12 जुलाई 2023

श्रावण/कर्क सक्रांन्ति, 16.07.2023



लेख:- श्रावण/कर्क सक्रांन्ति, 16.07.2023
मीन संक्रान्ति क्षण-16/17 जुलाई मध्यरात्रि 5:07 am
संक्रान्ति पुण्यकाल- 17 जुलाई, सूर्योदय से 11:30 am तक
अन्य मत के अनुसार पुण्यकाल:-
कर्क संक्रान्ति पुण्य काल:- 16 जुलाई 12:27 pm से 07:21 pm
अवधि:- 6 घण्टे 54 मिनट्स
कर्क संक्रान्ति महापुण्यकाल:- 16 जुलाई 5:03 pm से 07:21 pm
अवधि:- 2 घण्टे 18 मिनट*
*श्रावण संक्रान्ति:-* 16 जुलाई रविवार की रात्रि के बाद 17 जुलाई के सूर्योदय से पहिले प्रात: 5 बजकर 07 मिंट पर (29:07) मिथुन लग्न में प्रवेश करेगी। इस संक्रान्ति का पुण्यकाल अगले दिन 17 जुलाई सोमवार की दोपहर 11:30 बजे तक रहेगा।
*श्रावण संक्रान्ति का फल:-*
वारानुसार घोरा तथा नक्षत्रानुसार महोदरी नामक यह संक्राति चोरों, ठगों, बेईमान तथा नीच प्रवृत्ति वाले लोगों के लिए लाभप्रद रहेगी।
*संक्राति राशिफल:-* यह संक्राति मिथुन, सिंह, कन्या, धनु, कुम्भ तथा मीन राशि वालों के लिए शुभ, शेष राशि वालों के लिए कुछ कष्टकारी रहेगी। संक्राति कुण्डली में मंगल-शुक्र का शनि के साथ समसप्तक दृष्टि सम्बन्ध तथा मेष राशिस्थ 'गुरु- राहु' पर शनि की दृष्टि रहने से कहीं प्राकृतिक आपदाओं एवं कहीं दुर्भिक्ष आदि के कारण महंगाई में वृद्धि तथा राजनेताओं में परस्पर वाद-विवाद रहे। किसी नेता के अपदस्थ या मृत्यु का समाचार भी मिले। केन्द्रीय सरकार के मन्त्रीमण्डल में परिवर्तन एवं उलटफेर के संकेत हैं। रविवारी संक्राति होने से भी राजनैतिक क्षेत्रों में अस्थिरता एवं अशान्ति होने के संकेत है।
सक्रांन्ति भारत के वैदिककालीन पर्वो मे से एक पर्व है, जोकि हर माह प्रायः 12 तारीख़ से 17 तारीख़ के मघ्य मे ही आती है। 16 जुलाई को 5:07 am पर सूर्यदेव के मिथुन राशि से निकल कर, कर्क राशि मे प्रवेश करने से श्रावण संक्रांति होगी। "सौरमास पद्धति" के अनुसार इसी समय" श्रावण मास का आरंभ होगा।
कर्क संक्रांति जिसे दक्षिणायन संक्रांति तथा श्रावण सक्रांति भी कहा जाता है। सूर्य के कर्क राशि में प्रवेश करने के कारण ही इसे कर्क संक्रांति कहा जाता है। ये संक्रांति सूर्य देव की दक्षिण यात्रा के प्रारंभ को दर्शाती है जिसे "दक्षिणायन" भी कहते है।
कर्क संक्रांति–प्रायः 16 जुलाई के आस-पास सूर्य के कर्क राशि में प्रवेश करने पर कर्क संक्रांति मनाई जाती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार इसे छह महीने के उत्तरायण काल का अंत माना जाता है। साथ ही इस दिन से दक्षिणायन की शुरुआत होती है, जो मकर संक्रांति में समाप्त होता है। सूर्य के 'उत्तरायण ' होने को 'मकर संक्रांति ' तथा 'दक्षिणायन' होने को 'कर्क संक्रांति' कहते हैं।
'श्रावण मास' से 'पौष' मास तक सूर्य का उत्तरी छोर से दक्षिणी छोर तक जाना ' दक्षिणायन' होता है
कर्क संक्रांति में दिन छोटे और रातें लंबी हो जाती हैं।
शास्त्रों एवं धर्म के अनुसार 'उत्तरायण' का समय देवतायओं का दिन तथा 'दक्षिणायन 'देवताओं की रात्रि होती है। इस प्रकार, वैदिक काल से 'उत्तरायण' को 'देवयान' तथा 'दक्षिणायन' के 'पितृयान' भी कहा जाता रहा है।
जिस प्रकार सूर्य के मकर संक्रांति के दिन से उत्तरायन होने से अग्नि तत्व बढ़ता है, चारों तरफ सकारात्मक और शुभ ऊर्जा का प्रसार होने लगता है, शुभता में वृद्धि होती है।
उसी प्रकार सूर्य के कर्क संक्रांति के दिन (16 जुलाई) से "उतरायण" होने की वजह से जल तत्व की अधिकता हो जाती है। इससे वातावरण में नकारात्मकता आने लगती है, और देवताओं की शक्ति कमजोर होने लगती है।
सावन संक्रांति अर्थात कर्क संक्रांति से वर्षा ऋतु का आगमन हो जाता है। देवताओं की रात्रि प्रारम्भ हो जाती है, और चातुर्मास या चौमासा का भी आरंभ इसी समय से हो जाता है। यह समय व्यवहार की दृष्टि से अत्यधिक संयम का होता है क्योंकि इसी समय तामसिक प्रवृतियां अधिक सक्रिय होती हैं। व्यक्ति का हृदय भी गलत मार्ग की ओर अधिक अग्रसर होता है, अत: संयम का पालन करके विचारों में शुद्धता का समावेश करके ही व्यक्ति अपने जीवन को शुद्ध मार्ग पर ले जा सकने में सक्षम हो पाता है।
इस समय उचित आहार विहार पर विशेष बल दिया जाता है। इस समय में शहद का प्रयोग विशेष तौर पर करना लाभकारी माना जाता है।
सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु के चार माह की अवधि में निद्रा मे जाने की वजह से सृष्टि का भार भोलेनाथ संभालेंगे, इसीलिए श्रावण मास में शिव पूजन का महत्व बढ़ जाता है। इस समयावधि में श्रावण मास भी आता है, तथा इस तरह से त्यौहारों की शुरुआत हो जाती है। मनुष्यों को अपने पितरों की शांति के लिए पूजन अथवा पिंडदान आदि भी करना चाहिए।
*सक्रांति व्रत अथवा पूजन विधि 😘
1. संक्रान्ति के शुभ दिन प्रातःकाल से लेकर सूर्यास्त तक देश के किसी भी पवित्र तीर्थ स्थान, संगमस्थल, नदी, कुंओ, बावडी, सरोवर इत्यादि मे स्नान करे।
2. गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा व कावेरी इन तीन नदियो मे, तथा गंगासागर जैसे तीर्थों मे स्नान करने से अधिक पुण्य मिलता है । जो लोग व्यस्तताओ के कारण इन स्थानो पर न जा पाये वह प्रातःकाल स्नान के जल मे गंगाजल मिलाकर स्नान करे ।
3. कर्क अर्थात श्रावण संक्रांति के दिन प्रातः स्नानादि से निवृत्त लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर अष्ठदल का कमल बनाकर उसमें सूर्यदेव का चित्र स्थापित करके भगवान सूर्यदेव का पूजन करना चाहिए। व्रत-पूजन-कथा करने से इस दिन पुण्यो की प्राप्ति होती है ।
4. व्रत का संकल्प लेने के बाद व्रत प्रारम्भ करना चाहिए, और फल-फूल, अक्षत, चन्दन, जल आदि से षोडशोपचार प्रभु की उपासना करनी चाहिए ।
5. तत्पश्चात व्रती को सूर्य स्मरण, आदित्य स्तोत्र एवं सूर्य मंत्र इत्यादि का पाठ व पूजन करना चाहिए जिसे अभिष्ट फलों की प्राप्ति होती है। संक्रांति में की गयी सूर्य उपासना से दोषों का शमन होता है।
6. चातुर्मास्य में आनें वाली इस कर्क संक्रांति में भगवान विष्णु का चिंतन-मनन शुभ फल प्रदान करता है, अतः इस दिन विष्णु पूजन भी अनिवार्य होता है। श्रीविष्णु पूजन, सूर्यजप, पुरुषसूक्त तथा स्तोत्र पाठ करे ।
7. श्रावण मास की इस सक्रांति पर अवश्य ही भगवान शिव का विधिपूर्वक दुध, गंगा-जल, बिल्बपत्र, फल इत्यादि सहित षोडशोपचार पूजन करना भी आवश्यक होता है। इसके साथ ही "ऊँ नम: शिवाय:" मंत्र का जाप करते हुए शिव पूजन करना लाभकारी रहता है।
8. इस प्रकार पूजा करने के उपरांत एक तांबे के लोटे मे जल भरकर उसमे थोडा गुड, लाल चंदन, रोली, चावल, तथा लाल फूल डालकर मंत्र बोलते हुए सूर्यदेव को अर्ध्य दे ।
9. पितरो के उद्धार हेतू श्राद्ध अवश्य करें अन्यथा काले तिलो से पितृृश्राद्ध अर्थात तिलांजलि अवश्य दे।
10. अंत मे ब्राह्माणों को भोजन कराना चाहिए और दान इत्यादि देकर विदा करना चाहिए । ब्राह्मण को अन्नदान, घृत यानि धी दान, वस्त्रदान, फल, तथा तिल और गुड से बने लड्डू-रेवडी इत्यादि दान करने से अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है ।
11. सक्रांति के दिन उडद की दाल, चावल, देसी धी, तथा नमक का दान धर्म स्थान पर करे ।
12. इस दिन उडद की दाल की खिचड़ी बनाकर भगवान को भोग लगाकर अधिक से अधिक मात्रा मे बांटने से अत्यधिक पुण्य प्राप्ति होती है
13. कर्क संक्रान्ति के दिन घडा, गेहूं, चावल, सत्तू अनाज व दूध -चीनी, फल, वस्त्र, छाता, पंखा,शर्बत आदि अन्य गर्मियों में प्रयोग होने वाली वस्तुओ का दक्षिणा सहित दान करने का विशेष महत्व होता है।
14. इस दिन किसी भी शुभ और नए कार्य का प्रारंभ नहीं करना चाहिए। क्योंकि पंचांग में इस दिन को किसी भी नए या शुभ कार्य को करने के लिए शुभ नहीं माना जाता।
विशेष :- जो व्यक्ति अपने ऊपर से अनिष्ट ग्रहो का, अथवा मारकेष का बुरा प्रभाव हटाना चाहे वह इस दिन ब्राह्मण को दिया जाने वाला "तुलादान" या"छाया पात्र" का दान अवश्य करे।
*(समाप्त)*
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*आगामी लेख:-*
*1. 5 जुलाई के पंचांग मे "सावन मास"पर धारावाहिक लेख, तत्पश्चात 15 जुलाई के पंचांग से लेख के चौथे भाग, तथा अगले भागो का प्रसारण।*
*2. 11 जुलाई के पंचांग मे "कर्क सक्रांति" पर लेख।*
*3. 12 जुलाई के पंचांग मे "सोमवती अमावस्या" पर लेख।*
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*जय श्री राम*
*कल का पंचांग 🌹🌹🌹*
*मंगलवार,11.07.2023*
*श्री संवत 2080*
*शक संवत् 1945*
*सूर्य अयन- दक्षिणायन, उत्तर गोल*
*ऋतुः- वर्षा ऋतुः।*
*मास- प्रथम शुद्ध श्रावण मास।*
*पक्ष- कृष्ण पक्ष ।*
*तिथि- नवमी तिथि 6:04 pm तक*
*चंद्रराशि- चंद्र मेष राशि मे।*
*नक्षत्र- अश्विनी ऩक्षत्र 7:04 pm तक*
*योग- सुकर्मा योग 10:43 am तक (शुभ है)*
*करण- तैतिल करण 6:19 am तक*
*सूर्योदय- 5:31 am, सूर्यास्त 7:22 pm*
*अभिजित् नक्षत्र- 11:59 am से 12:54 pm*
*राहुकाल- 3:54 pm से 5:38 pm (शुभ कार्य वर्जित )*
*दिशाशूल- उत्तर दिशा।*
*जुलाई शुभ दिन:-* 11, 14 (सायं. 7 तक), 19, 21 (दोपहर 12 उपरांत), 22 (सवेरे 9 उपरांत), 23, 24, 25 (दोपहर 3 तक), 26, 28
*जुलाई अशुभ दिन:-* 12, 13, 15, 16, 17, 18, 20, 27, 29, 30, 31.
*गण्ड मूल आरम्भ:- 9 जुलाई रेवती नक्षत्र, 7:30 pm से 11 जुलाई को अश्विनी नक्षत्र 7:05 pm तक गंडमूल रहेगें।* गंडमूल नक्षत्रों मे जन्म लेने वाले बच्चो का मूलशांति पूजन आवश्यक है।
*सर्वार्थ सिद्ध योग:-11 जुलाई 5:31 am से 11 त्यौहा7:05 pm तक* (यह एक शुभयोग है, इसमे कोई व्यापारिक या कि राजकीय अनुबन्ध (कान्ट्रेक्ट) करना, परीक्षा, नौकरी अथवा चुनाव आदि के लिए आवेदन करना, क्रय-विक्रय करना, यात्रा या मुकद्दमा करना, भूमि , सवारी, वस्त्र आभूषणादि का क्रय करने के लिए शीघ्रतावश गुरु-शुक्रास्त, अधिमास एवं वेधादि का विचार सम्भव न हो, तो ये सर्वार्थसिद्धि योग ग्रहण किए जा सकते हैं।
*अमृत सिद्धि योग :- 11 जुलाई 5:31 am से 11 जुलाई 7:05 pm तक* इस योग मे सर्वाथ सिद्ध योगवाले कामो के अलावा प्रेमविवाह, विदेश यात्रा तथा सकाम अनुष्ठान करना शुभ होता है।
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*आगामी व्रत तथा त्यौहार:-*
13 जुला०- कामिका एकादशी। 14 जुला०- प्रदोष व्रत। 15 जुला०- मासिक शिवरात्रि। 16 जुला०- कर्क संक्रांति (पुण्यकाल 11:30 am तक)। 17 जुला०- श्रावण/सोमवती अमावस्या। 18 जुलाई- श्रवण (अधिक) मलमास आरंभ। 29 जुला०- पद्मिनी एकादशी। 30 जुला०- प्रदोष व्रत।
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*विशेष:- जो व्यक्ति वाराणसी से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु paytm या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है*
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*आपका दिन मंगलमय हो*. 💐💐💐
*आचार्य मोरध्वज शर्मा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश*
9648023364
9129998000

 

कामिका एकादशी, 13.07.2023


लेख:-कामिका एकादशी, 13.07.2023
एकादशी प्रारम्भ:- 12.07.2023, 5:59 pm
एकादशी समाप्त:- 13.07.2023, 6:24 pm
एकादशी पारण मुहूर्त:- 14.07.2023, 5:32 am से 08:18 am तक
अवधि:- 2 घण्टे 45 मिनट
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय:- 7:17 pm
हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में क्रमशः एक-एक एकादशी तिथि आती हुई, एक वर्ष मे कुल चौबीस एकादशी आती हैं।
इसी प्रकार श्रावण कृष्णपक्ष मे आने वाली एकादशी को कामिका एकादशी भी कहा जाता हैं। अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार कामिका एकादशी जुलाई या अगस्त के महीने में आती है।
उदया तिथि के अनुसार, साल 2023 की कामिका एकादशी का व्रत 13 जुलाई दिन वृहस्पतिवार को रखा जाएगा।
कामिका एकादशी के दिन भगवान विष्णु कि विधि पूर्वक पूजा की जाती है। कामिका एकादशी के उपवास में शंख, चक्र, गदाधारी भगवान विष्णु के दिव्य रूप का पूजन होता है। ऐसा माना जाता है कि जो मनुष्य इस एकादशी को धूप, दीप, नैवेद्य आदि से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
*कामिका एकादशी महत्व:-*
कामिका एकादशी पर भगवान विष्णु का पूजन करना अत्यंत लाभकारी माना गया है। इस व्रत के प्रभाव से सबके बिगड़े काम बनने लगते हैं। इस दिन की गई पूजा-पाठ, व्रत तथा अन्य पुण्य कर्म के प्रभाव से भक्तों के कष्टों के साथ-२ उनके पूर्वजो के कष्टों का भी निवारण होता हैं। कामिका एकादशी के अवसर पर तीर्थ स्थानों पर नदी, कुंड, सरोवर में स्नान करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है।
कामिका एकादशी व्रत की महत्ता के संबंध मे कहते हुए ब्रह्माजी ने नारद को बताया कि, इस एकादशी की कथा सुनने मात्र से ही वाजपेय यज्ञ के बराबर फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि कामिका एकादशी व्रत करने से भक्तों की सभी मनोकामनायें पूरी होती है और उसने समस्त पापों का नाश हो जाता है, पूर्वजन्म की बाधाएं, जन्मकुण्डली मे दर्शाये गए अनिष्ट योग तथा दोष दूर हो जाते हैं। इस एकादशी के फल लोक और परलोक दोनों में उत्तम कहे गये हैं। क्योंकि इस व्रत को करने से हजार गौ दान के समान पुण्य प्राप्त होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
*कामिका एकादशी व्रत पूजा विधि:-*
कामिका एकादशी के उपवास की शुरुआत दशमी तिथि की रात्रि से ही हो जाती है। व्रती को दशमी तिथि अर्थात व्रत धारण करने की पूर्व रात्रि से ही तामसिक भोजन का त्याग कर नमक रहित सादा भोजन ग्रहण करना चाहिये। व्रती को जौं, गेहूं और मूंग की दाल से बना भोजन भी ग्रहण नहीं करना चाहिए।
उसी दिन से ही ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है, संभव हो तो जमीन पर ही सोएं।
एकादशी के दिन प्रात:काल उठकर नित्यकर्म से निर्वत होकर स्नानादि के पश्चात व्रत का संकल्प लें।
कामिका एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु के उपेन्द्र स्वरूप की पूजा-आराधना की जाती है।
लकडी की चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर, पूजा मे पीले फूल और यथा संभव पीले रंग की ही पूजन सामग्री का प्रयोग करते हुए भगवान विष्णु की मूर्ति अथवा सुन्दर चित्र स्थापित करे ।
उसी वेदी पर नारियल सहित कुंभ स्थापना करनी चाहिए।
तत्पश्चात भगवान उपेन्द्र की मूर्ति अथवा चित्र को स्नानादि करवाकर पुष्प, धूप, दीप इत्यादि से पंचोपचार अथवा अपनी सामर्थ्यनुसार षोडशोपचार पूजन करे।
कामिका एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा मे तुलसी पत्र का उपयोग अवश्य ही करना चाहिए, भगवान विष्णु की पूजा मे तुलसी पत्र का प्रयोग अत्यंत शुभ माना गया है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन जो मनुष्य तुलसीजी को भक्तिपूर्वक भगवान के श्रीचरण कमलों में अर्पित करता है, उसे मुक्ति मिलती है।
पूजा के दौरान आसन पर बैठकर ।।ऊं नमो भगवते वासुदेवाय।। मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करना चाहिए तदोपरांत व्रत कथा का पठन अथवा श्रवण करना अत्यंत आवश्यक है।
तत्पश्चात भगवान को विनीत भाव से आदर सहित भोग लगाकर भावपूर्वक भगवान जी की आरती उतारें।
कामिका एकादशी का पूजन भक्त अथवा व्रती स्वंय भी कर सकते हैं, तथा किसी विद्वान ब्राह्मण से भी करवा सकते हैं।
कामिका एकादशी के दिन तुलसा जी की पूजा अवश्य करनी चाहिए, ऐसा माना जाता है कि
तुलसीजी के दर्शन मात्र से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और शरीर के स्पर्श मात्र से मनुष्य पवित्र हो जाता है। तुलसीजी को जल से स्नान कराने से मनुष्य की सभी यम यातनाएं नष्ट हो जाती हैं।
तत्पश्चात अपनी सामर्थ्यनुसार दान कर्म करना भी बहुत कल्याणकारी रहता है।
व्रती को एकादशी की रात्रि में भगवान विष्णु जी (उपेन्द्र) का ध्यान करते हुए रात्रि जागरण भी अवश्य करना चाहिये। इस कामिका एकादशी की रात्रि को जो मनुष्य जागरण करते हैं और दीप-दान करते हैं, उनके पुण्यों को लिखने में चित्रगुप्त भी असमर्थ हैं। एकादशी के दिन तथा रात्रि मे जो मनुष्य भगवान के सामने दीपक जलाते हैं, उनके पितर स्वर्गलोक में अमृत का पान करते हैं।
*कामिका एकादशी व्रत का पारण:-*
एकादशी के व्रत को खोलने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करने से दोष लगता है, अतः एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि के भीतर ही करना अनिवार्य होता है।
एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्याह्न के बाद पारण करना चाहिए।
कामिका एकादशी व्रत का पारण 13 जुलाई को प्रातः 5:32 am से 08:18 am के मध्य में अवश्य ही करना चाहिए। निश्चित समय मे ब्राह्मणों को भोजन करा कर दक्षिणा देंकर ही व्रती को स्वयं भोजन ग्रहण करने का विधान है। इस प्रकार नियम पूर्वक पारण करने से भक्तों को अक्षुण्ण पुण्य मिलता है।
*कामिका एकादशी व्रत कथा:-*
धर्मराज युधिष्ठिर ने पूछा हे भगवन, श्रावण मास की कृष्ण एकादशी का क्या नाम है, कृपया उसका वर्णन कीजिये।
श्रीकृष्ण भगवान कहने लगे कि हे युधिष्ठिर! इस एकादशी की कथा एक समय स्वयं ब्रह्माजी ने देवर्षि नारद से कही थी, वही मैं तुमसे कहता हूँ। नारदजी ने ब्रह्माजी से पूछा था कि हे पितामह! श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनने की मेरी इच्छा है, उसका क्या नाम है? क्या विधि है और उसका माहात्म्य क्या है, सो कृपा करके कहिए।
नारदजी के ये वचन सुनकर ब्रह्माजी ने कहा- हे नारद! लोकों के हित के लिए तुमने बहुत सुंदर प्रश्न किया है। श्रावण मास की कृष्ण एकादशी का नाम कामिका है। उसके सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। इस दिन शंख, चक्र, गदाधारी विष्णु भगवान का पूजन होता है, जिनके नाम श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव, मधुसूदन हैं। उनकी पूजा करने से जो फल मिलता है सो सुनो।
जो फल गंगा, काशी, नैमिषारण्य और पुष्कर स्नान से मिलता है, वह विष्णु भगवान के पूजन से मिलता है। जो फल सूर्य व चंद्र ग्रहण पर कुरुक्षेत्र और काशी में स्नान करने से, समुद्र, वन सहित पृथ्वी दान करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोदावरी और गंडकी नदी में स्नान से भी प्राप्त नहीं होता वह भगवान विष्णु के पूजन से मिलता है।
जो मनुष्य श्रावण में भगवान का पूजन करते हैं, उनसे देवता, गंधर्व और सूर्य आदि सब पूजित
हो जाते हैं। अतः पापों से डरने वाले मनुष्यों को कामिका एकादशी का व्रत और भगवान का पूजन अवश्य करना चाहिए। पापरूपी कीचड़ में फँसे हुए और संसार रूपी समुद्र में डूबे मनुष्यों के लिए इस एकादशी का व्रत और भगवान का पूजन अत्यंत आवश्यक है। इससे बढ़कर पापों के नाशों का कोई उपाय नहीं है।
हे नारद! स्वयं भगवान ने कहा है कि कामिका व्रत से जीव कुयोनि को प्राप्त नहीं होता। जो मनुष्य एकादशी के दिन भक्तिपूर्वक तुलसी दल भगवान विष्णु को अर्पण करते हैं, वे इस संसार के समस्त पापों से दूर रहते हैं। भगवान रत्न, मोती, मणि तथा आभूषण आदि से इतने प्रसन्न नहीं होते जितने तुलसी दल से ।
तुलसी दल पूजन का फल चार भार चाँदी और एक भार स्वर्ण के दान के बराबर होता है। हे नारद! मैं स्वयं भगवान की अतिप्रिय तुलसी को सदैव नमस्कार करता हूँ। तुलसी के पौधे को सींचने से मनुष्य की सब यातनाएँ नष्ट हो जाती हैं। दर्शन मात्र से सब पाप नष्ट हो जाते हैं और स्पर्श से पवित्र हो जाता है। मनुष्य कामिका एकादशी की रात्रि को जो लोग भगवान के मंदिर में घी या तेल का दीपक जलाते हैं। उनके पितर स्वर्गलोक में अमृतपान करते हैं तथा वे सौ करोड़ दीपकों से प्रकाशित होकर सूर्यलोक जाते हैं।
ब्रह्माजी कहते हैं कि हे नारद! ब्रह्महत्या तथा भ्रूण हत्या आदि पापों को नष्ट करने वाली इस कामिका एकादशी का व्रत मनुष्य को यत्न के साथ करना चाहिए। कामिका एकादशी के व्रत का माहात्म्य श्रद्धा से सुनने और पढ़ने वाला मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को जाता है।
*(समाप्त)*
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*आगामी लेख:-*
*1. 5 जुलाई के पंचांग मे "सावन मास"पर धारावाहिक लेख, तत्पश्चात 15 जुलाई के पंचांग से लेख के चौथे भाग, तथा अगले भागो का प्रसारण।*
*2. 10 जुलाई के पंचांग मे "कामिका एकादशी" पर लेख।*
*3. 11 जुलाई के पंचांग मे "कर्क सक्रांति" पर लेख।*
*4. 12 जुलाई के पंचांग मे "सोमवती अमावस्या" पर लेख।*
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*जय श्री राम*
*कल का पंचांग 🌹🌹🌹*
*सोमवार,10.07.2023*
*श्री संवत 2080*
*शक संवत् 1945*
*सूर्य अयन- दक्षिणायन, उत्तर गोल*
*ऋतुः- वर्षा ऋतुः।*
*मास- प्रथम शुद्ध श्रावण मास।*
*पक्ष- कृष्ण पक्ष ।*
*तिथि- अष्टमी तिथि 6:43 pm तक*
*चंद्रराशि- चंद्र मीन राशि मे 6:59 pm तक तदोपरान्त मेष राशि।*
*नक्षत्र- रेवती ऩक्षत्र 6:59 pm तक*
*योग- अतिगण्ड योग 12:34 pm तक (अशुभ है)*
*करण- बालव करण 7:17 am तक*
*सूर्योदय- 5:30 am, सूर्यास्त 7:22 pm*
*अभिजित् नक्षत्र- 11:59 am से 12:54 pm*
*राहुकाल- 7:14 am से 8:58 am (शुभ कार्य वर्जित )*
*दिशाशूल- पूर्व दिशा।*
*जुलाई शुभ दिन:-* 19, 11, 14 (सायं. 7 तक), 19, 21 (दोपहर 12 उपरांत), 22 (सवेरे 9 उपरांत), 23, 24, 25 (दोपहर 3 तक), 26, 28
*जुलाई अशुभ दिन:-* 12, 13, 15, 16, 17, 18, 20, 27, 29, 30, 31.
*पंचक प्रारंभ:- 6 जुलाई 1:39 pm से 10 जुलाई 6:59 pm तक* पंचक नक्षत्रों मे निम्नलिखित काम नही करने चाहिए, 1.छत बनाना या स्तंभ बनाना (lantern or Pillar) 2.लकडी या तिनके तोड़ना , 3.चूल्हा लेना या बनाना, 4. दाह संस्कार करना (cremation) 5.पंलग चारपाई, खाट , चटाई बुनना या बनाना 6.बैठक का सोफा या गद्दियाँ बनाना । 7 लकड़ी ,तांबा ,पीतल को जमा करना ।(इन कामो के सिवा अन्य सभी शुभ काम पंचको मे किए जा सकते है।
*गण्ड मूल आरम्भ:- 9 जुलाई रेवती नक्षत्र, 7:30 pm से 11 जुलाई को अश्विनी नक्षत्र 7:05 pm तक गंडमूल रहेगें।* गंडमूल नक्षत्रों मे जन्म लेने वाले बच्चो का मूलशांति पूजन आवश्यक है।
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*आगामी व्रत तथा त्यौहार:-*
10 जुलाई- श्रावण सोमवार व्रत प्रारम्भ। 13 जुला०- कामिका एकादशी। 14 जुला०- प्रदोष व्रत। 15 जुला०- मासिक शिवरात्रि। 16 जुला०- कर्क संक्रांति (पुण्यकाल 11:30 am तक)। 17 जुला०- श्रावण/सोमवती अमावस्या। 18 जुलाई- श्रवण (अधिक) मलमास आरंभ। 29 जुला०- पद्मिनी एकादशी। 30 जुला०- प्रदोष व्रत।
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*विशेष:- जो व्यक्ति वाराणसी से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु paytm या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है*
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*आपका दिन मंगलमय हो*. 💐💐💐
*आचार्य मोरध्वज शर्मा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश*
9648023364
9129998000


 

08 जुलाई 2023

धारावाहिक लेख- मलमास, खरमास, अधिक मास तथा क्षयमास, भाग-2, अंतिम


धारावाहिक लेख- मलमास, खरमास, अधिक मास तथा क्षयमास, भाग-2, अंतिम
(18 जुलाई से 16 अगस्त 2023)

वर्ष 2023 में चान्द्र श्रावण मास 'अधिक मास' अर्थात (मल, पुरुषोत्तम) मास होगा। इस अधि-मास की समयावधि 18 जुलाई, मंगलवार से 16 अगस्त 2023, बुधवार तक रहेगी। 

*अधिक मास:-*  जिस महीने में सूर्य संक्रान्ति न हो, वह महीना प्राप्त अधिमास होता है और जिसमें दो संक्रान्ति हों, वह क्षय-मास होता है। 

सौर वर्ष और चान्द्र-वर्ष में सांमजस्य स्थापित करने के लिए हर तीसरे फल वर्ष पंचांगों में एक चान्द्र मास की वृद्धि कर दी जाती है।

सरल शब्दो में इसी को 'अधिक मास' के अतिरिक्त 'अधि-मास', 'मलमास' तथा आध्यात्मिक विषयों में अत्यन्त पुण्यदायी होने के कारण 'पुरुषोत्तम मास' आदि नामों से भी पुकारा जाता है। 

(ज्योतिष गणना के अनुसार एक सौरवर्ष का मान 365 दिन, 6 घण्टे एवं 11 सैकिण्ड के लगभग है, जबकि चान्द्र वर्ष 354 दिन, एवं लगभग 9 घण्टे का होता है। दोनों वर्षमानों में प्रतिवर्ष 10 दिन, 21 घण्टे 9 मिन्ट का अन्तर अर्थात् लगभग 11 दिन का अन्तर पड़ जाता है। इस अन्तर में सामञ्जस्य स्थापित करने के लिए 32 महीने, 16 दिन, 4 घड़ी, बीत जाने पर अधिकमास का निर्णय किया जाता।)

संक्षेप मे एक अधिक मास से दूसरा अधिक (मल) मास 28 महीने से लेकर 36 मास के अंदर ही पुनः आ सकता है। सरल शब्दो मे हर तीसरे वर्ष में अधिक मास अर्थात् पुरुषोत्तम मास पुनः हो सकता है।

*पुरुषोत्तम मास का माहात्म्य*
पौराणिक कथाओं अनुसार इस महीने कोई भी संक्रांति न होने के कारण यह मास अनाथ निंदनीय, संक्रांतिहीन एवं त्याज्य हुआ, जिसके कारण कोई भी इस मास का स्वामी होना नही चाहता था, तब इस मास ने भगवान विष्णु से अपने उद्धार के संबंध में प्रार्थना कि जिस पर भगवान विष्णु जी ने इस मास का स्वामित्व स्वयं ही ले लिया तथा इसे अपना श्रेष्ठ नाम "पुरूषोत्तम" प्रदान किया, साथ ही यह आशीर्वाद भी दिया कि जो मनुष्य इस माह में भागवत कथा श्रवण, मनन, भगवान शंकर का पूजन, धार्मिक अनुष्ठान, दानादि करेगा वह अक्षय फल को प्राप्त करने वाला होंगा। इस माह में किया गया दान-पुण्य भी अक्षय फल देने वाला रहेगा। यह मास इतना पावन है कि इसके माहात्म्य की कथा स्वयं भगवान विष्णु ने देवर्षि नारद को अपने श्रीमुख से सुनाई थी। 

अधिक मास के आने पर जो व्यक्ति श्रद्धा एवं भक्तिपूर्वक व्रत, उपवास, श्रीविष्णु पूजन, पुरुषोत्तम माहात्म्य का पाठ, दान आदि शुभ कर्म करता है, वह मनोवांछित फल प्राप्त कर लेता है और मरणोपरान्त गोलोक पहुँचकर भगवान् श्रीकृष्ण का सान्निध्य प्राप्त करता है। इस मास गीतापाठ, श्रीराम-कृष्ण के मन्त्रों, पंचाक्षर शिवमन्त्र, अष्टाक्षर नारायणमन्त्र, द्वादशाक्षर वासुदेव मन्त्र आदि के जप का लाखगुना, करोड़गुना या अनन्त फल होता है।

मलमास के 33 ही देवता होते हैं जो कि निम्न प्रकार माने जाते हैं, (11 रुद्र, 12 आदित्य, 8 वास, 1 प्रजापति, 1 वास्तुकार) = 33

*श्रावण (अधिक) मास 2023 का फल:-*
वि. संवत् 2080 में प्रथम श्रावण शुक्ल प्रतिपदा तद्नुसार 18 जुलाई, मंगलवार से श्रावण अधिक मास प्रारम्भ होकर 16 अगस्त, बुधवार तक व्याप्त रहेगा। शास्त्रों में श्रावण अधिक मास का फल इस प्रकार से वर्णित है- 

*'दुर्भिक्षं श्रावणे युग्मे पृथ्वी नाशः प्रजाक्षयः।*
अर्थात् जिस वर्ष में दो श्रावण हों अर्थात् श्रावण अधिक मास हो, तो उस वर्ष पृथ्वी पर कहीं दुर्भिक्ष, उपयोगी वर्षा की कमी एवं अग्निकाण्ड, युद्ध, यानादि दुर्घटनाओं एवं की प्राकृतिक प्रकोपों से धन एवं जन हानि की आशंका होती है। अधिक मास काल में गोचरवश 'मंगल-शनि' मध्य समसप्तक योग भी होने से पृथ्वी के उत्तर गोलार्द्ध के, दक्षिण दिशा में पड़ने वाले देशों जैसे-रूस, चीन, ताईवान, यूक्रेन, पाकिस्तान तथा अन्य सभी यूरोपीय देशों में आन्तरिक व बाह्य राजनैतिक परिस्थितियां विशेष रूप से प्रभावित रहेंगी। इन देशों में कहीं आन्तरिक विद्वेष, उपद्रव, अग्निकाण्ड, बाढ़, युद्ध, भूकम्प आदि से भी जन व धन सम्पदा की हानि की सम्भावनाएं होंगी।

*पुरुषोत्तम मास में नित्यकर्म एवं उद्यापन अर्थात् पालन करने योग्य नियम:-*
पुराण के अनुसार पुरुषोत्तम मास में ईश्वर के निमित्त जो व्रत, उपवास, स्नान, दान या पूजनादि किए जाते उन सबका अक्षय फल होता है और व्रती के सब अनिष्ट नष्ट हो जाते हैं। पुराणों में अधिकमास में पूजन, व्रत, दान सम्बन्धी विभिन्न प्रकार के विधि-विधान बतलाए गए हैं, जिसमे से क्रमंशः कुछ विधियो का उल्लेख यहां प्रस्तुत किया जा रहा है।

*प्रथम विधि:-*
1. इस मास के प्रारम्भ होते ही प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर शौच, स्नान, संध्या आदि नित्यकर्म करके भगवान् का स्मरण करना चाहिए और पुरुषोत्तम मास के नियम ग्रहण करने चाहिये।

 पुरुषोत्तम मास में श्रीमद्भागवत् की पुराण का पाठ करना महान् पुण्यप्रदायक है और एक लाख तुलसीपत्र से शालिग्राम भगवान् का पूजन करने से अनन्त पुण्य होता है। विधिपूर्वक षोडशोपचार से नित्य भगवान् का पूजन करना चाहिए। इस पुरुषोत्तम मास में निम्नलिखित मन्त्र का एक महीने तक भक्तिपूर्वक बार-बार जप करने से पुरुषोत्तम भगवान् की प्राप्ति होती है।

*गोवर्द्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरूपिणम् ।* *गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिकाप्रियम् ।।*

प्राचीनकाल में श्रीकौण्डिन्य ऋषि ने यह मन्त्र बताया था। मन्त्र जपते समय श्रीराधिका जी के सहित श्रीपुरुषोत्तम भगवान् का ध्यान करना चाहिए।

*द्वितीय विधि:-*
1. हेमाद्रि अनुसार पुरुषोत्तम मास आरम्भ होने पर प्रातः स्नानादि नित्यकर्म से निवृत्त होकर एकभुक्त या नक्तव्रत रखा जाता है। 

2. प्रतिदिन पूजा मे भगवान् विष्णुस्वरुप सहस्रांशु (भास्कर) का मंत्रों द्वारा लालपुष्प सहित पूजन किया जाता है। 

3. तत्पश्चात कृष्णस्तोत्र पाठ करके कांस्य पात्र में भरे हुए अन्न, फल, वस्त्रादि का दान किया जाता है। 

4. पूजनोपरान्त अथवा अधिकमास के अन्तिम दिन विविध प्रकार के मिष्ठान्न, घी, गुड़ और अन्न का दान ब्राह्मण को करें तथा घी, गेहूँ और गुड़ के बनाए हुए तैंतीस (33) अपूप (पूओं) को पात्र में रखकर निम्न मन्त्र पढ़कर फलों, मिष्ठान्न, वस्त्र दक्षिणा सहित ब्राह्मण को दान करें-

*"ॐ विष्णुरूपी सहस्रांशुः सर्वपापप्रणाशनः ।* *अपूपान्न प्रदानेन मम पापं व्यपोहतु ।"* 

इसके बाद आगे लिखे मन्त्र से भगवान् विष्णु को प्रार्थना करें- 
*यस्य हस्ते गदाचक्रे गरुडोयस्य वाहनम् ।*
*शङ्खः करतले यस्य स मे विष्णुः प्रसीदतु ।*

3. इसके अतिरिक्त श्रावण अधिक मास में प्रतिदिन श्रीपुरुषोत्तम माहात्म्य का पाठ एक निश्चित समय पर श्रद्धापूर्वक करना चाहिए। श्रीविष्णु स्तोत्र, श्रीविष्णु सहस्रनाम, श्रीसूक्त, पुरुषसूक्त आदि पाठ करना शुभ होगा। 

*अधिकमास का उद्यापन:-*
अधिकमास की समाप्ति पर स्नान, जप, पुरुषोत्तम मास पाठ एवं (निम्न मन्त्रों सहित गुड़, गेहूँ, घृत, वस्त्र, मिष्ठान्न, दाख, केले, कूष्माण्ड (कुम्हड़ा), ककड़ी, मूली आदि वस्तुओं का दान, दक्षिणा सहित करके भगवान् को 3 बार अर्ध्य देना चाहिए।

*भगवान के तैतीस (त्रयस्त्रिंशत् /३३) नाम मन्त्रों का जप करना चाहिए-*

१. विष्णुं, २. जिष्णुं, ३. महाविष्णुं, ४. हरिं, ५. कृष्ण, ६. अधोक्षजम्, ७. केशवं, ८. माधवं, ९. राम, १०. अच्युत्यं, ११. पुरुषोत्तमम्, १२. गोविन्दं, १३. वामनं, १४. श्रीशं, १५. श्रीकृष्णं, २६. विश्वसाक्षिणं १७. नारायणं, १८. मधुरिपुं १९. अनिरुद्धं, २०. त्रिविक्रमम्, २१. वासुदेवं, २२. जगद्योनिं २३. अनन्तं, २४. शेयशाविनम्, २५. सकर्षणं २६. प्रद्युम्नं २७. दैत्यरि, २८. विश्वतोमुखम् २९. जनार्दनं, ३०. धरावास, ३१. दामोदरं, ३२. मघार्दनं, ३३. श्रीपतिं च ।।  


*अधिक मास में कृत्य कर्म:-* 
शास्त्रो मे कहा गया है कि सम्पूर्ण वर्ष मे किए गये सभी शुभ कर्म और केवल एक मलमास में किए शुभ कर्म पुण्य फल मे बराबर माने गए हैं।

1. स्नान:- पूरे मलमास में ‘‘ब्रह्म मुहूर्त’’ में नदी, सरोवर, कूप, नल आदि उसके जल से स्नान करना चाहिए । शास्त्रों में प्रातः 3 से 6 तक ब्रह्ममुहूर्त माना गया है । ऐसा माना जाता है कि मलमास मे इस समय देवता भी पवित्र नदियों में स्नान करने आते हैं। 

2.लक्ष्मी नारायण पूजा:- मलमास मे स्नानादि से निवृत्त होकर ब्रह्म महूर्त मे भगवान विष्णु और महा लक्ष्मी का पूजन अति हितकारी फल प्रदान करता है।

3.पुरषोत्तम मास मे भगवान पुरुषोत्तम अर्थात विष्णु जी का श्रद्धापूर्वक पूजन करना चाहिए तथा मंत्र जाप करना चाहिए । श्रीपुरुषोत्तम माहात्म्य की कथा का पठन अथवा श्रवण करना चाहिए, रामायण का पाठ या श्रीविष्णु स्तोत्र का पाठ करना शुभ होता है। भगवान शिव के लिये रुद्राभिषेक का करना भी इस माह मे विशेष फलदायी है ।

4.दान:- मलमास में दान की विशेष महिमा है। यह माना जाता है कि इस मास में दिए गए दान के भोक्ता और फलदाता भगवान विष्णु स्वयं हैं।
इस मास में रामायण, गीता तथा अन्य धार्मिक व पौराणिक ग्रंथों के दान आदि का भी महत्व माना गया है. वस्त्रदान, अन्नदान, गुड़ और घी से बनी वस्तुओं का दान करना अत्यधिक शुभ माना गया है ।
 
5. अधिक मास मे पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर अपने आराध्य का ध्यान करना चाहिए। इस पूरे माह में व्रत, तीर्थ स्नान, भागवत पुराण, ग्रंथों का अध्ययन, विष्णु यज्ञ आदि किए जा सकते हैं। जो कार्य पहले शुरु किये जा चुके हैं उन्हें जारी रखा जा सकता है।

6.व्रत:- मलमास के पांच व्रत किए जाने का विधान है, क्रमशः  पूर्णिमा, अमावस्या, शुक्ल पक्ष व कृष्ण पक्ष दोनों की एकादशी तथा जिस दिन चंद्रमा का गोचर मकर राशि मे श्रवण नक्षत्र में हो, उस दिन का व्रत । इन पांच दिन व्रत करने का विधान है। – व्रत में उन्हीं नियमों का पालन किया जाता है जो नियम सामान्य चंद्र मास के व्रतों में अपनाए जाते हैं। अलग से कोई और नियम नहीं होता है।

7. अधिक मास मे संतान जन्म के कृत्य जैसे गर्भाधान, पुंसवन, सीमंत आदि संस्कार किये जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त नित्यकर्म, ग्रहण शान्त्यादि निमित्तक- नैमित्तिक स्नानादि कर्म, द्वितीय बार का तीर्थ स्नान, गजच्छायायोग निमित्तक श्राद्ध-प्रेतस्नान, गर्भाधान, ऋणादि में बार्धुवषिकृत्य, दशगात्रपिण्डदान एवं श्राद्ध करना चाहिए। 

8. अधिक (मल) मास में जिस काम्य कर्म के प्रयोग का आरम्भ अधिक मास से पहले ही हो चुका हो, उसकी सम्पूर्ति अधिक मास में विहित है।
 
*अधिक मास में त्याज्य कर्म:-*
1. अधिमास में फल प्राप्ति की कामना से किए जाने वाले प्रायः सभी काम वर्जित हैं और फल की आशा से रहित होकर करने के आवश्यक सब काम किए जा सकते हैं। 

2. अधिक (पुरुषोत्तम) मास में कुछ नित्य, नैमित्तिक एवं काम्य कर्मों को करने का निषेध माना गया है। जैसे-विवाह, यज्ञ, देव-प्रतिष्ठा, महादान, चूड़ाकर्म (मुण्डन), पहले कभी न देखे हुए देवतीर्थों में गमन, नवगृह प्रवेश, वृषोत्सर्ग, भूमि आदि सम्पत्ति की खरीद (क्रय), नई गाड़ी का क्रय आदि शुभ कार्यों का आरम्भ अधिक मास-काल में नहीं करना चाहिए-

3. इसके अतिरिक्त नववधू प्रवेश, नव-यज्ञोपवीत धारण, व्रतोद्यापन, नव- अलंकार, नवीन वस्त्रादि धारण करना, कुआँ, तालाब, बावली, बाग आदि का खनन करना, भूमि, वाहनादि का क्रय करना, काम्य व्रत का आरम्भ, भूमि, सुवर्ण, तुला, गायादि का दान, अष्टका श्राद्ध, उपनयन, द्वितीय वार्षिक श्राद्ध, उपाकर्मादि कर्मों के सम्पादन का निषेध माना गया है।

4. अधिक मास मे तामसिक वस्तुओं, तामसिक क्रिया कलापों व तामसिक विचारों को पूरी तरह त्याग करना चाहिए जैसे कि मांस, मदिरा व संभोग आदि का त्याग करना चाहिए।

4. राजसिक सुखो तथा भोगो को त्याग कर अधिक  मास में सात्विक जीवन व सात्विक विचारों को अपनाना चाहिए ।

5.  मलमास मे शादी (विवाह), नया व्यवसाय या नया मकान आरंभ करना, नया मकान, वाहन आदि खरीदने के विचारों को कम से कम एक माह तक स्थगित कर देना चाहिए। 

*(समाप्त)*
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*आगामी लेख:-*
*1. 5 जुलाई के पंचांग मे "सावन मास"पर धारावाहिक लेख, तत्पश्चात 15 जुलाई के पंचांग से लेख के चौथे भाग, तथा अगले भागो का प्रसारण।*
*2. 8 जुलाई के पंचांग मे "अधिक मास" पर धारावाहिक लेख।*
*3. 10 जुलाई के पंचांग मे "कामिका एकादशी" पर लेख।*
*4. 11 जुलाई के पंचांग मे "कर्क सक्रांति" पर लेख।*
*5. 12 जुलाई के पंचांग मे "सोमवती अमावस्या" पर लेख।*
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*जय श्री राम*
*कल का पंचांग 🌹🌹🌹*
*रविवार,9.07.2023*
*श्री संवत 2080*
*शक संवत् 1945*
*सूर्य अयन- दक्षिणायन, उत्तर गोल*
*ऋतुः- वर्षा ऋतुः।*
*मास- प्रथम शुद्ध श्रावण मास।*
*पक्ष- कृष्ण पक्ष ।*
*तिथि- सप्तमी तिथि 7:59 pm तक*
*चंद्रराशि- चंद्र मीन राशि मे।*
*नक्षत्र- उ० भाद्रपद ऩक्षत्र 7:29 pm तक*
*योग- शोभन योग 2:44 pm तक (शुभ है)*
*करण- विष्टि करण 8:50 am तक* 
*सूर्योदय- 5:30 am, सूर्यास्त 7:22 pm*
*अभिजित् नक्षत्र- 11:58 am से 12:54 pm*
*राहुकाल- 5:38 pm से 7:22 pm (शुभ कार्य वर्जित )*
*दिशाशूल- पश्चिम दिशा।*

*जुलाई शुभ दिन:-*  9 (सवेरे 9 उपरांत), 19, 11, 14 (सायं. 7 तक), 19, 21 (दोपहर 12 उपरांत), 22 (सवेरे 9 उपरांत), 23, 24, 25 (दोपहर 3 तक), 26, 28

*जुलाई अशुभ दिन:-* 12, 13, 15, 16, 17, 18, 20, 27, 29, 30, 31. 

*भद्रा:-*  8 जुलाई 9:52 pm से 9 जुलाई 8:56 am तक (भद्रा मे मुण्डन, गृहारंभ, गृहप्रवेश, विवाह, रक्षाबंधन आदि शुभ काम नही करने चाहिये , लेकिन भद्रा मे स्त्री प्रसंग, यज्ञ, तीर्थस्नान, आपरेशन, मुकद्दमा, आग लगाना, काटना, जानवर संबंधी काम किए जा सकतें है)

*पंचक प्रारंभ:- 6 जुलाई 1:39 pm से 10 जुलाई 6:59 pm तक*  पंचक नक्षत्रों  मे निम्नलिखित काम नही करने चाहिए, 1.छत बनाना या स्तंभ बनाना (lantern  or Pillar) 2.लकडी  या  तिनके तोड़ना , 3.चूल्हा लेना या बनाना, 4. दाह संस्कार करना (cremation) 5.पंलग चारपाई, खाट , चटाई  बुनना  या बनाना 6.बैठक का सोफा या गद्दियाँ बनाना । 7 लकड़ी ,तांबा ,पीतल को जमा करना ।(इन कामो के सिवा अन्य सभी शुभ काम पंचको मे किए जा सकते है।

*गण्ड मूल आरम्भ:- 9 जुलाई रेवती नक्षत्र, 7:30 pm से 11 जुलाई को अश्विनी नक्षत्र 7:05 pm तक गंडमूल रहेगें।*  गंडमूल नक्षत्रों मे जन्म लेने वाले बच्चो का मूलशांति पूजन आवश्यक है।

*सर्वार्थ सिद्ध योग:- 9 जुलाई 5:30 am से 9 जुलाई 7:30 pm तक*  (यह एक शुभयोग है, इसमे कोई व्यापारिक या कि राजकीय अनुबन्ध (कान्ट्रेक्ट) करना, परीक्षा, नौकरी अथवा चुनाव आदि के लिए आवेदन करना, क्रय-विक्रय करना, यात्रा या मुकद्दमा करना, भूमि , सवारी, वस्त्र आभूषणादि का क्रय करने के लिए शीघ्रतावश गुरु-शुक्रास्त, अधिमास एवं वेधादि का विचार सम्भव न हो, तो ये सर्वार्थसिद्धि योग ग्रहण किए जा सकते हैं।

*रवि योग:- 8 जुलाई 8:36 pm से 9 जुलाई 7:30 pm तक*  यह एक शुभ योग है, इसमे किए गये दान-पुण्य, नौकरी  या सरकारी नौकरी को join करने जैसे कायों मे शुभ परिणाम मिलते है । यह योग, इस समय चल रहे, अन्य बुरे योगो को भी प्रभावहीन करता है।
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*आगामी व्रत तथा त्यौहार:-*                  
  10 जुलाई- श्रावण सोमवार व्रत प्रारम्भ। 13 जुला०- कामिका एकादशी। 14 जुला०- प्रदोष व्रत। 15 जुला०- मासिक शिवरात्रि। 16 जुला०- कर्क संक्रांति (पुण्यकाल 11:30 am तक)। 17 जुला०- श्रावण/सोमवती अमावस्या। 18 जुलाई- श्रवण (अधिक) मलमास आरंभ। 29 जुला०- पद्मिनी एकादशी। 30 जुला०- प्रदोष व्रत।
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*विशेष:- जो व्यक्ति वाराणसी  से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु paytm या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है*
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*आपका दिन मंगलमय हो*. 💐💐💐
*आचार्य मोरध्वज शर्मा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश*
9648023364
9129998000

07 जुलाई 2023

धारावाहिक लेख- मलमास, खरमास, अधिक मास तथा क्षयमास, भाग-1


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धारावाहिक लेख- मलमास, खरमास, अधिक मास तथा क्षयमास, भाग-1

मलमास, खरमास, अधिक मास तथा क्षयमास के भेद को समझने के लिए सर्वप्रथम निम्नलिखित सूत्रो तथा गणनाओ को समझना होगा ।

सूर्य संक्रांति, तिथि-पक्ष एवं नक्षत्र के आधार पर चार प्रकार के वर्ष माने गये हैं तथा चार प्रकार के ही मास व्यवहार में प्रयुक्त किए जाते हैं।  

*सौर वर्ष एवं मास:-* सूर्य सिद्धांत के अनुसार सूर्य का क्रमशः बारह राशियों मे गोचर एक सौर वर्ष कहलाता है। सौर वर्ष का मान 365 दिन 15 घटी 31 पल 30 विपल है । इस प्रकार सूर्य के निरयण राशि प्रवेश (एक सूर्य संक्रांति से दूसरी सूर्य संक्रांति) तक की अवधि को सौर मास कहा जाता है। 

*चान्द्र वर्ष एवं मास:-* चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से चैत्र कृष्ण अमावस्या तक का काल एक चांद्र वर्ष कहलाता है, चान्द्र वर्ष का मान 354 सावन दिन है।       

इसी प्रकार एक पूर्णिमा से दूसरी पूर्णिमा या एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या तक की अवधि को शुक्ल अथवा कृष्ण चान्द्र मास कहा जाता है। इसमें तिथि क्षय या वृद्धि हो सकती है। (इस आधार पर चान्द्र मास का मान 29 दिन 22 घंटे तक का हो सकता है।)

*सावन वर्ष एवं मास:-* एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक 360 दिनों को मिलाकर एक सावन वर्ष बनता है। सावन वर्षमान 360 दिन है। इसी प्रकार एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक की 30 तिथियों को मिलाकर एक सावन मास बनता है। इस मास में किसी भी प्रकार की तिथि क्षय या वृद्धि नहीं होती है। 

*नक्षत्र वर्ष एवं मास:-* चंद्र को 27 नक्षत्रों में बारह बार गोचर करने की अवधि को नक्षत्र वर्ष कहते हैं। इसका मान लगभग 324 दिन है। इसी प्रकार चन्द्र का 27 नक्षत्रों में एक बार गोचर करना ही नाक्षत्र मास कहलाता है। इसमें इसको 27 दिन 7 घंटे, 43 मिनट, 8 सेकंड का समय लगता हैं। 

*मलमास-अधिक मास-पुरषोत्तम मास:-*
*पंचांगों में मासों की गणना चान्द्र मास से व वर्ष की गणना सौर मास से की जाती है।*

एक सौरवर्ष का मान 365 दिन 15 घटी 31 पल 30 विपल होता है । इसी प्रकार एक चान्द्र वर्ष का मान 354 दिन 22 घटी 1 पल 23 विपल होता है । 
इन दोनों वर्षमानों में परस्पर 10 दिन 53 घटी 30 पल 7 विपल का अंतर प्रति वर्ष रहता है। 

सरल भाषा में इस कारण सौर वर्ष तथा चान्द्र वर्ष मे  लगभग 10 दिन का अंतर होता है। तीन वर्षो में यह अंतर एक चान्द्र मास के बराबर हो जाता है । अतः दोनो के बीच के इसी अंतर को पाटने के लिए हर तीसरे वर्ष 1 अधिक मास की व्यवस्था की गई है । इसलिए हर तीसरे वर्ष उस सौर वर्ष में 13 चांद्र मास होते हैं।
इस प्रकार सूक्ष्म गणना के आधार पर प्रत्येक मलमास का आगमन 32.913 मास यानि लगभग 33 माह के उपरांत होता है।  *वह तेरहवां मास ही अधिक मास, अधिमास, मलिम्लुच, मल या पुरूषोत्तम मास कहलाता है।*

फाल्गुन, चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद और आश्विन मास मे ही अधिक मास होते हैं। 

कार्तिक मास क्षय व अधिक मास दोनों होता है। 

माघ मास मे क्षय या अधिक नहीं होता है। (परंतु कहीं-कहीं माघ मास को क्षय मास में भी माना गया है।)

अधिक मास का फल:- ज्येष्ठ, भाद्रपद और आश्विन मे अधिक मास आये तो यह अशुभ फल दाता होते हैं। शेष मासों के अधिक मास शुभ फल प्रदायक हैं। 


*क्षय मास या मल मास:-* 
उपरोक्त लिखित गणित के आधार पर प्रत्येक 19 और 141 वर्षों बाद क्षय चान्द्र मास की व्यवस्था की गई है। 
(जिस चान्द्र मास में स्पष्ट सूर्य की दो संक्रांति होती हो तो वह क्षय मास या मल मास कहलाता है।)

‘‘सिद्धांत शिरोमणि’’ के अनुसार क्षय मास केवल कार्तिकादि तीन मासों क्रमशः कार्तिक, मार्गशीर्ष (अग्रहायण) एवं पौष मास (भास्कराचार्य) में ही होता है, तथा उसी वर्ष दो अधिक मास भी होते है, जो कि फाल्गुन से कार्तिक के मध्य होता है। ये अधिमास से तीन मास पहले व बाद में हो सकते हैं।

*खर मास:-* 
प्रत्येक वर्ष मे सूर्य जब गुरु की धनु या मीन राशि में गोचर करते हैं, तब खरमास होता है । धनु तथा मीन दोनो राशियां उनकी मलिन राशियां मानी जाती है। वर्ष में दो बार सूर्य गुरु की राशियों के संपर्क में आते हैं। प्रथम 16 दिसंबर से 14 जनवरी तथा दूसरी बार 14 मार्च से 13 अप्रैल तक। शास्त्रों के अनुसार सूर्य का गुरु की राशि में परिभ्रमण श्रेष्ठ नहीं माना जाता है, क्योंकि गुरु की राशि में सूर्य का गोचर होना, सूर्य को कमजोर स्थिति में होना माना जाता है। 

प्रत्येक वर्ष मे दो बार खर मास होता है । 16 दिसंबर से 14 जनवरी तक सूर्य के धनु राशि में परिभ्रमण से  तथा 14 मार्च से 13 अप्रैल तक सूर्य के मीन राशि मे गोचर करने से खर मास होता है, इसी खरमास को कई बार मलमास भी कह दिया जाता है।


*मलमास:-*
*इस प्रकार "अधिक मास" हो या "क्षय मास" उन्हे ही मलमास कहा जाता है, परन्तु कई बार तथा कुछ जगहों पर "खर मास" को भी मलमास कह दिया जाता है ।*

*सरल शब्दों मे खरमास तथा मलमास में अंतर:-*
अंत मे संक्षेप में फिर से कहा जाता है कि सूर्यदेव द्वारा वृहस्पति की दो राशियो मे एक माह के गोचर काल को खरमास कहते हैं।
जबकि "अधिक मास" तथा "क्षय मास" को मलमास कहा जाता है।

*(क्रमंशः)*
*लेख के द्वितीय तथा अंतिम भाग मे कल सावन
अधिक मास 2023 पर लेख।*
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*आगामी लेख:-*
*1. 5 जुलाई के पंचांग मे "सावन मास"पर धारावाहिक लेख, तत्पश्चात 13 जुलाई के पंचांग से लेख के चौथे भाग, तथा अगले भागो का प्रसारण।*
*2. 8 जुलाई के पंचांग मे "अधिक मास" पर धारावाहिक लेख।*
*3. 10 जुलाई के पंचांग मे "कामिका एकादशी" पर लेख।*
*4. 11 जुलाई के पंचांग मे "कर्क सक्रांति" पर लेख।*
*5. 12 जुलाई के पंचांग मे "सोमवती अमावस्या" पर लेख।*
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*जय श्री राम*
*कल का पंचांग  🌹🌹🌹*
*शनिवार,8.07.2023*
*श्री संवत 2080*
*शक संवत् 1945*
*सूर्य अयन- दक्षिणायन, उत्तर गोल*
*ऋतुः- वर्षा ऋतुः।*
*मास- प्रथम शुद्ध श्रावण मास।*
*पक्ष- कृष्ण पक्ष ।*
*तिथि- षष्ठी तिथि 9:51 pm तक*
*चंद्रराशि- चंद्र कुंभ राशि मे 2:58 pm तक तदोपरान्त मीन राशि।*
*नक्षत्र- पू० भाद्रपद ऩक्षत्र 8:36 pm तक*
*योग- सौभाग्य योग 5:23 pm तक (शुभ है)*
*करण- गर करण 11 am तक* 
*सूर्योदय- 5:29 am, सूर्यास्त 7:23 pm*
*अभिजित् नक्षत्र- 11:58 am से 12:54 pm*
*राहुकाल- 8:58 am से 10:42 am (शुभ कार्य वर्जित )*
*दिशाशूल- पूर्व दिशा।*

*जुलाई शुभ दिन:-*  8, 9 (सवेरे 9 उपरांत), 19, 11, 14 (सायं. 7 तक), 19, 21 (दोपहर 12 उपरांत), 22 (सवेरे 9 उपरांत), 23, 24, 25 (दोपहर 3 तक), 26, 28

*जुलाई अशुभ दिन:-* 12, 13, 15, 16, 17, 18, 20, 27, 29, 30, 31. 

*पंचक प्रारंभ:- 6 जुलाई 1:39 pm से 10 जुलाई 6:59 pm तक*  पंचक नक्षत्रों  मे निम्नलिखित काम नही करने चाहिए, 1.छत बनाना या स्तंभ बनाना (lantern  or Pillar) 2.लकडी  या  तिनके तोड़ना , 3.चूल्हा लेना या बनाना, 4. दाह संस्कार करना (cremation) 5.पंलग चारपाई, खाट , चटाई  बुनना  या बनाना 6.बैठक का सोफा या गद्दियाँ बनाना । 7 लकड़ी ,तांबा ,पीतल को जमा करना ।(इन कामो के सिवा अन्य सभी शुभ काम पंचको मे किए जा सकते है।
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*आगामी व्रत तथा त्यौहार:-*                  
  10 जुलाई- श्रावण सोमवार व्रत प्रारम्भ। 13 जुला०- कामिका एकादशी। 14 जुला०- प्रदोष व्रत। 15 जुला०- मासिक शिवरात्रि। 16 जुला०- कर्क संक्रांति (पुण्यकाल 11:30 am तक)। 17 जुला०- श्रावण/सोमवती अमावस्या। 18 जुलाई- श्रवण (अधिक) मलमास आरंभ। 29 जुला०- पद्मिनी एकादशी। 30 जुला०- प्रदोष व्रत।
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*विशेष:- जो व्यक्ति वाराणसी  से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु paytm या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है*
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*आपका दिन मंगलमय हो*. 💐💐💐
*आचार्य मोरध्वज शर्मा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश*
9648023364
9129998000

02 जनवरी 2023

पौष (पुत्रदा) एकादशी विशेष ।।


पौष (पुत्रदा) एकादशी विशेष
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पौष माह में शुक्ल पक्ष एकादशी को पुत्रदा एकदशी, के नाम से जाना जाता है। यह तिथि अत्यंत पवित्र तिथि मानी जाती है। वर्ष में दो एकादशी को पुत्रदा एकादशी नाम से जाना जाता है। यह श्रावण और पौष माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी हैं।

पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को (पुत्रदा) एकादशी के रुप में मनाते हैं। इस वर्ष पौष पुत्रदा एकादशी का पर्व आज 02 जनवरी 2023 सोमवार को मनाया जाना है। धर्म ग्रंथों के अनुसर इस व्रत की कथा सुनने मात्र से वाजपेयी यज्ञ का फल प्राप्त होता है। पवित्रा एकादशी का महत्व को भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा था।

श्रीभगवान के कथन इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है जो कि विभिन्न सांसारिक सुखों में बाधक होते है। अनुसार यदि संतान सुख की अभिलाषा रखने वालों को पुत्रदा एकादशी का व्रत अवश्य रखना चाहिए। कहा जाता है कि यदि निसंतान लोग यह व्रत विधि-विधान एवं श्रद्धापूर्वक करते हैं तो संतान की प्राप्ति होती है। अत: संतान सुख की इच्छा रखने वालों को इस व्रत का पालन करने से संतान की प्राप्ति होती है। पवित्रा एकादशी का श्रवण एवं पठन करने से मनुष्य के समस्त पापों का नाश होता है। वंश वृद्धि होती है तथा समस्त सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है।

एकादशी तिथि मुहूर्त
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एकादशी तिथि प्रारम्भ -  01 जनवरी सायं 07:10 बजे से।

एकादशी तिथि समाप्त -  02 जनवरी रात्रि 08:21 बजे तक।

03 जनवरी पारण (व्रत तोड़ने का) समय प्रातः 07:11 से 09:15

पवित्रा एकादशी पूजा
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इस एकादशी का व्रत रहने वाले लोगों को दशमी से नियमों का पालन शुरू कर देना चाहिए तभी व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है। इसके लिए आपको दशमी के दिन सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना है। दशमी के दिन प्याज लहसुन न खाएं। 

1. रात्रि में शहद, चना तथा मसूर की दाल न खाएं।
2. दशमी के दिन साधारण भोजन करें। प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा आदि भूलकर भी न लें।
3. जुआ आदि व्यसनों से दूर रहें।
4. ब्रह्मचर्य का पालन करें।
5. दिन के समय में सोएं नहीं।
6. पान नहीं खाना चाहिए।
7. झूठ न बोलें और दूसरों की निंदा न करें।

एकादशी के  दिन भगवान नारायण की पूजा की जाती है. सुबह स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने के पश्चात श्रीहरि का ध्यान करना चाहिए. सबसे पहले धूप-दीप आदि से भगवान नारायण की अर्चना की जाती है, उसके बाद  फल-फूल, नारियल, पान, सुपारी, लौंग, बेर, आंवला आदि व्यक्ति अपनी सामर्थ्य अनुसार भगवान नारायण को अर्पित करते हैं।

पूरे दिन निराहार रहकर संध्या समय में कथा आदि सुनने के पश्चात फलाहार किया जाता है इस दिन दीप दान करने का महत्व है. इस दिन भगवन विष्णु का ध्यान एवं व्रत करना चाहिए। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ एवं एकादशी कथा का श्रवण एवं पठन करना चाहिए। ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।

पवित्रा एकादशी व्रत की कथा
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प्राचीन काल में एक नगर में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे। राज के कोई संतान नहीं थी इस बात को लेकर वह सदैव चिन्ताग्रस्त रहते थे। एक दिन राजा सुकेतुमान वन की ओर चल दिये। वन में चलते हुए वह अत्यन्त घने वन में चले गए। वन में चलते-चलते राजा को बहुत प्यास लगने लगी। वह जल की तलाश में वन में और अंदर की ओर चले गए जहाँ उन्हें एक सरोवर दिखाई दिया। राजा ने देखा कि सरोवर के पास ऋषियों के आश्रम भी बने हुए है और बहुत से मुनि वेदपाठ कर रहे हैं।

राजा ने सभी मुनियों को बारी-बारी से सादर प्रणाम किया. ऋषियों ने राजा को आशीर्वाद दिया, राजा ने ऋषियों से उनके एकत्रित होने का कारण पूछा. मुनि ने कहा कि वह विश्वेदेव हैं और सरोवर के निकट स्नान के लिए आये हैं। आज से पाँचवें दिन माघ मास का स्नान आरम्भ हो जाएगा और आज पुत्रदा एकादशी है. जो मनुष्य इस दिन व्रत करता है उन्हें पुत्र की प्राप्ति होती है।

राजा ने यह सुनते ही कहा हे विश्वेदेवगण यदि आप सभी मुझ पर प्रसन्न हैं तब आप मुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति का आशीर्वाद दें. मुनि बोले हे राजन आज पुत्रदा एकादशी का व्रत है। आप आज इस व्रत को रखें और भगवान नारायण की आराधना करें। राजा ने मुनि के कहे अनुसार विधिवत तरीके से पवित्र एकादशी का व्रत रखा और अनुष्ठान किया. व्रत के शुभ फलों द्वारा राजा को संतान की प्राप्ति हुई। इस प्रकार जो व्यक्ति इस व्रत को रखते हैं उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। संतान होने में यदि बाधाएं आती हैं तो इस व्रत के रखने से वह दूर हो जाती हैं। जो मनुष्य इस व्रत के महात्म्य को सुनता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

अन्य प्रचलित कथा
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युधिष्ठिर ने पूछा : मधुसूदन ! श्रावण के शुक्लपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है ? कृपया मेरे सामने उसका वर्णन कीजिये ।
 
भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! प्राचीन काल की बात है । द्वापर युग के प्रारम्भ का समय था । माहिष्मतीपुर में राजा महीजित अपने राज्य का पालन करते थे किन्तु उन्हें कोई पुत्र नहीं था, इसलिए वह राज्य उन्हें सुखदायक नहीं प्रतीत होता था । अपनी अवस्था अधिक देख राजा को बड़ी चिन्ता हुई । उन्होंने प्रजावर्ग में बैठकर इस प्रकार कहा: ‘प्रजाजनो ! इस जन्म में मुझसे कोई पातक नहीं हुआ है । मैंने अपने खजाने में अन्याय से कमाया हुआ धन नहीं जमा किया है । ब्राह्मणों और देवताओं का धन भी मैंने कभी नहीं लिया है । पुत्रवत् प्रजा का पालन किया है । धर्म से पृथ्वी पर अधिकार जमाया है । दुष्टों को, चाहे वे बन्धु और पुत्रों के समान ही क्यों न रहे हों, दण्ड दिया है । शिष्ट पुरुषों का सदा सम्मान किया है और किसीको द्वेष का पात्र नहीं समझा है । फिर क्या कारण है, जो मेरे घर में आज तक पुत्र उत्पन्न नहीं हुआ? आप लोग इसका विचार करें ।’
 
राजा के ये वचन सुनकर प्रजा और पुरोहितों के साथ ब्राह्मणों ने उनके हित का विचार करके गहन वन में प्रवेश किया । राजा का कल्याण चाहनेवाले वे सभी लोग इधर उधर घूमकर ॠषिसेवित आश्रमों की तलाश करने लगे । इतने में उन्हें मुनिश्रेष्ठ लोमशजी के दर्शन हुए ।
 
लोमशजी धर्म के त्तत्त्वज्ञ, सम्पूर्ण शास्त्रों के विशिष्ट विद्वान, दीर्घायु और महात्मा हैं । उनका शरीर लोम से भरा हुआ है । वे ब्रह्माजी के समान तेजस्वी हैं । एक एक कल्प बीतने पर उनके शरीर का एक एक लोम विशीर्ण होता है, टूटकर गिरता है, इसीलिए उनका नाम लोमश हुआ है । वे महामुनि तीनों कालों की बातें जानते हैं ।
 
उन्हें देखकर सब लोगों को बड़ा हर्ष हुआ । लोगों को अपने निकट आया देख लोमशजी ने पूछा : ‘तुम सब लोग किसलिए यहाँ आये हो? अपने आगमन का कारण बताओ । तुम लोगों के लिए जो हितकर कार्य होगा, उसे मैं अवश्य करुँगा ।’
 
प्रजाजनों ने कहा : ब्रह्मन् ! इस समय महीजित नामवाले जो राजा हैं, उन्हें कोई पुत्र नहीं है । हम लोग उन्हींकी प्रजा हैं, जिनका उन्होंने पुत्र की भाँति पालन किया है । उन्हें पुत्रहीन देख, उनके दु:ख से दु:खित हो हम तपस्या करने का दृढ़ निश्चय करके यहाँ आये है । द्विजोत्तम ! राजा के भाग्य से इस समय हमें आपका दर्शन मिल गया है । महापुरुषों के दर्शन से ही मनुष्यों के सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं । मुने ! अब हमें उस उपाय का उपदेश कीजिये, जिससे राजा को पुत्र की प्राप्ति हो ।
 
उनकी बात सुनकर महर्षि लोमश दो घड़ी के लिए ध्यानमग्न हो गये । तत्पश्चात् राजा के प्राचीन जन्म का वृत्तान्त जानकर उन्होंने कहा : ‘प्रजावृन्द ! सुनो । राजा महीजित पूर्वजन्म में मनुष्यों को चूसनेवाला धनहीन वैश्य था । वह वैश्य गाँव-गाँव घूमकर व्यापार किया करता था । एक दिन ज्येष्ठ के शुक्लपक्ष में दशमी तिथि को, जब दोपहर का सूर्य तप रहा था, वह किसी गाँव की सीमा में एक जलाशय पर पहुँचा । पानी से भरी हुई बावली देखकर वैश्य ने वहाँ जल पीने का विचार किया । इतने में वहाँ अपने बछड़े के साथ एक गौ भी आ पहुँची । वह प्यास से व्याकुल और ताप से पीड़ित थी, अत: बावली में जाकर जल पीने लगी । वैश्य ने पानी पीती हुई गाय को हाँककर दूर हटा दिया और स्वयं पानी पीने लगा । उसी पापकर्म के कारण राजा इस समय पुत्रहीन हुए हैं । किसी जन्म के पुण्य से इन्हें निष्कण्टक राज्य की प्राप्ति हुई है ।’
 
प्रजाजनों ने कहा : मुने ! पुराणों में उल्लेख है कि प्रायश्चितरुप पुण्य से पाप नष्ट होते हैं, अत: ऐसे पुण्यकर्म का उपदेश कीजिये, जिससे उस पाप का नाश हो जाय ।
 
लोमशजी बोले : प्रजाजनो ! श्रावण मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी होती है, वह ‘पुत्रदा’ के नाम से विख्यात है । वह मनोवांछित फल प्रदान करनेवाली है । तुम लोग उसीका व्रत करो ।
 
यह सुनकर प्रजाजनों ने मुनि को नमस्कार किया और नगर में आकर विधिपूर्वक ‘पुत्रदा एकादशी’ के व्रत का अनुष्ठान किया । उन्होंने विधिपूर्वक जागरण भी किया और उसका निर्मल पुण्य राजा को अर्पण कर दिया । तत्पश्चात् रानी ने गर्भधारण किया और प्रसव का समय आने पर बलवान पुत्र को जन्म दिया ।
 
इसका माहात्म्य सुनकर मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है तथा इहलोक में सुख पाकर परलोक में स्वर्गीय गति को प्राप्त होता है ।

श्री भगवान की आरती
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ॐ जय जगदीश हरे

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
 
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।
स्वामी दुःख विनसे मन का।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥
ॐ जय जगदीश हरे।
 
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी।
स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥
ॐ जय जगदीश हरे।
 
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।
स्वामी तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥
ॐ जय जगदीश हरे।
 
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।
स्वामी तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥
ॐ जय जगदीश हरे।
 
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति॥
ॐ जय जगदीश हरे।
 
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
स्वामी तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठा‌ओ, द्वार पड़ा तेरे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
 
विषय-विकार मिटा‌ओ, पाप हरो देवा।
स्वमी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ा‌ओ, सन्तन की सेवा॥
ॐ जय जगदीश हरे।

तत्पश्चात निसंतान दमपत्ति नीचे दिए कवच का यथा सामर्थ्य अधिक से अधिक पाठ करने से संतान बाधा शांत होती है।
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॥ वंश वृद्धिकरं दुर्गाकवचम् ॥
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पुत्रदा एकादशी के दिन वंश वृद्धिकरं दुर्गाकवचम्  का 11 या 21 बार पाठ करने से वंश में वृद्धि होती है माता दुर्गा की कृपा से कुटुम्ब में भक्त रूपी संतान का जन्म होता है।

भगवन् देव देवेशकृपया त्वं जगत् प्रभो ।
वंशाख्य कवचं ब्रूहि मह्यं शिष्याय तेऽनघ ।
यस्य प्रभावाद्देवेश वंश वृद्धिर्हिजायते ॥ १॥

॥ सूर्य ऊवाच ॥
शृणु पुत्र प्रवक्ष्यामि वंशाख्यं कवचं शुभम् ।
सन्तानवृद्धिर्यत्पठनाद्गर्भरक्षा सदा नृणाम् ॥ २॥

वन्ध्यापि लभते पुत्रं काक वन्ध्या सुतैर्युता ।
मृत वत्सा सुपुत्रस्यात्स्रवद्गर्भ स्थिरप्रजा ॥ ३॥

अपुष्पा पुष्पिणी यस्य धारणाश्च सुखप्रसूः ।
कन्या प्रजा पुत्रिणी स्यादेतत् स्तोत्र प्रभावतः ॥ ४॥

भूतप्रेतादिजा बाधा या बाधा कुलदोषजा ।
ग्रह बाधा देव बाधा बाधा शत्रु कृता च या ॥ ५॥

भस्मी भवन्ति सर्वास्ताः कवचस्य प्रभावतः ।
सर्वे रोगा विनश्यन्ति सर्वे बालग्रहाश्च ये ॥ ६॥

॥ अथ दुर्गा कवचम् ॥
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ॐ पुर्वं रक्षतु वाराही चाग्नेय्यां अम्बिका स्वयम् ।
दक्षिणे चण्डिका रक्षेन्नैऋत्यां शववाहिनी ॥ १॥

वाराही पश्चिमे रक्षेद्वायव्याम् च महेश्वरी ।
उत्तरे वैष्णवीं रक्षेत् ईशाने सिंह वाहिनी ॥ २॥

ऊर्ध्वां तु शारदा रक्षेदधो रक्षतु पार्वती ।
शाकंभरी शिरो रक्षेन्मुखं रक्षतु भैरवी ॥ ३॥

कन्ठं रक्षतु चामुण्डा हृदयं रक्षतात् शिवा ।
ईशानी च भुजौ रक्षेत् कुक्षिं नाभिं च कालिका ॥ ४ ॥

अपर्णा ह्युदरं रक्षेत्कटिं बस्तिं शिवप्रिया ।
ऊरू रक्षतु कौमारी जया जानुद्वयं तथा ॥ ५॥

गुल्फौ पादौ सदा रक्षेद्ब्रह्माणी परमेश्वरी ।
सर्वाङ्गानि सदा रक्षेद्दुर्गा दुर्गार्तिनाशनी ॥ ६॥

नमो देव्यै महादेव्यै दुर्गायै सततं नमः ।
पुत्रसौख्यं देहि देहि गर्भरक्षां कुरुष्व नः ॥ ७॥

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं श्रीं ऐं ऐं ऐं
महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती रुपायै
नवकोटिमूर्त्यै दुर्गायै नमः ॥ ८॥

ह्रीं ह्रीं ह्रीं दुर्गार्तिनाशिनी संतानसौख्यम् देहि देहि
बन्ध्यत्वं मृतवत्सत्वं च हर हर गर्भरक्षां कुरु कुरु
सकलां बाधां कुलजां बाह्यजां कृतामकृतां च नाशय
नाशय सर्वगात्राणि रक्ष रक्ष गर्भं पोषय पोषय
सर्वोपद्रवं शोषय शोषय स्वाहा ॥ ९॥
॥ फल श्रुतिः ॥

अनेन कवचेनाङ्गं सप्तवाराभिमन्त्रितम् ।
ऋतुस्नात जलं पीत्वा भवेत् गर्भवती ध्रुवम् ॥ १॥

गर्भ पात भये पीत्वा दृढगर्भा प्रजायते ।
अनेन कवचेनाथ मार्जिताया निशागमे ॥ २॥

सर्वबाधाविनिर्मुक्ता गर्भिणी स्यान्न संशयः ।
अनेन कवचेनेह ग्रन्थितं रक्तदोरकम् ॥ ३॥
कटि देशे धारयन्ती सुपुत्रसुख भागिनी ।
असूत पुत्रमिन्द्राणां जयन्तं यत्प्रभावतः ॥ ४॥

गुरूपदिष्टं वंशाख्यम् कवचं तदिदं सुखे ।
गुह्याद्गुह्यतरं चेदं न प्रकाश्यं हि सर्वतः ॥ ५॥

धारणात् पठनादस्य वंशच्छेदो न जायते ।
बाला विनश्यंति पतन्ति गर्भास्तत्राबलाः कष्टयुताश्च वन्ध्याः ॥ ६ ॥

बाल ग्रहैर्भूतगणैश्च रोगैर्न यत्र धर्माचरणं गृहे स्यात् ॥

॥ इति श्री ज्ञान भास्करे वंश वृद्धिकरं वंश कवचं
सम्पूर्णम् ॥
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कामदा एकादशी व्रत 19-04-2024

☀️ *लेख:- कामदा एकादशी, भाग-1 (19.04.2024)* *एकादशी तिथि आरंभ:- 18 अप्रैल 5:31 pm* *एकादशी तिथि समाप्त:- 19 अप्रैल 8:04 pm* *काम...