मित्रों आज निर्जला एकादशी का पावन पर्व है। आपको आपके परिवार को आज के पावन दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं!!!!!!!
निर्जला एकादशी,विशेष पूजा विधि एवं कथा!!!!!!!!
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी ‘निर्जला एकादशी’ के नाम से जानी जाती है । अन्य महीनों की एकादशी को फलाहार किया जाता है; परंतु जैसा कि इस एकादशी के नाम से स्पष्ट है, इसमें फल तो क्या जल भी ग्रहण नहीं किया जाता है । इसलिए गर्मी के मौसम में यह एकादशी बड़े तप व कष्ट से की जाती है। यही कारण है कि इसका सभी एकादशियों से अधिक महत्व है। अधिक मास सहित एक वर्ष की छब्बीसों एकादशी न की जा सकें तो केवल निर्जला एकादशी का व्रत कर लेने से वर्ष की सभी एकादशी करने का फल प्राप्त हो जाता है।
निर्जला एकादशी को कैसे करें भगवान का पूजन ?
एकादशी तिथि को पूजन और व्रत करने वाले मनुष्य को काम, क्रोध, अहंकार, लोभ और चुगली जैसी बुराइयों का त्याग कर इन्द्रिय-संयम का पालन करना चाहिए; तभी उसका व्रत और पूजा पूर्ण होगी; अन्यथा वह निष्फल हो जाएगी । व्रत-पूजन पूरी श्रद्धा और भाव से करना चाहिए।
▪️ निर्जला एकादशी को प्रात:काल स्नान आदि के बाद शुद्ध वस्त्र धारण करें।
▪️ फिर व्रती को सबसे पहले भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए—‘हे केशव ! एकादशी-व्रत के पालन में मेरी इंद्रियों द्वारा कोई गलती हो जाए या मेरे दांतों में पहले से अन्न अटका हो तो हे करुणामय ! आप इन सब बातों को क्षमा कर दें।’
▪️ भगवान को पात्र में तुलसी-पत्र रख कर पंचामृत से स्नान करायें । फिर चंदनयुक्त जल से स्नान कराएं । तत्पश्चात् शुद्ध जल से स्नान कराएं।
▪️ भगवान के विग्रह को स्वच्छ वस्त्र से पौंछ कर उनके समस्त अंगों में इत्र का लेप करें।
▪️ भगवान को सुंदर वस्त्र और श्रृंगार धारण करायें।
▪️ भगवान को कपूर-केसर युक्त चंदन का तिलक व कुंकुम लगाएं।
▪️ फूलमाला और मंजरी सहित तुलसीदल अर्पित करें ।
▪️ अब भगवान की विशेष अंग पूजा करें । इसके लिए सुन्दर व साबुत पुष्प ले लें—
‘दामोदराय नम:’ कह कर भगवान के दोनों चरणों पर पुष्प अर्पण करें।
‘माधवाय नम:’ कह कर भगवान के दोनों घुटनों पर पुष्प चढ़ाएं।
‘कामप्रदाय नम:’ कह कर भगवान की दोनों जांघों पर पुष्प चढ़ाएं।
‘वामनमूर्तये नम:’ कह कर भगवान के कटिप्रदेश पर पुष्प चढ़ाएं।
‘पद्मनाभाय नम:’ कह कर भगवान की नाभि पर पुष्प चढ़ाएं।
‘विश्वमूर्तये नम:’ कह कर भगवान के उदर (पेट) पर पुष्प अर्पित करें।
‘ज्ञानगम्यायय नम:’ कह कर भगवान के हृदय पर पुष्प अर्पित करें।
‘वैकुण्ठगामिने नम:’ कह कर भगवान के कण्ठ पर पुष्प अर्पित करें।
‘सहस्त्रबाहवे नम:’ कह कर भगवान के बाहुओं पर पुष्प अर्पित करें।
‘योगरुपिणे नम:’ कह कर भगवान के नेत्रों से पुष्प लगा कर अर्पित करें।
‘सहस्त्रशीर्ष्णे नम:’ कह कर भगवान के सिर पर पुष्प अर्पित करें।
▪️ इसके बाद भगवान को तरह-तरह के रसों से पूर्ण नैवेद्य और ऋतुफल अर्पित करें।
▪️ भगवान को पान का बीड़ा (ताम्बूल) निवेदित करें।
▪️ पूजा में घी का या तिल के तेल का दीपक जलाएं । धूप निवेदित करें।
▪️ भगवान की आरती उतारते समय चार बार चरणों में, दो बार नाभि पर, एक बार मुखमण्डल पर व सात बार सभी अंगों पर घुमाने का विधान है । इसके बाद शंख में जल लेकर भगवान के चारों ओर घुमाकर अपने ऊपर तथा अन्य सदस्यों पर जल छोड़ दें।
▪️ फिर ठाकुरजी को साष्टांग प्रणाम करें।
▪️ अंत में प्रार्थना करें—‘जगदीश्वर ! यदि आप सदा स्मरण करने पर मनुष्य के सब पाप हर लेते हैं तो देव ! मेरे दु:स्वप्न, अपशकुन, मानसिक चिन्ताएं, नरक का भय तथा दुर्गति सम्बन्धी सभी कष्ट दूर कीजिए । मेरे लिए इहलोक या परलोक में जो भय हैं, उनसे मेरी व मेरे परिवार की रक्षा कीजिए । आपको नमस्कार है । मेरी भक्ति सदा आपमें ही बनी रहे।’
▪️ एकादशी माहात्म्य की कथा संभव हो तो ब्राह्मण से सुने अथवा स्वयं पाठ करे।
▪️ एकादशी व्रत में रात्रि जागरण का विशेष महत्व है । इसमें भगवान के भजनों का गायन, नृत्य और पुराणों की कथा सुनने का अनंत फल बताया गया है। स्वयं ही सद्-ग्रन्थों का अध्ययन करना भी बहुत पुण्यदायी माना गया है।
पद्मपुराण में कहा गया है—‘श्रीहरि की प्रसन्नता के लिए जागरण करके मनुष्य पिता, माता और पत्नी—तीनों के कुलों का उद्धार कर देता है । समस्त यज्ञ और चारों वेद भी श्रीहरि के निमित्त किए जाने वाले जागरण के स्थान पर उपस्थित हो जाते हैं।’
▪️ द्वादशी के दिन ब्राह्मण को अपनी सामर्थ्यानुसार जलयुक्त कलश, सुवर्ण, भोजन व दक्षिणा देकर व्रती को भोजन करना चाहिए।
विशेष पुण्य प्राप्ति के लिए इस दिन करें ये काम!!!!!!!
▪️ गायों की पूजा कर उन्हें हरा चारा खिलायें।
▪️ इस दिन घड़ा, पंखा, ऋतु फल और चीनी ब्राह्मण को दान करने का विशेष महत्व है।
▪️ भीषण गर्मी में पक्षियों के लिए पीने का जल रखें।
निर्जला एकादशी के व्रत का फल!!!!!
▪️ इस दिन मनुष्य स्नान, दान, जप, होम आदि जो कुछ भी करता है, वह सब अक्षय होता है।
▪️ निर्जला एकादशी का व्रत मनुष्य की आयु व आरोग्य की वृद्धि करने वाला है।
▪️ इस व्रत का विधि-विधान से पालन करने से मनुष्य को विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।
▪️ इस व्रत को करने से स्त्रियों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
▪️ मनुष्य पापों से मुक्त होकर ऐश्वर्यवान हो जाता है।
▪️ इस व्रत को करने से झूठ बोलने, बुराई करने, ब्रह्म-हत्या और गुरु के साथ विश्वासघात आदि से जो पाप लगता है, वह दूर हो जाता है।
निर्जला एकादशी कथा!!!!!!!
पांडवों में भीमसेन सबसे अधिक बलशाली थे । उनके पेट में ‘वृक’ नाम की अग्नि थी; इसलिए उन्हें ‘वृकोदर’ कहते हैं । भीमसेन ने नागलोक में जाकर वहां के दस कुण्डों का रस पी लिया था; इसलिए उनमें दस हजार हाथियों का बल आ गया था । इस रस के पीने से उनकी भोजन पचाने की क्षमता और भूख बढ़ गई थी।
द्रौपदी सहित सभी पांडव एकादशियों का व्रत करते थे; परंतु भीम के लिए एकादशी व्रत करना दुष्कर था । अत: व्यासजी ने भीमसेन से केवल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी का व्रत रहने को कहा तथा बताया कि इससे तुम्हें वर्ष भर की एकादशियों के बराबर फल प्राप्त होगा।व्यासजी के आदेशानुसार भीमसेन ने निर्जला एकादशी का व्रत किया और स्वर्ग गए । इस कारण यह एकादशी ‘भीमसेनी एकादशी’ या ‘भीम ग्यारस’ के नाम से भी जानी जाती है।
English Translation :-
Friends, today is the holy festival of Nirjala Ekadashi. Wishing you and your family a very Happy Today's Day!!!!!!!
Nirjala Ekadashi, special worship method and story!!!!!!!!!
Ekadashi of Shukla Paksha of Jyeshtha month is known as 'Nirjala Ekadashi'. Fruits are eaten on Ekadashi of other months; But as is clear from the name of this Ekadashi, not even water is consumed in it. Therefore, this Ekadashi is performed with great tenacity and pain in the summer season. This is the reason why it has more importance than all the Ekadashis. If twenty-six Ekadashis of a year cannot be performed including more months, then by observing the fast of Nirjala Ekadashi only, the result of performing all Ekadashis of the year is attained.
How to worship God on Nirjala Ekadashi?
A person who worships and observes fast on Ekadashi Tithi should observe sense-restraint by renouncing evils like lust, anger, ego, greed and slander; Only then his fast and worship will be complete; Otherwise it will fail. Fasting and worship should be done with full devotion and devotion.
On Nirjala Ekadashi, wear pure clothes in the morning after bath etc.
️ Then the devotee should first of all pray to God- 'O Keshav! If there is any mistake by my senses in observing the Ekadashi fast or if food is already stuck in my teeth, O compassionate one! You forgive all these things.'
Keep Tulsi leaves in the pot and bathe the Lord with Panchamrit. Then take bath with sandalwood water. After that take a bath with pure water.
Wipe the Deity of God with a clean cloth and apply perfume on all his parts.
️ Make God wear beautiful clothes and makeup.
Apply sandalwood tilak and kumkum containing camphor-saffron to God.
Offer tulsi dal with flower garland and manjari.
️ Now worship the special part of God. For this, take beautiful and whole flowers-
Offer flowers at both the feet of the Lord by saying 'Damodarai Namah'.
Offer flowers on both the knees of the Lord by saying 'Madhavay Namah'.
Offer flowers on both the thighs of the Lord by saying 'Kampradaya Namah'.
Offer flowers on the land of God by saying 'Vamanamurtye Namah'.
Offer flowers to the navel of the Lord by saying 'Padmanabhay Namah'.
Offer flowers on the abdomen (belly) of the Lord by saying 'Vishwamurtaye Namah'.
Offer flowers to the heart of the Lord by saying 'Jnanagamayay Namah'.
Offer flowers to the Lord's throat by saying 'Vaikunthagamine Namah'.
Offer flowers on the arms of the Lord by saying 'Sahastrabahave Namah'.
Offer flowers to the Lord's eyes by saying 'Yogrupene Namah'.
Offer flowers on the head of the Lord by saying 'Sahastrashirshne Namah'.
After this, offer Naivedya and seasonal fruits full of different types of juices to the Lord.
Offer betel seed (tambul) to God.
Light a lamp of ghee or sesame oil in worship. Request sunshine.
While performing the aarti of the Lord, there is a law to rotate four times on the feet, twice on the navel, once on the face and seven times on all the organs. After this, take water in a conch shell and rotate it around the deity and leave water on yourself and other members.
️ Then prostrate to Thakurji.
️ Pray in the end - 'Jagdishwar! If you take away all the sins of man by remembering him always, then God! Take away my nightmares, bad omen, mental worries, fear of hell and all miseries related to misfortune. Protect me and my family from the fears I have for me in here and here. Greetings to you . May my devotion remain in you always.
If possible, listen to the story of Ekadashi Mahatmya from a Brahmin or recite it yourself.
Night awakening has special significance in Ekadashi fasting. In this, the infinite fruit of singing the hymns of God, dancing and listening to the stories of the Puranas has been told. Studying the scriptures on their own is also considered very virtuous.
It is said in the Padma Purana - 'By awakening to the pleasure of Shri Hari, a man saves the families of the three - father, mother and wife. All the sacrifices and the four Vedas also appear at the place of awakening for the sake of Shri Hari.
On the day of Dwadashi, a Brahmin should give food to the fasting person by giving a water-filled urn, gold, food and dakshina according to his ability.
Do this work on this day to get special merit!!!!!!!
️ Worship the cows and feed them green fodder.
There is a special significance of donating a pitcher, fan, season fruit and sugar to Brahmin on this day.
Keep drinking water for the birds in the scorching heat.
Fruits of fasting on Nirjala Ekadashi!!!!!
Whatever a person does on this day like bathing, charity, chanting, homa, etc., it is all renewable.
The fast of Nirjala Ekadashi is going to increase the life and health of a person.
By observing this fast according to the law, a person attains the world of Vishnu.
By observing this fast, women get eternal good fortune.
Man becomes opulent by getting rid of sins.
By observing this fast, the sins which are incurred by lying, doing evil, killing Brahma and betraying the Guru, etc., are removed.
Nirjala Ekadashi Story!!!!!!!
Bhimsen was the most powerful among the Pandavas. In his stomach there was a fire named 'Vrika'; That's why he is called 'Vrikodara'. Bhimsen went to Nagaloka and drank the juice of ten ponds there; Therefore, the strength of ten thousand elephants had come in them. By drinking this juice, his ability to digest food and appetite had increased.
All the Pandavas, including Draupadi, used to observe a fast on Ekadashi; But it was difficult for Bhima to fast on Ekadashi. Therefore, Vyasji asked Bhimsen to observe a fast on Nirjala Ekadashi only in the Shukla Paksha of the Jyeshtha month and told that by this you will get equal results of Ekadashi of the whole year. For this reason this Ekadashi is also known as 'Bhimseni Ekadashi' or 'Bhim Gyaras'.
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