि मान्य होती है,अतः हरियाली अमावस्या पर्व तथा व्रत 17 जुलाई को है।*

सावन मास की अमावस्या का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। भारतीय पंचांग के अनुसार सावन मास हिंदू वर्ष का पांचवा महीना होता है। सावन मास से ही भारत वर्ष मे वर्षा ऋतु प्रारंभ होती है। इसी समय चातुर्मास्य होने के कारण भगवान शिव ब्रह्मांड के संचालक होते हैं, तथा इसमें भी सावन मास भगवान नीलकंठ महादेव की पूजा-अर्चना -अभिषेक का सर्वोत्तम समय होता है। 

इस वजह से भी श्रावण मास अमावस्या को बहुत महत्त्व दिया जाता है। भारत देश मे सावन अमावस्या के दिन कई महत्वपूर्ण अनुष्ठानों और परंपराओं को देखा जाता है। यह महीने का सबसे अंधेरा दिन है, हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, इसे वर्ष के सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली दिनो में से एक माना जाता है।

ऐसे उत्सवों तथा बरसात के खुशनुमा मौसम मे, सावन मास में आने वाली अमावस्या को हरियाली अमावस्या तथा दर्श अमावस्या भी कहते हैं क्योंकि इस समय में हर ओर बारिश होती है और हर तरह हरियाली तथा हर्षोलास का समा रहता है।

*हरियाली अमावस्या का आध्यात्मिक महत्व:-*
अमावस्या के दिन ब्रह्माण्ड मे विशिष्ट प्रकार की तरंगों का निष्कासन होता है, क्योंकि इस दिन सूर्य तथा चंद्र एक सीध में स्थित रहते हैं, इसलिए यह पर्व विशेष पुण्य देने वाला होता है। जिससे विशिष्ट प्रकार के कार्यों का निष्पादन सफलतापूर्वक किया जा सकता है, जैसे पितरो की सदगति, पितृदोष निवारण, पिंड़दान, तर्पण, कालसर्प योग निवारण अनुष्ठान, पापो का क्षय करके पुण्य प्राप्त, स्नान-दान, जप-अनुष्ठान, सिद्धि प्राप्ति करने हेतू, मारण, मोह, अभिचारक कर्म करने का सर्वोत्तम दिन-समय होता है।

हिन्दु धर्म मे हरियाली अमावस्या का महत्व पर्यावरण तथा प्रकृति को बचाए रखने के लिए जनता मे जागरूकता पैदा करना है। इस दिन किसान आने वाले वर्ष में फसल कैसी होगी इनका अनुमान लगाते हैं, शगुन करते हैं। 

 इस दिन वृक्षारोपण करना उत्तम होता है। मान्यता है कि इस दिन पेड़ पौधों को लगाने से भगवान  प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं। दरअसल वृक्षारोपण से पर्यावरण स्वच्छ और साफ़ होता है, जिससे वर्षा के द्वारा जल की प्राप्ति होती है।


*हरियाली/दर्श अमावस्या के शुभ कार्य:-*
1. पुराणों के अनुसार अमावस्या के दिन स्नान-दान-पूजन-तर्पण करने की परंपरा है। वैसे तो इस दिन गंगा-स्नान का विशिष्ट महत्व माना गया है, परंतु जो लोग गंगा स्नान करने नहीं जा पाते, वे किसी भी नदी या सरोवर तट आदि में स्नान कर सकते हैं। 

2. पवित्र नदी,सरोवर अथवा केवल पवित्र जल से स्नान के उपरांत विधिवत शिव-पार्वती का पूजन आवश्यक है। 

3. तत्पश्चात सूर्य देव को अर्ध्य प्रदान करे।

4. तत्पश्चात पीपल वृक्ष तथा तुलसा जी को श्रद्धापूर्वक जल से सींच कर ज्योत जलाकर पूजा करनी चाहिये। (पीपल के वृक्ष में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास माना जाता है।) 

5. पूजा के बाद प्रत्येक वर्ष हरियाली अमावस्या पर कम से कम एक अथवा सामर्थ्यनुसार अधिक संख्या मे वृक्षारोपण अवश्य करना चाहिए।

हरियाली अमावस्या के ​दिन विशेष तौर पर पीपल, बरगद, आम, आंवला, बेलपत्र, शमी, गूलर, पाकड, रात की रानी और नीम के वृक्षों का रोपण करना चाहिए।

गेहूं, ज्वार, चना,मक्का, बाजरा की इस दिन प्रतीक के रूप में कुछ भाग पर बुवाई करना चाहिए।

वेद ग्रंथों के अनुसार इस दिन आरोग्य प्राप्ति के लिए नीम का वृक्ष, सुख की प्राप्ति लिए तुलसी का पौधा, संतान प्राप्ति के लिए केले का वृक्ष और धन सम्पदा के लिए आंवले का पौधा ही लगाना शुभ होता है।

6. दर्श अमावस्या:- सावन की हरियाली अमावस्या को दर्श अमावस्या भी कहा जाता है, दर्श अमावस्या के खास दिन का व्रत रखने और चंद्रमा की पूजा करने से चंद्र देवता अपनी कृपा बरसाते हैं और सौभाग्य व समृद्धि का आर्शीवाद देते हैं। चंद्र देव भावनाओं और दिव्य अनुग्रह के स्वामी हैं।

हरियाली अमावस्या के दिन सूरज ढलने के बाद खीर बनाएं और उसका भोग चंद्रदेव को लगाकर स्वयं ग्रहण करे।

सूर्यास्त के बाद घर के मुख्य द्वार पर, मंदिर, चौराहे, उपवन तथा जल के किनारे पर सरसों के तेल के दीपक जलाएं।

8. इसे श्राद्ध की अमावस्या भी कहते हैं, क्योंकि इस दिन अपने पूर्वजों को याद किया जाता है और उनके लिए प्रार्थना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पूर्वज धरती पर आकर अपने परिवार को आर्शीवाद देते हैं।

अतः श्रावण अमावस्या के दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान, तर्पण आदि कर्म करनें के उपरांत जाने-अनजाने में जो गलती हो, उसके लिए पितरों से क्षमा मांगनी चाहिए।

9. इस प्रकार स्नान-पूजन, पितृ तर्पण के उपरांत ब्राह्मण भोजन तथा दक्षिणा करवाकर, तत्पश्चात गरीबों, लाचारो, अपाहिजो को भोजन को भोजन करवाना चाहिए।

10. तदोपरान्त ब्राह्मणों और ज़रूरतमंदों को  श्रद्धा-भक्ति के साथ दान करना चाहिए, दान में गाय, स्वर्ण, छाता, वस्त्र, बिस्तर तथा अन्य उपयोगी वस्तुएं अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान करनी चाहिये।

11. सावन मास की दर्श अमावस्या होने के कारण इस दिन पितरो को मोक्ष प्राप्ति के लिए पितृदोष निवारण अनुष्ठान तथा कालसर्पयोग दोष से मुक्ति पाने के लिये कालसर्प योग अनुष्ठान करने का अत्यंत महत्वपूर्ण दिवस है।


*हरियाली अमावस्या की कथा:-*
बहुत समय पहले एक राजा प्रतापी राजा था। उनको एक बेटा और एक बहू थे। एक दिन बहू ने चोरी से मिठाई खा लिया और नाम चूहे का लगा दिया। जिसकी वजह से चूहे को बहुत गुस्सा आ गया। उसने मन ही मन निश्चय किया कि चोर को राजा के सामने लेकर आऊंगा। 

एक दिन राजा के यहां कुछ मेहमान आयें हुए थे। सभी मेहमान राजा के कमरे में सोये हुए थे। बदले की आग में जल रहे चूहे ने रानी की साड़ी ले जाकर उस कमरे में रख दिया। जब सुबह मेहमान की आंखें खुली और उन्होंने रानी का कपड़ा देखा तो हैरान रह गए। जब राजा को इस बात का पता चला तो उन्होंने अपनी बहू को महल से निकाल दिया।

रानी रोज शाम में दिया जलाती और ज्वार उगाने का काम करती थी। रोज पूजा करती गुडधानी का प्रसाद बांटती थी। एक दिन राजा उस रास्ते से निकल रहे थे तो उनकी नजर उन दीयों पर पड़ी। राजमहल लौटकर राजा ने सैनिकों को जंगल भेजा और कहा कि देखकर आओ वहां क्या चमत्कारी चीज थी। सैनिक जंगल में उस पीपल के पेड़ के नीचे गए। उन्होंने वहां देखा कि दीये आपस में बात कर रही थी। सभी अपनी-अपनी कहानी बता रही थीं। तभी एक शांत से दीये से सभी ने सवाल किया कि तुम भी अपनी कहानी बताओ। दीये ने बताया वह रानी का दीया है। उसने आगे बताया कि रानी की मिठाई चोरी की वजह से चूहे ने रानी की साड़ी मेहमानों के कमरें में रखा था और बेकसूर रानू को सजा मिल गई।

सैनिकों ने जंगल की सारी बात राजा को बताई। जिसके बाद राजा ने रानी को वापस महल बुलवा लिया। जिसके बाद रानी खुशी-खुशी राजमहल में रहने लगी।

*(क्रमशः)*
*लेख के तीसरे तथा अंतिम भाग मे कल हरियाली अमावस्या के पर्व मे बारह राशियों के अनुसार पर्यावरण की रक्षा हेतु वृक्षारोपण।*
__________________________

*आगामी लेख:-*
*1. 5 जुलाई के पंचांग मे "सावन मास"पर धारावाहिक लेख, तत्पश्चात 15 जुलाई के पंचांग से लेख के चौथे भाग, तथा अगले भागो का प्रसारण।*
*2. 12 जुलाई के पंचांग मे "सोमवती अमावस्या" पर लेख।*
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☀️

*जय श्री राम*
*कल का पंचांग 🌹🌹🌹*
*वृहस्पतिवार,13.07.2023*
*श्री संवत 2080*
*शक संवत् 1945*
*सूर्य अयन- दक्षिणायन, उत्तर गोल*
*ऋतुः- वर्षा ऋतुः।*
*मास- प्रथम शुद्ध श्रावण मास।*
*पक्ष- कृष्ण पक्ष ।*
*तिथि- एकादशी तिथि 6:24 pm तक*
*चंद्रराशि- चंद्र वृष राशि मे।*
*नक्षत्र- कृतिका ऩक्षत्र 8:52 pm तक*
*योग- शूल योग 8:53 am तक (अशुभ है)*
*करण- बव करण 6:08 am तक* 
*सूर्योदय- 5:32 am, सूर्यास्त 7:22 pm*
*अभिजित् नक्षत्र- 11:59 am से 12:54 pm*
*राहुकाल- 2:10 pm से 3:54 pm (शुभ कार्य वर्जित )*
*दिशाशूल- दक्षिण दिशा।*

*जुलाई शुभ दिन:-* 14 (सायं. 7 तक), 19, 21 (दोपहर 12 उपरांत), 22 (सवेरे 9 उपरांत), 23, 24, 25 (दोपहर 3 तक), 26, 28

*जुलाई अशुभ दिन:-* 13, 15, 16, 17, 18, 20, 27, 29, 30, 31. 

*यमघण्टक योग:- 13 जुलाई 5:32 am से 13 जुलाई 8:52 pm तक, फिर 16 जून 3:07 pm से 17 जून 5:23 am तक* यह एक अशुभ योग हैं, यह कष्टदायक योग है, इसमे विशेष रूप से शुभ कार्य के लिए की जाने वाली यात्रा तथा बच्चो के शुभ कार्य न करे । परंतु इस कुयोग के साथ ही यदि कोई सर्वार्थ सिद्ध योग जैसा शुभ योग भी हो तो इस योग का दुष्प्रभाव जाता रहता है।
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*आगामी व्रत तथा त्यौहार:-*                   
13 जुला०- कामिका एकादशी। 14 जुला०- प्रदोष व्रत। 15 जुला०- मासिक शिवरात्रि। 16 जुला०- कर्क संक्रांति (पुण्यकाल 11:30 am तक)। 17 जुला०- श्रावण/सोमवती अमावस्या। 18 जुलाई- श्रवण (अधिक) मलमास आरंभ। 29 जुला०- पद्मिनी एकादशी। 30 जुला०- प्रदोष व्रत।
______________________

*विशेष:- जो व्यक्ति वाराणसी  से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु paytm या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है*
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*आपका दिन मंगलमय हो*. 💐💐💐
*आचार्य मोरध्वज शर्मा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश*
9648023364
9129998000

श्रावण/कर्क सक्रांन्ति, 16.07.2023



लेख:- श्रावण/कर्क सक्रांन्ति, 16.07.2023
मीन संक्रान्ति क्षण-16/17 जुलाई मध्यरात्रि 5:07 am
संक्रान्ति पुण्यकाल- 17 जुलाई, सूर्योदय से 11:30 am तक
अन्य मत के अनुसार पुण्यकाल:-
कर्क संक्रान्ति पुण्य काल:- 16 जुलाई 12:27 pm से 07:21 pm
अवधि:- 6 घण्टे 54 मिनट्स
कर्क संक्रान्ति महापुण्यकाल:- 16 जुलाई 5:03 pm से 07:21 pm
अवधि:- 2 घण्टे 18 मिनट*
*श्रावण संक्रान्ति:-* 16 जुलाई रविवार की रात्रि के बाद 17 जुलाई के सूर्योदय से पहिले प्रात: 5 बजकर 07 मिंट पर (29:07) मिथुन लग्न में प्रवेश करेगी। इस संक्रान्ति का पुण्यकाल अगले दिन 17 जुलाई सोमवार की दोपहर 11:30 बजे तक रहेगा।
*श्रावण संक्रान्ति का फल:-*
वारानुसार घोरा तथा नक्षत्रानुसार महोदरी नामक यह संक्राति चोरों, ठगों, बेईमान तथा नीच प्रवृत्ति वाले लोगों के लिए लाभप्रद रहेगी।
*संक्राति राशिफल:-* यह संक्राति मिथुन, सिंह, कन्या, धनु, कुम्भ तथा मीन राशि वालों के लिए शुभ, शेष राशि वालों के लिए कुछ कष्टकारी रहेगी। संक्राति कुण्डली में मंगल-शुक्र का शनि के साथ समसप्तक दृष्टि सम्बन्ध तथा मेष राशिस्थ 'गुरु- राहु' पर शनि की दृष्टि रहने से कहीं प्राकृतिक आपदाओं एवं कहीं दुर्भिक्ष आदि के कारण महंगाई में वृद्धि तथा राजनेताओं में परस्पर वाद-विवाद रहे। किसी नेता के अपदस्थ या मृत्यु का समाचार भी मिले। केन्द्रीय सरकार के मन्त्रीमण्डल में परिवर्तन एवं उलटफेर के संकेत हैं। रविवारी संक्राति होने से भी राजनैतिक क्षेत्रों में अस्थिरता एवं अशान्ति होने के संकेत है।
सक्रांन्ति भारत के वैदिककालीन पर्वो मे से एक पर्व है, जोकि हर माह प्रायः 12 तारीख़ से 17 तारीख़ के मघ्य मे ही आती है। 16 जुलाई को 5:07 am पर सूर्यदेव के मिथुन राशि से निकल कर, कर्क राशि मे प्रवेश करने से श्रावण संक्रांति होगी। "सौरमास पद्धति" के अनुसार इसी समय" श्रावण मास का आरंभ होगा।
कर्क संक्रांति जिसे दक्षिणायन संक्रांति तथा श्रावण सक्रांति भी कहा जाता है। सूर्य के कर्क राशि में प्रवेश करने के कारण ही इसे कर्क संक्रांति कहा जाता है। ये संक्रांति सूर्य देव की दक्षिण यात्रा के प्रारंभ को दर्शाती है जिसे "दक्षिणायन" भी कहते है।
कर्क संक्रांति–प्रायः 16 जुलाई के आस-पास सूर्य के कर्क राशि में प्रवेश करने पर कर्क संक्रांति मनाई जाती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार इसे छह महीने के उत्तरायण काल का अंत माना जाता है। साथ ही इस दिन से दक्षिणायन की शुरुआत होती है, जो मकर संक्रांति में समाप्त होता है। सूर्य के 'उत्तरायण ' होने को 'मकर संक्रांति ' तथा 'दक्षिणायन' होने को 'कर्क संक्रांति' कहते हैं।
'श्रावण मास' से 'पौष' मास तक सूर्य का उत्तरी छोर से दक्षिणी छोर तक जाना ' दक्षिणायन' होता है
कर्क संक्रांति में दिन छोटे और रातें लंबी हो जाती हैं।
शास्त्रों एवं धर्म के अनुसार 'उत्तरायण' का समय देवतायओं का दिन तथा 'दक्षिणायन 'देवताओं की रात्रि होती है। इस प्रकार, वैदिक काल से 'उत्तरायण' को 'देवयान' तथा 'दक्षिणायन' के 'पितृयान' भी कहा जाता रहा है।
जिस प्रकार सूर्य के मकर संक्रांति के दिन से उत्तरायन होने से अग्नि तत्व बढ़ता है, चारों तरफ सकारात्मक और शुभ ऊर्जा का प्रसार होने लगता है, शुभता में वृद्धि होती है।
उसी प्रकार सूर्य के कर्क संक्रांति के दिन (16 जुलाई) से "उतरायण" होने की वजह से जल तत्व की अधिकता हो जाती है। इससे वातावरण में नकारात्मकता आने लगती है, और देवताओं की शक्ति कमजोर होने लगती है।
सावन संक्रांति अर्थात कर्क संक्रांति से वर्षा ऋतु का आगमन हो जाता है। देवताओं की रात्रि प्रारम्भ हो जाती है, और चातुर्मास या चौमासा का भी आरंभ इसी समय से हो जाता है। यह समय व्यवहार की दृष्टि से अत्यधिक संयम का होता है क्योंकि इसी समय तामसिक प्रवृतियां अधिक सक्रिय होती हैं। व्यक्ति का हृदय भी गलत मार्ग की ओर अधिक अग्रसर होता है, अत: संयम का पालन करके विचारों में शुद्धता का समावेश करके ही व्यक्ति अपने जीवन को शुद्ध मार्ग पर ले जा सकने में सक्षम हो पाता है।
इस समय उचित आहार विहार पर विशेष बल दिया जाता है। इस समय में शहद का प्रयोग विशेष तौर पर करना लाभकारी माना जाता है।
सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु के चार माह की अवधि में निद्रा मे जाने की वजह से सृष्टि का भार भोलेनाथ संभालेंगे, इसीलिए श्रावण मास में शिव पूजन का महत्व बढ़ जाता है। इस समयावधि में श्रावण मास भी आता है, तथा इस तरह से त्यौहारों की शुरुआत हो जाती है। मनुष्यों को अपने पितरों की शांति के लिए पूजन अथवा पिंडदान आदि भी करना चाहिए।
*सक्रांति व्रत अथवा पूजन विधि 😘
1. संक्रान्ति के शुभ दिन प्रातःकाल से लेकर सूर्यास्त तक देश के किसी भी पवित्र तीर्थ स्थान, संगमस्थल, नदी, कुंओ, बावडी, सरोवर इत्यादि मे स्नान करे।
2. गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा व कावेरी इन तीन नदियो मे, तथा गंगासागर जैसे तीर्थों मे स्नान करने से अधिक पुण्य मिलता है । जो लोग व्यस्तताओ के कारण इन स्थानो पर न जा पाये वह प्रातःकाल स्नान के जल मे गंगाजल मिलाकर स्नान करे ।
3. कर्क अर्थात श्रावण संक्रांति के दिन प्रातः स्नानादि से निवृत्त लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर अष्ठदल का कमल बनाकर उसमें सूर्यदेव का चित्र स्थापित करके भगवान सूर्यदेव का पूजन करना चाहिए। व्रत-पूजन-कथा करने से इस दिन पुण्यो की प्राप्ति होती है ।
4. व्रत का संकल्प लेने के बाद व्रत प्रारम्भ करना चाहिए, और फल-फूल, अक्षत, चन्दन, जल आदि से षोडशोपचार प्रभु की उपासना करनी चाहिए ।
5. तत्पश्चात व्रती को सूर्य स्मरण, आदित्य स्तोत्र एवं सूर्य मंत्र इत्यादि का पाठ व पूजन करना चाहिए जिसे अभिष्ट फलों की प्राप्ति होती है। संक्रांति में की गयी सूर्य उपासना से दोषों का शमन होता है।
6. चातुर्मास्य में आनें वाली इस कर्क संक्रांति में भगवान विष्णु का चिंतन-मनन शुभ फल प्रदान करता है, अतः इस दिन विष्णु पूजन भी अनिवार्य होता है। श्रीविष्णु पूजन, सूर्यजप, पुरुषसूक्त तथा स्तोत्र पाठ करे ।
7. श्रावण मास की इस सक्रांति पर अवश्य ही भगवान शिव का विधिपूर्वक दुध, गंगा-जल, बिल्बपत्र, फल इत्यादि सहित षोडशोपचार पूजन करना भी आवश्यक होता है। इसके साथ ही "ऊँ नम: शिवाय:" मंत्र का जाप करते हुए शिव पूजन करना लाभकारी रहता है।
8. इस प्रकार पूजा करने के उपरांत एक तांबे के लोटे मे जल भरकर उसमे थोडा गुड, लाल चंदन, रोली, चावल, तथा लाल फूल डालकर मंत्र बोलते हुए सूर्यदेव को अर्ध्य दे ।
9. पितरो के उद्धार हेतू श्राद्ध अवश्य करें अन्यथा काले तिलो से पितृृश्राद्ध अर्थात तिलांजलि अवश्य दे।
10. अंत मे ब्राह्माणों को भोजन कराना चाहिए और दान इत्यादि देकर विदा करना चाहिए । ब्राह्मण को अन्नदान, घृत यानि धी दान, वस्त्रदान, फल, तथा तिल और गुड से बने लड्डू-रेवडी इत्यादि दान करने से अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है ।
11. सक्रांति के दिन उडद की दाल, चावल, देसी धी, तथा नमक का दान धर्म स्थान पर करे ।
12. इस दिन उडद की दाल की खिचड़ी बनाकर भगवान को भोग लगाकर अधिक से अधिक मात्रा मे बांटने से अत्यधिक पुण्य प्राप्ति होती है
13. कर्क संक्रान्ति के दिन घडा, गेहूं, चावल, सत्तू अनाज व दूध -चीनी, फल, वस्त्र, छाता, पंखा,शर्बत आदि अन्य गर्मियों में प्रयोग होने वाली वस्तुओ का दक्षिणा सहित दान करने का विशेष महत्व होता है।
14. इस दिन किसी भी शुभ और नए कार्य का प्रारंभ नहीं करना चाहिए। क्योंकि पंचांग में इस दिन को किसी भी नए या शुभ कार्य को करने के लिए शुभ नहीं माना जाता।
विशेष :- जो व्यक्ति अपने ऊपर से अनिष्ट ग्रहो का, अथवा मारकेष का बुरा प्रभाव हटाना चाहे वह इस दिन ब्राह्मण को दिया जाने वाला "तुलादान" या"छाया पात्र" का दान अवश्य करे।
*(समाप्त)*
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*आगामी लेख:-*
*1. 5 जुलाई के पंचांग मे "सावन मास"पर धारावाहिक लेख, तत्पश्चात 15 जुलाई के पंचांग से लेख के चौथे भाग, तथा अगले भागो का प्रसारण।*
*2. 11 जुलाई के पंचांग मे "कर्क सक्रांति" पर लेख।*
*3. 12 जुलाई के पंचांग मे "सोमवती अमावस्या" पर लेख।*
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*जय श्री राम*
*कल का पंचांग 🌹🌹🌹*
*मंगलवार,11.07.2023*
*श्री संवत 2080*
*शक संवत् 1945*
*सूर्य अयन- दक्षिणायन, उत्तर गोल*
*ऋतुः- वर्षा ऋतुः।*
*मास- प्रथम शुद्ध श्रावण मास।*
*पक्ष- कृष्ण पक्ष ।*
*तिथि- नवमी तिथि 6:04 pm तक*
*चंद्रराशि- चंद्र मेष राशि मे।*
*नक्षत्र- अश्विनी ऩक्षत्र 7:04 pm तक*
*योग- सुकर्मा योग 10:43 am तक (शुभ है)*
*करण- तैतिल करण 6:19 am तक*
*सूर्योदय- 5:31 am, सूर्यास्त 7:22 pm*
*अभिजित् नक्षत्र- 11:59 am से 12:54 pm*
*राहुकाल- 3:54 pm से 5:38 pm (शुभ कार्य वर्जित )*
*दिशाशूल- उत्तर दिशा।*
*जुलाई शुभ दिन:-* 11, 14 (सायं. 7 तक), 19, 21 (दोपहर 12 उपरांत), 22 (सवेरे 9 उपरांत), 23, 24, 25 (दोपहर 3 तक), 26, 28
*जुलाई अशुभ दिन:-* 12, 13, 15, 16, 17, 18, 20, 27, 29, 30, 31.
*गण्ड मूल आरम्भ:- 9 जुलाई रेवती नक्षत्र, 7:30 pm से 11 जुलाई को अश्विनी नक्षत्र 7:05 pm तक गंडमूल रहेगें।* गंडमूल नक्षत्रों मे जन्म लेने वाले बच्चो का मूलशांति पूजन आवश्यक है।
*सर्वार्थ सिद्ध योग:-11 जुलाई 5:31 am से 11 त्यौहा7:05 pm तक* (यह एक शुभयोग है, इसमे कोई व्यापारिक या कि राजकीय अनुबन्ध (कान्ट्रेक्ट) करना, परीक्षा, नौकरी अथवा चुनाव आदि के लिए आवेदन करना, क्रय-विक्रय करना, यात्रा या मुकद्दमा करना, भूमि , सवारी, वस्त्र आभूषणादि का क्रय करने के लिए शीघ्रतावश गुरु-शुक्रास्त, अधिमास एवं वेधादि का विचार सम्भव न हो, तो ये सर्वार्थसिद्धि योग ग्रहण किए जा सकते हैं।
*अमृत सिद्धि योग :- 11 जुलाई 5:31 am से 11 जुलाई 7:05 pm तक* इस योग मे सर्वाथ सिद्ध योगवाले कामो के अलावा प्रेमविवाह, विदेश यात्रा तथा सकाम अनुष्ठान करना शुभ होता है।
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*आगामी व्रत तथा त्यौहार:-*
13 जुला०- कामिका एकादशी। 14 जुला०- प्रदोष व्रत। 15 जुला०- मासिक शिवरात्रि। 16 जुला०- कर्क संक्रांति (पुण्यकाल 11:30 am तक)। 17 जुला०- श्रावण/सोमवती अमावस्या। 18 जुलाई- श्रवण (अधिक) मलमास आरंभ। 29 जुला०- पद्मिनी एकादशी। 30 जुला०- प्रदोष व्रत।
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*विशेष:- जो व्यक्ति वाराणसी से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु paytm या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है*
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*आपका दिन मंगलमय हो*. 💐💐💐
*आचार्य मोरध्वज शर्मा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश*
9648023364
9129998000

 

कामिका एकादशी, 13.07.2023


लेख:-कामिका एकादशी, 13.07.2023
एकादशी प्रारम्भ:- 12.07.2023, 5:59 pm
एकादशी समाप्त:- 13.07.2023, 6:24 pm
एकादशी पारण मुहूर्त:- 14.07.2023, 5:32 am से 08:18 am तक
अवधि:- 2 घण्टे 45 मिनट
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय:- 7:17 pm
हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में क्रमशः एक-एक एकादशी तिथि आती हुई, एक वर्ष मे कुल चौबीस एकादशी आती हैं।
इसी प्रकार श्रावण कृष्णपक्ष मे आने वाली एकादशी को कामिका एकादशी भी कहा जाता हैं। अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार कामिका एकादशी जुलाई या अगस्त के महीने में आती है।
उदया तिथि के अनुसार, साल 2023 की कामिका एकादशी का व्रत 13 जुलाई दिन वृहस्पतिवार को रखा जाएगा।
कामिका एकादशी के दिन भगवान विष्णु कि विधि पूर्वक पूजा की जाती है। कामिका एकादशी के उपवास में शंख, चक्र, गदाधारी भगवान विष्णु के दिव्य रूप का पूजन होता है। ऐसा माना जाता है कि जो मनुष्य इस एकादशी को धूप, दीप, नैवेद्य आदि से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
*कामिका एकादशी महत्व:-*
कामिका एकादशी पर भगवान विष्णु का पूजन करना अत्यंत लाभकारी माना गया है। इस व्रत के प्रभाव से सबके बिगड़े काम बनने लगते हैं। इस दिन की गई पूजा-पाठ, व्रत तथा अन्य पुण्य कर्म के प्रभाव से भक्तों के कष्टों के साथ-२ उनके पूर्वजो के कष्टों का भी निवारण होता हैं। कामिका एकादशी के अवसर पर तीर्थ स्थानों पर नदी, कुंड, सरोवर में स्नान करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है।
कामिका एकादशी व्रत की महत्ता के संबंध मे कहते हुए ब्रह्माजी ने नारद को बताया कि, इस एकादशी की कथा सुनने मात्र से ही वाजपेय यज्ञ के बराबर फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि कामिका एकादशी व्रत करने से भक्तों की सभी मनोकामनायें पूरी होती है और उसने समस्त पापों का नाश हो जाता है, पूर्वजन्म की बाधाएं, जन्मकुण्डली मे दर्शाये गए अनिष्ट योग तथा दोष दूर हो जाते हैं। इस एकादशी के फल लोक और परलोक दोनों में उत्तम कहे गये हैं। क्योंकि इस व्रत को करने से हजार गौ दान के समान पुण्य प्राप्त होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
*कामिका एकादशी व्रत पूजा विधि:-*
कामिका एकादशी के उपवास की शुरुआत दशमी तिथि की रात्रि से ही हो जाती है। व्रती को दशमी तिथि अर्थात व्रत धारण करने की पूर्व रात्रि से ही तामसिक भोजन का त्याग कर नमक रहित सादा भोजन ग्रहण करना चाहिये। व्रती को जौं, गेहूं और मूंग की दाल से बना भोजन भी ग्रहण नहीं करना चाहिए।
उसी दिन से ही ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है, संभव हो तो जमीन पर ही सोएं।
एकादशी के दिन प्रात:काल उठकर नित्यकर्म से निर्वत होकर स्नानादि के पश्चात व्रत का संकल्प लें।
कामिका एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु के उपेन्द्र स्वरूप की पूजा-आराधना की जाती है।
लकडी की चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर, पूजा मे पीले फूल और यथा संभव पीले रंग की ही पूजन सामग्री का प्रयोग करते हुए भगवान विष्णु की मूर्ति अथवा सुन्दर चित्र स्थापित करे ।
उसी वेदी पर नारियल सहित कुंभ स्थापना करनी चाहिए।
तत्पश्चात भगवान उपेन्द्र की मूर्ति अथवा चित्र को स्नानादि करवाकर पुष्प, धूप, दीप इत्यादि से पंचोपचार अथवा अपनी सामर्थ्यनुसार षोडशोपचार पूजन करे।
कामिका एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा मे तुलसी पत्र का उपयोग अवश्य ही करना चाहिए, भगवान विष्णु की पूजा मे तुलसी पत्र का प्रयोग अत्यंत शुभ माना गया है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन जो मनुष्य तुलसीजी को भक्तिपूर्वक भगवान के श्रीचरण कमलों में अर्पित करता है, उसे मुक्ति मिलती है।
पूजा के दौरान आसन पर बैठकर ।।ऊं नमो भगवते वासुदेवाय।। मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करना चाहिए तदोपरांत व्रत कथा का पठन अथवा श्रवण करना अत्यंत आवश्यक है।
तत्पश्चात भगवान को विनीत भाव से आदर सहित भोग लगाकर भावपूर्वक भगवान जी की आरती उतारें।
कामिका एकादशी का पूजन भक्त अथवा व्रती स्वंय भी कर सकते हैं, तथा किसी विद्वान ब्राह्मण से भी करवा सकते हैं।
कामिका एकादशी के दिन तुलसा जी की पूजा अवश्य करनी चाहिए, ऐसा माना जाता है कि
तुलसीजी के दर्शन मात्र से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और शरीर के स्पर्श मात्र से मनुष्य पवित्र हो जाता है। तुलसीजी को जल से स्नान कराने से मनुष्य की सभी यम यातनाएं नष्ट हो जाती हैं।
तत्पश्चात अपनी सामर्थ्यनुसार दान कर्म करना भी बहुत कल्याणकारी रहता है।
व्रती को एकादशी की रात्रि में भगवान विष्णु जी (उपेन्द्र) का ध्यान करते हुए रात्रि जागरण भी अवश्य करना चाहिये। इस कामिका एकादशी की रात्रि को जो मनुष्य जागरण करते हैं और दीप-दान करते हैं, उनके पुण्यों को लिखने में चित्रगुप्त भी असमर्थ हैं। एकादशी के दिन तथा रात्रि मे जो मनुष्य भगवान के सामने दीपक जलाते हैं, उनके पितर स्वर्गलोक में अमृत का पान करते हैं।
*कामिका एकादशी व्रत का पारण:-*
एकादशी के व्रत को खोलने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करने से दोष लगता है, अतः एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि के भीतर ही करना अनिवार्य होता है।
एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्याह्न के बाद पारण करना चाहिए।
कामिका एकादशी व्रत का पारण 13 जुलाई को प्रातः 5:32 am से 08:18 am के मध्य में अवश्य ही करना चाहिए। निश्चित समय मे ब्राह्मणों को भोजन करा कर दक्षिणा देंकर ही व्रती को स्वयं भोजन ग्रहण करने का विधान है। इस प्रकार नियम पूर्वक पारण करने से भक्तों को अक्षुण्ण पुण्य मिलता है।
*कामिका एकादशी व्रत कथा:-*
धर्मराज युधिष्ठिर ने पूछा हे भगवन, श्रावण मास की कृष्ण एकादशी का क्या नाम है, कृपया उसका वर्णन कीजिये।
श्रीकृष्ण भगवान कहने लगे कि हे युधिष्ठिर! इस एकादशी की कथा एक समय स्वयं ब्रह्माजी ने देवर्षि नारद से कही थी, वही मैं तुमसे कहता हूँ। नारदजी ने ब्रह्माजी से पूछा था कि हे पितामह! श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनने की मेरी इच्छा है, उसका क्या नाम है? क्या विधि है और उसका माहात्म्य क्या है, सो कृपा करके कहिए।
नारदजी के ये वचन सुनकर ब्रह्माजी ने कहा- हे नारद! लोकों के हित के लिए तुमने बहुत सुंदर प्रश्न किया है। श्रावण मास की कृष्ण एकादशी का नाम कामिका है। उसके सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। इस दिन शंख, चक्र, गदाधारी विष्णु भगवान का पूजन होता है, जिनके नाम श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव, मधुसूदन हैं। उनकी पूजा करने से जो फल मिलता है सो सुनो।
जो फल गंगा, काशी, नैमिषारण्य और पुष्कर स्नान से मिलता है, वह विष्णु भगवान के पूजन से मिलता है। जो फल सूर्य व चंद्र ग्रहण पर कुरुक्षेत्र और काशी में स्नान करने से, समुद्र, वन सहित पृथ्वी दान करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोदावरी और गंडकी नदी में स्नान से भी प्राप्त नहीं होता वह भगवान विष्णु के पूजन से मिलता है।
जो मनुष्य श्रावण में भगवान का पूजन करते हैं, उनसे देवता, गंधर्व और सूर्य आदि सब पूजित
हो जाते हैं। अतः पापों से डरने वाले मनुष्यों को कामिका एकादशी का व्रत और भगवान का पूजन अवश्य करना चाहिए। पापरूपी कीचड़ में फँसे हुए और संसार रूपी समुद्र में डूबे मनुष्यों के लिए इस एकादशी का व्रत और भगवान का पूजन अत्यंत आवश्यक है। इससे बढ़कर पापों के नाशों का कोई उपाय नहीं है।
हे नारद! स्वयं भगवान ने कहा है कि कामिका व्रत से जीव कुयोनि को प्राप्त नहीं होता। जो मनुष्य एकादशी के दिन भक्तिपूर्वक तुलसी दल भगवान विष्णु को अर्पण करते हैं, वे इस संसार के समस्त पापों से दूर रहते हैं। भगवान रत्न, मोती, मणि तथा आभूषण आदि से इतने प्रसन्न नहीं होते जितने तुलसी दल से ।
तुलसी दल पूजन का फल चार भार चाँदी और एक भार स्वर्ण के दान के बराबर होता है। हे नारद! मैं स्वयं भगवान की अतिप्रिय तुलसी को सदैव नमस्कार करता हूँ। तुलसी के पौधे को सींचने से मनुष्य की सब यातनाएँ नष्ट हो जाती हैं। दर्शन मात्र से सब पाप नष्ट हो जाते हैं और स्पर्श से पवित्र हो जाता है। मनुष्य कामिका एकादशी की रात्रि को जो लोग भगवान के मंदिर में घी या तेल का दीपक जलाते हैं। उनके पितर स्वर्गलोक में अमृतपान करते हैं तथा वे सौ करोड़ दीपकों से प्रकाशित होकर सूर्यलोक जाते हैं।
ब्रह्माजी कहते हैं कि हे नारद! ब्रह्महत्या तथा भ्रूण हत्या आदि पापों को नष्ट करने वाली इस कामिका एकादशी का व्रत मनुष्य को यत्न के साथ करना चाहिए। कामिका एकादशी के व्रत का माहात्म्य श्रद्धा से सुनने और पढ़ने वाला मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को जाता है।
*(समाप्त)*
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*आगामी लेख:-*
*1. 5 जुलाई के पंचांग मे "सावन मास"पर धारावाहिक लेख, तत्पश्चात 15 जुलाई के पंचांग से लेख के चौथे भाग, तथा अगले भागो का प्रसारण।*
*2. 10 जुलाई के पंचांग मे "कामिका एकादशी" पर लेख।*
*3. 11 जुलाई के पंचांग मे "कर्क सक्रांति" पर लेख।*
*4. 12 जुलाई के पंचांग मे "सोमवती अमावस्या" पर लेख।*
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*जय श्री राम*
*कल का पंचांग 🌹🌹🌹*
*सोमवार,10.07.2023*
*श्री संवत 2080*
*शक संवत् 1945*
*सूर्य अयन- दक्षिणायन, उत्तर गोल*
*ऋतुः- वर्षा ऋतुः।*
*मास- प्रथम शुद्ध श्रावण मास।*
*पक्ष- कृष्ण पक्ष ।*
*तिथि- अष्टमी तिथि 6:43 pm तक*
*चंद्रराशि- चंद्र मीन राशि मे 6:59 pm तक तदोपरान्त मेष राशि।*
*नक्षत्र- रेवती ऩक्षत्र 6:59 pm तक*
*योग- अतिगण्ड योग 12:34 pm तक (अशुभ है)*
*करण- बालव करण 7:17 am तक*
*सूर्योदय- 5:30 am, सूर्यास्त 7:22 pm*
*अभिजित् नक्षत्र- 11:59 am से 12:54 pm*
*राहुकाल- 7:14 am से 8:58 am (शुभ कार्य वर्जित )*
*दिशाशूल- पूर्व दिशा।*
*जुलाई शुभ दिन:-* 19, 11, 14 (सायं. 7 तक), 19, 21 (दोपहर 12 उपरांत), 22 (सवेरे 9 उपरांत), 23, 24, 25 (दोपहर 3 तक), 26, 28
*जुलाई अशुभ दिन:-* 12, 13, 15, 16, 17, 18, 20, 27, 29, 30, 31.
*पंचक प्रारंभ:- 6 जुलाई 1:39 pm से 10 जुलाई 6:59 pm तक* पंचक नक्षत्रों मे निम्नलिखित काम नही करने चाहिए, 1.छत बनाना या स्तंभ बनाना (lantern or Pillar) 2.लकडी या तिनके तोड़ना , 3.चूल्हा लेना या बनाना, 4. दाह संस्कार करना (cremation) 5.पंलग चारपाई, खाट , चटाई बुनना या बनाना 6.बैठक का सोफा या गद्दियाँ बनाना । 7 लकड़ी ,तांबा ,पीतल को जमा करना ।(इन कामो के सिवा अन्य सभी शुभ काम पंचको मे किए जा सकते है।
*गण्ड मूल आरम्भ:- 9 जुलाई रेवती नक्षत्र, 7:30 pm से 11 जुलाई को अश्विनी नक्षत्र 7:05 pm तक गंडमूल रहेगें।* गंडमूल नक्षत्रों मे जन्म लेने वाले बच्चो का मूलशांति पूजन आवश्यक है।
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*आगामी व्रत तथा त्यौहार:-*
10 जुलाई- श्रावण सोमवार व्रत प्रारम्भ। 13 जुला०- कामिका एकादशी। 14 जुला०- प्रदोष व्रत। 15 जुला०- मासिक शिवरात्रि। 16 जुला०- कर्क संक्रांति (पुण्यकाल 11:30 am तक)। 17 जुला०- श्रावण/सोमवती अमावस्या। 18 जुलाई- श्रवण (अधिक) मलमास आरंभ। 29 जुला०- पद्मिनी एकादशी। 30 जुला०- प्रदोष व्रत।
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*विशेष:- जो व्यक्ति वाराणसी से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु paytm या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है*
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*आपका दिन मंगलमय हो*. 💐💐💐
*आचार्य मोरध्वज शर्मा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश*
9648023364
9129998000


 

कामदा एकादशी व्रत 19-04-2024

☀️ *लेख:- कामदा एकादशी, भाग-1 (19.04.2024)* *एकादशी तिथि आरंभ:- 18 अप्रैल 5:31 pm* *एकादशी तिथि समाप्त:- 19 अप्रैल 8:04 pm* *काम...