28 मई 2022

वटसावित्री व्रत(अमावस्या पक्ष) Vat Savitri Vrat (Amavasya Paksha)


लेख:- वटसावित्री व्रत(अमावस्या पक्ष) सोमवार, 30 मई, 2022

मुहूर्त:-
अमावस्या तिथि आरंभ:- 29 मई- 2:54 pm
अमावस्या तिथि समाप्त:-30 मई- 4:59 pm

वट सावित्री व्रत हिन्दू धर्म का महत्वपूर्ण व्रत है। इस व्रत को विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु एवं सुखी जीवन के लिए रखती हैं। हिन्दू धर्म मे ऐसी मान्यता है कि, जो महिलाएं वट सावित्री व्रत का पालन सच्चे मन से करती हैं, उनके व्रत के पुण्य प्रभाव से उनके पति की आयु की रक्षा तथा वृद्धि होती है। अतः सनातन काल से ही भारतीय महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और सुखद वैवाहिक जीवन के लिए व्रत-उपवास का पालन करती रही हैं। 

 वटसावित्री का व्रत मुख्यतः सौभाग्यवती महिलाएं करती है, परंतु आधुनिक काल मे कुंवारी, विवाहित तथा सुपुत्रा सभी महिलाएं यह व्रत करनें लगी है।

हिन्दू धर्म मे मतांतर से ज्येष्ठ मास की अमावस्या या ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को यह व्रत किया जाता है । मुख्यतः उत्तर भारत मे यह पर्व ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है, जबकि महाराष्ट्र, गुजरात तथा दक्षिण भारत में यह पर्व ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है ।

निर्णयामृतादि के अनुसार यह वटसावित्री का व्रत ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को करने का विधान है। सन् 2022 मे यह व्रत 30 मई, सोमवार के दिन मनाया जायेगा। इस वर्ष वट सावित्री व्रत के दिन ही सोमवती अमावस्या व्रत का संयोग बन रहा है। अतः इसी दिन सोमवती अमावस्या का भी व्रत किया जाएगा। (सोमवार के दिन पढ़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहा जाता है) इन
दोनों व्रतों में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। ऐसे में "वटसावित्री तथा सोमवती अमावस्या" के संयोग में व्रत का फल कई गुना बढ़ जाता है। 

तिथियों में भिन्नता होते हुए भी व्रत का उद्देश्य एक ही है, "सौभाग्य की वृद्धि और पतिव्रत के संस्कारों को मानना-उसका पालन करना"। वटसावित्री व्रत को मनाये जाने के दो विभिन्न मत हैं, उनमे एक मत के अनुसार, ज्येष्ठ मास की त्रयोदशी से अमावस्या तक तीन दिनों तक व्रत रखा जाता हैं। दूसरे मत के अनुसार शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से पूर्णिमा तक यह व्रत किया जाता है। विष्णु उपासक इस व्रत को पूर्णिमा को करना ज्यादा हितकर मानते हैं।

परंतु स्कन्दपुराण व भविष्य पुराण के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को किया जाता है । जोकि इस वर्ष 14 जून को है। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि से यह पर्व शुरू हो जाता है । क्योकि कथा के अनुसार सावित्री ने पूर्णिमा से तीन दिन पहले ही व्रत शुरू कर दिया था।

(वर्तमान काल मे मुख्यतः अमावस्या को ही इस व्रत का नियोजन होता है।)

इसमें सत्यवान, सावित्री तथा यमराज की पूजा की जाती है। इस व्रत को रखने वाली महिलाओं का सुहाग अटल रहता है। ऐसी मान्यता है कि सावित्री ने इसी व्रत के प्रभाव से अपने मृत पति सत्यवान को धर्मराज से भी जीत लिया था।

वट सावित्री व्रत में 'वट' और 'सावित्री' दोनों का विशिष्ट महत्व माना गया है। पीपल की तरह वट या बरगद के पेड़ का भी विशेष महत्व है। पाराशर मुनि के अनुसार- 'वट मूले तोपवासा' ऐसा कहा गया है। पुराणों में यह स्पष्ट किया गया है कि वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से मनोकामना पूरी होती है। वट वृक्ष अपनी विशालता के लिए भी प्रसिद्ध है।

पूजा/व्रत की प्रथम विधि:-
इस व्रत के तीन दिन पूर्व ( त्रयोदशी तिथि को ) एक लकड़ी के पाटे पर, या बांस की टोकरी मे लाल कपड़ा बिछा कर प्रतीक रूप में शुद्ध मिट्टी से ब्रह्म जी की प्रतिमा, और इनके बाईंं ओर सावित्री, सत्यवान तथा भैंसे पर सवार यमराज की प्रतिमा बना कर स्थापित करनी चाहिए । (वर्तमान काल मे अमावस्या को ही इस पूजा/व्रत की शुरुआत या नियोजन होता है।)

अतः व्रत के दिन प्रात: काल वट वृक्ष की एक डाल लाकर किसी मिट्टी के गमले में लगाएं तथा प्रतिमाओं को उसी गमले की छाया में रख कर उनका पूजन जल, चंदन, रोली, अक्षत पुष्प, फल धूप-दीप आदि से करे ।

या फिर व्रत के दिन इस टोकरी को प्रतिमाओं के साथ बरगद के वृक्ष के नीचे रखकर उनका पूजन जल, चंदन, रोली, अक्षत पुष्प, फल धूप-दीप आदि से करे ।
पूजन करने के उपरांत निम्नलिखित दो मंत्रो का जाप किया जा सकता है ।

मंत्र:-
      ।। सती सावित्राय नम: ।।
      ।। यम धर्मराजाय नम: ।।

मंत्र का जप एक माला करें। फिर कच्चे सूत या मौली को बरगद वृक्ष की डाली में बांधने के उपरांत वृक्ष के गिर्द सात फेरे लेकर सावित्री-सत्यवान कथा करे।

 पूजन समाप्त होने के बाद वस्त्र, फल आदि का बांस की टोकरी या पत्तों में रखकर दान करना चाहिए और चने का प्रसाद बांटना चाहिए ।

दूसरी पूजा विधि:-
वट सावित्री व्रत पूजन विधि में अपने-२ क्षेत्र के अनुसार कुछ-कुछ अंतर पाया जाता है। प्रायः सभी भक्त अपने-अपने परम्परा के अनुसार ही वट सावित्री व्रत पूजा करते हैं।

 एक अन्य पूजा विधि के अनुसार इस दिन महिलाएँ सुबह स्नान कर नए वस्त्र पहनकर, सोलह श्रृंगार करती हैं। इस दिन निराहार रहते हुए सुहागिन महिलाएं वट वृक्ष में कच्चा सूत लपेटते हुए परिक्रमा करती हैं। वट पूजा के समय फल, मिठाई, पूरी, पुआ भींगा हुआ चना और पंखा चढ़ाती हैं।

उसके बाद सत्यवान व सावित्री की कथा सुनती हैं। पुनः सावित्री की तरह वट के पत्ते को सिर के पीछे लगाकर घर पहुंचती हैं। इसके बाद पति को पंखा झलती है, तथा जल पिलाकर व्रत खोलती हैं।

विशेष रूप में इस पूजन में स्त्रियाँ चौबीस बरगद फल (आटे या गुड़ के) और चौबीस पूरियाँ अपने आँचल में रखकर बारह पूरियां को बारह बरगद वट वृक्ष में चढ़ा देती हैं। (बारह वृक्षों की जगह एक वृक्ष भी मान्य है ।) तत्पश्चात वृक्ष में एक लोटा जल चढ़ाकर हल्दी-रोली लगाकर फल-फूल, धूप-दीप से पूजन करती हैं। कच्चे सूत को हाथ में लेकर वे वृक्ष की बारह परिक्रमा करती हैं। हर परिक्रमा पर एक चना वृक्ष में चढ़ाती जाती हैं। और सूत तने पर लपेटती जाती हैं।

परिक्रमा के पूरी होने के बाद सत्यवान व सावित्री की कथा सुनती हैं। उसके बाद बारह कच्चे धागा वाली एक माला वृक्ष पर चढ़ाती हैं और एक को अपने गले में डालती हैं। पुनः छः बार माला को वृक्ष से बदलती हैं, बाद में एक माला चढ़ी रहने देती हैं और एक स्वयं पहन लेती हैं। जब पूजा समाप्त हो जाती है तब स्त्रियाँ ग्यारह चने व वृक्ष के फूल की कली (वृक्ष की लाल रंग की कली) तोड़कर जल से निगलती हैं।
और इस तरह व्रत खोलती हैं।

इसके पीछे यह मिथक है कि सत्यवान जब तक मरणावस्था में थे तब तक सावित्री को अपनी कोई सुध नहीं थी लेकिन जैसे ही यमराज ने सत्यवान को जीवित कर दिए तब सावित्री ने अपने पति सत्यवान को जल पिलाकर स्वयं वटवृक्ष की कली खाकर जल ग्रहण की थी।

वटसावित्री व्रत की कथा:-
भद्र देश के राजा अश्वपति की पुत्री रुप में गुण सम्पन्न सावित्री का जन्म हुआ।  राजकन्या ने द्युत्मसेन के पुत्र सत्यवान की कीर्ति सुनकर उन्हें पतिरुप में वरण कर लिया।  इधर यह बात जब ऋषिराज नारद को ज्ञात हुई तो वे अश्वपति से जाकर कहने लगे- आपकी कन्या ने वर खोजने में भारी भूल कि है, सत्यवान गुणवान तथा धर्मात्मा है, परन्तु उनकी अल्पायु है, और एक वर्ष के बाद ही उसकी मृ्त्यु हो जाएगी।

नारद जी की यह बात सुनते ही राजा अश्वपति का चेहरा विवर्ण हो गया, 
"वृथा न होहिं देव ऋषि बानी" 

ऎसा विचार करके उन्होने अपनी पुत्री को समझाया की ऎसे अल्पायु व्यक्ति के साथ विवाह करना उचित नहीं है, इसलिये अन्य कोई वर चुन लो।

इस पर सावित्री बोली पिताजी- आर्य कन्याएं अपने पति का एक बार ही वरण करती है, राजा एक बार ही आज्ञा देता है, पंडित एक बार ही प्रतिज्ञा करते है,
तथा कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है। अब चाहे जो हो, मैं सत्यवान को ही वर रुप में स्वीकार करूंगी। सावित्री ने नारद से सत्यवान की मृ्त्यु का समय मालूम कर लिया था। 

अन्ततोगत्वा उन दोनो को पाणिग्रहण संस्कार में बांधा गया। वह ससुराल पहुंचते ही सास-ससुर की सेवा में रत हो गई। कुछ समय के पश्चात ससुर का बल क्षीण होता देख शत्रुओं ने उनका राज्य छिन लिया।

नारद का वचन सावित्री को दिन -प्रतिदिन अधीर करने लगा।  उसने जब जाना की पति की मृ्त्यु का दिन नजदीक आ गया है। तब तीन दिन पूर्व से ही उपवास शुरु कर दिया।

नारद द्वारा कथित निश्चित तिथि पर पितरों का पूजन किया।  नित्य की भांति उस दिन भी सत्यवान अपने समय पर लकडी काटने के लिये चला गया, तो सावित्री भी सास-ससुर की आज्ञा से अपने पति के साथ जंगल में चलने के लिए तैयार हो गई़।

सत्यवान वन में पहुंचकर लकडी काटने के लिये वृ्क्ष पर चढ गया, वृक्ष पर चढते ही सत्यवान के सिर में असहनीय पीडा होने लगी, वह व्याकुल हो गया और वृ्क्ष से नीचे उतर गया। सावित्री अपना भविष्य समझ गई. तथा अपनी गोद का सिरहाना बनाकर अपने पति को लिटा लिया। उसी समय दक्षिण दिशा से अत्यन्त प्रभावशाली महिषारुढ यमराज को आते देखा।

धर्मराज सत्यवान के जीवन को जब लेकर चल दिए, तो सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पडी। पहले तो यमराज ने उसे देवी-विधान समझाया परन्तु उसकी निष्ठा और पतिपरायणता देख कर उसे वर मांगने के लिये कहा।
सावित्री बोली -मेरे सास-ससुर वनवासी तथा अंधे है. उन्हें आप नेत्र ज्योति प्रदान करें। यमराज ने कहा -ऎसा ही होगा।

जाओ अब लौट जाओ। यमराज की बात सुनकर उसने कहा-भगवान मुझे अपने पतिदेव के पीछे -पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं है। पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है, यह सुनकर उन्होने फिर से उसे एक और वर मांगने के लिये कहा। 

सावित्री बोली-हमारे ससुर का राज्य छिन गया है, उसे वे पुन: प्राप्त कर सकें, साथ ही धर्मपरायण बने रहें।

यमराज ने यह वर देकर कहा की अच्छा अब तुम लौट जाओ। परन्तु उसने यमराज के पीछे चलना बन्द नहीं किया। अंत में यमराज को सत्यवान का प्राण छोडना पडा तथा सौभाग्यवती होने के साथ साथ उसे पुत्रवती होने का आशिर्वाद भी दिया।

सावित्री को यह वरदान देकर धर्मराज अन्तर्धान हो गये। इस प्रकार सावित्री उसी वट के वृ्क्ष के नीचे आई, जहां पर उसके पति का मृ्त शरीर पडा था। ईश्वर की अनुकम्पा से उसके शरीर में जीवन का संचार होने लगा तथा सत्यवान उठकर बैठ गये।
दोनों हर्षित होकर अपनी राजधानी की ओर चल पडे। वहां पहुंच कर उन्होने देखा की उनके माता-पिता को नेत्र ज्योति प्राप्त हो गई है, इस प्रकार सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहें। 

वट सावित्री व्रत करने और इस कथा को सुनने से उपावसक के वैवाहिक जीवन या जीवन साथी की आयु पर किसी प्रकार का कोई संकट आया भी हो तो टल जाता है।

(समाप्त)
_________________________

आगामी लेख:-
1. 28 मई को "वटसावित्री व्रत(अमावस्या)" पर लेख
2. 29, 30 मई को "सोमवती अमावस्या/शनैश्चर जयंती" पर लेख
3. 1 जून को "रंभा तृतीया" पर लेख
_________________________
☀️

जय श्री राम
आज का पंचांग 🌹🌹🌹
शनिवार,28.5.2022
श्री संवत 2079
शक संवत् 1944
सूर्य अयन- उत्तरायण, गोल-उत्तर गोल
ऋतुः- ग्रीष्म ऋतुः ।
मास- ज्येष्ठ मास।
पक्ष- कृष्ण पक्ष ।
तिथि- त्रयोदशी तिथि 1:11 pm तक
चंद्रराशि- चंद्र मेष राशि में।
नक्षत्र- भरणी नक्षत्र अगले दिन 4:39 am तक
योग- शोभन योग 10:21 pm तक (शुभ है)
करण- वणिज करण 1:11 pm तक 
सूर्योदय- 5:24 am, सूर्यास्त 7:12 pm
अभिजित् नक्षत्र-11:50 am से 12:45 pm तक
राहुकाल- 8:51 am से 10:34 am शुभ कार्य वर्जित
दिशाशूल- पूर्व दिशा।

मई शुभ दिन:-  28 (दोपहर 12 तक).
मई अशुभ दिन:-  29, 30, 31. 

भद्रा:- 28 मई 1:10 pm से 28/29 मई अर्धरात्रि  2:03 am तक ( भद्रा मे मुण्डन, गृहारंभ, गृहप्रवेश, विवाह, रक्षाबंधन आदि शुभ काम नही करने चाहिये , लेकिन भद्रा मे स्त्री प्रसंग, यज्ञ, तीर्थस्नान, आपरेशन, मुकद्दमा, आग लगाना, काटना, जानवर संबंधी काम किए जा सकतें है।
_________________________

आगामी व्रत तथा त्यौहार:-
28 मई- मासिक शिवरात्रि। 30 मई- ज्येष्ठ/भावुका/सोमवती अमावस्या/शनैश्चर जयंती।
______________________

विशेष:- जो व्यक्ति वाराणसी से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु paytm या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है
________________________

आपका दिन मंगलमय हो . 💐💐💐
आचार्य मोरध्वज शर्मा 
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश
9648023364
9129998000

---------------------------------------------------------
English Translation :-

Article:- Vat Savitri Vrat (Amavasya Paksha) Monday, May 30, 2022


 Auspicious beginning:-

 Amavasya Date Begins:- May 29- 2:54 pm

 Amavasya date ends:-30 May- 4:59 pm


 Vat Savitri Vrat is an important fast of Hindu religion.  Married women observe this fast for the long and happy life of their husbands.  There is such a belief in Hindu religion that, women who observe Vat Savitri Vrat with a sincere heart, their husband's life is protected and increased due to the virtuous effect of their fast.  Therefore, since the time immemorial, Indian women have been observing fasting for the longevity and happy married life of their husbands.


 Vat Savitri fast is mainly done by fortunate women, but in modern times all women, unmarried, married and daughter-in-law have started observing this fast.


 In Hindu religion, this fast is observed on the new moon day of Jyeshtha month or on the full moon day of Jyeshtha month.  Mainly in North India, this festival is celebrated on the new moon of Krishna Paksha of Jyeshtha month, while in Maharashtra, Gujarat and South India this festival is celebrated on the full moon day of Jyeshtha Shukla Paksha.


 According to decision-making, this Vatsavitri fast is a law to observe the new moon of Krishna Paksha of Jyeshtha month.  In the year 2022, this fast will be observed on 30th May, Monday.  This year, the coincidence of Somvati Amavasya fast is happening on the day of Vat Savitri fast.  Therefore, the fast of Somvati Amavasya will also be observed on this day.  (Amavasya reading on Monday is called Somvati Amavasya)

 Lord Vishnu is worshiped in both the fasts.  In such a situation, in the combination of "Vatsavitri and Somvati Amavasya", the fruit of the fast increases manifold.


 Despite the difference in dates, the purpose of the fast is the same, "increasing good fortune and observance of the rites of husbandry".  There are two different views on the celebration of Vat Savitri Vrat, according to one of them, the fast is kept for three days from Trayodashi to Amavasya of Jyeshtha month.  According to the second opinion, this fast is observed from Trayodashi to Purnima of Shukla Paksha.  Vishnu worshipers consider it more beneficial to observe this fast on the full moon.


 But according to Skanda Purana and Bhavishya Purana, Vat Savitri fast is done on the full moon day of Jyeshtha Shukla Paksha.  Which is on 14th June this year.  This festival starts from the Trayodashi date of Jyeshtha Shukla Paksha.  Because according to the legend, Savitri started the fast three days before the full moon.


 (In the present period, this fast is mainly planned on Amavasya.)


 In this, Satyavan, Savitri and Yamraj are worshipped.  The marriage of women who observe this fast remains unshakable.  It is believed that Savitri had won her dead husband Satyavan from Dharmaraja with the effect of this fast.


 In Vat Savitri Vrat, both 'Vat' and 'Savitri' have a special significance.  Like Peepal, Vat or Banyan tree also has special significance.  According to Parashar Muni- 'Vat Moole Topvasa' it has been said.  It has been clarified in the Puranas that all three Brahma, Vishnu and Mahesh reside in the Vat.  Sitting under it, worshiping, listening to fasting stories etc. fulfills your wishes.  The Vat tree is also famous for its vastness.


 First method of worship / fasting:-

 Three days before this fast (on Trayodashi date), the idol of Brahma ji is made of pure clay symbolically by laying a red cloth on a wooden board, or in a bamboo basket, and on the left of these are Savitri, Satyavan and Yamraj riding on a buffalo.  The idol should be made and installed.  (In the present period, this worship / fasting is started or planned only on Amavasya.)


 Therefore, on the day of fast, bring a branch of the banyan tree in the morning and place it in an earthen pot and worship the idols in the shade of the same pot with water, sandalwood, roli, intact flowers, fruits, incense-lamp etc.


 Or, on the day of fasting, place this basket with idols under a banyan tree and worship them with water, sandalwood, roli, intact flowers, fruits, incense-lamp etc.

 After worshiping the following two mantras can be chanted.


 mantra:-

 Sati Savitraya Namaste.

 Yama Dharmarajaya Namah.


 Chant the mantra a rosary.  Then after tying raw cotton or molly in the branch of banyan tree, take seven rounds around the tree and do the story of Savitri-Satyavan.


 After the worship is over, donating clothes, fruits etc. in bamboo baskets or leaves and distributing gram prasad.


 Second worship method:-

 In the Vat Savitri Vrat Puja method, some differences are found according to each region.  Almost all the devotees perform Vat Savitri Vrat Puja according to their respective traditions.


 According to another worship method, on this day, women take a bath in the morning and wear new clothes and do sixteen makeup.  On this day, while staying fast, the married women circumambulate the Vat tree by wrapping raw yarn.  At the time of Vat Puja, fruits, sweets, puris, soaked gram and fans are offered.


 After that, she listens to the story of Satyavan and Savitri.  Again, like Savitri, she reaches home by putting a Vat leaf on the back of her head.  After this, the husband blows the fan, and breaks the fast by drinking water.


 Especially in this worship, women offer twenty-four banyan fruits (of flour or jaggery) and twenty-four puris in their lap and offer twelve puris to the twelve banyan tree.  (Instead of twelve trees, one tree is also acceptable.) After that, after offering a lot of water to the tree, apply turmeric-roli and worship it with fruits, flowers, incense-lamp.  Taking the raw yarn in her hand, she makes twelve rounds of the tree.  On every circumambulation, a gram is offered to the tree.  And the yarn is wrapped around the stem.


 After the completion of the parikrama, she hears the story of Satyavan and Savitri.  After that a garland containing twelve raw threads is offered to the tree and one is placed around her neck.  Again six times she changes the garland from the tree, after that one garland is allowed to remain mounted and wears one herself.  When the worship is over, the women pluck eleven gram and the tree's flower bud (the red colored bud of the tree) and swallow it with water.

 And thus breaks the fast.


 There is a myth behind this that Savitri did not take care of herself till Satyavan was in death, but as soon as Yamraj revived Satyavan, Savitri herself took water after drinking water from her husband Satyavan.


 Story of Vatsavitri Vrat :-

 Savitri was born as the daughter of King Ashwapati of Bhadra country.  On hearing the fame of Dyutmasena's son Satyavan, Rajkanya chose him as her husband.  Here, when the sage Narada came to know about this, he went to Ashvapati and started saying – Your daughter has made a huge mistake in finding a groom, is truthful, virtuous and pious, but she has a short life, and she will die only after one year.


 On hearing this talk of Narad ji, the face of King Ashwapati turned pale.

 "Vrtha na hohin dev sage bani"


 Thinking like this, he explained to his daughter that it is not proper to marry such a young person, so choose some other groom.


 On this, Savitri said, Father - Aryan girls choose their husband only once, the king gives orders only once, the pundits make vows only once,

 And Kanyadan is also done only once.  Whatever happens now, I will accept Satyavan as the bridegroom.  Savitri had learned from Narada the time of Satyavan's death.


 Ultimately, both of them were tied in the Panigrahan ceremony.  As soon as she reached her in-laws' house, she got engaged in the service of mother-in-law.  After some time, seeing the power of father-in-law weakening, the enemies snatched his kingdom.


 Narada's words started making Savitri impatient day by day.  When she learned that the day of her husband's death was near.  Then started fasting from three days ago.


 The ancestors were worshiped by Narada on the specified date.  As usual, on that day also Satyavan went to cut wood on his own time, then Savitri also agreed to walk in the forest with her husband on the orders of her mother-in-law.


 Satyavan reached the forest and climbed the tree to cut the wood, as soon as he climbed the tree, Satyavan started feeling unbearable pain in his head, he got distraught and got down from the tree.  Savitri understood her future.  And making her the head of her lap, she made her husband lie down.  At the same time, the very influential Mahisharudha Yamraj was seen coming from the south direction.


 When Dharmaraja left with Satyavan's life, Savitri also followed him.  At first, Yamraj explained to him the law of the goddess, but seeing his loyalty and devotion, he asked him to ask for a boon.

 Savitri said - My father-in-law is a forest dweller and blind.  Give them your eyesight.  Yamraj said - it will be so.


 Go back now.  After listening to Yamraj, he said – Lord, I have no problem in following my husband.  Hearing that it is my duty to follow her husband, she again asked him to ask for another groom.


 Savitri said - Our father-in-law's kingdom has been snatched away, so that he can get it again, and remain pious.


 Yamraj gave this boon and said that now you go back.  But he did not stop following Yamraj.  In the end, Yamraj had to give up Satyavan's life and along with being fortunate, he also blessed him with a daughter-in-law.


 Dharmaraja disappeared after giving this boon to Savitri.  Thus Savitri came under the same tree where the dead body of her husband was lying.  By the grace of God, life started flowing in his body and Satyavan got up and sat down.

 Both of them started towards their capital in joy.  After reaching there, he saw that his parents had got the eye light, thus Savitri-Satyavan should continue to enjoy the state happiness till eternity.


 By observing Vat Savitri fast and listening to this story, even if there is any kind of crisis on the married life of the worshiper or the age of the life partner, then it is averted.


 (End)

 Next article:-

 1. Article on "Vatsavitri Vrat (Amavasya)" on 28 May

 2. Article on "Somavati Amavasya/Shanashchar Jayanti" on 29th, 30th May

 3. Article on "Rambha Tritiya" on 1st June
 


 Long live Rama

 Today's Panchang

 Saturday,28.5.2022

 Shree Samvat 2079

 Shaka Samvat 1944

 Surya Ayan- Uttarayan, Round-North Round

 Rituah - Summer season.

 Month - the eldest month.

 Paksha - Krishna Paksha.

 Date - Trayodashi date till 1:11 pm

 Moon Sign - Moon in Aries.

 Nakshatra- Bharani Nakshatra till 4:39 am the next day

 Yoga- Shobhan Yoga till 10:21 pm (good luck)

 Karan- Vanij Karan till 1:11 pm

 Sunrise- 5:24 am, Sunset 7:12 pm

 Abhijit Nakshatra - 11:50 am to 12:45 pm

 Rahukaal- 8:51 am to 10:34 am, auspicious work prohibited

 Direction – East direction.


 May auspicious day:- 28 (till 12 noon).

 May inauspicious days:- 29, 30, 31.


 Bhadra:- 28 May 1:10 pm to 28/29 May midnight till 2:03 am (Shunning, housewarming, home entry, marriage, Rakshabandhan etc. should not be done in Bhadra, but in Bhadra, women affairs, yagya, pilgrimage, operation  , litigation, setting fire, cutting, animal related works can be done.


 Upcoming fasts and festivals:-

 May 28 - Monthly Shivratri.  May 30- Jyeshtha/Bhavuka/Somavati Amavasya/Shanishchar Jayanti.


 Special:- The person who lives outside Varanasi or outside the country, he can get astrological consultation by phone for astrological consultation by paying the consultation fee through paytm or bank transfer.

 Have a good day . 

 Acharya Mordhwaj Sharma

 Shri Kashi Vishwanath Temple Varanasi Uttar Pradesh

 9648023364

 9129998000

27 मई 2022

शुक्र प्रदोष व्रत परिचय एवं प्रदोष व्रत विस्तृत विधि


शुक्र प्रदोष व्रत परिचय एवं प्रदोष व्रत विस्तृत विधि 
〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️
प्रत्येक चन्द्र मास की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखने का विधान है. यह व्रत कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों को किया जाता है. सूर्यास्त के बाद के 2 घण्टे 24 मिनट का समय प्रदोष काल के नाम से जाना जाता है. प्रदेशों के अनुसार यह बदलता रहता है. सामान्यत: सूर्यास्त से लेकर रात्रि आरम्भ तक के मध्य की अवधि को प्रदोष काल में लिया जा सकता है।

ऐसा माना जाता है कि प्रदोष काल में भगवान भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर प्रसन्न मुद्रा में नृ्त्य करते है. जिन जनों को भगवान श्री भोलेनाथ पर अटूट श्रद्धा विश्वास हो, उन जनों को त्रयोदशी तिथि में पडने वाले प्रदोष व्रत का नियम पूर्वक पालन कर उपवास करना चाहिए।

यह व्रत उपवासक को धर्म, मोक्ष से जोडने वाला और अर्थ, काम के बंधनों से मुक्त करने वाला होता है. इस व्रत में भगवान शिव की पूजन किया जाता है. भगवान शिव कि जो आराधना करने वाले व्यक्तियों की गरीबी, मृ्त्यु, दु:ख और ऋणों से मुक्ति मिलती है।

प्रदोष व्रत की महत्ता
〰️〰️〰️〰️〰️〰️
शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत को रखने से दौ गायों को दान देने के समान पुन्य फल प्राप्त होता है. प्रदोष व्रत को लेकर एक पौराणिक तथ्य सामने आता है कि " एक दिन जब चारों और अधर्म की स्थिति होगी, अन्याय और अनाचार का एकाधिकार होगा, मनुष्य में स्वार्थ भाव अधिक होगी. तथा व्यक्ति सत्कर्म करने के स्थान पर नीच कार्यो को अधिक करेगा।

उस समय में जो व्यक्ति त्रयोदशी का व्रत रख, शिव आराधना करेगा, उस पर शिव कृ्पा होगी. इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति जन्म- जन्मान्तर के फेरों से निकल कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढता है. उसे उतम लोक की प्राप्ति होती है।

व्रत से मिलने वाले फल
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
अलग- अलग वारों के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ प्राप्त होते है।

जैसे👉  सोमवार के दिन त्रयोदशी पडने पर किया जाने वाला वर्त आरोग्य प्रदान करता है। सोमवार के दिन जब त्रयोदशी आने पर जब प्रदोष व्रत किया जाने पर, उपवास से संबन्धित मनोइच्छा की पूर्ति होती है। जिस मास में मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत हो, उस दिन के व्रत को करने से रोगों से मुक्ति व स्वास्थय लाभ प्राप्त होता है एवं बुधवार के दिन प्रदोष व्रत हो तो, उपवासक की सभी कामना की पूर्ति होने की संभावना बनती है।

गुरु प्रदोष व्रत शत्रुओं के विनाश के लिये किया जाता है। शुक्रवार के दिन होने वाल प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शान्ति के लिये किया जाता है। अंत में जिन जनों को संतान प्राप्ति की कामना हो, उन्हें शनिवार के दिन पडने वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए। अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए जब प्रदोष व्रत किये जाते है, तो व्रत से मिलने वाले फलों में वृ्द्धि होती है।

व्रत विधि
〰️〰️〰️
सुबह स्नान के बाद भगवान शिव, पार्वती और नंदी को पंचामृत और जल से स्नान कराएं। फिर गंगाजल से स्नान कराकर बेल पत्र, गंध, अक्षत (चावल), फूल, धूप, दीप, नैवेद्य (भोग), फल, पान, सुपारी, लौंग और इलायची चढ़ाएं। फिर शाम के समय भी स्नान करके इसी प्रकार से भगवान शिव की पूजा करें। फिर सभी चीजों को एक बार शिव को चढ़ाएं।और इसके बाद भगवान शिव की सोलह सामग्री से पूजन करें। बाद में भगवान शिव को घी और शक्कर मिले जौ के सत्तू का भोग लगाएं। इसके बाद आठ दीपक आठ दिशाओं में जलाएं। जितनी बार आप जिस भी दिशा में दीपक रखेंगे, दीपक रखते समय प्रणाम जरूर करें। अंत में शिव की आरती करें और साथ ही शिव स्त्रोत, मंत्र जाप करें। रात में जागरण करें।

प्रदोष व्रत समापन पर उद्धापन 
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का समापन करना चाहिए. इसे उद्धापन के नाम से भी जाना जाता है।

उद्धापन करने की विधि 
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का समापन करना चाहिए. इसे उद्धापन के नाम से भी जाना जाता है।

इस व्रत का उद्धापन करने के लिये त्रयोदशी तिथि का चयन किया जाता है. उद्धापन से एक दिन पूर्व श्री गणेश का पूजन किया जाता है. पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है. प्रात: जल्द उठकर मंडप बनाकर, मंडप को वस्त्रों या पद्म पुष्पों से सजाकर तैयार किया जाता है. "ऊँ उमा सहित शिवाय नम:" मंत्र का एक माला अर्थात 108 बार जाप करते हुए, हवन किया जाता है. हवन में आहूति के लिये खीर का प्रयोग किया जाता है।

हवन समाप्त होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती की जाती है। और शान्ति पाठ किया जाता है. अंत: में दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है. तथा अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशिर्वाद प्राप्त किया जाता है।

शुक्र प्रदोष व्रत
〰️〰️〰️〰️〰️
सूत जी बोले-“अभीष्ट सिद्धि की कामना, यदि हो ह्रदय विचार ।
धर्म, अर्थ, कामादि, सुख, मिले पदारथ चार ॥”

व्रत कथा 
〰️〰️〰️
प्राचीनकाल की बात है, एक नगर में तीन मित्र रहते थे – एक राजकुमार, दूसरा ब्राह्मण कुमार और तीसरा धनिक पुत्र । राजकुमार व ब्राह्मण कुमार का विवाह हो चुका था । धनिक पुत्र का भी विवाह हो गया था, किन्तु गौना शेष था । एक दिन तीनों मित्र स्त्रियों की चर्चा कर रहे थे । ब्राह्मण कुमार ने स्त्रियों की प्रशंसा करते हुए कहा- ‘नारीहीन घर भूतों का डेरा होता है।’ धनिक पुत्र ने यह सुना तो तुरन्त ही अपनी पत्‍नी को लाने का निश्‍चय किया । माता-पिता ने उसे समझाया कि अभी शुक्र देवता डूबे हुए हैं । ऐसे में बहू-बेटियों को उनके घर से विदा करवा लाना शुभ नहीं होता । किन्तु धनिक पुत्र नहीं माना और ससुराल जा पहुंचा । ससुराल में भी उसे रोकने की बहुत कोशिश की गई, मगर उसने जिद नहीं छोड़ी । माता-पिता को विवश होकर अपनी कन्या की विदाई करनी पड़ी । ससुराल से विदा हो पति-पत्‍नी नगर से बाहर निकले ही थे कि उनकी बैलगाड़ी का पहिया अलग हो गया और एक बैल की टांग टूट गई । दोनों को काफी चोटें आईं फिर भी वे आगे बढ़ते रहे । कुछ दूर जाने पर उनकी भेंट डाकुओं से हो गई । डाकू धन-धान्य लूट ले गए । दोनों रोते-पीटते घर पहूंचे । वहां धनिक पुत्र को सांप ने डस लिया । उसके पिता ने वैद्य को बुलवाया । वैद्य ने निरीक्षण के बाद घोषणा की कि धनिक पुत्र तीन दिन में मर जाएगा  जब ब्राह्मण कुमार को यह समाचार मिला तो वह तुरन्त आया । उसने माता-पिता को शुक्र प्रदोष व्रत करने का परामर्ष दिया और कहा- ‘इसे पत्‍नी सहित वापस ससुराल भेज दें । यह सारी बाधाएं इसलिए आई हैं क्योंकि आपका पुत्र शुक्रास्त में पत्‍नी को विदा करा लाया है । यदि यह वहां पहुंच जाएगा तो बच जाएगा।’ धनिक को ब्राह्मण कुमार की बात ठीक लगी । उसने वैसा ही किया । ससुराल पहुंचते ही धनिक कुमार की हालत ठीक होती चली गई । शुक्र प्रदोष के महात्म्य से सभी घोर कष्ट टल गए।

प्रदोषस्तोत्रम् 
〰️〰️〰️〰️
।। श्री गणेशाय नमः।। 

जय देव जगन्नाथ जय शङ्कर शाश्वत । जय सर्वसुराध्यक्ष जय सर्वसुरार्चित ॥ १॥ 

जय सर्वगुणातीत जय सर्ववरप्रद । 
जय नित्य निराधार जय विश्वम्भराव्यय ॥ २॥ 

जय विश्वैकवन्द्येश जय नागेन्द्रभूषण । 
जय गौरीपते शम्भो जय चन्द्रार्धशेखर ॥ ३॥ 

जय कोट्यर्कसङ्काश जयानन्तगुणाश्रय । जय भद्र विरूपाक्ष जयाचिन्त्य निरञ्जन ॥ ४॥ 

जय नाथ कृपासिन्धो जय भक्तार्तिभञ्जन । जय दुस्तरसंसारसागरोत्तारण प्रभो ॥ ५॥ 

प्रसीद मे महादेव संसारार्तस्य खिद्यतः । सर्वपापक्षयं कृत्वा रक्ष मां परमेश्वर ॥ ६॥ 

महादारिद्र्यमग्नस्य महापापहतस्य च । महाशोकनिविष्टस्य महारोगातुरस्य च ॥ ७॥ 

ऋणभारपरीतस्य दह्यमानस्य कर्मभिः । ग्रहैः प्रपीड्यमानस्य प्रसीद मम शङ्कर ॥ ८॥ 

दरिद्रः प्रार्थयेद्देवं प्रदोषे गिरिजापतिम् । अर्थाढ्यो वाऽथ राजा वा प्रार्थयेद्देवमीश्वरम् ॥ ९॥ 

दीर्घमायुः सदारोग्यं कोशवृद्धिर्बलोन्नतिः । 
ममास्तु नित्यमानन्दः प्रसादात्तव शङ्कर ॥ १०॥ 

शत्रवः संक्षयं यान्तु प्रसीदन्तु मम प्रजाः । नश्यन्तु दस्यवो राष्ट्रे जनाः सन्तु निरापदः ॥ ११॥ 

दुर्भिक्षमरिसन्तापाः शमं यान्तु महीतले । सर्वसस्यसमृद्धिश्च भूयात्सुखमया दिशः ॥ १२॥ 

एवमाराधयेद्देवं पूजान्ते गिरिजापतिम् । ब्राह्मणान्भोजयेत् पश्चाद्दक्षिणाभिश्च पूजयेत् ॥ १३॥ 

सर्वपापक्षयकरी सर्वरोगनिवारणी । शिवपूजा मयाऽऽख्याता सर्वाभीष्टफलप्रदा ॥ १४॥ 

॥ इति प्रदोषस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
कथा एवं स्तोत्र पाठ के बाद महादेव जी की आरती करें

ताम्बूल, दक्षिणा, जल -आरती 
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
 तांबुल का मतलब पान है। यह महत्वपूर्ण पूजन सामग्री है। फल के बाद तांबुल समर्पित किया जाता है। ताम्बूल के साथ में पुंगी फल (सुपारी), लौंग और इलायची भी डाली जाती है । दक्षिणा अर्थात् द्रव्य समर्पित किया जाता है। भगवान भाव के भूखे हैं। अत: उन्हें द्रव्य से कोई लेना-देना नहीं है। द्रव्य के रूप में रुपए, स्वर्ण, चांदी कुछ भी अर्पित किया जा सकता है।

आरती पूजा के अंत में धूप, दीप, कपूर से की जाती है। इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। आरती में एक, तीन, पांच, सात यानि विषम बत्तियों वाला दीपक प्रयोग किया जाता है।

भगवान शिव जी की आरती
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
ॐ जय शिव ओंकारा,भोले हर शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ हर हर हर महादेव...॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
तीनों रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भोले शशिधारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता।
जगकर्ता जगभर्ता जगपालन करता ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठि दर्शन पावत रुचि रुचि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

लक्ष्मी व सावित्री, पार्वती संगा ।
पार्वती अर्धांगनी, शिवलहरी गंगा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।

पर्वत सौहे पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।

जटा में गंगा बहत है, गल मुंडल माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।

त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

ॐ जय शिव ओंकारा भोले हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा ।। ॐ हर हर हर महादेव।।

कर्पूर आरती
〰️〰️〰️〰️
कर्पूरगौरं करुणावतारं, संसारसारम् भुजगेन्द्रहारम्।
सदावसन्तं हृदयारविन्दे, भवं भवानीसहितं नमामि॥

मंगलम भगवान शंभू
मंगलम रिषीबध्वजा ।
मंगलम पार्वती नाथो
मंगलाय तनो हर ।।

मंत्र पुष्पांजलि 
〰️〰️〰️〰️
मंत्र पुष्पांजली मंत्रों द्वारा हाथों में फूल लेकर भगवान को पुष्प समर्पित किए जाते हैं तथा प्रार्थना की जाती है। भाव यह है कि इन पुष्पों की सुगंध की तरह हमारा यश सब दूर फैले तथा हम प्रसन्नता पूर्वक जीवन बीताएं।

ॐ यज्ञेन यज्ञमयजंत देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।

ते हं नाकं महिमान: सचंत यत्र पूर्वे साध्या: संति देवा:

ॐ राजाधिराजाय प्रसह्ये साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे स मे कामान्कामकामाय मह्यम् कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु।
कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नम:

ॐ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं
पारमेष्ठ्यं राज्यं माहाराज्यमाधिपत्यमयं समंतपर्यायी सार्वायुष आंतादापरार्धात्पृथिव्यै समुद्रपर्यंता या एकराळिति तदप्येष श्लोकोऽभिगीतो मरुत: परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन्गृहे आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवा: सभासद इति।

ॐ विश्व दकचक्षुरुत विश्वतो मुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पात संबाहू ध्यानधव धिसम्भत त्रैत्याव भूमी जनयंदेव एकः।
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥

नाना सुगंध पुष्पांनी यथापादो भवानीच
पुष्पांजलीर्मयादत्तो रुहाण परमेश्वर
ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री सांबसदाशिवाय नमः। मंत्र पुष्पांजली समर्पयामि।।

प्रदक्षिणा
〰️〰️〰️
नमस्कार, स्तुति -प्रदक्षिणा का अर्थ है परिक्रमा। आरती के उपरांत भगवन की परिक्रमा की जाती है, परिक्रमा हमेशा क्लॉक वाइज (clock-wise) करनी चाहिए। स्तुति में क्षमा प्रार्थना करते हैं, क्षमा मांगने का आशय है कि हमसे कुछ भूल, गलती हो गई हो तो आप हमारे अपराध को क्षमा करें।
 
यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च। तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे।।

अर्थ: जाने अनजाने में किए गए और पूर्वजन्मों के भी सारे पाप प्रदक्षिणा के साथ-साथ नष्ट हो जाए। 
〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️
English Translation :-

Shukra Pradosh Vrat Introduction and Pradosh Vrat Detailed Method

 〰

 There is a law to observe Pradosh fast on Trayodashi Tithi of every lunar month.  This fast is done on both Krishna Paksha and Shukla Paksha.  The time of 2 hours 24 minutes after sunset is known as Pradosh Kaal.  It varies according to the states.  Generally, the period from sunset to the beginning of the night can be taken as Pradosh Kaal.


 It is believed that Lord Bholenath dances in a happy posture on Mount Kailash during Pradosh period.  Those people who have unwavering faith in Lord Shri Bholenath, those people should fast by following the rules of Pradosh fast falling on Trayodashi Tithi.


 This fast is supposed to connect the fasting person to Dharma, Moksha and to free him from the shackles of Artha, Kama.  Lord Shiva is worshiped in this fast.  Those who worship Lord Shiva get freedom from poverty, death, sorrow and debts.


 Importance of Pradosh Vrat

 〰

 According to the scriptures, keeping Pradosh fast gives the same reward as donating two cows.  A mythological fact comes to the fore regarding Pradosh Vrat that "One day when there will be a state of unrighteousness, injustice and incest will prevail, selfishness will be high in man. And instead of doing good deeds, the person will do more lowly deeds.


 During that time, the person who observes Trayodashi fast and worships Shiva, will have the blessings of Shiva.  The person who observes this fast, after getting out of the cycle of birth after birth, proceeds on the path of salvation.  He attains the highest level.


 fruits of fasting

 〰

 The benefits of Pradosh fasting are obtained according to different times.


 For example, the Varta performed when Trayodashi falls on Monday provides health.  When Pradosh Vrat is observed on Monday, when Trayodashi arrives, the desires related to fasting are fulfilled.  In the month in which Pradosh Vrat is observed for Trayodashi on Tuesday, the fasting of that day gives relief from diseases and health benefits and if Pradosh Vrat is observed on Wednesday, then all the wishes of the faster are likely to be fulfilled.


 Guru Pradosh fast is observed for the destruction of enemies.  Pradosh fast on Friday is observed for good luck and happiness and peace in married life.  In the end, those who wish to have a child, they should observe Pradosh fast which falls on Saturday.  When Pradosh Vrat is observed keeping in view its objectives, the fruits obtained from the fast increase.


 fasting method

 〰

 In the morning after bath, bathe Lord Shiva, Parvati and Nandi with Panchamrit and water.  After bathing with Ganges water, offer Bel leaves, Gandha, Akshat (rice), flowers, incense, lamp, Naivedya (Bhog), fruits, betel leaves, betel nuts, cloves and cardamom.  Then take a bath in the evening and worship Lord Shiva in the same way.  Then offer all the things to Shiva once. And after that worship Lord Shiva with sixteen ingredients.  Afterwards, offer barley sattu mixed with ghee and sugar to Lord Shiva.  After this, light eight lamps in eight directions.  As many times in whichever direction you place the lamp, do salute while keeping the lamp.  In the end, do the aarti of Shiva and also chant the Shiva stotra, mantra.  Wake up at night.


 Uddhapan at the end of Pradosh fast

 〰

 After keeping this fast for eleven or 26 Trayodashis, the fast should be ended.  It is also known as Uddhapan.


 method of production

 〰

 After keeping this fast for eleven or 26 Trayodashis, the fast should be ended.  It is also known as Uddhapan.


 Trayodashi date is selected for the commencement of this fast.  One day before Uddhapan, Shri Ganesh is worshipped.  Jagran is done by chanting Kirtan in the previous night.  Waking up early in the morning, making a mandap, the mandap is prepared by decorating it with clothes or Padma flowers.  A rosary of the mantra "Om Uma including Shivaay Namah" i.e. 108 times, the Havan is performed.  Kheer is used for offering in Havan.


 After the completion of the havan, the aarti of Lord Bholenath is performed.  And peace is recited.  In the end, two brahmins are fed food.  And blessings are obtained by giving charity according to one's ability.


 Shukra Pradosh fast

 〰

 Soot ji said – “Wish for the desired accomplishment, if there is heart thought.

 Dharma, Artha, Kamadi, Pleasure, the four things you get.


 fasting story

 〰

 It is a matter of ancient times, three friends lived in a city – a prince, second a Brahmin Kumar and third a wealthy son.  Rajkumar and Brahmin Kumar were married.  The wealthy son was also married, but the cow was left.  One day the three friends were discussing women.  Praising the women, the Brahmin Kumar said, "A womanless house is a den of ghosts." When the wealthy son heard this, he immediately decided to bring his wife.  The parents explained to him that now the deity of Venus is submerged.  In such a situation, it is not auspicious to get daughters-in-law away from their homes.  But Dhanik did not accept his son and went to his in-laws' house.  Many efforts were made to stop her in her in-laws' house too, but she did not give up.  The parents were forced to bid farewell to their daughter.  After leaving the in-laws' house, the husband and wife had just come out of the city when the wheel of their bullock cart got separated and the leg of a bull was broken.  Both of them suffered severe injuries, yet they continued to move forward.  After going some distance, he met the bandits.  The robbers took away the money and grains.  Both of them reached home crying.  There the wealthy son was bitten by the snake.  His father called the doctor.  The Vaidya announced after inspection that the wealthy son would die in three days. When the Brahmin Kumar got this news, he came immediately.  He advised the parents to observe Shukra Pradosh fast and said- 'Send it back to the in-laws' house along with the wife.  All these obstacles have come because your son has brought the wife away in Shukrasta.  If it reaches there, it will be saved.' Dhanik liked the words of Brahmin Kumar.  He did exactly the same .  Dhanik Kumar's condition kept getting better as soon as he reached his in-laws' house.  Due to the greatness of Shukra Pradosh, all the great troubles were averted.


 Pradoshstottram

 〰

 ,  Om Shree Ganeshaya Namaha..


 Jai Dev Jagannath Jai Shankar Eternal.  Jay Sarvsuradhyaksha Jay Sarvsurarchit  1॥


 Jai sarvagunateet jai sarvavarprad.

 Jai nitya baseless jai Vishwambharavaya  2


 Jay Vishwavaikvandyesh Jay Nagendra Bhushan.

 Jai Gauripete Shambho Jai Chandradhashekhar  3


 Jai kotyarkasakash jayanantgunashraya.  Jai Bhadra Virupaksha Jayachintya Niranjan.  4


 Jai Nath Kripasindho Jai Bhaktartibhanjan.  Jai dustarsansarsagarotaran prabho  5


 Mahadev sansaratsya khidyah in Prasidh.  Sarvapaapakshayam Kritva Rakshak Mother Parmeshwar  6


 Mahadaridryamagnasya mahapapahatsya c.  Mahashoknavishtasya Maharogatursya f  7


 Debabharparitasya dahyamanasya karmabhih.  Grahaiah Prapidyamanasya Prasid Mama Shankar.  8


 Poor: Prathayeddevam Pradoshe Girijapatim.  Arthadhyo Vaath Raja or Prathyeddevmishwaram.  9॥


 Long life: good health.

 Mamastu Nityamandah Prasadattva Shankar.  10


 Shatravah sankshayam yantu prasidanthu mama prajah.  Nasyantu Dasyavo Rashtra Janaah Santu Nirapadah.  11


 Durbhikshamarisantapa: Shama yantu Mahitale.  Sarvasyasamridhischa Bhuyatsukhamaya Dishah  12


 Evamaradhayeddevam pujaante girijapatim.  brahmananbhojayet pachhaddakshinabhischa pujayet.  13


 Sarvapaakshaykari omnipresence.  Shiv Puja Mayakhyata Sarvabhishtafalprada.  14॥


 ,  Iti Pradoshastotra Sampoornam

 〰

 After reciting Katha and Stotra, do Aarti of Mahadev ji.


 Tambul, Dakshina, Jal-arati

 〰

 Tambul means paan.  It is an important worship material.  Tambul is offered after the fruit.  Pungi fruit (betel nut), cloves and cardamom are also added along with the tambul.  Dakshina means money is offered.  God is hungry for emotion.  So they have nothing to do with matter.  Money, gold, silver, anything can be offered in the form of money.


 Aarti is performed at the end of the puja with incense, lamp, camphor.  Without this worship is considered incomplete.  One, three, five, seven i.e. a lamp with odd lights is used in the aarti.


 Lord Shiva's Aarti

 〰

 Jai Shiv Omkara, Bhole Har Shiv Omkara.

 Brahma Vishnu always Shiva Ardhangi stream.  Har Har Har Mahadev...


 Ekanan Chaturanan Panchanan Raje.

 Harsanan Garudasana Vrishavahana  Har Har Har Mahadev..


 Two sides, four quadrilaterals, ten sides, sleep too much.

 Tribhuvan Jan Mohe  Har Har Har Mahadev..


 Akshamala Banmala Mundmala stripe.

 Sandalwood Mrigmad Sohai Bhole Shashidhari  Har Har Har Mahadev..


 Shwetambar Pitamber Baghambar Ange.

 Sanakadik Garunadik Bhutadik Sange  Har Har Har Mahadev..


 Kamandalu Chakra Trishul dharta in the middle of the tax.

 Jagkarta Jagbharta does the world  Har Har Har Mahadev..


 Brahma Vishnu Sadashiv knows he is indecisive.

 These three are united in the middle of Pranavakshar.  Har Har Har Mahadev..


 Vishwanath Virajat Nandi Brahmachari in Kashi.

 Nit rise darshan pawat interest interest enjoyment indulgent glory very heavy.  Har Har Har Mahadev..


 Lakshmi and Savitri, with Parvati.

 Parvati Ardhangani, Shivlahari Ganga..  Har Har Har Mahadev....


 Parvat Sauhe Parvati, Shankar Kailasa.

 The food of hemp dhatoor, the ash in the ashes.  Har Har Har Mahadev....


 The Ganges is flowing in the Jata, the garland of Gal Mundal.

 The remaining snake wrapped, covered with deer.  Har Har Har Mahadev....


 Whoever sings the aarti of Trigun Shivaji.

 Kahat Shivanand Swami should get the desired fruit.  Har Har Har Mahadev..


 Jai Shiv Omkara Bhole Har Shiv Omkara

 Brahma Vishnu Sadashiv Ardhangi stream.  Har Har Har Mahadev.


 camphor aarti

 〰

 Karpoorgaurm Karunavataram, Sansarasaram Bhujgendraharam.

 Sadavasantam Hrudayarvinde, Bhavam Bhavani Sahitam Namami.


 Mangalam Lord Shambhu

 Mangalam Rishibadhwaja.

 Mangalam Parvati Natho

 Happy birthday everyone.


 Mantra Wreath

 〰

 Mantra Pushpanjali Flowers are offered to the Lord with flowers in his hands by mantras and prayers are offered.  The feeling is that like the fragrance of these flowers, our fame will spread far and we may live happily.


 Om Yajna Yagyamayanta Devastani Dharmani Pratmanyasan.


 Te hum nakam mahimayan: sachant yatra purve sadhya: santi deva:


 Rajadhirajaya prasahye sahane namo vayam vaishravanay kurmah s me kamankamakamaye mahyam kameshwaro vaishravno dadatu.

 Kuberaya Vaishravanay Maharaja Namah:


 Swasti Empire Bhaujyam Swarajya Vairagya

 Parmeshtyam Rajya Maharajyamadhipatyam Samantparyayi Sarvayush Antadaparadhatprithvyai Samudraparyanta or Ekraati Tapyesh Shlokolbhigeto Marutah Pariveshtaro Marutsyavasangrihe Avikshitasya Kamprevvedeva: Sabhasad etc.


 Om Vishva Dakkshurut Vishwato Mukho Vishwatobahurut Vishwataspat Sambahu Dhyanadhav Dhimbhat Tratyav Bhumi Janayamdev Ekah.

 Tatpurushaya Vidmahe Mahadevaya Dhimahi

 Tanno Rudra: Prachodayat


 Nana Sugandha Pushpani Yathapado Bhavanich

 Pushpanjalirmayadattto Ruhan Parmeshwar

 Om Bhurbhuva: Self: Bhagwate Shri Sambasadashivay Namah.  Mantra Pushpanjali Samarpayami.


 circumambulation

 〰

 Salutations, Pradakshina means circumambulation.  After the aarti, the circumambulation of God is done, the circumambulation should always be done clock-wise.  We pray for forgiveness in praise, the meaning of asking for forgiveness is that if we have made some mistake, mistake, then you forgive our crime.



 That is, Kani Cha Papani Janamantar Kritani Ch.  Tani savarni nashyantu pradakshine pade-pade.


 Meaning: All the sins committed knowingly and unknowingly and also in the previous births should be destroyed along with the circumambulation.


25 मई 2022

अपरा एकादशी Apara Ekadashi, 26 May 2022


लेख:-अपरा एकादशी, 26 मई 2022

एकादशी तिथि आरंभ–25 मई, 10:34 am
एकादशी तिथि समाप्त–26 मई, 10:55 am
व्रत पारण का समय– 27 मई, 5:25 am से 8:10 am तक।
अवधि:- 2 घंटे 45 मिनट

अपरा एकादशी का व्रत प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है, वर्ष  2022 में अपरा एकादशी का व्रत 26 मई को रखा जाएगा।

अपरा एकादशी को जलक्रीड़ा एकादशी, अंजलि एकादशी, अचला एकादशी, अपरा एकादशी, और भद्रकाली एकादशी नाम से भी जाना जाता है। एकादशी का पर्व भगवान विष्णु जी को समर्पित है, अर्थात एकादशी के दिन मुख्य रूप से भगवान विष्णु 
या इनके अन्य अवतार की पूजा की जाती है, परंतु अपरा एकादशी को भद्रकाली एकादशी के रूप में भी मनाया जाता है, ऐसा माना जाता है आज ही के दिन भगवान शिव की जटाओ से मां भद्रकाली प्रकट हुईं थी। मां भद्रकाली के प्रकाट्य का मुख्य कारण पृथ्वी से राक्षसों का संहार करना था। अतः इस दिन माता दुर्गा के भद्रकाली रूप की भी पूजा की जाती है 

अपरा एकादशी के द‍िन भगवान विष्णु की पूजा उनके एक अन्य नाम 'भगवान त्रिविक्रम' के नाम से भी की जाती है। मान्‍यता है कि अपरा एकादशी के व्रत तथा पूजन से मनुष्‍य सभी पापों से मुक्‍त हो जाता है। अपरा एकादशी का शाब्दिक तात्पर्य है कि इस एकादशी का पुण्य अपार है। इस दिन व्रत करने से कीर्ति, पुण्य और धन की वृद्धि होती है। वहीं मनुष्य को ब्रह्म हत्या, परनिंदा और प्रेत योनि जैसे पापों से मुक्ति मिल जाती है। 

अपरा एकादशी व्रत का महत्व:-
नारदपुराण के अनुसार एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को बेहद प्रिय होता है। जिस तरह चतुर्थी को गणेश जी, त्रयोदशी को शिवजी, पंचमी को लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है उसी प्रकार एकादशी तिथि को भगवान श्री हरि विष्णु जी की पूजा की जाती है।
अपरा एकादशी व्रत के प्रभाव से सुखों तथा आनंद की प्राप्ति होती है, तथा पापों का नाश होता है। इस एकादशी का उपवास रखने से पापी मनुष्य के भी पाप कट जाते हैं और अपार खुशियां मिलती हैं। 

अपरा एकादशी के संबंध में शास्त्रों मे यह कहा गया है कि, मकर संक्रांति के समय गंगा स्नान से, जो फल कुंभ स्नान, केदारनाथ के दर्शन या बद्रीनाथ के दर्शन से, सूर्यग्रहण के समय कुरुक्षेत्र मे स्वर्णदान करने से जो फल मिलता है, तथा शिवरात्रि के समय काशी में स्नान करने से जो पुण्य मिलता है, जो फल गंगा तट पर पितरों को पिंडदान करने से प्राप्त होता है, ठीक उन्ही के समान पुण्य की प्राप्ति अपरा एकादशी के व्रत से होती है।

शास्त्रों मे आगे वर्णित है कि अपरा एकादशी बडी पुण्य प्रदाता और बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाली है। ब्रह्मा हत्या से दबा हुआ, सगोत्र की हत्या करने वाला, गर्भस्थ शिशु को मारने वाला, परनिंदक, परस्त्रीगामी मनुष्य भी अपरा एकादशी का व्रत रखने से पापो से मुक्ति प्राप्त करता है ।


अपरा एकादशी व्रत पूजा विधि:-

अपरा एकादशी व्रत के दिन मनुष्य को तन और मन से शुद्ध होना आवश्यक है । इस व्रत की शुरूआत दशमी के दिन से ही खान-पान, आचार- विचार द्वारा करनी चाहिए। 

1.  अपरा एकादशी से एक दिन पूर्व यानि दशमी के दिन शाम को सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए। रात्रि में भगवान का ध्यान करते हुए सोना चाहिए।

2. एकादशी के दिन प्रातः साधक को नित क्रियाओं से निवृत्त होकर स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। 

3.इसके बाद भगवान विष्णु, कृष्ण तथा बलराम जी का धूप, दीप, फल, फूल, तिल आदि से पूजा करने का विशेष विधान है। विष्णुसहस्रनाम का पाठ करना चाहिए। एकादशी पर जो व्यक्ति विष्णुसहस्रनाम का पाठ करता है उस पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है।

4. पूरे दिन निर्जल उपवास करना चाहिए, यदि संभव ना हो तो पानी तथा एक समय फल आहार ले सकते हैं। व्रत रखने वाले व्यक्ति को इस दिन छल-कपट, बुराई और झूठ नहीं बोलना चाहिए। इस दिन चावल खाने की भी मनाही होती है।

5. द्वादशी के दिन यानि पारण के दिन भगवान का पुनः पूजन कर कथा का पाठ करना चाहिए। कथा पढ़ने के बाद प्रसाद वितरण, ब्राह्मण को भोजन तथा दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए। 

6. ब्राह्मण भोजन तथा दक्षिणा इत्यादि के बाद ही स्वयं का उपवास खोलना चाहिए।


अपरा एकादशी को पथ्य-अपथ्य:-

अपथ्य:-(अर्थात ग्रहण न करने योग्य)
1. व्रती को गाजर, शलजम, गोभी, पालक, कुलफा का साग इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए। 

2. मांस, प्याज, मसूर की दाल आदि का निषेध वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए।

3. रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा भोग-विलास से दूर रहना चाहिए।

4. क्रोध करना तथा अपशब्द बोलना इत्यादि वर्जित है । 

5. एकादशी के दिन बाल कटवाना अर्थात क्षौर कर्म नही करना चाहिए।

6. एकादशी को चावल व साबूदाना खाना वर्जित है 


पथ्य:-( ग्रहण करने योग्य)
1. केला, आम, अंगूर, बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन किया जा सकता है।

2. एकादशी को आँवले के रस का प्रयोग कर स्नान करने से पापो का नाश हो जाता है ।


अपरा (अचला) एकादशी व्रत कथा:-
अपरा एकादशी की व्रत कथा के संबंध में दो तथा दो से अधिक कथाएं प्रचलित है, इनमे से एक मुख्य  कथा इस प्रकार से है:-

कथा:-
प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था। 

उस अवसरवादी पापी भाई ने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को एक जंगली पीपल के नीचे गाड़ दिया। इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा। 

अकस्मात एक दिन धौम्य नामक ॠषि उधर से गुजरे। उन्होंने प्रेत को देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। अपने तपोबल से प्रेत उत्पात का कारण समझा। ॠषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया। दयालु ॠषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा (अचला) एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। वह ॠषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया।

(समाप्त)
_________________________

आगामी लेख:-
1. 26 मई को "प्रदोष व्रत" पर लेख
2. 27 मई को "मासिक शिवरात्रि" पर लेख
3. 28 मई को "वटसावित्री व्रत(अमावस्या)" पर लेख
4. 29,30 मई को "सोमवती अमावस्या/शनैश्चर जयंती" पर लेख
5. 1 जून को "रंभा तृतीया" पर लेख
_________________________
जय श्री राम
आज का पंचांग,दिल्ली 🌹🌹🌹
बुधवार,25.5.2022
श्री संवत 2079
शक संवत् 1944
सूर्य अयन- उत्तरायण, गोल-उत्तर गोल
ऋतुः- ग्रीष्म ऋतुः ।
मास- ज्येष्ठ मास।
पक्ष- कृष्ण पक्ष ।
तिथि- दशमी तिथि 10:34 am तक
चंद्रराशि- चंद्र मीन राशि में।
नक्षत्र- उ०भाद्रपद नक्षत्र 11:19 pm तक
योग- प्रीति योग 10:43 pm तक (शुभ है)
करण- विष्टि करण 10:34 am तक
सूर्योदय- 5:26 am, सूर्यास्त 7:10 am
अभिजित् नक्षत्र-कोई नहीं
राहुकाल- 12:18 pm से 2:01 pm शुभ कार्य  वर्जित
दिशाशूल- उत्तर दिशा।

मई शुभ दिन:- 25 (सवेरे 11 उपरांत), 26, 28 (दोपहर 12 तक).
मई अशुभ दिन:-  28, 29, 30, 31. 

भद्रा:- 24 मई 10:40 pm से 25 मई 10:33 am तक ( भद्रा मे मुण्डन, गृहारंभ, गृहप्रवेश, विवाह, रक्षाबंधन आदि शुभ काम नही करने चाहिये , लेकिन भद्रा मे स्त्री प्रसंग, यज्ञ, तीर्थस्नान, आपरेशन, मुकद्दमा, आग लगाना, काटना, जानवर संबंधी काम किए जा सकतें है।

गण्ड मूल आरम्भ:-
25 मई, रेवती नक्षत्र, 11:20 pm से 28 मई को अश्विनी नक्षत्र 2:26 am तक गंडमूल रहेगें। गंडमूल नक्षत्रों मे जन्म लेने वाले बच्चो का मूलशांति पूजन आवश्यक है।

गण्ड मूल आरम्भ:-
25 मई, रेवती नक्षत्र, 11:20 pm से 28 मई को अश्विनी नक्षत्र 2:26 am तक गंडमूल रहेगें। गंडमूल नक्षत्रों मे जन्म लेने वाले बच्चो का मूलशांति पूजन आवश्यक है।

पंचक प्रारंभ:- 22 मई को 11:12 am से 26/27 मई अर्धरात्रि 00:39 am तक पंचक नक्षत्रों  मे निम्नलिखित काम नही करने चाहिए, 1.छत बनाना या स्तंभ बनाना( lantern  or Pillar ) 2.लकडी  या  तिनके तोड़ना , 3.चूल्हा लेना या बनाना, 4. दाह संस्कार करना (cremation) 5.पंलग चारपाई, खाट , चटाई  बुनना  या बनाना 6.बैठक का सोफा या गद्दियाँ बनाना । 7 लकड़ी ,तांबा ,पीतल को जमा करना ।(इन कामो के सिवा अन्य सभी शुभ  काम पंचको मे किए जा सकते है।
________________________

आगामी व्रत तथा त्यौहार:-
26 मई-अपरा- भद्रकाली एकादशी। 27 मई- प्रदोष व्रत। 28 मई- मासिक शिवरात्रि। 30 मई- ज्येष्ठ/भावुका/सोमवती अमावस्या/शनैश्चर जयंती।
______________________

विशेष:- जो व्यक्ति वाराणसी से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु Paytm या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है
________________________

आपका दिन मंगलमय हो . 💐💐💐


-------------------------------------------------

English Translation :-

Article:-Apara Ekadashi, 26 May 2022


 Ekadashi date starts – May 25, 10:34 am

 Ekadashi date ends – May 26, 10:55 am

 Fasting time- May 27, 5:25 am to 8:10 am.

 Duration:- 2 Hours 45 Minutes


 The fast of Apara Ekadashi is observed every year on the Ekadashi date of Krishna Paksha of Jyeshtha month, in the year 2022, the fast of Apara Ekadashi will be kept on 26 May.


 Apara Ekadashi is also known as Jalkrida Ekadashi, Anjali Ekadashi, Achala Ekadashi, Apara Ekadashi, and Bhadrakali Ekadashi.  The festival of Ekadashi is dedicated to Lord Vishnu, that is, on the day of Ekadashi, mainly Lord Vishnu.

 Or his other incarnation is worshiped, but Apara Ekadashi is also celebrated as Bhadrakali Ekadashi, it is believed that on this day Mother Bhadrakali appeared from Lord Shiva's hair.  The main reason for the appearance of Maa Bhadrakali was to destroy the demons from the earth.  Therefore, the Bhadrakali form of Mother Durga is also worshiped on this day.


 On the day of Apara Ekadashi, Lord Vishnu is also worshiped by the name of his another name 'Lord Trivikram'.  It is believed that by fasting and worshiping Apara Ekadashi, a person becomes free from all sins.  The literal meaning of Apara Ekadashi is that the merit of this Ekadashi is immense.  Fasting on this day increases fame, virtue and wealth.  At the same time, man gets freedom from sins like killing Brahma, blasphemy and phantom vagina.


 Significance of Apara Ekadashi Vrat:-

 According to Naradpuran, fasting on Ekadashi is very dear to Lord Vishnu.  Just as Ganesh ji is worshiped on Chaturthi, Shiva ji on Trayodashi, Lakshmi ji on Panchami, similarly Lord Shri Hari Vishnu ji is worshiped on Ekadashi.

 With the effect of Apara Ekadashi fasting, happiness and joy are attained, and sins are destroyed.  By observing fast on this Ekadashi, the sins of even sinners are cut away and immense happiness is attained.


 In relation to Apara Ekadashi, it has been said in the scriptures that, at the time of Makar Sankranti, the fruit obtained by bathing in the Ganges, by bathing in Kumbh, by visiting Kedarnath or by visiting Badrinath, by donating gold in Kurukshetra during solar eclipse, and on Shivratri.  At the time of taking a bath in Kashi, the merit which is obtained by offering Pind Daan to the ancestors on the banks of the Ganges, the same virtue is attained by fasting on Apara Ekadashi.


 It is further mentioned in the scriptures that Apara Ekadashi is the provider of great virtues and the destroyer of great evils.  The one who is suppressed by killing Brahma, the one who kills the kinsman, the one who kills the pregnant child, the blasphemer, the adulterous person also gets freedom from sins by observing the fast of Apara Ekadashi.



 Apara Ekadashi Vrat Puja Method:-


 On the day of Apara Ekadashi fasting, it is necessary for a person to be pure in body and mind.  This fast should be started from the day of Dashami by eating, eating, and thinking.


 1.  One day before Apara Ekadashi i.e. on the day of Dashami, one should not eat food after sunset in the evening.  One should sleep at night meditating on God.


 2. On the day of Ekadashi, in the morning the seeker should retire from routine activities and take a vow of fast after taking bath.


 3. After this, there is a special law to worship Lord Vishnu, Krishna and Balram ji with incense, lamp, fruits, flowers, sesame etc.  Vishnu Sahasranama should be recited.  The person who recites Vishnu Sahasranama on Ekadashi is specially blessed by Lord Vishnu.


 4. Waterless fasting should be done throughout the day, if it is not possible then water and fruit food can be taken at one time.  The person observing the fast should not tell deceit, evil and lies on this day.  Eating rice is also prohibited on this day.


 5. On the day of Dwadashi i.e. on the day of Paran, worship the Lord again and recite the story.  After reading the story, distribution of prasad, food and dakshina to the Brahmin should be done.


 6. One should break his own fast only after Brahmin food and Dakshina etc.



 Diet on Apara Ekadashi:-


 Apathya:- (i.e. unacceptable)

 1. The fasting should not take carrot, turnip, cabbage, spinach, greens of Kulfa etc.


 2. Prohibited items like meat, onion, lentils etc. should not be consumed.


 3. One should follow complete celibacy at night and should stay away from indulgences and luxury.


 4. Getting angry and speaking abusive words etc. is prohibited.


 5. Hair cut on the day of Ekadashi means Kshaur Karma should not be done.


 6. It is forbidden to eat rice and sago on Ekadashi.



 Diet:- (Adaptable)

 1. Banana, mango, grapes, almond, pistachio etc. nectar fruits can be consumed.


 2. Taking bath on Ekadashi using amla juice destroys sins.



 Apara (Achal) Ekadashi fasting story:-

 Two and more than two stories are prevalent in relation to the fast story of Apara Ekadashi, one of the main stories is as follows:-


 Story:-

 In ancient times there was a godly king named Mahidhwaj.  His younger brother Vajradhwaj was very cruel, unrighteous and unjust.  He hated his elder brother.


 That opportunistic sinner brother killed his elder brother one day in the night and buried his body under a wild peepal.  Due to this premature death, the king started living on the same peepal in the form of a spirit and started doing many troubles.


 Suddenly one day a sage named Dhaumya passed by.  He saw the phantom and learned his past from Tapobal.  With his tenacity, he understood the reason for the phantom violence.  The sage, being pleased, brought that phantom down from the peepal tree and preached the knowledge of the afterlife.  The merciful sage himself observed Apara (Achala) Ekadashi to get rid of the king's phantom vagina and offered his virtue to the phantom to free him from the agony.  Due to the effect of this virtue, the king was freed from the phantom vagina.  Giving thanks to the sage, he assumed the divine body and went to heaven by sitting in the Pushpak Vimana.


 (End)

 Next article:-

 1. Article on "Pradosh Vrat" on 26 May

 2. Article on "Monthly Shivratri" on May 27

 3. Article on "Vatsavitri Vrat (Amavasya)" on 28 May

 4. Article on "Somavati Amavasya/Shanashchar Jayanti" on 29,30 May

 5. Article on "Rambha Tritiya" on 1st June

 Long live Rama

 Today's Panchang, Delhi

 Wednesday, 25.5.2022

 Shree Samvat 2079

 Shaka Samvat 1944

 Surya Ayan- Uttarayan, Round-North Round

 Rituah - Summer season.

 Month - the eldest month.

 Paksha - Krishna Paksha.

 Date- Dashami date till 10:34 am

 Moon Sign - Moon in Pisces.

 Nakshatra- Ubhadrapada Nakshatra till 11:19 pm

 Yoga- Preeti Yoga till 10:43 pm (good luck)

 Karan- Vishti Karan till 10:34 am

 Sunrise- 5:26 am, Sunset 7:10 am

 Abhijit Nakshatra - none

 Rahukaal- 12:18 pm to 2:01 pm Good work is prohibited

 Direction – North direction.


 May auspicious days:- 25 (after 11 a.m.), 26, 28 (till 12 noon).

 May inauspicious days:- 28, 29, 30, 31.


 Bhadra: - May 24, 10:40 pm to May 25, 10:33 am (Shunning, housewarming, home entry, marriage, Rakshabandhan etc. should not be done in Bhadra, but in Bhadra there should be female affairs, yagya, pilgrimage, operation, litigation,  Fire, cutting, animal related work can be done.


 Gand Mool Aarambh:-

 On May 25, Revati Nakshatra, from 11:20 pm to May 28, Ashwini Nakshatra will remain Gandmool till 2:26 am.  Children born in Gandmool constellations need to worship Moolshanti.


 Gand Mool Aarambh:-

 On May 25, Revati Nakshatra, from 11:20 pm to May 28, Ashwini Nakshatra will remain Gandmool till 2:26 am.  Children born in Gandmool constellations need to worship Moolshanti.


 Panchak Start:- On May 22 from 11:12 am to midnight on May 26/27 till 00:39 am the following things should not be done in Panchak constellations, 1. Making a roof or making a pillar (lantern or pillar) 2. Breaking wood or straws,  3. Taking or making a hearth, 4. cremation (cremation) 5. Bed cot, cot, mat, knitting or making 6. Making sofa or mattress for the meeting.  7 To deposit wood, copper, brass. (Apart from these works all other auspicious work can be done in Panchko.


 Upcoming fasts and festivals:-

 May 26 - Apara- Bhadrakali Ekadashi.  May 27 - Pradosh fast.  May 28 - Monthly Shivratri.  May 30- Jyeshtha/Bhavuka/Somavati Amavasya/Shanishchar Jayanti.


 Special:- The person who lives outside Varanasi or outside the country, he can get astrological consultation by phone, by paying the consultation fee through Paytm or Bank transfer for astrological consultation.

 Have a good day . 

कामदा एकादशी व्रत 19-04-2024

☀️ *लेख:- कामदा एकादशी, भाग-1 (19.04.2024)* *एकादशी तिथि आरंभ:- 18 अप्रैल 5:31 pm* *एकादशी तिथि समाप्त:- 19 अप्रैल 8:04 pm* *काम...