12 जुलाई 2023

कामिका एकादशी, 13.07.2023


लेख:-कामिका एकादशी, 13.07.2023
एकादशी प्रारम्भ:- 12.07.2023, 5:59 pm
एकादशी समाप्त:- 13.07.2023, 6:24 pm
एकादशी पारण मुहूर्त:- 14.07.2023, 5:32 am से 08:18 am तक
अवधि:- 2 घण्टे 45 मिनट
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय:- 7:17 pm
हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में क्रमशः एक-एक एकादशी तिथि आती हुई, एक वर्ष मे कुल चौबीस एकादशी आती हैं।
इसी प्रकार श्रावण कृष्णपक्ष मे आने वाली एकादशी को कामिका एकादशी भी कहा जाता हैं। अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार कामिका एकादशी जुलाई या अगस्त के महीने में आती है।
उदया तिथि के अनुसार, साल 2023 की कामिका एकादशी का व्रत 13 जुलाई दिन वृहस्पतिवार को रखा जाएगा।
कामिका एकादशी के दिन भगवान विष्णु कि विधि पूर्वक पूजा की जाती है। कामिका एकादशी के उपवास में शंख, चक्र, गदाधारी भगवान विष्णु के दिव्य रूप का पूजन होता है। ऐसा माना जाता है कि जो मनुष्य इस एकादशी को धूप, दीप, नैवेद्य आदि से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
*कामिका एकादशी महत्व:-*
कामिका एकादशी पर भगवान विष्णु का पूजन करना अत्यंत लाभकारी माना गया है। इस व्रत के प्रभाव से सबके बिगड़े काम बनने लगते हैं। इस दिन की गई पूजा-पाठ, व्रत तथा अन्य पुण्य कर्म के प्रभाव से भक्तों के कष्टों के साथ-२ उनके पूर्वजो के कष्टों का भी निवारण होता हैं। कामिका एकादशी के अवसर पर तीर्थ स्थानों पर नदी, कुंड, सरोवर में स्नान करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है।
कामिका एकादशी व्रत की महत्ता के संबंध मे कहते हुए ब्रह्माजी ने नारद को बताया कि, इस एकादशी की कथा सुनने मात्र से ही वाजपेय यज्ञ के बराबर फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि कामिका एकादशी व्रत करने से भक्तों की सभी मनोकामनायें पूरी होती है और उसने समस्त पापों का नाश हो जाता है, पूर्वजन्म की बाधाएं, जन्मकुण्डली मे दर्शाये गए अनिष्ट योग तथा दोष दूर हो जाते हैं। इस एकादशी के फल लोक और परलोक दोनों में उत्तम कहे गये हैं। क्योंकि इस व्रत को करने से हजार गौ दान के समान पुण्य प्राप्त होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
*कामिका एकादशी व्रत पूजा विधि:-*
कामिका एकादशी के उपवास की शुरुआत दशमी तिथि की रात्रि से ही हो जाती है। व्रती को दशमी तिथि अर्थात व्रत धारण करने की पूर्व रात्रि से ही तामसिक भोजन का त्याग कर नमक रहित सादा भोजन ग्रहण करना चाहिये। व्रती को जौं, गेहूं और मूंग की दाल से बना भोजन भी ग्रहण नहीं करना चाहिए।
उसी दिन से ही ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है, संभव हो तो जमीन पर ही सोएं।
एकादशी के दिन प्रात:काल उठकर नित्यकर्म से निर्वत होकर स्नानादि के पश्चात व्रत का संकल्प लें।
कामिका एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु के उपेन्द्र स्वरूप की पूजा-आराधना की जाती है।
लकडी की चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर, पूजा मे पीले फूल और यथा संभव पीले रंग की ही पूजन सामग्री का प्रयोग करते हुए भगवान विष्णु की मूर्ति अथवा सुन्दर चित्र स्थापित करे ।
उसी वेदी पर नारियल सहित कुंभ स्थापना करनी चाहिए।
तत्पश्चात भगवान उपेन्द्र की मूर्ति अथवा चित्र को स्नानादि करवाकर पुष्प, धूप, दीप इत्यादि से पंचोपचार अथवा अपनी सामर्थ्यनुसार षोडशोपचार पूजन करे।
कामिका एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा मे तुलसी पत्र का उपयोग अवश्य ही करना चाहिए, भगवान विष्णु की पूजा मे तुलसी पत्र का प्रयोग अत्यंत शुभ माना गया है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन जो मनुष्य तुलसीजी को भक्तिपूर्वक भगवान के श्रीचरण कमलों में अर्पित करता है, उसे मुक्ति मिलती है।
पूजा के दौरान आसन पर बैठकर ।।ऊं नमो भगवते वासुदेवाय।। मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करना चाहिए तदोपरांत व्रत कथा का पठन अथवा श्रवण करना अत्यंत आवश्यक है।
तत्पश्चात भगवान को विनीत भाव से आदर सहित भोग लगाकर भावपूर्वक भगवान जी की आरती उतारें।
कामिका एकादशी का पूजन भक्त अथवा व्रती स्वंय भी कर सकते हैं, तथा किसी विद्वान ब्राह्मण से भी करवा सकते हैं।
कामिका एकादशी के दिन तुलसा जी की पूजा अवश्य करनी चाहिए, ऐसा माना जाता है कि
तुलसीजी के दर्शन मात्र से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और शरीर के स्पर्श मात्र से मनुष्य पवित्र हो जाता है। तुलसीजी को जल से स्नान कराने से मनुष्य की सभी यम यातनाएं नष्ट हो जाती हैं।
तत्पश्चात अपनी सामर्थ्यनुसार दान कर्म करना भी बहुत कल्याणकारी रहता है।
व्रती को एकादशी की रात्रि में भगवान विष्णु जी (उपेन्द्र) का ध्यान करते हुए रात्रि जागरण भी अवश्य करना चाहिये। इस कामिका एकादशी की रात्रि को जो मनुष्य जागरण करते हैं और दीप-दान करते हैं, उनके पुण्यों को लिखने में चित्रगुप्त भी असमर्थ हैं। एकादशी के दिन तथा रात्रि मे जो मनुष्य भगवान के सामने दीपक जलाते हैं, उनके पितर स्वर्गलोक में अमृत का पान करते हैं।
*कामिका एकादशी व्रत का पारण:-*
एकादशी के व्रत को खोलने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करने से दोष लगता है, अतः एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि के भीतर ही करना अनिवार्य होता है।
एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्याह्न के बाद पारण करना चाहिए।
कामिका एकादशी व्रत का पारण 13 जुलाई को प्रातः 5:32 am से 08:18 am के मध्य में अवश्य ही करना चाहिए। निश्चित समय मे ब्राह्मणों को भोजन करा कर दक्षिणा देंकर ही व्रती को स्वयं भोजन ग्रहण करने का विधान है। इस प्रकार नियम पूर्वक पारण करने से भक्तों को अक्षुण्ण पुण्य मिलता है।
*कामिका एकादशी व्रत कथा:-*
धर्मराज युधिष्ठिर ने पूछा हे भगवन, श्रावण मास की कृष्ण एकादशी का क्या नाम है, कृपया उसका वर्णन कीजिये।
श्रीकृष्ण भगवान कहने लगे कि हे युधिष्ठिर! इस एकादशी की कथा एक समय स्वयं ब्रह्माजी ने देवर्षि नारद से कही थी, वही मैं तुमसे कहता हूँ। नारदजी ने ब्रह्माजी से पूछा था कि हे पितामह! श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनने की मेरी इच्छा है, उसका क्या नाम है? क्या विधि है और उसका माहात्म्य क्या है, सो कृपा करके कहिए।
नारदजी के ये वचन सुनकर ब्रह्माजी ने कहा- हे नारद! लोकों के हित के लिए तुमने बहुत सुंदर प्रश्न किया है। श्रावण मास की कृष्ण एकादशी का नाम कामिका है। उसके सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। इस दिन शंख, चक्र, गदाधारी विष्णु भगवान का पूजन होता है, जिनके नाम श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव, मधुसूदन हैं। उनकी पूजा करने से जो फल मिलता है सो सुनो।
जो फल गंगा, काशी, नैमिषारण्य और पुष्कर स्नान से मिलता है, वह विष्णु भगवान के पूजन से मिलता है। जो फल सूर्य व चंद्र ग्रहण पर कुरुक्षेत्र और काशी में स्नान करने से, समुद्र, वन सहित पृथ्वी दान करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोदावरी और गंडकी नदी में स्नान से भी प्राप्त नहीं होता वह भगवान विष्णु के पूजन से मिलता है।
जो मनुष्य श्रावण में भगवान का पूजन करते हैं, उनसे देवता, गंधर्व और सूर्य आदि सब पूजित
हो जाते हैं। अतः पापों से डरने वाले मनुष्यों को कामिका एकादशी का व्रत और भगवान का पूजन अवश्य करना चाहिए। पापरूपी कीचड़ में फँसे हुए और संसार रूपी समुद्र में डूबे मनुष्यों के लिए इस एकादशी का व्रत और भगवान का पूजन अत्यंत आवश्यक है। इससे बढ़कर पापों के नाशों का कोई उपाय नहीं है।
हे नारद! स्वयं भगवान ने कहा है कि कामिका व्रत से जीव कुयोनि को प्राप्त नहीं होता। जो मनुष्य एकादशी के दिन भक्तिपूर्वक तुलसी दल भगवान विष्णु को अर्पण करते हैं, वे इस संसार के समस्त पापों से दूर रहते हैं। भगवान रत्न, मोती, मणि तथा आभूषण आदि से इतने प्रसन्न नहीं होते जितने तुलसी दल से ।
तुलसी दल पूजन का फल चार भार चाँदी और एक भार स्वर्ण के दान के बराबर होता है। हे नारद! मैं स्वयं भगवान की अतिप्रिय तुलसी को सदैव नमस्कार करता हूँ। तुलसी के पौधे को सींचने से मनुष्य की सब यातनाएँ नष्ट हो जाती हैं। दर्शन मात्र से सब पाप नष्ट हो जाते हैं और स्पर्श से पवित्र हो जाता है। मनुष्य कामिका एकादशी की रात्रि को जो लोग भगवान के मंदिर में घी या तेल का दीपक जलाते हैं। उनके पितर स्वर्गलोक में अमृतपान करते हैं तथा वे सौ करोड़ दीपकों से प्रकाशित होकर सूर्यलोक जाते हैं।
ब्रह्माजी कहते हैं कि हे नारद! ब्रह्महत्या तथा भ्रूण हत्या आदि पापों को नष्ट करने वाली इस कामिका एकादशी का व्रत मनुष्य को यत्न के साथ करना चाहिए। कामिका एकादशी के व्रत का माहात्म्य श्रद्धा से सुनने और पढ़ने वाला मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को जाता है।
*(समाप्त)*
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*आगामी लेख:-*
*1. 5 जुलाई के पंचांग मे "सावन मास"पर धारावाहिक लेख, तत्पश्चात 15 जुलाई के पंचांग से लेख के चौथे भाग, तथा अगले भागो का प्रसारण।*
*2. 10 जुलाई के पंचांग मे "कामिका एकादशी" पर लेख।*
*3. 11 जुलाई के पंचांग मे "कर्क सक्रांति" पर लेख।*
*4. 12 जुलाई के पंचांग मे "सोमवती अमावस्या" पर लेख।*
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☀️
*जय श्री राम*
*कल का पंचांग 🌹🌹🌹*
*सोमवार,10.07.2023*
*श्री संवत 2080*
*शक संवत् 1945*
*सूर्य अयन- दक्षिणायन, उत्तर गोल*
*ऋतुः- वर्षा ऋतुः।*
*मास- प्रथम शुद्ध श्रावण मास।*
*पक्ष- कृष्ण पक्ष ।*
*तिथि- अष्टमी तिथि 6:43 pm तक*
*चंद्रराशि- चंद्र मीन राशि मे 6:59 pm तक तदोपरान्त मेष राशि।*
*नक्षत्र- रेवती ऩक्षत्र 6:59 pm तक*
*योग- अतिगण्ड योग 12:34 pm तक (अशुभ है)*
*करण- बालव करण 7:17 am तक*
*सूर्योदय- 5:30 am, सूर्यास्त 7:22 pm*
*अभिजित् नक्षत्र- 11:59 am से 12:54 pm*
*राहुकाल- 7:14 am से 8:58 am (शुभ कार्य वर्जित )*
*दिशाशूल- पूर्व दिशा।*
*जुलाई शुभ दिन:-* 19, 11, 14 (सायं. 7 तक), 19, 21 (दोपहर 12 उपरांत), 22 (सवेरे 9 उपरांत), 23, 24, 25 (दोपहर 3 तक), 26, 28
*जुलाई अशुभ दिन:-* 12, 13, 15, 16, 17, 18, 20, 27, 29, 30, 31.
*पंचक प्रारंभ:- 6 जुलाई 1:39 pm से 10 जुलाई 6:59 pm तक* पंचक नक्षत्रों मे निम्नलिखित काम नही करने चाहिए, 1.छत बनाना या स्तंभ बनाना (lantern or Pillar) 2.लकडी या तिनके तोड़ना , 3.चूल्हा लेना या बनाना, 4. दाह संस्कार करना (cremation) 5.पंलग चारपाई, खाट , चटाई बुनना या बनाना 6.बैठक का सोफा या गद्दियाँ बनाना । 7 लकड़ी ,तांबा ,पीतल को जमा करना ।(इन कामो के सिवा अन्य सभी शुभ काम पंचको मे किए जा सकते है।
*गण्ड मूल आरम्भ:- 9 जुलाई रेवती नक्षत्र, 7:30 pm से 11 जुलाई को अश्विनी नक्षत्र 7:05 pm तक गंडमूल रहेगें।* गंडमूल नक्षत्रों मे जन्म लेने वाले बच्चो का मूलशांति पूजन आवश्यक है।
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*आगामी व्रत तथा त्यौहार:-*
10 जुलाई- श्रावण सोमवार व्रत प्रारम्भ। 13 जुला०- कामिका एकादशी। 14 जुला०- प्रदोष व्रत। 15 जुला०- मासिक शिवरात्रि। 16 जुला०- कर्क संक्रांति (पुण्यकाल 11:30 am तक)। 17 जुला०- श्रावण/सोमवती अमावस्या। 18 जुलाई- श्रवण (अधिक) मलमास आरंभ। 29 जुला०- पद्मिनी एकादशी। 30 जुला०- प्रदोष व्रत।
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*विशेष:- जो व्यक्ति वाराणसी से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु paytm या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है*
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*आपका दिन मंगलमय हो*. 💐💐💐
*आचार्य मोरध्वज शर्मा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश*
9648023364
9129998000


 

08 जुलाई 2023

धारावाहिक लेख- मलमास, खरमास, अधिक मास तथा क्षयमास, भाग-2, अंतिम


धारावाहिक लेख- मलमास, खरमास, अधिक मास तथा क्षयमास, भाग-2, अंतिम
(18 जुलाई से 16 अगस्त 2023)

वर्ष 2023 में चान्द्र श्रावण मास 'अधिक मास' अर्थात (मल, पुरुषोत्तम) मास होगा। इस अधि-मास की समयावधि 18 जुलाई, मंगलवार से 16 अगस्त 2023, बुधवार तक रहेगी। 

*अधिक मास:-*  जिस महीने में सूर्य संक्रान्ति न हो, वह महीना प्राप्त अधिमास होता है और जिसमें दो संक्रान्ति हों, वह क्षय-मास होता है। 

सौर वर्ष और चान्द्र-वर्ष में सांमजस्य स्थापित करने के लिए हर तीसरे फल वर्ष पंचांगों में एक चान्द्र मास की वृद्धि कर दी जाती है।

सरल शब्दो में इसी को 'अधिक मास' के अतिरिक्त 'अधि-मास', 'मलमास' तथा आध्यात्मिक विषयों में अत्यन्त पुण्यदायी होने के कारण 'पुरुषोत्तम मास' आदि नामों से भी पुकारा जाता है। 

(ज्योतिष गणना के अनुसार एक सौरवर्ष का मान 365 दिन, 6 घण्टे एवं 11 सैकिण्ड के लगभग है, जबकि चान्द्र वर्ष 354 दिन, एवं लगभग 9 घण्टे का होता है। दोनों वर्षमानों में प्रतिवर्ष 10 दिन, 21 घण्टे 9 मिन्ट का अन्तर अर्थात् लगभग 11 दिन का अन्तर पड़ जाता है। इस अन्तर में सामञ्जस्य स्थापित करने के लिए 32 महीने, 16 दिन, 4 घड़ी, बीत जाने पर अधिकमास का निर्णय किया जाता।)

संक्षेप मे एक अधिक मास से दूसरा अधिक (मल) मास 28 महीने से लेकर 36 मास के अंदर ही पुनः आ सकता है। सरल शब्दो मे हर तीसरे वर्ष में अधिक मास अर्थात् पुरुषोत्तम मास पुनः हो सकता है।

*पुरुषोत्तम मास का माहात्म्य*
पौराणिक कथाओं अनुसार इस महीने कोई भी संक्रांति न होने के कारण यह मास अनाथ निंदनीय, संक्रांतिहीन एवं त्याज्य हुआ, जिसके कारण कोई भी इस मास का स्वामी होना नही चाहता था, तब इस मास ने भगवान विष्णु से अपने उद्धार के संबंध में प्रार्थना कि जिस पर भगवान विष्णु जी ने इस मास का स्वामित्व स्वयं ही ले लिया तथा इसे अपना श्रेष्ठ नाम "पुरूषोत्तम" प्रदान किया, साथ ही यह आशीर्वाद भी दिया कि जो मनुष्य इस माह में भागवत कथा श्रवण, मनन, भगवान शंकर का पूजन, धार्मिक अनुष्ठान, दानादि करेगा वह अक्षय फल को प्राप्त करने वाला होंगा। इस माह में किया गया दान-पुण्य भी अक्षय फल देने वाला रहेगा। यह मास इतना पावन है कि इसके माहात्म्य की कथा स्वयं भगवान विष्णु ने देवर्षि नारद को अपने श्रीमुख से सुनाई थी। 

अधिक मास के आने पर जो व्यक्ति श्रद्धा एवं भक्तिपूर्वक व्रत, उपवास, श्रीविष्णु पूजन, पुरुषोत्तम माहात्म्य का पाठ, दान आदि शुभ कर्म करता है, वह मनोवांछित फल प्राप्त कर लेता है और मरणोपरान्त गोलोक पहुँचकर भगवान् श्रीकृष्ण का सान्निध्य प्राप्त करता है। इस मास गीतापाठ, श्रीराम-कृष्ण के मन्त्रों, पंचाक्षर शिवमन्त्र, अष्टाक्षर नारायणमन्त्र, द्वादशाक्षर वासुदेव मन्त्र आदि के जप का लाखगुना, करोड़गुना या अनन्त फल होता है।

मलमास के 33 ही देवता होते हैं जो कि निम्न प्रकार माने जाते हैं, (11 रुद्र, 12 आदित्य, 8 वास, 1 प्रजापति, 1 वास्तुकार) = 33

*श्रावण (अधिक) मास 2023 का फल:-*
वि. संवत् 2080 में प्रथम श्रावण शुक्ल प्रतिपदा तद्नुसार 18 जुलाई, मंगलवार से श्रावण अधिक मास प्रारम्भ होकर 16 अगस्त, बुधवार तक व्याप्त रहेगा। शास्त्रों में श्रावण अधिक मास का फल इस प्रकार से वर्णित है- 

*'दुर्भिक्षं श्रावणे युग्मे पृथ्वी नाशः प्रजाक्षयः।*
अर्थात् जिस वर्ष में दो श्रावण हों अर्थात् श्रावण अधिक मास हो, तो उस वर्ष पृथ्वी पर कहीं दुर्भिक्ष, उपयोगी वर्षा की कमी एवं अग्निकाण्ड, युद्ध, यानादि दुर्घटनाओं एवं की प्राकृतिक प्रकोपों से धन एवं जन हानि की आशंका होती है। अधिक मास काल में गोचरवश 'मंगल-शनि' मध्य समसप्तक योग भी होने से पृथ्वी के उत्तर गोलार्द्ध के, दक्षिण दिशा में पड़ने वाले देशों जैसे-रूस, चीन, ताईवान, यूक्रेन, पाकिस्तान तथा अन्य सभी यूरोपीय देशों में आन्तरिक व बाह्य राजनैतिक परिस्थितियां विशेष रूप से प्रभावित रहेंगी। इन देशों में कहीं आन्तरिक विद्वेष, उपद्रव, अग्निकाण्ड, बाढ़, युद्ध, भूकम्प आदि से भी जन व धन सम्पदा की हानि की सम्भावनाएं होंगी।

*पुरुषोत्तम मास में नित्यकर्म एवं उद्यापन अर्थात् पालन करने योग्य नियम:-*
पुराण के अनुसार पुरुषोत्तम मास में ईश्वर के निमित्त जो व्रत, उपवास, स्नान, दान या पूजनादि किए जाते उन सबका अक्षय फल होता है और व्रती के सब अनिष्ट नष्ट हो जाते हैं। पुराणों में अधिकमास में पूजन, व्रत, दान सम्बन्धी विभिन्न प्रकार के विधि-विधान बतलाए गए हैं, जिसमे से क्रमंशः कुछ विधियो का उल्लेख यहां प्रस्तुत किया जा रहा है।

*प्रथम विधि:-*
1. इस मास के प्रारम्भ होते ही प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर शौच, स्नान, संध्या आदि नित्यकर्म करके भगवान् का स्मरण करना चाहिए और पुरुषोत्तम मास के नियम ग्रहण करने चाहिये।

 पुरुषोत्तम मास में श्रीमद्भागवत् की पुराण का पाठ करना महान् पुण्यप्रदायक है और एक लाख तुलसीपत्र से शालिग्राम भगवान् का पूजन करने से अनन्त पुण्य होता है। विधिपूर्वक षोडशोपचार से नित्य भगवान् का पूजन करना चाहिए। इस पुरुषोत्तम मास में निम्नलिखित मन्त्र का एक महीने तक भक्तिपूर्वक बार-बार जप करने से पुरुषोत्तम भगवान् की प्राप्ति होती है।

*गोवर्द्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरूपिणम् ।* *गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिकाप्रियम् ।।*

प्राचीनकाल में श्रीकौण्डिन्य ऋषि ने यह मन्त्र बताया था। मन्त्र जपते समय श्रीराधिका जी के सहित श्रीपुरुषोत्तम भगवान् का ध्यान करना चाहिए।

*द्वितीय विधि:-*
1. हेमाद्रि अनुसार पुरुषोत्तम मास आरम्भ होने पर प्रातः स्नानादि नित्यकर्म से निवृत्त होकर एकभुक्त या नक्तव्रत रखा जाता है। 

2. प्रतिदिन पूजा मे भगवान् विष्णुस्वरुप सहस्रांशु (भास्कर) का मंत्रों द्वारा लालपुष्प सहित पूजन किया जाता है। 

3. तत्पश्चात कृष्णस्तोत्र पाठ करके कांस्य पात्र में भरे हुए अन्न, फल, वस्त्रादि का दान किया जाता है। 

4. पूजनोपरान्त अथवा अधिकमास के अन्तिम दिन विविध प्रकार के मिष्ठान्न, घी, गुड़ और अन्न का दान ब्राह्मण को करें तथा घी, गेहूँ और गुड़ के बनाए हुए तैंतीस (33) अपूप (पूओं) को पात्र में रखकर निम्न मन्त्र पढ़कर फलों, मिष्ठान्न, वस्त्र दक्षिणा सहित ब्राह्मण को दान करें-

*"ॐ विष्णुरूपी सहस्रांशुः सर्वपापप्रणाशनः ।* *अपूपान्न प्रदानेन मम पापं व्यपोहतु ।"* 

इसके बाद आगे लिखे मन्त्र से भगवान् विष्णु को प्रार्थना करें- 
*यस्य हस्ते गदाचक्रे गरुडोयस्य वाहनम् ।*
*शङ्खः करतले यस्य स मे विष्णुः प्रसीदतु ।*

3. इसके अतिरिक्त श्रावण अधिक मास में प्रतिदिन श्रीपुरुषोत्तम माहात्म्य का पाठ एक निश्चित समय पर श्रद्धापूर्वक करना चाहिए। श्रीविष्णु स्तोत्र, श्रीविष्णु सहस्रनाम, श्रीसूक्त, पुरुषसूक्त आदि पाठ करना शुभ होगा। 

*अधिकमास का उद्यापन:-*
अधिकमास की समाप्ति पर स्नान, जप, पुरुषोत्तम मास पाठ एवं (निम्न मन्त्रों सहित गुड़, गेहूँ, घृत, वस्त्र, मिष्ठान्न, दाख, केले, कूष्माण्ड (कुम्हड़ा), ककड़ी, मूली आदि वस्तुओं का दान, दक्षिणा सहित करके भगवान् को 3 बार अर्ध्य देना चाहिए।

*भगवान के तैतीस (त्रयस्त्रिंशत् /३३) नाम मन्त्रों का जप करना चाहिए-*

१. विष्णुं, २. जिष्णुं, ३. महाविष्णुं, ४. हरिं, ५. कृष्ण, ६. अधोक्षजम्, ७. केशवं, ८. माधवं, ९. राम, १०. अच्युत्यं, ११. पुरुषोत्तमम्, १२. गोविन्दं, १३. वामनं, १४. श्रीशं, १५. श्रीकृष्णं, २६. विश्वसाक्षिणं १७. नारायणं, १८. मधुरिपुं १९. अनिरुद्धं, २०. त्रिविक्रमम्, २१. वासुदेवं, २२. जगद्योनिं २३. अनन्तं, २४. शेयशाविनम्, २५. सकर्षणं २६. प्रद्युम्नं २७. दैत्यरि, २८. विश्वतोमुखम् २९. जनार्दनं, ३०. धरावास, ३१. दामोदरं, ३२. मघार्दनं, ३३. श्रीपतिं च ।।  


*अधिक मास में कृत्य कर्म:-* 
शास्त्रो मे कहा गया है कि सम्पूर्ण वर्ष मे किए गये सभी शुभ कर्म और केवल एक मलमास में किए शुभ कर्म पुण्य फल मे बराबर माने गए हैं।

1. स्नान:- पूरे मलमास में ‘‘ब्रह्म मुहूर्त’’ में नदी, सरोवर, कूप, नल आदि उसके जल से स्नान करना चाहिए । शास्त्रों में प्रातः 3 से 6 तक ब्रह्ममुहूर्त माना गया है । ऐसा माना जाता है कि मलमास मे इस समय देवता भी पवित्र नदियों में स्नान करने आते हैं। 

2.लक्ष्मी नारायण पूजा:- मलमास मे स्नानादि से निवृत्त होकर ब्रह्म महूर्त मे भगवान विष्णु और महा लक्ष्मी का पूजन अति हितकारी फल प्रदान करता है।

3.पुरषोत्तम मास मे भगवान पुरुषोत्तम अर्थात विष्णु जी का श्रद्धापूर्वक पूजन करना चाहिए तथा मंत्र जाप करना चाहिए । श्रीपुरुषोत्तम माहात्म्य की कथा का पठन अथवा श्रवण करना चाहिए, रामायण का पाठ या श्रीविष्णु स्तोत्र का पाठ करना शुभ होता है। भगवान शिव के लिये रुद्राभिषेक का करना भी इस माह मे विशेष फलदायी है ।

4.दान:- मलमास में दान की विशेष महिमा है। यह माना जाता है कि इस मास में दिए गए दान के भोक्ता और फलदाता भगवान विष्णु स्वयं हैं।
इस मास में रामायण, गीता तथा अन्य धार्मिक व पौराणिक ग्रंथों के दान आदि का भी महत्व माना गया है. वस्त्रदान, अन्नदान, गुड़ और घी से बनी वस्तुओं का दान करना अत्यधिक शुभ माना गया है ।
 
5. अधिक मास मे पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर अपने आराध्य का ध्यान करना चाहिए। इस पूरे माह में व्रत, तीर्थ स्नान, भागवत पुराण, ग्रंथों का अध्ययन, विष्णु यज्ञ आदि किए जा सकते हैं। जो कार्य पहले शुरु किये जा चुके हैं उन्हें जारी रखा जा सकता है।

6.व्रत:- मलमास के पांच व्रत किए जाने का विधान है, क्रमशः  पूर्णिमा, अमावस्या, शुक्ल पक्ष व कृष्ण पक्ष दोनों की एकादशी तथा जिस दिन चंद्रमा का गोचर मकर राशि मे श्रवण नक्षत्र में हो, उस दिन का व्रत । इन पांच दिन व्रत करने का विधान है। – व्रत में उन्हीं नियमों का पालन किया जाता है जो नियम सामान्य चंद्र मास के व्रतों में अपनाए जाते हैं। अलग से कोई और नियम नहीं होता है।

7. अधिक मास मे संतान जन्म के कृत्य जैसे गर्भाधान, पुंसवन, सीमंत आदि संस्कार किये जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त नित्यकर्म, ग्रहण शान्त्यादि निमित्तक- नैमित्तिक स्नानादि कर्म, द्वितीय बार का तीर्थ स्नान, गजच्छायायोग निमित्तक श्राद्ध-प्रेतस्नान, गर्भाधान, ऋणादि में बार्धुवषिकृत्य, दशगात्रपिण्डदान एवं श्राद्ध करना चाहिए। 

8. अधिक (मल) मास में जिस काम्य कर्म के प्रयोग का आरम्भ अधिक मास से पहले ही हो चुका हो, उसकी सम्पूर्ति अधिक मास में विहित है।
 
*अधिक मास में त्याज्य कर्म:-*
1. अधिमास में फल प्राप्ति की कामना से किए जाने वाले प्रायः सभी काम वर्जित हैं और फल की आशा से रहित होकर करने के आवश्यक सब काम किए जा सकते हैं। 

2. अधिक (पुरुषोत्तम) मास में कुछ नित्य, नैमित्तिक एवं काम्य कर्मों को करने का निषेध माना गया है। जैसे-विवाह, यज्ञ, देव-प्रतिष्ठा, महादान, चूड़ाकर्म (मुण्डन), पहले कभी न देखे हुए देवतीर्थों में गमन, नवगृह प्रवेश, वृषोत्सर्ग, भूमि आदि सम्पत्ति की खरीद (क्रय), नई गाड़ी का क्रय आदि शुभ कार्यों का आरम्भ अधिक मास-काल में नहीं करना चाहिए-

3. इसके अतिरिक्त नववधू प्रवेश, नव-यज्ञोपवीत धारण, व्रतोद्यापन, नव- अलंकार, नवीन वस्त्रादि धारण करना, कुआँ, तालाब, बावली, बाग आदि का खनन करना, भूमि, वाहनादि का क्रय करना, काम्य व्रत का आरम्भ, भूमि, सुवर्ण, तुला, गायादि का दान, अष्टका श्राद्ध, उपनयन, द्वितीय वार्षिक श्राद्ध, उपाकर्मादि कर्मों के सम्पादन का निषेध माना गया है।

4. अधिक मास मे तामसिक वस्तुओं, तामसिक क्रिया कलापों व तामसिक विचारों को पूरी तरह त्याग करना चाहिए जैसे कि मांस, मदिरा व संभोग आदि का त्याग करना चाहिए।

4. राजसिक सुखो तथा भोगो को त्याग कर अधिक  मास में सात्विक जीवन व सात्विक विचारों को अपनाना चाहिए ।

5.  मलमास मे शादी (विवाह), नया व्यवसाय या नया मकान आरंभ करना, नया मकान, वाहन आदि खरीदने के विचारों को कम से कम एक माह तक स्थगित कर देना चाहिए। 

*(समाप्त)*
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*आगामी लेख:-*
*1. 5 जुलाई के पंचांग मे "सावन मास"पर धारावाहिक लेख, तत्पश्चात 15 जुलाई के पंचांग से लेख के चौथे भाग, तथा अगले भागो का प्रसारण।*
*2. 8 जुलाई के पंचांग मे "अधिक मास" पर धारावाहिक लेख।*
*3. 10 जुलाई के पंचांग मे "कामिका एकादशी" पर लेख।*
*4. 11 जुलाई के पंचांग मे "कर्क सक्रांति" पर लेख।*
*5. 12 जुलाई के पंचांग मे "सोमवती अमावस्या" पर लेख।*
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*जय श्री राम*
*कल का पंचांग 🌹🌹🌹*
*रविवार,9.07.2023*
*श्री संवत 2080*
*शक संवत् 1945*
*सूर्य अयन- दक्षिणायन, उत्तर गोल*
*ऋतुः- वर्षा ऋतुः।*
*मास- प्रथम शुद्ध श्रावण मास।*
*पक्ष- कृष्ण पक्ष ।*
*तिथि- सप्तमी तिथि 7:59 pm तक*
*चंद्रराशि- चंद्र मीन राशि मे।*
*नक्षत्र- उ० भाद्रपद ऩक्षत्र 7:29 pm तक*
*योग- शोभन योग 2:44 pm तक (शुभ है)*
*करण- विष्टि करण 8:50 am तक* 
*सूर्योदय- 5:30 am, सूर्यास्त 7:22 pm*
*अभिजित् नक्षत्र- 11:58 am से 12:54 pm*
*राहुकाल- 5:38 pm से 7:22 pm (शुभ कार्य वर्जित )*
*दिशाशूल- पश्चिम दिशा।*

*जुलाई शुभ दिन:-*  9 (सवेरे 9 उपरांत), 19, 11, 14 (सायं. 7 तक), 19, 21 (दोपहर 12 उपरांत), 22 (सवेरे 9 उपरांत), 23, 24, 25 (दोपहर 3 तक), 26, 28

*जुलाई अशुभ दिन:-* 12, 13, 15, 16, 17, 18, 20, 27, 29, 30, 31. 

*भद्रा:-*  8 जुलाई 9:52 pm से 9 जुलाई 8:56 am तक (भद्रा मे मुण्डन, गृहारंभ, गृहप्रवेश, विवाह, रक्षाबंधन आदि शुभ काम नही करने चाहिये , लेकिन भद्रा मे स्त्री प्रसंग, यज्ञ, तीर्थस्नान, आपरेशन, मुकद्दमा, आग लगाना, काटना, जानवर संबंधी काम किए जा सकतें है)

*पंचक प्रारंभ:- 6 जुलाई 1:39 pm से 10 जुलाई 6:59 pm तक*  पंचक नक्षत्रों  मे निम्नलिखित काम नही करने चाहिए, 1.छत बनाना या स्तंभ बनाना (lantern  or Pillar) 2.लकडी  या  तिनके तोड़ना , 3.चूल्हा लेना या बनाना, 4. दाह संस्कार करना (cremation) 5.पंलग चारपाई, खाट , चटाई  बुनना  या बनाना 6.बैठक का सोफा या गद्दियाँ बनाना । 7 लकड़ी ,तांबा ,पीतल को जमा करना ।(इन कामो के सिवा अन्य सभी शुभ काम पंचको मे किए जा सकते है।

*गण्ड मूल आरम्भ:- 9 जुलाई रेवती नक्षत्र, 7:30 pm से 11 जुलाई को अश्विनी नक्षत्र 7:05 pm तक गंडमूल रहेगें।*  गंडमूल नक्षत्रों मे जन्म लेने वाले बच्चो का मूलशांति पूजन आवश्यक है।

*सर्वार्थ सिद्ध योग:- 9 जुलाई 5:30 am से 9 जुलाई 7:30 pm तक*  (यह एक शुभयोग है, इसमे कोई व्यापारिक या कि राजकीय अनुबन्ध (कान्ट्रेक्ट) करना, परीक्षा, नौकरी अथवा चुनाव आदि के लिए आवेदन करना, क्रय-विक्रय करना, यात्रा या मुकद्दमा करना, भूमि , सवारी, वस्त्र आभूषणादि का क्रय करने के लिए शीघ्रतावश गुरु-शुक्रास्त, अधिमास एवं वेधादि का विचार सम्भव न हो, तो ये सर्वार्थसिद्धि योग ग्रहण किए जा सकते हैं।

*रवि योग:- 8 जुलाई 8:36 pm से 9 जुलाई 7:30 pm तक*  यह एक शुभ योग है, इसमे किए गये दान-पुण्य, नौकरी  या सरकारी नौकरी को join करने जैसे कायों मे शुभ परिणाम मिलते है । यह योग, इस समय चल रहे, अन्य बुरे योगो को भी प्रभावहीन करता है।
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*आगामी व्रत तथा त्यौहार:-*                  
  10 जुलाई- श्रावण सोमवार व्रत प्रारम्भ। 13 जुला०- कामिका एकादशी। 14 जुला०- प्रदोष व्रत। 15 जुला०- मासिक शिवरात्रि। 16 जुला०- कर्क संक्रांति (पुण्यकाल 11:30 am तक)। 17 जुला०- श्रावण/सोमवती अमावस्या। 18 जुलाई- श्रवण (अधिक) मलमास आरंभ। 29 जुला०- पद्मिनी एकादशी। 30 जुला०- प्रदोष व्रत।
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*विशेष:- जो व्यक्ति वाराणसी  से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु paytm या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है*
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*आपका दिन मंगलमय हो*. 💐💐💐
*आचार्य मोरध्वज शर्मा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश*
9648023364
9129998000

07 जुलाई 2023

धारावाहिक लेख- मलमास, खरमास, अधिक मास तथा क्षयमास, भाग-1


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धारावाहिक लेख- मलमास, खरमास, अधिक मास तथा क्षयमास, भाग-1

मलमास, खरमास, अधिक मास तथा क्षयमास के भेद को समझने के लिए सर्वप्रथम निम्नलिखित सूत्रो तथा गणनाओ को समझना होगा ।

सूर्य संक्रांति, तिथि-पक्ष एवं नक्षत्र के आधार पर चार प्रकार के वर्ष माने गये हैं तथा चार प्रकार के ही मास व्यवहार में प्रयुक्त किए जाते हैं।  

*सौर वर्ष एवं मास:-* सूर्य सिद्धांत के अनुसार सूर्य का क्रमशः बारह राशियों मे गोचर एक सौर वर्ष कहलाता है। सौर वर्ष का मान 365 दिन 15 घटी 31 पल 30 विपल है । इस प्रकार सूर्य के निरयण राशि प्रवेश (एक सूर्य संक्रांति से दूसरी सूर्य संक्रांति) तक की अवधि को सौर मास कहा जाता है। 

*चान्द्र वर्ष एवं मास:-* चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से चैत्र कृष्ण अमावस्या तक का काल एक चांद्र वर्ष कहलाता है, चान्द्र वर्ष का मान 354 सावन दिन है।       

इसी प्रकार एक पूर्णिमा से दूसरी पूर्णिमा या एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या तक की अवधि को शुक्ल अथवा कृष्ण चान्द्र मास कहा जाता है। इसमें तिथि क्षय या वृद्धि हो सकती है। (इस आधार पर चान्द्र मास का मान 29 दिन 22 घंटे तक का हो सकता है।)

*सावन वर्ष एवं मास:-* एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक 360 दिनों को मिलाकर एक सावन वर्ष बनता है। सावन वर्षमान 360 दिन है। इसी प्रकार एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक की 30 तिथियों को मिलाकर एक सावन मास बनता है। इस मास में किसी भी प्रकार की तिथि क्षय या वृद्धि नहीं होती है। 

*नक्षत्र वर्ष एवं मास:-* चंद्र को 27 नक्षत्रों में बारह बार गोचर करने की अवधि को नक्षत्र वर्ष कहते हैं। इसका मान लगभग 324 दिन है। इसी प्रकार चन्द्र का 27 नक्षत्रों में एक बार गोचर करना ही नाक्षत्र मास कहलाता है। इसमें इसको 27 दिन 7 घंटे, 43 मिनट, 8 सेकंड का समय लगता हैं। 

*मलमास-अधिक मास-पुरषोत्तम मास:-*
*पंचांगों में मासों की गणना चान्द्र मास से व वर्ष की गणना सौर मास से की जाती है।*

एक सौरवर्ष का मान 365 दिन 15 घटी 31 पल 30 विपल होता है । इसी प्रकार एक चान्द्र वर्ष का मान 354 दिन 22 घटी 1 पल 23 विपल होता है । 
इन दोनों वर्षमानों में परस्पर 10 दिन 53 घटी 30 पल 7 विपल का अंतर प्रति वर्ष रहता है। 

सरल भाषा में इस कारण सौर वर्ष तथा चान्द्र वर्ष मे  लगभग 10 दिन का अंतर होता है। तीन वर्षो में यह अंतर एक चान्द्र मास के बराबर हो जाता है । अतः दोनो के बीच के इसी अंतर को पाटने के लिए हर तीसरे वर्ष 1 अधिक मास की व्यवस्था की गई है । इसलिए हर तीसरे वर्ष उस सौर वर्ष में 13 चांद्र मास होते हैं।
इस प्रकार सूक्ष्म गणना के आधार पर प्रत्येक मलमास का आगमन 32.913 मास यानि लगभग 33 माह के उपरांत होता है।  *वह तेरहवां मास ही अधिक मास, अधिमास, मलिम्लुच, मल या पुरूषोत्तम मास कहलाता है।*

फाल्गुन, चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद और आश्विन मास मे ही अधिक मास होते हैं। 

कार्तिक मास क्षय व अधिक मास दोनों होता है। 

माघ मास मे क्षय या अधिक नहीं होता है। (परंतु कहीं-कहीं माघ मास को क्षय मास में भी माना गया है।)

अधिक मास का फल:- ज्येष्ठ, भाद्रपद और आश्विन मे अधिक मास आये तो यह अशुभ फल दाता होते हैं। शेष मासों के अधिक मास शुभ फल प्रदायक हैं। 


*क्षय मास या मल मास:-* 
उपरोक्त लिखित गणित के आधार पर प्रत्येक 19 और 141 वर्षों बाद क्षय चान्द्र मास की व्यवस्था की गई है। 
(जिस चान्द्र मास में स्पष्ट सूर्य की दो संक्रांति होती हो तो वह क्षय मास या मल मास कहलाता है।)

‘‘सिद्धांत शिरोमणि’’ के अनुसार क्षय मास केवल कार्तिकादि तीन मासों क्रमशः कार्तिक, मार्गशीर्ष (अग्रहायण) एवं पौष मास (भास्कराचार्य) में ही होता है, तथा उसी वर्ष दो अधिक मास भी होते है, जो कि फाल्गुन से कार्तिक के मध्य होता है। ये अधिमास से तीन मास पहले व बाद में हो सकते हैं।

*खर मास:-* 
प्रत्येक वर्ष मे सूर्य जब गुरु की धनु या मीन राशि में गोचर करते हैं, तब खरमास होता है । धनु तथा मीन दोनो राशियां उनकी मलिन राशियां मानी जाती है। वर्ष में दो बार सूर्य गुरु की राशियों के संपर्क में आते हैं। प्रथम 16 दिसंबर से 14 जनवरी तथा दूसरी बार 14 मार्च से 13 अप्रैल तक। शास्त्रों के अनुसार सूर्य का गुरु की राशि में परिभ्रमण श्रेष्ठ नहीं माना जाता है, क्योंकि गुरु की राशि में सूर्य का गोचर होना, सूर्य को कमजोर स्थिति में होना माना जाता है। 

प्रत्येक वर्ष मे दो बार खर मास होता है । 16 दिसंबर से 14 जनवरी तक सूर्य के धनु राशि में परिभ्रमण से  तथा 14 मार्च से 13 अप्रैल तक सूर्य के मीन राशि मे गोचर करने से खर मास होता है, इसी खरमास को कई बार मलमास भी कह दिया जाता है।


*मलमास:-*
*इस प्रकार "अधिक मास" हो या "क्षय मास" उन्हे ही मलमास कहा जाता है, परन्तु कई बार तथा कुछ जगहों पर "खर मास" को भी मलमास कह दिया जाता है ।*

*सरल शब्दों मे खरमास तथा मलमास में अंतर:-*
अंत मे संक्षेप में फिर से कहा जाता है कि सूर्यदेव द्वारा वृहस्पति की दो राशियो मे एक माह के गोचर काल को खरमास कहते हैं।
जबकि "अधिक मास" तथा "क्षय मास" को मलमास कहा जाता है।

*(क्रमंशः)*
*लेख के द्वितीय तथा अंतिम भाग मे कल सावन
अधिक मास 2023 पर लेख।*
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*आगामी लेख:-*
*1. 5 जुलाई के पंचांग मे "सावन मास"पर धारावाहिक लेख, तत्पश्चात 13 जुलाई के पंचांग से लेख के चौथे भाग, तथा अगले भागो का प्रसारण।*
*2. 8 जुलाई के पंचांग मे "अधिक मास" पर धारावाहिक लेख।*
*3. 10 जुलाई के पंचांग मे "कामिका एकादशी" पर लेख।*
*4. 11 जुलाई के पंचांग मे "कर्क सक्रांति" पर लेख।*
*5. 12 जुलाई के पंचांग मे "सोमवती अमावस्या" पर लेख।*
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*जय श्री राम*
*कल का पंचांग  🌹🌹🌹*
*शनिवार,8.07.2023*
*श्री संवत 2080*
*शक संवत् 1945*
*सूर्य अयन- दक्षिणायन, उत्तर गोल*
*ऋतुः- वर्षा ऋतुः।*
*मास- प्रथम शुद्ध श्रावण मास।*
*पक्ष- कृष्ण पक्ष ।*
*तिथि- षष्ठी तिथि 9:51 pm तक*
*चंद्रराशि- चंद्र कुंभ राशि मे 2:58 pm तक तदोपरान्त मीन राशि।*
*नक्षत्र- पू० भाद्रपद ऩक्षत्र 8:36 pm तक*
*योग- सौभाग्य योग 5:23 pm तक (शुभ है)*
*करण- गर करण 11 am तक* 
*सूर्योदय- 5:29 am, सूर्यास्त 7:23 pm*
*अभिजित् नक्षत्र- 11:58 am से 12:54 pm*
*राहुकाल- 8:58 am से 10:42 am (शुभ कार्य वर्जित )*
*दिशाशूल- पूर्व दिशा।*

*जुलाई शुभ दिन:-*  8, 9 (सवेरे 9 उपरांत), 19, 11, 14 (सायं. 7 तक), 19, 21 (दोपहर 12 उपरांत), 22 (सवेरे 9 उपरांत), 23, 24, 25 (दोपहर 3 तक), 26, 28

*जुलाई अशुभ दिन:-* 12, 13, 15, 16, 17, 18, 20, 27, 29, 30, 31. 

*पंचक प्रारंभ:- 6 जुलाई 1:39 pm से 10 जुलाई 6:59 pm तक*  पंचक नक्षत्रों  मे निम्नलिखित काम नही करने चाहिए, 1.छत बनाना या स्तंभ बनाना (lantern  or Pillar) 2.लकडी  या  तिनके तोड़ना , 3.चूल्हा लेना या बनाना, 4. दाह संस्कार करना (cremation) 5.पंलग चारपाई, खाट , चटाई  बुनना  या बनाना 6.बैठक का सोफा या गद्दियाँ बनाना । 7 लकड़ी ,तांबा ,पीतल को जमा करना ।(इन कामो के सिवा अन्य सभी शुभ काम पंचको मे किए जा सकते है।
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*आगामी व्रत तथा त्यौहार:-*                  
  10 जुलाई- श्रावण सोमवार व्रत प्रारम्भ। 13 जुला०- कामिका एकादशी। 14 जुला०- प्रदोष व्रत। 15 जुला०- मासिक शिवरात्रि। 16 जुला०- कर्क संक्रांति (पुण्यकाल 11:30 am तक)। 17 जुला०- श्रावण/सोमवती अमावस्या। 18 जुलाई- श्रवण (अधिक) मलमास आरंभ। 29 जुला०- पद्मिनी एकादशी। 30 जुला०- प्रदोष व्रत।
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*विशेष:- जो व्यक्ति वाराणसी  से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु paytm या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है*
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*आपका दिन मंगलमय हो*. 💐💐💐
*आचार्य मोरध्वज शर्मा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश*
9648023364
9129998000

02 जनवरी 2023

पौष (पुत्रदा) एकादशी विशेष ।।


पौष (पुत्रदा) एकादशी विशेष
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पौष माह में शुक्ल पक्ष एकादशी को पुत्रदा एकदशी, के नाम से जाना जाता है। यह तिथि अत्यंत पवित्र तिथि मानी जाती है। वर्ष में दो एकादशी को पुत्रदा एकादशी नाम से जाना जाता है। यह श्रावण और पौष माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी हैं।

पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को (पुत्रदा) एकादशी के रुप में मनाते हैं। इस वर्ष पौष पुत्रदा एकादशी का पर्व आज 02 जनवरी 2023 सोमवार को मनाया जाना है। धर्म ग्रंथों के अनुसर इस व्रत की कथा सुनने मात्र से वाजपेयी यज्ञ का फल प्राप्त होता है। पवित्रा एकादशी का महत्व को भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा था।

श्रीभगवान के कथन इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है जो कि विभिन्न सांसारिक सुखों में बाधक होते है। अनुसार यदि संतान सुख की अभिलाषा रखने वालों को पुत्रदा एकादशी का व्रत अवश्य रखना चाहिए। कहा जाता है कि यदि निसंतान लोग यह व्रत विधि-विधान एवं श्रद्धापूर्वक करते हैं तो संतान की प्राप्ति होती है। अत: संतान सुख की इच्छा रखने वालों को इस व्रत का पालन करने से संतान की प्राप्ति होती है। पवित्रा एकादशी का श्रवण एवं पठन करने से मनुष्य के समस्त पापों का नाश होता है। वंश वृद्धि होती है तथा समस्त सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है।

एकादशी तिथि मुहूर्त
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एकादशी तिथि प्रारम्भ -  01 जनवरी सायं 07:10 बजे से।

एकादशी तिथि समाप्त -  02 जनवरी रात्रि 08:21 बजे तक।

03 जनवरी पारण (व्रत तोड़ने का) समय प्रातः 07:11 से 09:15

पवित्रा एकादशी पूजा
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इस एकादशी का व्रत रहने वाले लोगों को दशमी से नियमों का पालन शुरू कर देना चाहिए तभी व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है। इसके लिए आपको दशमी के दिन सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना है। दशमी के दिन प्याज लहसुन न खाएं। 

1. रात्रि में शहद, चना तथा मसूर की दाल न खाएं।
2. दशमी के दिन साधारण भोजन करें। प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा आदि भूलकर भी न लें।
3. जुआ आदि व्यसनों से दूर रहें।
4. ब्रह्मचर्य का पालन करें।
5. दिन के समय में सोएं नहीं।
6. पान नहीं खाना चाहिए।
7. झूठ न बोलें और दूसरों की निंदा न करें।

एकादशी के  दिन भगवान नारायण की पूजा की जाती है. सुबह स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने के पश्चात श्रीहरि का ध्यान करना चाहिए. सबसे पहले धूप-दीप आदि से भगवान नारायण की अर्चना की जाती है, उसके बाद  फल-फूल, नारियल, पान, सुपारी, लौंग, बेर, आंवला आदि व्यक्ति अपनी सामर्थ्य अनुसार भगवान नारायण को अर्पित करते हैं।

पूरे दिन निराहार रहकर संध्या समय में कथा आदि सुनने के पश्चात फलाहार किया जाता है इस दिन दीप दान करने का महत्व है. इस दिन भगवन विष्णु का ध्यान एवं व्रत करना चाहिए। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ एवं एकादशी कथा का श्रवण एवं पठन करना चाहिए। ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।

पवित्रा एकादशी व्रत की कथा
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प्राचीन काल में एक नगर में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे। राज के कोई संतान नहीं थी इस बात को लेकर वह सदैव चिन्ताग्रस्त रहते थे। एक दिन राजा सुकेतुमान वन की ओर चल दिये। वन में चलते हुए वह अत्यन्त घने वन में चले गए। वन में चलते-चलते राजा को बहुत प्यास लगने लगी। वह जल की तलाश में वन में और अंदर की ओर चले गए जहाँ उन्हें एक सरोवर दिखाई दिया। राजा ने देखा कि सरोवर के पास ऋषियों के आश्रम भी बने हुए है और बहुत से मुनि वेदपाठ कर रहे हैं।

राजा ने सभी मुनियों को बारी-बारी से सादर प्रणाम किया. ऋषियों ने राजा को आशीर्वाद दिया, राजा ने ऋषियों से उनके एकत्रित होने का कारण पूछा. मुनि ने कहा कि वह विश्वेदेव हैं और सरोवर के निकट स्नान के लिए आये हैं। आज से पाँचवें दिन माघ मास का स्नान आरम्भ हो जाएगा और आज पुत्रदा एकादशी है. जो मनुष्य इस दिन व्रत करता है उन्हें पुत्र की प्राप्ति होती है।

राजा ने यह सुनते ही कहा हे विश्वेदेवगण यदि आप सभी मुझ पर प्रसन्न हैं तब आप मुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति का आशीर्वाद दें. मुनि बोले हे राजन आज पुत्रदा एकादशी का व्रत है। आप आज इस व्रत को रखें और भगवान नारायण की आराधना करें। राजा ने मुनि के कहे अनुसार विधिवत तरीके से पवित्र एकादशी का व्रत रखा और अनुष्ठान किया. व्रत के शुभ फलों द्वारा राजा को संतान की प्राप्ति हुई। इस प्रकार जो व्यक्ति इस व्रत को रखते हैं उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। संतान होने में यदि बाधाएं आती हैं तो इस व्रत के रखने से वह दूर हो जाती हैं। जो मनुष्य इस व्रत के महात्म्य को सुनता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

अन्य प्रचलित कथा
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युधिष्ठिर ने पूछा : मधुसूदन ! श्रावण के शुक्लपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है ? कृपया मेरे सामने उसका वर्णन कीजिये ।
 
भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! प्राचीन काल की बात है । द्वापर युग के प्रारम्भ का समय था । माहिष्मतीपुर में राजा महीजित अपने राज्य का पालन करते थे किन्तु उन्हें कोई पुत्र नहीं था, इसलिए वह राज्य उन्हें सुखदायक नहीं प्रतीत होता था । अपनी अवस्था अधिक देख राजा को बड़ी चिन्ता हुई । उन्होंने प्रजावर्ग में बैठकर इस प्रकार कहा: ‘प्रजाजनो ! इस जन्म में मुझसे कोई पातक नहीं हुआ है । मैंने अपने खजाने में अन्याय से कमाया हुआ धन नहीं जमा किया है । ब्राह्मणों और देवताओं का धन भी मैंने कभी नहीं लिया है । पुत्रवत् प्रजा का पालन किया है । धर्म से पृथ्वी पर अधिकार जमाया है । दुष्टों को, चाहे वे बन्धु और पुत्रों के समान ही क्यों न रहे हों, दण्ड दिया है । शिष्ट पुरुषों का सदा सम्मान किया है और किसीको द्वेष का पात्र नहीं समझा है । फिर क्या कारण है, जो मेरे घर में आज तक पुत्र उत्पन्न नहीं हुआ? आप लोग इसका विचार करें ।’
 
राजा के ये वचन सुनकर प्रजा और पुरोहितों के साथ ब्राह्मणों ने उनके हित का विचार करके गहन वन में प्रवेश किया । राजा का कल्याण चाहनेवाले वे सभी लोग इधर उधर घूमकर ॠषिसेवित आश्रमों की तलाश करने लगे । इतने में उन्हें मुनिश्रेष्ठ लोमशजी के दर्शन हुए ।
 
लोमशजी धर्म के त्तत्त्वज्ञ, सम्पूर्ण शास्त्रों के विशिष्ट विद्वान, दीर्घायु और महात्मा हैं । उनका शरीर लोम से भरा हुआ है । वे ब्रह्माजी के समान तेजस्वी हैं । एक एक कल्प बीतने पर उनके शरीर का एक एक लोम विशीर्ण होता है, टूटकर गिरता है, इसीलिए उनका नाम लोमश हुआ है । वे महामुनि तीनों कालों की बातें जानते हैं ।
 
उन्हें देखकर सब लोगों को बड़ा हर्ष हुआ । लोगों को अपने निकट आया देख लोमशजी ने पूछा : ‘तुम सब लोग किसलिए यहाँ आये हो? अपने आगमन का कारण बताओ । तुम लोगों के लिए जो हितकर कार्य होगा, उसे मैं अवश्य करुँगा ।’
 
प्रजाजनों ने कहा : ब्रह्मन् ! इस समय महीजित नामवाले जो राजा हैं, उन्हें कोई पुत्र नहीं है । हम लोग उन्हींकी प्रजा हैं, जिनका उन्होंने पुत्र की भाँति पालन किया है । उन्हें पुत्रहीन देख, उनके दु:ख से दु:खित हो हम तपस्या करने का दृढ़ निश्चय करके यहाँ आये है । द्विजोत्तम ! राजा के भाग्य से इस समय हमें आपका दर्शन मिल गया है । महापुरुषों के दर्शन से ही मनुष्यों के सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं । मुने ! अब हमें उस उपाय का उपदेश कीजिये, जिससे राजा को पुत्र की प्राप्ति हो ।
 
उनकी बात सुनकर महर्षि लोमश दो घड़ी के लिए ध्यानमग्न हो गये । तत्पश्चात् राजा के प्राचीन जन्म का वृत्तान्त जानकर उन्होंने कहा : ‘प्रजावृन्द ! सुनो । राजा महीजित पूर्वजन्म में मनुष्यों को चूसनेवाला धनहीन वैश्य था । वह वैश्य गाँव-गाँव घूमकर व्यापार किया करता था । एक दिन ज्येष्ठ के शुक्लपक्ष में दशमी तिथि को, जब दोपहर का सूर्य तप रहा था, वह किसी गाँव की सीमा में एक जलाशय पर पहुँचा । पानी से भरी हुई बावली देखकर वैश्य ने वहाँ जल पीने का विचार किया । इतने में वहाँ अपने बछड़े के साथ एक गौ भी आ पहुँची । वह प्यास से व्याकुल और ताप से पीड़ित थी, अत: बावली में जाकर जल पीने लगी । वैश्य ने पानी पीती हुई गाय को हाँककर दूर हटा दिया और स्वयं पानी पीने लगा । उसी पापकर्म के कारण राजा इस समय पुत्रहीन हुए हैं । किसी जन्म के पुण्य से इन्हें निष्कण्टक राज्य की प्राप्ति हुई है ।’
 
प्रजाजनों ने कहा : मुने ! पुराणों में उल्लेख है कि प्रायश्चितरुप पुण्य से पाप नष्ट होते हैं, अत: ऐसे पुण्यकर्म का उपदेश कीजिये, जिससे उस पाप का नाश हो जाय ।
 
लोमशजी बोले : प्रजाजनो ! श्रावण मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी होती है, वह ‘पुत्रदा’ के नाम से विख्यात है । वह मनोवांछित फल प्रदान करनेवाली है । तुम लोग उसीका व्रत करो ।
 
यह सुनकर प्रजाजनों ने मुनि को नमस्कार किया और नगर में आकर विधिपूर्वक ‘पुत्रदा एकादशी’ के व्रत का अनुष्ठान किया । उन्होंने विधिपूर्वक जागरण भी किया और उसका निर्मल पुण्य राजा को अर्पण कर दिया । तत्पश्चात् रानी ने गर्भधारण किया और प्रसव का समय आने पर बलवान पुत्र को जन्म दिया ।
 
इसका माहात्म्य सुनकर मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है तथा इहलोक में सुख पाकर परलोक में स्वर्गीय गति को प्राप्त होता है ।

श्री भगवान की आरती
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ॐ जय जगदीश हरे

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
 
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।
स्वामी दुःख विनसे मन का।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥
ॐ जय जगदीश हरे।
 
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी।
स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥
ॐ जय जगदीश हरे।
 
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।
स्वामी तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥
ॐ जय जगदीश हरे।
 
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।
स्वामी तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥
ॐ जय जगदीश हरे।
 
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति॥
ॐ जय जगदीश हरे।
 
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
स्वामी तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठा‌ओ, द्वार पड़ा तेरे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
 
विषय-विकार मिटा‌ओ, पाप हरो देवा।
स्वमी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ा‌ओ, सन्तन की सेवा॥
ॐ जय जगदीश हरे।

तत्पश्चात निसंतान दमपत्ति नीचे दिए कवच का यथा सामर्थ्य अधिक से अधिक पाठ करने से संतान बाधा शांत होती है।
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॥ वंश वृद्धिकरं दुर्गाकवचम् ॥
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पुत्रदा एकादशी के दिन वंश वृद्धिकरं दुर्गाकवचम्  का 11 या 21 बार पाठ करने से वंश में वृद्धि होती है माता दुर्गा की कृपा से कुटुम्ब में भक्त रूपी संतान का जन्म होता है।

भगवन् देव देवेशकृपया त्वं जगत् प्रभो ।
वंशाख्य कवचं ब्रूहि मह्यं शिष्याय तेऽनघ ।
यस्य प्रभावाद्देवेश वंश वृद्धिर्हिजायते ॥ १॥

॥ सूर्य ऊवाच ॥
शृणु पुत्र प्रवक्ष्यामि वंशाख्यं कवचं शुभम् ।
सन्तानवृद्धिर्यत्पठनाद्गर्भरक्षा सदा नृणाम् ॥ २॥

वन्ध्यापि लभते पुत्रं काक वन्ध्या सुतैर्युता ।
मृत वत्सा सुपुत्रस्यात्स्रवद्गर्भ स्थिरप्रजा ॥ ३॥

अपुष्पा पुष्पिणी यस्य धारणाश्च सुखप्रसूः ।
कन्या प्रजा पुत्रिणी स्यादेतत् स्तोत्र प्रभावतः ॥ ४॥

भूतप्रेतादिजा बाधा या बाधा कुलदोषजा ।
ग्रह बाधा देव बाधा बाधा शत्रु कृता च या ॥ ५॥

भस्मी भवन्ति सर्वास्ताः कवचस्य प्रभावतः ।
सर्वे रोगा विनश्यन्ति सर्वे बालग्रहाश्च ये ॥ ६॥

॥ अथ दुर्गा कवचम् ॥
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ॐ पुर्वं रक्षतु वाराही चाग्नेय्यां अम्बिका स्वयम् ।
दक्षिणे चण्डिका रक्षेन्नैऋत्यां शववाहिनी ॥ १॥

वाराही पश्चिमे रक्षेद्वायव्याम् च महेश्वरी ।
उत्तरे वैष्णवीं रक्षेत् ईशाने सिंह वाहिनी ॥ २॥

ऊर्ध्वां तु शारदा रक्षेदधो रक्षतु पार्वती ।
शाकंभरी शिरो रक्षेन्मुखं रक्षतु भैरवी ॥ ३॥

कन्ठं रक्षतु चामुण्डा हृदयं रक्षतात् शिवा ।
ईशानी च भुजौ रक्षेत् कुक्षिं नाभिं च कालिका ॥ ४ ॥

अपर्णा ह्युदरं रक्षेत्कटिं बस्तिं शिवप्रिया ।
ऊरू रक्षतु कौमारी जया जानुद्वयं तथा ॥ ५॥

गुल्फौ पादौ सदा रक्षेद्ब्रह्माणी परमेश्वरी ।
सर्वाङ्गानि सदा रक्षेद्दुर्गा दुर्गार्तिनाशनी ॥ ६॥

नमो देव्यै महादेव्यै दुर्गायै सततं नमः ।
पुत्रसौख्यं देहि देहि गर्भरक्षां कुरुष्व नः ॥ ७॥

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं श्रीं ऐं ऐं ऐं
महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती रुपायै
नवकोटिमूर्त्यै दुर्गायै नमः ॥ ८॥

ह्रीं ह्रीं ह्रीं दुर्गार्तिनाशिनी संतानसौख्यम् देहि देहि
बन्ध्यत्वं मृतवत्सत्वं च हर हर गर्भरक्षां कुरु कुरु
सकलां बाधां कुलजां बाह्यजां कृतामकृतां च नाशय
नाशय सर्वगात्राणि रक्ष रक्ष गर्भं पोषय पोषय
सर्वोपद्रवं शोषय शोषय स्वाहा ॥ ९॥
॥ फल श्रुतिः ॥

अनेन कवचेनाङ्गं सप्तवाराभिमन्त्रितम् ।
ऋतुस्नात जलं पीत्वा भवेत् गर्भवती ध्रुवम् ॥ १॥

गर्भ पात भये पीत्वा दृढगर्भा प्रजायते ।
अनेन कवचेनाथ मार्जिताया निशागमे ॥ २॥

सर्वबाधाविनिर्मुक्ता गर्भिणी स्यान्न संशयः ।
अनेन कवचेनेह ग्रन्थितं रक्तदोरकम् ॥ ३॥
कटि देशे धारयन्ती सुपुत्रसुख भागिनी ।
असूत पुत्रमिन्द्राणां जयन्तं यत्प्रभावतः ॥ ४॥

गुरूपदिष्टं वंशाख्यम् कवचं तदिदं सुखे ।
गुह्याद्गुह्यतरं चेदं न प्रकाश्यं हि सर्वतः ॥ ५॥

धारणात् पठनादस्य वंशच्छेदो न जायते ।
बाला विनश्यंति पतन्ति गर्भास्तत्राबलाः कष्टयुताश्च वन्ध्याः ॥ ६ ॥

बाल ग्रहैर्भूतगणैश्च रोगैर्न यत्र धर्माचरणं गृहे स्यात् ॥

॥ इति श्री ज्ञान भास्करे वंश वृद्धिकरं वंश कवचं
सम्पूर्णम् ॥
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25 सितंबर 2022

शारदीय नवरात्रि घट (कलश) स्थापना मुहूर्त एवं पूजाविधि ।। Sharadiya Navratri Ghat (Kalash) Establishment Muhurta and Worship

शारदीय नवरात्रि विशेष
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शारदीय नवरात्रि घट (कलश) स्थापना मुहूर्त एवं पूजाविधि
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प्रतिवर्ष की भांति इसवर्ष भी हिंदुओ के प्रमुख त्योहारो में से एक शारदीय नवरात्रि आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाएगा। इस नवरात्रि मां जगदंबा हाथी पर आएंगी और हाथी पर ही बैठकर जाएंगी । 

सोमवार के दिन हस्त नक्षत्र शुक्ल व ब्रह्म योग कन्या राशि के चन्द्र व कन्या के ही सूर्य आनन्दादि महायोग श्रीवत्स में यदि देवी आराधना का पर्व शुरू हो, तो यह देवीकृपा व इष्ट साधना के लिए विशेष रूप से शुभ माना जाता है। देवी भागवत में नवरात्रि के प्रारंभ व समापन के वार अनुसार माताजी के आगमन प्रस्थान के वाहन इस प्रकार बताए गए हैं।

आगमन वाहन
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"शशि सूर्य गजरुढा शनिभौमै तुरंगमे। गुरौशुक्रेच दोलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता॥"

रविवार व सोमवार को हाथी, शनिवार व मंगलवार को घोड़ा, गुरुवार व शुक्रवार को पालकी, बुधवार को नौका आगमन।

इस साल शारदीय नवरात्रि शनिवार से प्रारंभ हो रही हैं इसके अनुसार देवी मां डोली में विराजकर कैलाश से धरती पर आ रही हैं। 

प्रस्थान वाहन
〰️〰️〰️〰️रविवार व सोमवार भैंसा,
शनिवार और मंगलवार को सिंह,
बुधवार व शुक्रवार को गज हाथी,
गुरुवार को नर वाहन पर प्रस्थान

अतः मां का आगमन हाथी पर होगा जो
समृद्धि व खुशहाली का प्रतीक है। माता की विदाई भी हाथी पर होगी (मतांतर से नाव)। देवी भागवत के अनुसार जब मां का आगमन व विदाई हाथी पर होती है देश में खुशहाली का वातावरण निर्मित होता है व पर्याप्त वर्षा से जनता प्रसन्न होती है। नवरात्रि में घटस्थापना, ज्वार रोपण नवदुर्गाओं की क्रमशः पूजन, अर्चन, दुर्गा सप्तशती के सात सौ महामंत्रों से हवन, कन्या पूजन व अपनी अपनी कुल परम्परा के अनुसार कुल देवी पूजन व उपवास का विशेष महत्व है।

साधक भाई बहन जो ब्राह्मण द्वारा पूजन करवाने में असमर्थ है एवं जो सामर्थ्यवान होने पर भी समयाभाव के कारण पूजा नही कर पाते उनके लिये पंचोपचार विधि द्वारा सम्पूर्ण पूजन विधि बताई जा रही है आशा है आप सभी साधक इसका लाभ उठाकर माता के कृपा पात्र बनेंगे।

घट स्थापना एवं माँ दुर्गा पूजन शुभ मुहूर्त
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नवरात्रि में घट स्थापना का बहुत महत्त्व होता है। शुभ मुहूर्त में कलश स्थापित किया जाता है। घट स्थापना प्रतिपदा तिथि में कर लेनी चाहिए। इसे कलश स्थापना भी कहते है।

कलश को सुख समृद्धि , ऐश्वर्य देने वाला तथा मंगलकारी माना जाता है। कलश के मुख में भगवान विष्णु , गले में रूद्र , मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है। नवरात्री के समय ब्रह्माण्ड में उपस्थित शक्तियों का घट में आह्वान करके उसे कार्यरत किया जाता है। इससे घर की सभी विपदा दायक तरंगें नष्ट हो जाती है तथा घर में सुख शांति तथा समृद्धि बनी रहती है।

26 सितम्बर रात्रि को 03:08 बजे तक प्रतिपदा तिथि रहेगी। तथा सम्पूर्ण दिवस हस्त नक्षत्र रहेगा। चित्रा नक्षत्र वैधृति योग रहित अभिजित मुहूर्त, द्विस्वभाव लग्न में कलश स्थापना शुभ मानी जाती है। परन्तु इस वर्ष चित्रा नक्षत्र प्रतिपदा तिथि को नहीं रहेगा इसलिये साधक गण कन्या लग्न 06:07 से 07:47 तक घट स्थापना आदि कार्य सम्पन्न कर लें । ये समय सभी तरह से दोष मुक्त तो नही फिर भी कन्या लग्न होने से आंशिक दोषमुक्त है। इसके बाद दोपहर अभिजित मुहूर्त 11:44 से 12:32 में ही घटस्थापना (जौ बोना) अधिक शुभ रहेगा।

प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 25, 2022 को रात्रि 03:23 बजे से।

प्रतिपदा तिथि समाप्त - सितम्बर 27, को रात्रि 03:08 बजे तक।

नवरात्रि की तिथियाँ
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पहला नवरात्र - प्रथमा तिथि 26 सितम्बर 2022, सोमवार, शुक्ल योग माँ शैलपुत्री की उपासना।

दूसरा नवरात्र - द्वितीया तिथि, 27 सितम्बर, मंगलवार, ब्रह्म योग, माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना।

तीसरा नवरात्र - तृतीया तिथि, 28 सितम्बर, बुधवार, वैधृति योग, माँ चंद्रघंटा की उपासना।

चौथा नवरात्र - चतुर्थी तिथि 29 सितम्बर, गुरुवार, विषकुम्भ योग, माँ कुष्मांडा की उपासना।

पांचवां नवरात्र - पंचमी तिथि, 30 सितम्बर, शुक्रवार, प्रीती योग, माँ स्कन्द जी की उपासना।

छठा नवरात्र - षष्ठी तिथि, 1 अक्टूबर , शनिवार, आयुष्य योग, माँ कात्यायनी की उपासना।

सातवां नवरात्र - सप्तमी तिथि, 
2 अक्टूबर, रविवार, सौभाग्य योग, माँ कालरात्रि की उपासना।

आठवां नवरात्र - अष्टमी तिथि, 3 अक्टूबर, सोमवार, शोभन योग, माँ महागौरी की उपासना।

नौवां नवरात्र - नवमी तिथि,4 अक्टूबर, मंगलवार, अतिगण्ड योग माँ सिद्धिदात्री की उपासना।

दशहरा एवं दुर्गा विसर्जन - दशमी तिथि, 5 अक्तूबर 2022, बुधवार।

घट स्थापना एवं दुर्गा पूजन की सामग्री 
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👉 जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र। यह वेदी कहलाती है। 
👉 जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिटटी जिसमे कंकर आदि ना हो।
👉 पात्र में बोने के लिए जौ ( गेहूं भी ले सकते है )
👉 घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश ( सोने, चांदी या तांबे का कलश भी ले सकते है )
👉 कलश में भरने के लिए शुद्ध जल
👉 नर्मदा या गंगाजल या फिर अन्य साफ जल
👉 रोली , मौली
👉 इत्र, पूजा में काम आने वाली साबुत सुपारी, दूर्वा, कलश में रखने के लिए सिक्का ( किसी भी प्रकार का कुछ लोग चांदी या सोने का सिक्का भी रखते है )
👉 पंचरत्न ( हीरा , नीलम , पन्ना , माणक और मोती )
👉 पीपल , बरगद , जामुन , अशोक और आम के पत्ते ( सभी ना मिल पायें तो कोई भी दो प्रकार के पत्ते ले सकते है )
👉 कलश ढकने के लिए ढक्कन ( मिट्टी का या तांबे का )
👉 ढक्कन में रखने के लिए साबुत चावल
👉 नारियल, लाल कपडा, फूल माला
,फल तथा मिठाई, दीपक , धूप , अगरबत्ती

भगवती मंडल स्थापना विधि 
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जिस जगह पुजन करना है उसे एक दिन पहले ही साफ सुथरा कर लें। गौमुत्र गंगाजल का छिड़काव कर पवित्र कर लें।
सबसे पहले गौरी〰️गणेश जी का पुजन करें। 

भगवती का चित्र बीच में उनके दाहिने ओर हनुमान जी और बायीं ओर बटुक भैरव को स्थापित करें। भैरव जी के सामने शिवलिंग और हनुमान जी के बगल में रामदरबार या लक्ष्मीनारायण को रखें। गौरी गणेश चावल के पुंज पर भगवती के समक्ष स्थान दें।
मैं एक चित्र बना कर संलग्न किये दे रहा हूं कि कैसे रखना है सारा चीज। मैं एक एक कर विधि दे रहा हूं। आप बिल्कुल आराम से कर सकेंगे।

दुर्गा पूजन सामग्री
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पंचमेवा पंच​मिठाई रूई कलावा, रोली, सिंदूर, अक्षत, लाल वस्त्र , फूल, 5 सुपारी, लौंग,  पान के पत्ते 5 , घी, कलश, कलश हेतु आम का पल्लव, चौकी, समिधा, हवन कुण्ड, हवन सामग्री, कमल गट्टे, पंचामृत ( दूध, दही, घी, शहद, शर्करा ), फल, बताशे, मिठाईयां, पूजा में बैठने हेतु आसन, हल्दी की गांठ , अगरबत्ती, कुमकुम, इत्र, दीपक, , आरती की थाली. कुशा, रक्त चंदन, श्रीखंड चंदन, जौ, ​तिल, माँ की प्रतिमा, आभूषण व श्रृंगार का सामान, फूल माला।

गणपति पूजन विधि
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किसी भी पूजा में सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती है.हाथ में पुष्प लेकर गणपति का ध्यान करें।

गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्। 
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।

आवाहन:👉  हाथ में अक्षत लेकर
आगच्छ देव देवेश, गौरीपुत्र ​विनायक।
तवपूजा करोमद्य, अत्रतिष्ठ परमेश्वर॥

ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः इहागच्छ इह तिष्ठ कहकर अक्षत गणेश जी पर चढा़ दें। 

हाथ में फूल लेकर ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः आसनं समर्पया​मि, 

अर्घ्य👉 अर्घा में जल लेकर बोलें ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः अर्घ्यं समर्पया​मि, 

आचमनीय-स्नानीयं👉  ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः आचमनीयं समर्पया​मि 

वस्त्र👉  लेकर ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः वस्त्रं समर्पया​मि, 

यज्ञोपवीत👉 ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः यज्ञोपवीतं समर्पया​मि, 

पुनराचमनीयम्👉 दोबारा पात्र में जल छोड़ें। ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः  

रक्त चंदन लगाएं:👉  इदम रक्त चंदनम् लेपनम्  ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः , इसी प्रकार श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं।

इसके पश्चात सिन्दूर चढ़ाएं "इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः, 

दूर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं।
 
पूजन के बाद गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें: ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः इदं नानाविधि नैवेद्यानि समर्पयामि, 

मिष्ठान अर्पित करने के लिए मंत्र👉 शर्करा खण्ड खाद्या​नि द​धि क्षीर घृता​नि च, आहारो भक्ष्य भोज्यं गृह्यतां गणनायक। 

प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें। इदं आचमनीयं ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः 

इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें👉 ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः ताम्बूलं समर्पयामि।

अब फल लेकर गणपति को चढ़ाएं ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः फलं समर्पयामि, 

अब दक्षिणा चढ़ाये ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः द्रव्य दक्षिणां समर्पया​मि, अब ​विषम संख्या में दीपक जलाकर ​निराजन करें और भगवान की आरती गायें। हाथ में फूल लेकर गणेश जी को अर्पित करें, ​फिर तीन प्रद​क्षिणा करें। इसी प्रकार से अन्य सभी देवताओं की पूजा करें। जिस देवता की पूजा करनी हो गणेश के स्थान पर उस देवता का नाम लें।

घट स्थापना एवं दुर्गा पूजन की विधि
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सबसे पहले जौ बोने के लिए एक ऐसा पात्र लें जिसमे कलश रखने के बाद भी आस पास जगह रहे। यह पात्र मिट्टी की थाली जैसा कुछ हो तो श्रेष्ठ होता है। इस पात्र में जौ उगाने के लिए मिट्टी की एक परत बिछा दें। मिट्टी शुद्ध होनी चाहिए । पात्र के बीच में कलश रखने की जगह छोड़कर बीज डाल दें। फिर एक परत मिटटी की बिछा दें। एक बार फिर जौ डालें। फिर से मिट्टी की परत बिछाएं। अब इस पर जल का छिड़काव करें।

कलश तैयार करें। कलश पर स्वस्तिक बनायें। कलश के गले में मौली बांधें। अब कलश को थोड़े गंगा जल और शुद्ध जल से पूरा भर दें। कलश में साबुत सुपारी , फूल और दूर्वा डालें। कलश में इत्र , पंचरत्न तथा सिक्का डालें। अब कलश में पांचों प्रकार के पत्ते डालें। कुछ पत्ते  थोड़े बाहर दिखाई दें इस प्रकार लगाएँ। चारों तरफ पत्ते लगाकर ढ़क्कन लगा दें। इस ढ़क्कन में अक्षत यानि साबुत चावल भर दें।

नारियल तैयार करें। नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर मौली बांध दें। इस नारियल को कलश पर रखें। नारियल का मुँह आपकी तरफ होना चाहिए। यदि नारियल का मुँह ऊपर की तरफ हो तो उसे रोग बढ़ाने वाला माना जाता है। नीचे की तरफ हो तो शत्रु बढ़ाने वाला मानते है , पूर्व की और हो तो धन को नष्ट करने वाला मानते है। नारियल का मुंह वह होता है जहाँ से वह पेड़ से जुड़ा होता है। अब यह कलश जौ उगाने के लिए तैयार किये गये पात्र के बीच में रख दें। अब देवी देवताओं का आह्वान करते हुए प्रार्थना करें कि ” हे समस्त देवी देवता आप सभी नौ दिन के लिए कृपया कलश में विराजमान हों “।

आह्वान करने के बाद ये मानते हुए कि सभी देवता गण कलश में विराजमान है। कलश की पूजा करें। कलश को टीका करें , अक्षत चढ़ाएं , फूल माला अर्पित करें , इत्र अर्पित करें , नैवेद्य यानि फल मिठाई आदि अर्पित करें। घट स्थापना या कलश स्थापना के बाद दुर्गा पूजन शुरू करने से पूर्व चौकी को धोकर माता की चौकी सजायें। आसन बिछाकर गणपति एवं दुर्गा माता की मूर्ति के सम्मुख बैठ जाएं. इसके बाद अपने आपको तथा आसन को इस मंत्र से शुद्धि करें  

"ॐ अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि :॥" 

इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा या पुष्पादि से छींटें लगायें 

कब नीचे दिए मंत्र से आचमन करें - 

ॐ केशवाय नम: ॐ नारायणाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ गो​विन्दाय नम:, 

फिर हाथ धोएं, पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें :-

ॐ पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता। 
त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥ 

शुद्धि और आचमन के बाद चंदन लगाना चाहिए. अनामिका उंगली से श्रीखंड चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें- 

चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्,
आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा।  

दुर्गा पूजन हेतु संकल्प 
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पंचोपचार करने बाद किसी भी पूजन को आरम्भ करने से पहले पूजा की पूर्ण सफलता के लिये संकल्प करना चाहिए. संकल्प में पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, नारियल (पानी वाला), मिठाई, मेवा, आदि सभी सामग्री थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प मंत्र बोलें :

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ॐ अद्य  ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2079, तमेऽब्दे नल नाम संवत्सरे श्रीसूर्य दक्षिणायने दक्षिण गोले शरद ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे आश्विन मासे शुक्ल पक्षे प्र​तिपदायां तिथौ शनि वासरे (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया- श्रुतिस्मृत्योक्तफलप्राप्त्यर्थं मनेप्सित कार्य सिद्धयर्थं श्री दुर्गा पूजनं च अहं क​रिष्ये। तत्पूर्वागंत्वेन ​निर्विघ्नतापूर्वक कार्य ​सिद्धयर्थं यथा​मिलितोपचारे गणप​ति पूजनं क​रिष्ये। 
 
दुर्गा पूजन विधि
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सबसे पहले माता दुर्गा का ध्यान करें-
सर्व मंगल मागंल्ये ​शिवे सर्वार्थ सा​धिके ।
शरण्येत्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते ॥
आवाहन👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दुर्गादेवीमावाहया​मि॥

आसन👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आसानार्थे पुष्पाणि समर्पया​मि॥

अर्घ्य👉  श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। हस्तयो: अर्घ्यं समर्पया​मि॥

आचमन👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आचमनं समर्पया​मि॥

स्नान👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। स्नानार्थं जलं समर्पया​मि॥ 
स्नानांग आचमन- स्नानान्ते पुनराचमनीयं जलं समर्पया​मि।
स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।

पंचामृत स्नान👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। पंचामृतस्नानं समर्पया​मि॥

पंचामृत स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।

गन्धोदक-स्नान👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। गन्धोदकस्नानं समर्पया​मि॥

गंधोदक स्नान (रोली चंदन मिश्रित जल) से कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।

शुद्धोदक स्नान👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। शुद्धोदकस्नानं समर्पया​मि॥
आचमन- शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पया​मि 
शुद्धोदक स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।

वस्त्र👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। वस्त्रं समर्पया​मि ॥ 
वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पया​मि। 
वस्त्र पहनने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।

सौभाग्य सू़त्र👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। सौभाग्य सूत्रं समर्पया​मि ॥
मंगलसूत्र या हार पहनाए।

चन्दन👉  श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। चन्दनं समर्पया​मि ॥
चंदन लगाए

ह​रिद्राचूर्ण👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ह​रिद्रां समर्पया​मि ॥
हल्दी अर्पण करें।

कुंकुम👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। कुंकुम समर्पया​मि ॥ 
कुमकुम अर्पण करें।

​सिन्दूर👉  श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ​सिन्दूरं समर्पया​मि ॥
सिंदूर अर्पण करें।

कज्जल👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। कज्जलं समर्पया​मि ॥
काजल अर्पण करें।

दूर्वाकुंर👉  श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दूर्वाकुंरा​नि समर्पया​मि ॥
दूर्वा चढ़ाए।

आभूषण👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आभूषणा​नि समर्पया​मि ॥
यथासामर्थ्य आभूषण पहनाए।

पुष्पमाला👉  श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। पुष्पमाला समर्पया​मि ॥
फूल माला पहनाए।

धूप👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। धूपमाघ्रापया​मि॥ 
धूप दिखाए।

दीप👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दीपं दर्शया​मि॥ 
दीप दिखाए।

नैवेद्य👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। नैवेद्यं ​निवेदया​मि॥
नैवेद्यान्ते ​त्रिबारं आचमनीय जलं समर्पया​मि।
मिष्ठान भोग लगाएं इसके बाद पात्र में 3 बार आचमन के लिये जल छोड़े।

फल👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। फला​नि समर्पया​मि॥
फल अर्पण करें। इसके बाद एक बार आचमन हेतु जल छोड़े 

ताम्बूल👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ताम्बूलं समर्पया​मि॥
लवंग सुपारी इलाइची सहित पान अर्पण करें।

द​क्षिणा👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। द​क्षिणां समर्पया​मि॥
यथा सामर्थ्य मनोकामना पूर्ति हेतु माँ को दक्षिणा अर्पण करें कामना करें मा ये सब आपका ही है आप ही हमें देती है हम इस योग्य नहीं आपको कुछबड़े सकें।

आरती👉 माँ की आरती करें

जय अंबे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥ ॐ जय…

मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ॥ ॐ जय…

कनक समान कलेवर, रक्तांबर राजै ।
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै ॥ ॐ जय…

केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी ।
सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी ॥ ॐ जय…

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत सम ज्योती ॥ ॐ जय…

शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥ॐ जय…

चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भय दूर करे ॥ॐ जय…

ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥ॐ जय…

चौंसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैंरू ।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू ॥ॐ जय…

तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता ।
भक्तन की दुख हरता, सुख संपति करता ॥ॐ जय…

भुजा चार अति शोभित, वरमुद्रा धारी ।
>मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥ॐ जय…

कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती ॥ॐ जय…

श्री अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे ॥ॐ जय…

श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आरा​र्तिकं समर्पया​मि॥
आरती के बाद आरती पर चारो तरफ जल फिराये।

इसके बाद भूल चुक के लिए क्षमा प्रार्थना करें।

क्षमा प्रार्थना मंत्र
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न मंत्रं नोयंत्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः ।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् ॥1॥ 

विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत् ।
तदेतत्क्षतव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥2॥   
                      
पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः
परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः ।
मदीयोऽयंत्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत् क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥3॥    
                      
जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया ।
तथापित्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदप कुमाता न भवति ॥4॥   
                      
परित्यक्तादेवा विविध​विधिसेवाकुलतया
मया पंचाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि ।
इदानीं चेन्मातस्तव कृपा नापि भविता
निरालम्बो लम्बोदर जननि कं यामि शरण् ॥5॥      
        
श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातंको रंको विहरति चिरं कोटिकनकैः।
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ ॥6॥    
                    
चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कण्ठे भुजगपतहारी पशुपतिः ।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम् ॥7॥   
                         
न मोक्षस्याकांक्षा भवविभव वांछापिचनमे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः ।
अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडाणी रुद्राणी शिवशिव भवानीति जपतः ॥8॥     
                    
नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः
किं रूक्षचिंतन परैर्नकृतं वचोभिः ।
श्यामे त्वमेव यदि किंचन मय्यनाथे
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव ॥9॥  
                                  
आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि ।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथाः
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति ॥10॥ 
                                      
जगदंब विचित्रमत्र किं परिपूर्ण करुणास्ति चिन्मयि ।
अपराधपरंपरावृतं नहि मातासमुपेक्षते सुतम् ॥11॥   
                                                  
मत्समः पातकी नास्तिपापघ्नी त्वत्समा नहि ।
एवं ज्ञात्वा महादेवियथायोग्यं तथा कुरु  ॥12॥

इसके बाद सभी लोग माँ को शाष्टांग प्रणाम कर घर मे सुख समृद्धि की कामना करें प्रशाद बांटे।

विस्तृत वैदिक मंत्रों से पूजन के लिये आगामी पोस्ट देखें।

आचार्य मोरध्वज शर्मा ।।
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश ।।
9648023364
9129998000
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नवरात्री में घट स्थापना संकल्प एवं पूजन विधि।। Ghat establishment resolution and worship method in Navratri ।।

नवरात्री में घट स्थापना संकल्प  एवं पूजन विधि
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संकल्प लिए दाहिने के अंजलि में पान सुपारि जल पुष्प अक्षत  रूपया लेके संकल्प करें ।

संकल्प
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ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु : अद्य ब्रह्मनो $ ह्नि द्वितीय परार्द्धे श्रीश्वेतवाराह कल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे $ अष्टाविंशतीतमे कलयुगे कलिप्रथम् चरणे जम्बूद्विपे  भारतवर्षे भरतखण्डे आर्याव्रतैक देशान्तरगते महाराष्ट्र क्षेत्रे मुंबई नगरे समुद्रतिरे   वरली डाॅक्टर ए वी रोड नेहरू गार्डेन   लोटस अटालिका मध्ये पंच सतह गृह स्थित  शुभकृत सम्वत्सरे दक्षिणायण सूर्ये शरद ऋतौ महामांगल्यप्रद मासोत्तमे मासे पुण्य पवित्रे मासे आश्विन  मासे शुक्ल पक्षे प्रतिपदा तिथौ चित्रा नक्षत्रे ब्रह्म योगे किन्स्तुघ्न करणे सोमवासरे कन्या राशि स्थिते चंद्रे  कन्या  राशि स्थिते सूर्ये मीन राशि स्थिते देव गुरौ शेषेषु ग्रहेषु यथायथा राशिस्थानस्थितेषु सत्सु एवं  ग्रहगुणगण विशेषण विशिष्टायां शुभ पुण्य तिथौ अमुक गोत्र अमुक नाम अहं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त पुण्य फल प्राप्त्यर्थं मम सकुटुम्बस्य ऐश्वर्याभिवृद्ध्यर्थं अप्राप्तलक्ष्मी प्राप्त्यर्थं प्राप्त लक्ष्म्याश्चिर  कालसंरक्षणार्थं सकलमनईप्सित कामनासंसिध्यर्थं लोके वा राजसभायां तद्वारे  वा  राजद्वारे सभायां व्यापारे देशे विदेशे यन्त्रालय मंत्रालय न्यायालय जले वायु मार्गे सर्वत्र यशोविजय लाभादि प्राप्त्यर्थं पुत्रपौत्राद्यंभि वृद्धर्थं  च इह जन्मनिजन्मान्तरे वा सकलदुरितोपशमनार्थं तथा मम सभार्यस्य  सपुत्रस्य सबान्धवस्य अखिल कुटुम्ब सहितस्य   समस्त भय व्याधि जरापीडा मृत्यु परिहार द्वारा आयु आरोग्य ऐश्वर्याभि वृद्धर्थं   आदित्यादि नवग्रहानुकूलता सिद्धयर्थं तथा इन्द्रादिदशदिक्पाल प्रसन्नता सिद्धयर्थं आधि दैविकाधि भौतिक आध्यात्मि  त्रिविध तापोप शमणार्थं कायिक वाचिक मानसिक पाप शमणार्थं धर्मार्थकाममोक्ष चतुर्विध पुरूषार्थ सिद्धयर्थं  मम चलित कार्यं उत्तरोत्तर वृद्धयर्थं नवीन कार्य प्राप्त्यर्थं नवीन उत्साह प्राप्त्यर्थं  सुख समृद्धि शान्ति प्राप्त्यर्थं  अमुक कार्य सिद्धयर्थं श्री दुर्गा प्रीतिकाम:    अमुक गोत्रस्य  अमुक नाम  ब्राह्मण द्वारा  श्रीदुर्गा  पूजन कर्म  एवं श्रीदुर्गासप्तसत्ती पाठं अहं करिष्ये 
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हिन्दू शास्त्रों में किसी भी पूजन से पूर्व, भगवान गणेशजी की आराधना का प्रावधान बताया गया है। माता जी की पूजा में कलश से संबन्धित एक मान्यता है के अनुसार कलश को भगवान श्री गणेश का प्रतिरुप माना गया है। इसलिये सबसे पहले कलश का पूजन किया जाता है। कलश स्थापना करने से पहले पूजा स्थान को गंगा जल से शुद्ध किया जाना चाहिए। पूजा में सभी देवताओं आमंत्रित किया जाता है। कलश में सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी,मुद्रा रखी जाती है। और पांच प्रकार के पत्तों से कलश को सजाया जाता है। इस कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज और जौ बौये जाते है। जिन्हें दशमी की तिथि पर काटा जाता है। माता दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल के मध्य में स्थापित की जाती है।
कलश स्थापना के बाद, गणेश भगवान और माता दुर्गा जी की आरती से, नौ दिनों का व्रत प्रारंभ किया जाता है। कई व्यक्ति पूरे नौ दिन तो यह व्रत नहीं रख पाते हैं किन्तु प्रारंभ में ही यह संकल्प लिया जाता है कि व्रत सभी नौ दिन रखने हैं अथवा नौ में से कुछ ही दिन व्रत रखना है।

कलश / घट स्थापना विधि
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सर्व प्रथम शुद्धि एवं आचमन
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आसनी पर  गणपति एवं दुर्गा माता की मूर्ति केसम्मुख बैठ जाएं ( बिना आसन ,चलते-फिरते, पैर फैलाकर पूजन करना निषेध है )| इसके बाद अपनेआपको तथा आसन को इस मंत्र से शुद्धि करें -

"ॐ अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि :॥"

इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बारकुशा या पुष्पादि से छींटें लगायें फिर आचमन करें –

ॐ केशवाय नम: ॐ नारायणाय नम:, ॐ माधवायनम:, ॐ गो​विन्दाय नम:|

फिर हाथ धोएं, पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें :-

ॐ पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता।

त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥

इसके पश्चात अनामिका उंगली से अपने ललाट पर चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें-

 चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्,
आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा।

द्वितीय स्थान चयन
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नवरात्रि में कलश / घट स्थापना के लिए सर्वप्रथम प्रातः काल नित्य क्रिया से निवृत होने के बाद स्नान करके, नव वस्त्र अथवा स्वच्छ वस्त्र पहन कर ही विधिपूर्वक पूजा आरम्भ करनी चाहिए। प्रथम पूजा के दिन मुहूर्त (सूर्योदय के साथ अथवा द्विस्वभाव लग्न में  कलश स्थापना करना चाहिए।
कलश स्थापना के लिए अपने घर के उस स्थान को चुनना चाहिए जो पवित्र स्थान हो अर्थात घर में मंदिर के सामने या निकट या मंदिर के पास।  यदि इस स्थान में पूजा करने में दिक्कत हो तो घर में ही ईशान कोण अथवा उत्तर-पूर्व दिशा में, एक स्थान का चयन कर ले तथा उसे गंगा जल से शुद्ध कर ले।

जौ पात्र का प्रयोग
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सर्वप्रथम जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र लेना चाहिए । इस पात्र में मिट्टी की एक अथवा दो परत बिछा ले । इसके बाद जौ बिछा लेना चाहिए। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब पुनः एक परत जौ की बिछा ले । जौ को इस तरह चारों तरफ बिछाएं ताकि जौ कलश के नीचे पूरी तरह से न दबे। इसके ऊपर पुनः मिट्टी की एक परत बिछाएं।

कलश स्थापना
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पुनः कलश में रोली से स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर गले में तीन धागावाली मौली लपेटे और कलश को एक ओर रख ले। कलश स्थापित किये जानेवाली भूमि अथवा चौकी पर कुंकुंम या रोली से अष्टदलकमल बनाकर निम्न मंत्र से भूमि का स्पर्श करना चाहिए।

ॐ भूरसि भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धरत्री।
पृथिवीं यच्छ पृथिवीं द्रीं ह पृथिवीं मा हि सीः।।

कलश स्थापन मंत्र 
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ॐ आ जिघ्न कलशं मह्यं त्वा विशंतिवन्दवः।
पुनरूर्जा नि वर्तस्व सा नह सहत्रम् धुक्ष्वोरूधारा पयस्वती पुनर्मा विशताद्रयिः।।

पुनः इस मंत्रोच्चारण के बाद  कलश में गंगाजल मिला हुआ जल छोड़े उसके बाद क्रमशः चन्दन,  सर्वौषधि(मुरा,चम्पक, मुस्ता, वच, कुष्ठ, शिलाजीत, हल्दी, सठी)  दूब, पवित्री, सप्तमृत्तिका, सुपारी, पञ्चरत्न, द्रव्य कलश में अर्पित करे। पुनःपंचपल्लव(बरगद,गूलर,पीपल,पाकड़,आम) कलश के मुख पर रखें।अनन्तर कलश को वस्त्र से अलंकृत करें। तत्पश्चात चावल से भरे पूर्णपात्र को कलश के मुख पर स्थापित करें।

कलश पर नारियल की स्थापना
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इसके बाद नारियल पर लाल कपडा लपेट  ले उसके बाद मोली लपेट दें। अब नारियल को कलश पर रख दे । नारियल के सम्बन्ध में शास्त्रों में कहा गया है:
 
“अधोमुखं शत्रु विवर्धनाय,ऊर्ध्वस्य वस्त्रं बहुरोग वृध्यै।
प्राचीमुखं वित विनाशनाय,तस्तमात् शुभं संमुख्यं नारीकेलं”।

अर्थात् नारियल का मुख नीचे की तरफ रखने से शत्रु में वृद्धि होती है ।नारियल का मुख ऊपर की तरफ रखने से रोग बढ़ते हैं। पूर्व की तरफ नारियल का मुख रखने से धन का विनाश होता है। इसलिए नारियल की स्थापना  के समय हमेशा इस बात का ध्यान रखनी चाहिए कि उसका मुख साधक की तरफ रहे। ध्यान रहे कि नारियल का मुख उस सिरे पर होता है, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है।

देवी-देवताओं का कलश में आवाहन
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भक्त को अपने दाहिने हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरुण आदि देवी-देवताओ का ध्यान और आवाहन करना चाहिए –
 ॐ भूर्भुवःस्वःभो वरुण! इहागच्छ, इह तिष्ठ, स्थापयामि, पूजयामि, मम पूजां गृहाण।ओम अपां पतये वरुणाय नमः बोलकर अक्षत और पुष्प कलश पर छोड़ देना चाहिए। पुनः दाहिने हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर चारो वेद, तीर्थो, नदियों, सागरों, देवी और देवताओ के आवाहन करना चाहिए उसके बाद फिर अक्षत और पुष्प लेकर कलश की प्रतिष्ठा करें।

कलशे वरुणाद्यावाहितदेवताः सुप्रतिष्ठता वरदा भवन्तु।

तथा 

ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः  इस मंत्र के उच्चारण के साथ ही अक्षत और पुष्प कलश के पास छोड़ दे।

वरुण आदि देवताओ को —

ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमःध्यानार्थे पुष्पं समर्पयामि।

आदि मंत्र का उच्चारण करते हुए पुष्प समर्पित करे पुनः निम्न क्रम से वरुण आदि देवताओ को अक्षत रखे, जल चढ़ाये, स्नानीय जल, आचमनीय जल चढ़ाये, पंच्चामृत स्नान कराये,जल में मलय चन्दन मिलाकर स्नान कराये, शुद्ध जल से स्नान कराये, आचमनीय जल चढ़ाये, वस्त्र चढ़ाये, यज्ञोपवीत चढ़ाये, उपवस्त्र चढ़ाये, चन्दन लगाये, अक्षत समर्पित करे, फूल और फूलमाला चढ़ाये, द्रव्य समर्पित करे ,इत्र आदि चढ़ाये, दीप दिखाए, नैवेद्य चढ़ाये, सुपारी, इलायची, लौंग सहित पान चढ़ाये, द्रव्य-दक्षिणा चढ़ाये(समर्पयामि) इसके बाद आरती करे। पुनः पुस्पाञ्जलि समर्पित करे, प्रदक्षिणा करे तथा दाहिने हाथ में पुष्प लेकर प्रार्थना करे और अन्त में

ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, प्रार्थनापूर्वकं अहं  नमस्कारान समर्पयामि।
इस मंत्र से नमस्कारपूर्वक फूल समर्पित करे। पुनः हाथ में जल लेकर अधोलिखित वाक्य का उच्चारण कर जल कलश के पास छोड़ते हुए समस्त पूजन-कर्म वरुणदेव को निवेदित करना चाहिए।
कृतेन अनेन पूजनेन कलशे वरुणाद्यावाहितदेवताः प्रीयन्तां न मम।

अखंड ज्योति
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नवरात्री के प्रथम दिन ही अखंड ज्योति जलाई जाती है जो नौ दिन तक निरंतर जलती रहती है। अखंड ज्योति का बीच में बुझना अच्छा नही माना जाता है।  अतः इस बात का अवश्य ही धयान रखना चाहिए की अखंड ज्योति न बुझे।

देवी पूजन सामग्री
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माँ दुर्गा की सुन्दर प्रतिमा, माता की प्रतिमा स्थापना के लिए चौकी, लाल वस्त्र , कलश/ घाट , नारियल का फल, पांच पल्लव आम का, फूल,अक्षत, मौली, रोली, पूजा के लिए थाली , धुप और दशांग, गंगा का जल, कुमकुम, गुलाल पान,सुपारी, चौकी,दीप, नैवेद्य,कच्चा धागा, दुर्गा सप्तसती किताब ,चुनरी, पैसा, माता दुर्गा की विशेष कृपा हेतु संकल्प तथा षोडशोपचार पूजन करने के बाद, प्रथम प्रतिपदा तिथि को, नैवेद्य के रूप में गाय का घी माता को अर्पित करना चाहिए तथा पुनः वह घी किसी ब्राह्मण को दे देना चाहिए।

देवी पूजन विधि 
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 शारदीय नवरात्रि का दिन स्वयं सिद्धि मुहूर्त में आता है इसलिये इस दिन घट स्थापना एवं देवी पूजन के लिये पञ्चाङ्ग शुद्धि (मुहूर्त देखने की) आवश्यकता नही होती।

नवरात्रके प्रथम दिन कलश (घट) की स्थापना के समय देवी का आवाहन एवं पूजन इस प्रकार करें।
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दुर्गा पूजन से पहले गणेश पूजन -

हाथ में पुष्प लेकर गणपति का ध्यान करें|और श्लोकपढें -
 गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बूफलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामिविघ्नेश्वरपादपंकजम्।

आवाहन: हाथ में अक्षत लेकर
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     आगच्छ देव देवेश, गौरीपुत्र ​विनायक।
     तवपूजा करोमद्य, अत्रतिष्ठ परमेश्वर॥

ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः इहागच्छ इह तिष्ठकहकर अक्षत गणेश जी पर चढा़ दें।

हाथ में फूल लेकर-ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः आसनं समर्पया​मि|

अर्घा में जल लेकर बोलें -ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः अर्घ्यं समर्पया​मि|

आचमनीय-स्नानीयं-ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः आचमनीयं समर्पया​मि |

 वस्त्र लेकर-ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः वस्त्रं समर्पया​मि|

यज्ञोपवीत-ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः यज्ञोपवीतं समर्पया​मि |

पुनराचमनीयम्-ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः |

रक्त चंदन लगाएं: इदम रक्त चंदनम् लेपनम् ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः |

श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं|

सिन्दूर चढ़ाएं-

"इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः|

दूर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं|
पूजन के बाद गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें:

ॐ श्री ​सिद्धि विनायकाय नमः इदं नानाविधिनैवेद्यानि समर्पयामि |

मिष्ठान अर्पित करने के लिए मंत्र बोलें

शर्करा खण्ड खाद्या​नि द​धि क्षीर घृता​नि च|
आहारो भक्ष्य भोज्यं गृह्यतां गणनायक।

प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें- इदं आचमनीयं ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः|

इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें-

ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः ताम्बूलं समर्पया​मि |

अब फल लेकर गणपति पर चढ़ाएं-
          ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः फलं समर्पया​मि|

            ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः द्रव्य समर्पया​मि|

 अब ​विषम संख्या में दीपक जलाकर ​निराजन करेंऔर भगवान की आरती गायें।

 हाथ में फूल लेकर गणेश जी को अ​र्पित करें, ​फिर तीन प्रद​क्षिणा करें।

दुर्गा पूजन
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सबसे पहले माता दुर्गा का ध्यान करें

     सर्व मंगल मागंल्ये ​शिवे सर्वार्थ सा​धिके ।
 शरण्येत्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते ॥

 आवाहन-
         श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दुर्गादेवीमावाहया​मि॥

 आसन- 
        श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आसानार्थेपुष्पाणि समर्पया​मि।

अर्घ्य-
       श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। हस्तयो: अर्घ्यंसमर्पया​मि॥

आचमन-
       श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आचमनं समर्पया​मि॥

स्नान-
       श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। स्नानार्थं जलंसमर्पया​मि॥

स्नानांग आचमन-
       स्नानान्ते पुनराचमनीयं जलं समर्पया​मि।

पंचामृत स्नान-
      श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। पंचामृतस्नानंसमर्पया​मि॥

गन्धोदक-स्नान-
      श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। गन्धोदकस्नानंसमर्पया​मि॥

शुद्धोदक स्नान-
      श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। शुद्धोदकस्नानंसमर्पया​मि॥

आचमन-  शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पया​मि।

वस्त्र-
       श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। वस्त्रं समर्पया​मि ॥वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पया​मि।

सौभाग्य सू़त्र-
       श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। सौभाग्य सूत्रंसमर्पया​मि ॥

चन्दन-
        श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। चन्दनं समर्पया​मि॥

ह​रिद्राचूर्ण-
        श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ह​रिद्रां समर्पया​मि॥

कुंकुम-
        श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। कुंकुम समर्पया​मि॥

​सिन्दूर-
         श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ​सिन्दूरं समर्पया​मि॥

कज्जल-
         श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। कज्जलं समर्पया​मि।

आभूषण-
         श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आभूषणा​निसमर्पया​मि ॥

पुष्पमाला-
        श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। पुष्पमाला समर्पया​मि ॥

धूप-
        श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। धूपमाघ्रापया​मि॥

दीप-
        श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दीपं दर्शया​मि॥

नैवेद्य-
        श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। नैवेद्यं ​निवेदया​मि॥नैवेद्यान्ते ​त्रिबारं आचमनीय जलं समर्पया​मि।

फल-
         श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। फला​नि समर्पया​मि॥

ताम्बूल-
        श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ताम्बूलं समर्पया​मि॥

द​क्षिणा-
          श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। द्रव्यद​क्षिणां समर्पया​मि॥

आरती-

          श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आरा​र्तिकंसमर्पया​मि॥

प्रदक्षिणा
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“यानि कानि च पापानी जन्मान्तर कृतानि च।
तानी सर्वानि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे॥
प्रदक्षिणा समर्पयामि।“

प्रदक्षिणा करें (अगर स्थान न हो तो आसन पर खड़े-खड़े ही स्थान पर घूमे)

क्षमा प्रार्थना
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न मंत्रं नोयंत्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः ।

न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् ॥

विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत् ।

तदेतत्क्षतव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥

पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः
परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः ।

मदीयोऽयंत्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत् क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥

जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया ।

तथापित्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदप कुमाता न भवति ॥

परित्यक्तादेवा विविध​विधिसेवाकुलतया
मया पंचाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि ।

इदानीं चेन्मातस्तव कृपा नापि भविता
निरालम्बो लम्बोदर जननि कं यामि शरण् ॥

श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातंको रंको विहरति चिरं कोटिकनकैः ।

तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ ॥

चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कण्ठे भुजगपतहारी पशुपतिः ।

कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम् ॥

न मोक्षस्याकांक्षा भवविभव वांछापिचनमे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः ।

अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडाणी रुद्राणी शिवशिव भवानीति जपतः ॥

नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः
किं रूक्षचिंतन परैर्नकृतं वचोभिः ।
श्यामे त्वमेव यदि किंचन मय्यनाथे
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव ॥

आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि ।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथाः
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति ॥

जगदंब विचित्रमत्र किं परिपूर्ण करुणास्ति चिन्मयि ।
अपराधपरंपरावृतं नहि मातासमुपेक्षते सुतम् ॥

मत्समः पातकी नास्तिपापघ्नी त्वत्समा नहि।
वं ज्ञात्वा महादेवियथायोग्यं तथा कुरु ॥

इसके बाद थाली में दीपक पुष्प सजाकर माँ की आरती करें

दुर्गा जी की आरती (1)
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जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय!
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय। जगजननी ..

तू ही सत्-चित्-सुखमय, शुद्ध ब्रह्मरूपा।
सत्य सनातन, सुन्दर, पर-शिव सुर-भूपा॥ जगजननी ..

आदि अनादि, अनामय, अविचल, अविनाशी।
अमल, अनन्त, अगोचर, अज आनन्दराशी॥ जगजननी ..

अविकारी, अघहारी, अकल कलाधारी।
कर्ता विधि, भर्ता हरि, हर संहारकारी॥ जगजननी ..

तू विधिवधू, रमा, तू उमा महामाया।
मूल प्रकृति, विद्या तू, तू जननी जाया॥ जगजननी ..

राम, कृष्ण तू, सीता, ब्रजरानी राधा।
तू वाँछाकल्पद्रुम, हारिणि सब बाघा॥ जगजननी ..

दश विद्या, नव दुर्गा नाना शस्त्रकरा।
अष्टमातृका, योगिनि, नव-नव रूप धरा॥ जगजननी ..

तू परधामनिवासिनि, महाविलासिनि तू।
तू ही श्मशानविहारिणि, ताण्डवलासिनि तू॥ जगजननी ..

सुर-मुनि मोहिनि सौम्या, तू शोभाधारा।
विवसन विकट सरुपा, प्रलयमयी, धारा॥ जगजननी ..

तू ही स्नेहसुधामयी, तू अति गरलमना।
रत्नविभूषित तू ही, तू ही अस्थि तना॥ जगजननी ..

मूलाधार निवासिनि, इह-पर सिद्धिप्रदे।
कालातीता काली, कमला तू वरदे॥ जगजननी ..

शक्ति शक्तिधर तू ही, नित्य अभेदमयी।
भेद प्रदर्शिनि वाणी विमले! वेदत्रयी॥ जगजननी ..

हम अति दीन दु:खी माँ! विपत जाल घेरे।
हैं कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे॥ जगजननी ..

निज स्वभाववश जननी! दयादृष्टि कीजै।
करुणा कर करुणामयी! चरण शरण दीजै॥ जगजननी ....

 दुर्गा जी की आरती (2)
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जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा गौरी ।
                      तुमको निशदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवरी ।।जय अम्बे गौरी...                           

मांग सिन्दूर विराजत टीको मृ्ग मद को ।
 उच्चवल से दोऊ नैना चन्द्र बदन नीको। जय अम्बे गौरी...

कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
 रक्त पुष्प गलमाला कंठन पर साजै।।जय अम्बे गौरी...

केहरि वाहन राजत खडग खप्पर थारी
 सुर नर मुनि जन सेवत तिनके दु:ख हारी।।जय अम्बे गौरी..

कानन कुण्डली शोभित नाशाग्रे मोती ।।
कोटिक चन्द्र दिवाकर राजत सम ज्योति।।जय अम्बे गौरी...

शुम्भ निशुम्भ विदारे महिषासुर घाती ।
घूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ।।जय अम्बे गौरी...

चौंसठ योगिन गावन नृ्त्य करत भैरूं ।
बाजत ताल मृ्दंगा अरू बाजत डमरू।।जय अम्बे गौरी...

भुजा चार अति शोभित खडग खप्पर धारी ।
मन वांछित फल पावत सेवत नर नारी ।।जय अम्बे गौरी...

कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रत्न ज्योति।।जय अम्बे गौरी...

श्री अम्बे की आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पति पावै।। जय अम्बे गौरी...

आरती के बाद माँ को शाष्टांग प्रणाम कर प्रसाद को बांट दें। भक्त प्राय: पूरे नवरात्र उपवास रखते हैं. सम्पूर्ण नवरात्रव्रत के पालन में असमर्थ लोगों के लिए सप्तरात्र,पंचरात्र,युग्मरात्र और एकरात्रव्रत का विधान भी है. प्रतिपदा से सप्तमी तक उपवास रखने से सप्तरात्र-व्रत का अनुष्ठान होता है.
अष्टमी के दिन माता को हलुवा और चने का भोग लगाकर कुंवारी कन्याओं को खिलाते हैं तथा अन्त में स्वयं प्रसाद ग्रहण करके व्रत का पारण (पूर्ण) करते हैं.
नवरात्रके नौ दिन साधना करने वाले साधक प्रतिपदा तिथि के दिन शैलपुत्री की, द्वितीया में ब्रह्मचारिणी, तृतीया में चंद्रघण्टा, चतुर्थी में कूष्माण्डा, पंचमी में स्कन्दमाता, षष्ठी में कात्यायनी, सप्तमी में कालरात्रि, अष्टमी में महागौरी तथा नवमी में सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं. तथा दुर्गा जी के १०८ नामों को मंत्र रूप में उसका अधिकाधिक जप करें।

विशेष👉 
यह पूजन विधि जिन साधको को वैदिक मंत्रों का ज्ञान नही है अथवा जिनके पास पूजा के लिये उपयुक्त समय नही है उनकी भावनाओं एवं यहाँ शब्द सीमा को ध्यान में रखकर बनाई गई है विस्तृत वैदिक मंत्रों से पूजन विधि जिसे आवश्यकता हो उसे व्यक्तिगत रूप से बतायी जाएगी।

आचार्य मोरध्वज शर्मा ।।
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश।। 
9648023364 
9129998000
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24 जुलाई 2022

कामिका एकादशी 24 जुलाई विशेष


कामिका एकादशी 24 जुलाई विशेष
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सभी प्रमुख एकादशियों में कामिका एकादशी का काफी महत्व माना जाता है। इस एकादशी को भाव पूर्ण व्रत और पूजा-विधि के द्वारा करने पर प्रभाव से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। कामिका एकादशी श्रावण (सावन) कृष्ण एकादशी को पड़ती है। इस महीने कामिका एकादशी आज रविवार को पड़ रही है। 

कामिका एकादशी महात्म्य एवं कथा
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कुंतीपुत्र धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन, आषाढ़ शुक्ल देवशयनी एकादशी तथा चातुर्मास्य माहात्म्य मैंने भली प्रकार से सुना। अब कृपा करके श्रावण कृष्ण एकादशी का क्या नाम है, सो बताइए। 

श्रीकृष्ण भगवान कहने लगे कि हे युधिष्ठिर! इस एकादशी की कथा एक समय स्वयं ब्रह्माजी ने देवर्षि नारद से कही थी, वही मैं तुमसे कहता हूँ। नारदजी ने ब्रह्माजी से पूछा था कि हे पितामह! श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनने की मेरी इच्छा है, उसका क्या नाम है? क्या विधि है और उसका माहात्म्य क्या है, सो कृपा करके कहिए। 

नारदजी के ये वचन सुनकर ब्रह्माजी ने कहा- हे नारद! लोकों के हित के लिए तुमने बहुत सुंदर प्रश्न किया है। श्रावण मास की कृष्ण एकादशी का नाम कामिका है। उसके सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। इस दिन शंख, चक्र, गदाधारी विष्णु भगवान का पूजन होता है, जिनके नाम श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव, मधुसूदन हैं। उनकी पूजा करने से जो फल मिलता है सो सुनो। 

जो फल गंगा, काशी, नैमिषारण्य और पुष्कर स्नान से मिलता है, वह विष्णु भगवान के पूजन से मिलता है। जो फल सूर्य व चंद्र ग्रहण पर कुरुक्षेत्र और काशी में स्नान करने से, समुद्र, वन सहित पृथ्वी दान करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोदावरी और गंडकी नदी में स्नान से भी प्राप्त नहीं होता वह भगवान विष्णु के पूजन से मिलता है। 

जो मनुष्य श्रावण में भगवान का पूजन करते हैं, उनसे देवता, गंधर्व और सूर्य आदि सब पूजित हो जाते हैं। अत: पापों से डरने वाले मनुष्यों को कामिका एकादशी का व्रत और विष्णु भगवान का पूजन अवश्यमेव करना चाहिए। पापरूपी कीचड़ में फँसे हुए और संसाररूपी समुद्र में डूबे मनुष्यों के लिए इस एकादशी का व्रत और भगवान विष्णु का पूजन अत्यंत आवश्यक है। इससे बढ़कर पापों के नाशों का कोई उपाय नहीं है। 

हे नारद! स्वयं भगवान ने यही कहा है कि कामिका व्रत से जीव कुयोनि को प्राप्त नहीं होता। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन भक्तिपूर्वक तुलसी दल भगवान विष्णु को अर्पण करते हैं, वे इस संसार के समस्त पापों से दूर रहते हैं। विष्णु भगवान रत्न, मोती, मणि तथा आभूषण आदि से इतने प्रसन्न नहीं होते जितने तुलसी दल से। 

तुलसी दल पूजन का फल चार भार चाँदी और एक भार स्वर्ण के दान के बराबर होता है। हे नारद! मैं स्वयं भगवान की अतिप्रिय तुलसी को सदैव नमस्कार करता हूँ। तुलसी के पौधे को सींचने से मनुष्य की सब यातनाएँ नष्ट हो जाती हैं। दर्शन मात्र से सब पाप नष्ट हो जाते हैं और स्पर्श से मनुष्य पवित्र हो जाता है। 

कामिका एकादशी की रात्रि को दीपदान तथा जागरण के फल का माहात्म्य चित्रगुप्त भी नहीं कह सकते। जो इस एकादशी की रात्रि को भगवान के मंदिर में दीपक जलाते हैं उनके पितर स्वर्गलोक में अमृतपान करते हैं तथा जो घी या तेल का दीपक जलाते हैं, वे सौ करोड़ दीपकों से प्रकाशित होकर सूर्य लोक को जाते हैं। 

ब्रह्माजी कहते हैं कि हे नारद! ब्रह्महत्या तथा भ्रूण हत्या आदि पापों को नष्ट करने वाली इस कामिका एकादशी का व्रत मनुष्य को यत्न के साथ करना चाहिए। कामिका एकादशी के व्रत का महात्म्य श्रद्धा से सुनने और पढ़ने वाला मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को जाता है।

प्रचलित कथा
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युधिष्ठिर के आग्रह पर श्रीकृष्ण ने कहा, राजन सुनों मैं तुम्हें कथा सुनाता हूं।

एक नगर में एक ठेठ ठाकुर और एक ब्राह्मण रहते थे। दोनों की एक दूसरे से बनती नहीं थी। आपसी झगड़े के कारण ठाकुर ने ब्राह्मण को मार डाला. इस पर नाराज ब्राह्मणों ने ठाकुर के घर खाना खाने से मना कर दिया। ठाकुर अकेला पड़ गया और वह खुद को दोषी मानने लगा ठाकुर को अपनी गलती महसूस हुई और उसने एक मुनी से अपने पापों का निवारण करने का तरीका पूछा इस पर, मुनी ने उन्हें कमिका एकदशी का उपवास करने के लिए कहा।

ठाकुर ने ऐसा ही किया। ठाकुर ने व्रत करना शुरू कर दिया। एक दिन कामिका एकादशी के दिन जब ठाकुर भगवान की मूर्ति के निकट सोते हुए एक सपना देखा, भगवान ने उसे बताया, “ठाकुर, सभी पापों को हटा दिया गया है और अब आप ब्राह्मण हटिया के पाप से मुक्त हैं”। इसलिए, इस एकादशी को आध्यात्मिक साधकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह चेतना से सभी नकारात्मकता को नष्ट करता है और मन और हृदय को दिव्य प्रकाश से भर देता है।

अन्य प्रचलित कथा
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एक गांव में एक वीर श्रत्रिय रहता था। एक दिन किसी कारण वश उसकी ब्राहमण से हाथापाई हो गई और ब्राहमण की मृत्य हो गई। अपने हाथों मरे गये ब्राहमण की क्रिया उस श्रत्रिय ने करनी चाही। परन्तु पंडितों ने उसे क्रिया में शामिल होने से मना कर दिया। ब्राहमणों ने बताया कि तुम पर ब्रहम हत्या का दोष है। पहले प्रायश्चित कर इस पाप से मुक्त हो तब हम तुम्हारे घर भोजन करेंगे।

इस पर श्रत्रिय ने पूछा कि इस पाप से मुक्त होने के क्या उपाय है। तब ब्राहमणों ने बताया कि श्रावण माह के कृष्ण पश्र की एकादशी को भक्तिभाव से भगवान श्रीधर का व्रत एवं पूजन कर ब्राहमणों को भोजन कराके सदश्रिणा के साथ आशीर्वाद प्राप्त करने से इस पाप से मुक्ति मिलेगी। पंडितों के बताये हुए तरीके पर व्रत कराने वाली रात में भगवान श्रीधर ने श्रत्रिय को दर्शन देकर कहा कि तुम्हें ब्रहम हत्या के पाप से मुक्ति मिल गई है।

कामिका एकादशी पूजा-विधि 
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एकादशी के दिन स्नानादि से पवित्र होने के पश्चात् पूजा का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद श्री विष्णु के विग्रह का पूजन करना चाहिए। भगवान विष्णु को फूल, फल, तिल, दूध, पंचामृत आदि पदार्थ निवेदित करके, आठों प्रहर निर्जल रहकर विष्णु जी के नाम का स्मरण और संकीर्तन करना चाहिए।

एकादशी व्रत में ब्राह्मण भोजन एवं दक्षिणा का बड़ा ही महत्व है। इसलिए ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करने के बाद ही भोजन ग्रहण करना शुभ माना गया है। इस प्रकार जो कामिका एकादशी का व्रत रखता है उसकी कामनाएं पूर्ण होती हैं।

पूजा के लिये आवश्यक सामग्री
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श्री विष्णु जी की मूर्ति 
वस्त्र
पुष्प
पुष्पमाला
नारियल 
सुपारी
अन्य ऋतुफल
धूप
दीप
घी
पंचामृत (दूध(कच्चा दूध),दही,घी,शहद और शक्कर का मिश्रण)
अक्षत
तुलसी दल
चंदन
मिष्ठान आदि।

कामिका एकादशी तिथि और शुभ मुहूर्त
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एकादशी तिथि प्रारम्भ 👉 जुलाई 23, को 11:27 बजे से ।

एकादशी तिथि समाप्त 👉 जुलाई 24, को 13:45 बजे तक।

कामदा एकादशी पारण 25 जुलाई समय प्रातः 05:31 से 08:16 तक रहेगा।

पारण विधि 
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द्वादशी के दिन घर पर ब्राह्मण को बुलाएं और उन्हें खाना खिलाएं और सामर्थ्य अनुसार उन्हें दान दक्षिणा दें। उसके बाद स्वयंं पारण करें. ध्यान रहे कि पारण के समय के दौरान ही पारण किया जाना चाहिए। अगर ब्राह्मण को घर बुलाकर भोजन कराने का सामर्थ्य नहीं है तो आप एक व्यक्ति के भोजन के बराबर अनाज किसी गरीब को या मंदिर में दान कर दें। यह भी आपको उतना ही फल प्रदान करेगा।

भगवान जगदीश्वर जी की आरती
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"ओम जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे !!

जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का, सुख-सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का !!

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी, तुम बिन और न दूजा, आस करूँ मैं जिसकी !!

तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी, पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी !!

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता, मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता !!

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति, किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति !!

दीनबंधु दुःखहर्ता, तुम रक्षक मेरे, करुणा हस्त बढ़ाओ, द्वार पडा तेरे !!

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा, श्रद्धा विवेक बढाओ, संतन की सेवा !!

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे

आचार्य मोरध्वज शर्मा 
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश।। 
9648023364
9129998000
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कामदा एकादशी व्रत 19-04-2024

☀️ *लेख:- कामदा एकादशी, भाग-1 (19.04.2024)* *एकादशी तिथि आरंभ:- 18 अप्रैल 5:31 pm* *एकादशी तिथि समाप्त:- 19 अप्रैल 8:04 pm* *काम...