12 जून 2022

रवि प्रदोष व्रत परिचय एवं प्रदोष व्रत विस्तृत विधि।। Ravi Pradosh Vrat Introduction and Pradosh Vrat Detailed Method ।।


रवि प्रदोष व्रत परिचय एवं प्रदोष व्रत विस्तृत विधि
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प्रत्येक चन्द्र मास की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखने का विधान है. यह व्रत कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों को किया जाता है. सूर्यास्त के बाद के 2 घण्टे 24 मिनट का समय प्रदोष काल के नाम से जाना जाता है. प्रदेशों के अनुसार यह बदलता रहता है. सामान्यत: सूर्यास्त से लेकर रात्रि आरम्भ तक के मध्य की अवधि को प्रदोष काल में लिया जा सकता है।


ऐसा माना जाता है कि प्रदोष काल में भगवान भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर प्रसन्न मुद्रा में नृ्त्य करते है. जिन जनों को भगवान श्री भोलेनाथ पर अटूट श्रद्धा विश्वास हो, उन जनों को त्रयोदशी तिथि में पडने वाले प्रदोष व्रत का नियम पूर्वक पालन कर उपवास करना चाहिए।

यह व्रत उपवासक को धर्म, मोक्ष से जोडने वाला और अर्थ, काम के बंधनों से मुक्त करने वाला होता है. इस व्रत में भगवान शिव की पूजन किया जाता है. भगवान शिव कि जो आराधना करने वाले व्यक्तियों की गरीबी, मृ्त्यु, दु:ख और ऋणों से मुक्ति मिलती है।

प्रदोष व्रत की महत्ता
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शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत को रखने से दौ गायों को दान देने के समान पुन्य फल प्राप्त होता है. प्रदोष व्रत को लेकर एक पौराणिक तथ्य सामने आता है कि " एक दिन जब चारों और अधर्म की स्थिति होगी, अन्याय और अनाचार का एकाधिकार होगा, मनुष्य में स्वार्थ भाव अधिक होगी. तथा व्यक्ति सत्कर्म करने के स्थान पर नीच कार्यो को अधिक करेगा।


उस समय में जो व्यक्ति त्रयोदशी का व्रत रख, शिव आराधना करेगा, उस पर शिव कृ्पा होगी. इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति जन्म- जन्मान्तर के फेरों से निकल कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढता है. उसे उतम लोक की प्राप्ति होती है।

व्रत से मिलने वाले फल
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अलग- अलग वारों के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ प्राप्त होते है।

जैसे👉  सोमवार के दिन त्रयोदशी पडने पर किया जाने वाला वर्त आरोग्य प्रदान करता है। सोमवार के दिन जब त्रयोदशी आने पर जब प्रदोष व्रत किया जाने पर, उपवास से संबन्धित मनोइच्छा की पूर्ति होती है। जिस मास में मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत हो, उस दिन के व्रत को करने से रोगों से मुक्ति व स्वास्थय लाभ प्राप्त होता है एवं बुधवार के दिन प्रदोष व्रत हो तो, उपवासक की सभी कामना की पूर्ति होने की संभावना बनती है।

गुरु प्रदोष व्रत शत्रुओं के विनाश के लिये किया जाता है। शुक्रवार के दिन होने वाल प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शान्ति के लिये किया जाता है। अंत में जिन जनों को संतान प्राप्ति की कामना हो, उन्हें शनिवार के दिन पडने वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए। अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए जब प्रदोष व्रत किये जाते है, तो व्रत से मिलने वाले फलों में वृ्द्धि होती है।

व्रत विधि
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सुबह स्नान के बाद भगवान शिव, पार्वती और नंदी को पंचामृत और जल से स्नान कराएं। फिर गंगाजल से स्नान कराकर बेल पत्र, गंध, अक्षत (चावल), फूल, धूप, दीप, नैवेद्य (भोग), फल, पान, सुपारी, लौंग और इलायची चढ़ाएं। फिर शाम के समय भी स्नान करके इसी प्रकार से भगवान शिव की पूजा करें। फिर सभी चीजों को एक बार शिव को चढ़ाएं।और इसके बाद भगवान शिव की सोलह सामग्री से पूजन करें। बाद में भगवान शिव को घी और शक्कर मिले जौ के सत्तू का भोग लगाएं। इसके बाद आठ दीपक आठ दिशाओं में जलाएं। जितनी बार आप जिस भी दिशा में दीपक रखेंगे, दीपक रखते समय प्रणाम जरूर करें। अंत में शिव की आरती करें और साथ ही शिव स्त्रोत, मंत्र जाप करें। रात में जागरण करें।

प्रदोष व्रत समापन पर उद्धापन 
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इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का समापन करना चाहिए. इसे उद्धापन के नाम से भी जाना जाता है।

उद्धापन करने की विधि 
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इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का समापन करना चाहिए. इसे उद्धापन के नाम से भी जाना जाता है।

इस व्रत का उद्धापन करने के लिये त्रयोदशी तिथि का चयन किया जाता है. उद्धापन से एक दिन पूर्व श्री गणेश का पूजन किया जाता है. पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है. प्रात: जल्द उठकर मंडप बनाकर, मंडप को वस्त्रों या पद्म पुष्पों से सजाकर तैयार किया जाता है. "ऊँ उमा सहित शिवाय नम:" मंत्र का एक माला अर्थात 108 बार जाप करते हुए, हवन किया जाता है. हवन में आहूति के लिये खीर का प्रयोग किया जाता है।

हवन समाप्त होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती की जाती है। और शान्ति पाठ किया जाता है. अंत: में दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है. तथा अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशिर्वाद प्राप्त किया जाता है।

रवि त्रयोदशी प्रदोष व्रत
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॥ दोहा ॥
आयु, बुद्धि, आरोग्यता, या चाहो सन्तान ।
शिव पूजन विधवत् करो, दुःख हरे भगवान ॥

किसी समय सभी प्राणियों के हितार्थ परम् पुनीत गंगा के तट पर ऋषि समाज द्वारा एक विशाल सभा का आयोजन किया गया, जिसमें व्यास जी के परम् प्रिय शिष्य पुराणवेत्ता सूत जी महाराज हरि कीर्तन करते हुए पधारे। शौनकादि अट्ठासी हजार ऋषि-मुनिगण ने सूत जी को दण्डवत् प्रणाम किया। सूत जी ने भक्ति भाव से ऋषिगण को आशीर्वाद दे अपना स्थान ग्रहण किया।ऋषिगण ने विनीत भाव से पूछा, “हे परम् दयालु! कलियुग में शंकर भगवान की भक्ति किस आराधना द्वारा उपलब्ध होगी? कलिकाल में जब मनुष्य पाप कर्म में लिप्त हो, वेद-शास्त्र से विमुख रहेंगे । दीनजन अनेक कष्टों से त्रस्त रहेंगे । हे मुनिश्रेष्ठ! कलिकाल में सत्कर्मं में किसी की रुचि न होगी, पुण्य क्षीण हो जाएंगे एवं मनुष्य स्वतः ही असत् कर्मों की ओर प्रेरित होगा । इस पृथ्वी पर तब ज्ञानी मनुष्य का यह कर्तव्य हो जाएगा कि वह पथ से विचलित मनुष्य का मार्गदर्शन करे, अतः हे महामुने! ऐसा कौन-सा उत्तम व्रत है जिसे करने से मनवांछित फल की प्राप्ति हो और कलिकाल के पाप शान्त हो जाएं?”सूत जी बोले- “हे शौनकादि ऋषिगण! आप धन्यवाद के पात्र हैं । आपके विचार प्रशंसनीय व जनकल्याणकारी हैं । आपके ह्रदय में सदा परहित की भावना रहती है, आप धन्य हैं । हे शौनकादि ऋषिगण! मैं उस व्रत का वर्णन करने जा रहा हूं जिसे करने से सब पाप और कष्ट नष्ट हो जाते हैं तथा जो धन वृद्धिकारक, सुख प्रदायक, सन्तान व मनवांछित फल प्रदान करने वाला है । इसे भगवान शंकर ने सती जी को सुनाया था।”सूत जी आगे बोले- “आयु वृद्धि व स्वास्थ्य लाभ हेतु रवि त्रयोदशी प्रदोष का व्रत करें । इसमें प्रातः स्नान कर निराहार रहकर शिव जी का मनन करें ।मन्दिर जाकर शिव आराधना करें । माथे पर त्रिपुण धारण कर बेल, धूप, दीप, अक्षत व ऋतु फल अर्पित करें । रुद्राक्ष की माला से सामर्थ्यानुसार, ॐ नमः शिवाय’ जपे । ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें, तत्पश्‍चात मौन व्रत धारण करें । संभव हो तो यज्ञ-हवन कराएं ।‘ॐ ह्रीं क्लीं नमः शिवाय स्वाहा’ मंत्र से यज्ञ-स्तुति दें । इससे अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है । प्रदोष व्रत में व्रती एक बार भोजन करे और पृथ्वी पर शयन करे । इससे सर्व कार्य सिद्ध होते हैं । श्रावण मास में इस व्रत का विशेष महत्व है । सभी मनोरथ इस व्रत को करने से पूर्ण होते है । हे ऋषिगण! यह प्रदोष व्रत जिसका वृत्तांत मैंने सुनाया, किसी समय शंकर भगवान ने सती जी को और वेदव्यास मुनि ने मुझे सुनाया था ।”शौनकादि ऋषि बोले – “हे पूज्यवर! यह व्रत परम् गोपनीय, मंगलदायक और कष्ट हरता कहा गया है । कृपया बताएं कि यह व्रत किसने किया और उसे इससे क्या फल प्राप्त हुआ?”

तब श्री सुत जी कथा सुनाने लगे-

व्रत कथा
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“एक ग्राम में एक दीन-हीन ब्राह्मण रहता था । उसकी धर्मनिष्ठ पत्‍नी प्रदोष व्रत करती थी । उनके एक पुत्र था । एक बार वह पुत्र गंगा स्नान को गया । दुर्भाग्यवश मार्ग में उसे चोरों ने घेर लिया और डराकर उससे पूछने लगे कि उसके पिता का गुप्त धन कहां रखा है । बालक ने दीनतापूर्वक बताया कि वे अत्यन्त निर्धन और दुःखी हैं । उनके पास गुप्त धन कहां से आया । चोरों ने उसकी हालत पर तरस खाकर उसे छोड़ दिया । बालक अपनी राह हो लिया । चलते-चलते वह थककर चूर हो गया और बरगद के एक वृक्ष के नीचे सो गया । तभी उस नगर के सिपाही चोरों को खोजते हुए उसी ओर आ निकले । उन्होंने ब्राह्मण-बालक को चोर समझकर बन्दी बना लिया और राजा के सामने उपस्थित किया । राजा ने उसकी बात सुने बगैर उसे कारावार में डलवा दिया । उधर बालक की माता प्रदोष व्रत कर रही थी । उसी रात्रि राजा को स्वप्न आया कि वह बालक निर्दोष है । यदि उसे नहीं छोड़ा गया तो तुम्हारा राज्य और वैभव नष्ट हो जाएगा । सुबह जागते ही राजा ने बालक को बुलवाया । बालक ने राजा को सच्चाई बताई । राजा ने उसके माता-पिता को दरबार में बुलवाया । उन्हें भयभीत देख राजा ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘तुम्हारा बालक निर्दोष और निडर है । तुम्हारी दरिद्रता के कारण हम तुम्हें पांच गांव दान में देते हैं ।’ इस तरह ब्राह्मण आनन्द से रहने लगा । शिव जी की दया से उसकी दरिद्रता दूर हो गई।”

उक्त कथा सुनने के बाद शौनकादि ऋषि बोले- “हे दयालु! कृपया अब आप सोम त्रयोदशी प्रदोष व्रत के बारे में बताइए।”

प्रदोषस्तोत्रम् 
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।। श्री गणेशाय नमः।। 

जय देव जगन्नाथ जय शङ्कर शाश्वत । जय सर्वसुराध्यक्ष जय सर्वसुरार्चित ॥ १॥ 

जय सर्वगुणातीत जय सर्ववरप्रद । 
जय नित्य निराधार जय विश्वम्भराव्यय ॥ २॥ 

जय विश्वैकवन्द्येश जय नागेन्द्रभूषण । 
जय गौरीपते शम्भो जय चन्द्रार्धशेखर ॥ ३॥ 

जय कोट्यर्कसङ्काश जयानन्तगुणाश्रय । जय भद्र विरूपाक्ष जयाचिन्त्य निरञ्जन ॥ ४॥ 

जय नाथ कृपासिन्धो जय भक्तार्तिभञ्जन । जय दुस्तरसंसारसागरोत्तारण प्रभो ॥ ५॥ 

प्रसीद मे महादेव संसारार्तस्य खिद्यतः । सर्वपापक्षयं कृत्वा रक्ष मां परमेश्वर ॥ ६॥ 

महादारिद्र्यमग्नस्य महापापहतस्य च । महाशोकनिविष्टस्य महारोगातुरस्य च ॥ ७॥ 

ऋणभारपरीतस्य दह्यमानस्य कर्मभिः । ग्रहैः प्रपीड्यमानस्य प्रसीद मम शङ्कर ॥ ८॥ 

दरिद्रः प्रार्थयेद्देवं प्रदोषे गिरिजापतिम् । अर्थाढ्यो वाऽथ राजा वा प्रार्थयेद्देवमीश्वरम् ॥ ९॥ 

दीर्घमायुः सदारोग्यं कोशवृद्धिर्बलोन्नतिः । 
ममास्तु नित्यमानन्दः प्रसादात्तव शङ्कर ॥ १०॥ 

शत्रवः संक्षयं यान्तु प्रसीदन्तु मम प्रजाः । नश्यन्तु दस्यवो राष्ट्रे जनाः सन्तु निरापदः ॥ ११॥ 

दुर्भिक्षमरिसन्तापाः शमं यान्तु महीतले । सर्वसस्यसमृद्धिश्च भूयात्सुखमया दिशः ॥ १२॥ 

एवमाराधयेद्देवं पूजान्ते गिरिजापतिम् । ब्राह्मणान्भोजयेत् पश्चाद्दक्षिणाभिश्च पूजयेत् ॥ १३॥ 

सर्वपापक्षयकरी सर्वरोगनिवारणी । शिवपूजा मयाऽऽख्याता सर्वाभीष्टफलप्रदा ॥ १४॥ 

॥ इति प्रदोषस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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कथा एवं स्तोत्र पाठ के बाद महादेव जी की आरती करें

ताम्बूल, दक्षिणा, जल -आरती 
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 तांबुल का मतलब पान है। यह महत्वपूर्ण पूजन सामग्री है। फल के बाद तांबुल समर्पित किया जाता है। ताम्बूल के साथ में पुंगी फल (सुपारी), लौंग और इलायची भी डाली जाती है । दक्षिणा अर्थात् द्रव्य समर्पित किया जाता है। भगवान भाव के भूखे हैं। अत: उन्हें द्रव्य से कोई लेना-देना नहीं है। द्रव्य के रूप में रुपए, स्वर्ण, चांदी कुछ भी अर्पित किया जा सकता है।

आरती पूजा के अंत में धूप, दीप, कपूर से की जाती है। इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। आरती में एक, तीन, पांच, सात यानि विषम बत्तियों वाला दीपक प्रयोग किया जाता है।

भगवान शिव जी की आरती
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ॐ जय शिव ओंकारा,भोले हर शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ हर हर हर महादेव...॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
तीनों रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भोले शशिधारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता।
जगकर्ता जगभर्ता जगपालन करता ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठि दर्शन पावत रुचि रुचि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

लक्ष्मी व सावित्री, पार्वती संगा ।
पार्वती अर्धांगनी, शिवलहरी गंगा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।

पर्वत सौहे पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।

जटा में गंगा बहत है, गल मुंडल माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।

त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

ॐ जय शिव ओंकारा भोले हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा ।। ॐ हर हर हर महादेव।।

कर्पूर आरती
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कर्पूरगौरं करुणावतारं, संसारसारम् भुजगेन्द्रहारम्।
सदावसन्तं हृदयारविन्दे, भवं भवानीसहितं नमामि॥

मंगलम भगवान शंभू
मंगलम रिषीबध्वजा ।
मंगलम पार्वती नाथो
मंगलाय तनो हर ।।

मंत्र पुष्पांजलि 
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मंत्र पुष्पांजली मंत्रों द्वारा हाथों में फूल लेकर भगवान को पुष्प समर्पित किए जाते हैं तथा प्रार्थना की जाती है। भाव यह है कि इन पुष्पों की सुगंध की तरह हमारा यश सब दूर फैले तथा हम प्रसन्नता पूर्वक जीवन बीताएं।

ॐ यज्ञेन यज्ञमयजंत देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।

ते हं नाकं महिमान: सचंत यत्र पूर्वे साध्या: संति देवा:

ॐ राजाधिराजाय प्रसह्ये साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे स मे कामान्कामकामाय मह्यम् कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु।
कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नम:

ॐ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं
पारमेष्ठ्यं राज्यं माहाराज्यमाधिपत्यमयं समंतपर्यायी सार्वायुष आंतादापरार्धात्पृथिव्यै समुद्रपर्यंता या एकराळिति तदप्येष श्लोकोऽभिगीतो मरुत: परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन्गृहे आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवा: सभासद इति।

ॐ विश्व दकचक्षुरुत विश्वतो मुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पात संबाहू ध्यानधव धिसम्भत त्रैत्याव भूमी जनयंदेव एकः।
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥

नाना सुगंध पुष्पांनी यथापादो भवानीच
पुष्पांजलीर्मयादत्तो रुहाण परमेश्वर
ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री सांबसदाशिवाय नमः। मंत्र पुष्पांजली समर्पयामि।।

प्रदक्षिणा
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नमस्कार, स्तुति -प्रदक्षिणा का अर्थ है परिक्रमा। आरती के उपरांत भगवन की परिक्रमा की जाती है, परिक्रमा हमेशा क्लॉक वाइज (clock-wise) करनी चाहिए। स्तुति में क्षमा प्रार्थना करते हैं, क्षमा मांगने का आशय है कि हमसे कुछ भूल, गलती हो गई हो तो आप हमारे अपराध को क्षमा करें।
 
यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च। तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे।।

अर्थ: जाने अनजाने में किए गए और पूर्वजन्मों के भी सारे पाप प्रदक्षिणा के साथ-साथ नष्ट हो जाए।
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English Translation :-

Ravi Pradosh Vrat Introduction and Pradosh Vrat Detailed Method

There is a law to observe Pradosh fast on Trayodashi Tithi of every lunar month. This fast is done on both Krishna Paksha and Shukla Paksha. The time of 2 hours 24 minutes after sunset is known as Pradosh Kaal. It varies according to the states. Generally, the period from sunset to the beginning of the night can be taken as Pradosh Kaal.

It is believed that Lord Bholenath dances in a happy posture on Mount Kailash during Pradosh period. Those people who have unwavering faith in Lord Shri Bholenath, those people should fast by following the rules of Pradosh fast falling on Trayodashi Tithi.

This fast is supposed to connect the fasting person to Dharma, Moksha and to free him from the shackles of Artha, Kama. Lord Shiva is worshiped in this fast. Those who worship Lord Shiva get freedom from poverty, death, sorrow and debts.

Importance of Pradosh Vrat
According to the scriptures, keeping Pradosh fast gives the same reward as donating two cows. A mythological fact comes to the fore regarding Pradosh Vrat that "One day when there will be a state of unrighteousness, injustice and incest will prevail, selfishness will be high in man. And instead of doing good deeds, the person will do more lowly deeds.

During that time, the person who observes Trayodashi fast and worships Shiva, will have the blessings of Shiva. The person who observes this fast, after getting out of the cycle of birth after birth, proceeds on the path of salvation. He attains the highest level.

fruits of fasting
The benefits of Pradosh fasting are obtained according to different times.

For example, the Varta performed when Trayodashi falls on Monday provides health. When Pradosh Vrat is observed on Monday, when Trayodashi arrives, the desires related to fasting are fulfilled. In the month in which Pradosh Vrat is observed for Trayodashi on Tuesday, the fasting of that day gives relief from diseases and health benefits and if Pradosh Vrat is observed on Wednesday, then all the wishes of the faster are likely to be fulfilled.

Guru Pradosh fast is observed for the destruction of enemies. Pradosh fast on Friday is observed for good luck and happiness and peace in married life. In the end, those who wish to have a child, they should observe Pradosh fast which falls on Saturday. When Pradosh Vrat is observed keeping in view its objectives, then the fruits obtained from the fast increase.

fasting method
In the morning after bath, bathe Lord Shiva, Parvati and Nandi with Panchamrit and water. After bathing with Ganges water, offer Bel leaves, Gandha, Akshat (rice), flowers, incense, lamp, Naivedya (Bhog), fruits, betel leaves, betel nuts, cloves and cardamom. Then take a bath in the evening and worship Lord Shiva in the same way. Then offer all the things to Shiva once. And after that worship Lord Shiva with sixteen ingredients. Afterwards, offer barley sattu mixed with ghee and sugar to Lord Shiva. After this, light eight lamps in eight directions. As many times in whichever direction you place the lamp, do salute while keeping the lamp. In the end, do the aarti of Shiva as well as chant the Shiva stotra, mantra. Wake up at night.

Uddhapan at the end of Pradosh fast
After keeping this fast for eleven or 26 Trayodashis, the fast should be ended. It is also known as Uddhapan.

method of production
After keeping this fast for eleven or 26 Trayodashis, the fast should be ended. It is also known as Uddhapan.

Trayodashi date is selected for the commencement of this fast. One day before Uddhapan, Shri Ganesh is worshipped. Jagran is done by chanting Kirtan in the previous night. Waking up early in the morning, making a mandap, the mandap is prepared by decorating it with clothes or Padma flowers. A rosary of the mantra "Om Uma including Shivaay Namah" i.e. 108 times, the Havan is performed. Kheer is used for offering in Havan.

After the completion of the havan, the aarti of Lord Bholenath is performed. And peace is recited. In the end, two brahmins are fed food. And blessings are obtained by giving charity according to one's ability.

Ravi Trayodashi Pradosh Vrat
, couplet
Age, intelligence, health, or children.
Do worship of Shiva properly, sorrow Hare God.

Once upon a time, a huge gathering was organized by the Rishi Samaj on the banks of the holy Ganges for the benefit of all beings, in which Vyas ji's most beloved disciple, Puranveta Soot ji Maharaj, came while performing Hari Kirtan. Shaunkadi Eighty-eight thousand sages and sages bowed down to Sut ji. Soot ji blessed the sages with devotion and took his place. The sages asked politely, “O Most Merciful! By which worship will the devotion of Lord Shankar be attained in Kali Yuga? In Kalikal, when a person is involved in sinful deeds, he will remain away from the Vedas and Shastras. Deenjan will be stricken with many troubles. O best! In Kalikal, no one will be interested in good deeds, virtues will be eroded and man will automatically be motivated towards wrong deeds. Then on this earth it will be the duty of the wise man to guide the man who deviates from the path, so O great man! Which is the best fast by which one can get the desired result and the sins of Kalikal get pacified?” Soot ji said – “O Shaunkadi sages! You deserve thanks. Your thoughts are appreciable and beneficial. There is always a feeling of benevolence in your heart, you are blessed. O Shaunakadi sages! I am going to describe that fast, by observing which all sins and sufferings are destroyed and which increases wealth, gives happiness, gives children and desired results. This was narrated by Lord Shankar to Sati ji." Sut ji further said - "Pradosh fast on Ravi Trayodashi for age growth and health benefits. Take a bath in it in the morning and meditate on Shiva by staying fast. Go to the temple and worship Shiva. Offer vine, incense, lamp, akshat and season fruits by wearing a tripun on the forehead. Chant Om Namah Shivay with a Rudraksha rosary as per the capacity. Offer food to the brahmin and give charity and dakshina, after that observe a fast of silence. If possible, get Yagya-havan done. Offer yagya-praise with the mantra 'Om Hreem Kleem Namah Shivay Swaha'. This gives the desired result. During Pradosh fast, the fasting should eat once and sleep on the earth. By this all works are proved. This fast has special significance in the month of Shravan. All the desires are fulfilled by observing this fast. O sages! This Pradosh Vrat, the story of which I narrated, was once narrated by Lord Shankar to Sati and by Vedavyasa Muni to me.” Shaunkadi Rishi said – “O Pujyavar! This fast is said to be extremely secretive, auspicious and remover of pain. Please tell who did this fast and what result did he get from it?"

Then Shri Sut ji started narrating the story-

fasting story
“A poor Brahmin lived in a village. His pious wife used to observe Pradosh fast. He had a son. Once that son went to bathe in the Ganges. Unfortunately, on the way he was surrounded by thieves and frightened and asked him where his father's secret money was kept. The boy humbly told that he was very poor and sad. Where did he get the secret money from? The thieves took pity on his condition and left him. The boy went on his way. While walking, he got tired and fell asleep under a banyan tree. Then the soldiers of that city came out looking for the thieves. He took the Brahmin-child as a thief and made him a prisoner and presented it in front of the king. Without listening to him, the king got him imprisoned. On the other hand the mother of the child was observing Pradosh fast. The same night the king had a dream that the child was innocent. If it is not released your kingdom and glory will be destroyed. As soon as he woke up in the morning, the king called the boy. The boy told the truth to the king. The king invited his parents to the court. Seeing them frightened, the king smiled and said- 'Your child is innocent and fearless. Because of your poverty, we give you five villages in charity.' Thus the Brahmin started living happily. His poverty was removed by the mercy of Shiva.

After listening to the said story, Shaunkadi Rishi said - "O merciful one! Please now tell me about the Som Trayodashi Pradosh fast."

Pradoshstottram
, Om Shree Ganeshaya Namaha..

Jai Dev Jagannath Jai Shankar Eternal. Jay Sarvsuradhyaksha Jay Sarvsurarchit 1॥

Jai sarvagunateet jai sarvavarprad.
Jai nitya baseless jai Vishwambharavaya 2

Jay Vishwavaikvandyesh Jay Nagendra Bhushan.
Jai Gauripete Shambho Jai Chandradhashekhar 3

Jai kotyarkasakash jayanantgunashraya. Jai Bhadra Virupaksha Jayachintya Niranjan. 4

Jai Nath Kripasindho Jai Bhaktartibhanjan. Jai dustarsansarsagarotaran prabho 5

Mahadev sansaratsya khidyah in Prasidh. Sarvapaapakshayam Kritva Rakshak Mother Parmeshwar 6

Mahadaridryamagnasya mahapapahatsya c. Mahashoknavishtasya Maharogatursya f 7

Debabharparitasya dahyamanasya karmabhih. Grahaiah Prapidyamanasya Prasid Mama Shankar. 8

Poor: Prathayeddevam Pradoshe Girijapatim. Arthadhyo Vaath Raja or Prathyeddevmishwaram. 9॥

Long life: good health.
Mamastu Nityamandah Prasadattva Shankar. 10

Shatravah sankshayam yantu prasidanthu mama prajah. Nasyantu Dasyavo Rashtra Janaah Santu Nirapadah. 11

Durbhikshamarisantapa: Shama yantu Mahitale. Sarvasyasamridhischa Bhuyatsukhamaya Dishah 12

Evamaradhayeddevam pujaante girijapatim. brahmananbhojayet pachhaddakshinabhischa pujayet. 13

Sarvapaakshaykari omnipresence. Shiv Puja Mayakhyata Sarvabhishtafalprada. 14॥

, Iti Pradoshastotra Sampoornam
After the story and palm 
worship mahadev ji

Tambul, Dakshina, Jal-arati
 Tambul means paan. It is an important worship material. Tambul is offered after the fruit. Pungi fruit (betel nut), cloves and cardamom are also added along with the tambul. Dakshina means money is offered. God is hungry for emotion. So they have nothing to do with matter. Money, gold, silver, anything can be offered in the form of money.

Aarti is performed at the end of the puja with incense, lamp, camphor. Without this worship is considered incomplete. One, three, five, seven i.e. a lamp with odd lights is used in the aarti.

Lord Shiva's Aarti
Jai Shiv Omkara, Bhole Har Shiv Omkara.
Brahma Vishnu always Shiva Ardhangi stream. Har Har Har Mahadev...

Ekanan Chaturanan Panchanan Raje.
Harsanan Garudasana Vrishavahana Har Har Har Mahadev..

Two sides, four quadrilaterals, ten sides, sleep too much.
Tribhuvan Jan Mohe Har Har Har Mahadev..

Akshamala Banmala Mundmala stripe.
Sandalwood Mrigmad Sohai Bhole Shashidhari Har Har Har Mahadev..

Shwetambar Pitamber Baghambar Ange.
Sanakadik Garunadik Bhutadik Sange Har Har Har Mahadev..

Kamandalu Chakra Trishul dharta in the middle of the tax.
Jagkarta Jagbharta does the world Har Har Har Mahadev..

Brahma Vishnu Sadashiv knows he is indecisive.
These three are united in the middle of Pranavakshar. Har Har Har Mahadev..

Vishwanath Virajat Nandi Brahmachari in Kashi.
Nit rise darshan pawat interest interest enjoyment indulgent glory very heavy. Har Har Har Mahadev..

Lakshmi and Savitri, with Parvati.
Parvati Ardhangani, Shivlahari Ganga.. Har Har Har Mahadev....

Parvat Sauhe Parvati, Shankar Kailasa.
The food of hemp dhatoor, the ash in the ashes. Har Har Har Mahadev....

The Ganges is flowing in the Jata, the garland of Gal Mundal.
The remaining snake wrapped, covered with deer. Har Har Har Mahadev....

Whoever sings the aarti of Trigun Shivaji.
Kahat Shivanand Swami should get the desired fruit. Har Har Har Mahadev..

Jai Shiv Omkara Bhole Har Shiv Omkara
Brahma Vishnu Sadashiv Ardhangi stream. Har Har Har Mahadev.

camphor aarti
Karpoorgaurm Karunavataram, Sansarasaram Bhujgendraharam.
Sadavasantam Hrudayarvinde, Bhavam Bhavani Sahitam Namami.

Mangalam Lord Shambhu
Mangalam Rishibadhwaja.
Mangalam Parvati Natho
Good luck everyone.

Mantra Wreath
Mantra Pushpanjali Flowers are offered to the Lord with flowers in his hands by mantras and prayers are offered. The feeling is that like the fragrance of these flowers, our fame spreads far and wide and we can lead a happy life.

Om Yajna Yagyamayanta Devastani Dharmani Pratmanyasan.

Te hum nakam mahimayan: sachant yatra purve sadhya: santi deva:

Rajadhirajaya prasahye sahane namo vaisravanay kurmah s me kamankamakamaye mahyam kameshwaro vaishravno dadatu.
Kuberaya Vaishravanay Maharaja Namah:

Swasti Empire Bhaujyam Swarajya Vairagya
Parmeshtyam Rajya Maharajyamadhipatyam Samantparyayi Sarvayush Antadaparadhatprithvyai Samudraparyanta or Ekraati Tapyesh Shlokolbhigeto Marutah Pariveshtaro Marutsyavasangrihe Avikshitasya Kamprevvedeva: Sabhasad etc.

Om Vishva Dakkshurut Vishwato Mukho Vishwatobahurut Vishwataspat Sambahu Dhyanadhav Dhimbhat Tratyav Bhumi Janayamdev Ekah.
Om Tatpurushaya Vidmahe Mahadevaya Dheemah
Tanno Rudra: Prachodayat

Nana Sugandha Pushpani Yathapado Bhavanich
Pushpanjalirmayadattto Ruhan Parmeshwar
Om Bhurbhuva: Self: Bhagwate Shri Sambasadashivay Namah. Mantra Pushpanjali Samarpayami.

circumambulation
Salutations, Pradakshina means circumambulation. After the aarti, the circumambulation of God is done, the circumambulation should always be done clock-wise. We pray for forgiveness in praise, the meaning of asking for forgiveness is that if we have made some mistake, mistake, then you forgive our crime.
 
That is, Kani Cha Papani Janamantar Kritani Ch. Tani savarni nashyantu pradakshine pade-pade.

Meaning: All the sins committed knowingly or unknowingly and also in the previous births should be destroyed along with the circumambulation.

Thank you 
Regards
Acharya Mordhwaj Sharma 
Shri Kashi Vishwanath Temple Varanasi 
9648023364
9129998000

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