25 सितंबर 2022

शारदीय नवरात्रि घट (कलश) स्थापना मुहूर्त एवं पूजाविधि ।। Sharadiya Navratri Ghat (Kalash) Establishment Muhurta and Worship

शारदीय नवरात्रि विशेष
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शारदीय नवरात्रि घट (कलश) स्थापना मुहूर्त एवं पूजाविधि
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प्रतिवर्ष की भांति इसवर्ष भी हिंदुओ के प्रमुख त्योहारो में से एक शारदीय नवरात्रि आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाएगा। इस नवरात्रि मां जगदंबा हाथी पर आएंगी और हाथी पर ही बैठकर जाएंगी । 

सोमवार के दिन हस्त नक्षत्र शुक्ल व ब्रह्म योग कन्या राशि के चन्द्र व कन्या के ही सूर्य आनन्दादि महायोग श्रीवत्स में यदि देवी आराधना का पर्व शुरू हो, तो यह देवीकृपा व इष्ट साधना के लिए विशेष रूप से शुभ माना जाता है। देवी भागवत में नवरात्रि के प्रारंभ व समापन के वार अनुसार माताजी के आगमन प्रस्थान के वाहन इस प्रकार बताए गए हैं।

आगमन वाहन
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"शशि सूर्य गजरुढा शनिभौमै तुरंगमे। गुरौशुक्रेच दोलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता॥"

रविवार व सोमवार को हाथी, शनिवार व मंगलवार को घोड़ा, गुरुवार व शुक्रवार को पालकी, बुधवार को नौका आगमन।

इस साल शारदीय नवरात्रि शनिवार से प्रारंभ हो रही हैं इसके अनुसार देवी मां डोली में विराजकर कैलाश से धरती पर आ रही हैं। 

प्रस्थान वाहन
〰️〰️〰️〰️रविवार व सोमवार भैंसा,
शनिवार और मंगलवार को सिंह,
बुधवार व शुक्रवार को गज हाथी,
गुरुवार को नर वाहन पर प्रस्थान

अतः मां का आगमन हाथी पर होगा जो
समृद्धि व खुशहाली का प्रतीक है। माता की विदाई भी हाथी पर होगी (मतांतर से नाव)। देवी भागवत के अनुसार जब मां का आगमन व विदाई हाथी पर होती है देश में खुशहाली का वातावरण निर्मित होता है व पर्याप्त वर्षा से जनता प्रसन्न होती है। नवरात्रि में घटस्थापना, ज्वार रोपण नवदुर्गाओं की क्रमशः पूजन, अर्चन, दुर्गा सप्तशती के सात सौ महामंत्रों से हवन, कन्या पूजन व अपनी अपनी कुल परम्परा के अनुसार कुल देवी पूजन व उपवास का विशेष महत्व है।

साधक भाई बहन जो ब्राह्मण द्वारा पूजन करवाने में असमर्थ है एवं जो सामर्थ्यवान होने पर भी समयाभाव के कारण पूजा नही कर पाते उनके लिये पंचोपचार विधि द्वारा सम्पूर्ण पूजन विधि बताई जा रही है आशा है आप सभी साधक इसका लाभ उठाकर माता के कृपा पात्र बनेंगे।

घट स्थापना एवं माँ दुर्गा पूजन शुभ मुहूर्त
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नवरात्रि में घट स्थापना का बहुत महत्त्व होता है। शुभ मुहूर्त में कलश स्थापित किया जाता है। घट स्थापना प्रतिपदा तिथि में कर लेनी चाहिए। इसे कलश स्थापना भी कहते है।

कलश को सुख समृद्धि , ऐश्वर्य देने वाला तथा मंगलकारी माना जाता है। कलश के मुख में भगवान विष्णु , गले में रूद्र , मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है। नवरात्री के समय ब्रह्माण्ड में उपस्थित शक्तियों का घट में आह्वान करके उसे कार्यरत किया जाता है। इससे घर की सभी विपदा दायक तरंगें नष्ट हो जाती है तथा घर में सुख शांति तथा समृद्धि बनी रहती है।

26 सितम्बर रात्रि को 03:08 बजे तक प्रतिपदा तिथि रहेगी। तथा सम्पूर्ण दिवस हस्त नक्षत्र रहेगा। चित्रा नक्षत्र वैधृति योग रहित अभिजित मुहूर्त, द्विस्वभाव लग्न में कलश स्थापना शुभ मानी जाती है। परन्तु इस वर्ष चित्रा नक्षत्र प्रतिपदा तिथि को नहीं रहेगा इसलिये साधक गण कन्या लग्न 06:07 से 07:47 तक घट स्थापना आदि कार्य सम्पन्न कर लें । ये समय सभी तरह से दोष मुक्त तो नही फिर भी कन्या लग्न होने से आंशिक दोषमुक्त है। इसके बाद दोपहर अभिजित मुहूर्त 11:44 से 12:32 में ही घटस्थापना (जौ बोना) अधिक शुभ रहेगा।

प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 25, 2022 को रात्रि 03:23 बजे से।

प्रतिपदा तिथि समाप्त - सितम्बर 27, को रात्रि 03:08 बजे तक।

नवरात्रि की तिथियाँ
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पहला नवरात्र - प्रथमा तिथि 26 सितम्बर 2022, सोमवार, शुक्ल योग माँ शैलपुत्री की उपासना।

दूसरा नवरात्र - द्वितीया तिथि, 27 सितम्बर, मंगलवार, ब्रह्म योग, माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना।

तीसरा नवरात्र - तृतीया तिथि, 28 सितम्बर, बुधवार, वैधृति योग, माँ चंद्रघंटा की उपासना।

चौथा नवरात्र - चतुर्थी तिथि 29 सितम्बर, गुरुवार, विषकुम्भ योग, माँ कुष्मांडा की उपासना।

पांचवां नवरात्र - पंचमी तिथि, 30 सितम्बर, शुक्रवार, प्रीती योग, माँ स्कन्द जी की उपासना।

छठा नवरात्र - षष्ठी तिथि, 1 अक्टूबर , शनिवार, आयुष्य योग, माँ कात्यायनी की उपासना।

सातवां नवरात्र - सप्तमी तिथि, 
2 अक्टूबर, रविवार, सौभाग्य योग, माँ कालरात्रि की उपासना।

आठवां नवरात्र - अष्टमी तिथि, 3 अक्टूबर, सोमवार, शोभन योग, माँ महागौरी की उपासना।

नौवां नवरात्र - नवमी तिथि,4 अक्टूबर, मंगलवार, अतिगण्ड योग माँ सिद्धिदात्री की उपासना।

दशहरा एवं दुर्गा विसर्जन - दशमी तिथि, 5 अक्तूबर 2022, बुधवार।

घट स्थापना एवं दुर्गा पूजन की सामग्री 
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👉 जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र। यह वेदी कहलाती है। 
👉 जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिटटी जिसमे कंकर आदि ना हो।
👉 पात्र में बोने के लिए जौ ( गेहूं भी ले सकते है )
👉 घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश ( सोने, चांदी या तांबे का कलश भी ले सकते है )
👉 कलश में भरने के लिए शुद्ध जल
👉 नर्मदा या गंगाजल या फिर अन्य साफ जल
👉 रोली , मौली
👉 इत्र, पूजा में काम आने वाली साबुत सुपारी, दूर्वा, कलश में रखने के लिए सिक्का ( किसी भी प्रकार का कुछ लोग चांदी या सोने का सिक्का भी रखते है )
👉 पंचरत्न ( हीरा , नीलम , पन्ना , माणक और मोती )
👉 पीपल , बरगद , जामुन , अशोक और आम के पत्ते ( सभी ना मिल पायें तो कोई भी दो प्रकार के पत्ते ले सकते है )
👉 कलश ढकने के लिए ढक्कन ( मिट्टी का या तांबे का )
👉 ढक्कन में रखने के लिए साबुत चावल
👉 नारियल, लाल कपडा, फूल माला
,फल तथा मिठाई, दीपक , धूप , अगरबत्ती

भगवती मंडल स्थापना विधि 
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जिस जगह पुजन करना है उसे एक दिन पहले ही साफ सुथरा कर लें। गौमुत्र गंगाजल का छिड़काव कर पवित्र कर लें।
सबसे पहले गौरी〰️गणेश जी का पुजन करें। 

भगवती का चित्र बीच में उनके दाहिने ओर हनुमान जी और बायीं ओर बटुक भैरव को स्थापित करें। भैरव जी के सामने शिवलिंग और हनुमान जी के बगल में रामदरबार या लक्ष्मीनारायण को रखें। गौरी गणेश चावल के पुंज पर भगवती के समक्ष स्थान दें।
मैं एक चित्र बना कर संलग्न किये दे रहा हूं कि कैसे रखना है सारा चीज। मैं एक एक कर विधि दे रहा हूं। आप बिल्कुल आराम से कर सकेंगे।

दुर्गा पूजन सामग्री
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पंचमेवा पंच​मिठाई रूई कलावा, रोली, सिंदूर, अक्षत, लाल वस्त्र , फूल, 5 सुपारी, लौंग,  पान के पत्ते 5 , घी, कलश, कलश हेतु आम का पल्लव, चौकी, समिधा, हवन कुण्ड, हवन सामग्री, कमल गट्टे, पंचामृत ( दूध, दही, घी, शहद, शर्करा ), फल, बताशे, मिठाईयां, पूजा में बैठने हेतु आसन, हल्दी की गांठ , अगरबत्ती, कुमकुम, इत्र, दीपक, , आरती की थाली. कुशा, रक्त चंदन, श्रीखंड चंदन, जौ, ​तिल, माँ की प्रतिमा, आभूषण व श्रृंगार का सामान, फूल माला।

गणपति पूजन विधि
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किसी भी पूजा में सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती है.हाथ में पुष्प लेकर गणपति का ध्यान करें।

गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्। 
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।

आवाहन:👉  हाथ में अक्षत लेकर
आगच्छ देव देवेश, गौरीपुत्र ​विनायक।
तवपूजा करोमद्य, अत्रतिष्ठ परमेश्वर॥

ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः इहागच्छ इह तिष्ठ कहकर अक्षत गणेश जी पर चढा़ दें। 

हाथ में फूल लेकर ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः आसनं समर्पया​मि, 

अर्घ्य👉 अर्घा में जल लेकर बोलें ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः अर्घ्यं समर्पया​मि, 

आचमनीय-स्नानीयं👉  ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः आचमनीयं समर्पया​मि 

वस्त्र👉  लेकर ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः वस्त्रं समर्पया​मि, 

यज्ञोपवीत👉 ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः यज्ञोपवीतं समर्पया​मि, 

पुनराचमनीयम्👉 दोबारा पात्र में जल छोड़ें। ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः  

रक्त चंदन लगाएं:👉  इदम रक्त चंदनम् लेपनम्  ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः , इसी प्रकार श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं।

इसके पश्चात सिन्दूर चढ़ाएं "इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः, 

दूर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं।
 
पूजन के बाद गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें: ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः इदं नानाविधि नैवेद्यानि समर्पयामि, 

मिष्ठान अर्पित करने के लिए मंत्र👉 शर्करा खण्ड खाद्या​नि द​धि क्षीर घृता​नि च, आहारो भक्ष्य भोज्यं गृह्यतां गणनायक। 

प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें। इदं आचमनीयं ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः 

इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें👉 ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः ताम्बूलं समर्पयामि।

अब फल लेकर गणपति को चढ़ाएं ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः फलं समर्पयामि, 

अब दक्षिणा चढ़ाये ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः द्रव्य दक्षिणां समर्पया​मि, अब ​विषम संख्या में दीपक जलाकर ​निराजन करें और भगवान की आरती गायें। हाथ में फूल लेकर गणेश जी को अर्पित करें, ​फिर तीन प्रद​क्षिणा करें। इसी प्रकार से अन्य सभी देवताओं की पूजा करें। जिस देवता की पूजा करनी हो गणेश के स्थान पर उस देवता का नाम लें।

घट स्थापना एवं दुर्गा पूजन की विधि
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सबसे पहले जौ बोने के लिए एक ऐसा पात्र लें जिसमे कलश रखने के बाद भी आस पास जगह रहे। यह पात्र मिट्टी की थाली जैसा कुछ हो तो श्रेष्ठ होता है। इस पात्र में जौ उगाने के लिए मिट्टी की एक परत बिछा दें। मिट्टी शुद्ध होनी चाहिए । पात्र के बीच में कलश रखने की जगह छोड़कर बीज डाल दें। फिर एक परत मिटटी की बिछा दें। एक बार फिर जौ डालें। फिर से मिट्टी की परत बिछाएं। अब इस पर जल का छिड़काव करें।

कलश तैयार करें। कलश पर स्वस्तिक बनायें। कलश के गले में मौली बांधें। अब कलश को थोड़े गंगा जल और शुद्ध जल से पूरा भर दें। कलश में साबुत सुपारी , फूल और दूर्वा डालें। कलश में इत्र , पंचरत्न तथा सिक्का डालें। अब कलश में पांचों प्रकार के पत्ते डालें। कुछ पत्ते  थोड़े बाहर दिखाई दें इस प्रकार लगाएँ। चारों तरफ पत्ते लगाकर ढ़क्कन लगा दें। इस ढ़क्कन में अक्षत यानि साबुत चावल भर दें।

नारियल तैयार करें। नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर मौली बांध दें। इस नारियल को कलश पर रखें। नारियल का मुँह आपकी तरफ होना चाहिए। यदि नारियल का मुँह ऊपर की तरफ हो तो उसे रोग बढ़ाने वाला माना जाता है। नीचे की तरफ हो तो शत्रु बढ़ाने वाला मानते है , पूर्व की और हो तो धन को नष्ट करने वाला मानते है। नारियल का मुंह वह होता है जहाँ से वह पेड़ से जुड़ा होता है। अब यह कलश जौ उगाने के लिए तैयार किये गये पात्र के बीच में रख दें। अब देवी देवताओं का आह्वान करते हुए प्रार्थना करें कि ” हे समस्त देवी देवता आप सभी नौ दिन के लिए कृपया कलश में विराजमान हों “।

आह्वान करने के बाद ये मानते हुए कि सभी देवता गण कलश में विराजमान है। कलश की पूजा करें। कलश को टीका करें , अक्षत चढ़ाएं , फूल माला अर्पित करें , इत्र अर्पित करें , नैवेद्य यानि फल मिठाई आदि अर्पित करें। घट स्थापना या कलश स्थापना के बाद दुर्गा पूजन शुरू करने से पूर्व चौकी को धोकर माता की चौकी सजायें। आसन बिछाकर गणपति एवं दुर्गा माता की मूर्ति के सम्मुख बैठ जाएं. इसके बाद अपने आपको तथा आसन को इस मंत्र से शुद्धि करें  

"ॐ अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि :॥" 

इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा या पुष्पादि से छींटें लगायें 

कब नीचे दिए मंत्र से आचमन करें - 

ॐ केशवाय नम: ॐ नारायणाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ गो​विन्दाय नम:, 

फिर हाथ धोएं, पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें :-

ॐ पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता। 
त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥ 

शुद्धि और आचमन के बाद चंदन लगाना चाहिए. अनामिका उंगली से श्रीखंड चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें- 

चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्,
आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा।  

दुर्गा पूजन हेतु संकल्प 
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पंचोपचार करने बाद किसी भी पूजन को आरम्भ करने से पहले पूजा की पूर्ण सफलता के लिये संकल्प करना चाहिए. संकल्प में पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, नारियल (पानी वाला), मिठाई, मेवा, आदि सभी सामग्री थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प मंत्र बोलें :

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ॐ अद्य  ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2079, तमेऽब्दे नल नाम संवत्सरे श्रीसूर्य दक्षिणायने दक्षिण गोले शरद ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे आश्विन मासे शुक्ल पक्षे प्र​तिपदायां तिथौ शनि वासरे (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया- श्रुतिस्मृत्योक्तफलप्राप्त्यर्थं मनेप्सित कार्य सिद्धयर्थं श्री दुर्गा पूजनं च अहं क​रिष्ये। तत्पूर्वागंत्वेन ​निर्विघ्नतापूर्वक कार्य ​सिद्धयर्थं यथा​मिलितोपचारे गणप​ति पूजनं क​रिष्ये। 
 
दुर्गा पूजन विधि
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सबसे पहले माता दुर्गा का ध्यान करें-
सर्व मंगल मागंल्ये ​शिवे सर्वार्थ सा​धिके ।
शरण्येत्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते ॥
आवाहन👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दुर्गादेवीमावाहया​मि॥

आसन👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आसानार्थे पुष्पाणि समर्पया​मि॥

अर्घ्य👉  श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। हस्तयो: अर्घ्यं समर्पया​मि॥

आचमन👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आचमनं समर्पया​मि॥

स्नान👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। स्नानार्थं जलं समर्पया​मि॥ 
स्नानांग आचमन- स्नानान्ते पुनराचमनीयं जलं समर्पया​मि।
स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।

पंचामृत स्नान👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। पंचामृतस्नानं समर्पया​मि॥

पंचामृत स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।

गन्धोदक-स्नान👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। गन्धोदकस्नानं समर्पया​मि॥

गंधोदक स्नान (रोली चंदन मिश्रित जल) से कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।

शुद्धोदक स्नान👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। शुद्धोदकस्नानं समर्पया​मि॥
आचमन- शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पया​मि 
शुद्धोदक स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।

वस्त्र👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। वस्त्रं समर्पया​मि ॥ 
वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पया​मि। 
वस्त्र पहनने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।

सौभाग्य सू़त्र👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। सौभाग्य सूत्रं समर्पया​मि ॥
मंगलसूत्र या हार पहनाए।

चन्दन👉  श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। चन्दनं समर्पया​मि ॥
चंदन लगाए

ह​रिद्राचूर्ण👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ह​रिद्रां समर्पया​मि ॥
हल्दी अर्पण करें।

कुंकुम👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। कुंकुम समर्पया​मि ॥ 
कुमकुम अर्पण करें।

​सिन्दूर👉  श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ​सिन्दूरं समर्पया​मि ॥
सिंदूर अर्पण करें।

कज्जल👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। कज्जलं समर्पया​मि ॥
काजल अर्पण करें।

दूर्वाकुंर👉  श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दूर्वाकुंरा​नि समर्पया​मि ॥
दूर्वा चढ़ाए।

आभूषण👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आभूषणा​नि समर्पया​मि ॥
यथासामर्थ्य आभूषण पहनाए।

पुष्पमाला👉  श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। पुष्पमाला समर्पया​मि ॥
फूल माला पहनाए।

धूप👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। धूपमाघ्रापया​मि॥ 
धूप दिखाए।

दीप👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दीपं दर्शया​मि॥ 
दीप दिखाए।

नैवेद्य👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। नैवेद्यं ​निवेदया​मि॥
नैवेद्यान्ते ​त्रिबारं आचमनीय जलं समर्पया​मि।
मिष्ठान भोग लगाएं इसके बाद पात्र में 3 बार आचमन के लिये जल छोड़े।

फल👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। फला​नि समर्पया​मि॥
फल अर्पण करें। इसके बाद एक बार आचमन हेतु जल छोड़े 

ताम्बूल👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ताम्बूलं समर्पया​मि॥
लवंग सुपारी इलाइची सहित पान अर्पण करें।

द​क्षिणा👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। द​क्षिणां समर्पया​मि॥
यथा सामर्थ्य मनोकामना पूर्ति हेतु माँ को दक्षिणा अर्पण करें कामना करें मा ये सब आपका ही है आप ही हमें देती है हम इस योग्य नहीं आपको कुछबड़े सकें।

आरती👉 माँ की आरती करें

जय अंबे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥ ॐ जय…

मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ॥ ॐ जय…

कनक समान कलेवर, रक्तांबर राजै ।
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै ॥ ॐ जय…

केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी ।
सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी ॥ ॐ जय…

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत सम ज्योती ॥ ॐ जय…

शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥ॐ जय…

चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भय दूर करे ॥ॐ जय…

ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥ॐ जय…

चौंसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैंरू ।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू ॥ॐ जय…

तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता ।
भक्तन की दुख हरता, सुख संपति करता ॥ॐ जय…

भुजा चार अति शोभित, वरमुद्रा धारी ।
>मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥ॐ जय…

कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती ॥ॐ जय…

श्री अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे ॥ॐ जय…

श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आरा​र्तिकं समर्पया​मि॥
आरती के बाद आरती पर चारो तरफ जल फिराये।

इसके बाद भूल चुक के लिए क्षमा प्रार्थना करें।

क्षमा प्रार्थना मंत्र
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न मंत्रं नोयंत्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः ।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् ॥1॥ 

विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत् ।
तदेतत्क्षतव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥2॥   
                      
पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः
परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः ।
मदीयोऽयंत्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत् क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥3॥    
                      
जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया ।
तथापित्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदप कुमाता न भवति ॥4॥   
                      
परित्यक्तादेवा विविध​विधिसेवाकुलतया
मया पंचाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि ।
इदानीं चेन्मातस्तव कृपा नापि भविता
निरालम्बो लम्बोदर जननि कं यामि शरण् ॥5॥      
        
श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातंको रंको विहरति चिरं कोटिकनकैः।
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ ॥6॥    
                    
चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कण्ठे भुजगपतहारी पशुपतिः ।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम् ॥7॥   
                         
न मोक्षस्याकांक्षा भवविभव वांछापिचनमे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः ।
अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडाणी रुद्राणी शिवशिव भवानीति जपतः ॥8॥     
                    
नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः
किं रूक्षचिंतन परैर्नकृतं वचोभिः ।
श्यामे त्वमेव यदि किंचन मय्यनाथे
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव ॥9॥  
                                  
आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि ।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथाः
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति ॥10॥ 
                                      
जगदंब विचित्रमत्र किं परिपूर्ण करुणास्ति चिन्मयि ।
अपराधपरंपरावृतं नहि मातासमुपेक्षते सुतम् ॥11॥   
                                                  
मत्समः पातकी नास्तिपापघ्नी त्वत्समा नहि ।
एवं ज्ञात्वा महादेवियथायोग्यं तथा कुरु  ॥12॥

इसके बाद सभी लोग माँ को शाष्टांग प्रणाम कर घर मे सुख समृद्धि की कामना करें प्रशाद बांटे।

विस्तृत वैदिक मंत्रों से पूजन के लिये आगामी पोस्ट देखें।

आचार्य मोरध्वज शर्मा ।।
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश ।।
9648023364
9129998000
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नवरात्री में घट स्थापना संकल्प एवं पूजन विधि।। Ghat establishment resolution and worship method in Navratri ।।

नवरात्री में घट स्थापना संकल्प  एवं पूजन विधि
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संकल्प लिए दाहिने के अंजलि में पान सुपारि जल पुष्प अक्षत  रूपया लेके संकल्प करें ।

संकल्प
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ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु : अद्य ब्रह्मनो $ ह्नि द्वितीय परार्द्धे श्रीश्वेतवाराह कल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे $ अष्टाविंशतीतमे कलयुगे कलिप्रथम् चरणे जम्बूद्विपे  भारतवर्षे भरतखण्डे आर्याव्रतैक देशान्तरगते महाराष्ट्र क्षेत्रे मुंबई नगरे समुद्रतिरे   वरली डाॅक्टर ए वी रोड नेहरू गार्डेन   लोटस अटालिका मध्ये पंच सतह गृह स्थित  शुभकृत सम्वत्सरे दक्षिणायण सूर्ये शरद ऋतौ महामांगल्यप्रद मासोत्तमे मासे पुण्य पवित्रे मासे आश्विन  मासे शुक्ल पक्षे प्रतिपदा तिथौ चित्रा नक्षत्रे ब्रह्म योगे किन्स्तुघ्न करणे सोमवासरे कन्या राशि स्थिते चंद्रे  कन्या  राशि स्थिते सूर्ये मीन राशि स्थिते देव गुरौ शेषेषु ग्रहेषु यथायथा राशिस्थानस्थितेषु सत्सु एवं  ग्रहगुणगण विशेषण विशिष्टायां शुभ पुण्य तिथौ अमुक गोत्र अमुक नाम अहं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त पुण्य फल प्राप्त्यर्थं मम सकुटुम्बस्य ऐश्वर्याभिवृद्ध्यर्थं अप्राप्तलक्ष्मी प्राप्त्यर्थं प्राप्त लक्ष्म्याश्चिर  कालसंरक्षणार्थं सकलमनईप्सित कामनासंसिध्यर्थं लोके वा राजसभायां तद्वारे  वा  राजद्वारे सभायां व्यापारे देशे विदेशे यन्त्रालय मंत्रालय न्यायालय जले वायु मार्गे सर्वत्र यशोविजय लाभादि प्राप्त्यर्थं पुत्रपौत्राद्यंभि वृद्धर्थं  च इह जन्मनिजन्मान्तरे वा सकलदुरितोपशमनार्थं तथा मम सभार्यस्य  सपुत्रस्य सबान्धवस्य अखिल कुटुम्ब सहितस्य   समस्त भय व्याधि जरापीडा मृत्यु परिहार द्वारा आयु आरोग्य ऐश्वर्याभि वृद्धर्थं   आदित्यादि नवग्रहानुकूलता सिद्धयर्थं तथा इन्द्रादिदशदिक्पाल प्रसन्नता सिद्धयर्थं आधि दैविकाधि भौतिक आध्यात्मि  त्रिविध तापोप शमणार्थं कायिक वाचिक मानसिक पाप शमणार्थं धर्मार्थकाममोक्ष चतुर्विध पुरूषार्थ सिद्धयर्थं  मम चलित कार्यं उत्तरोत्तर वृद्धयर्थं नवीन कार्य प्राप्त्यर्थं नवीन उत्साह प्राप्त्यर्थं  सुख समृद्धि शान्ति प्राप्त्यर्थं  अमुक कार्य सिद्धयर्थं श्री दुर्गा प्रीतिकाम:    अमुक गोत्रस्य  अमुक नाम  ब्राह्मण द्वारा  श्रीदुर्गा  पूजन कर्म  एवं श्रीदुर्गासप्तसत्ती पाठं अहं करिष्ये 
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हिन्दू शास्त्रों में किसी भी पूजन से पूर्व, भगवान गणेशजी की आराधना का प्रावधान बताया गया है। माता जी की पूजा में कलश से संबन्धित एक मान्यता है के अनुसार कलश को भगवान श्री गणेश का प्रतिरुप माना गया है। इसलिये सबसे पहले कलश का पूजन किया जाता है। कलश स्थापना करने से पहले पूजा स्थान को गंगा जल से शुद्ध किया जाना चाहिए। पूजा में सभी देवताओं आमंत्रित किया जाता है। कलश में सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी,मुद्रा रखी जाती है। और पांच प्रकार के पत्तों से कलश को सजाया जाता है। इस कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज और जौ बौये जाते है। जिन्हें दशमी की तिथि पर काटा जाता है। माता दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल के मध्य में स्थापित की जाती है।
कलश स्थापना के बाद, गणेश भगवान और माता दुर्गा जी की आरती से, नौ दिनों का व्रत प्रारंभ किया जाता है। कई व्यक्ति पूरे नौ दिन तो यह व्रत नहीं रख पाते हैं किन्तु प्रारंभ में ही यह संकल्प लिया जाता है कि व्रत सभी नौ दिन रखने हैं अथवा नौ में से कुछ ही दिन व्रत रखना है।

कलश / घट स्थापना विधि
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सर्व प्रथम शुद्धि एवं आचमन
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आसनी पर  गणपति एवं दुर्गा माता की मूर्ति केसम्मुख बैठ जाएं ( बिना आसन ,चलते-फिरते, पैर फैलाकर पूजन करना निषेध है )| इसके बाद अपनेआपको तथा आसन को इस मंत्र से शुद्धि करें -

"ॐ अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि :॥"

इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बारकुशा या पुष्पादि से छींटें लगायें फिर आचमन करें –

ॐ केशवाय नम: ॐ नारायणाय नम:, ॐ माधवायनम:, ॐ गो​विन्दाय नम:|

फिर हाथ धोएं, पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें :-

ॐ पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता।

त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥

इसके पश्चात अनामिका उंगली से अपने ललाट पर चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें-

 चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्,
आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा।

द्वितीय स्थान चयन
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नवरात्रि में कलश / घट स्थापना के लिए सर्वप्रथम प्रातः काल नित्य क्रिया से निवृत होने के बाद स्नान करके, नव वस्त्र अथवा स्वच्छ वस्त्र पहन कर ही विधिपूर्वक पूजा आरम्भ करनी चाहिए। प्रथम पूजा के दिन मुहूर्त (सूर्योदय के साथ अथवा द्विस्वभाव लग्न में  कलश स्थापना करना चाहिए।
कलश स्थापना के लिए अपने घर के उस स्थान को चुनना चाहिए जो पवित्र स्थान हो अर्थात घर में मंदिर के सामने या निकट या मंदिर के पास।  यदि इस स्थान में पूजा करने में दिक्कत हो तो घर में ही ईशान कोण अथवा उत्तर-पूर्व दिशा में, एक स्थान का चयन कर ले तथा उसे गंगा जल से शुद्ध कर ले।

जौ पात्र का प्रयोग
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सर्वप्रथम जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र लेना चाहिए । इस पात्र में मिट्टी की एक अथवा दो परत बिछा ले । इसके बाद जौ बिछा लेना चाहिए। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब पुनः एक परत जौ की बिछा ले । जौ को इस तरह चारों तरफ बिछाएं ताकि जौ कलश के नीचे पूरी तरह से न दबे। इसके ऊपर पुनः मिट्टी की एक परत बिछाएं।

कलश स्थापना
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पुनः कलश में रोली से स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर गले में तीन धागावाली मौली लपेटे और कलश को एक ओर रख ले। कलश स्थापित किये जानेवाली भूमि अथवा चौकी पर कुंकुंम या रोली से अष्टदलकमल बनाकर निम्न मंत्र से भूमि का स्पर्श करना चाहिए।

ॐ भूरसि भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धरत्री।
पृथिवीं यच्छ पृथिवीं द्रीं ह पृथिवीं मा हि सीः।।

कलश स्थापन मंत्र 
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ॐ आ जिघ्न कलशं मह्यं त्वा विशंतिवन्दवः।
पुनरूर्जा नि वर्तस्व सा नह सहत्रम् धुक्ष्वोरूधारा पयस्वती पुनर्मा विशताद्रयिः।।

पुनः इस मंत्रोच्चारण के बाद  कलश में गंगाजल मिला हुआ जल छोड़े उसके बाद क्रमशः चन्दन,  सर्वौषधि(मुरा,चम्पक, मुस्ता, वच, कुष्ठ, शिलाजीत, हल्दी, सठी)  दूब, पवित्री, सप्तमृत्तिका, सुपारी, पञ्चरत्न, द्रव्य कलश में अर्पित करे। पुनःपंचपल्लव(बरगद,गूलर,पीपल,पाकड़,आम) कलश के मुख पर रखें।अनन्तर कलश को वस्त्र से अलंकृत करें। तत्पश्चात चावल से भरे पूर्णपात्र को कलश के मुख पर स्थापित करें।

कलश पर नारियल की स्थापना
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इसके बाद नारियल पर लाल कपडा लपेट  ले उसके बाद मोली लपेट दें। अब नारियल को कलश पर रख दे । नारियल के सम्बन्ध में शास्त्रों में कहा गया है:
 
“अधोमुखं शत्रु विवर्धनाय,ऊर्ध्वस्य वस्त्रं बहुरोग वृध्यै।
प्राचीमुखं वित विनाशनाय,तस्तमात् शुभं संमुख्यं नारीकेलं”।

अर्थात् नारियल का मुख नीचे की तरफ रखने से शत्रु में वृद्धि होती है ।नारियल का मुख ऊपर की तरफ रखने से रोग बढ़ते हैं। पूर्व की तरफ नारियल का मुख रखने से धन का विनाश होता है। इसलिए नारियल की स्थापना  के समय हमेशा इस बात का ध्यान रखनी चाहिए कि उसका मुख साधक की तरफ रहे। ध्यान रहे कि नारियल का मुख उस सिरे पर होता है, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है।

देवी-देवताओं का कलश में आवाहन
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भक्त को अपने दाहिने हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरुण आदि देवी-देवताओ का ध्यान और आवाहन करना चाहिए –
 ॐ भूर्भुवःस्वःभो वरुण! इहागच्छ, इह तिष्ठ, स्थापयामि, पूजयामि, मम पूजां गृहाण।ओम अपां पतये वरुणाय नमः बोलकर अक्षत और पुष्प कलश पर छोड़ देना चाहिए। पुनः दाहिने हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर चारो वेद, तीर्थो, नदियों, सागरों, देवी और देवताओ के आवाहन करना चाहिए उसके बाद फिर अक्षत और पुष्प लेकर कलश की प्रतिष्ठा करें।

कलशे वरुणाद्यावाहितदेवताः सुप्रतिष्ठता वरदा भवन्तु।

तथा 

ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः  इस मंत्र के उच्चारण के साथ ही अक्षत और पुष्प कलश के पास छोड़ दे।

वरुण आदि देवताओ को —

ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमःध्यानार्थे पुष्पं समर्पयामि।

आदि मंत्र का उच्चारण करते हुए पुष्प समर्पित करे पुनः निम्न क्रम से वरुण आदि देवताओ को अक्षत रखे, जल चढ़ाये, स्नानीय जल, आचमनीय जल चढ़ाये, पंच्चामृत स्नान कराये,जल में मलय चन्दन मिलाकर स्नान कराये, शुद्ध जल से स्नान कराये, आचमनीय जल चढ़ाये, वस्त्र चढ़ाये, यज्ञोपवीत चढ़ाये, उपवस्त्र चढ़ाये, चन्दन लगाये, अक्षत समर्पित करे, फूल और फूलमाला चढ़ाये, द्रव्य समर्पित करे ,इत्र आदि चढ़ाये, दीप दिखाए, नैवेद्य चढ़ाये, सुपारी, इलायची, लौंग सहित पान चढ़ाये, द्रव्य-दक्षिणा चढ़ाये(समर्पयामि) इसके बाद आरती करे। पुनः पुस्पाञ्जलि समर्पित करे, प्रदक्षिणा करे तथा दाहिने हाथ में पुष्प लेकर प्रार्थना करे और अन्त में

ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, प्रार्थनापूर्वकं अहं  नमस्कारान समर्पयामि।
इस मंत्र से नमस्कारपूर्वक फूल समर्पित करे। पुनः हाथ में जल लेकर अधोलिखित वाक्य का उच्चारण कर जल कलश के पास छोड़ते हुए समस्त पूजन-कर्म वरुणदेव को निवेदित करना चाहिए।
कृतेन अनेन पूजनेन कलशे वरुणाद्यावाहितदेवताः प्रीयन्तां न मम।

अखंड ज्योति
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नवरात्री के प्रथम दिन ही अखंड ज्योति जलाई जाती है जो नौ दिन तक निरंतर जलती रहती है। अखंड ज्योति का बीच में बुझना अच्छा नही माना जाता है।  अतः इस बात का अवश्य ही धयान रखना चाहिए की अखंड ज्योति न बुझे।

देवी पूजन सामग्री
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माँ दुर्गा की सुन्दर प्रतिमा, माता की प्रतिमा स्थापना के लिए चौकी, लाल वस्त्र , कलश/ घाट , नारियल का फल, पांच पल्लव आम का, फूल,अक्षत, मौली, रोली, पूजा के लिए थाली , धुप और दशांग, गंगा का जल, कुमकुम, गुलाल पान,सुपारी, चौकी,दीप, नैवेद्य,कच्चा धागा, दुर्गा सप्तसती किताब ,चुनरी, पैसा, माता दुर्गा की विशेष कृपा हेतु संकल्प तथा षोडशोपचार पूजन करने के बाद, प्रथम प्रतिपदा तिथि को, नैवेद्य के रूप में गाय का घी माता को अर्पित करना चाहिए तथा पुनः वह घी किसी ब्राह्मण को दे देना चाहिए।

देवी पूजन विधि 
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 शारदीय नवरात्रि का दिन स्वयं सिद्धि मुहूर्त में आता है इसलिये इस दिन घट स्थापना एवं देवी पूजन के लिये पञ्चाङ्ग शुद्धि (मुहूर्त देखने की) आवश्यकता नही होती।

नवरात्रके प्रथम दिन कलश (घट) की स्थापना के समय देवी का आवाहन एवं पूजन इस प्रकार करें।
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दुर्गा पूजन से पहले गणेश पूजन -

हाथ में पुष्प लेकर गणपति का ध्यान करें|और श्लोकपढें -
 गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बूफलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामिविघ्नेश्वरपादपंकजम्।

आवाहन: हाथ में अक्षत लेकर
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     आगच्छ देव देवेश, गौरीपुत्र ​विनायक।
     तवपूजा करोमद्य, अत्रतिष्ठ परमेश्वर॥

ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः इहागच्छ इह तिष्ठकहकर अक्षत गणेश जी पर चढा़ दें।

हाथ में फूल लेकर-ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः आसनं समर्पया​मि|

अर्घा में जल लेकर बोलें -ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः अर्घ्यं समर्पया​मि|

आचमनीय-स्नानीयं-ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः आचमनीयं समर्पया​मि |

 वस्त्र लेकर-ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः वस्त्रं समर्पया​मि|

यज्ञोपवीत-ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः यज्ञोपवीतं समर्पया​मि |

पुनराचमनीयम्-ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः |

रक्त चंदन लगाएं: इदम रक्त चंदनम् लेपनम् ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः |

श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं|

सिन्दूर चढ़ाएं-

"इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः|

दूर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं|
पूजन के बाद गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें:

ॐ श्री ​सिद्धि विनायकाय नमः इदं नानाविधिनैवेद्यानि समर्पयामि |

मिष्ठान अर्पित करने के लिए मंत्र बोलें

शर्करा खण्ड खाद्या​नि द​धि क्षीर घृता​नि च|
आहारो भक्ष्य भोज्यं गृह्यतां गणनायक।

प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें- इदं आचमनीयं ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः|

इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें-

ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः ताम्बूलं समर्पया​मि |

अब फल लेकर गणपति पर चढ़ाएं-
          ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः फलं समर्पया​मि|

            ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः द्रव्य समर्पया​मि|

 अब ​विषम संख्या में दीपक जलाकर ​निराजन करेंऔर भगवान की आरती गायें।

 हाथ में फूल लेकर गणेश जी को अ​र्पित करें, ​फिर तीन प्रद​क्षिणा करें।

दुर्गा पूजन
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सबसे पहले माता दुर्गा का ध्यान करें

     सर्व मंगल मागंल्ये ​शिवे सर्वार्थ सा​धिके ।
 शरण्येत्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते ॥

 आवाहन-
         श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दुर्गादेवीमावाहया​मि॥

 आसन- 
        श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आसानार्थेपुष्पाणि समर्पया​मि।

अर्घ्य-
       श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। हस्तयो: अर्घ्यंसमर्पया​मि॥

आचमन-
       श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आचमनं समर्पया​मि॥

स्नान-
       श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। स्नानार्थं जलंसमर्पया​मि॥

स्नानांग आचमन-
       स्नानान्ते पुनराचमनीयं जलं समर्पया​मि।

पंचामृत स्नान-
      श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। पंचामृतस्नानंसमर्पया​मि॥

गन्धोदक-स्नान-
      श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। गन्धोदकस्नानंसमर्पया​मि॥

शुद्धोदक स्नान-
      श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। शुद्धोदकस्नानंसमर्पया​मि॥

आचमन-  शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पया​मि।

वस्त्र-
       श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। वस्त्रं समर्पया​मि ॥वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पया​मि।

सौभाग्य सू़त्र-
       श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। सौभाग्य सूत्रंसमर्पया​मि ॥

चन्दन-
        श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। चन्दनं समर्पया​मि॥

ह​रिद्राचूर्ण-
        श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ह​रिद्रां समर्पया​मि॥

कुंकुम-
        श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। कुंकुम समर्पया​मि॥

​सिन्दूर-
         श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ​सिन्दूरं समर्पया​मि॥

कज्जल-
         श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। कज्जलं समर्पया​मि।

आभूषण-
         श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आभूषणा​निसमर्पया​मि ॥

पुष्पमाला-
        श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। पुष्पमाला समर्पया​मि ॥

धूप-
        श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। धूपमाघ्रापया​मि॥

दीप-
        श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दीपं दर्शया​मि॥

नैवेद्य-
        श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। नैवेद्यं ​निवेदया​मि॥नैवेद्यान्ते ​त्रिबारं आचमनीय जलं समर्पया​मि।

फल-
         श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। फला​नि समर्पया​मि॥

ताम्बूल-
        श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ताम्बूलं समर्पया​मि॥

द​क्षिणा-
          श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। द्रव्यद​क्षिणां समर्पया​मि॥

आरती-

          श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आरा​र्तिकंसमर्पया​मि॥

प्रदक्षिणा
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“यानि कानि च पापानी जन्मान्तर कृतानि च।
तानी सर्वानि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे॥
प्रदक्षिणा समर्पयामि।“

प्रदक्षिणा करें (अगर स्थान न हो तो आसन पर खड़े-खड़े ही स्थान पर घूमे)

क्षमा प्रार्थना
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न मंत्रं नोयंत्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः ।

न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् ॥

विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत् ।

तदेतत्क्षतव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥

पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः
परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः ।

मदीयोऽयंत्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत् क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥

जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया ।

तथापित्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदप कुमाता न भवति ॥

परित्यक्तादेवा विविध​विधिसेवाकुलतया
मया पंचाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि ।

इदानीं चेन्मातस्तव कृपा नापि भविता
निरालम्बो लम्बोदर जननि कं यामि शरण् ॥

श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातंको रंको विहरति चिरं कोटिकनकैः ।

तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ ॥

चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कण्ठे भुजगपतहारी पशुपतिः ।

कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम् ॥

न मोक्षस्याकांक्षा भवविभव वांछापिचनमे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः ।

अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडाणी रुद्राणी शिवशिव भवानीति जपतः ॥

नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः
किं रूक्षचिंतन परैर्नकृतं वचोभिः ।
श्यामे त्वमेव यदि किंचन मय्यनाथे
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव ॥

आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि ।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथाः
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति ॥

जगदंब विचित्रमत्र किं परिपूर्ण करुणास्ति चिन्मयि ।
अपराधपरंपरावृतं नहि मातासमुपेक्षते सुतम् ॥

मत्समः पातकी नास्तिपापघ्नी त्वत्समा नहि।
वं ज्ञात्वा महादेवियथायोग्यं तथा कुरु ॥

इसके बाद थाली में दीपक पुष्प सजाकर माँ की आरती करें

दुर्गा जी की आरती (1)
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जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय!
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय। जगजननी ..

तू ही सत्-चित्-सुखमय, शुद्ध ब्रह्मरूपा।
सत्य सनातन, सुन्दर, पर-शिव सुर-भूपा॥ जगजननी ..

आदि अनादि, अनामय, अविचल, अविनाशी।
अमल, अनन्त, अगोचर, अज आनन्दराशी॥ जगजननी ..

अविकारी, अघहारी, अकल कलाधारी।
कर्ता विधि, भर्ता हरि, हर संहारकारी॥ जगजननी ..

तू विधिवधू, रमा, तू उमा महामाया।
मूल प्रकृति, विद्या तू, तू जननी जाया॥ जगजननी ..

राम, कृष्ण तू, सीता, ब्रजरानी राधा।
तू वाँछाकल्पद्रुम, हारिणि सब बाघा॥ जगजननी ..

दश विद्या, नव दुर्गा नाना शस्त्रकरा।
अष्टमातृका, योगिनि, नव-नव रूप धरा॥ जगजननी ..

तू परधामनिवासिनि, महाविलासिनि तू।
तू ही श्मशानविहारिणि, ताण्डवलासिनि तू॥ जगजननी ..

सुर-मुनि मोहिनि सौम्या, तू शोभाधारा।
विवसन विकट सरुपा, प्रलयमयी, धारा॥ जगजननी ..

तू ही स्नेहसुधामयी, तू अति गरलमना।
रत्नविभूषित तू ही, तू ही अस्थि तना॥ जगजननी ..

मूलाधार निवासिनि, इह-पर सिद्धिप्रदे।
कालातीता काली, कमला तू वरदे॥ जगजननी ..

शक्ति शक्तिधर तू ही, नित्य अभेदमयी।
भेद प्रदर्शिनि वाणी विमले! वेदत्रयी॥ जगजननी ..

हम अति दीन दु:खी माँ! विपत जाल घेरे।
हैं कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे॥ जगजननी ..

निज स्वभाववश जननी! दयादृष्टि कीजै।
करुणा कर करुणामयी! चरण शरण दीजै॥ जगजननी ....

 दुर्गा जी की आरती (2)
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जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा गौरी ।
                      तुमको निशदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवरी ।।जय अम्बे गौरी...                           

मांग सिन्दूर विराजत टीको मृ्ग मद को ।
 उच्चवल से दोऊ नैना चन्द्र बदन नीको। जय अम्बे गौरी...

कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
 रक्त पुष्प गलमाला कंठन पर साजै।।जय अम्बे गौरी...

केहरि वाहन राजत खडग खप्पर थारी
 सुर नर मुनि जन सेवत तिनके दु:ख हारी।।जय अम्बे गौरी..

कानन कुण्डली शोभित नाशाग्रे मोती ।।
कोटिक चन्द्र दिवाकर राजत सम ज्योति।।जय अम्बे गौरी...

शुम्भ निशुम्भ विदारे महिषासुर घाती ।
घूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ।।जय अम्बे गौरी...

चौंसठ योगिन गावन नृ्त्य करत भैरूं ।
बाजत ताल मृ्दंगा अरू बाजत डमरू।।जय अम्बे गौरी...

भुजा चार अति शोभित खडग खप्पर धारी ।
मन वांछित फल पावत सेवत नर नारी ।।जय अम्बे गौरी...

कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रत्न ज्योति।।जय अम्बे गौरी...

श्री अम्बे की आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पति पावै।। जय अम्बे गौरी...

आरती के बाद माँ को शाष्टांग प्रणाम कर प्रसाद को बांट दें। भक्त प्राय: पूरे नवरात्र उपवास रखते हैं. सम्पूर्ण नवरात्रव्रत के पालन में असमर्थ लोगों के लिए सप्तरात्र,पंचरात्र,युग्मरात्र और एकरात्रव्रत का विधान भी है. प्रतिपदा से सप्तमी तक उपवास रखने से सप्तरात्र-व्रत का अनुष्ठान होता है.
अष्टमी के दिन माता को हलुवा और चने का भोग लगाकर कुंवारी कन्याओं को खिलाते हैं तथा अन्त में स्वयं प्रसाद ग्रहण करके व्रत का पारण (पूर्ण) करते हैं.
नवरात्रके नौ दिन साधना करने वाले साधक प्रतिपदा तिथि के दिन शैलपुत्री की, द्वितीया में ब्रह्मचारिणी, तृतीया में चंद्रघण्टा, चतुर्थी में कूष्माण्डा, पंचमी में स्कन्दमाता, षष्ठी में कात्यायनी, सप्तमी में कालरात्रि, अष्टमी में महागौरी तथा नवमी में सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं. तथा दुर्गा जी के १०८ नामों को मंत्र रूप में उसका अधिकाधिक जप करें।

विशेष👉 
यह पूजन विधि जिन साधको को वैदिक मंत्रों का ज्ञान नही है अथवा जिनके पास पूजा के लिये उपयुक्त समय नही है उनकी भावनाओं एवं यहाँ शब्द सीमा को ध्यान में रखकर बनाई गई है विस्तृत वैदिक मंत्रों से पूजन विधि जिसे आवश्यकता हो उसे व्यक्तिगत रूप से बतायी जाएगी।

आचार्य मोरध्वज शर्मा ।।
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश।। 
9648023364 
9129998000
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24 जुलाई 2022

कामिका एकादशी 24 जुलाई विशेष


कामिका एकादशी 24 जुलाई विशेष
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सभी प्रमुख एकादशियों में कामिका एकादशी का काफी महत्व माना जाता है। इस एकादशी को भाव पूर्ण व्रत और पूजा-विधि के द्वारा करने पर प्रभाव से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। कामिका एकादशी श्रावण (सावन) कृष्ण एकादशी को पड़ती है। इस महीने कामिका एकादशी आज रविवार को पड़ रही है। 

कामिका एकादशी महात्म्य एवं कथा
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कुंतीपुत्र धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन, आषाढ़ शुक्ल देवशयनी एकादशी तथा चातुर्मास्य माहात्म्य मैंने भली प्रकार से सुना। अब कृपा करके श्रावण कृष्ण एकादशी का क्या नाम है, सो बताइए। 

श्रीकृष्ण भगवान कहने लगे कि हे युधिष्ठिर! इस एकादशी की कथा एक समय स्वयं ब्रह्माजी ने देवर्षि नारद से कही थी, वही मैं तुमसे कहता हूँ। नारदजी ने ब्रह्माजी से पूछा था कि हे पितामह! श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनने की मेरी इच्छा है, उसका क्या नाम है? क्या विधि है और उसका माहात्म्य क्या है, सो कृपा करके कहिए। 

नारदजी के ये वचन सुनकर ब्रह्माजी ने कहा- हे नारद! लोकों के हित के लिए तुमने बहुत सुंदर प्रश्न किया है। श्रावण मास की कृष्ण एकादशी का नाम कामिका है। उसके सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। इस दिन शंख, चक्र, गदाधारी विष्णु भगवान का पूजन होता है, जिनके नाम श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव, मधुसूदन हैं। उनकी पूजा करने से जो फल मिलता है सो सुनो। 

जो फल गंगा, काशी, नैमिषारण्य और पुष्कर स्नान से मिलता है, वह विष्णु भगवान के पूजन से मिलता है। जो फल सूर्य व चंद्र ग्रहण पर कुरुक्षेत्र और काशी में स्नान करने से, समुद्र, वन सहित पृथ्वी दान करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोदावरी और गंडकी नदी में स्नान से भी प्राप्त नहीं होता वह भगवान विष्णु के पूजन से मिलता है। 

जो मनुष्य श्रावण में भगवान का पूजन करते हैं, उनसे देवता, गंधर्व और सूर्य आदि सब पूजित हो जाते हैं। अत: पापों से डरने वाले मनुष्यों को कामिका एकादशी का व्रत और विष्णु भगवान का पूजन अवश्यमेव करना चाहिए। पापरूपी कीचड़ में फँसे हुए और संसाररूपी समुद्र में डूबे मनुष्यों के लिए इस एकादशी का व्रत और भगवान विष्णु का पूजन अत्यंत आवश्यक है। इससे बढ़कर पापों के नाशों का कोई उपाय नहीं है। 

हे नारद! स्वयं भगवान ने यही कहा है कि कामिका व्रत से जीव कुयोनि को प्राप्त नहीं होता। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन भक्तिपूर्वक तुलसी दल भगवान विष्णु को अर्पण करते हैं, वे इस संसार के समस्त पापों से दूर रहते हैं। विष्णु भगवान रत्न, मोती, मणि तथा आभूषण आदि से इतने प्रसन्न नहीं होते जितने तुलसी दल से। 

तुलसी दल पूजन का फल चार भार चाँदी और एक भार स्वर्ण के दान के बराबर होता है। हे नारद! मैं स्वयं भगवान की अतिप्रिय तुलसी को सदैव नमस्कार करता हूँ। तुलसी के पौधे को सींचने से मनुष्य की सब यातनाएँ नष्ट हो जाती हैं। दर्शन मात्र से सब पाप नष्ट हो जाते हैं और स्पर्श से मनुष्य पवित्र हो जाता है। 

कामिका एकादशी की रात्रि को दीपदान तथा जागरण के फल का माहात्म्य चित्रगुप्त भी नहीं कह सकते। जो इस एकादशी की रात्रि को भगवान के मंदिर में दीपक जलाते हैं उनके पितर स्वर्गलोक में अमृतपान करते हैं तथा जो घी या तेल का दीपक जलाते हैं, वे सौ करोड़ दीपकों से प्रकाशित होकर सूर्य लोक को जाते हैं। 

ब्रह्माजी कहते हैं कि हे नारद! ब्रह्महत्या तथा भ्रूण हत्या आदि पापों को नष्ट करने वाली इस कामिका एकादशी का व्रत मनुष्य को यत्न के साथ करना चाहिए। कामिका एकादशी के व्रत का महात्म्य श्रद्धा से सुनने और पढ़ने वाला मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को जाता है।

प्रचलित कथा
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युधिष्ठिर के आग्रह पर श्रीकृष्ण ने कहा, राजन सुनों मैं तुम्हें कथा सुनाता हूं।

एक नगर में एक ठेठ ठाकुर और एक ब्राह्मण रहते थे। दोनों की एक दूसरे से बनती नहीं थी। आपसी झगड़े के कारण ठाकुर ने ब्राह्मण को मार डाला. इस पर नाराज ब्राह्मणों ने ठाकुर के घर खाना खाने से मना कर दिया। ठाकुर अकेला पड़ गया और वह खुद को दोषी मानने लगा ठाकुर को अपनी गलती महसूस हुई और उसने एक मुनी से अपने पापों का निवारण करने का तरीका पूछा इस पर, मुनी ने उन्हें कमिका एकदशी का उपवास करने के लिए कहा।

ठाकुर ने ऐसा ही किया। ठाकुर ने व्रत करना शुरू कर दिया। एक दिन कामिका एकादशी के दिन जब ठाकुर भगवान की मूर्ति के निकट सोते हुए एक सपना देखा, भगवान ने उसे बताया, “ठाकुर, सभी पापों को हटा दिया गया है और अब आप ब्राह्मण हटिया के पाप से मुक्त हैं”। इसलिए, इस एकादशी को आध्यात्मिक साधकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह चेतना से सभी नकारात्मकता को नष्ट करता है और मन और हृदय को दिव्य प्रकाश से भर देता है।

अन्य प्रचलित कथा
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एक गांव में एक वीर श्रत्रिय रहता था। एक दिन किसी कारण वश उसकी ब्राहमण से हाथापाई हो गई और ब्राहमण की मृत्य हो गई। अपने हाथों मरे गये ब्राहमण की क्रिया उस श्रत्रिय ने करनी चाही। परन्तु पंडितों ने उसे क्रिया में शामिल होने से मना कर दिया। ब्राहमणों ने बताया कि तुम पर ब्रहम हत्या का दोष है। पहले प्रायश्चित कर इस पाप से मुक्त हो तब हम तुम्हारे घर भोजन करेंगे।

इस पर श्रत्रिय ने पूछा कि इस पाप से मुक्त होने के क्या उपाय है। तब ब्राहमणों ने बताया कि श्रावण माह के कृष्ण पश्र की एकादशी को भक्तिभाव से भगवान श्रीधर का व्रत एवं पूजन कर ब्राहमणों को भोजन कराके सदश्रिणा के साथ आशीर्वाद प्राप्त करने से इस पाप से मुक्ति मिलेगी। पंडितों के बताये हुए तरीके पर व्रत कराने वाली रात में भगवान श्रीधर ने श्रत्रिय को दर्शन देकर कहा कि तुम्हें ब्रहम हत्या के पाप से मुक्ति मिल गई है।

कामिका एकादशी पूजा-विधि 
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एकादशी के दिन स्नानादि से पवित्र होने के पश्चात् पूजा का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद श्री विष्णु के विग्रह का पूजन करना चाहिए। भगवान विष्णु को फूल, फल, तिल, दूध, पंचामृत आदि पदार्थ निवेदित करके, आठों प्रहर निर्जल रहकर विष्णु जी के नाम का स्मरण और संकीर्तन करना चाहिए।

एकादशी व्रत में ब्राह्मण भोजन एवं दक्षिणा का बड़ा ही महत्व है। इसलिए ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करने के बाद ही भोजन ग्रहण करना शुभ माना गया है। इस प्रकार जो कामिका एकादशी का व्रत रखता है उसकी कामनाएं पूर्ण होती हैं।

पूजा के लिये आवश्यक सामग्री
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श्री विष्णु जी की मूर्ति 
वस्त्र
पुष्प
पुष्पमाला
नारियल 
सुपारी
अन्य ऋतुफल
धूप
दीप
घी
पंचामृत (दूध(कच्चा दूध),दही,घी,शहद और शक्कर का मिश्रण)
अक्षत
तुलसी दल
चंदन
मिष्ठान आदि।

कामिका एकादशी तिथि और शुभ मुहूर्त
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एकादशी तिथि प्रारम्भ 👉 जुलाई 23, को 11:27 बजे से ।

एकादशी तिथि समाप्त 👉 जुलाई 24, को 13:45 बजे तक।

कामदा एकादशी पारण 25 जुलाई समय प्रातः 05:31 से 08:16 तक रहेगा।

पारण विधि 
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द्वादशी के दिन घर पर ब्राह्मण को बुलाएं और उन्हें खाना खिलाएं और सामर्थ्य अनुसार उन्हें दान दक्षिणा दें। उसके बाद स्वयंं पारण करें. ध्यान रहे कि पारण के समय के दौरान ही पारण किया जाना चाहिए। अगर ब्राह्मण को घर बुलाकर भोजन कराने का सामर्थ्य नहीं है तो आप एक व्यक्ति के भोजन के बराबर अनाज किसी गरीब को या मंदिर में दान कर दें। यह भी आपको उतना ही फल प्रदान करेगा।

भगवान जगदीश्वर जी की आरती
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"ओम जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे !!

जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का, सुख-सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का !!

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी, तुम बिन और न दूजा, आस करूँ मैं जिसकी !!

तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी, पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी !!

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता, मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता !!

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति, किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति !!

दीनबंधु दुःखहर्ता, तुम रक्षक मेरे, करुणा हस्त बढ़ाओ, द्वार पडा तेरे !!

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा, श्रद्धा विवेक बढाओ, संतन की सेवा !!

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे

आचार्य मोरध्वज शर्मा 
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश।। 
9648023364
9129998000
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23 जून 2022

योगिनी एकादशी ।। Yogini Ekadashi ।। 24.06.2022


लेख:- योगिनी एकादशी,24.06.2022


एकादशी प्रारम्भ:- 23.06.2022, 9:42 pm
एकादशी समाप्त:-24.06.2022, 11:13 pm
पारण का समय -25.06.2022, 05:43 am से 8:12 am तक ।
पारण अवधि:- 2 घंटे 48 मिनट ।
हरि वासर समाप्ति- 25 जून 05:43 am पर

हिन्दू धर्म शास्त्रों मे वर्णित कथा के अनुसार भगवान  विष्णु जी ने मनुष्य जाति के कल्याणार्थ अपने शरीर से पुरुषोत्तम मास की एकादशियों सहित कुल 26 एकादशियों को उत्पन्न किया। 

हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक मास आने वाली कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का महत्व बहुत अधिक है। पौराणिक ग्रंथों में हर एकादशी का अपना अलग महत्व बताया गया है। इन्हीं विशेषताओं के कारण इनके नाम भी भिन्न भिन्न रखे गये हैं। कुल मिलाकर साल भर में चौबीस एकादशियां होती हैं मल मास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती है। 

भगवान श्री कृष्ण जी ने स्वयं गीता के द्वारा एकादशी   तिथि को अपने ही समान बलशाली बताया है।

योगिनी एकादशी का व्रत आषाढ़ माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। वर्ष 2022 मे योगिनी एकादशी का व्रत 24 जून को धारण करके 25 जून को व्रत का पारण किया जायेगा।

योगिनी एकादशी व्रत का महत्व:-
1. योगिनी एकादशी का तीनों लोकों में अपने पुण्यदायी प्रभाव के लिए प्रसिद्ध है। जिसका उल्लेख पद्म पुराण में भी किया गया है।
योगिनी एकादशी का व्रत इसका पालन करने वालों को अपने जीवन में समृद्धि, अच्छा स्वास्थ्य, सफलता और मान्यता प्राप्त करने में मदद करता है।ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को विधिपूर्वक तथा श्रद्धा पूर्वक करने से 88 हज़ार ब्राह्मणों को भोजन कराने के समान पुण्य मिलता है।

2. इस एकादशी का व्रत करने से पीपल के वृक्ष को काटने से उत्पन्न हुए पाप नष्ट हो जाते हैं, और अंत में मनुष्य स्वर्गलोक को प्राप्त करता है।

3. शास्त्रानुसार योगिनी एकादशी करने से व्रत समस्त पाप तो नष्ट होते ही हैं, साथ ही इस लोक में भोग और परलोक मुक्ति भी प्राप्त होती है। 

4. इस व्रत के प्रभाव से किसी के दिये हुए श्राप का निवारण भी हो जाता है, तथा भक्त भगवान विष्णु के दिव्य आशीर्वाद के परिणाम स्वरूप दीर्घायु को प्राप्त करनें के उपरांत मोक्ष को प्राप्त करते हैं।

5. योगिनी एकादशी व्रत के पुण्य प्रभाव से देह की समस्त आधि-व्याधियों (समस्त रोग) नष्ट हो जाती है, तथा सुंदर रुप, गुण और यश भी प्राप्त होता है।

6. योगिनी एकादशी का व्रत धारण करने से भक्त को जीवन में समृद्धि और आनन्द की प्राप्ति होती है। 

7. योगिनी एकादशी के विषय में शास्त्रों मे उल्लेख है कि जो व्रती श्रद्धा पूर्वक योगिनी एकादशी व्रत का पालन करता है, वह अपने अतीत और वर्तमान पापों से मुक्त हो जाता है।


योगिनी एकादशी व्रत पूजा विधि:-
1. योगिनी एकादशी के उपवास की शुरुआत दशमी तिथि की रात्रि से ही हो जाती है। व्रती को दशमी तिथि अर्थात व्रत धारण करने की पूर्व रात्रि से ही तामसिक भोजन का त्याग कर नमक रहित सादा भोजन ग्रहण करना चाहिये । व्रती को जौं, गेहूं और मूंग की दाल से बना भोजन भी ग्रहण नहीं करना चाहिए।

2. भक्तों को उसी दिन से ही ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है, संभव हो तो जमीन पर ही शयन करना चाहिए।

3. एकादशी के दिन प्रात:काल उठकर नित्यकर्म से निर्वत होकर स्नानादि के पश्चात व्रत का संकल्प लें।

4. योगिनी एकादशी के दिन भगवान श्री नारायण की पूजा-आराधना की जाती है।

5. लकडी की चौकी पर भगवान विष्णु की मूर्ति अथवा सुन्दर चित्र स्थापित करे ।

6. उसी वेदी पर नारियल सहित कुंभ स्थापना करनी चाहिए।

7. तत्पश्चात भगवान विष्णु जी की मूर्ति का पुष्प, धूप, दीप इत्यादि से पंचोपचार अथवा अपनी सामर्थ्यनुसार षोडशोपचार पूजन करे।

8. तत्पश्चात भगवान को भोग लगाकर योगिनी एकादशी की कथा का पठन अथवा श्रवण करना अत्यंत आवश्यक है।

9. पूजा के उपरांत भावपूर्वक भगवान जी की आरती उतारनी चाहिए।

10. योगिनी एकादशी का पूजन, भक्त अथवा व्रती स्वंय भी कर सकते हैं, अथवा किसी विद्वान ब्राह्मण से भी करवा सकते हैं। 

11. एकादशी पूजा के बाद पीपल के वृक्ष की पूजा भी इस दिन अवश्य करनी चाहिये।

12. तत्पश्चात अपनी सामर्थ्यनुसार दान कर्म करना भी बहुत कल्याणकारी रहता है।

13. व्रती को एकादशी की रात्रि में भगवान विष्णु जी (नारायण) का ध्यान करते हुए रात्रि जागरण भी अवश्य करना चाहिये। 

योगिनी एकादशी व्रत का पारण:-
योगिनी एकादशी व्रत के बाद द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करा कर दक्षिणा देंकर ही व्रती को स्वयं भोजन ग्रहण करने का विधान है। इस प्रकार नियम पूर्वक पारण करने से भक्तों को अक्षुण्ण पुण्य मिलता है। 


योगिनी एकादशी व्रतकथा:-
महाभारत काल की बात है कि एक बार धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से एकादशियों के व्रत का माहात्म्य सुन रहे थे। 

उन्होंनें भगवान श्री कृष्ण से कहा कि भगवन आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या महत्व है और इस एकादशी का नाम क्या है? 

भगवान श्री कृष्ण ने कहा हे राजन इस एकादशी का नाम योगिनी है। समस्त जगत में जो भी इस एकादशी के दिन विधिवत उपवास रखता है प्रभु की पूजा करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। वह अपने जीवन में तमाम सुख-सुविधाओं, भोग-विलास का आनंद लेता है और अंत काल में उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। योगिनी एकादशी का यह उपवास तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। 

तब युद्धिष्ठर ने कहा प्रभु योगिनी एकादशी के महत्व को आपके मुखारबिंद से सुनकर मेरी उत्सुकता और भी बढ़ गई है कृपया इसके बारे थोड़ा विस्तार से बतायें। अब भगवान श्री कृष्ण कहने लगे हे धर्मश्रेष्ठ मैं पुराणों में वर्णित एक कथा सुनाता हूं उसे ध्यानपूर्वक सुनना।
 
स्वर्गलोक की अलकापुरी नामक नगर में कुबेर नाम के राजा राज किया करते थे। वह बड़े ही नेमी-धर्मी राजा था और भगवान शिव के उपासक थे। आंधी आये तूफान आये कोई भी बाधा उन्हें भगवान शिव की पूजा करने से नहीं रोक सकती थी। भगवान शिव के पूजन के लिये उनके लिये हेम नामक एक माली फूलों की व्यवस्था करता था। वह हर रोज पूजा से पहले राजा कुबेर को फूल देकर जाया करता। हेम अपनी पत्नी विशालाक्षी से बहुत प्रेम करता था, वह बहुत सुंदर स्त्री थी। एक दिन क्या हुआ कि हेम पूजा के लिये पुष्प तो ले आया लेकिन रास्ते में उसने सोचा अभी पूजा में तो समय है क्यों न घर चला जाये उसने  आते-आते अपने घर की राह पकड़ ली। घर आने बाद अपनी पत्नी को देखकर वह कामास्क्त हो गया और उसके साथ रमण करने लगा। 

उधर पूजा का समय बीता जा रहा था और राजा कुबेर पुष्प न आने से व्याकुल हुए जा रहे थे। जब पूजा का समय बीत गया और हेम पुष्प लेकर नहीं पंहुचा तो राजा ने अपने सैनिकों को भेजकर उसका पता लगाने की कही। सैनिकों ने लौटकर बता दिया कि महाराज वह महापापी है महाकामी है अपनी पत्नी के साथ रमण करने में व्यस्त था। यह सुनकर तो कुबेर का गुस्सा सांतवें आसमान पर पंहुच गया।

 उन्होंनें तुरंत हेम को पकड़ लाने की कही। अब हेम कांपते हुए राजा कुबेर के सामने खड़ा था। कुबेर ने हेम को क्रोधित होते हुए कहा कि हे नीच महापापी तुमने कामवश होकर भगवान शिव का अनादर किया है मैं तूझे शाप देता हूं कि तू स्त्री का वियोग सहेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होगा। अब कुबेर के शाप से हेम माली भूतल पर पंहुच गया और कोढ़ग्रस्त हो गया। 

स्वर्गलोक में वास करते-करते उसे दुखों की अनुभूति नहीं थी। लेकिन यहां पृथ्वी पर भूख-प्यास के साथ-साथ एक गंभीर बिमारी कोढ़ से उसका सामना हो रहा था उसे उसके दुखों का कोई अंत नजर नहीं आ रहा था लेकिन उसने भगवान शिव की पूजा भी कर रखी थी उसके सत्कर्म ही कहिये कि वह एक दिन घूमते-घूमते मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पंहुच गया। इनके आश्रम की शोभा देखते ही बनती थी। ब्रह्मा की सभा के समान ही मार्कंडेय ऋषि की सभा का नजारा भी था। वह उनके चरणों में गिर पड़ा और महर्षि के पूछने पर अपनी व्यथा से उन्हें अवगत करवाया। 

अब ऋषि मार्केंडय ने कहा कि तुमने मुझसे सत्य बोला है इसलिये मैं तुम्हें एक उपाय बताता हूं। आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष को योगिनी एकादशी होती है। इसका विधिपूर्वक व्रत यदि तुम करोगे तो तुम्हारे सब पाप नष्ट हो जाएंगें। अब माली ने ऋषि को साष्टांग प्रणाम किया और उनके बताये अनुसार योगिनी एकादशी का व्रत किया। इस प्रकार उसे अपने शाप से छुटकारा मिला और वह फिर से अपने वास्तविक रुप में आकर अपनी स्त्री के साथ सुख से रहने लगा।

भगवान श्री कृष्ण कथा सुनाकर युधिष्ठर से कहने लगे हे राजन 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के पश्चात जितना पुण्य मिलता है उसके समान पुण्य की प्राप्ति योगिनी एकादशी का विधिपूर्वक उपवास रखने से होती है और व्रती इस लोक में सुख भोग कर उस लोक में मोक्ष को प्राप्त करता है।
 
(समाप्त)
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आगामी लेख:-
1. 15 जून से 27 जून तक "जन्मपत्रिका में विभिन्न भावो के अधिपतियो का बारह भागों में स्थित होने का फल" विषय पर धारावाहिक ज्योतिषीय लेख।
2. 28 जून को "आषाढी अमावस्या" पर लेख।
3. 29 जून से "गुप्त नवरात्रो" पर धारावाहिक लेख
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जय श्री राम
आज का पंचांग,दिल्ली 🌹🌹🌹
वृहस्पतिवार,23.6.2022
श्री संवत 2079
शक संवत् 1944
सूर्य अयन- उत्तरायण, गोल-उत्तर गोल
ऋतुः- ग्रीष्म ऋतुः ।
मास- आषाढ़ मास।
पक्ष- कृष्ण पक्ष ।
तिथि- दशमी तिथि 9:43 pm तक
चंद्रराशि- चंद्र मीन राशि में 6:14 am तक तदोपरान्त मेष राशि।
नक्षत्र- रेवती नक्षत्र 6:14 am तक
योग- अतिगण्ड योग अगले दिन 4:51 am तक (अशुभ है)
करण- वणिज करण 9:10 am तक
सूर्योदय- 5:24 am, सूर्यास्त 7:22 pm
अभिजित् नक्षत्र-11:55 am से 12:51 pm तक
राहुकाल- 2:07 pm से 3:42 pm शुभ कार्य वर्जित
दिशाशूल- दक्षिण दिशा।

जून शुभ दिन:-  23 (सवेरे 9 तक), 24, 25 (सवेरे 10 तक), 30
जून अशुभ दिन:- 26, 27, 28, 29.

भद्रा:- 23 जून 9:14 am से 23 जून 9:42 pm तक ( भद्रा मे मुण्डन, गृहारंभ, गृहप्रवेश, विवाह, रक्षाबंधन आदि शुभ काम नही करने चाहिये , लेकिन भद्रा मे स्त्री प्रसंग, यज्ञ, तीर्थस्नान, आपरेशन, मुकद्दमा, आग लगाना, काटना, जानवर संबंधी काम किए जा सकतें है।

गण्ड मूल आरम्भ:-
22 जून, रेवती नक्षत्र, 5:03 am से 24 जून को अश्विनी नक्षत्र 8:04 am तक गंडमूल रहेगें। गंडमूल नक्षत्रों मे जन्म लेने वाले बच्चो का मूलशांति पूजन आवश्यक है।

पंचक प्रारंभ:- 18 जून को 6:43 pm से 23 जून 6:14 am तक  पंचक नक्षत्रों  मे निम्नलिखित काम नही करने चाहिए, 1.छत बनाना या स्तंभ बनाना( lantern  or Pillar ) 2.लकडी  या  तिनके तोड़ना , 3.चूल्हा लेना या बनाना, 4. दाह संस्कार करना (cremation) 5.पंलग चारपाई, खाट , चटाई  बुनना  या बनाना 6.बैठक का सोफा या गद्दियाँ बनाना । 7 लकड़ी ,तांबा ,पीतल को जमा करना ।(इन कामो के सिवा अन्य सभी शुभ  काम पंचको मे किए जा सकते है।

सर्वार्थ सिद्ध योग:- 23 जून 5:24 am से 24 जून 8:04 am तक  (यह एक शुभयोग है, इसमे कोई व्यापारिक या कि राजकीय अनुबन्ध (कान्ट्रेक्ट) करना, परीक्षा, नौकरी अथवा चुनाव आदि के लिए आवेदन करना, क्रय-विक्रय करना, यात्रा या मुकद्दमा करना, भूमि , सवारी, वस्त्र आभूषणादि का क्रय करने के लिए शीघ्रतावश गुरु-शुक्रास्त, अधिमास एवं वेधादि का विचार सम्भव न हो, तो ये सर्वार्थसिद्धि योग ग्रहण किए जा सकते हैं।
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आगामी व्रत तथा त्यौहार:-
24 जून- योगिनी एकादशी। 26 जून- प्रदोष व्रत। 27 जून- मासिक शिवरात्रि। 29 जून- आषाढ़ अमावस्या। 30 जून- गुप्त नवरात्रे प्रारंभ।
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विशेष:- जो व्यक्ति वाराणसी  से बाहर अथवा देश से बाहर रहते हो, वह ज्योतिषीय परामर्श हेतु paytm या Bank transfer द्वारा परामर्श फीस अदा करके, फोन द्वारा ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त कर सकतें है
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आपका दिन मंगलमय हो . 💐💐💐
आचार्य मोरध्वज शर्मा 
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश।। 
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English Translation :-
Article:- Yogini Ekadashi, 24.06.2022


Ekadashi starts:- 23.06.2022, 9:42 pm
Ekadashi ends:-24.06.2022, 11:13 pm
Parana time -25.06.2022, 05:43 am to 8:12 am.
Parana Duration:- 2 hours 48 minutes.
Hari Vasar ends - June 25 at 05:43 am

According to the story described in Hindu religious scriptures, Lord Vishnu created a total of 26 Ekadashis including the Ekadashis of Purushottama month from his body for the welfare of mankind.

According to Hindu scriptures, the importance of Ekadashi date of Krishna and Shukla Paksha coming every month is very high. Each Ekadashi has its own significance in the mythological texts. Due to these characteristics, their names have also been kept different. Altogether there are twenty four Ekadashis in a year, adding the Ekadashis of Mal month, their number becomes 26.

Lord Shri Krishna ji himself has described Ekadashi date as powerful as himself through Gita.

Yogini Ekadashi fast is observed on the Ekadashi of Krishna Paksha in the month of Ashadha. In the year 2022, observing Yogini Ekadashi fast on 24th June, the fast will be broken on 25th June.

Significance of Yogini Ekadashi Vrat:-
1. Yogini Ekadashi is famous for its virtuous effect in all the three worlds. Which is also mentioned in Padma Purana.
Yogini Ekadashi fast helps those who observe it to attain prosperity, good health, success and recognition in their life. Is.

2. By observing the fast of this Ekadashi, the sins created by cutting down the Peepal tree are destroyed, and in the end one attains the heavenly world.

3. According to the scriptures, observing Yogini Ekadashi fasting destroys all the sins, as well as enjoyment in this world and liberation in the afterlife.

4. With the effect of this fast, one's curse is also removed, and the devotees attain salvation after attaining longevity as a result of the divine blessings of Lord Vishnu.

5. Due to the virtuous effect of Yogini Ekadashi fast, all the diseases (all diseases) of the body are destroyed, and beautiful form, qualities and fame are also attained.

6. By observing the fast of Yogini Ekadashi, the devotee gets prosperity and happiness in life.

7. Regarding Yogini Ekadashi, it is mentioned in the scriptures that the devotee who observes Yogini Ekadashi fast with devotion, he becomes free from his past and present sins.


Yogini Ekadashi Vrat Puja Method:-
1. Yogini Ekadashi fasting starts from the night of Dashami Tithi. The fasting should give up tamasic food and take salt free food from the day of Dashami i.e. the night before fasting. The fasting should also not take food made of barley, wheat and moong dal.

2. It is necessary for the devotees to follow celibacy from that day itself, if possible, they should sleep on the ground.

3. On the day of Ekadashi, wake up early in the morning and take a vow of fasting after taking bath.

4. Lord Shree Narayan is worshiped on the day of Yogini Ekadashi.

5. Establish an idol or beautiful picture of Lord Vishnu on a wooden post.

6. Kumbh should be established with coconut on the same altar.

7. After that, worship the idol of Lord Vishnu with flowers, incense, lamp etc. Panchopachar or Shodashopachar worship according to your ability.

8. After that it is very important to read or listen to the story of Yogini Ekadashi by offering to God.

9. After worship, the aarti of Lord ji should be done with devotion.

10. Worship of Yogini Ekadashi can be done by the devotee or the fasting person himself, or can also be done by a learned Brahmin.

11. Peepal tree should also be worshiped on this day after Ekadashi worship.

12. After that, doing charity work according to one's ability is also very beneficial.

13. While meditating on Lord Vishnu (Narayan) on the night of Ekadashi, the fast must also do night awakening.

Parana of Yogini Ekadashi fast:-
After the Yogini Ekadashi fast, on the day of Dwadashi, it is the law to give food to the Brahmins and give them Dakshina. In this way, by following the rules, the devotees get untouched merit.


Yogini Ekadashi Vrat story:-
It is a matter of Mahabharata period that once Dharmaraja Yudhishthira was listening to Lord Krishna about the importance of fasting on Ekadashis.

He told Lord Shri Krishna that what is the significance of Ekadashi of Krishna Paksha of Lord Ashadha month and what is the name of this Ekadashi?

Lord Shri Krishna said, O Rajan, the name of this Ekadashi is Yogini. In the whole world, whoever fasts duly on this Ekadashi and worships the Lord, all his sins are destroyed. He enjoys all the comforts, pleasures and luxuries in his life and in the end he attains salvation. This fast of Yogini Ekadashi is famous in all the three worlds.

Then Yudhishthira said that after hearing the importance of Lord Yogini Ekadashi from your mouth, my curiosity has increased even more, please tell a little detail about it. Now Lord Shri Krishna started saying, O Dharmashrestha, I narrate a story described in the Puranas, listen carefully to it.
 
A king named Kuber used to rule in the city of heaven called Alkapuri. He was a very pious king and a worshiper of Lord Shiva. No obstacle could stop him from worshiping Lord Shiva. For the worship of Lord Shiva, a gardener named Hem made flowers for him. Used to arrange He used to give flowers to King Kubera every day before the worship. Hem loved his wife Vishalakshi very much, she was a very beautiful woman. What happened one day that Hem had brought flowers for worship, but on the way he thought that there is time for worship now, why not go home, he caught the path of his house by the time he came. After coming home, seeing his wife, he became enamored and started having pleasure with her.

On the other hand, the time of worship was passing and King Kuber was getting distraught due to non-availability of flowers. When the time of worship was over and Hem did not reach with flowers, the king sent his soldiers and asked them to find him. The soldiers returned and told that the Maharaj is a great sinner, he is a great performer, he was busy enjoying with his wife. Hearing this, Kubera's anger reached the seventh heaven.

 He immediately asked Hem to be caught. Now Hem was standing in front of King Kubera trembling. Kubera enraged Hem and said that O lowly great sinner, you have disrespected Lord Shiva because of sex, I curse you that you will suffer the separation of a woman and go to the world of death and become a leper. Now Hem Mali reached the ground floor due to the curse of Kubera and got leprosy.

While living in heaven, he did not feel any sorrow. But here on earth, along with hunger and thirst, he was facing a serious disease leprosy, he could not see any end to his sufferings, but he had also worshiped Lord Shiva, just say his good deeds that he would one day While roaming around, Markandeya reached the sage's ashram. The beauty of his ashram was visible on sight. Similar to the meeting of Brahma, there was also the view of the meeting of the sage Markandeya. He fell at his feet and on Maharishi's request, made him aware of his agony.

Now sage Markandaya said that you have spoken the truth to me, so I will tell you a remedy. Yogini Ekadashi falls on the Krishna Paksha of Ashadha month. If you fast on this method, then all your sins will be destroyed. Now the gardener prostrates to the sage and observes Yogini Ekadashi as per his instructions. Thus he got rid of his curse and came back to his original form and started living happily with his wife.

Lord Shri Krishna after narrating the story started saying to Yudhishthar, O Rajan, the virtue that one gets after feeding 88 thousand brahmins, the same virtue is attained by fasting on Yogini Ekadashi methodically and the fasting person enjoys happiness in this world and attains salvation in that world. receives.
 
(End)

Next article:-
1. Serial astrological article from June 15 to June 27 on the topic "The result of being situated in twelve parts of the rulers of different houses in the horoscope".
2. Article on "Ashadhi Amavasya" on 28 June.
3. Serial article on "Gupt Navratri" from June 29


Long live Rama
Today's Panchang, Delhi
Thursday, 23.6.2022
Shree Samvat 2079
Shaka Samvat 1944
Surya Ayan- Uttarayan, Round-North Round
Rituah - Summer season.
Month - Ashadha month.
Paksha - Krishna Paksha.
Date - Dashami date till 9:43 pm
Moon sign- Moon in Pisces till 6:14 am and then Aries.
Nakshatra - Revati Nakshatra till 6:14 am
Yoga- Atiganda Yoga till 4:51 am the next day (inauspicious)
Karan- Vanij Karan till 9:10 am
Sunrise- 5:24 am, Sunset 7:22 pm
Abhijit Nakshatra - 11:55 am to 12:51 pm
Rahukaal- 2:07 pm to 3:42 pm Good work prohibited
Dishashul - South direction.

June Lucky Days:- 23 (till 9 am), 24, 25 (till 10 am), 30
June inauspicious days:- 26, 27, 28, 29.

Bhadra:- 23 June 9:14 am to 23 June 9:42 pm (Shunning, housewarming, home entry, marriage, Rakshabandhan etc. should not be done in Bhadra, but in Bhadra, women affairs, yagya, pilgrimage, operation, lawsuit, Fire, cutting, animal related work can be done.

Gand Mool Aarambh:-
On June 22, Revati Nakshatra, from 5:03 am to June 24, Ashwini Nakshatra will remain Gandmool till 8:04 am. Children born in Gandmool constellations need to worship Moolshanti.

Panchak Start:- On 18th June from 6:43 pm to 23rd June 6:14 am the following things should not be done in Panchak Nakshatras, 1. Making a roof or making a pillar (lantern or pillar) 2. Breaking wood or straws, 3. Hearth Taking or making, 4. Cremation 5. Bed bed, cot, mat, weaving or making 6. Making sofas or mattresses for the meeting. 7 To deposit wood, copper, brass. (Apart from these works, all other auspicious works can be done in Panchko.

Sarvartha Siddha Yoga:- 23 June 5:24 am to 24 June 8:04 am (This is an auspicious yoga, in this, making any business or state contract, applying for examination, job or election etc., purchasing- If the idea of ​​Guru-Shukrast, Adhimaas and Vedadi is not possible in a hurry to make sale, travel or litigation, purchase of land, rides, clothes, jewelery etc., then these Sarvarthasiddhi Yogas can be adopted.


Upcoming fasts and festivals:-
June 24 - Yogini Ekadashi. 26 June - Pradosh fast. June 27 - Monthly Shivratri. June 29- Ashadh Amavasya. 30 June – Gupt Navratri begins.

Special:- The person who lives outside Varanasi or outside the country, he can get astrological consultation by phone for astrological consultation by paying the consultation fee through paytm or bank transfer.

Have a good day .
Acharya Mordhwaj Sharma
Shri Kashi Vishwanath Temple Varanasi Uttar Pradesh.
9648023364
9129998000

21 जून 2022

विश्व योग दिवस 21 जून ।। World Yoga Day 21 June

विश्व योग दिवस 21 जून विशेष
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योगो के प्रकार महत्त्व एवं इनके द्वारा जीवन विकास  
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योग का वर्णन वेदों में, फिर उपनिषदों में और फिर गीता में मिलता है, लेकिन पतंजलि और गुरु गोरखनाथ ने योग के बिखरे हुए ज्ञान को व्यवस्थित रूप से लिपिबद्ध किया। योग हिन्दू धर्म के छह दर्शनों में से एक है। ये छह दर्शन हैं- 1.न्याय 2.वैशेषिक 3.मीमांसा 4.सांख्य 5.वेदांत और 6.योग। आओ जानते हैं योग के बारे में वह सब कुछ जो आप जानना चाहते हैं।

योग के मुख्य अंग:👉  यम, नियम, अंग संचालन, आसन, क्रिया, बंध, मुद्रा, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। इसके अलावा योग के प्रकार, योगाभ्यास की बाधाएं, योग का इतिहास, योग के प्रमुख ग्रंथ।

योग के प्रकार:👉 1.राजयोग, 2.हठयोग, 3.लययोग, 4. ज्ञानयोग, 5.कर्मयोग और 6. भक्तियोग। इसके अलावा बहिरंग योग, नाद योग, मंत्र योग, तंत्र योग, कुंडलिनी योग, साधना योग, क्रिया योग, सहज योग, मुद्रायोग, और स्वरयोग आदि योग के अनेक आयामों की चर्चा की जाती है। लेकिन सभी उक्त छह में समाहित हैं।

1.पांच यम:👉 1.अहिंसा, 2.सत्य, 3.अस्तेय, 4.ब्रह्मचर्य और 5.अपरिग्रह।

2.पांच नियम:👉  1.शौच, 2.संतोष, 3.तप, 4.स्वाध्याय और 5.ईश्वर प्राणिधान।

3.अंग संचालन:👉  1.शवासन, 2.मकरासन, 3.दंडासन और 4. नमस्कार मुद्रा में अंग संचालन किया जाता है जिसे सूक्ष्म व्यायाम कहते हैं। इसके अंतर्गत आंखें, कोहनी, घुटने, कमर, अंगुलियां, पंजे, मुंह आदि अंगों की एक्सरसाइज की जाती है।

4.प्रमुख बंध:👉  1.महाबंध, 2.मूलबंध, 3.जालन्धरबंध और 4.उड्डियान।

5.प्रमुख आसन:👉 किसी भी आसन की शुरुआत लेटकर अर्थात शवासन (चित्त लेटकर) और मकरासन (औंधा लेटकर) में और बैठकर अर्थात दंडासन और वज्रासन में, खड़े होकर अर्थात सावधान मुद्रा या नमस्कार मुद्रा से होती है। यहां सभी तरह के आसन के नाम दिए गए हैं।

1.सूर्यनमस्कार, 2.आकर्णधनुष्टंकारासन, 3.उत्कटासन, 4.उत्तान कुक्कुटासन, 5.उत्तानपादासन, 6.उपधानासन, 7.ऊर्ध्वताड़ासन, 8.एकपाद ग्रीवासन, 9.कटि उत्तानासन, 10.कन्धरासन, 11.कर्ण पीड़ासन, 12.कुक्कुटासन, 13.कुर्मासन, 14.कोणासन, 15.गरुड़ासन 16.गर्भासन, 17.गोमुखासन, 18.गोरक्षासन, 19.चक्रासन, 20.जानुशिरासन, 21.तोलांगुलासन 22.त्रिकोणासन, 23.दीर्घ नौकासन, 24.द्विचक्रिकासन, 25.द्विपादग्रीवासन, 26.ध्रुवासन 27.नटराजासन, 28.पक्ष्यासन, 29.पर्वतासन, 31.पशुविश्रामासन, 32.पादवृत्तासन 33.पादांगुष्टासन, 33.पादांगुष्ठनासास्पर्शासन, 35.पूर्ण मत्स्येन्द्रासन, 36.पॄष्ठतानासन 37.प्रसृतहस्त वृश्चिकासन, 38.बकासन, 39.बध्दपद्मासन, 40.बालासन, 41.ब्रह्मचर्यासन 42.भूनमनासन, 43.मंडूकासन, 44.मर्कटासन, 45.मार्जारासन, 46.योगनिद्रा, 47.योगमुद्रासन, 48.वातायनासन, 49.वृक्षासन, 50.वृश्चिकासन, 51.शंखासन, 52.शशकासन, 53.सिंहासन, 55.सिद्धासन, 56.सुप्त गर्भासन, 57.सेतुबंधासन, 58.स्कंधपादासन, 59.हस्तपादांगुष्ठासन, 60.भद्रासन, 61.शीर्षासन, 62.सूर्य नमस्कार, 63.कटिचक्रासन, 64.पादहस्तासन, 65.अर्धचन्द्रासन, 66.ताड़ासन, 67.पूर्णधनुरासन, 68.अर्धधनुरासन, 69.विपरीत नौकासन, 70.शलभासन, 71.भुजंगासन, 72.मकरासन, 73.पवन मुक्तासन, 74.नौकासन, 75.हलासन, 76.सर्वांगासन, 77.विपरीतकर्णी आसन, 78.शवासन, 79.मयूरासन, 80.ब्रह्म मुद्रा, 81.पश्चिमोत्तनासन, 82.उष्ट्रासन, 83.वक्रासन, 84.अर्ध-मत्स्येन्द्रासन, 85.मत्स्यासन, 86.सुप्त-वज्रासन, 87.वज्रासन, 88.पद्मासन आदि।

6.जानिए प्राणायाम क्या है:-
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प्राणायाम के पंचक:👉 1.व्यान, 2.समान, 3.अपान, 4.उदान और 5.प्राण।

प्राणायाम के प्रकार:👉 1.पूरक, 2.कुम्भक और 3.रेचक। इसे ही हठयोगी अभ्यांतर वृत्ति, स्तम्भ वृत्ति और बाह्य वृत्ति कहते हैं। अर्थात श्वास को लेना, रोकना और छोड़ना। अंतर रोकने को आंतरिक कुम्भक और बाहर रोकने को बाह्म कुम्भक कहते हैं।

प्रमुख प्राणायाम:👉 1.नाड़ीशोधन, 2.भ्रस्त्रिका, 3.उज्जाई, 4.भ्रामरी, 5.कपालभाती, 6.केवली, 7.कुंभक, 8.दीर्घ, 9.शीतकारी, 10.शीतली, 11.मूर्छा, 12.सूर्यभेदन, 13.चंद्रभेदन, 14.प्रणव, 15.अग्निसार, 16.उद्गीथ, 17.नासाग्र, 18.प्लावनी, 19.शितायु आदि।

अन्य प्राणायाम:👉 1.अनुलोम-विलोम प्राणायाम, 2.अग्नि प्रदीप्त प्राणायाम, 3.अग्नि प्रसारण प्राणायाम, 4.एकांड स्तम्भ प्राणायाम, 5.सीत्कारी प्राणायाम, 6.सर्वद्वारबद्व प्राणायाम, 7.सर्वांग स्तम्भ प्राणायाम, 8.सम्त व्याहृति प्राणायाम, 9.चतुर्मुखी प्राणायाम, 10.प्रच्छर्दन प्राणायाम, 11.चन्द्रभेदन प्राणायाम, 12.यन्त्रगमन प्राणायाम, 13.वामरेचन प्राणायाम, 14.दक्षिण रेचन प्राणायाम, 15.शक्ति प्रयोग प्राणायाम, 16.त्रिबन्धरेचक प्राणायाम, 17.कपाल भाति प्राणायाम, 18.हृदय स्तम्भ प्राणायाम, 19.मध्य रेचन प्राणायाम, 20.त्रिबन्ध कुम्भक प्राणायाम, 21.ऊर्ध्वमुख भस्त्रिका प्राणायाम, 22.मुखपूरक कुम्भक प्राणायाम, 23.वायुवीय कुम्भक प्राणायाम, 
24.वक्षस्थल रेचन प्राणायाम, 25.दीर्घ श्वास-प्रश्वास प्राणायाम, 26.प्राह्याभ्न्वर कुम्भक प्राणायाम, 27.षन्मुखी रेचन प्राणायाम 28.कण्ठ वातउदा पूरक प्राणायाम, 29.सुख प्रसारण पूरक कुम्भक प्राणायाम, 30.नाड़ी शोधन प्राणायाम व नाड़ी अवरोध प्राणायाम आदि।

7.योग क्रियाएं जानिएं:-
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प्रमुख 13 क्रियाएं:👉 1.नेती- सूत्र नेति, घॄत नेति, 2.धौति- वमन धौति, वस्त्र धौति, दण्ड धौति, 3.गजकरणी, 4.बस्ती- जल बस्ति, 5.कुंजर, 6.न्यौली, 7.त्राटक, 8.कपालभाति, 9.धौंकनी, 10.गणेश क्रिया, 11.बाधी, 12.लघु शंख प्रक्षालन और 13.शंख प्रक्षालयन।

8.मुद्राएं कई हैं:-
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6 आसन मुद्राएं:👉 1.व्रक्त मुद्रा, 2.अश्विनी मुद्रा, 3.महामुद्रा, 4.योग मुद्रा, 5.विपरीत करणी मुद्रा, 6.शोभवनी मुद्रा।

पंच राजयोग मुद्राएं👉  1.चाचरी, 2.खेचरी, 3.भोचरी, 4.अगोचरी, 5.उन्न्युनी मुद्रा।

10 हस्त मुद्राएं:👉  उक्त के अलावा हस्त मुद्राओं में प्रमुख दस मुद्राओं का महत्व है जो निम्न है: -1.ज्ञान मुद्रा, 2.पृथवि मुद्रा, 3.वरुण मुद्रा, 4.वायु मुद्रा, 5.शून्य मुद्रा, 6.सूर्य मुद्रा, 7.प्राण मुद्रा, 8.लिंग मुद्रा, 9.अपान मुद्रा, 10.अपान वायु मुद्रा।

अन्य मुद्राएं :👉 1.सुरभी मुद्रा, 2.ब्रह्ममुद्रा, 3.अभयमुद्रा, 4.भूमि मुद्रा, 5.भूमि स्पर्शमुद्रा, 6.धर्मचक्रमुद्रा, 7.वज्रमुद्रा, 8.वितर्कमुद्रा, 8.जनाना मुद्रा, 10.कर्णमुद्रा, 11.शरणागतमुद्रा, 12.ध्यान मुद्रा, 13.सुची मुद्रा, 14.ओम मुद्रा, 15.जनाना और चीन मुद्रा, 16.अंगुलियां मुद्रा 17.महात्रिक मुद्रा, 18.कुबेर मुद्रा, 19.चीन मुद्रा, 20.वरद मुद्रा, 21.मकर मुद्रा, 22.शंख मुद्रा, 23.रुद्र मुद्रा, 24.पुष्पपूत मुद्रा, 25.वज्र मुद्रा, 26श्वांस मुद्रा, 27.हास्य बुद्धा मुद्रा, 28.योग मुद्रा, 29.गणेश मुद्रा 30.डॉयनेमिक मुद्रा, 31.मातंगी मुद्रा, 32.गरुड़ मुद्रा, 33.कुंडलिनी मुद्रा, 34.शिव लिंग मुद्रा, 35.ब्रह्मा मुद्रा, 36.मुकुल मुद्रा, 37.महर्षि मुद्रा, 38.योनी मुद्रा, 39.पुशन मुद्रा, 40.कालेश्वर मुद्रा, 41.गूढ़ मुद्रा, 42.मेरुदंड मुद्रा, 43.हाकिनी मुद्रा, 45.कमल मुद्रा, 46.पाचन मुद्रा, 47.विषहरण मुद्रा या निर्विषिकरण मुद्रा, 48.आकाश मुद्रा, 49.हृदय मुद्रा, 50.जाल मुद्रा आदि।

9.प्रत्याहार:👉  इंद्रियों को विषयों से हटाने का नाम ही प्रत्याहार है। इंद्रियां मनुष्य को बाहरी विषयों में उलझाए रखती है।। प्रत्याहार के अभ्यास से साधक अन्तर्मुखिता की स्थिति प्राप्त करता है। जैसे एक कछुआ अपने अंगों को समेट लेता है उसी प्रकार प्रत्याहरी मनुष्य की स्थिति होती है। यम नियम, आसान, प्राणायाम को साधने से प्रत्याहार की स्थिति घटित होने लगती है।

10.धारणा:👉  चित्त को एक स्थान विशेष पर केंद्रित करना ही धारणा है। प्रत्याहार के सधने से धारणा स्वत: ही घटित होती है। धारणा धारण किया हुआ चित्त कैसी भी धारणा या कल्पना करता है, तो वैसे ही घटित होने लगता है। यदि ऐसे व्यक्ति किसी एक कागज को हाथ में लेकर यह सोचे की यह जल जाए तो ऐसा हो जाता है।

11.ध्यान :👉  जब ध्येय वस्तु का चिंतन करते हुए चित्त तद्रूप हो जाता है तो उसे ध्यान कहते हैं। पूर्ण ध्यान की स्थिति में किसी अन्य वस्तु का ज्ञान अथवा उसकी स्मृति चित्त में प्रविष्ट नहीं होती।

ध्यान के रूढ़ प्रकार:👉  स्थूल ध्यान, ज्योतिर्ध्यान और सूक्ष्म ध्यान।

ध्यान विधियां:👉  श्वास ध्यान, साक्षी भाव, नासाग्र ध्यान, विपश्यना ध्यान आदि हजारों ध्यान विधियां हैं।

12.समाधि:👉  यह चित्त की अवस्था है जिसमें चित्त ध्येय वस्तु के चिंतन में पूरी तरह लीन हो जाता है। योग दर्शन समाधि के द्वारा ही मोक्ष प्राप्ति को संभव मानता है।

समाधि की भी दो श्रेणियां हैं :👉  1.सम्प्रज्ञात और 2.असम्प्रज्ञात। 

सम्प्रज्ञात समाधि वितर्क, विचार, आनंद और अस्मितानुगत होती है। असम्प्रज्ञात में सात्विक, राजस और तामस सभी वृत्तियों का निरोध हो जाता है। इसे बौद्ध धर्म में संबोधि, जैन धर्म में केवल्य और हिन्दू धर्म में मोक्ष प्राप्त करना कहते हैं। इस सामान्य भाषा में मुक्ति कहते हैं।

पुराणों में मुक्ति के 6 प्रकार बताएं गए है जो इस प्रकार हैं-👉  1.साष्ट्रि, (ऐश्वर्य), 2.सालोक्य (लोक की प्राप्ति), 3.सारूप (ब्रह्मस्वरूप), 4.सामीप्य, (ब्रह्म के पास), 5.साम्य (ब्रह्म जैसी समानता) 6.लीनता या सायुज्य (ब्रह्म में लीन होकर ब्रह्म हो जाना)।

योगाभ्यास की बाधाएं:👉 आहार, प्रयास, प्रजल्प, नियमाग्रह, जनसंग और लौल्य। इसी को सामान्य भाषा में आहार अर्थात अतिभोजन, प्रयास अर्थात आसनों के साथ जोर-जबरदस्ती, प्रजल्प अर्थात अभ्यास का दिखावा, नियामाग्रह अर्थात योग करने के कड़े नियम बनाना, जनसंग अर्थात अधिक जनसंपर्क और अंत में लौल्य का मतलब शारीरिक और मानसिक चंचलता।

1.राजयोग:👉 यम, नियम, आसन, प्राणायम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि यह पतंजलि के राजयोग के आठ अंग हैं। इन्हें अष्टांग योग भी कहा जाता है।

2.हठयोग:👉 षट्कर्म, आसन, मुद्रा, प्रत्याहार, ध्यान और समाधि- ये हठयोग के सात अंग है, लेकिन हठयोगी का जोर आसन एवं कुंडलिनी जागृति के लिए आसन, बंध, मुद्रा और प्राणायम पर अधिक रहता है। यही क्रिया योग है।

3.लययोग:👉 यम, नियम, स्थूल क्रिया, सूक्ष्म क्रिया, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। उक्त आठ लययोग के अंग है।

4.ज्ञानयोग:👉 साक्षीभाव द्वारा विशुद्ध आत्मा का ज्ञान प्राप्त करना ही ज्ञान योग है। यही ध्यानयोग है।

5.कर्मयोग:👉 कर्म करना ही कर्म योग है। इसका उद्येश्य है कर्मों में कुशलता लाना। यही सहज योग है।

6.भक्तियोग :👉  भक्त श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन रूप- इन नौ अंगों को नवधा भक्ति कहा जाता है। भक्ति योगानुसार व्यक्ति सालोक्य, सामीप्य, सारूप तथा सायुज्य-मुक्ति को प्राप्त होता है, जिसे क्रमबद्ध मुक्ति कहा जाता है।

कुंडलिनी योग 👉 कुंडलिनी शक्ति सुषुम्ना नाड़ी में नाभि के निचले हिस्से में सोई हुई अवस्था में रहती है, जो ध्यान के गहराने के साथ ही सभी चक्रों से गुजरती हुई सहस्रार चक्र तक पहुंचती है। ये चक्र 7 होते हैं

मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा और सहस्रार। 

72 हजार नाड़ियों में से प्रमुख रूप से तीन है: इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना। इड़ा और पिंगला नासिका के दोनों छिद्रों से जुड़ी है जबकि सुषुम्ना भ्रकुटी के बीच के स्थान से। स्वरयोग इड़ा और पिंगला के विषय में विस्तृत जानकारी देते हुए स्वरों को परिवर्तित करने, रोग दूर करने, सिद्धि प्राप्त करने और भविष्यवाणी करने जैसी शक्तियाँ प्राप्त करने के विषय में गहन मार्गदर्शन होता है। दोनों नासिका से सांस चलने का अर्थ है कि उस समय सुषुम्ना क्रियाशील है। ध्यान, प्रार्थना, जप, चिंतन और उत्कृष्ट कार्य करने के लिए यही समय सर्वश्रेष्ठ होता है।

योग का संक्षिप्त इतिहास
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योग का उपदेश सर्वप्रथम हिरण्यगर्भ ब्रह्मा ने सनकादिकों को, पश्चात विवस्वान (सूर्य) को दिया। बाद में यह दो शखाओं में विभक्त हो गया। एक ब्रह्मयोग और दूसरा कर्मयोग। ब्रह्मयोग की परम्परा सनक, सनन्दन, सनातन, कपिल, आसुरि, वोढु और पच्चंशिख नारद-शुकादिकों ने शुरू की थी। यह ब्रह्मयोग लोगों के बीच में ज्ञान, अध्यात्म और सांख्य योग नाम से प्रसिद्ध हुआ।

दूसरी कर्मयोग की परम्परा विवस्वान की है। विवस्वान ने मनु को, मनु ने इक्ष्वाकु को, इक्ष्वाकु ने राजर्षियों एवं प्रजाओं को योग का उपदेश दिया। उक्त सभी बातों का वेद और पुराणों में उल्लेख मिलता है। वेद को संसार की प्रथम पुस्तक माना जाता है जिसका उत्पत्ति काल लगभग 10000 वर्ष पूर्व का माना जाता है। पुरातत्ववेत्ताओं अनुसार योग की उत्पत्ति 5000 ई.पू. में हुई। गुरु-शिष्य परम्परा के द्वारा योग का ज्ञान परम्परागत तौर पर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मिलता रहा।

भारतीय योग जानकारों के अनुसार योग की उत्पत्ति भारत में लगभग 5000 वर्ष से भी अधिक समय पहले हुई थी। योग की सबसे आश्चर्यजनक खोज 1920 के शुरुआत में हुई। 1920 में पुरातत्व वैज्ञानिकों ने ‘सिंधु सरस्वती सभ्यता’ को खोजा था जिसमें प्राचीन हिंदू धर्म और योग की परंपरा होने के सबूत मिलते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता को 3300-1700 बी.सी.ई. पूराना माना जाता है।

योग ग्रंथ योग सूत्र
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 वेद, उपनिषद्, भगवद गीता, हठ योग प्रदीपिका, योग दर्शन, शिव संहिता और विभिन्न तंत्र ग्रंथों में योग विद्या का उल्लेख मिलता है। सभी को आधार बनाकर पतंजलि ने योग सूत्र लिखा। योग पर लिखा गया सर्वप्रथम सुव्यव्यवस्थित ग्रंथ है- 

योगसूत्र👉 योगसूत्र को पांतजलि ने 200 ई.पूर्व लिखा था। इस ग्रंथ पर अब तक हजारों भाष्य लिखे गए हैं, लेकिन कुछ खास भाष्यों का यहां उल्लेख लिखते हैं।

व्यास भाष्य👉 व्यास भाष्य का रचना काल 200-400 ईसा पूर्व का माना जाता है। महर्षि पतंजलि का ग्रंथ योग सूत्र योग की सभी विद्याओं का ठीक-ठीक संग्रह माना जाता है। इसी रचना पर व्यासजी के ‘व्यास भाष्य’ को योग सूत्र पर लिखा प्रथम प्रामाणिक भाष्य माना जाता है। व्यास द्वारा महर्षि पतंजलि के योग सूत्र पर दी गई विस्तृत लेकिन सुव्यवस्थित व्याख्या।

तत्त्ववैशारदी 👉 पतंजलि योगसूत्र के व्यास भाष्य के प्रामाणिक व्याख्याकार के रूप में वाचस्पति मिश्र का ‘तत्त्ववैशारदी’ प्रमुख ग्रंथ माना जाता है। वाचस्पति मिश्र ने योगसूत्र एवं व्यास भाष्य दोनों पर ही अपनी व्याख्या दी है। तत्त्ववैशारदी का रचना काल 841 ईसा पश्चात माना जाता है।

योगवार्तिक👉  विज्ञानभिक्षु का समय विद्वानों के द्वारा 16वीं शताब्दी के मध्य में माना जाता है। योगसूत्र पर महत्वपूर्ण व्याख्या विज्ञानभिक्षु की प्राप्त होती है जिसका नाम ‘योगवार्तिक’ है।

भोजवृत्ति👉  भोज के राज्य का समय 1075-1110 विक्रम संवत माना जाता है। धरेश्वर भोज के नाम से प्रसिद्ध व्यक्ति ने योग सूत्र पर जो ‘भोजवृत्ति नामक ग्रंथ लिखा है वह भोजवृत्ति योगविद्वजनों के बीच समादरणीय एवं प्रसिद्ध माना जाता है। कुछ इतिहासकार इसे 16वीं सदी का ग्रंथ मानते हैं।

अष्टांग योग👉  इसी योग का सर्वाधिक प्रचलन और महत्व है। इसी योग को हम अष्टांग योग योग के नाम से जानते हैं। अष्टांग योग अर्थात योग के आठ अंग। दरअसल पतंजल‍ि ने योग की समस्त विद्याओं को आठ अंगों में… श्रेणीबद्ध कर दिया है। लगभग 200 ईपू में महर्षि पतंजलि ने योग को लिखित रूप में संग्रहित किया और योग-सूत्र की रचना की। योग-सूत्र की रचना के कारण पतंजलि को योग का पिता कहा जाता है।

यह आठ अंग हैं👉 (1)यम (2)नियम (3)आसन (4) प्राणायाम (5)प्रत्याहार (6)धारणा (7) ध्यान (8)समाधि। उक्त आठ अंगों के अपने-अपने उप अंग भी हैं। वर्तमान में योग के तीन ही अंग प्रचलन में हैं- आसन, प्राणायाम और ध्यान।

योग सूत्र👉 200 ई.पू. रचित महर्षि पतंजलि का ‘योगसूत्र’ योग दर्शन का प्रथम व्यवस्थित और वैज्ञानिक अध्ययन है। योगदर्शन इन चार विस्तृत भाग, जिन्हें इस ग्रंथ में पाद कहा गया है, में विभाजित है👉 समाधिपाद, साधनपाद, विभूतिपाद तथा कैवल्यपाद।

प्रथम पाद का मुख्य विषय चित्त की विभिन्न वृत्तियों के नियमन से समाधि के द्वारा आत्म साक्षात्कार करना है। द्वितीय पाद में पाँच बहिरंग साधन- यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार का विवेचन है।

तृतीय पाद में अंतरंग तीन धारणा, ध्यान और समाधि का वर्णन है। इसमें योगाभ्यास के दौरान प्राप्त होने वाली विभिन्न सिद्धियों का भी उल्लेख हुआ है, किन्तु ऋषि के अनुसार वे समाधि के मार्ग की बाधाएँ ही हैं।

चतुर्थ कैवल्यपाद मुक्ति की वह परमोच्च अवस्था है, जहाँ एक योग साधक अपने मूल स्रोत से एकाकार हो जाता है।

‌दूसरे ही सूत्र में योग की परिभाषा देते हुए पतंजलि कहते हैं- ‘योगाश्चित्त वृत्तिनिरोधः’। अर्थात योग चित्त की वृत्तियों का संयमन है। चित्त वृत्तियों के निरोध के लिए महर्षि पतंजलि ने द्वितीय और तृतीय पाद में जिस अष्टांग योग साधन का उपदेश दिया है, उसका संक्षिप्त परिचय निम्नानुसार है:-

‌ 1👉 यम: कायिक, वाचिक तथा मानसिक इस संयम के लिए अहिंसा, सत्य, अस्तेय चोरी न करना, ब्रह्मचर्य जैसे अपरिग्रह आदि पाँच आचार विहित हैं। इनका पालन न करने से व्यक्ति का जीवन और समाज दोनों ही दुष्प्रभावित होते हैं।

‌2👉 नियम: मनुष्य को कर्तव्य परायण बनाने तथा जीवन को सुव्यवस्थित करते हेतु नियमों का विधान किया गया है। इनके अंतर्गत शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर प्रणिधान का समावेश है। शौच में बाह्य तथा आन्तर दोनों ही प्रकार के शुद्धि समाविष्ट है

3👉 आसन: पतंजलि ने स्थिर तथा सुखपूर्वक बैठने की क्रिया को आसन कहा है। परवर्ती विचारकों ने अनेक आसनों की कल्पना की है। वास्तव में आसन हठयोग का एक मुख्य विषय ही है। इनसे संबंधित ‘हठयोग प्रतीपिका’ ‘घरेण्ड संहिता’ तथा ‘योगाशिखोपनिषद्’ में विस्तार से वर्णन मिलता है।

4👉 प्राणायाम: योग की यथेष्ट भूमिका के लिए नाड़ी साधन और उनके जागरण के लिए किया जाने वाला श्वास और प्रश्वास का नियमन प्राणायाम है। प्राणायाम मन की चंचलता और विक्षुब्धता पर विजय प्राप्त करने के लिए बहुत सहायक है।

5👉 प्रत्याहार: इंद्रियों को विषयों से हटाने का नाम ही प्रत्याहार है। इंद्रियाँ मनुष्य को बाह्यभिमुख किया करती हैं। प्रत्याहार के इस अभ्यास से साधक योग के लिए परम आवश्यक अन्तर्मुखिता की स्थिति प्राप्त करता है।

6👉 धारणा: चित्त को एक स्थान विशेष पर केंद्रित करना ही धारणा है।

7👉 ध्यान: जब ध्येय वस्तु का चिंतन करते हुए चित्त तद्रूप हो जाता है तो उसे ध्यान कहते हैं। पूर्ण ध्यान की स्थिति में किसी अन्य वस्तु का ज्ञान अथवा उसकी स्मृति चित्त में प्रविष्ट नहीं होती।

8👉 समाधि: यह चित्त की अवस्था है जिसमें चित्त ध्येय वस्तु के चिंतन में पूरी तरह लीन हो जाता है। योग दर्शन समाधि के द्वारा ही मोक्ष प्राप्ति को संभव मानता है।

समाधि की भी दो श्रेणियाँ हैं👉  सम्प्रज्ञात और असम्प्रज्ञात। सम्प्रज्ञात समाधि वितर्क, विचार, आनंद और अस्मितानुगत होती है। असम्प्रज्ञात में सात्विक, राजस और तामस सभी वृत्तियों का निरोध हो जाता है।,

योग साधना द्वारा जीवन विकास
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योग का नाम सुनते ही कितने ही लोग चौंक उठते हैं उनकी निगाह में यह एक ऐसी चीज है जिसे लम्बी जटा वाला और मृग चर्मधारी साधु जंगलों या गुफाओं में किया करते हैं। इसलिये वे सोचते हैं कि ऐसी चीज से हमारा क्या सम्बन्ध? हम उसकी चर्चा ही क्यों करें?

पर ऐसे विचार इस विषय में उन्हीं लोगों के होते हैं जिन्होंने कभी इसे सोचने-विचारने का कष्ट नहीं किया। अन्यथा योग जीवन की एक सहज, स्वाभाविक अवस्था है जिसका उद्देश्य समस्त मानवीय इन्द्रियों और शक्तियों का उचित रूप से विकास करना और उनको एक नियम में चलाना है। इसीलिये योग शास्त्र में “चित्त वृत्तियों का निरोध” करना ही योग बतलाया गया है। गीता में ‘कर्म की कुशलता’ का नाम योग है तथा ‘सुख-दुख के विषय में समता की बुद्धि रखने’ को भी योग बतलाया गया है। इसलिये यह समझना कोरा भ्रम है कि समाधि चढ़ाकर, पृथ्वी में गड्ढा खोदकर बैठ जाना ही योग का लक्षण है। योग का उद्देश्य तो वही है जो योग शास्त्र में या गीता में बतलाया गया है। हाँ इस उद्देश्य को पूरा करने की विधियाँ अनेक हैं, उनमें से जिसको जो अपनी प्रकृति और रुचि के अनुकूल जान पड़े वह उसी को अपना सकता है। नीचे हम एक योग विद्या के ज्ञाता के लेख से कुछ ऐसा योगों का वर्णन करते हैं जिनका अभ्यास घर में रहते हुये और सब कामों को पूर्ववत् करते हुये अप्रत्यक्ष रीति से ही किया जा सकता है-

1. कैवल्य योग👉 कैवल्य स्थिति को योग शास्त्र में सबसे बड़ा माना गया है। दूसरों का आश्रय छोड़कर पूर्ण रूप से अपने ही आधार पर रहना और प्रत्येक विषय में अपनी शक्ति का अनुभव करना इसका ध्येय हैं। साधारण स्थिति में मनुष्य अपने सभी सुखों के लिए दूसरों पर निर्भर रहता है। यह एक प्रकार की पराधीनता है और पराधीनता में दुख होना आवश्यक है। इसलिये योगी सब दृष्टियों से पूर्ण स्वतंत्र होने की चेष्टा करते हैं। जो इस आदर्श के सर्वोच्च शिखर पर पहुँच जाते हैं वे ही कैवल्य की स्थिति में अथवा मुक्तात्मा समझे जा सकते हैं। पर कुछ अंशों में इसका अभ्यास सब कोई कर सकते हैं और उसके अनुसार स्वाधीनता का सुख भी भोग सकते हैं।

2. सुषुप्ति योग👉 निद्रावस्था में भी मनुष्य एक प्रकार की समाधि का अनुभव कर सकता है। जिस समय निद्रा आने लगती है उस समय यदि पाठक अनुभव करने लगेंगे तो एक वर्ष के अभ्यास से उनको आत्मा के अस्तित्व को ज्ञान हो जायेगा। सोते समय जैसा विचार करके सोया जायगा उसका शरीर और मन पर प्रभाव अवश्य पड़ेगा। जिस व्यक्ति को कोई बीमारी रहती है वह यदि सोने के समय पूर्ण आरोग्य का विचार मन में लायेगा और “मैं बीमार नहीं हूँ।” ऐसे श्रेष्ठ संकल्प के साथ सोयेगा तो आगामी दिन से बीमारी दूर होने का अनुभव होने लगेगा। सुषुप्ति योग की एक विधि यह भी है कि निद्रा आने के समय जिसको जागृति और निद्रा संधि समय कहा जाता है, किसी उत्तम मंत्र का जप अर्थ का ध्यान रखते हुए करना और वैसे करते ही सो जाना। तो जब आप जगेंगे तो वह मंत्र आपको अपने मन में उसी प्रकार खड़ा मिलेगा। जब ऐसा होने लगे तब आप यह समझ लीजिये कि आप रात भर जप करते रहें। यह जप बिस्तरे पर सोते-सोते ही करना चाहिये और उस समय अन्य किसी बात को ध्यान मन में नहीं लाना चाहिये।

3. स्वप्न योग👉  स्वप्न मनुष्य को सदा ही आया करते हैं, उनमें से कुछ अच्छे होते हैं और कुछ खराब। इसका कारण हमारे शुभ और अशुभ विचार ही होते हैं। इसलिये आप सदैव श्रेष्ठ विचार और कार्य करके तथा सोते समय वैसा ही ध्यान करके उत्तम स्वप्न देख सकते हैं। इसके लिये जैसा आपका उद्देश्य हो वैसा ही विचार भी कर सकते हैं। उदाहरण के लिये यदि आपकी इच्छा ब्रह्मचर्य पालन की हो तो भीष्म पितामह का ध्यान कीजिये, दृढ़ व्रत और सत्य प्रेम होना हो तो श्रीराम चंद्र की कल्पना कीजिये, बलवान बनने का ध्येय हो तो भीमसेन का अथवा हनुमान जी का स्मरण कीजिये। आप सोते समय जिसकी कल्पना और ध्यान करेंगे स्वप्न में आपको उसी विषय का अनुभव होता रहेगा।

4. बुद्धियोग👉  तर्क-वितर्क से परे और श्रद्धा-भक्ति से युक्त निश्चयात्मक ज्ञान धारक शक्ति का नाम ही बुद्धि है। ऐसी ही बुद्धि की साधना से योग की विलक्षण सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। यद्यपि अपने को आस्तिक मानने से आप परमेश्वर पर भरोसा रखते हैं, पर तर्क-युक्त बात ऐसे योग में काम नहीं देती। अपना अस्तित्व आप जिस प्रकार बिना किसी प्रमाण के मानते हैं, इसी प्रकार बिना किसी प्रमाण का ख्याल किये सर्व मंगलमय परमात्मा पर पूरा विश्वास रखने का प्रयत्न और अभ्यास करना चाहिए। जो लोग बुद्धि योग में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं उनको ऐसी ही तर्क रहित श्रद्धा उत्पन्न करनी चाहिए तभी आपको परमात्मा विषयक सच्चा आनन्द प्राप्त हो सकेगा।

5. चित्त योग👉 चिन्तन करने वाली शक्ति को चित्त कहते हैं। योग-साधना में जो आपका अभीष्ट है उसकी चिन्ता सदैव करते रहिये। अथवा अभ्यास करने के लिए प्रतिमास कोई अच्छा विचार चुन लीजिये। जैसे “मैं आत्मा हूँ और मैं शरीर से भिन्न हूँ।” इसका सदा ध्यान अथवा चिन्तन करने से आपको धीरे-धीरे अपनी आत्मा और शरीर का भिन्नत्व स्पष्ट प्रतीत होने लगेगा। इस प्रकार अच्छे कल्याणकारी विचारों का चिन्तन करने से बुरे विचारों का आना सर्वथा बन्द हो जायगा और आपको अपना जीवन आनन्दपूर्ण जान पड़ने लगेगा।

6. इच्छा योग👉 जिससे मनुष्य किसी बात की प्राप्ति अथवा निवृत्ति की इच्छा करता है उसको इच्छा शक्ति कहते हैं। मनो-विज्ञान की दृष्टि से इच्छा शक्ति का प्रभाव अपार है, जिसके द्वारा सब तरह का महान् कार्य सिद्ध किया जा सकता है। बुराई से बचने का मुख्य साधन इच्छा शक्ति है। आप अपनी प्रबल इच्छाशक्ति द्वारा रोगों के आक्रमण को रोक सकते हैं। मानसिक प्रेरणा देने से बड़ी-बड़ी बीमारियाँ दूर हो सकती हैं। चरित्र सम्बन्धी सब दोषों को भी इच्छा शक्ति द्वारा दूर किया जा सकता है ओर उत्तम आचरण ग्रहण किये जा सकते हैं। यह शक्ति प्रत्येक में होती है, प्रश्न केवल उसे बुराई की तरफ से भलाई की तरफ प्रेरित करने का है।

7. मानस योग👉 मन का धर्म अच्छे और बुरे विचार करना है। मन को एकाग्र करने से उसकी शक्ति बहुत बढ़ सकती है और उसे उन्नति तथा कल्याण के कार्यों में लगाया जा सकता है। इसके लिये अभ्यास द्वारा मन को आज्ञाकारी बनाना चाहिये जिससे वह उन्हीं विचारों में लगे जिनको आप उत्तम समझते हैं।

8. अहंकार-योग👉 अहंकार शब्द का अर्थ ‘घमंड” भी होता है पर यहाँ उस अर्थ से हमारा तात्पर्य नहीं है। यहाँ पर इसका भाव अपनी अन्तरात्मा से है। अहंकार योग का उद्देश्य यह है कि मनुष्य अपने को भौतिक शरीर से भिन्न समझे और आत्मा के अजर, अमर, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिशाली आदि गुणों का ध्यान करके उनको ग्रहण करने का प्रयत्न करे। जब मनुष्य के भीतर यह विचार जम जाता है तो वह जिस कार्य का या अनुष्ठान का निश्चय कर लेता है, उसे फिर पूरा करके ही रहता है, क्योंकि उसे यह दृढ़ विश्वास होता है कि मैं शक्तिशाली आत्मा का रूप हूँ जिसके लिए कोई कार्य असंभव नहीं।

9. ज्ञानेन्द्रिय-योग👉 ज्ञानेन्द्रियाँ पाँच मानी गई हैं-आँख, कान, नाक, जीभ, चर्म। इनका सम्बन्ध क्रमशः अग्नि, आकाश, पृथ्वी, जल और वायु के साथ होता है। इनमें योग साधन के लिये सबसे प्रमुख इन्द्री आँख को माना गया है। मन की एकाग्रता प्राप्त करने के लिये आँखों की दृष्टि को किसी एक स्थान या केन्द्र पर जमाना होता है। इससे मन की शक्ति बढ़ जाती है और उसका दूसरों पर विशेष रूप से प्रभाव पड़ने लगता है। इसके द्वारा फिर अन्य इन्द्रियों पर भी कल्याणकारी प्रभाव पड़ने लगता है।

10. कर्मेन्द्रिय-योग👉 कर्मेन्द्रियाँ पाँच हैं👉 वाणी, हाथ, पाँव, गुदा और शिश्न। इनमें सबसे अधिक उपयोग वाणी का ही होता है और वह मानव-जीवन के विकास का सबसे बड़ा साधन है। वाणी द्वारा हम जो शब्द उच्चारण करते हैं उनमें बड़ी शक्ति होती है। योग साधन वाले को वाणी से सदैव उत्तम और हितकारी शब्द ही निकालने चाहिये। इस प्रकार का अभ्यास करने से अंत में आपको वाक्सिद्धि की शक्ति प्राप्त हो सकेगी।
वास्तव में मनुष्य का समस्त जीवन ही एक प्रकार का योग है। मनुष्य के रूप में आकर जीवात्मा, परमात्मा को पहिचान सकता है और उसे प्राप्त कर सकता है। इसलिये हमको अपनी प्रत्येक शक्ति को एक विशेष उद्देश्य और नियम के साथ विकसित करनी चाहिये जिससे वह उन्नत होती चली जाय। अगर मनुष्य इस प्रयत्न में सच्चे मन से बराबर लगा रहेगा तो उसे सब प्रकार की दैवी शक्तियाँ प्राप्त हो जायेंगी और वह परमात्मा के निकट पहुँचता जायगा।
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कामदा एकादशी व्रत 19-04-2024

☀️ *लेख:- कामदा एकादशी, भाग-1 (19.04.2024)* *एकादशी तिथि आरंभ:- 18 अप्रैल 5:31 pm* *एकादशी तिथि समाप्त:- 19 अप्रैल 8:04 pm* *काम...