लेख:- वटसावित्री व्रत(अमावस्या पक्ष) सोमवार, 30 मई, 2022
मुहूर्त:-
अमावस्या तिथि आरंभ:- 29 मई- 2:54 pm
अमावस्या तिथि समाप्त:-30 मई- 4:59 pm
वट सावित्री व्रत हिन्दू धर्म का महत्वपूर्ण व्रत है। इस व्रत को विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु एवं सुखी जीवन के लिए रखती हैं। हिन्दू धर्म मे ऐसी मान्यता है कि, जो महिलाएं वट सावित्री व्रत का पालन सच्चे मन से करती हैं, उनके व्रत के पुण्य प्रभाव से उनके पति की आयु की रक्षा तथा वृद्धि होती है। अतः सनातन काल से ही भारतीय महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और सुखद वैवाहिक जीवन के लिए व्रत-उपवास का पालन करती रही हैं।
वटसावित्री का व्रत मुख्यतः सौभाग्यवती महिलाएं करती है, परंतु आधुनिक काल मे कुंवारी, विवाहित तथा सुपुत्रा सभी महिलाएं यह व्रत करनें लगी है।
हिन्दू धर्म मे मतांतर से ज्येष्ठ मास की अमावस्या या ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को यह व्रत किया जाता है । मुख्यतः उत्तर भारत मे यह पर्व ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है, जबकि महाराष्ट्र, गुजरात तथा दक्षिण भारत में यह पर्व ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है ।
निर्णयामृतादि के अनुसार यह वटसावित्री का व्रत ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को करने का विधान है। सन् 2022 मे यह व्रत 30 मई, सोमवार के दिन मनाया जायेगा। इस वर्ष वट सावित्री व्रत के दिन ही सोमवती अमावस्या व्रत का संयोग बन रहा है। अतः इसी दिन सोमवती अमावस्या का भी व्रत किया जाएगा। (सोमवार के दिन पढ़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहा जाता है) इन
दोनों व्रतों में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। ऐसे में "वटसावित्री तथा सोमवती अमावस्या" के संयोग में व्रत का फल कई गुना बढ़ जाता है।
तिथियों में भिन्नता होते हुए भी व्रत का उद्देश्य एक ही है, "सौभाग्य की वृद्धि और पतिव्रत के संस्कारों को मानना-उसका पालन करना"। वटसावित्री व्रत को मनाये जाने के दो विभिन्न मत हैं, उनमे एक मत के अनुसार, ज्येष्ठ मास की त्रयोदशी से अमावस्या तक तीन दिनों तक व्रत रखा जाता हैं। दूसरे मत के अनुसार शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से पूर्णिमा तक यह व्रत किया जाता है। विष्णु उपासक इस व्रत को पूर्णिमा को करना ज्यादा हितकर मानते हैं।
परंतु स्कन्दपुराण व भविष्य पुराण के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को किया जाता है । जोकि इस वर्ष 14 जून को है। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि से यह पर्व शुरू हो जाता है । क्योकि कथा के अनुसार सावित्री ने पूर्णिमा से तीन दिन पहले ही व्रत शुरू कर दिया था।
(वर्तमान काल मे मुख्यतः अमावस्या को ही इस व्रत का नियोजन होता है।)
इसमें सत्यवान, सावित्री तथा यमराज की पूजा की जाती है। इस व्रत को रखने वाली महिलाओं का सुहाग अटल रहता है। ऐसी मान्यता है कि सावित्री ने इसी व्रत के प्रभाव से अपने मृत पति सत्यवान को धर्मराज से भी जीत लिया था।
वट सावित्री व्रत में 'वट' और 'सावित्री' दोनों का विशिष्ट महत्व माना गया है। पीपल की तरह वट या बरगद के पेड़ का भी विशेष महत्व है। पाराशर मुनि के अनुसार- 'वट मूले तोपवासा' ऐसा कहा गया है। पुराणों में यह स्पष्ट किया गया है कि वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से मनोकामना पूरी होती है। वट वृक्ष अपनी विशालता के लिए भी प्रसिद्ध है।
पूजा/व्रत की प्रथम विधि:-
इस व्रत के तीन दिन पूर्व ( त्रयोदशी तिथि को ) एक लकड़ी के पाटे पर, या बांस की टोकरी मे लाल कपड़ा बिछा कर प्रतीक रूप में शुद्ध मिट्टी से ब्रह्म जी की प्रतिमा, और इनके बाईंं ओर सावित्री, सत्यवान तथा भैंसे पर सवार यमराज की प्रतिमा बना कर स्थापित करनी चाहिए । (वर्तमान काल मे अमावस्या को ही इस पूजा/व्रत की शुरुआत या नियोजन होता है।)
अतः व्रत के दिन प्रात: काल वट वृक्ष की एक डाल लाकर किसी मिट्टी के गमले में लगाएं तथा प्रतिमाओं को उसी गमले की छाया में रख कर उनका पूजन जल, चंदन, रोली, अक्षत पुष्प, फल धूप-दीप आदि से करे ।
या फिर व्रत के दिन इस टोकरी को प्रतिमाओं के साथ बरगद के वृक्ष के नीचे रखकर उनका पूजन जल, चंदन, रोली, अक्षत पुष्प, फल धूप-दीप आदि से करे ।
पूजन करने के उपरांत निम्नलिखित दो मंत्रो का जाप किया जा सकता है ।
मंत्र:-
।। सती सावित्राय नम: ।।
।। यम धर्मराजाय नम: ।।
मंत्र का जप एक माला करें। फिर कच्चे सूत या मौली को बरगद वृक्ष की डाली में बांधने के उपरांत वृक्ष के गिर्द सात फेरे लेकर सावित्री-सत्यवान कथा करे।
पूजन समाप्त होने के बाद वस्त्र, फल आदि का बांस की टोकरी या पत्तों में रखकर दान करना चाहिए और चने का प्रसाद बांटना चाहिए ।
दूसरी पूजा विधि:-
वट सावित्री व्रत पूजन विधि में अपने-२ क्षेत्र के अनुसार कुछ-कुछ अंतर पाया जाता है। प्रायः सभी भक्त अपने-अपने परम्परा के अनुसार ही वट सावित्री व्रत पूजा करते हैं।
एक अन्य पूजा विधि के अनुसार इस दिन महिलाएँ सुबह स्नान कर नए वस्त्र पहनकर, सोलह श्रृंगार करती हैं। इस दिन निराहार रहते हुए सुहागिन महिलाएं वट वृक्ष में कच्चा सूत लपेटते हुए परिक्रमा करती हैं। वट पूजा के समय फल, मिठाई, पूरी, पुआ भींगा हुआ चना और पंखा चढ़ाती हैं।
उसके बाद सत्यवान व सावित्री की कथा सुनती हैं। पुनः सावित्री की तरह वट के पत्ते को सिर के पीछे लगाकर घर पहुंचती हैं। इसके बाद पति को पंखा झलती है, तथा जल पिलाकर व्रत खोलती हैं।
विशेष रूप में इस पूजन में स्त्रियाँ चौबीस बरगद फल (आटे या गुड़ के) और चौबीस पूरियाँ अपने आँचल में रखकर बारह पूरियां को बारह बरगद वट वृक्ष में चढ़ा देती हैं। (बारह वृक्षों की जगह एक वृक्ष भी मान्य है ।) तत्पश्चात वृक्ष में एक लोटा जल चढ़ाकर हल्दी-रोली लगाकर फल-फूल, धूप-दीप से पूजन करती हैं। कच्चे सूत को हाथ में लेकर वे वृक्ष की बारह परिक्रमा करती हैं। हर परिक्रमा पर एक चना वृक्ष में चढ़ाती जाती हैं। और सूत तने पर लपेटती जाती हैं।
परिक्रमा के पूरी होने के बाद सत्यवान व सावित्री की कथा सुनती हैं। उसके बाद बारह कच्चे धागा वाली एक माला वृक्ष पर चढ़ाती हैं और एक को अपने गले में डालती हैं। पुनः छः बार माला को वृक्ष से बदलती हैं, बाद में एक माला चढ़ी रहने देती हैं और एक स्वयं पहन लेती हैं। जब पूजा समाप्त हो जाती है तब स्त्रियाँ ग्यारह चने व वृक्ष के फूल की कली (वृक्ष की लाल रंग की कली) तोड़कर जल से निगलती हैं।
और इस तरह व्रत खोलती हैं।
इसके पीछे यह मिथक है कि सत्यवान जब तक मरणावस्था में थे तब तक सावित्री को अपनी कोई सुध नहीं थी लेकिन जैसे ही यमराज ने सत्यवान को जीवित कर दिए तब सावित्री ने अपने पति सत्यवान को जल पिलाकर स्वयं वटवृक्ष की कली खाकर जल ग्रहण की थी।
वटसावित्री व्रत की कथा:-
भद्र देश के राजा अश्वपति की पुत्री रुप में गुण सम्पन्न सावित्री का जन्म हुआ। राजकन्या ने द्युत्मसेन के पुत्र सत्यवान की कीर्ति सुनकर उन्हें पतिरुप में वरण कर लिया। इधर यह बात जब ऋषिराज नारद को ज्ञात हुई तो वे अश्वपति से जाकर कहने लगे- आपकी कन्या ने वर खोजने में भारी भूल कि है, सत्यवान गुणवान तथा धर्मात्मा है, परन्तु उनकी अल्पायु है, और एक वर्ष के बाद ही उसकी मृ्त्यु हो जाएगी।
नारद जी की यह बात सुनते ही राजा अश्वपति का चेहरा विवर्ण हो गया,
"वृथा न होहिं देव ऋषि बानी"
ऎसा विचार करके उन्होने अपनी पुत्री को समझाया की ऎसे अल्पायु व्यक्ति के साथ विवाह करना उचित नहीं है, इसलिये अन्य कोई वर चुन लो।
इस पर सावित्री बोली पिताजी- आर्य कन्याएं अपने पति का एक बार ही वरण करती है, राजा एक बार ही आज्ञा देता है, पंडित एक बार ही प्रतिज्ञा करते है,
तथा कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है। अब चाहे जो हो, मैं सत्यवान को ही वर रुप में स्वीकार करूंगी। सावित्री ने नारद से सत्यवान की मृ्त्यु का समय मालूम कर लिया था।
अन्ततोगत्वा उन दोनो को पाणिग्रहण संस्कार में बांधा गया। वह ससुराल पहुंचते ही सास-ससुर की सेवा में रत हो गई। कुछ समय के पश्चात ससुर का बल क्षीण होता देख शत्रुओं ने उनका राज्य छिन लिया।
नारद का वचन सावित्री को दिन -प्रतिदिन अधीर करने लगा। उसने जब जाना की पति की मृ्त्यु का दिन नजदीक आ गया है। तब तीन दिन पूर्व से ही उपवास शुरु कर दिया।
नारद द्वारा कथित निश्चित तिथि पर पितरों का पूजन किया। नित्य की भांति उस दिन भी सत्यवान अपने समय पर लकडी काटने के लिये चला गया, तो सावित्री भी सास-ससुर की आज्ञा से अपने पति के साथ जंगल में चलने के लिए तैयार हो गई़।
सत्यवान वन में पहुंचकर लकडी काटने के लिये वृ्क्ष पर चढ गया, वृक्ष पर चढते ही सत्यवान के सिर में असहनीय पीडा होने लगी, वह व्याकुल हो गया और वृ्क्ष से नीचे उतर गया। सावित्री अपना भविष्य समझ गई. तथा अपनी गोद का सिरहाना बनाकर अपने पति को लिटा लिया। उसी समय दक्षिण दिशा से अत्यन्त प्रभावशाली महिषारुढ यमराज को आते देखा।
धर्मराज सत्यवान के जीवन को जब लेकर चल दिए, तो सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पडी। पहले तो यमराज ने उसे देवी-विधान समझाया परन्तु उसकी निष्ठा और पतिपरायणता देख कर उसे वर मांगने के लिये कहा।
सावित्री बोली -मेरे सास-ससुर वनवासी तथा अंधे है. उन्हें आप नेत्र ज्योति प्रदान करें। यमराज ने कहा -ऎसा ही होगा।
जाओ अब लौट जाओ। यमराज की बात सुनकर उसने कहा-भगवान मुझे अपने पतिदेव के पीछे -पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं है। पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है, यह सुनकर उन्होने फिर से उसे एक और वर मांगने के लिये कहा।
सावित्री बोली-हमारे ससुर का राज्य छिन गया है, उसे वे पुन: प्राप्त कर सकें, साथ ही धर्मपरायण बने रहें।
यमराज ने यह वर देकर कहा की अच्छा अब तुम लौट जाओ। परन्तु उसने यमराज के पीछे चलना बन्द नहीं किया। अंत में यमराज को सत्यवान का प्राण छोडना पडा तथा सौभाग्यवती होने के साथ साथ उसे पुत्रवती होने का आशिर्वाद भी दिया।
सावित्री को यह वरदान देकर धर्मराज अन्तर्धान हो गये। इस प्रकार सावित्री उसी वट के वृ्क्ष के नीचे आई, जहां पर उसके पति का मृ्त शरीर पडा था। ईश्वर की अनुकम्पा से उसके शरीर में जीवन का संचार होने लगा तथा सत्यवान उठकर बैठ गये।
दोनों हर्षित होकर अपनी राजधानी की ओर चल पडे। वहां पहुंच कर उन्होने देखा की उनके माता-पिता को नेत्र ज्योति प्राप्त हो गई है, इस प्रकार सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहें।
वट सावित्री व्रत करने और इस कथा को सुनने से उपावसक के वैवाहिक जीवन या जीवन साथी की आयु पर किसी प्रकार का कोई संकट आया भी हो तो टल जाता है।
(समाप्त)
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आगामी लेख:-
1. 28 मई को "वटसावित्री व्रत(अमावस्या)" पर लेख
2. 29, 30 मई को "सोमवती अमावस्या/शनैश्चर जयंती" पर लेख
3. 1 जून को "रंभा तृतीया" पर लेख
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☀️
जय श्री राम
आज का पंचांग 🌹🌹🌹
शनिवार,28.5.2022
श्री संवत 2079
शक संवत् 1944
सूर्य अयन- उत्तरायण, गोल-उत्तर गोल
ऋतुः- ग्रीष्म ऋतुः ।
मास- ज्येष्ठ मास।
पक्ष- कृष्ण पक्ष ।
तिथि- त्रयोदशी तिथि 1:11 pm तक
चंद्रराशि- चंद्र मेष राशि में।
नक्षत्र- भरणी नक्षत्र अगले दिन 4:39 am तक
योग- शोभन योग 10:21 pm तक (शुभ है)
करण- वणिज करण 1:11 pm तक
सूर्योदय- 5:24 am, सूर्यास्त 7:12 pm
अभिजित् नक्षत्र-11:50 am से 12:45 pm तक
राहुकाल- 8:51 am से 10:34 am शुभ कार्य वर्जित
दिशाशूल- पूर्व दिशा।
मई शुभ दिन:- 28 (दोपहर 12 तक).
मई अशुभ दिन:- 29, 30, 31.
भद्रा:- 28 मई 1:10 pm से 28/29 मई अर्धरात्रि 2:03 am तक ( भद्रा मे मुण्डन, गृहारंभ, गृहप्रवेश, विवाह, रक्षाबंधन आदि शुभ काम नही करने चाहिये , लेकिन भद्रा मे स्त्री प्रसंग, यज्ञ, तीर्थस्नान, आपरेशन, मुकद्दमा, आग लगाना, काटना, जानवर संबंधी काम किए जा सकतें है।
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आगामी व्रत तथा त्यौहार:-
28 मई- मासिक शिवरात्रि। 30 मई- ज्येष्ठ/भावुका/सोमवती अमावस्या/शनैश्चर जयंती।
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विशेष:- जो व्यक्ति वाराणसी से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु paytm या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है
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आपका दिन मंगलमय हो . 💐💐💐
आचार्य मोरध्वज शर्मा
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश
9648023364
9129998000
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English Translation :-
Article:- Vat Savitri Vrat (Amavasya Paksha) Monday, May 30, 2022
Auspicious beginning:-
Amavasya Date Begins:- May 29- 2:54 pm
Amavasya date ends:-30 May- 4:59 pm
Vat Savitri Vrat is an important fast of Hindu religion. Married women observe this fast for the long and happy life of their husbands. There is such a belief in Hindu religion that, women who observe Vat Savitri Vrat with a sincere heart, their husband's life is protected and increased due to the virtuous effect of their fast. Therefore, since the time immemorial, Indian women have been observing fasting for the longevity and happy married life of their husbands.
Vat Savitri fast is mainly done by fortunate women, but in modern times all women, unmarried, married and daughter-in-law have started observing this fast.
In Hindu religion, this fast is observed on the new moon day of Jyeshtha month or on the full moon day of Jyeshtha month. Mainly in North India, this festival is celebrated on the new moon of Krishna Paksha of Jyeshtha month, while in Maharashtra, Gujarat and South India this festival is celebrated on the full moon day of Jyeshtha Shukla Paksha.
According to decision-making, this Vatsavitri fast is a law to observe the new moon of Krishna Paksha of Jyeshtha month. In the year 2022, this fast will be observed on 30th May, Monday. This year, the coincidence of Somvati Amavasya fast is happening on the day of Vat Savitri fast. Therefore, the fast of Somvati Amavasya will also be observed on this day. (Amavasya reading on Monday is called Somvati Amavasya)
Lord Vishnu is worshiped in both the fasts. In such a situation, in the combination of "Vatsavitri and Somvati Amavasya", the fruit of the fast increases manifold.
Despite the difference in dates, the purpose of the fast is the same, "increasing good fortune and observance of the rites of husbandry". There are two different views on the celebration of Vat Savitri Vrat, according to one of them, the fast is kept for three days from Trayodashi to Amavasya of Jyeshtha month. According to the second opinion, this fast is observed from Trayodashi to Purnima of Shukla Paksha. Vishnu worshipers consider it more beneficial to observe this fast on the full moon.
But according to Skanda Purana and Bhavishya Purana, Vat Savitri fast is done on the full moon day of Jyeshtha Shukla Paksha. Which is on 14th June this year. This festival starts from the Trayodashi date of Jyeshtha Shukla Paksha. Because according to the legend, Savitri started the fast three days before the full moon.
(In the present period, this fast is mainly planned on Amavasya.)
In this, Satyavan, Savitri and Yamraj are worshipped. The marriage of women who observe this fast remains unshakable. It is believed that Savitri had won her dead husband Satyavan from Dharmaraja with the effect of this fast.
In Vat Savitri Vrat, both 'Vat' and 'Savitri' have a special significance. Like Peepal, Vat or Banyan tree also has special significance. According to Parashar Muni- 'Vat Moole Topvasa' it has been said. It has been clarified in the Puranas that all three Brahma, Vishnu and Mahesh reside in the Vat. Sitting under it, worshiping, listening to fasting stories etc. fulfills your wishes. The Vat tree is also famous for its vastness.
First method of worship / fasting:-
Three days before this fast (on Trayodashi date), the idol of Brahma ji is made of pure clay symbolically by laying a red cloth on a wooden board, or in a bamboo basket, and on the left of these are Savitri, Satyavan and Yamraj riding on a buffalo. The idol should be made and installed. (In the present period, this worship / fasting is started or planned only on Amavasya.)
Therefore, on the day of fast, bring a branch of the banyan tree in the morning and place it in an earthen pot and worship the idols in the shade of the same pot with water, sandalwood, roli, intact flowers, fruits, incense-lamp etc.
Or, on the day of fasting, place this basket with idols under a banyan tree and worship them with water, sandalwood, roli, intact flowers, fruits, incense-lamp etc.
After worshiping the following two mantras can be chanted.
mantra:-
Sati Savitraya Namaste.
Yama Dharmarajaya Namah.
Chant the mantra a rosary. Then after tying raw cotton or molly in the branch of banyan tree, take seven rounds around the tree and do the story of Savitri-Satyavan.
After the worship is over, donating clothes, fruits etc. in bamboo baskets or leaves and distributing gram prasad.
Second worship method:-
In the Vat Savitri Vrat Puja method, some differences are found according to each region. Almost all the devotees perform Vat Savitri Vrat Puja according to their respective traditions.
According to another worship method, on this day, women take a bath in the morning and wear new clothes and do sixteen makeup. On this day, while staying fast, the married women circumambulate the Vat tree by wrapping raw yarn. At the time of Vat Puja, fruits, sweets, puris, soaked gram and fans are offered.
After that, she listens to the story of Satyavan and Savitri. Again, like Savitri, she reaches home by putting a Vat leaf on the back of her head. After this, the husband blows the fan, and breaks the fast by drinking water.
Especially in this worship, women offer twenty-four banyan fruits (of flour or jaggery) and twenty-four puris in their lap and offer twelve puris to the twelve banyan tree. (Instead of twelve trees, one tree is also acceptable.) After that, after offering a lot of water to the tree, apply turmeric-roli and worship it with fruits, flowers, incense-lamp. Taking the raw yarn in her hand, she makes twelve rounds of the tree. On every circumambulation, a gram is offered to the tree. And the yarn is wrapped around the stem.
After the completion of the parikrama, she hears the story of Satyavan and Savitri. After that a garland containing twelve raw threads is offered to the tree and one is placed around her neck. Again six times she changes the garland from the tree, after that one garland is allowed to remain mounted and wears one herself. When the worship is over, the women pluck eleven gram and the tree's flower bud (the red colored bud of the tree) and swallow it with water.
And thus breaks the fast.
There is a myth behind this that Savitri did not take care of herself till Satyavan was in death, but as soon as Yamraj revived Satyavan, Savitri herself took water after drinking water from her husband Satyavan.
Story of Vatsavitri Vrat :-
Savitri was born as the daughter of King Ashwapati of Bhadra country. On hearing the fame of Dyutmasena's son Satyavan, Rajkanya chose him as her husband. Here, when the sage Narada came to know about this, he went to Ashvapati and started saying – Your daughter has made a huge mistake in finding a groom, is truthful, virtuous and pious, but she has a short life, and she will die only after one year.
On hearing this talk of Narad ji, the face of King Ashwapati turned pale.
"Vrtha na hohin dev sage bani"
Thinking like this, he explained to his daughter that it is not proper to marry such a young person, so choose some other groom.
On this, Savitri said, Father - Aryan girls choose their husband only once, the king gives orders only once, the pundits make vows only once,
And Kanyadan is also done only once. Whatever happens now, I will accept Satyavan as the bridegroom. Savitri had learned from Narada the time of Satyavan's death.
Ultimately, both of them were tied in the Panigrahan ceremony. As soon as she reached her in-laws' house, she got engaged in the service of mother-in-law. After some time, seeing the power of father-in-law weakening, the enemies snatched his kingdom.
Narada's words started making Savitri impatient day by day. When she learned that the day of her husband's death was near. Then started fasting from three days ago.
The ancestors were worshiped by Narada on the specified date. As usual, on that day also Satyavan went to cut wood on his own time, then Savitri also agreed to walk in the forest with her husband on the orders of her mother-in-law.
Satyavan reached the forest and climbed the tree to cut the wood, as soon as he climbed the tree, Satyavan started feeling unbearable pain in his head, he got distraught and got down from the tree. Savitri understood her future. And making her the head of her lap, she made her husband lie down. At the same time, the very influential Mahisharudha Yamraj was seen coming from the south direction.
When Dharmaraja left with Satyavan's life, Savitri also followed him. At first, Yamraj explained to him the law of the goddess, but seeing his loyalty and devotion, he asked him to ask for a boon.
Savitri said - My father-in-law is a forest dweller and blind. Give them your eyesight. Yamraj said - it will be so.
Go back now. After listening to Yamraj, he said – Lord, I have no problem in following my husband. Hearing that it is my duty to follow her husband, she again asked him to ask for another groom.
Savitri said - Our father-in-law's kingdom has been snatched away, so that he can get it again, and remain pious.
Yamraj gave this boon and said that now you go back. But he did not stop following Yamraj. In the end, Yamraj had to give up Satyavan's life and along with being fortunate, he also blessed him with a daughter-in-law.
Dharmaraja disappeared after giving this boon to Savitri. Thus Savitri came under the same tree where the dead body of her husband was lying. By the grace of God, life started flowing in his body and Satyavan got up and sat down.
Both of them started towards their capital in joy. After reaching there, he saw that his parents had got the eye light, thus Savitri-Satyavan should continue to enjoy the state happiness till eternity.
By observing Vat Savitri fast and listening to this story, even if there is any kind of crisis on the married life of the worshiper or the age of the life partner, then it is averted.
(End)
Next article:-
1. Article on "Vatsavitri Vrat (Amavasya)" on 28 May
2. Article on "Somavati Amavasya/Shanashchar Jayanti" on 29th, 30th May
3. Article on "Rambha Tritiya" on 1st June
Long live Rama
Today's Panchang
Saturday,28.5.2022
Shree Samvat 2079
Shaka Samvat 1944
Surya Ayan- Uttarayan, Round-North Round
Rituah - Summer season.
Month - the eldest month.
Paksha - Krishna Paksha.
Date - Trayodashi date till 1:11 pm
Moon Sign - Moon in Aries.
Nakshatra- Bharani Nakshatra till 4:39 am the next day
Yoga- Shobhan Yoga till 10:21 pm (good luck)
Karan- Vanij Karan till 1:11 pm
Sunrise- 5:24 am, Sunset 7:12 pm
Abhijit Nakshatra - 11:50 am to 12:45 pm
Rahukaal- 8:51 am to 10:34 am, auspicious work prohibited
Direction – East direction.
May auspicious day:- 28 (till 12 noon).
May inauspicious days:- 29, 30, 31.
Bhadra:- 28 May 1:10 pm to 28/29 May midnight till 2:03 am (Shunning, housewarming, home entry, marriage, Rakshabandhan etc. should not be done in Bhadra, but in Bhadra, women affairs, yagya, pilgrimage, operation , litigation, setting fire, cutting, animal related works can be done.
Upcoming fasts and festivals:-
May 28 - Monthly Shivratri. May 30- Jyeshtha/Bhavuka/Somavati Amavasya/Shanishchar Jayanti.
Special:- The person who lives outside Varanasi or outside the country, he can get astrological consultation by phone for astrological consultation by paying the consultation fee through paytm or bank transfer.
Have a good day .
Acharya Mordhwaj Sharma
Shri Kashi Vishwanath Temple Varanasi Uttar Pradesh
9648023364
9129998000
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